राष्ट्रीय

-रजनीश कुमार
अहमदाबाद, 13 नवंबर । अहमदाबाद में नरोदा पाटिया के इंडी कैप इलाक़े में शनिवार की रात नौ बजे बीजेपी समर्थकों की भीड़ पायल कुकरानी का इंतज़ार कर रही है.
पायल कुकारनी के पिता मनोज कुकरानी के मोबाइल पर बार-बार फ़ोन आ रहे हैं और वह अपनी बेटी के आने की सूचना सबको दे रहे हैं.
भारतीय जनता पार्टी ने गुजरात के अहमदाबाद में नरोदा विधानसभा क्षेत्र से मनोज कुकरानी की 30 साल की बेटी पायल कुकरानी को टिकट दिया है. 2002 के गुजरात दंगे में नरोदा के नरोदा पाटिया जनसंहार केस में मनोज कुकरानी को उम्र क़ैद की सज़ा मिली हुई है.
मनोज कुकरानी अभी स्वास्थ्य कारणों से ज़मानत पर बाहर हैं. 28 फ़रवरी, 2002 को नरोदा पाटिया और आसपास के इलाक़ों में 97 अल्पसंख्यकों को दंगाइयों ने मार दिया था.
पायल कुकरानी से पूछा कि वह तो राजनीति के लिए बिल्कुल नई हैं लेकिन पार्टी ने उन्हें क्यों टिकट दिया?
पायल कहती हैं, "मैं तो अस्पताल के ऑपरेशन थियेटर में थी, तभी पता चला कि बीजेपी ने मुझे नरोदा पाटिया से उम्मीदवार बनाया है. मेरे लिए भी यह हैरान करने वाला था. हालांकि, मेरे पिता ने टिकट के लिए मेरा फॉर्म भरवाया था." पायल ने कहा, "मुझे उम्मीद नहीं थी. नरोदा तो बीजेपी का गढ़ है. यहां से बीजेपी को ही जीत मिलती है."
पिता के दोषी होने पर पायल का जवाब
जब पायल से पूछा गया कि उनके पिता मनोज कुकरानी 2002 के दंगे में दोषी ठहराए गए हैं और उन्हें उम्र क़ैद की सज़ा मिली है. इस पहचान को वह कैसे देखती हैं?
इस सवाल के जवाब में पायल ने कहा, "सबका अपना अतीत होता है और मेरे परिवार के साथ भी एक अतीत जुड़ा है. लेकिन मुझे लगता है कि मैं डॉक्टर या यंग हूं इसलिए पार्टी ने मुझे चुना है. इस बार बड़ी संख्या में युवाओं को मौक़ा दिया गया है और मैं भी उन्हीं में से एक हूं."
इस दौरान तो मनोज कुकरानी भी वहीं खड़े थे. पायल की मां रेशमा कुकरानी और नरोदा पाटिया के सिटिंग एमएलए बलराम थवानी भी वहीं थे.
पायल से ये पूछे जाने पर कि 2002 के दंगे में मनोज कुकरानी यानी उनके पिता के दोषी ठहराए जाने का असर उनकी राजनीति पर कैसा पड़ेगा?
इसके जवाब में पायल ने कहा, "मैं इस पर कुछ नहीं कहना चाहूंगी." पायल की मां रेशमा कुकरानी ने भी इस सवाल का जवाब देने से इनकार कर दिया.
लेकिन बलराम थवानी इस सवाल का जवाब देने के लिए उत्सुक दिखे.
उन्होंने अपने जवाब में कहा, "देखिए स्थानीय लोगों को हक़ीक़त पता है. नरोदा पाटिया मामले में जितने लोगों पर मुक़दमा हुआ था, मेरा मानना है कि सभी निर्दोष हैं. मनोज पर एफ़आईआर 90 दिनों के बाद हुई थी."
पायल को अपने पिता के कारण किन मुश्किलों का सामना करना पड़ा? पायल ने कहा, "ज़ाहिर है कि इसका सामना करना आसान नहीं था. लेकिन ज़िंदगी ठहरती नहीं है. मैं अतीत से बाहर निकल कई सकारात्मक चीज़ों के बारे में सोच रही हूं."
पायल को क्या अपने पिता पर गर्व है? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, "मैं अब इस विवाद में नहीं पड़ना चाहती हूं. मैं चाहूंगी अब इन सवालों को मत पूछिए."
ओवैसी ने क्या कहा
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष और हैदराबाद से लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवैसी से जब पूछा गया कि पायल को टिकट देने के पीछे क्या वो बीजेपी की रणनीति देखते हैं?
ओवैसी ने कहा, "एक बात तो साफ़ हो गई है कि बीजेपी का उस परिवार से ताल्लुक था, है और रहेगा. बावजूद इसके कि कोर्ट ने उम्र क़ैद की सज़ा दी है. बीजेपी और आरएसएस का ताल्लुक इस परिवार से है."
"इससे यह भी पता चलता है कि बीजेपी अपने लोगों को छोड़ती नहीं है. चाहे उस व्यक्ति को अपराधी क़रार दिया जाए या उम्र क़ैद की सज़ा मिली हो. अगर कोई दूसरी पार्टी ऐसा करती तो उससे जवाबदेही की बात करती. लेकिन सत्ता के लिए अपने वक़्त में सब कुछ भूल जाती है."
ओवैसी कहती हैं, "अगर कल बीजेपी क़ानून बनाती है कि दोषी लोग भी चुनाव लड़ सकते हैं तो वह बिलकिस बानो के बलात्कारियों को भी टिकट दे सकती है."
पायल कुकरानी सिंधी हैं और नरोदा पाटिया विधानसभा में सिंधियों का ही दबदबा है.
यहां पिछले 30 सालों से बीजेपी ही जीत रही है. आम आदमी पार्टी ने यहां से ओम प्रकाश तिवारी को उम्मीदवार बनाया है. सिंधियों के अलावा इस इलाक़े में बड़ी संख्या में हिन्दी भाषी लोग भी रहते हैं.
नरोदा पाटिया का जातीय समीकरण
ओम प्रकाश तिवारी मूल रूप से गोरखपुर के हैं और पुरानी कांग्रेसी है. पायल कुकरानी को बीजेपी से टिकट मिलने के बारे में जब उनसे सवाल पूछा तो उन्होंने कहा, "मनोज कुकरानी 2002 के दंगों में दोषी हैं. बीजेपी ने इसीलिए उनकी पत्नी रेशमा को कॉर्पोरेटर बनाया. अब बेटी को विधायक के चुनाव में उतारा है. बीजेपी में गुनाहगारों को फ़ायदा मिलता है और मनोज कुकरानी के साथ भी ऐसा ही है."
ओम प्रकाश तिवारी कहते हैं, "मनोज कुकरानी सत्ताधारी दल के हैं. इसलिए उनके लिए परोल पर आना या निर्दोष साबित होना कोई बड़ी बात नहीं है. गुजरात की पुलिस ने उन्हें दोषी ठहराया है. कोई दूसरे राज्य की सरकार ने नहीं किया है. लेकिन बीजेपी तो ऐसे लोगों को आगे बढ़ाती ही है."
2017 में कांग्रेस ने ओम प्रकाश तिवारी को नरोदा पाटिया से उम्मीदवार बनाया था लेकिन वो बीजेपी के उम्मीदवार से हार गए थे. तिवारी नरोदा पाटिया विधानसभा क्षेत्र के जातीय समीकरण को उंगली पर गिना देते हैं.
जातीय समीकरण के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा, "यहां सिंधी समाज के लोग 60 हज़ार के क़रीब हैं लेकिन उतने ही दूसरे राज्यों के लोग भी हैं. क़रीब 48 हज़ार ओबीसी हैं, 26 हज़ार दलित हैं, 23 हज़ार पटेल हैं, 11 हज़ार के आसपास गुजराती क्षत्रिय हैं, 10 हज़ार गुजराती ब्राह्मण हैं, सात हज़ार वैश्य हैं, तीन हज़ार मुस्लिम हैं, 10 हज़ार 400 एसटी हैं. यहाँ कुल मिलाकर दो लाख 72 हज़ार मतदाता हैं."
इस इलाक़े से कांग्रेस और एनसीपी के साझे उम्मीदवार निकुंज सिंह तोमर मैदान में हैं. तोमर से जब पूछा गया कि पायल कुकरानी को नरोदा पाटिया से उतारने के पीछे बीजपी की रणनीति क्या है, उन्होंने कहा, "बीजेपी में 2002 के दंगों के दोषियों को रिवॉर्ड तो मिलता ही है. मनोज कुकरानी को भी मिला. इसमें कुछ भी चौंकाने वाला नहीं है."
पायल कुकरानी के सिंधी होने के सवाल पर तोमर ने कहा, "पायल का जन्म सिंधी परिवार में भले हुआ है लेकिन उनकी शादी सिंधी से नहीं हुई है. इसलिए हम उन्हें सिंधी नहीं कह सकते हैं."
नरोदा पाटिया दंगा
28 फ़रवरी 2002 को अहमदाबाद के नरोदा पाटिया इलाक़े में हुए सांप्रदायिक दंगों में कम से कम 97 मुसलमानों को कत्ल कर दिया गया था. गुजरात के गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन के कुछ डिब्बे जलाए जाने के बाद जो दंगे भड़के उनमें नरोदा पाटिया में सबसे अधिक हिंसा हुई.
मनोज कुकरानी उन 32 लोगों में से एक हैं, जिन्हें नरोदा पाटिया केस में अहमदाबाद की विशेष अदालत ने दोषी ठहराया था.
तब बीजेपी विधायक माया कोडनानी को भी इस मामले में दोषी ठहराया गया था. 2018 में कोडनानी समेत 13 लोगों को गुजरात हाई कोर्ट ने इस मामले में बरी कर दिया था.
पायल अनेस्थेटिस्ट हैं. वह पश्चिमी अहमदाबाद के गुरुकुल इलाक़े के एक अस्पताल में काम करती हैं. उनकी मां रेशमा कुकरानी अहमदाबाद के सैजपुर बोघा वॉर्ड से बीजेपी की कॉर्पोरेटर हैं.
नरोदा पाटिया सीट से ही माया कोडनानी विधायक चुनी जाती थीं. 2017 में यहां से बीजेपी के बलराम थवानी चुनाव जीते थे. (bbc.com/hindi)