संपादकीय

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के मेयर एजाज ढेबर ने एक गजब का काम किया है। अभी रूस की राजधानी मास्को में उन्होंने वहां के परिवहन मंत्री के साथ एक एमओयू किया जिसके तहत रायपुर से दुर्ग के बीच लाईट मेट्रो ट्रेन शुरू की जाएगी। उन्होंने वहां से अखबारों को जानकारी दी है कि जल्द ही मास्को से एक विशेषज्ञ दल यहां आएगा, और यह भी देखेगा कि इस रास्ते पर लाईट मेट्रो का ढांचा बनाने के लिए छत्तीसगढ़ में रमन सिंह सरकार के वक्त रायपुर में बनाए गए स्काईवॉक के कॉलम का क्या इस्तेमाल किया जा सकेगा। उल्लेखनीय है कि मेयर एजाज ढेबर का कार्यकाल तीन महीने ही बचा है, और पांच सौ करोड़ की ऐसी योजना को लेकर उन्होंने एक एमओयू पर विदेशी सरकार के साथ दस्तखत किए हैं जो कि न तो राज्य सरकार, और न ही केन्द्र सरकार की इजाजत के बिना किए जा सकते। दूसरी बात यह कि छत्तीसगढ़ में पूरे पांच बरस ढेबर की पार्टी, कांग्रेस का राज रहा, और भूपेश बघेल सरकार के पूरे कार्यकाल में ढेबर परिवार ही सरकार के कई हिस्सों को चलाते भी रहा। उन पांच बरसों में जो काम रायपुर के महापौर नहीं कर पाए, अब जाते-जाते एक ऐसी इमारत की नींव वे रख रहे हैं, जिसकी जमीन पर भी रायपुर म्युनिसिपल का कोई हक नहीं है।
यह बहुत ही हैरानी की बात है कि दुर्ग से रायपुर तक लाईट मेट्रो चलाने के लिए जिस सडक़ का इस्तेमाल हो सकता है, वह पूरी की पूरी राष्ट्रीय राजमार्ग में आती है, और उसमें कोई भी फेरबदल केन्द्र सरकार की सहमति और अनुमति के बिना नहीं हो सकता। रायपुर नगर निगम सीमा के बाहर किसी चीज पर एमओयू करना यहां के मेयर के अधिकार क्षेत्र का नहीं है। छत्तीसगढ़ की मौजूदा भाजपा सरकार की ऐसी कोई मजबूरी नहीं है कि ढेबर की फरमाइश पर वह रमन सिंह सरकार के वक्त बनते हुए स्काईवॉक को आगे बढ़ाना रोक दे, और ढेबर के एमओयू को माने। यह पूरा सिलसिला बचकाना, अधकचरा, और अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर किया गया काम है। जब चलाचली की बेला आ चुकी है, तो आखिरी के तीन महीनों में पांच सौ करोड़ की एक योजना कई नगर निगमों और नगर पालिकाओं की तरफ से अकेले रायपुर मेयर का तय करना हास्यास्पद भी है, और एक राजनीतिक नौटंकी भी है। इससे यह भी पता लगता है कि अपने अत्यंत करीबी भूपेश बघेल के मुख्यमंत्री रहते हुए एजाज ढेबर ने खुद महापौर रहते हुए ऐसा कुछ भी नहीं किया, और अब जाते-जाते भाजपा सरकार के अधिकार क्षेत्र के, केन्द्र सरकार के अधिकार क्षेत्र के ऐसे काम वे खुद करके जा रहे हैं। उनके इस एमओयू की कीमत उस कागज के वजन जितनी ही होगी जिस पर यह टाईप हुआ है, और जिस पर दस्तखत हुए हैं।
लेकिन एजाज ढेबर के किए हुए इस काम से परे छत्तीसगढ़ सरकार अगर चाहे, तो वह सोच सकती है कि क्या दुर्ग से रायपुर तक किसी लाईट मेट्रो की गुंजाइश है? रमन सरकार के समय का अधूरा स्काईवॉक पूरा करने का फैसला आज की भाजपा सरकार ने ले लिया है, और उस पर काम भी शायद जल्द शुरू हो जाएगा, लेकिन जिस तरह से आज की विष्णुदेव साय सरकार दुर्ग-भिलाई और रायपुर को मिलाकर एक प्रदेश राजधानी क्षेत्र बनाने की सोच रही है, उसके लिए ट्रांसपोर्ट के ऐसे ढांचे के बारे में सोचना चाहिए जो कि रायपुर शहर के एक-दो किलोमीटर की स्थानीय सहूलियत से ऊपर हो। अगर किसी लाईट मेट्रो को बनाने में स्काईवॉक आड़े आता हो, और उससे मेट्रो की सारी संभावनाएं पूरी तरह खत्म हो जाती हों, तो प्रादेशिक राजधानी क्षेत्र के व्यापक हित को देखते हुए प्रदेश सरकार को इस बारे में सोचना चाहिए कि क्या उस कीमत पर भी वह स्काईवॉक को पूरा करना चाहेगी? हम स्काईवॉक के गुण-दोष पर नहीं जा रहे, उसे तो भूपेश सरकार भी पांच बरस में तय नहीं कर पाई। लेकिन अगर दुर्ग-भिलाई से रायपुर होते हुए नया रायपुर तक किसी किस्म की मेट्रो का बनना, रायपुर शहर से उसका गुजरना अगर स्काईवॉक बनने के बाद मुमकिन नहीं रहेगा, तो फिर राजधानी क्षेत्र विकास की योजना के साथ जोडक़र ही स्काईवॉक का भविष्य तय करना चाहिए। इसे किसी प्रतिष्ठा का मुद्दा बनाना, किसी चुनावी घोषणा से जोडक़र देखना राज्य के व्यापक हितों के खिलाफ रहेगा।
रायपुर के कांग्रेसी मेयर एजाज ढेबर हो सकता है कि दुबारा मेयर चुनाव लडऩा चाहें, या रायपुर-दक्षिण विधानसभा सीट पर वे उम्मीदवार बनना चाहें, और इसी नीयत से वे इस शहर के लोगों को मुंगेरीलाल के हसीन सपने दिखा रहे हों, और अच्छी तरह जानते-बूझते हुए भी केन्द्र और राज्य सरकारों के हिस्से के फैसले ले रहे हैं। उनका अधिकार क्षेत्र, उनकी नीयत, उनकी घोषणा की संभावनाएं, इन सब पर लोगों को चर्चा करना चाहिए। यह शिगूफा कांग्रेस पार्टी का कुछ भी भला नहीं करेगा, क्योंकि म्युनिसिपल से रवानगी के तीन महीने पहले अगले तीस बरस की किसी योजना की घोषणा करना कोई भरोसेमंद काम तो है नहीं। ऐसा लगता है कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी अभी भी एक बेकाबू जंतु की तरह चल रही है, या उस पर काबू संगठन से परे से जारी है। वरना कोई भी पार्टी म्युनिसिपल चुनावों के ठीक पहले इस किस्म की घोषणा करके अपने आपको मखौल का सामान तो बनाती नहीं।
छत्तीसगढ़ की राजधानी बाकी प्रदेश की तरह कुछ महीनों में म्युनिसिपल चुनाव देखने वाली है, और रायपुर दक्षिण विधानसभा सीट पर उपचुनाव भी होने जा रहा है। इन दोनों चुनावों को देखते हुए पार्टियां, नेता, या सरकारें भी जिस तरह की घोषणाएं करेंगी, उनका मूल्यांकन करने का काम किसी जनसंगठन को भी करना चाहिए, और जानकार-विशेषज्ञ नागरिकों को भी। हम जनता के पैसों से जनता की जगहों पर किसी तरह के अहंकार को लोकतांत्रिक नहीं पाते हैं। हमारा साफ मानना है कि हर सार्वजनिक योजना में विशेषज्ञों की भूमिका रहनी चाहिए, फैसले विशेषज्ञों के लिए हुए होने चाहिए। चुनाव जीतने वाले लोग हर बात में विशेषज्ञ नहीं बन जाते। इस देश में दिल्ली मेट्रो सहित, अमूल वाले आणंद से लेकर इसरो तक, विशेषज्ञों की वजह से सफल हुए हैं। इसलिए नेताओं को धरती के हर मामले का विशेषज्ञ बनने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। छत्तीसगढ़ राज्य के बेहतर हित में राज्य सरकार को देश के अच्छे योजनाशास्त्रियों से सलाह-मशविरा करना चाहिए, तभी राज्य स्तर की अच्छी योजनाएं बन सकेंगी।