जहां था नक्सल स्मारक, वहां खड़ा हुआ नया थाना भवन
प्रदीप मेश्राम
राजनांदगांव, 11 जुलाई(‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। डेढ़ दशक पहले घोर नक्सलग्रस्त मदनवाड़ा का खौफ अब गुजरे जमाने की बात हो गई है। नक्सलियों के शिकंजे में रहा मदनवाड़ा का नाम सुनकर एक वक्त ऐसा रहा कि आम लोग तो क्या पुलिस जवान भी अपनी तैनाती की खबर सुनकर थर्रा उठते थे।
12 जुलाई 2009 को मदनवाड़ा में खोले गए बेस कैम्प में तैनात जवानों में से 2 की गला रेतकर हत्या कर नक्सलियों ने पुलिस फोर्स को फांसने के लिए एक बड़ा व्यूहरचना तैयार किया था। नतीजतन इस घटना में नक्सलियों से लड़ते तत्कालीन एसपी विनोद चौबे और 29 जवान कोरकोट्टी में शहीद हो गए थे। इस वारदात से न सिर्फ छत्तीसगढ़ बल्कि पूरा देश सिहर उठा। आखिरकार केंद्र ने नक्सली समस्या को आंतरिक सुरक्षा के लिहाज से खतरनाक मानते हुए राज्य सरकार के साथ नक्सल सफाए की मुहिम शुरू की।
2009 की घटना के बाद से पैरामिलिट्री फोर्स और पुलिस की संयुक्त कोशिश से नक्सली इलाकों में विकास का खाका तैयार किया गया। अब मदनवाड़ा जैसे धूर बीहड़ में बसे गांव की दशा और दिशा बदल गई है। मदनवाड़ा के पिछड़ेपन के दंश से लगभग उबर गया है।
पुलिस की दमदार मौजूदगी के चलते मदनवाड़ा में नक्सलियों के स्मारक को तोडक़र नया थाना भवन खड़ा कर दिया गया। पुलिस का नक्सल क्षेत्रों के बाशिंदों से रिश्ता भी मजबूत हुआ। ग्रामीणों का भरोसा जीतकर पुलिस की मदद से सडक़ें, स्कूलें और यात्री प्रतिक्षालय विकास की गवाह बनी।
सीतागांव से मदनवाड़ा होकर बसेली के रास्ते मानपुर तक चमचमाती सडक़ से नक्सलियों की आमदरफ्त को सीमित कर दिया गया है। नक्सलियों के लिए मदनवाड़ा सालों तक स्थाई ठिकाने के तौर पर रहा। मदनवाड़ा के अलावा दर्जनों गांव में नक्सली बेखौफ प्रशासन और सरकार के खिलाफ रणनीति बनाकर चुनौती पेश करते रहे।
गुजरे 14 साल के भीतर पुलिस को नक्सलियों के राष्ट्र विरोधी तत्व और विकास में अड़चने खड़े करने को लेकर लोगों को जागरूक करने में जवानों की शहादत लंबे समय तक उठानी पड़ी। नक्सलियों के फैलते जाल को तोडऩे के लिए रणनीतिकतौर पर पुलिस ने कई चुनौतियों को पार किया।
खास बात यह है कि नक्सलियों की भर्ती नीति एक तरह से ध्वस्त हो गई। यही कारण है कि मोहला-मानपुर इलाके से युवाओं का नक्सल संगठन में जाने का एक भी उदाहरण सामने नहीं आया। मदनवाड़ा विकास के बदौलत गांव से कस्बे में तब्दील होने की राह पकड़ चुका है। चमचमाती सडक़ें और पुल-पुलियों के निर्माण से आवाजाही सुगम हो गई है।
एक वक्त ऐसा था, जब दिन में मदनवाड़ा जाने के लिए डर के साये से लोगों को गुजरना पड़ता था। अब रात का भी सफर नक्सलियों के भय खत्म होने से आरामदायक बन गया है।
नक्सलियों ने मदनवाड़ा में कैम्प खोले जाने के चलते ही हिंसक वारदातों को अंजाम दिया था। 12 जुलाई 2009 को दो अलग-अलग जगहों पर हुए हमले में तत्कालीन एसपी स्व. चौबे और 29 जवान की शहादत हुई। मदनवाड़ा से पुलिस की पहुंच को दूर करने के लिए नक्सलियों ने कई दफे सडक़ों को खोदकर खाई में बदल दिया। पुलिस की हौसला का ही नतीजा रहा कि आज मदनवाड़ा में प्रशासन का दखल बढ़ा है। वहीं पुलिस ने नक्सलियों को गुजरे कई सालों से मुठभेड़ में ढ़ेर किया।
पुलिस की आत्मसमर्पण नीति से कारगर नतीजे सामने आए। कई हार्डकोर नक्सलियों ने हथियार छोडक़र मुख्यधारा में वापसी की। पुलिस के लिए पूर्व नक्सली अब एक मजबूत दीवार बनकर नक्सलियों के विस्तार को रोकने में अहम भूमिका अदा कर रहे हैं।
जानिये कैसे हुई थी घटना
12 जुलाई 2009 की सुबह मदनवाड़ा बेस कैम्प में तैनात 2 जवानों को शौच करने कैम्प से बाहर निकलने के दौरान नक्सलियों ने घेर लिया। दोनों जवानों की धारदार हथियार से नक्सलियों ने गला रेतकर हत्या कर दी। लगभग सुबह 6.30 बजे हुए इस घटना के बाद तत्कालीन एसपी विनोद चौबे ने एक मोटर साइकिल पार्टी को मानपुर पहुंचने का आदेश दिया। मोटर साइकिल पार्टी में अलग-अलग थानों के निरीक्षक और आरक्षक तैयार होकर जैसे ही मानपुर पहुंचे, तब तक एसपी चौबे का काफिला मानपुर से कोरकोट्टी के लिए निकल गया।
इससे पहले मदनवाड़ा में शहीद हुए जवानों का शव लेने सीतागांव से एक विशेष पुलिस पार्टी निकली। कारेकट्टा के पास मदनवाड़ा के जवानों ने शव को सीतागांव की फोर्स के हवाले कर दिया। वापसी में घात लगाकर बैठे नक्सलियों के विस्फोट में सीतागांव के जवान शहीद हो गए। इधर कोरकोट्टी पहुंचे स्व. चौबे और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ शुरू हो गई। पुलिस फोर्स का इंतजार कर रहे नक्सलियों ने घेरकर स्व. चौबे और 20 से ज्यादा जवानों को मार दिया। इस तरह नक्सलियों के एम्बुस में फंसकर स्व. चौबे और 29 जवान शहीद हुए थे।
विकास के जरिये नक्सल समस्या खात्मे की ओर - एसपी रत्ना सिंह
नक्सलियों के सफाए के लिए मोहला-मानपुर-अंबागढ़ चौकी पुलिस कटिबद्ध है। विकास के रास्ते माओवादियों की दखल को खत्म करने का प्रयास किया जा रहा है। प्रशासन और पुलिस संयुक्त रूप से स्कूल, अस्पताल, सडक़ें और अन्य बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराने का पूरजोर प्रयास कर रही है। अब पहले की तरह परिस्थितियां नहीं है। पुलिस इस दिशा में मुश्तैदी के साथ आगे बढ़ रही है।