फ़ैसलाबाद, 12 नवंबर । इस कहानी की शुरुआत लगभग 15 साल पहले पाकिस्तान के पंजाब राज्य के शहर फ़ैसलाबाद के इलाके 'बोले दी झुग्गी' से हुई जब तबस्सुम की उम्र मात्र 16 साल थी. तबस्सुम के पिता एक मस्जिद के इमाम थे और घर के पास की मस्जिद में इमाम का काम करते थे.
तबस्सुम को पढ़ाई का शौक़ था और इसीलिए उनके माता-पिता ने घर के पास एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने वाले मोहम्मद सिद्दीक़ को बतौर होम ट्यूटर रख लिया ताकि वह तबस्सुम की पढ़ाई में मदद कर सकें.
सिद्दीक़ हर दिन शाम के समय घर की बैठक में तबस्सुम को पढ़ाने आया करते थे. तबस्सुम की मां हफ़ीज़ां बीबी के अनुसार पढ़ाई के दौरान कोई उनकी बेटी को तंग नहीं करता था ताकि वह इम्तिहानों की अच्छे से तैयारी कर सकें.
वह बताती हैं कि एक दिन मग़रिब यानी सूरज डूबने के बाद उन्होंने महसूस किया कि घर की बैठक ख़ाली है और तबस्सुम भी आसपास नहीं. उनके घर के लोग पास ही स्थित सिद्दीक़ के घर पहुंचे मगर वहां दरवाज़े पर पहले से ताला लगा हुआ था. पड़ोसियों से पूछने पर पता चला कि वह घर छोड़ कर जा चुके हैं.
तबस्सुम के माता-पिता को उस समय तक यह भी मालूम हो चुका था कि तबस्सुम का ज़रूरी सामान भी घर पर नहीं था और जल्द ही उन्हें पता चला कि तबस्सुम अपने शिक्षक सिद्दीक़ के साथ घर छोड़कर जा चुकी हैं.
तबस्सुम की मां बताती हैं कि घरवालों ने अपनी तरफ़ से तबस्सुम को ढूंढने की बहुत कोशिश की लेकिन वह न मिलीं. बाद में सिद्दीक़ ने तबस्सुम के घर वालों को टेलीफ़ोन करके बताया कि उन्होंने तबस्सुम के साथ शादी कर ली है और यह कि वह हंसी-ख़ुशी जिंदगी गुज़ार रहे हैं.
तबस्सुम क़त्ल केस
मोहम्मद सिद्दीक़ 15 साल की तबस्सुम को पढ़ाने उनके घर आया करते थे.
15 साल पहले एक दिन अचानक मोहम्मद सिद्दीक़ और तबस्सुम दोनों लापता हो गए. बाद में सिद्दीक़ ने बताया कि दोनों ने शादी कर ली है.
इसके 10 साल बाद सिद्दीक़ ने बताया कि वो अब लाहौर के एक इलाक़े में रहते हैं. बाद में उनका फ़ोन स्विच ऑफ़ हो गया.
तबस्सुम की मां ने उनकी तलाश शुरू की और उस स्कूल तक जा पहुंचीं जहां सिद्दीक़ पढ़ाते थे. बेटी के बारे में पूछने सिद्दीक़ अचानक भाग खड़ा हुआ.
इसके बाद पुलिस में तबस्सुम और सिद्दीक़ की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई गई.
पूछताछ होने पर सिद्दीक़ ने बताया कि उसने 15 साल पहले ही तबस्सुम का क़त्ल कर दिया था.
उसने बताया कि कत्ल की बात छिपाने के लिए उसने लाश के कई टुकड़े किए और अलग-अलग जगहों पर फेंक दिया.
समाज में बदनामी का डर
तबस्सुम की मां हफ़ीज़ां बीबी का कहना था कि तबस्सुम के पिता बेटी के घर छोड़ जाने के ग़म में डूबे हुए थे मगर मोहल्ला वालों और रिश्तेदारों के डर से उन्होंने इस मामले पर चुप्पी साध ली और बेटी से संबंध तोड़ लिया.
वह बताती हैं कि उनके शौहर ने 'बदनामी' के डर से पुलिस में रिपोर्ट भी दर्ज नहीं करवाई और इस घटना के कुछ महीनों बाद ही तबस्सुम के पिता अचानक दिल का दौरा पड़ने से चल बसे.
वह कहती हैं कि घटना के 10 साल तक उन्होंने तबस्सुम से संपर्क नहीं किया मगर इस दौरान "एक भी दिन ऐसा नहीं गुज़रा जब तबस्सुम की याद न सताती हो."
हफ़ीज़ां बीबी के अनुसार, "उसका चेहरा आंखों के सामने घूमता था. हर दिन मैं अपनी बेटी की एक झलक पाने को तरसती थी. कई बार तो सपने में भी तबस्सुम का चेहरा नज़र आता और मैं उस समय को कोसती जब तबस्सुम को ट्यूशन पढ़ाने के लिए सिद्दीक़ को होम ट्यूटर रखा था."
वो बताती हैं कि उन्हें बेटी के बारे में बहुत अजीबोग़रीब ख़्याल भी आते थे और कभी-कभी उन्हें ऐसा महसूस होता कि जैसे तबस्सुम उन्हें पुकार रही हो.
वो कहती हैं, "इस ग़म में कलेजा मुंह को आता तो रो लेती. ज़माने में बदनामी से बचने के लिए अपना दुख किसी को भी नहीं बता पाती थी."
इस घटना के 10 वर्ष बाद तबस्सुम की बड़ी बहन ने अपने शौहर की ज़िद पर सिद्दीक़ से टेलीफ़ोन पर संपर्क किया जिसमें सिद्दीक़ ने बताया कि वह लाहौर के इलाक़े चौहंग में रह रहे हैं.
यह जानकारी तबस्सुम की मां तक भी पहुंची और उन्हें यह इत्मीनान हुआ कि उनकी बेटी सकुशल है लेकिन उनके दिल में उस घटना को लेकर दुख मौजूद था मगर इतना समय बीत जाने के बाद जब घर वालों ने तबस्सुम से बात करने की कोशिश की तो सिद्दीक़ ने बीमारी का बहाना बनाकर मिलने से इंकार कर दिया.
समय बीतता रहा और सिद्दीक़ बहाने बनाता रहा. फिर अचानक सिद्दीक़ का मोबाइल फ़ोन स्विच ऑफ़ हो गया और उस तक पहुंचने के तमाम रास्ते भी बंद हो गए.
जब दिल के शक ने ज़ोर मारा
हफ़ीज़ां बीवी का कहना है कि इस स्थिति ने उनके दिल में शक पैदा किया कि उनकी बेटी मुसीबत में है, लेकिन जब वह लगातार कोशिश के बावजूद बेटी से बात नहीं कर पाईं तो उन्हें यक़ीन हो गया कि कोई गड़बड़ है.
वह बताती है कि जनवरी 2022 में वह अपनी बड़ी बेटी और दामाद के साथ तबस्सुम को ढूंढते हुए लाहौर के इलाक़े चौहंग पहुंच गईं. यह वही जगह थी जहां से सिद्दीक़ ने आख़िरी बार उनसे संपर्क किया था और बताया था कि वह उसी इलाक़े में रहता है.
वहां मोहल्ले वालों ने उन्हें बताया कि सिद्दीक़ काफ़ी पहले से लाहौर के इलाक़े सांदा में रह रहा है जहां वह एक स्कूल में बच्चों को पढ़ाता है और होम्योपैथिक क्लीनिक भी चलाता है. तबस्सुम की मां अपनी बेटी और दामाद के साथ बताए हुए पते पर पहुंचीं और सिद्दीक़ को ढूंढने लगी मगर उसका कोई सुराग़ न मिला.
हफ़ीज़ां बीवी के अनुसार सिद्दीक़ की तलाश में नाकामी ने उनके इस शक को और मज़बूत कर दिया के निश्चित रूप से कोई गड़बड़ है मगर दूसरी और समस्या यह थी कि लाहौर में न तो उनकी कोई जान पहचान थी और न रहने का कोई आसरा था.
उनके अनुसार इस समस्या का हल उन्होंने यह निकाला कि उस इलाक़े की रहने की व्यवस्था भी हो जाए और बेटी की ख़बर भी मिल सके.
इसके लिए उन्होंने चौबरजी के इलाक़े में लोगों के घरों में काम शुरू कर दिया. उनके अनुसार दिन में वह लोगों के बर्तन, कपड़े और फ़र्श साफ़ करतीं और शाम में बेटी की तलाश में निकलतीं. चार महीने ऐसे ही बीत गए.
इसी तरह एक दिन वह बेटी को ढूंढते-ढूंढते चौबरजी के एक सेकंडरी स्कूल में जा पहुंचीं जहां मोहम्मद सिद्दीक़ बच्चों को पढ़ा रहा था.
इस केस में दर्ज होने वाली एफ़रआईआर के अनुसार हफ़ीज़ां ने पुलिस को बताया कि जैसे ही वह सिद्दीक़ के पास पहुंचीं वह उन्हें देखकर ताज्जुब में तो पड़ गया लेकिन उसके चेहरे पर बेचैनी और परेशानी की लकीरें भी नज़र आने लगीं. तबस्सुम के बारे में पूछने पर मोहम्मद सिद्दीक़ बहाने बनाता रहा और इस दौरान बातें करते-करते अचानक भाग खड़ा हुआ.
सिद्दीक़ के अचानक भागने से हफ़ीज़ां बीवी के पैरों तले जमीन खिसक गई और उन्हें यकीन हो गया कि उनकी बेटी के साथ कुछ बुरा हुआ है. वह तुरंत चौबरजी के पास सांदा पुलिस स्टेशन पहुंचीं जहां उन्होंने एसएचओ थाना सांदा अदील सईद को अपनी बेटी की गुमशुदगी और मोहम्मद सिद्दीक़ के बारे में बताया और उनसे मदद की अपील की.
उन्होंने पुलिस को सिद्दीक़ की तस्वीरें दीं और उसे ढूंढने की मांग की. जल्द ही पुलिस सिद्दीक़ को ढूंढ निकालने में कामयाब हो गई.
हत्या का पर्दाफ़ाश
इस बारे में एसएचओ थाना सांदा अदील सईद से जब संपर्क किया गया तो उन्होंने बताया कि हिरासत के दौरान मुल्ज़िम मोहम्मद सिद्दीक़ से जब पूछताछ की गई तो शुरू में तो उन्होंने बहाने बनाए और अलग-अलग कहानियां सुनाईं लेकिन थोड़ी तफ़्तीश के बाद मुल्ज़िम ने बताया कि उसने 15 साल पहले ही तबस्सुम का क़त्ल कर दिया था.
पुलिस अफ़सरों के अनुसार मोहम्मद सिद्दीक़ ने बताया कि उन्होंने 2007 में तबस्सुम से दूसरी शादी की थी और इससे पहले वह अपनी पहली बीवी को तलाक़ दे चुके थे जिनसे उनके दो बच्चे थे.
पुलिस के अनुसार सिद्दीक़ ने बताया कि वह तबस्सुम को भगाकर लाहौर ले आया था और उसके साथ उसके बच्चे भी थे. मुल्ज़िम ने बताया कि बच्चों की वजह से आए दिन झगड़ा हुआ करता था और इस दौरान तबस्सुम बच्चों को घर से निकालने की बात कहती थी.
तबस्सुम से शादी को अभी पांच महीने ही बीते थे कि एक रात दोनों में झगड़ा हुआ और झगड़े ने तूल पकड़ लिया. सिद्दीक़ ने पुलिस को बताया कि उसी दौरान वह आपे से बाहर हो गया और तबस्सुम को चुप करवाने के लिए उसने उसे उठाकर चारपाई पर दे मारा. उसी दौरान सिद्दीक़ ने तबस्सुम का गला दबाया और चीख़ता रहा कि आवाज़ बंद करो, आवाज़ बंद करो.
जैसे ही तबस्सुम की आवाज़ बंद हुई और सिद्दीक़ का चीख़ना बन्द हुआ तब तक तबस्सुम का जिस्म बेजान हो चुका था.
पुलिस ने दावा किया कि तफ़्तीश के दौरान मुल्ज़िम ने बताया कि उसने तबस्सुम की लाश के टुकड़े किए ताकि वह अपने क़त्ल को छिपा सके और लाश को ठिकाने लगा सके.
इस तफ़्तीश की निगरानी करने वाली सीनियर पुलिस अफ़सर एसपी अम्मारा शीराज़ी ने बताया कि मुल्ज़िम ने पूछताछ के दौरान इस बात को स्वीकार किया कि उसने अपनी बीवी को गला दबाकर मारा और उसकी लाश के छोटे-छोटे टुकड़े करके अलग-अलग जगहों पर फेंक दिए थे.
सिद्दीक़ ने 2007 में बक़रीद के तीसरे दिन अपनी बीवी को क़त्ल किया और लाश के टुकड़े करके क़ुर्बानी के जानवरों के अवशेषों के बीच फेंक दिया ताकि किसी को शक न हो और कुछ टुकड़े नाले में बहा दिए. इस घटना के बाद मुल्ज़िम ने तीसरी शादी भी की और वह लाहौर के इलाक़े सांदा मैं अंडरग्राउंड था.
एसपी अम्मारा शीराज़ी ने बताया कि तबस्सुम के घरवालों ने उसके घर से भागने, लापता होने या अग़वा होने की कोई पुलिस रिपोर्ट दर्ज नहीं करवाई थी, इसलिए पुलिस की ओर से तबस्सुम को ढूंढने की कोई क़ानूनी कार्रवाई नहीं की गई थी.
पुलिस ने अब मुल्ज़िम का बयान लेकर शुरुआती जांच पूरी कर ली है और रिमांड के बाद मजिस्ट्रेट के सामने पेश करके धारा 164 के तहत भी सिद्दीक़ का बयान दर्ज करवाया है. उन्हें न्यायिक रिमांड पर कैंप जेल भेजा गया है.
इस केस के अनुसंधान प्रभारी हसन रज़ा के अनुसार मुल्ज़िम के बयान के साथ इस केस का आरोपपत्र भी जमा करवा दिया गया है. दूसरी ओर रिमांड होने के बाद मुल्ज़िम की ओर से अब तक कोई वकील पेश नहीं हुआ और न ही ज़मानत की अर्ज़ी दायर की गई है.
सबूतों की कमी केस पर क्या असर डालेगी?
क़ानूनी विशेषज्ञों के अनुसार घटनास्थल से मिलने वाले सबूत, लाश और जिस हथियार से हत्या हुई उसकी बरामदगी पेश करते हुए मुल्ज़िम के स्वीकारोक्ति बयान के साथ अगर आरोपपत्र बनाया जाए तो परिस्थितियों व घटनाओं और अदालत में मुल्ज़िम के ज़ुल्म क़बूल लेने के आधार पर सख़्त सज़ा मिलने की संभावना मज़बूत हो जाती है.
तबस्सुम क़त्ल केस में पुलिस हिरासत में मुल्ज़िम का इक़बालिया बयान तो मौजूद है लेकिन न तो हत्या में इस्तेमाल किया गया हथियार है और न ही लाश के अवशेष मिलने की कोई उम्मीद है. ऐसे मुक़दमों की तफ़्तीश का आरोपपत्र कमज़ोर बनता है जिसका सीधा फ़ायदा मुल्ज़िम को होता है क्योंकि अदालत में अगर मुल्ज़िम किसी मोड़ पर अपने बयान से बदल जाता है तो केस के कई सालों तक खिंचने की आशंका हो जाती है जिसका परिणाम अंत में मुल्ज़िम बरी भी हो सकता है.
क़ानूनी विशेषज्ञ एडवोकेट असद अब्बास बट का कहना है कि अगर पुलिस मुकदमे की तफ़्तीश में गंभीरता दिखाए और मुल्ज़िम की बताई गई जगहों से तबस्सुम की लाश के टुकड़े या हड्डियां बरामद करके डीएनए रिपोर्ट के साथ हत्या में इस्तेमाल किया गया हथियार बरामद कर ले तो मुल्ज़िम को सज़ा दिलवाने में कामयाबी मिल सकती है. मगर इसकी संभावना कम दिखाई देती है क्योंकि पन्द्रह साल बीत जाने के बाद सबूत खत्म होने की आशंका है.
दूसरी ओर तबस्सुम की मां का कहना है कि अगर उन्होंने समय पर बेटी की गुमशुदगी की सूचना पुलिस को दी होती तो शायद आज उनकी बेटी ज़िंदा होती.(bbc.com/hindi)