-इमरान क़ुरैशी
सीबीआई की एक विशेष अदालत ने केरल के बहुचर्चित सिस्टर अभया हत्या मामले में एक पादरी और नन को उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई है.
तिरुवनंतपुरम में सीबीआई की स्पेशल कोर्ट के जज के सनल कुमार ने फ़ादर थॉमस कोट्टूर और सिस्टर सेफ़ी को पाँच-पाँच लाख रुपए का जुर्माना भी भरने का आदेश दिया.
हत्या का ये मामला केरल में अब तक हुए आपराधिक मामलों के इतिहास का सबसे लंबा चला केस है.
28 साल पहले सिस्टर अभया का शव उन्हीं के होस्टल के कुंए में मिला था.
विशेष अदालत ने मंगलवार को 69 साल के पादरी फादर थॉमस कोट्टूर और 55 साल की नन सिस्टर सेफी को दोषी ठहराया था.
अदालत ने दोनों को हत्या के साथ साथ, अहम सबूत मिटाने का भी दोषी पाया. फादर कोट्टूर को आपराधिक साजिश करने का भी दोषी क़रार दिया गया.
क्या है पूरा मामला?
बात 26 मार्च 1992 की रात की है. 19 साल की प्री-डिग्री स्टूडेंट. अभया कोट्टायम में मौजूद पिऊस टेन्थ कॉन्वेंट के होस्टल में रहती थीं. ये होस्टल कनन्या कैथलिक चर्च चलाता था.
परीक्षा की तैयारी के लिए अभया को सवेरे जल्दी उठना था. उसकी रूममेट सिस्टर शर्ली ने उसे तड़के चार बजे पढ़ने के लिए जगा दिया. अभया उठी और ठंडे पानी से मुंह धोने के लिए किचन की तरफ गई. आख़िरी बार उसकी रूममेट सिस्टर शर्ली ने उसे रूम से जाते हुए देखा था.
अभियोजन पक्ष का आरोप है कि जब सिस्टर अभया किचन में पहुंची तो उसने फादर थॉमस कोट्टूर, सिस्टर सेफी और फादर पुट्ट्रीकायल को अनैतिक स्थिति में पाया.
अभियोजन पक्ष का कहना है कि कहीं अभया सभी को उनके बारे में बता न दे, इस डर से फादर कोट्टूर ने उसका गला घोंटा और सिस्टर सेफी ने कुल्हाड़ी से उस पर वार किया. बाद में इन तीनों ने मिल कर उसे कॉन्वेंट के ही कुंए फेंक दिया.
दुबई में रहने वाले सिस्टर अभया के भाई बीजू थॉमस ने बीबीसी को बताया, "जब मुझे कोर्ट के फ़ैसले के बारे में पता चला तो मुझे समझ नहीं आया कि मैं खुश होऊं या नहीं. एक तरह से मिलीजुली भावनाएं थीं. मैंने उम्मीद नहीं की थी कि कोर्ट इस मामले में आज फ़ैसला देगा."
"मेरे माता-पिता इस फ़ैसले से बेहद खुश होंगे, वो जन्नत में बैठ कर सब कुछ देख रहे होंगे. चार साल पहले, चार महीनों के वक्त के भीतर मैंने दोनों को खो दिया."
होटल में काम करने वाले बीजू कहते हैं, "अभया मुझसे दो साल छोटी थी. जब वो 14-15 साल की थी वो रोया करती थी और कहती ती कि उसे नन बनना है. मेरे पिता उस पर नाराज़ होते थे. लेकिन हमारे घर आशीर्वाद देने आने वाले फादर और नन को मिलने वाला सम्मान देखकर वो बेहद प्रभावित थी."

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वो कहते हैं कि जब अभया की मौत हुई, "मेरे माता-पिता को पता था कि ये हत्या का मामला है. लेकिन हम लोग बेहद ग़रीब थे और इस मामले को कोर्ट तक ले जाने में समर्थ नहीं थे. लेकिन ऐक्शन काउंसिल जैसे कई लोग सामने आए और उन्होंने हमारी इस लड़ाई को आगे बढ़ाया."
आत्महत्या या हत्या?
तत्कालीन पुलिस उपाधीक्षक वर्गीस पी थॉमस ने बीबीसी हिंदी को बताया था, "यह स्पष्ट तौर पर हत्या का मामला था. उसके सिर पर चोट की गई थी और बाद में यह सोचकर कि वह मर गई है, उन्होंने उसके शरीर को कुएं में फेंक दिया. जब ये मामला केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंपा गया, मैं इस मामले का जांच अधिकारी था."
कॉन्वेन्ट की प्रमुख मदर सुपिरियर के नेतृत्व में ननों के एक प्रतिनिधिमंडल ने तत्कालीन मुख्यमंत्री के करुणाकरन से मुलाक़ात की और मामले को सीबीआई को देने की मांग की. उनका था कि पहले स्थानीय पुलिस और फिर क्राइम ब्रांच इस मामले की सही तरीके से जांच नहीं कर रही. उन्हें शक़ था कि अभया की हत्या हुई है.
साल 1993 में सीबीआई ने इस मामले की तफ्तीश शुरू की और साल के आख़िर तक थॉमस और उनकी टीम इस नतीजे पर पहुंची कि ये आत्महत्या का मामला है.
अब 76 साल के हो चुके थॉमस कहते हैं, "अधिकारी चाहते थे कि इस मामले को आत्महत्या का मामला बता कर बंद कर दिया जाए. वो कोई भी पेंडिंग केस नहीं चाहते थे. मैंने इसका विरोध किया और नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया."
इस मामले पर नज़र रखने वाली वकील संध्या राजू (अभया मामले से इनका कोई संबंध नहीं है) कहती हैं, "लेकिन ये एक तरह का ऐतिहासिक मामला है क्योंकि बिना किसी नतीजे तक पहुंचे इस मामले को बंद करने की सबसे अधिक कोशिशें हुई हैं."
"जब हाई कोर्ट ने आदेश दिया कि इस मामले की सही तरीके से जांच की जाए तब जा कर इसकी जांच में गंभीरता आई. कई बार सबूतों के साथ और यहां तक कि नार्को-एनालिसिस की रिकॉर्डिंग के साथ भी छेड़छाड़ करने की कोशिशें हुई हैं, लेकिन हाई कोर्ट ने इसे स्वीकार नहीं किया."
इस मामले में कम से कम तीन बार ऐसा हुआ जब सबीआई की टीम ने कहा कि सिस्टर अभया ने आत्महत्या नहीं की बल्कि उसकी हत्या हुई थी. लेकिन गुनाहगारों तक पहुंचने में टीम नाकाम रही.
चीफ़ जुडिशियल मजिस्ट्रेट कोर्ट के साथ-साथ उच्च अदालतों ने सीबीआई की रिपोर्ट को स्वीकार करने से मना कर दिया. साल 2008 में हाई कोर्ट ने सीबीआई को रिपोर्ट सौंपने के लिए तीन महीने का वक्त दिया.

परिस्थितियाँ और सबूत
सीबीआई ने कॉन्वेंट के बगल में रहने वाले संजू मैथ्यू नाम के एक व्यक्ति को ढूंढ निकाला जिन्होंने धारा 164 के तहत गवाही दी कि 26 मार्च 1992 की रात उन्होंने फादर कोट्टूर को होस्टल परिसर में देखा था.
इसके बाद सीबीआई की टीम ने फादर थॉमस कोट्टूर, सिस्टर सेफी और फादर पुट्ट्रीकायल को गिरफ्तार किया. हालाँकि गवाह संजू मैथ्यू बाद में अपने बयान से मुकर गया.
सीबीआई की टीम ने अदरक्का राजू नाम के एक चोर को भी पकड़ा जिसने बताया कि उसने उस रात दो पादरियों को होस्टल परिसर में देखा था.
अभया के गुनाहग़ारों की गिरफ्तारी के लिए मुहिम चलाने वाली संस्था एक्शन काउंसिल के जोमोन पुथेनपरक्कल कहते हैं. "पहले से ही ये तो बात तो स्पष्ट ही थी कि ये आत्महत्या का मामला नहीं थी. किचन में इस बात के सबूत थे कि वहां कुछ लोगों में गुत्थमगुत्थी हुई है. किचन में दो अलग-अलग जगहों पर सिस्टर अभया की चप्पलें पड़ी हुई थीं. एक व्यक्ति सवेरे चार बजे पढ़ाई करने के लिए उठता है उसके मन में आत्महत्या का ख़याल तो नहीं आएगा. मेरे लिए ये सभी सबूत ये बताने के लिए काफी थे कि मामला पेचीदा है."
संध्या राजू कहती हैं, "इसमें कोई शक़ नहीं कि ये राज्य का सबसे अधिक वक्त तक चलने वाले आपराधिक मुकदमा है."
कोर्ट के इस फ़ैसले ने एक बार फिर आरोपियों से निपटने के नज़रिए पर सवाल उठाया है.
सेव आवर सिस्टर्स के पूर्व संयोजक फादर ऑगस्टीन वट्टोल्ली कहते हैं, "जिन पर आरोप लगा वो पादरी बने रहे. चर्च ने उनसे नाता नहीं तोड़ा. चर्च कम से कम ये कदम तो उठा सकता है कि उन्हें सस्पेंड कर दिया जाए. बाद में अगर वो दोषी नहीं पाए गए तो उन्हें फिर से पादरी के तौर पर बहाल करे."
जालंधर डयोसीस के पादरी फादर बिशप फ्रैंको मुलक्कल पर एक नन ने कथित तौर पर बलात्कार का आरोप लगाया था. उसी घटने के बाद सेव आवर सिस्टर्स नाम की संस्था बनाई गई थी. ये मामले फिलहाल ट्रायल कोर्ट में है और मामले की सुनवाई की पूरी रिकॉर्डिंग की जा रही है. (bbc.com)