दुर्ग

‘भारतीय इतिहास में जनजातीय योगदान’ पर दो दिनी राष्ट्रीय संगोष्ठी
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
दुर्ग, 6 मार्च। भारतीय इतिहास में जनजातीय समाज के योगदान विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन शासकीय विश्वनाथ यादव तामस्कर स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय के इतिहास विभाग में किया गया। मुख्य अतिथि के रूप में दुर्ग संभागायुक्त सत्यनारायण राठौर शामिल हुए।
उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि हेमचंद विश्वविद्यालय के कुलपति व संभागायुक्त सत्यनारायण राठौर ने कहा कि जनजातीय समाज की अत्यंत समृद्ध संस्कृति रही है। जनजातीय समाज का गौरवशाली इतिहास रहा है, यह सोचकर गर्व होता है कि अनेक महान स्वतंत्रता सेनानियों का जन्म जनजाति समाज में हुआ। अपने देश के लिए संघर्ष करने की परंपरा जनजाति समाज में प्रारंभ से रही है। शहीद वीर नारायण सिंह, शहीद गुंडाधुर एवं गेंद सिंह जैसे अनेक महान क्रांतिकारी ने अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन करते हुए अपना बलिदान दे दिया। भारत को स्वतंत्र कराने में वीर शहीदों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इसके साथ ही जनजातीय समुदायों का जीवन हमेशा से प्रकृति से जुड़ा रहा है। आदिवासियों ने ही प्रकृति को सहेज कर रखा है। वे अपनी परंपराओं और संस्कृति के माध्यम से पर्यावरण की देखभाल करते हैं और प्रकृति से सामंजस्य बनाए रखते हैं। उनकी जीवनशैली बहुत सरल होती है, जिसमें उनके पास सीमित संसाधन होते हुए भी वे खुशी और संतुष्टि के साथ रहते हैं। जनजाति इतिहास में बहुत कुछ जानने को मिलता है।
विशिष्ट अतिथि एवं छत्तीसगढ़ इतिहास परिषद की अध्यक्ष डॉ. आभा आर. पाल ने विषय के चयन के लिए इतिहास विभाग को बधाई देते हुए कहा कि जनजातीय समाज पर शोध की व्यापक संभावनाएं हैं। संपूर्ण देश में ही नहीं छत्तीसगढ़ प्रांत की सांस्कृतिक समृद्धि में जनजातियों का योगदान महत्वपूर्ण है। उन्होंने बताया की जनजातीय इतिहास के बिना भारतीय इतिहास की कल्पना नहीं की जा सकती।
जनजातीय समाज का भारतीय इतिहास में अविस्मरणीय योगदान रहा है।
महाविद्यालय के प्राचार्य एवं राष्ट्रीय सेमिनार के संरक्षक डॉक्टर अजय सिंह ने देश के विभिन्न प्रांतो में हुए जनजातीय आंदोलन के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह संगोष्ठी शोधार्थियों के लिए एक स्वर्ण अवसर है जिसमें जनजातियों के विस्मृत अतीत को सामने लाने का महत्वपूर्ण शोध संपन्न हो सकेगा। उद्घाटन सत्र के मुख्य वक्ता डॉक्टर रविंद्र शर्मा ने भारतीय उपमहाद्वीप की सैन्य व्यवस्था में प्रतिबिंबित जनजाति समाज के योगदान पर विद्वत्तापूर्ण शोध पत्र प्रस्तुत किया। उन्होंने प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक के आदिवासी विद्रोह और स्वतंत्रता संग्राम में जनजाति समाज की भूमिका को अत्यंत बारीकी से रेखांकित किया।
संगोष्ठी के संयोजक एवं इतिहास विभाग के विभाग अध्यक्ष डॉ. अनिल कुमार पाण्डेय ने विषय के औचित्य पर प्रकाश डालते हुए छत्तीसगढ़ एवं भारत के अन्य राज्यों से आए समानता अध्यापकों एवं शोधार्थियों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए यह आशा किया कि दो दिवसीय संगोष्ठी के दौरान पढ़े जाने वाले शोध पत्रों के माध्यम से जनजातीय समाज की भूमिका को बेहतर ढंग से समाज और राष्ट्र के सम्मुख रखा जा सकेगा।