संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सिंहासनों की नर्म गद्दी सीधे दिमाग पर असर करती है..
13-Aug-2024 5:33 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : सिंहासनों की नर्म गद्दी सीधे  दिमाग पर असर करती है..

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर उनके मीडिया एडवाइजर रहे, और उसके पहले पत्रकार, राजनीतिक विश्लेषक रहे, संजय बारू ने एक किताब लिखी थी, द एक्सिडेंटल प्राइममिनिस्टर। जैसा कि इसके नाम से जाहिर है, मनमोहन सिंह बड़े अनायास तरीके से पीएम बने थे, न तो उनका कोई राजनीतिक दबाव समूह था, और न ही उनमें देश की अगुवाई करने की ऐसी कोई खूबी मानी जाती थी। अधिक से अधिक वे एक अर्थशास्त्री थे, और आर्थिक मामलों के काबिल और ईमानदार प्रशासक थे। लेकिन जब कांग्रेस संसदीय दल ने सोनिया गांधी को अपना नेता चुन लिया था, और उनके और पीएम की कुर्सी के बीच कोई फासला नहीं बचा था, तब उन्होंने खुद पीएम बनने से मना करके मनमोहन सिंह को पीएम बनाया था। उस वक्त खुद कांग्रेस पार्टी में एक से बढक़र एक दिग्गज नेता थे जिन्हें मंत्री बनकर मन मसोसकर रह जाना पड़ा था। इनमें प्रणब मुखर्जी, अर्जुन सिंह, शिवराज पाटिल, पी.चिदम्बरम, गुलाम नबी आजाद, नटवर सिंह, सुशील कुमार शिंदे, मीरा कुमार जैसे बहुत से कांग्रेस नेता थे जिनकी बारी अगर मनमोहन सिंह पहले आती, तो भी किसी को हैरानी नहीं होती। लेकिन बारी मनमोहन सिंह की आई, और वे अनायास ही प्रधानमंत्री बन गए जिन्हें उन्हीं के मीडिया सलाहकार ने एक्सीडेंटल प्राइममिनिस्टर लिखा। इसलिए सार्वजनिक जीवन में कब क्या हो जाता है इसका कोई ठिकाना तो नहीं रहता। इंदिरा गांधी की पार्टी और उनकी सरकार को हांकने वाले उनके छोटे बेटे, और इमरजेंसी के खलनायक संजय गांधी के रहते भला कोई सोच भी सकते थे कि एक अदना से पायलट, और राजनीति से परहेज करने वाले राजीव गांधी की कोई बारी आ सकती है। लेकिन संजय की सारी राजनीति मौत ले गई, और राजीव राजनीति में आए, और मनमोहन सिंह के पहले ही वे एक्सीडेंटल प्राइममिनिस्टर बने। राजनीति में कुछ और भी मजेदार चीजें हुईं, इन्द्रकुमार गुजराल और एच.डी.देवेगौड़ा के पीएम बनने का ख्वाब तो उनके हमबिस्तरों ने भी नहीं देखा होगा, लेकिन भारतीय राजनीति में यह भी हुआ।

आज यहां पर भारत की पिछली आधी सदी की राजनीति पर लिखने का कोई इरादा नहीं है। अमरीका की एक खबर देखकर यह लगा कि कल तक जो डोनल्ड ट्रंप अपने को जो बाइडन को हराने वाला योद्धा मानकर चल रहा था, आज उसके हाथ से रस्सी तेजी से सरकती हुई दिख रही है। जो बाइडन ने चुनाव न लडऩा तय किया, और अपनी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस को उम्मीदवार बनाया, तो अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव की पूरी तस्वीर ही बदल गई। अब वहां हालत यह है कि कमला हैरिस लगातार अधिक लोकप्रियता पाकर जीत की संभावना की तरफ बढ़ रही हैं, और ट्रंप की बढ़ती हुई बौखलाहट उनकी स्थाई बकवास में खासा इजाफा कर चुकी है, जो कि उनकी कमजोर होती हालत का एक संकेत है। अमरीकी राजनीतिक विश्लेषक बहुत तटस्थ तो नहीं रहते, और वे खुलकर अपने पूर्वाग्रह या अपनी पसंद को उजागर भी करते हैं, लेकिन ऐसे लोगों का अंदाज भी यही है कि हार का खतरा देखकर ट्रंप बौखलाए जा रहे हैं, और तमाम किस्म की घटिया बातों के साथ-साथ उनका झूठ का आम अनुपात भी बढ़ते चल रहा है। कल तक जिस अतिसक्रिय ट्रंप के मुकाबले जो बाइडन बूढ़े और कमजोर लग रहे थे, आज वहां कमला हैरिस के मुकाबले ट्रंप बूढ़े लग रहे हैं, और पूरा चुनावी माहौल बदल गया है। कहीं किसी समझदार ने लिखा था- सामान सौ बरस का, पल की खबर नहीं...

अधिकतर जगहों पर राजनीति में जो लोग सत्ता पर आते हैं, उनमेें से बहुतों की बददिमागी आसमान पर पहुंच जाती है और उन्हें यह लगने लगता है कि यह तख्त उनके लिए, और वे इस ताज के लिए बने हैं। इसे लेकर भी एक शायर हबीब जालिब ने लिखा था- तुमसे पहले वो जो इक शख्स यहां तख्त-नशीं था, उसको भी अपने खुदा होने पे इतना ही यकीं था। सत्ता की ताकत भारत जैसे देश में औसतन पांच-पांच बरस की किस्तों में आती है, लेकिन लोग उसे बाबूजी की छोड़ी हुई जागीर मान लेते हैं। और वक्त का कोई ठिकाना तो रहता नहीं, जिनके पेशाब से बरसों चिराग जले रहते हैं, वे अब जेलों में चक्की पीसा करते हैं। लोगों को याद रहना चाहिए कि सद्दाम हुसैन जैसे तानाशाह का आखिर में क्या हाल हुआ था। हम उनके अंत को जायज या नाजायज ठहराने की जहमत यहां नहीं उठा रहे, लेकिन दुनिया की जमीनी तस्वीर और लोगों का वर्तमान किस तेजी से बदलता है! आपातकाल में जिस संजय गांधी की चप्पलें उठाने में मुख्यमंत्रियों को, और उनकी कुर्सी अपने दुपट्टे से साफ करने में राज्यपालों को गर्व होता था, वह संजय गांधी विमान उड़ाते हुए कैसी बुरी मौत मारा गया था? एक भूतपूर्व प्रधानमंत्री देवेगौड़ा का सांसद पोता किस बुरे हाल में महिलाओं से बलात्कार, सेक्स-शोषण, ब्लैकमेलिंग जैसी तोहमतों में जेल में पड़ा है!

इसलिए ट्रंप हो, या कि कोई हिन्दुस्तानी नेता, हर किसी को यह बात याद रखनी चाहिए कि जिंदगी में कई किस्म की बातें एक्सीडेंटल होती हैं। लोग राजा से रंक बन जाते हैं, और रंक से राजा। किसने कल्पना की होगी कि राजस्थान में पहली बार का एमएलए मुख्यमंत्री बन जाएगा, और छत्तीसगढ़ का सबसे वरिष्ठ विधायक-मंत्री बृजमोहन अग्रवाल महज सांसद बनाकर बिठा दिया जाएगा! यह तो बात हुई नेताओं की। उनके इर्द-गिर्द के जो चक्कर लगाने वाले छोटे-छोटे ग्रह रहते हैं, वे अपने आपको सूर्य की तरह मानकर चलने लगते हैं। जबकि उनके चेहरों की चमक उनके नेता के चेहरे पर चमक रहने तक के लिए ही रहती है। कई लोगों के नेता किसी ओहदे पर एक्सीडेंटल पहुंच जाते हैं, और उनके आभा मंडल से रौशन छोटे-छोटे लोग अपने को सूरज मानकर आग उगलने लगते हैं। ऐसे ही तमाम लोगों के लिए ट्रंप से लेकर मनमोहन सिंह तक के सिलसिले याद पड़ते हैं, और यह भी याद पड़ता है कि ब्रिटेन में किस तरह पिछले चौदह बरस में एक ही पार्टी के पांच-पांच प्रधानमंत्री आए और गए। हर किसी को अपने पांव जमीन पर टिकाकर रखना चाहिए वरना तेज हवा का एक झोंका आ सकता है, और ट्रंप की तरह पांव उखड़ सकते हैं। या दूसरी मिसाल देखें तो दुनिया के सबसे बड़े और धाकड़ गुंडे, सबसे बड़ी फौजी ताकत, अमरीका को तालिबानों से अपनी जान बचाकर अफगानिस्तान छोडक़र भागना पड़ा था, और सुरक्षित रवानगी के लिए उन्हीं तालिबानों से मोहलत खरीदनी पड़ी थी। लोगों को बददिमाग होने के पहले यह सब ताजा इतिहास याद रखना चाहिए।  

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