बलौदा बाजार
वायु गुणवत्ता और मिट्टी के स्वास्थ्य पर प्रभाव पडऩे की आशंका
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बलौदाबाजार, 11 दिसंबर। बलौदाबाजार जिले में खरीफ धान की कटाई के बाद पराली जलाने की घटनाएं सामने आ रही हैं। किसानों द्वारा खेतों में अवशेष जलाने से वायु गुणवत्ता और मिट्टी के स्वास्थ्य पर प्रभाव पडऩे की आशंका विशेषज्ञों द्वारा व्यक्त की गई है। प्रशासन द्वारा पराली प्रबंधन को लेकर जारी निर्देशों के बावजूद कई स्थानों पर खेतों में आग लगी देखी गई है।
स्थानीय स्तर पर किसानों को पराली प्रबंधन के सुरक्षित विकल्पों की जानकारी देने और जागरूक करने के लिए किए जा रहे प्रयासों को लेकर कुछ किसान और ग्रामीण शिकायतें सामने ला रहे हैं। उनका कहना है कि पराली निपटान के व्यावहारिक तरीकों, जैसे मशीनरी के उपयोग, जैविक अपघटन या वैकल्पिक विधियों पर जानकारी पर्याप्त स्तर तक नहीं पहुँच पा रही है।
कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि पराली जलाने से मिट्टी में मौजूद जीवाणु और लाभकारी जीव प्रभावित होते हैं, जिससे मिट्टी की उपजाऊ क्षमता पर असर पड़ सकता है।
जिला प्रशासन द्वारा पराली न जलाने को लेकर दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में इन निर्देशों की निगरानी और अनुपालन को लेकर स्थिति मिश्रित है। कुछ किसानों का कहना है कि उन्हें पराली के निस्तारण के विकल्प उपलब्ध नहीं हैं, जबकि प्रशासन का कहना है कि जागरूकता अभियान लगातार चल रहे हैं और किसानों को वैकल्पिक उपाय अपनाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।
पर्यावरण और स्वास्थ्य पर संभावित प्रभाव
पराली जलाने से निकलने वाला धुआँ वायुमंडल में फैलकर वायु की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार इससे सांस संबंधित समस्याओं में वृद्धि हो सकती है, और धुएँ के कारण दृश्यता भी कम हो सकती है।
समाधान और सुझाव
विशेषज्ञों का कहना है कि पराली प्रबंधन के लिए जुताई, मल्चिंग, जैविक अपघटक, फसल अवशेष प्रबंधन मशीनों का उपयोग सहित कई विकल्प उपलब्ध हैं। उनका सुझाव है कि इन विकल्पों के बारे में किसानों को लगातार जानकारी और प्रशिक्षण प्रदान किया जाए ताकि पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ कृषि कार्य भी प्रभावित न हो।


