-भूमिका राय
सैन्य मामलों के जानकार और विशेषज्ञों ने चीन के साथ हुए भारत के उस समझौते पर सवाल उठाए हैं जिसमें भारत ने अपने अधिकार क्षेत्र वाले पूर्वी लद्दाख में पैंगोंग झील के उत्तर और दक्षिणी तट पर 10 किलोमीटर चौड़े बफ़र ज़ोन को बनाने के लिए सहमति दे दी है.
इसके अनुसार, पैंगोंग झील के इलाक़े में चीन के साथ डिस्इंगेजमेंट के समझौते के तहत दोनों पक्ष अपनी आगे की सैन्य तैनाती को चरणबद्ध तरीक़े से, समन्वय बनाते हुए और प्रमाणिक तरीक़े से पीछे हटाएंगे.
लेकिन जानकारों ने इसे लेकर कुछ सवाल उठाए हैं.
जानकारों का कहना है कि डेपसांग और कुछ अन्य सेक्टरों में भी डिस्इंगेजमेंट को लेकर भारत को चीन पर दबाव बनाना चाहिए था और ऐसा नहीं करके भारत ने बहुत बड़ी चूक कर दी है क्योंकि कूटनीतिक और सैन्य दृष्टि से यह क्षेत्र भारत के लिए बेहद अहम है. यह वही क्षेत्र है, जहां माना जाता है कि चीन की सेना भारत के अधिकार वाले क्षेत्र में 18 किलोमीटर तक अंदर प्रवेश कर गई है.
इसके एक दिन पहले कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा था. उन्होंने चीन को भारत की ज़मीन दे देने का आरोप लगाया था, जिसके बाद रक्षा मंत्रालय की ओर से आपत्ति जताई गई थी और इस दावे का खंडन किया गया था.
भारत और चीन के बीच बीते साल मई महीने से ही सीमा पर तनाव क़ायम है. भारत-चीन सीमा से जुड़े मामलों के जानकारों ने चीन के साथ पैंगोंग झील के पास बफ़र ज़ोन बनाने को लेकर हुए समझौते पर चिंता ज़ाहिर की है.
रक्षा मामलों के जानकार और कर्नल (सेवानिवृत्त) अजेय शुक्ला ने इस संबंध में बीबीसी से बात की.
चीन के साथ बफ़र ज़ोन को बनाने को लेकर हुए समझौते पर बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा- "मेरी समझ में ये एक अच्छा अग्रीमेंट है क्योंकि पैंगोंग के उत्तर और दक्षिण, दोनों जगह भारत और चीन के सैनिक बिल्कुल आमने-सामने थे. किसी भी समय झड़प की आशंका बनी हुई थी और वो झड़प सिर्फ़ झड़प ना रहकर बढ़ जाए, इसकी भी पूरी आशंका बनी हुई थी. इस लिहाज़ से ख़तरा हर समय बना हुआ था, तो वहां से दोनों ओर की सेनाओं का पीछे हटना अच्छी बात थी. लेकिन यहां ये भी कहना ज़रूरी है कि यहां पर दक्षिणी पैंगोंग ही एकमात्र ऐसी जगह थी जहां भारतीय सेना अच्छी पोज़िशन पर थी.''
वो कहते हैं, ''चीन की सेनाओं की तुलना में इस जगह पर भारतीय सेना की स्थिति काफी अच्छी थी और यहां पर सारी एडवांटेज भारतीय सैनिकों के पास थी. तो यहां से डिस्इंगेजमेंट के लिए सहमति देने का मतलब अब यह है कि जो ट्रंप कार्ड हमारे हाथ में था, हम वो खेल चुके हैं. वो अब हमारे पास नहीं रहा है और अगर चीन ये बात नहीं मानता है कि बाकी जगहों से भी डिस्इंगेजमेंट करना है और वो उससे इनक़ार कर दे तो हमारे पास में कोई ट्रंप कार्ड नहीं बचा है."
उन्होंने ट्वीट किया था - ''पैंगोंग सेक्टर में सेनाओं के पीछे हटने को लेकर झूठ बोला जा रहा है. कुछ हथियारबंद गाड़ियों और टैंकों को पीछे लिया गया है. सैनिकों की पोज़िशन में कोई बदलाव नहीं हुआ है. चीन को फ़िंगर 4 तक पेट्रोलिंग करने का अधिकार दे दिया गया है. इसका मतलब यह है कि एलएसी फ़िंगर 8 से फ़िगर 4 पर शिफ़्ट हो गई है.''
राज्यसभा सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुब्रमण्यम स्वामी ने भी इस संबंध में ट्वीट करके अपना मत ज़ाहिर किया है.
उन्होंने लिखा है, "साल 2020 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि कोई आया नहीं और कोई गया नहीं. चीन के लोग बहुत खुश हुए थे. लेकिन ये सच नहीं था. बाद में नरवणे ने सैनिकों को आदेश दिया कि वे एलएसी पार करें और पैंगोंग हिल को अपने कब्ज़े में लें. ताकि पीएलए के बेस पर नज़र रखें. और अब हम उन्हें वहां से हटा रहे हैं. लेकिन डेपसांग से क्या चीन पीछे हट रहा है? नहीं अभी नहीं."
इससे पूर्व चीन के साथ चल रहे सीमा विवाद पर मौजूदा जानकारी देते हुए केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सदन में कहा था कि भारत ने हमेशा चीन को यह कहा कि द्विपक्षीय संबंध दोनों पक्षों के प्रयास से ही विकसित हो सकते हैं. साथ ही सीमा के प्रश्न को भी बातचीत के ज़रिए ही हल किया जा सकता है. वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शांति में किसी भी प्रकार की प्रतिकूल स्थिति का बुरा असर हमारी द्विपक्षीय बातचीत पर पड़ता है.
उन्होंने कहा था कि ''टकराव वाले क्षेत्रों में डिस्इंगेजमेंट के लिए भारत का यह मत है कि 2020 की फ़ॉरवर्ड डेपलॉयमेंट्स (सैन्य तैनाती) जो एक-दूसरे के बहुत नज़दीक हैं, वो दूर हो जायें और दोनों सेनाएं वापस अपनी-अपनी स्थायी चौकियों पर लौट जाएं.''
राजनाथ सिंह ने दोनो सेनाओं के कमांडरों के बीच हुई बातचीत का भी ज़िक्र किया था. राजनाथ सिंह ने कहा था, ''अभी तक सीनियर कमांडर्स के स्तर पर नौ दौर की बातचीत हो चुकी है. हमारे इस दृष्टिकोण और बातचीत के फ़लस्वरूप चीन के साथ पैंगोंग त्सो झील के उत्तर और दक्षिण छोर पर सेनाओं के पीछे हटने का समझौता हो गया है.''
लेकिन सामरिक मामलों के जानकार मानते हैं कि दूसरे सेक्टर्स को लेकर भी स्थिति स्पष्ट होनी चाहिए.
रक्षा मामलों के विशेषज्ञ ब्रह्म चेलानी ने ट्वीट किया है, ''किसी भी सौदे में कुछ दिया जाता है और कुछ लिया जाता है. लेकिन भारत ने चीन के साथ जो समझौता (पैंगोंग इलाक़े को लेकर) किया है वो बेहद सीमित है.''
रणनीतिक और सामरिक मामलों के विशेषज्ञ ब्रह्म चेलानी कहते हैं कि दो देशों के बीच समझौते लेन-देन पर आधारित होते हैं. लेकिन चीन के साथ भारत का समझौता केवल पैंगोंग इलाक़े तक सीमित है, और भारत की पेशकश है. ऐसा लगता है कि सर्दियों से पहले चीन ने जो शर्तें रखी थीं भारत ने उसे मान लिया है और पैगोंग इलाक़े को लेकर समझैता कर नो मैन्स लैंड बनाने पर तैयार हो गया है.
एक अन्य ट्वीट में उन्होंने सवाल किया, ''चीन के आक्रामक रवैये के ख़िलाफ़ भारत खड़ा रहा है और उसने दिखाया है कि वो युद्ध की पूरी तैयारी के साथ भारत हिमालय की सर्दियों के मुश्किल हालातों में भी डटा रह सकता है. ऐसे में बड़े मुद्दों का हल तलाश करने की जगह अपनी मुख्य ताक़त कैलाश रेंज कंट्रोल को हारने को लेकर इस तरह के एक सीमित समझौते के लिए भारत क्यों तैयार हुआ?''
भारत के साथ लंबे वक़्त से जारी तनाव के बीच चीन अब उस मुक़ाम तक पहुँच चुका था जहां उसे इससे कोई फ़ायदा नहीं दिख रहा था बल्कि उसे अपनी छवि के बिगड़ने का अंदेशा था.
भारत सरकार में उम्मीद रखने वालों की राय थी कि देश को अभी और धैर्य दिखाना चाहिए था ताकि समझौते से देश को फ़ायदा मिले, लेकिन शायद दूसरों ने अपना काम कर दिया.
इसके बाद केंद्रीय मंत्री वीके सिंह देश के भीतर माहौल बेहतर करने की कोशिश में चीन के निशाने पर उस वक़्त आ गए जब उन्होंने दावा किया कि लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल पर चीन ने जितनी बार सीमा का उल्लंघन किया उससे अधिक बार तो भारत ने किया है. इसके बाद जब चीनी सेना ने कहा कि वो डिस्इंगेजमेंट की प्रक्रिया शुरू कर दिया है तो इस मुद्दे पर जनभावना बनाने के लिए भारत पूरे चौबीस घटों तक चुप रहा.
शुक्रवार को इस मसले पर रक्षा मंत्रालय की ओर से बयान जारी किया गया था. जिसमें कहा गया था कि ''भारतीय क्षेत्र भारत के नक़्शे के अनुरूप है जिसमें 43,000 स्क्वेयर किलोमीटर का क्षेत्र भी शामिल है जिस पर 1962 से चीन का अवैधक़ब्ज़ा है. यहां तक कि भारत के हिसाब से वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) को फ़िंगर-8 तक माना जाता है न कि फ़िंगर-4 तक. इसी वजह से भारत लगातार फ़िंगर-8 तक पेट्रोलिंग करने का अधिकार बनाए रखना चाहता है और चीन केसाथ वर्तमान सहमति में भी यह शामिल है."
द हिंदू के लिए चीन मामलों पर लिखने वाले अनंत कृष्णन ने भी इस समझौते पर ट्वीट करके अपनी राय दी है.
वो लिखते हैं- "दोनों देशों ने समझौता किया है. भारत फ़िंगर 8 तक गश्त कर सकेगा जबकि चीन ने फ़िंगर 4 तक. यानी दोनों देशों ने अपने क़दम पीछे खींच लिये हैं. पैंगोंग झील के दक्षिण को लेकर भारत सरकार ने जो क़दम उठाया, वोमहत्वपूर्ण दिखाई दे रहा है, क्योंकि उसी की वजह से शायद दोनों पक्षों में इस समझौते पर सहमति बन पाई."
अनंत कृष्णन ने राहुल गांधी के ट्वीट को री-ट्वीट करते हुए लिखा है- किसी भी सार्थक विश्लेषण में ना सिर्फ़ ये नहीं देखना चाहिए कि भारत ने क्या दिया है बल्कि ये भी कि चीन की भी ओर से क्या दिया गया है. बहुत से लोग जिसमें मैं भीशामिल हूं ने सोचा था कि वे F4-8 खाली करने के लिए सहमत होंगे.
विदेश मामलों के जानकार और वरिष्ठ संपादक प्रवीण स्वामी ने भी इस समझौते पर अपना नज़रिया ट्वीट किया है.
उन्होंने लिखा है- इस समझौते का समर्थन करने वालों के लिए ये भारत की बड़ी उपबल्धि है लेकिन आलोचक कहेंगे कि ये पहले जैसी स्थिति तो नहीं है. और भारत का कुछ हिस्सा चीन के कब्ज़े में चला गया है. लेकिन रक्षामंत्री ने जो कहा उसके अनुसार, चीन अपनी सेना की टुकडि़यों को नॉर्थ बैंक में फ़िंगर 8 के पूरब की दिशा में रखेगा. इसी तरह भारत भी अपनी सेना की टुकडि़यों को फ़िंगर 3 के पास अपने स्थायी बेस धन सिंह थापा पोस्ट पर रखेगा. इसी तरह की कार्रवाई साउथ बैंकइलाक़े में भी दोनों पक्षों द्वारा की जाएगी. ये क़दम आपसी समझौते के तहत बढ़ाए जाएंगे और जो भी निर्माण आदि दोनों पक्षों द्वारा अप्रैल 2020 से नॉर्थ और साउथ बैंक पर किया गया है, उन्हें हटा दिया जाएगा और पुरानी स्थिति बना दीजाएगी."
उन्होंने अपने ट्वीट में राजनाथ सिंह के एक बयान का ज़िक्र करते हुए लिखा है - "राजनाथ सिंह ने अपने संबोधन में कई जगह पर कहा कि चीन अपनी सेना की टुकड़ियों को उत्तरी बैंक में फ़िंगर 8 के पूर्व की दिशा की तरफ़ रखेगा. इसी तरहभारत अपनी सेना की टुकड़ियों को फिंगर 3 के पास अपने स्थायी बेस धन सिंह थापा पोस्ट पर रखेगा."
वो आगे लिखते हैं- "इसी तरह की कार्रवाई दक्षिणी तट इलाक़े में भी दोनों पक्षों द्वारा की जायेगी. ये कदम आपसी समझौते के तहत बढ़ाए जाएंगे. साथ ही अप्रैल 2020 के बाद से जो भी निर्माण दोनों पक्षों द्वारा किया गया है, उसे हटा दियाजाएगा."
सीमा से सेनाओं के पीछे हटने को लेकर जिस तरह के मत सामने आ रहे हैं वो काफी मिले-जुले हैं. ज़्यादातर जानकारों का कहना है कि जिस क्षेत्र में भारत की स्थिति मज़बूत थी उसे वहां से हटने के समझौते के साथ ही बाकी सेक्टर्स को लेकर भी दबाव बनाना चाहिए था. (bbc.com)