दन्तेवाड़ा

बस्तर पंडुम में उमड़ा जन सैलाब
19-Mar-2025 10:17 PM
बस्तर पंडुम में उमड़ा जन सैलाब

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

दंतेवाड़ा, 19 मार्च। दंतेवाड़ा में बस्तर पंडुम का आयोजन विशेष रूप से सफल रहा। इस दौरान हजारों प्रतिभागियों ने शिरकत की।

 दंतेवाड़ा जिले में विकासखंड स्तरीय दो दिवसीय बस्तर पंडुम का बुधवार को समापन हुआ। कार्यक्रम के समापन के अवसर पर मुख्य अतिथियों ने कहा कि यह आयोजन बस्तर की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित और संवर्धित करने के उद्देश्य से किया जा रहा है। बस्तर पंडुम के माध्यम से पारंपरिक नृत्य, लोकगीत, हस्तशिल्प और आदिवासी रीति-रिवाजों को मंच प्रदान किया जाता है। जिससे स्थानीय संस्कृति को नई पहचान मिलती है। इस उत्सव में विभिन्न जनजातीय समूह अपनी कला और परंपराओं का प्रदर्शन कर रहे हैं, जिससे न केवल सांस्कृतिक जागरूकता बढ़ेगी बल्कि पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा।

दंतेवाड़ा जिले के चारों विकासखंडों में आयोजित इस कार्यक्रम में स्थानीय कलाकारों, जनजातीय समुदायों और सांस्कृतिक प्रेमियों का उत्साह देखते ही बनता है। बस्तर पंडुम, न केवल संस्कृति को सहेजने का प्रयास है बल्कि सामाजिक एकता और पारंपरिक मूल्यों को भी सुदृढ़ करने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है। जिले के सभी विकासखंड में ‘बस्तर पंडुम’ के तहत लगभग 25 हजार से ज्यादा प्रतिभागियों ने बढ़-चढ़ कर उत्साहपूर्वक भाग लिया।

    उल्लेखनीय है कि ‘बस्तर पंडुम’ के अन्तर्गत  प्रतियोगिताओं की जो विधाएं शामिल की गई । उनमें जनजातीय नृत्यों के तहत गेड़ी, गौर-माडिय़ा, ककसाड़, मांदरी, दण्डामी, एबालतोर, दोरला, पेंडुल, हुलकीपाटा, परब, घोटुलपाटा, कोलांगपाटा, डंडारी, देव कोलांग, पूस कोलांग, कोकरेंग सहित लोक गीत श्रृंखला के तहत जनजातीय गीत-घोटुल पाटा, लिंगोपेन, चौतपरब, रिलो, लेजा, कोटनी, गोपल्ला, जगारगीत, धनकुल, मरमपाटा, हुलकी पाटा (रीति-रिवाज, तीज त्यौहार, विवाह पद्धति एवं नामकरण संस्कार आदि)  जनजातीय नाट्यश्रेणाी में माओपाटा, भतरा नाट्य जिन्हें लय एवं ताल, संगीत कला, वाद्य यंत्र, वेषभूषा, मौलिकता, लोकधुन, वाद्ययंत्र, पारंपरिकता, अभिनय, विषय-वस्तु, पटकथा, संवाद, कथानक के मानकों के आधार पर  मूल्यांकन किया गया। इसके अलावा  जनजातीय वाद्य यंत्रों का प्रदर्शन के तहत धनकुल, ढोल, चिटकुल, तोड़ी, अकुम, बवासी, तिरडुड्डी, झाब, मांदर, मृदंग, बिरिया ढोल, सारंगी, गुदुम, मोहरी, सुलुड़, मुडाबाजा, चिकारा  शामिल रहे। जिन्हें संयोजन, पारंगता, प्रकार, प्राचीनता के आधार पर अंक दिए गए।

जनजातीय वेशभूषा एवं आभूषण का प्रदर्शन विधा में लुरकी, करधन, सुतिया, पैरी, बाहूंटा, बिछिया. ऐंठी, बन्धा, फुली, धमेल, नांगमोरी, खोचनी, मुंदरी, सुर्रा, सुता, पटा, पुतरी, द्वार, नकबेसर जैसे आभूषण में एकरूपता, आकर्षकता, श्रृंगार, पौराणिकता को महत्व दिया गया।

जनजातीय शिल्प एवं चित्रकला का प्रदर्शन विधा के अंतर्गत घडवा, माटी कला, काष्ठ, पत्ता, ढोकरा, लौह प्रस्तर, गोदना, भित्तीचित्र, शीशल, कोड़ी शिल्प. बांस की कंघी, गीकी (चटाई), घास के दानों की माला प्रदर्शन प्रस्तुतियां हुई। साथ ही जनजातीय पेय पदार्थ एवं व्यंजन का प्रदर्शन-सल्फी, ताड़ी, छिंदरस, हंडिया, पेज, कोसरा, मडिय़ा पेज, चापड़ा चटनी (चींटी की चटनी), अमारी शरबत एवं चटनी के बनाने की विधि स्वाद, प्रकार का प्रस्तुतिकरण ‘‘बस्तर पंडुम ’’  के मुख्य आकर्षण रहे।

 इस कार्यक्रम में प्रतिभागियों को प्रोत्साहन स्वरूप पुरस्कार भी दिया गया। इस मौके पर जनप्रतिनिधियों एवं अधिकारी-कर्मचारी एवं बड़ी संख्या में ग्रामीण जन मौजूद थे।

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