संपादकीय

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कोलकाता में एक महिला चिकित्सा छात्रा के साथ बलात्कार और उसकी हत्या पर एक लेख में कहा है कि एक डॉक्टर के साथ बलात्कार, और उसकी हत्या ने देश को सकते में डाल दिया है। ‘जब मैंने यह खबर सुनी, तो मैं बुरी तरह स्तब्ध और व्यथित हो गई। सबसे अधिक हताश करने वाली बात यह है कि ये केवल एक अकेला मामला नहीं है, यह महिलाओं के खिलाफ अपराधों की कड़ी का एक हिस्सा है।’ इसके बाद द्रौपदी मुर्मू ने देश की राजधानी में निर्भया के साथ हुई त्रासदी का भी जिक्र किया है, और देश में जगह-जगह महिलाओं और छोटी-छोटी बच्चियों पर हो रहे बलात्कार के बारे में भी लिखा है। राष्ट्रपति बार-बार किसी मुद्दे पर लिखते हों ऐसा भी याद नहीं पड़ता है, और द्रौपदी मुर्मू ने इस खास लेख में देश में महिलाओं की खतरनाक हालत के बारे में बहुत कुछ लिखा है। राष्ट्रपति एक महिला होने के अलावा आदिवासी भी हैं, और ये दोनों ही तबके आज देश में खासे खतरे में हैं, इसलिए हम उनकी फिक्र को जायज समझते हैं, और जरूरी भी। हम उनके लिखे हुए से सहमत भी हैं। लेकिन मन में एक सवाल और उठ खड़ा होता है।
मणिपुर में 4 मई 2023 को भडक़े दंगों के बाद वहां आदिवासियों पर जुल्म की भयानक तस्वीरें सामने आई थीं। आदिवासियों और वहां के सवर्ण मैतेई समुदाय के बीच भयानक हिंसा हुई थी जिसमें शायद 60 हजार कुकी और दूसरे आदिवासियों को अपना घर-बार, गांव-कस्बा छोडक़र चले जाना पड़ा था। डेढ़-दो सौ लोगों की मौत हुई थी, बड़ी संख्या में आगजनी हुई थी, लेकिन जिस घटना ने पूरी दुनिया को हिला दिया था, वह दो आदिवासी महिलाओं को सारे कपड़े उतारकर एक जुलूस में नंगे बदन, बदन से खिलवाड़ करते हुए, और बाद में शायद उनसे गैंगरेप करना, और उनको मार डालना जैसी घटनाएं हुई थीं। जब इसका वीडियो सामने आया, और सुप्रीम कोर्ट ने खुद होकर उसका नोटिस लिया, तब जिस दिन सुप्रीम कोर्ट से इस पर आदेश होना था उसी सुबह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पहली बार इस पर मुंह खोला था, और इसे पूरे देश की शर्मिंदगी का मौका बताया था। अब बाकी देश तो मणिपुर के हालात के लिए जवाबदेह नहीं था क्योंकि यह लड़ाई दूसरे प्रदेश के लोगों से नहीं थी, और सिर्फ वहां के भाजपा-मुख्यमंत्री बीरेन सिंह, और केन्द्र की भाजपा अगुवाई वाली मोदी सरकार ही मणिपुर के लिए जिम्मेदार थे। इसलिए बाकी देश की शर्मिंदगी की बात भी कुछ तर्कसंगत और न्यायसंगत नहीं थी। लेकिन उस वक्त तक भी ऐसी कोई खबर नहीं आई कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मणिपुर में महिलाओं के साथ ऐसे सुलूक और वहां के बाकी हालात को लेकर प्रधानमंत्री को बुलाकर कोई चर्चा किए हों, जो कि न सिर्फ अधिकार था, बल्कि उनकी जिम्मेदारी भी थी। इसी मणिपुर में अपने बुरी तरह से जख्मी बच्चे को लेकर अस्पताल जा रही महिला को मैतेई भीड़ ने एम्बुलेंस सहित जलाकर मार डाला था। इस पर भी राष्ट्रपति का कोई लेख हमें याद नहीं पड़ता, और न ही अफसोस का कोई बयान उन्होंने दिया हो ऐसा दिखता है। मणिपुर साल भर जलते रहा, देश के तमाम संविधान विशेषज्ञ यह कहते रहे कि वहां की सरकार भंग करने का मौका है, और उसकी जरूरत है, लेकिन एक आदिवासी महिला राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का मुंह भी नहीं खुला था, और अभी जब उन्होंने कोलकाता के एक बलात्कार और कत्ल को संदर्भ बनाकर यह असाधारण लेख लिखा है, तो भी इसमें मणिपुर का दर्द नहीं छलक रहा है।
हमारे नियमित पाठकों को याद होगा कि हमने मणिपुर पर लिखते हुए, और अपने यूट्यूब चैनल, इंडिया-आजकल, पर बोलते हुए कई बार मोदी और द्रौपदी मुर्मू के मौन पर कई बार कहा था। अब ऐसे में यह लगता है कि मणिपुर जैसे जलते हुए मुद्दे पर, जहां पर दो समुदायों के बीच व्यापक हिंसा चल रही थी, जहां पर आदिवासी समुदाय पर ऐतिहासिक जुल्म हो रहा था, जहां पर आदिवासी महिलाओं की रेप-परेड निकाली जा रही थी, वहां पर द्रौपदी मुर्मू को निर्भयाकांड के दस-ग्यारह बरस हो जाने के बाद ऐसा कोई लेख लिखना नहीं सूझा। अब हम मणिपुर की व्यापक हिंसा के साथ अगर पश्चिम बंगाल की इस ताजा दर्दनाक और अमानवीय घटना की तुलना करें, तो कोलकाता के मेडिकल कॉलेज अस्पताल में एक चिकित्सा छात्रा के साथ एक या उससे अधिक कुछ लोगों ने बंद कमरे में बलात्कार किया, और उसे मार डाला। यह घटना भयानक थी, लेकिन क्या यह घटना मणिपुर से अधिक भयानक थी? यह सवाल इसलिए उठ रहा है कि हम एक बलात्कार की दूसरे बलात्कार से तुलना नहीं कर रहे, बल्कि हम देश के व्यापक हालात पर देश की राष्ट्रपति, एक महिला, एक आदिवासी की व्यापक फिक्र की जरूरत, और उसके वक्त का अंदाज लगाने की कोशिश कर रहे हैं। बंगाल की ममता सरकार इस ताजा रेप-हत्या पर बहुत बुरी तरह घिरी हुई है, और सरकार की अनदेखी, सत्ता की गिरोहबंदी, सरकार की लापरवाही, और नालायकी सबको लेकर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश खुद सवाल कर रहे हैं। यह सब कुछ कोलकाता की घटना के दो हफ्ते के भीतर हो चुका है, और तीन हफ्ते पूरे होने के पहले द्रौपदी मुर्मू का यह लेख भी सामने आ चुका है। हम सिर्फ यह याद करने की कोशिश कर रहे हैं कि मणिपुर की व्यापक हिंसा, वहां पर संवैधानिक असफलता, वहां निर्वाचित सरकार पर तोहमतें और जनता का अविश्वास सब देखते हुए क्या राष्ट्रपति की उस वक्त यह जिम्मेदारी नहीं बनती थी कि वे प्रधानमंत्री, केन्द्रीय गृहमंत्री, मणिपुर के मुख्यमंत्री को बुलाकर जवाब-तलब करतीं, जो कि उनका न सिर्फ अधिकार था, बल्कि उनकी जिम्मेदारी भी थी। इस पर लिखते हुए हमें याद पड़ता है कि उस वक्त मणिपुर की राज्यपाल रहीं अनुसुइया उइके ने राज्य सरकार और केन्द्र सरकार के रूख को लेकर अपनी गहरी निराशा औपचारिक रूप से जाहिर की थी, और यह भी जाहिर है कि उसके बाद उनका राज्यपाल का कार्यकाल बढ़ाया नहीं गया।
हमें यह समझने में दिक्कत हो रही है कि मणिपुर में असाधारण और ऐतिहासिक हिंसा के उस दौर के सवा साल बाद आज द्रौपदी मुर्मू को अचानक बंगाल के इस बलात्कार-हत्या मामले को लेकर लेख लिखने की कैसे सूझी, और इतने वक्त तक मणिपुर की उन महिलाओं के वीडियो देखते हुए उन्हें क्या लगा था? हमने पहले भी कई बार इस पर लिखा था कि जिस समुदाय से निकलकर लोग ऊपर पहुंचते हैं, उस समुदाय के हितों को वे भूल जाते हैं। कोलकाता के मामले को तो पूरा देश और पूरी दुनिया सभी उठा रहे हैं, कोलकाता हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट जाने कितनी बार इसकी सुनवाई कर चुके हैं, लेकिन मणिपुर शायद भारतीय लोकतंत्र की मूलधारा से उसी तरह किनारे पड़े रहा, जिस तरह बाकी हिन्दुस्तान उत्तर-पूर्वी राज्यों को इस अंदाज में नार्थ-ईस्ट कहता है कि मानो वह कोई दूसरा देश हो।
हिन्दुस्तान के लोकतंत्र का इतिहास द्रौपदी मुर्मू के इस ताजा दर्द को अच्छी तरह दर्ज कर रहा है, लेकिन मणिपुर पर उनकी चुप्पी इतिहास के पन्नों से हमेशा ही चीख-चीखकर बोलती रहेगी। ऐसे में लगता है कि क्या द्रौपदी मुर्मू अपने को राष्ट्रपति बनाने वाली मोदी सरकार को नापसंद ममता सरकार को घेरने के लिए इस वक्त पर ऐसा लेख लिख रही हैं? यह सवाल किसी बुलबुले की तरह आसानी से बैठने वाला नहीं है, यह सीना तानकर खड़े रहेगा, और जब द्रौपदी मुर्मू का मुंह खुलेगा, उनकी कलम चलेगी, तब-तब वह उनकी चुप्पी के बारे में पूछेगा।