बिलासपुर

'छत्तीसगढ़' संवाददाता
बिलासपुर, 29 जुलाई। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक कांस्टेबल की याचिका खारिज कर दी है, जिसमें उसने अपनी बेटी के लिए भरण-पोषण देने से इनकार किया था। कोर्ट ने साफ कहा कि फैमिली कोर्ट का फैसला बिल्कुल सही है और इसमें किसी तरह की दखल की जरूरत नहीं है।
ये मामला बलरामपुर जिले के उस पुलिसकर्मी से जुड़ा है, जो फिलहाल कोंडागांव पुलिस बल में कांस्टेबल है। उसकी पत्नी अंबिकापुर की रहने वाली है। उसने फैमिली कोर्ट में केस दायर कर कहा था कि उसका पति उसे और उनकी 6 साल की बेटी को छोड़ चुका है, न ही खर्च देता है और न ही बेटी की जिम्मेदारी लेता है।
पत्नी ने कोर्ट से 30 हजार रुपये महीना भरण-पोषण की मांग की थी, लेकिन फैमिली कोर्ट ने 9 जून 2025 को फैसला सुनाते हुए कहा कि पत्नी को तो गुज़ारा भत्ता नहीं मिलेगा, लेकिन बच्ची के पालन-पोषण और पढ़ाई के लिए कांस्टेबल को हर महीने 5,000 रुपये देने होंगे।
इस आदेश को कांस्टेबल ने हाईकोर्ट में चुनौती दी और कहा कि वह एचआईवी संक्रमित है, जिसका इलाज महंगा है। वह बच्ची उसकी बेटी नहीं है, इसलिए उस पर खर्च करना उसका बोझ बढ़ाएगा। लेकिन हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान वह यह साबित नहीं कर पाया कि बच्ची उसकी नहीं है।
मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा की सिंगल बेंच ने कहा कि फैमिली कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें और सबूत देखकर फैसला सुनाया है, जिसमें कोई गलती नहीं है। बच्ची को पालने की जिम्मेदारी से पिता भाग नहीं सकता। यह उसकी कानूनी और नैतिक जिम्मेदारी है। इस आधार पर हाईकोर्ट ने कांस्टेबल की याचिका खारिज कर दी और फैमिली कोर्ट का आदेश बरकरार रखा।