आंदोलन होगा और तेज-संगठन
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायगढ़, 17 सितंबर। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) कर्मचारी संगठन की 30 दिनों से चल रही अनिश्चितकालीन हड़ताल के बीच 15 सितंबर को राज्य स्वास्थ्य सचिव द्वारा एक चेतावनी पत्र जारी किया गया, जिसमें 16500 कर्मचारियों को नौकरी से निकालने और नई भर्ती का आदेश दिया गया। इस पत्र ने साय सरकार की कथित संवेदनशीलता की पोल खोल दी है, जो बार-बार परिवार के सदस्य कहकर कर्मचारियों को भरोसा दिलाती रही, लेकिन अब उनके भविष्य को दांव पर लगाने में तनिक भी संकोच नहीं कर रही।
एनएचएम संगठन के प्रदेश अध्यक्ष अमित कुमार मीरी ने दो दिन पहले सोशल मीडिया पर कहा था, स्वास्थ्य मंत्री ग्रेड पे जैसी मांगों पर लिखित आश्वासन दें, हम हड़ताल स्थगित कर देंगे। लेकिन कई दौर की वार्ताओं के बावजूद कोई नतीजा नहीं निकला। अब संगठन पूरे प्रदेश में आंदोलन को और उग्र करने की तैयारी में है। जेल भरो आंदोलन और राज्यपाल से इच्छामृत्यु की मांग जैसे कदम उठाए जाएंगे।
मुख्यमंत्री कहते हैं, हमने बनाया है, हम ही संवारेंगे। सवाल यह है कि कब? सरकार को समझना होगा कि यह आंदोलन अगर विकराल रूप लेता है, तो परिणाम गंभीर होंगे और जिम्मेदारी सरकार की होगी।
एनएचएम संगठन मांग करता है कि सरकार उनकी जायज मांगों पर लिखित आदेश जारी करे, बर्खास्त कर्मचारियों की सम्मानजनक वापसी करे और स्वास्थ्य व्यवस्था को पटरी पर लाए।
अगर सरकार दमनकारी नीति अपनाएगी, तो संगठन संवैधानिक तरीके से जवाब देगा।
ज्ञात हो कि एनएचएम संगठन ने पिछले 30 दिनों में 170 से अधिक बार विधायकों, मंत्रियों और सत्ताधारी नेताओं को ज्ञापन सौंपे, ताकि उनकी जायज मांगों पर ध्यान दिया जाए और जनता को स्वास्थ्य सेवाओं की असुविधा से बचाया जाए। लेकिन सरकार की उदासीनता और सुस्त रवैये ने पूरे प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था को ठप कर दिया। कर्मचारी संगठन ने संवेदनशीलता दिखाते हुए बार-बार बातचीत का रास्ता अपनाया, पर सरकार ने उनकी मांगों को हाशिए पर डाल दिया।
चुनावी घोषणा पत्र में किए गए वादों को भूलकर सरकार ने कर्मचारियों की मांगों को ठंडे बस्ते में डाल दिया। बड़े-बड़े प्रशासनिक अधिकारी नियमों का हवाला देकर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं, लेकिन कोई भी इन कर्मचारियों की मांगों को गंभीरता से सरकार के सामने नहीं रखता। ये वही कर्मचारी हैं, जिनकी मेहनत से सरकार दिल्ली के मंचों पर पुरस्कार बटोरती है, लेकिन इनके हिस्से में न सम्मान है, न सुरक्षा। ये कर्मचारी सिर्फ इतना मांग रहे हैं कि उनकी रोजी-रोटी और भविष्य सुरक्षित हो।
कुछ दिन पहले मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने कहा था, ये हमारे परिवार के सदस्य हैं, परिवार में छोटी-मोटी बातें सुलझा ली जाएंगी। लेकिन अब उसी परिवार को नौकरी से निकालने की धमकी दी जा रही है। 33 जिलों के मुख्य चिकित्सा अधिकारियों को नई भर्ती के आदेश दे दिए गए, लेकिन कर्मचारियों की मांगों पर एक भी ठोस आदेश जारी नहीं हुआ। अगर इतनी तत्परता मांगों को मानने में दिखाई होती, तो आज स्वास्थ्य व्यवस्था चैपट न होती।
सरकार ने मांगों पर विचार के लिए कमेटियां बनाईं, लेकिन उनमें एनएचएम संगठन के एक भी पदाधिकारी को शामिल नहीं किया गया। अगर सरकार ही सब तय करेगी, तो कमेटी बनाने का नाटक क्यों? संगठन ने मांगों पर आपत्तियां दर्ज कीं, लेकिन उन्हें नजरअंदाज कर दिया गया।