संपादकीय

छत्तीसगढ़ में नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के जोनल ऑफिस का उद्घाटन करते हुए कल केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि इस राज्य में नशीली दवाओं की खपत राष्ट्रीय औसत से अधिक है, और गांजे की खपत भी राष्ट्रीय औसत से अधिक है। उन्होंने यह भी कहा कि इसे पूरी तरह रोकने की जरूरत है, और यह हिन्दुस्तान से परे एक अंतरराष्ट्रीय समस्या है। छत्तीसगढ़ में हर दिन कई जिलों से खबरें आती हैं कि वहां की पुलिस ने कितना गांजा पकड़ा, गाडिय़ां जब्त कीं, और कितने लोगों को गिरफ्तार किया। ओडिशा और आन्ध्र से हिन्दुस्तान के बहुत बड़े हिस्से के लिए गांजा छत्तीसगढ़ से होकर गुजरता है, और इन राज्यों की सरहद पर छत्तीसगढ़ के जो जिले हैं, वहां की पुलिस के लिए यह रोज की बात रहती है। नशे के मामले में गांजे की जगह देश में शराब के तुरंत बाद है क्योंकि मंदिरों और मठों में, तीर्थों और चौपालों में गांजा पीना सामाजिक मान्यताप्राप्त है। इसे बहुत से लोग हिन्दू धर्म से जुड़ा हुआ एक संस्कार भी मान लेते हैं, और इसे शराब के मुकाबले कम खतरनाक नशा भी माना जाता है। इस तरह छत्तीसगढ़ देश के आधा दर्जन राज्यों के बीच गांजे के कॉरीडोर की तरह भी काम करता है, और दवा कारखानों में बनने वाली नशे की गोलियों, और तरह-तरह से नशा देने वाले कफसिरप की अवैध बिक्री का रास्ता भी छत्तीसगढ़ से होकर है। इसलिए एनसीबी का जोनल ऑफिस यहां खुलने से हो सकता है कि कार्रवाई कुछ तेज हो सके।
अब हम दूसरी कुछ खबरों को इस खबर से जोडक़र देखना चाहते हैं। अभी-अभी यह रिपोर्ट भी सामने आई है कि देश के किस प्रदेश में शराब की कितनी खपत है। एक प्रमुख सर्वे संस्था सीएमआईई के आंकड़ों के मुताबिक छत्तीसगढ़ में प्रति व्यक्ति शराब की खपत देश में चौथे नंबर पर है। और इससे ऊपर तीन संपन्न राज्य हैं, आन्ध्र, तेलंगाना, और पंजाब। इनके तुरंत बाद छत्तीसगढ़ जैसा राज्य आता है जहां से ऊपर के इन तीनों राज्यों में लोग मजदूरी करने जाते हैं, और बेहतर मजदूरी पाते हैं। इसलिए यह कम फिक्र की बात नहीं है कि मजदूरों वाले छत्तीसगढ़ में शराब की खपत देश में चौथे नंबर पर है। यह भी याद रखने की जरूरत है कि इस राज्य की एक तिहाई आबादी आदिवासियों की है, और आदिवासियों को उनके अपने इलाकों में अपनी खपत के लिए घर पर शराब बनाने की छूट है। फिर जब कोई आदिवासी अपने लिए शराब बनाते हैं तो अपने साथ-साथ कुछ और लोगों को भी बेचने के लिए बना लेते हैं, और राज्य के आदिवासी इलाकों में पुलिस तकरीबन रोजाना ही घर पर बनाकर बेची जा रही अवैध शराब भी पकड़ती है। इसके आंकड़े प्रदेश में शराब की खपत में शामिल नहीं है, क्योंकि इनकी कहीं गिनती नहीं होती है। साथ-साथ यह भी है कि छत्तीसगढ़ में अपने शराब कारखानों और अड़ोस-पड़ोस के राज्यों के शराब कारखानों से बनकर आती हुई दो नंबर की शराब का एक बड़ा बाजार है, और पुलिस की कार्रवाई में कई बार दूसरे प्रदेशों की शराब भी बड़ी-बड़ी, और महंगी गाडिय़ों में लाई जाती जब्त होती है।
अब हम छत्तीसगढ़ के हर शहर-कस्बे, और गांवों से हर दिन दर्जनों की संख्या में आती हुई उन खबरों को देखना चाहते हैं जिनमें शराब और दूसरे नशे की वजह से बड़ी हिंसा होती है। कई बार तो यह हिंसा पूरी तरह अविश्वसनीय लगती है, और कहीं मां-बाप मिलकर नशेड़ी औलाद को मार डाल रहे हैं, तो कहीं बीवी-बच्चे मिलकर नशेड़ी पति/बाप को खत्म कर दे रहे हैं। कई मामलों में पत्नियों ने नशेड़ी पति को खुद भी मारा है, और कहीं-कहीं प्रेमी के साथ मिलकर, तो कहीं भाड़े के हत्यारे को तैनात करके भी कत्ल करवाया है। परिवार के भीतर नशे में हिंसा की अंधाधुंध वारदातें हो रही हैं, और जब यह हिंसा पुलिस तक पहुंचती है, तो ही बात सामने आती है। परिवारों के भीतर बलात्कार और सेक्स-शोषण के अनगिनत मामले नशे की हालत में होते हैं, और नशा एक किस्म से छत्तीसगढ़ में जुर्म की एक सबसे बड़ी वजह बन गया है। हालत इतनी खराब है कि सरकारी स्कूलों में शिक्षक और हेडमास्टर, या सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर दारू पिए हुए नशे में पहुंचते हैं, और उन्हें वीडियो बनने की भी कोई फिक्र नहीं रहती है।
अब हम नशे की इतनी खपत के पीछे की एक वजह यह भी देखते हैं कि पांच बरस पहले प्रदेश में भूपेश सरकार बनने पर किसानों की कर्जमाफी हुई थी, और उन्हें धान का काफी अधिक दाम भी मिला था। इस बार के विधानसभा चुनाव में आई भाजपा सरकार ने धान के दाम और अधिक बढ़ाकर 31 सौ रूपए प्रति क्विंटल देना शुरू किया है, और किसानों के हाथ खूब पैसा आया है। धान की अर्थव्यवस्था इस प्रदेश में सबसे अधिक रोजगार देने वाला अकेला कारोबार है, और किसान की संपन्नता खेतिहर मजदूरों तक भी बढ़ती है, और ग्रामीण-शहरी, सभी अर्थव्यवस्था तरक्की करती है। जब पैसा इतना रहता है तो बहुत से लोग नशा करने लगते हैं, या पहले से नशा करने वाले उस पर खर्च कुछ और बढ़ा देते हैं। अभी हम जितने आंकड़े और अनुमान बता रहे हैं, इनमें दवा कारखानों में बनने वाले रासायनिक नशे के कोई भी आंकड़े नहीं हैं, और हमारे यूट्यूब चैनल ‘इंडिया-आजकल’ पर दो-तीन दिन पहले छत्तीसगढ़ के एक सबसे प्रमुख चिकित्सक डॉ.संदीप दवे ने इस सूखे नशे के भयानक रफ्तार से, और बड़े पैमाने पर हो रहे इस्तेमाल को एक खतरनाक नौबत बताया था। उनका कहना था कि इससे बदबू भी नहीं आती है, यह शराब से सस्ता भी होता है, और घरवालों को भी इस नशे का अंदाज नहीं लगता है।
अब इस पूरे नक्शे का एक आखिरी टुकड़ा हम यहां पर और रख रहे हैं। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक संतोष सिंह जिस-जिस जिले में रहे, वहां पर उन्होंने नशे के खिलाफ बड़ी कड़ी मुहिम छेड़ी। उन्होंने जागरूकता अभियान भी चलाए, और नशे के सौदागरों को बड़ी संख्या में पकड़ा। उन्होंने नशाविरोधी अभियान की वजह से, ऐसे अभियान के दौर में जिले में जुर्म के आंकड़ों में उल्लेखनीय गिरावट पाई है, और तरह-तरह के टेबल, ग्राफ, चार्ट में दिखाई भी है। यह बात समझ लेने की जरूरत है कि नशे का सबसे बड़ा अकेला कारोबार, शराब चूंकि सरकारी है, इसलिए वह इस अभियान के बाहर है। हमारा भी अंदाज है कि नशे की वजह से निजी जुर्म बड़ी संख्या में बढ़ रहे हैं, और बड़ी हिंसा हो रही है। इन तमाम बातों को देखते हुए केन्द्र और राज्य सरकारों को मिलकर तमाम राज्यों में नशे के खिलाफ एक बड़ा अभियान लगातार जारी रखने की जरूरत है, और जैसा कि केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा है, नशे के सौदागरों की संपत्ति जब्त की जानी चाहिए। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)