संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : गणपति सेवा, मंगल मेवा... किसने किसकी की सेवा, और किसको मिलेगा मेवा?
13-Sep-2024 2:07 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : गणपति सेवा, मंगल मेवा... किसने किसकी की सेवा, और किसको मिलेगा मेवा?

एक घरेलू पूजा का फोटो और उसका वीडियो भारत में खलबली मचा रहा है। देश के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई.चन्द्रचूड़ के घर गणेश पूजा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पहुंचे, और महाराष्ट्र के अंदाज में सफेद गांधी टोपी लगाकर उन्होंने आरती की। उनके दाएं-बाएं चन्द्रचूड़ दम्पत्ति के फोटो और वीडियो पर सोशल मीडिया से लेकर खबरों तक बहुत कुछ कहा जा रहा है। कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि चन्द्रचूड़ रिटायरमेंट के करीब हैं, और ऐसे में प्रधानमंत्री हो सकता है कि उनका कोई पुनर्वास कर सकें। दूसरी तरफ शिवसेना के संजय राउत ने कहा है कि उनके महाराष्ट्र वाले केस में मुख्य न्यायाधीश की बेंच ही सुनवाई कर रही है, और अब शिवसेना न्याय की उम्मीद कैसे कर सकती है। उन्होंने कहा कि कोर्ट के अंदर उनके मामले में केन्द्र सरकार भी एक पार्टी है, और मुख्य न्यायाधीश को अपने को इस मामले से अलग कर लेना चाहिए क्योंकि इसके दूसरे पक्ष के साथ उनके रिश्ते जगजाहिर हो गए हैं। कुछ लोगों ने सोशल मीडिया पर यह सवाल भी उठाया है कि अपने घर की गणेश पूजा में क्या जस्टिस चन्द्रचूड़ ने दूसरी पार्टियों के नेताओं को भी बुलाया था? क्या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कुछ दूसरे घरों में भी गणेश पूजा के लिए गए थे? क्या जस्टिस चन्द्रचूड़ को इस बात का अहसास नहीं था कि जिस महाराष्ट्र से वे आते हैं, उस महाराष्ट्र में चुनाव होने जा रहे हैं, और उस चुनाव के ठीक पहले महाराष्ट्रियन टोपी लगाकर महाराष्ट्र के इस सबसे प्रमुख धार्मिक उत्सव के ऐसे फोटो और वीडियो का प्रचार एक नाजायज पक्षपात नहीं है? कुछ लोगों ने यह भी सवाल किया है कि इस घरेलू पूजा में अकेले मोदी ही परिवार के साथ दिख रहे हैं, तो फिर ये तस्वीरें किसकी तरफ से बाहर आई हैं, ये चन्द्रचूड़ की तरफ से जारी फोटो-वीडियो हैं, या प्रधानमंत्री के प्रचार तंत्र की तरफ से? और राजनीतिक बयानों का जवाब देने के लिए भाजपा की तरफ से एक ऐसा फोटो जारी किया गया है जिसमें पिछले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बंगले की इफ्तार पार्टी पर उस वक्त के मुख्य न्यायाधीश के.जी.बालाकृष्णन पहुंचे थे। इस पर कांग्रेस ने यह जवाब दिया है कि भाजपा यह फर्क नहीं समझ पा रही कि मीडिया और जनता के सामने होने वाले इफ्तार जैसे सार्वजनिक आयोजन, और किसी के घर पर होने वाले निजी धार्मिक आयोजन में क्या फर्क होता है। कांग्रेस का कहना है कि इन दोनों को एक साथ जोडक़र दिखाना गुमराह करना है। भाजपा ने मुख्य न्यायाधीश के घर मोदी के जाने और पूजा करने पर कांग्रेस की आपत्ति को अदालत की अवमानना करार दिया है।

अब जस्टिस चन्द्रचूड़ के घर की गणेश पूजा में प्रधानमंत्री जाहिर है कि न्यौता मिलने पर ही गए होंगे। अब सवाल यह उठता है कि क्या न्यायपालिका और कार्यपालिका के बिल्कुल अलग-अलग दायरों के रहते हुए मुख्य न्यायाधीश का प्रधानमंत्री को बुलाना ठीक था? और यहां पर हम इसकी तुलना इफ्तार-दावत से करना ठीक नहीं मानेंगे, क्योंकि वह एक खुला हुआ, सार्वजनिक और बड़ा समारोह रहता है, घर का कोई निजी कार्यक्रम नहीं रहता। फिर भी हम अगर खुद के पैमानों पर बात करें, तो हमारा तो यह मानना है कि मनमोहन सिंह की इफ्तार-दावत में उस वक्त के सीजेआई का जाना भी गलत था, और आज सीजेआई का पीएम को बुलाना उससे अधिक गलत है। जस्टिस चन्द्रचूड़ की खुद की अलग-अलग कई तरह की बेंचों में केन्द्र सरकार के खिलाफ दर्जनों मामले चल रहे हैं। बहुत से मामले तो ऐसे हैं जिनमें केन्द्र सरकार सवालों के कटघरे में घिरी हुई है, और देश के बहुत से तबके सरकार के खिलाफ अदालती फैसले की उम्मीद कर रहे हैं। अब अगर कल को जस्टिस चन्द्रचूड़ की अगुवाई वाली कोई बेंच केन्द्र सरकार, या किसी प्रदेश की भाजपा सरकार के खिलाफ चल रहे किसी मुकदमे में पूरे ईमानदार तर्कोँ के साथ भी अगर सरकार के पक्ष में फैसला जायज मानेगी, तो भी उससे आम जनता की सोच असहमत रह सकती है, और लोग यह मान सकते हैं कि प्रधानमंत्री के साथ ऐसे धार्मिक और घरेलू घरोबे के चलते ये फैसले दिए गए हैं। फिर रिटायरमेंट के बाद अगर जस्टिस चन्द्रचूड़ को केन्द्र सरकार कहीं भी मनोनीत करती है, तो उससे भी न सिर्फ चन्द्रचूड़ की, बल्कि न्यायपालिका की साख पर बड़ी आंच आएगी। यह हमने सुप्रीम कोर्ट के कुछ पिछले जजों, और खासकर एक सीजेआई रहे रंजन गोगोई के मामले में देखा है कि उनके सरकार-हिमायती लगने वाले कुछ फैसलों के बाद रिटायर होते ही उन्हें जब राज्यसभा भेजा गया, तो लोगों की नजरों में अदालत की इज्जत एकदम गिर गई थी। हमारा मानना है कि भारत में न्यायपालिका को लोकतंत्र के बाकी संस्थानों, कारोबारों, और दीगर ताकतवर तबकों से साफ-साफ अलग रहना चाहिए। राष्ट्रीय महत्व के कई ऐसे सार्वजनिक कार्यक्रम रहते हैं, जिनमें सबकी नजरों के सामने मंच पर प्रधानमंत्री, और सीजेआई एक साथ रहते हैं, और इसे लेकर कभी कोई विवाद नहीं होता। लेकिन दिल्ली की देखादेखी अब अगर राज्यों में हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, या बाकी जज अपने राज्य के मुख्यमंत्री के निवास पर गणेश पूजा में, या इफ्तार-दावत में चले जाएं, तो सरकारों के खिलाफ चल रहे सैकड़ों मामलों में अदालती निष्पक्षता पर किसे भरोसा रहेगा?

हम सीजेआई और प्रधानमंत्री के बीच परस्पर लोकतांत्रिक सम्मान में कोई बुराई नहीं देखते। लेकिन जो अनिवार्य संवैधानिक मेलमिलाप है, वैसे सार्वजनिक कार्यक्रमों से परे ऐसे संवैधानिक पदों पर बैठे हुए लोगों को अलग-अलग दायरों में रहना चाहिए। लोकतंत्र की पूरी सोच इस पर टिकी हुई है कि न्यायपालिका, कार्यपालिका, और विधायिका, एक-दूसरे से स्वतंत्र रहते हुए काम करें। इस लक्ष्मण रेखा को लांघना निहायत गैरजरूरी भी है, और नाजायज भी है।

इसी सिलसिले में लोगों ने अभी याद दिलाया है कि 1980 में जब इंदिरा गांधी चुनाव जीतकर दुबारा सत्ता में आई थीं, तब उस वक्त सुप्रीम कोर्ट के एक जज पी.एन.भगवती ने एक लंबी चिट्ठी लिखकर इंदिरा को बधाई दी थी, और कहा था कि चुनावों में आपकी शानदार जीत, और भारत के प्रधानमंत्री के रूप में आपकी विजयी वापसी पर क्या मैं हार्दिक बधाई दे सकता हूं? उन्होंने आगे लिखा था यह एक बेहद उल्लेखनीय उपलब्धि है, जिस पर आप, आपके मित्र, और आपके शुभचिंतक जायज रूप से गर्व कर सकते हैं, भारत जैसे देश का प्रधानमंत्री बनना बड़े सम्मान की बात है। इस चिट्ठी के सामने आने पर बड़ा हंगामा हुआ था, और तमाम वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन की बैठक बुलाकर इसके खिलाफ चर्चा की थी। उस वक्त के एक दूसरे सुप्रीम कोर्ट जज ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में जस्टिस भगवती की इस चिट्ठी का नाम लिए बिना इसकी निंदा की थी। अब अभी जस्टिस चन्द्रचूड़ की गणेश पूजा में मोदी के जाने पर सुप्रीम कोर्ट की एक बड़ी वकील इंदिरा जयसिंह ने अपने एक्स-अकाऊंट पर लिखा है- जस्टिस चन्द्रचूड़ ने कार्यपालिका, और न्यायपालिका के बीच शक्तियों के बंटवारे के सिद्धांत से समझौता किया है, मुख्य न्यायाधीश की स्वतंत्रता पर से अब विश्वास उठ गया है। उन्होंने मांग की है कि सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन को इसकी आलोचना करनी चाहिए।

इस बारे में हमारी सोच कुछ कड़े नीति-सिद्धांतों की है, और हमारा मानना है कि अदालत और सरकार को एक-दूसरे से एकदम परे रहना चाहिए, और जनता के बीच किसी भी तरह के शक की नौबत ही नहीं आने देनी चाहिए। संदेह से परे रहने के बारे में दुनिया भर में एक पुरानी कहावत चली आ रही है कि एक रोमन शासक जूलियस सीजर ने एक विवाद के बाद अपनी पत्नी को तलाक देते हुए यह कहा था- मेरी पत्नी को संदेह से भी ऊपर रहना चाहिए। इसे सार्वजनिक जीवन में अक्सर इस्तेमाल किया जाता है कि अहमियत के ओहदों पर बैठे हुए लोगों का चाल-चलन ऐसा रहना चाहिए कि उसे लेकर किसी शक की गुंजाइश कभी न हो सके। हमें लगता है कि जस्टिस चन्द्रचूड़ जूलियस सीजर के पैमाने पर खोटे साबित हुए हैं, और इस एक फैसले से उनकी साख धूमिल हुई है। अब वे अपने पुनर्वास के वक्त क्या करते हैं, और उसके पहले केन्द्र सरकार और प्रधानमंत्री मोदी की पार्टी या गठबंधन से जुड़े हुए मामलों पर क्या करते हैं, यह सोचना उनकी अपनी जिम्मेदारी है, और हम यही उम्मीद कर सकते हैं कि भगवान गणेश उन्हें सही राह दिखाएंगे। हमारा यह भी मानना है कि इस पूजा में जाकर प्रधानमंत्री मोदी ने एक ऐसे अप्रिय विवाद में हिस्सा ले लिया है जिसे टालने के लिए अधिक समझ-बूझ की जरूरत नहीं थी।

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