संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : बलात्कारी, यौन-शोषक शिक्षकों को पल भर में हटाएं, और बर्खास्त करें
17-Aug-2024 7:11 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय :  बलात्कारी, यौन-शोषक  शिक्षकों को पल भर में  हटाएं, और बर्खास्त करें

कुछ खबरें अपने आपमें मामूली लग सकती हैं, लेकिन जब उनकी बौछार सी होने लगे, तो वे एकदम से खटकती हैं। आसमान से गिरी एक बूंद बदन पर महसूस नहीं होती, लेकिन जब ये बूंदें हजारों की संख्या में हो जाती हैं, तो लोगों को बारिश का अहसास होता है। पिछले कुछ दिनों से छत्तीसगढ़ की स्कूलों का जो हाल सुनाई पड़ रहा है, वह एक भयानक नौबत बताता है। और ऐसा भी नहीं है कि बृजमोहन अग्रवाल के अब शिक्षामंत्री से सांसद बन जाने की वजह से कुछ हफ्तों के भीतर इस विभाग में अब शिक्षक, हेडमास्टर, और प्रिंसिपल गैंगरेप करने लगे हैं, छात्राओं का देह-शोषण करने लगे हैं, छात्राओं को अश्लील संदेश भेजने लगे हैं, शराब पीकर स्कूल पहुंचने लगे हैं। यह हाल पहले से चले आ रहा था, न सिर्फ इस सरकार की शुरूआत से, बल्कि पिछली कांग्रेस सरकार के वक्त से भी स्कूल शिक्षा विभाग चलाने में मंत्री और अफसर की दिलचस्पी स्कूल-खरीदी में ही दिखती थी। लोगों को याद होगा कि कांग्रेस की भूपेश सरकार में स्कूल शिक्षा मंत्री को आखिर में हटाया भी गया था, जो कि 20 बरस पहले भी मंत्री रह चुके थे, और अनुभवी थे।

पता नहीं स्कूल शिक्षा की यह बदहाली कभी सुधर क्यों नहीं पाई। विभाग में हर समय बड़ा संगठित भ्रष्टाचार चलते रहा, और उसके चलते इस विभाग को सुधारने में किसी की दिलचस्पी नहीं रही, हर किसी की दिलचस्पी खरीदी में रही, कभी फर्नीचर खरीदी, कभी साइकिल और यूनिफॉर्म खरीदी, और कभी स्कूल लाइब्रेरी के लिए सबसे घटिया किताबों की खरीदी। हमें सिंचाई और पीडब्ल्यूडी जैसे विभागों के भ्रष्टाचार कुछ कम खटकते हैं, लेकिन स्वास्थ्य, और स्कूल शिक्षा का भ्रष्टाचार देखकर खून जलता है क्योंकि दुनिया के किसी भी सभ्य लोकतंत्र में सबसे अधिक महत्व इन्हीं दोनों विभागों को दिया जाता है। आज हालत यह है कि देश में स्कूल शिक्षा के स्तर के मामले में छत्तीसगढ़ बहुत नीचे है, और इसमें कई सरकारों का, कई कार्यकालों का योगदान रहा है, यह नौबत रातों-रात तो आ नहीं सकती थी।

पिछली भूपेश सरकार के समय जो आत्मानंद अंग्रेजी-हिन्दी स्कूल खोले गए, उन्हें सरकार ने अपनी प्रतिष्ठा का झंडा बना लिया था, और बाहर से आने वाले, या लाए गए पत्रकारों को दिखाने के लिए ये स्कूल नुमाइश की तरह इस्तेमाल किए जाते थे। हमारा ख्याल है कि पांच बरस में भी भूपेश सरकार स्कूली छात्र-छात्राओं के पांच फीसदी के लिए भी ये महंगे और खास दर्जा प्राप्त स्कूल नहीं बना पाई थी। बल्कि सरकार और म्युनिसिपल के जो सबसे अच्छे स्कूल थे, जिनकी इमारतें अच्छी थीं, जिनका ढांचा अच्छा था, उनको आत्मानंद स्कूल बना दिया गया, नतीजा यह निकला कि हिन्दी स्कूलों के पास गिनी-चुनी जगहों पर जो ढांचा उपलब्ध था, वह भी अंग्रेजी के लिए छिन गया। इसके अलावा जिला कलेक्टरों की जेब में रखी गई जिला खनिज निधि की रकम को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की प्रतिष्ठा के इन झंडों पर अनुपातहीन तरीके से खर्च किया गया। हमने उस समय भी कई बार इस मुद्दे पर लिखा था कि अंग्रेजी भाषा के ऐसे आतंक में आने की जरूरत नहीं है कि महंगी इमारत, महंगे फर्नीचर, खास पोशाक के बिना मानो अंग्रेजी सीखना मुमकिन न हो। भाषा तो एक औजार रहती है, और जब प्रदेश में स्कूली शिक्षा की ऐसी बदहाली हो, तो उसी में से पैसे निचोडक़र ऐसे चुनिंदा महंगे टापू बनाना अलोकतांत्रिक काम था। हिन्दी भाषा में पढऩे वालों ने ऐसा कौन सा जुर्म किया था कि उनकी स्कूल की इमारत जर्जर रहे, पोशाक साधारण दिखे, फर्नीचर टूटा-फूटा रहे। आत्मानंद के नाम पर मुख्यमंत्री को खुश करने का सिलसिला ऐसा चला कि तमाम कलेक्टरों ने अपनी पूरी ताकत इन स्कूलों को और बेहतर, और शानदार बनाने में लगा दी, और दूसरी तरफ तब से अब तक आम सरकारी स्कूलों का हाल ऐसा खराब है कि छत का मोटा प्लास्टर गिरकर बच्चों को जख्मी कर रहा है, कहीं चारों तरफ पानी भरा है, कहीं रात को स्कूली कमरों में जानवर घुस जाते हैं। इतने किस्म की बदहाली के बीच जब स्कूलों के शिक्षक और हेडमास्टर नशे में स्कूल पहुंचते हैं, स्कूल में बैठकर दारू पीते हैं, छात्राओं का यौन-शोषण करते हैं, तो यह सरकार के लिए और अधिक शर्मिंदगी की बात है। आज की शिक्षकों की गिरफ्तारी और निलंबन की दूसरी खबरों के बीच यह खबर और डराती है कि राजधानी रायपुर की सबसे घनी कॉलोनी में 12वीं की छात्रा को वहीं के एक शिक्षक ने अश्लील मैसेज भेजे, और थाने में बड़े प्रदर्शन के बाद शिक्षक के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज हुई और उसे बिठाया गया। अब अगर सरकारी स्कूलों में शिक्षकों का चाल-चलन ऐसा है, तो वे बच्चों के सामने किस तरह का आदर्श पेश करते होंगे? ऐसे में नैतिकता की किताबें और पाठ पढ़ाना किस काम का रहेगा जब कहीं स्कूली छात्रा गर्भवती हो रही है, कहीं आश्रम शाला में छात्राओं का सिलसिलेवार यौन-शोषण हो रहा है, और सैकड़ों शिक्षक ऐसे हैं जो स्कूल जाते ही नहीं हैं।

लोकतंत्र में स्कूली शिक्षा और स्वास्थ्य विभाग को अगर ठीक से सुधारा नहीं गया, तो उससे बाकी सरकार के हाल का अंदाज आसानी से लग जाता। यह चावल की हंडी से निकाले गए दो दानों की तरह रहते हैं जिनसे बाकी चावलों के पकने, या अब तक कच्चे रहने का अंदाज लगता है। स्कूल शिक्षा विभाग को एक तरफ तो अपने अमले की अराजकता पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए, दूसरी तरफ खरीदी के भ्रष्टाचार पर काबू करना चाहिए, और तीसरी बात यह कि केन्द्र सरकार के सर्वे में स्कूलों में पढ़ाई के स्तर की जो बदहाली दिखी है, उसे दूर करने के लिए राज्य सरकार को आईआईएम जैसे किसी प्रतिष्ठित मैनेजमेंट संस्थान से सहयोग लेना चाहिए जो कि स्कूलों को सुधारने के लिए सरकार को एक बाहरी नजरिया दे सके। आमतौर पर जब सरकार को ऐसी सलाह दी जाती है, तो उसके लोग किसी बाहरी निजी एजेंसी के साथ सांठगांठ करके उसे ही मूल्यांकन और सुधार सुझाने का काम दे देते हैं, जिसमें सब लोग खूब पैसा बना लेते हैं। हमारी सलाह दुनिया भर में प्रतिष्ठित, और देश के सबसे अच्छे मैनेजमेंट संस्थानों से सलाह लेने की है, जिनमें रायपुर का आईआईएम शामिल हो सकता है। यह आईआईएम के लिए भी एक प्रतिष्ठा और चुनौती की बात हो सकती है कि वह अपने इस प्रदेश की एक बड़ी चुनौती का सामना कर सके, और असल जिंदगी में कागजी कार्रवाई से परे कुछ ठोस सुझा सके जिसका असर भी आने वाले बरसों में देखने मिले। फिलहाल तब तक के लिए भी हमारी यह सलाह है कि प्रदेश में बेरोजगारी कम नहीं है, और ऐसे में नशेड़ी या यौन-शोषक शिक्षकों को पल भर में बर्खास्त करना चाहिए, और उनकी जगह नए लोगों को नियुक्त करना चाहिए। साथ-साथ पढ़ाई के स्तर का मूल्यांकन बहुत जरूरी है, और उसे सरकार के भीतर के लोग नहीं कर सकते, उसके लिए बाहरी विशेषज्ञ-सलाहकार, आईआईएम जैसी संस्था से सलाह लेनी चाहिए। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)


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