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नई रोजगार गारंटी योजना नाम तो बदला, कितना बदलेगा जीवन?
19-Dec-2025 1:04 PM
नई रोजगार गारंटी योजना नाम तो बदला, कितना बदलेगा जीवन?

लोकसभा ने दो दशकों से चल रही रोजगार गारंटी योजना मनरेगा की जगह रोजगार और आजीविका मिशन (ग्रामीण) विधेयक 2025 पारित कर दिया है. अब सवाल उठ रहा है कि इसमें क्या खास है और इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था की तस्वीर कितनी बदलेगी?

 डॉयचे वैले पर प्रभाकर मणि तिवारी की रिपोर्ट – 

 

विपक्षी दलों के भारी विरोध बीच पारित इस विधेयक पर केंद्र सरकार का दावा है कि इसे विकसित भारत, 2047 के विजन के साथ तैयार किया गया है और इससे मजदूरों के जीवन के साथ ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था की तस्वीर में भी बदलाव आएगा. इसे संक्षेप में 'विकसित भारत--जी राम जी' विधेयक कहा जा रहा है. सरकार इसके पक्ष में दलीलें दे रही हैं और विपक्षी दल इसके खिलाफ.

वर्ष 2005 में केंद्र की तत्कालीन यूपीए सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार अधिनियम यानी नरेगा बनाया किया था. महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज के विचारों को इससे जोड़ने के लिए चार साल बाद इस योजना के नाम में उनका नाम जोड़ दिया गया.

इसके तहत ग्रामीण इलाकों में कनेक्टिविटी मजबूत की जाएगी ताकि बाजारों तक पहुंच आसन हो सके. इसमें उन इलाकों में नए तालाबों के निर्माण और पुराने के पुनरुद्धार का भी प्रावधान है ताकि ग्रामीण इलाकों में जल सुरक्षा मुहैया कराई जा सके. पानी और सिंचाई की सुविधाएं मिलने से बहुफसली खेती को बढ़ावा मिलेगा.

इस योजना में मुख्य रूप से चार बिंदुओं को प्राथमिकता दी गई है. इनमें जल सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ ही ग्रामीण इलाके में आधारभूत ढांचे को मजबूत करना, जलवायु परिवर्तन के असर से निपटने की दिशा में काम करना और रोजगार से संबंधित आधारभूत ढांचे को मजबूत करना शामिल है.

केंद्र सरकार का कहना है कि रोजगार के मौके बढ़ने से ग्रामीण इलाकों से पलायन पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी. पहले अक्सर खेती खासकर बुवाई और कटाई के समय मजदूरों की कमी से जूझना पड़ता था. लेकिन नए कानून के तहत खेती के सीजन में 60 दिनों तक योजना का काम बंद रहेगा. इससे मजदूरों की उपलब्धता सुनिश्चित होगी. यह 60 दिन केंद्र सरकार ही तय करेगी. जरूर नहीं है कि यह एक साथ ही हों. लेकिन इसकी कुल अवधि इससे ज्यादा नहीं होगी. बाकी करीब तीन सौ दिनों में से मजदूरों को 125 दिनों का रोजगार मिलने की गारंटी होगी. सरकार की दलील है कि इससे ग्रामीण रोजगार और कृषि उत्पादकता में संतुलन बना रहेगा.

बदलाव क्यों?

लेकिन आखिर केंद्र सरकार को पुराने कानून को बदलने की जरूरत क्यों पड़ी? केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लोकसभा में इस विधेयक पर चर्चा के दौरान कहा कि पूर्व रोजगार गारंटी वर्ष 2005 की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए बनाई गई थी. लेकिन बीते दो दशकों में ग्रामीण भारत की तस्वीर काफी हद तक बदल चुकी है. इसी वजह से पुरानी योजना अब प्रासंगिक नहीं रही थी. बदली हुई परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए ही सरकार ने पहले की रोजगार गारंटी योजना की जगह इस नई योजना को लागू करने का फैसला किया है.

सरकार की दलील है कि पहले की योजना में विभिन्न राज्यों से भ्रष्टाचार या घोटाले के आरोप मिल रहे थे. लेकिन नई योजना में पारदर्शिता पर खास जोर दिया गया है. इसके तहत निगरानी प्रणाली को चुस्त बनाते हुए डिजिटल भुगतान को बढ़ावा दिया जाएगा.

मनरेगा मजदूरों की दिहाड़ी बढ़ी लेकिन असमानता नहीं मिटी

सरकार का दावा है कि यह विधेयक ग्रामीण इलाकों में विकास की गति को तेज करने के मकसद से तैयार किया गया है. पहले केंद्र सरकार पर खर्च का बोझ ज्यादा था. लेकिन अब इस योजना के तहत 60 फीसदी रकम केंद्र सरकार देगी और बाकी 40 प्रतिशत संबंधित राज्य देंगे. केंद्रशासित प्रदेशों में इस योजना का पूरा खर्च केंद्र सरकार उठाएगी जबकि पूर्वोत्तर और हिमालय क्षेत्र के राज्यों में राज्य सरकार को दस प्रतिशत खर्च उठाना होगा.

फिलहाल इसमें मजदूरी दर में कोई बदलाव नहीं किया गया है. सरकार का कहना है कि नई दरें तय होने तक पुरानी योजना में तय दरों के अनुरूप ही मजदूरी का भुगतान किया जाएगा. इस कानून के तहत राज्य सरकारों के पास यह विकल्प रहेगा कि वो इस योजना की जगह समान या बेहतर रोजगार गारंटी योजना लागू कर सकती हैं. मिसाल के तौर पर पश्चिम बंगाल सरकार ने वर्ष 2024 में मनरेगा की तर्ज पर अपनी 'कर्मश्री' योजना शुरू की थी. वह चाहे तो उसे जारी रख सकती है.

विपक्ष का विरोध

लेकिन विपक्षी दल केंद्र के दावों से सहमत नहीं हैं. उनकी दलील है कि इस योजना से महात्मा गांधी का नाम हटाने का मतलब उनका अपमान करना है. साथ ही इसमें तमाम अधिकार केंद्र सरकार के हाथों में ही रहेंगे. वही संबंधित राज्यों में इस योजना को लागू करने के इलाके और बजट तय करेगा. उनका आरोप है कि नए नियमों से रोजगार की गारंटी कमजोर होगी. इससे राज्य सरकारों पर बोझ बढ़ेगा. यह योजना पूरी तरह केंद्र के नियंत्रण में रहेगी.

कांग्रेस इसे महात्मा गांधी का अपमान बताते हुए कहा है कि योजना से गांधीजी का नाम हटाना उनकी विरासत को मिटाने का प्रयास है.

पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार ने महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना के नाम और प्रावधानों में प्रस्तावित बदलाव को बंगाल और बंगालियों की अस्मिता से जोड़ते हुए इसका विरोध शुरू किया है. राज्य सरकार का आरोप है कि केंद्र सरकार ने मनरेगा के मद में बीते तीन साल से राज्य सरकार को कोई रकम नहीं दी है.

पार्टी ने सबसे ज्यादा आपत्ति इस रोजगार योजना के नाम में बदलाव पर जताई है. पार्टी के प्रवक्ता कुणाल घोष ने डीडब्ल्यू से कहा, "गांधी को 'महात्मा' की उपाधि कविगुरू रवींद्रनाथ टैगोर ने दी थी. अब इस योजना के नाम से 'महात्मा' शब्द हटाना गांधी के साथ टैगोर का भी अपमान है."

विश्लेषकों की राय

विश्लेषकों का कहना है कि इस योजना पर मुख्य विवाद इसका नाम बदलने और 40 फीसदी खर्च का बोझ राज्यों पर डालने के मुद्दे पर है. राजनीतिक विश्लेषक विश्वनाथ चक्रवर्ती डीडब्ल्यू से कहते हैं, "पहली नजर में इसके कुछ प्रावधान बेहतर नजर आते हैं. यह बीते करीब दो दशकों में ग्रामीण नीति से संबंधित सबसे अहम बदलावों में से एक है. अब ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर इसका कैसा और कितना असर होता है, यह तो बाद में पता चलेगा."

उनका कहना था कि मनरेगा योजना में विभिन्न राज्यों में भ्रष्टाचार की खबरें सामने आती रही हैं. लेकिन उन पर अंकुश लगाने के लिए इसमें पारदर्शिता पर जोर दिया गया है. इसमें बायोमेट्रिक तरीके से उपस्थिति दर्ज करने के साथ ही कई अन्य तकनीकी प्रावधान रखे गए हैं.

कोलकाता के एक कालेज में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर डा. कोमलिका चटर्जी डीडब्ल्यू से कहती हैं, "यह सही है कि बीते दो दशकों में ग्रामीण इलाकों में तस्वीर और जरूरतें बदली हैं. सरकार का दावा है कि वह नए कानून के जरिए उस इलाके की अर्थव्यवस्था को मजबूत करेगी. फिलहाल इसके समर्थक और विरोधी इस पर परस्पर विरोधाभासी दावे कर रहे हैं. इस योजना से ग्रामीण इलाकों के लोगों का जीवन और अर्थव्यवस्था की तस्वीर कितनी बदलेगी, यह तो कुछ साल बाद ही पता चलेगा."


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