संपादकीय

दैनिक ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : रेल्वे इतना बदहाल, और सडक़ों का हाल मालामाल
11-Sep-2024 6:41 PM
दैनिक ‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : रेल्वे इतना बदहाल, और सडक़ों का हाल मालामाल

केन्द्र की मोदी सरकार के दो विभाग, दोनों जनता से एक ही किस्म की बातों से जुड़े हुए हैं, लेकिन दोनों के कामकाज में जमीन-आसमान का फर्क दिख रहा है। एक तो रेलवे है, और दूसरा सडक़ परिवहन। रेलवे का काम देखने वाले अश्विनी वैष्णव आईएएस अधिकारी रहे हुए हैं, और रेलवे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की निजी प्रतिष्ठा से जुड़ी हुई कई योजनाओं को असाधारण तरीके से आगे भी बढ़ा रहा है। मोदी के नाम से जुड़ी वंदे भारत रेलगाडिय़ों को लगातार बढ़ाया जा रहा है, और दूसरी तरफ आम जनता के सफर की गाडिय़ां घटती चली जा रही हैं, छोटे और मामूली स्टेशनों पर रूकना घटते चले जा रहा है, रेलगाडिय़ों में डिब्बे कम होते चले जा रहे हैं, और इन कम होते डिब्बों में आम मुसाफिरों के बिना एसी वाले डिब्बे बहुत बुरी तरह कम कर दिए गए हैं, एसी वाले डिब्बे बढ़ते चले जा रहे हैं, और गरीबों को भी मजबूरी में महंगा सफर करना पड़ रहा है। इसके अलावा रेलवे ने स्टेशनों का निजीकरण शुरू किया है जिससे प्लेटफॉर्म टिकट से लेकर पार्किंग तक सब कुछ अंधाधुंध महंगा होते चल रहा है, वहां पर खानपान महंगा हो रहा है, और रेलवे ने बुजुर्गों की रियायत खत्म कर दी है, रिजर्वेशन की फीस बढ़ा दी है, टिकट कैंसल करने पर चार्ज बढ़ा दिए हैं, और हर दिन देश भर में दर्जनों रेलगाडिय़ों को अचानक रद्द कर दिया जा रहा है, क्योंकि सरकार का पूरा ध्यान कोयले की आवाजाही पर है। लोग सोशल मीडिया पर अपनी कहीं भी खड़ी कर दी गई रेलगाडिय़ों की तस्वीर पोस्ट कर रहे हैं, कि उनकी गाड़ी को वंदे भारत को रास्ता देने के लिए किस तरह रोक दिया गया है। जगह-जगह से खबरें आती हैं कि वंदे भारत ट्रेन खाली चल रही है, घाटे में चल रही है, उसकी लागत नहीं निकल रही। ये खबरें भी आती हैं कि वंदे भारत ट्रेन पर जगह-जगह पथराव हो रहे हैं, और शायद ऐसा इसलिए भी हो रहा होगा जिन छोटे कस्बों में रेलगाडिय़ों का रूकना बंद कर दिया गया है, वहां के लोग नाराज होकर शायद ऐसे पत्थर चलाते हों। रेलगाडिय़ों के गिने-चुने आम मुसाफिर डिब्बों के भीतर जैसी भयानक भीड़ है, उसके वीडियो देखते नहीं बनते हैं। इन सबसे ऊपर देश भर में हर दो-तीन दिनों में कोई न कोई रेल एक्सीडेंट भी देखने मिल रहा है। अगर बहुत से लोग ऐसा सोचते हैं कि रेल मंत्रालय उसी अंदाज में सिर्फ वंदे भारत गाडिय़ों पर ध्यान दे रहा है, जिस अंदाज में छत्तीसगढ़ में पिछली भूपेश बघेल सरकार स्कूल शिक्षा के नाम पर सिर्फ आत्मानंद स्कूलों पर ध्यान दे रही थी, तो ऐसा सोचना बहुत नाजायज भी नहीं लग रहा है।

हमने जिस दूसरे मुद्दे को उठाया है वह सडक़ परिवहन का है, और केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी इस विभाग के मंत्री हैं, और पिछले बरसों में लगातार देश में सडक़ परिवहन सुधरते चले गया। खूब नई सडक़ें बनी हैं, देश भर में फ्लाईओवर, और ओवरब्रिज बने हैं, ट्रैफिक तेज हुआ है, टोल टैक्स नाकों पर फास्टटैग की वजह से कतारें लगना कम हुआ है, और नितिन गडकरी एक समर्पित मंत्री माने जाते हैं जो कि सकारात्मक नजरिए से चीजों को सुधारते हैं, रफ्तार से प्रोजेक्ट पूरा करवाते हैं। उन्होंने अपने विभागों से जुड़ी टेक्नॉलॉजी पर तेजी से अमल करवाया है, फास्टटैग तो एक बात थी, अब वे गाडिय़ों को जीपीएस से लैस करवाकर एक नए किस्म से टोल टैक्स लेने का इंतजाम कर रहे हैं जो कि आज के इंतजाम के मुकाबले अधिक न्यायसंगत और तर्कसंगत भी रहेगा। उन्होंने ग्लोबल निविगेशन सेटेलाइट सिस्टम (जीएनएसएल) से लैस निजी वाहनों पर नेशनल हाईवे पर एक अलग फार्मूले से टोल टैक्स लेना शुरू किया है जो कि बिना किसी टोल टैक्स नाके के हाईवे के इस्तेमाल पर टैक्स का हिसाब करते चलेगा। इसके साथ-साथ मौजूदा इंतजाम भी अभी चलते रहेंगे क्योंकि अभी अधिक गाडिय़ों में यह प्रणाली लगी नहीं है।

नितिन गडकरी ने सडक़ परिवहन मंत्रालय के तहत एक-एक दिन में हाईवे निर्माण के कुछ विश्व रिकॉर्ड भी बनाए हैं कि कितने लेन की सडक़ें, कितने किलोमीटर एक दिन में बनाई गई हैं। मंत्री के रूप में उनका काम हमेशा चर्चा में रहा है, और वे सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी भविष्य की योजनाओं को लेकर सकारात्मक बातें करते हैं।

हम भारत में लोगों की आवाजाही से जुड़े, और माल परिवहन से जुड़े इन दो मंत्रालयों को जब एक साथ देखते हैं, तो रेलवे की हालत लगातार जनविरोधी होती चली जा रही है। ग्रामीण और गरीब मुसाफिरों की मुसीबत खड़ी करने में रेल मंत्रालय ने कोई कसर नहीं रखी है। इस अखबार ने अपने यूट्यूब चैनल ‘इंडिया-आजकल’ पर बिलासपुर हाईकोर्ट के एक वकील सुदीप श्रीवास्तव को इंटरव्यू किया था जिन्होंने रेल सेवा की तबाही के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी। उन्होंने खुलासे से बताया था कि गरीब और ग्रामीण जनता को किस तरह रेल मंत्रालय ने घूरे के ढेर पर फेंक दिया है, और कम से कम रेलगाडिय़ां चलाकर अधिक से अधिक मुनाफा कमाना सरकार ने मकसद बना लिया है, और जनता पर भारी-भरकम बोझ डालने, उनकी सहूलियतें छीन लेने की कीमत पर रेल मंत्रालय अपने घाटे कम कर रहा है। हिन्दुस्तान के इतिहास में अच्छी-भली चलती भारतीय रेल को इतना बर्बाद करने का काम कभी नहीं हुआ था। और देश भर में चुनिंदा वंदे भारत ट्रेन चलाना किसी भी तरह से जनता की तकलीफों की भरपाई नहीं हो सकती। जब देश के सैकड़ों, या शायद हजारों रेलवे स्टेशनों पर ट्रेन रूकना बंद कर दिया गया है, तो वहां की जनता की आर्थिक विकास की संभावनाओं को भी चौपट कर दिया गया है। न वहां के बच्चे पास के शहर तक रोज पढऩे आ-जा सकते, न गांव के मजदूर काम करने शहर आ सकते, और न ही गांव की अपनी छोटी सी उपज लेकर उसे रोज शहर बेचने जाया जा सकता। एक तरफ तो देश में आर्थिक विकास की बात कही जा रही है, और दूसरी तरफ एक-एक दिन में दर्जनों मुसाफिर रेलगाडिय़ों को अचानक रद्द कर देना जनता को एकदम ही गैरजरूरी मान लेने के अलावा कुछ नहीं है।

जो लोग दशकों से नितिन गडकरी को देखते आ रहे हैं, क्या वे यह कल्पना भी कर सकते हैं कि अगर वे रेलमंत्री होते तो क्या इस विभाग का हाल इतना खराब हुआ होता? हम लोकतंत्र में व्यक्तिवादी होना तो नहीं चाहते, लेकिन कुछ नेता, कुछ अफसर ऐसे रहते हैं कि उनके अकेले के रहने और न रहने से उनके विभाग के काम में जमीन-आसमान का फर्क पड़ जाता है।

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