बलरामपुर

भविष्य को संवारने संघर्षरत है लालमुनी
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रामानुजगंज,1 जून। दस वर्ष पूर्व सडक़ दुर्घटना में 7 लोगों की मौत हो गई थी, वहीं सभी को पोस्टमार्टम के लिए अंबिकापुर ले जाया गया था, उन्हीं लाशों के बीच में एक युवती को भी ले जाया गया था, जिसे सभी ने मृत माना था परंतु जब पोस्टमार्टम के लिए डॉक्टरों ने बारी-बारी शवों का पोस्टमार्टम किया जाने लगा तो युवती को भी मृत मानकर जब उसे पोस्टमार्टम की जाने की तैयारी थी तो पता चला कि युवती के शरीर में अभी भी जान है, जिसके बाद आनन-फानन में तत्काल उसे चिकित्सा सुविधा मुहैया कराई गई, वही स्थिति गंभीर देखते हुए रायपुर रेफर किया गया। दस वर्षों से जीवन एवं मौत से संघर्ष करने के बाद आज युवती अपने भविष्य को संवारने के लिए संघर्षरत है एवं हिम्मत नहीं हारी है।
यह संघर्ष की कहानी है लालमुनी यादव की, जो नवाडीह की है, जब 17 वर्ष की थी तो दसवीं की परीक्षा पास करने के बाद अपने भविष्य के सपना को संजोकर अंबिकापुर से बलरामपुर रोजगार कार्यालय में पंजीयन कराने के लिए 2012 में आ रही थी। इसी दौरान बस हादसा हुआ, जिसमें 7 लोगों की मौत हो गई थी। लालमुनी यादव को भी लोगों ने मरा हुआ समझकर शव वाहन से अंबिकापुर शव के पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया था, परंतु जब पोस्टमार्टम के लिए शव डॉक्टरों के पास ले जाया गया तो पता चला कि लालमुनी में सांस अभी तक बाकी है,जिसके बाद तत्काल उसे चिकित्सा सुविधा मुहैया कराई गई, फिर उसे रायपुर भेजा गया,जहां उसका लंबा इलाज चला। तब से लेकर आज तक लालमुनी जीवन एवं मौत से संघर्ष ही कर रही है, अब भी अपने सुनहरे भविष्य को संवारने में लगी है।
2015 में काटना पड़ा पैर
लालमुनी यादव का दुर्घटना में पैर बुरी तरीके से जख्मी हो गया था। शरीर के अन्य स्थानों पर गंभीर चोट लगे थे, परंतु पैर की स्थिति दिन-प्रतिदिन खराब होते गई। अंतत: 2015 में पैर काटना पड़ा। वहीं 2020 में जयपुर में नकली पैर लगा।
9 वर्षों के बाद फिर से शुरू की पढ़ाई
लाल मुनी यादव ने 2011 में 10वीं की परीक्षा रामानुजगंज से दी थी, जिसके बाद 2012 में दुर्घटना हो गया। इसके बाद 8 वर्षों तक पढ़ाई बाधित रही, लेकिन फिर से हिम्मत एवं हौसला के साथ लालमुनी यादव ने 2021 में 12वीं की परीक्षा 67 प्रतिशत अंकों से उत्तीर्ण की।
बचपन में उठ गया था मां का साया, बुजुर्ग पिता भी है अशक्त, मदद की है दरकार
लाल मुनी यादव की मां की मृत्यु बहुत पहले हो चुकी थी, वहीं पिता भी अब अशक्त हो गए हैं, ऐसे में पूरे परिवार की जिम्मेवारी अब लाल मुनि के कंधों पर ही है जिसे मदद की दरकार है।
आठ वर्षों तक इलाज के दौरान घर के रुपये खत्म हो चुके हैं। लालमुनी यादव का दुर्घटना होने के बाद 3 वर्षों तक वह बिस्तर पर ही रही, परंतु वह हिम्मत नहीं हारी। इस दौरान पैर भी कटा, कई प्रकार की परेशानियां भी आई परंतु हार नहीं मानी और आज भी जिंदगी से जंग जारी है।