अंतरराष्ट्रीय
नई दिल्ली, 24 सितम्बर| चीनी अधिकारियों ने शुक्रवार को कहा कि सभी क्रिप्टोकरेंसी से संबंधित व्यवसाय अवैध हैं और क्रिप्टोकरेंसी खनन परियोजनाओं से हटा दिया गया है। ग्लोबल टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, विश्व में बिटकॉइन की आपूर्ति का तीन-चौथाई तक चीन में उत्पादन किया गया है, लेकिन इस प्रक्रिया में बड़ी मात्रा में बिजली की खपत होती है और कोयला जलाने वाले प्लांटों द्वारा उत्पादित ऊर्जा का वायु प्रदूषण में बहुत बड़ा योगदान है।
पिछले कई महीनों में, चीन में कई बड़े वर्चुअल मुद्रा खनन केंद्र, जिनमें दक्षिण-पश्चिम चीन के सिचुआन प्रांत और उत्तरी चीन के आंतरिक मंगोलिया स्वायत्त क्षेत्र शामिल हैं, ऊर्जा खपत के लिए आंशिक रूप से विचार से बाहर क्रिप्टोकरेंसी खनन परियोजनाओं को बंद करने की घोषणा की है।
यह कहा, "देश के केंद्रीय बैंक पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना (पीबीसी) ने शुक्रवार को एक नोटिस में कहा कि वर्चुअल मुद्राओं की कोई कानूनी टेंडरों स्थिति नहीं है। बिटकॉइन और अन्य क्रिप्टोकरेंसीजैसे एथेरियम और टीथर मौद्रिक अधिकारियों द्वारा जारी नहीं किए गए हैं और उनके पास कोई कानूनी टेंडरों पावर नहीं है और इसलिए इसे वैध मुद्रा के रूप में प्रसारित नहीं किया जाना चाहिए।
पीबीसी ने कहा, "सभी अवैध वित्तीय गतिविधियों पर सख्ती से प्रतिबंध लगा दिया गया है और कानूनों के अनुरूप समाप्त कर दिया जाएगा।"
प्रासंगिक अवैध वित्तीय गतिविधियों में शामिल होने से अपराध करने वालों पर देनदारियों के लिए मुकदमा चलाया जाएगा।
बयान मई में राज्य परिषद की वित्तीय स्थिरता और विकास समिति की बैठक से शुरू होने वाली क्रिप्टोकरेंसी पर देश के गहन विनियमन का विस्तार है। ग्लोबल टाइम्स ने कहा कि बैठक ने संकेत दिया कि वर्चुअल मुद्रा व्यापार और खनन गतिविधियों पर एक और कार्रवाई वित्तीय जोखिमों को जड़ से खत्म करने के प्रयासों का हिस्सा है।
शुक्रवार को, राष्ट्रीय विकास और सुधार आयोग (एनडीआरसी), उद्योग और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय और सार्वजनिक सुरक्षा मंत्रालय सहित दस अन्य सरकारी एजेंसियों ने क्रिप्टोकरेंसी खनन को समाप्त करने के लिए एक क्षेत्र के रूप में सूचीबद्ध किया है।
इसके अलावा, बयान में कहा गया है कि सरकारी एजेंसियां प्रवर्तन को आगे बढ़ाएंगी और बिजली उत्पादन फर्मों, विशेष रूप से छोटी कंपनियों को क्रिप्टोकरेंसी खनन गतिविधियों के लिए बिजली प्रदान करने से रोकेंगी, जबकि खनन फर्मों के लिए बिजली की खुद की आपूर्ति पर सख्ती से प्रतिबंध लगा दिया गया है। (आईएएनएस)
जर्मनी 2045 तक जलवायु तटस्थ देश बनना चाहता है. इस स्थिति तक पहुंचने के लिए जर्मनी को अपनी आर्थिक संरचना में बदलाव करना होगा. इसमें अरबों यूरो खर्च होंगे. आखिर जर्मनी ऐसा क्यों करना चाहता है? इससे क्या फायदा होगा?
डॉयचे वैले पर टिम शाउएनबेर्ग की रिपोर्ट-
उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी यूरोप, और साइबेरिया जंगल की आग और तापमान में बेतहाशा वृद्धि से जूझ रहे हैं. दक्षिण पूर्व एशिया में तूफानों का कहर देखने को मिला. वहीं, जर्मनी और चीन में बाढ़ की वजह से काफी नुकसान हुआ. यह सब जलवायु परिवर्तन की वजह से हो रहा है.
पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन से जूझ रही है. कहीं अचानक बाढ़ आ रही है, तो कहीं बेतहाशा गर्मी पड़ रही है. ऐसे में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में तेजी से कटौती ही एक उपाय है जो तापमान को बढ़ने और मौसम को तेजी से बदलने से रोक सकती है.
उच्चतम न्यायालय द्वारा पुरानी योजनाओं को आंशिक रूप से असंवैधानिक घोषित किए जाने के बाद, जर्मनी ने 2045 तक ग्रीनहाउस गैस तटस्थता का लक्ष्य पाने के लिए इस वर्ष अपने जलवायु कानून में संशोधन किया है.
हालांकि, इसके लिए काफी ज्यादा पैसा खर्च करना होगा. हाल ही में कंसल्टिंग फर्म मैकिन्जी ऐंड कंपनी ने एक अध्ययन किया है. इसके मुताबिक, जर्मनी को कार्बन उत्सर्जन में नेट-जीरो लक्ष्य पाने के लिए 6 ट्रिलियन यूरो खर्च करना होगा.
जर्मनी को अपने आर्थिक उत्पादन का 7% (लगभग 240 बिलियन यूरो) हर साल हरित तकनीकों और बुनियादी ढांचे में निवेश करने की आवश्यकता होगी. मैकिन्जी की सीनियर एसोसिएट और अध्ययन की सह-लेखक रूथ ह्यूस ने कहा कि यह एक "अभूतपूर्व कार्य" है.
अगले 10 साल महत्वपूर्ण
कुल मिलाकर, इसके लिए 1 ट्रिलियन यूरो अलग से निवेश करने की जरूरत होगी. वहीं, 5 ट्रिलियन यूरो हरित तकनीक के लिए खर्च करना होगा. इस धन का इस्तेमाल इलेक्ट्रिक कार की सब्सिडी देने के लिए किया जा सकता है.
इसके अलावा, इस पैसे का इस्तेमाल उन उद्यमियों को सहायता पहुंचाने के लिए किया जा सकता है जो पुराने संयंत्रों को चालू रखने की जगह, उत्पादन के लिए जलवायु के अनुकूल प्रक्रिया अपनाना चाहते हैं.
इसमें सार्वजनिक परिवहन में निवेश, इलेक्ट्रिक कारों के लिए चार्जिंग स्टेशन, बैटरी भंडारण, और हरित हाइड्रोजन के लिए पूरे देश में बुनियादी ढांचे का विस्तार करना शामिल है. यह पैसा उन क्षेत्रों में दी जाने वाली सब्सिडी को खत्म करके लाया जा सकता है जो प्रदूषण फैलाते हैं, जैसे कि हवाई यात्रा में दी जाने वाली सब्सिडी को खत्म करना.
ह्यूस कहती हैं, "पैसे से ज्यादा जरूरी है समय. अगले 10 साल काफी महत्वपूर्ण हैं. हमें अपने लक्ष्य पाने के लिए कार्बन उत्सर्जन को तीन गुना तेजी से कम करना होगा."
वह कहती हैं कि सोलर पार्क, बिजली लाइनों या पवनचक्की लगाने की जगह तय करने के लिए अब हमें लंबी प्रक्रिया में समय नष्ट नहीं करना होगा. उनके अनुसार यह न तो पारिस्थितिक और न ही आर्थिक दृष्टिकोण से सही है.
ह्यूस कहती हैं, "इन कामों में जितनी देर होगी, हमें आने वाले समय में उतनी तेजी से काम करना होगा. इससे खर्च बढ़ जाता है. इसलिए यह जरूरी है कि अब पहले की अपेक्षा ज्यादा तेजी से बुनियादे ढांचे तैयार किए जाएं."
कार्बन के भंडारण के लिए निवेश
जर्मनी का ऊर्जा क्षेत्र देश के कार्बन प्रदूषण के लगभग एक तिहाई हिस्से के लिए जिम्मेदार है. साथ ही, हानिकारक गैसों के उत्सर्जन को पिछले 30 वर्षों की तुलना में इस दशक में दोगुनी तेजी से कम किया जाना चाहिए. यह चुनौती उद्योगों के साथ भी है. इन उद्योगों से कुल कार्बन उत्सर्जन का एक चौथाई हिस्सा पैदा होता है.
जलवायु तटस्थता के अन्य उपायों में परिवहन के साधनों का विद्युतीकरण, इस्पात-सीमेंट उद्योगों और अन्य कारोबारों को हरित बिजली की आपूर्ति, और बेहतर बैटरी भंडारण के लिए रीसाइक्लिंग और तकनीक में अधिक निवेश शामिल हैं.
पश्चिमी जर्मनी स्थित ज्यूलिश रिसर्च सेंटर के डेटलेफ स्टोल्टन का कहना है कि जर्मनी के जलवायु तटस्थ होने के लिए कार्बन डाइऑक्साइड की भंडारण प्रक्रियाओं में अनुसंधान और निवेश भी आवश्यक है. वह कहते हैं, "इसके बिना, ऐसा कर पाना संभव नहीं है."
अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव
विशेषज्ञों को उम्मीद है कि आर्थिक संरचना में बदलाव के लिए खर्च होने वाले पैसे का न केवल पर्यावरण पर, बल्कि जर्मनी की अर्थव्यवस्था पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. इससे ज्यादा संख्या में लोगों को रोजगार मिलने की भी उम्मीद है.
मैकिन्जी की स्टडी के लेखकों ने माना कि अतिरिक्त निवेश के लिए बचत का इस्तेमाल किया जा सकता है. इसका मतलब यह है कि सबसे अच्छी स्थिति में, जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले नुकसान भी काफी कम हो जाएंगे.
स्टोल्टन का संस्थान कुल खर्च के अनुमान पर काम कर रहा है. उनका अनुमान है कि 2045 तक जलवायु तटस्थ बनने के लक्ष्य को पाने के लिए 1.8 ट्रिलियन यूरो अतिरिक्त खर्च हो सकते हैं. दूसरे शब्दों में कहें, तो लगभग 70 बिलियन यूरो प्रति वर्ष. करीब इतना ही पैसा जर्मनी के एकीकरण में खर्च हुआ था.स्टोल्टन ने इस साल जुलाई महीन में जर्मनी के पश्चिमी हिस्से में आयी बाढ़ की वजह से हुए जान-माल के नुकसान का हवाला देते हुए कहा, "अभी हम जो देख रहे हैं, उस हिसाब से यह खर्च वहन करने लायक है. हमें राइनलैंड-पैलेटिनेट और नॉर्थ राइन-वेस्टफेलिया के छोटे हिस्सों के पुनर्निर्माण के लिए 30 बिलियन यूरो की आवश्यकता है. विस्तृत तौर पर देखें, तो नुकसान इससे काफी ज्यादा का हुआ है. ऐसे में आप सारी बातें खुद ही समझ सकते हैं."
जर्मनी की संघीय पर्यावरण एजेंसी ने अनुमान लगाया है कि मौजूदा समय में हर एक टन उत्सर्जित होने वाले कार्बन डाईऑक्साइड की लागत 201 यूरो की आ रही है. इस उत्सर्जन की वजह से जलवायु में तेजी से बदलाव हो रहा है.
इसमें न केवल बाढ़, तूफान या सूखे के कारण घरों, सड़कों या फसलों की क्षति शामिल है, बल्कि गर्म लहरों और वायु प्रदूषण की वजह से लोगों के स्वास्थ्य पर भी प्रभाव पड़ रहा है. साथ ही, जंगल और मिट्टी पर भी नकारात्मक असर पड़ रहा है.
कार्बन उत्सर्जन की वजह से, दुनियाभर में 2050 तक पारिस्थितिकी तंत्र को होने वाली क्षति की लागत 14 ट्रिलियन यूरो तक बढ़ सकती है, जो कि पूरी दुनिया की जीडीपी का 7 प्रतिशत है.
पेरिस समझौते का पालन
थिंक टैंक ‘ग्रीन बजट जर्मनी' की कार्यकारी निदेशक कैरोलाइन शेनुइट कहते हैं, "यह निश्चित रूप से कुल मिलाकर सभी के लिए सस्ता है. आज समाज का सबसे कमजोर तबका भी जलवायु परिवर्तन से होने वाले असर से पीड़ित है."
अगर दुनिया के देश पेरिस समझौते पर कायम रहते हैं और जलवायु परिवर्तन को 1.5 डिग्री सेल्सियस (2.7 डिग्री फ़ारेनहाइट) से कम तक सीमित रखते हैं, तो अत्यधिक सामाजिक, पारिस्थितिक, और आर्थिक क्षति को रोका जा सकता है.
मैकिन्से की रिपोर्ट में जर्मनी में जलवायु के अनुकूल बदलाव के लिए स्थितियां पहले से कहीं बेहतर हैं. उपभोक्ता तेजी से टिकाऊ उत्पादों का चयन कर रहे हैं और कई कंपनियां भी टिकाऊ उत्पादों पर विशेष ध्यान दे रही हैं.
अगर जर्मनी 2045 तक जलवायु तटस्थ बनने का लक्ष्य हासिल कर लेता है, इसके बावजूद वह पेरिस समझौते के 1.5 डिग्री सेल्सियस के समझौते को पूरा नहीं कर पाएगा. इसके लिए, जर्मनी को 2038 तक कार्बन फुटप्रिंट को शून्य पर लाना होगा.(dw.com)
चीन अब विदेशों में कोयले से चलने वाले नए बिजली संयंत्र स्थापित नहीं करेगा. अब वह ऐसी योजनाओं में निवेश करना चाहता है जिसमें कम से कम कार्बन का उत्सर्जन हो.
डॉयचे वैले पर स्टुअर्ट ब्राउन की रिपोर्ट-
चीन ने उर्जा के उत्पादन के दौरान कार्बन के उत्सर्जन को कम करने की पहल की है. चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने विदेशों में नए कोयला संयंत्रों का निर्माण बंद करने को लेकर प्रतिबद्धता जताई है. न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा में जिनपिंग ने ‘जलवायु परिवर्तन पर सक्रिय रूप से कार्रवाई करने और हरित और निम्न कार्बन ऊर्जा को बढ़ावा देने' की आवश्यकता पर बल दिया.
जिनपिंग ने संकल्प लिया कि चीन 2030 से पहले कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन कम करने का प्रयास तेज करेगा और 2060 से पहले कार्बन तटस्थता हासिल कर लेगा. उन्होंने यह भी कहा कि चीन दूसरे विकासशील देशों को हरित व निम्न-कार्बन ऊर्जा विकसित करने में भी सहयोग देगा.
विदेशों में कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों में चीन के निवेश को समाप्त करने का संकल्प, इस साल नवंबर महीने में स्कॉटलैंड के ग्लासको में होने वाले जलवायु परिवर्तन सम्मेलन कॉप26 में चर्चा का अहम विषय हो सकता है. इस सम्मेलन में पेरिस समझौते के लक्ष्यों को हासिल करने पर चर्चा होगी.
पिछले साल जापान और दक्षिण कोरिया ने विदेशों में नए कोयला संयंत्रों का निर्माण बंद करने का फैसला लिया था. इसके बाद से, चीन कोयला संयंत्रों का वित्तपोषण करने वाला दुनिया का सबसे बड़ा देश बन गया. चीन की मदद से विशेष रूप से एशिया में 600 नए कोयला संयंत्र स्थापित किए जाने हैं.
फैसले का स्वागत
चीन की इस घोषणा के बाद से अभी भी कई तरह की शंकाएं बनी हुई हैं. जैसे, चीन कोयला संयंत्रों का वित्तपोषण कब से बंद करेगा, सिर्फ सरकारें ऐसा करेंगी या निजी क्षेत्र के जरिए भी किसी तरह की सहायता उपलब्ध नहीं कराई जाएगी, क्या इससे मौजूदा संयंत्र प्रभावित होंगे वगैरह.
अमेरिकी जलवायु राजदूत जॉन केरी ने न्यूयॉर्क में डॉयचे वेले को बताया, "यह स्वागतयोग्य फैसला है. दुनिया के सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जक देश जलवायु परिवर्तन को लेकर साथ मिलकर काम कर रहे हैं. मुझे काफी खुशी है कि राष्ट्रपति शी ने यह महत्वपूर्ण निर्णय लिया है. यह उन प्रयासों की एक अच्छी शुरुआत है जिन्हें हमें ग्लासगो में हासिल करने की आवश्यकता है."
उन्होंने नवंबर महीने में होने वाले कॉप26 जलवायु शिखर सम्मेलन का जिक्र किया जिसमें पेरिस समझौते में तय किए गए लक्ष्यों पर चर्चा की जाएगी. वहीं, यूएन महासचिव एंटोनियो गुटेरश ने भी संयुक्त राष्ट्र महासभा के 76वें अधिवेशन में अमेरिका और चीन द्वारा जलवायु कार्रवाई पर लिए गए संकल्प का स्वागत किया है.
गुटेरेश ने कहा, "जलवायु परिवर्तन पर पैरिस समझौते के तहत, वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लक्ष्य को पाने के लिये कोयले के इस्तेमाल को चरणबद्ध तरीके से खत्म करना काफी महत्वपूर्ण कदम है. कार्बन उत्सर्जन में कटौती के लिए विशेष रूप से काम करना होगा." इस महासभा में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अंतरराष्ट्रीय जलवायु वित्तपोषण को बढ़ाकर, प्रति वर्ष 11 अरब 40 करोड़ डॉलर करने की बात कही है.
बीजिंग में रहने वाली ग्रीनपीस ईस्ट एशिया की नीति सलाहकार ली शुओ कहती हैं, "यह एक सकारात्मक कदम है. इस पहल से पूरी दुनिया में कोयले के इस्तेमाल को कम करने की दिशा में बड़ी कामयाबी मिलेगी. साथ ही, यह कॉप26 शिखर सम्मेलन को भी गति प्रदान करेगा."
वर्ल्ड रिसॉर्स इंस्टीट्यूट में जलवायु और अर्थशास्त्र के वाइस प्रेसिडेंट हेलन माउंटफर्ड कहते हैं, "चीन के संकल्प से पता चलता है कि कोयले की आग बुझाने के लिए, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सार्वजनिक वित्तपोषण को बंद किया जा रहा है. दक्षिण कोरिया और जापान के बाद चीन का संकल्प उस ऐतिहासिक मोड़ को दिखाता है जो दुनिया को सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाले जीवाश्म ईंधन से दूर ले जाता है."
क्या निजी निवेशक निवेश करेंगे?
बोस्टन विश्वविद्यालय वैश्विक विकास नीति केंद्र के निदेशक डॉ. केविन पी. गैलागर कहते हैं कि चीन द्वारा कोयला संयंत्रों में निवेश से दूर होने के बावजूद, निजी क्षेत्र विदेशों में स्थित 87 प्रतिशत कोयला संयंत्रों का वित्तपोषण जारी रख सकते हैं.
वह कहते हैं कि अगर निजी क्षेत्र कोयला संयंत्रों का वित्तपोषण जारी रखते हैं, तो जलवायु के वैश्विक लक्ष्यों को पूरा नहीं किया जा सकेगा. उन्होंने कहा, "अब जब दुनिया की प्रमुख सरकारें साथ मिलकर जलवायु परिवर्तन को लेकर काम कर रही हैं और विदेशी कोयला संयंत्रों का वित्तपोषण न करने का फैसला किया है, तो निजी क्षेत्रों को भी इस नियम का पालन करना चाहिए."
माउंटफर्ड भी इस बात से सहमत हैं कि चीनी कंपनियों और बैंकों को "पेरिस समझौते के लक्ष्यों के मुताबिक इस नई दिशा में आगे बढ़ने की जरूरत है." वहीं, सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी ऐंड क्लीन एयर की प्रमुख विश्लेषक लॉरी मायलीविर्टा का मानना है कि यह घोषणा निजी निवेशकों को हतोत्साहित करेगी.
लॉरी कहती हैं, "इस उच्चस्तरीय बयान से स्पष्ट होता है कि विदेशों में कोयला बिजली परियोजनाओं के लिए कोई भी नया वित्तपोषण या इक्विटी निवेश किसी भी चीनी बैंक या बिजली कंपनी के लिए नुकसानदायक होगा. जिन परियोजनाओं को अभी तक किसी तरह की वित्तीय सहायता नहीं मिली है, वे बंद हो सकती हैं. इसका मतलब यह होगा कि वियतनाम, बांग्लादेश और इंडोनेशिया में जिन संयंत्रों को स्थापित किया जाना था, उन्हें स्थापित करना काफी मुश्किल हो जाएगा."दरअसल, चीनी राष्ट्रपति के बयान को लेकर, चीनी खनिज संसाधनों की दिग्गज कंपनी त्सिंगशान ने पहले ही कह चुकी है कि वह इंडोनेशिया में कोयला बिजली संयंत्रों का निर्माण बंद कर देगी. इंडोनेशिया चीन का सबसे बड़ा विदेशी कोयला बाजार है.
चीन के ऊर्जा विश्लेषक और चाइना डायलॉग के जलवायु लेखक टॉम बैक्सटर ने एक ट्वीट किया और कहा, "कंपनी ने कहा है कि कोयला संयंत्रों में निवेश को समाप्त करने का उसका निर्णय राष्ट्रपति शी जिनपिंग के घोषणा की मूल भावना को सक्रिय रूप से लागू करेगा."
चीन का घरेलू उत्सर्जन भी काफी ज्यादा
विदेश में कोयले के नए संयंत्र के निर्माण पर रोक लगाने की घोषणा करते समय देश में कोयला से होने वाले कार्बन उत्सर्जन की बात नहीं की गई. ग्रीनपीस ईस्ट एशिया के ली शुओ के अनुसार, चीन विदेशों में कोयले से बिजली का उत्पादन करने वाले जितने संयंत्र चला रहा है, उसके 10 गुना देश में हैं. विदेशों में जहां 100 गीगावाट का उत्पादन हो रहा है, वहीं देश में करीब 1200 गीगावाट का उत्पादन हो रहा है. शुओ का कहना है कि देश में कार्बन उत्सर्जन ‘सबसे बड़ी समस्या' है.
जिनपिंग ने हरित सुधार और विकास को हासिल करते हुए, हरित और निम्न-कार्बन अर्थव्यवस्था की ओर तेजी से बदलाव की आवश्यकता पर बल दिया है. इन सब के बावजूद, शुओ को उम्मीद है कि जिनपिंग की घोषणा से ‘घरेलू मोर्चे पर अधिक प्रगति' होगी.
कार्बन ट्रैकर में डेटा वैज्ञानिक डूरंड डिसूजा कहते हैं, "यह घोषणा मजबूत संकेत है कि अब दुनिया में कोयले का इस्तेमाल कम होना शुरू हो जाएगा. चीन इस दिशा में आगे बढ़ते हुए 163 गीगावाट के कोयले के नए संयंत्र स्थापित करने की योजना रद्द कर सकता है. अब समय आ गया है कि चीन, सबसे बड़ा कोयला बिजली उत्पादक के तौर पर बनाई गई अपनी छवि को दूर करे और कम लागत वाले नवीकरणीय उर्जा की ओर कदम बढ़ाए."(dw.com)
अंतरिक्ष की तमाम इंसानी यात्राओं में सेक्स के बारे में जानने की स्वाभाविक चाहत रही है. लेकिन इस पर बात करना वर्जित माना जाता है. आइए आपको बताते हैं कि कॉस्मिक सेक्स के बारे में हमें क्या पता है और क्या नहीं.
डॉयचे वैले पर मैरी सिना की रिपोर्ट-
जर्मन अंतरिक्षयात्री मथियास माउरर साक्षात्कारों के दौरान सहजता से जवाब देते हैं. अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) की अपनी आगामी छह महीने की यात्रा को लेकर पत्रकारों के हर सवाल का उनके पास बेहिचक जवाब होता है. लेकिन एक सवाल से माउरर भी थोड़ा हड़बड़ा जाते हैं- अंतरिक्ष में सेक्स की इच्छा.
डीडब्लू ने उनसे सवाल किया था कि क्या अंतरिक्षयात्रियों की सेक्स की चाहत को लेकर भी आपस में कोई बात हुई है या नहीं. जवाब में मथियास कहते हैं, "इस बारे में हमारी कोई बात नहीं हुई, क्योंकि वो एक प्रोफेश्नल माहौल होता है.”
सेक्स पर संकोच क्यों
लेकिन कमर्शियल उड़ानों की बदौलत ज्यादा से ज्यादा लोग अंतरिक्ष की सैर को जाने लगे हैं. अभी पिछले ही हफ्ते स्पेस एक्स ने चार यात्रियों को पृथ्वी की कक्षा का दौरा कराया था. आज से दस साल में अंतरिक्षयात्रियों का पहला जत्था अपने मंगल मिशन को निकलेगा. और ये कई साल चलेगा.
सेक्सुअलिटी यानी यौनिकता मानव प्रकृति में रची-बसी है. अंतरिक्ष के अभियानों में भी ये कामना अवश्यंभावी तौर पर बनी रहती है. लेकिन अंतरिक्ष विज्ञान में तरक्की के साथ साथ अंतरिक्ष में सेक्स को लेकर हमारी समझ अभी कच्ची ही है.
अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी, नासा (नेशनल एयरोनॉटिक्स ऐंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन) इस बात पर जोर देती रही है कि अंतरिक्ष में इंसानों के बीच सेक्स नहीं हुआ है. अमेरिकी अंतरिक्षयात्री भी इस मुद्दे पर कन्नी काटते रहे हैं. अंतरिक्ष में जो थोड़े बहुत प्रयोग हुए है वे जानवरों पर केंद्रित थे ना कि इंसानों पर.
नासा में सीनियर बायोएथीस्ट के रूप मे 15 साल बिता चुके पॉल रूट वोल्पे ने डीडब्लू को बताया, "अगर हम लंबी अवधि वाली उड़ानों के बारे में गंभीर हैं तो हमें अंतरिक्ष में यौनिकता के बारे में और अधिक जानने की जरूरत है. लाजिमी तौर पर, यौनिकता भी उन स्थितियों का एक हिस्सा होगी.”
अंतरिक्ष में सेक्स
अंतरिक्ष में यौनिकता के मुद्दे पर बात करना सिर्फ इसलिए महत्त्वपूर्ण नहीं है क्योंकि ये एक ऐसी चीज है जो सबके जेहन में धंसी हुई है. ये पूछे जाने पर कि क्या यौनिकता भी अंतरिक्षयात्री की ट्रेनिंग का हिस्सा होती है, मथियास माउरर कहते हैं, "नहीं, लेकिन शायद होनी चाहिए.”
नासा में पूर्व वरिष्ठ चिकित्सा सलाहकार सारालिन मार्क ने डीडब्लू को बताया, "अगर हम कुल स्वास्थ्य के एक अहम घटक की तरह यौन सेहत को देखें तो हमें ये पता होना जरूरी है कि हम व्यक्तियों को किन स्थितियों में डाल रहे हैं.” सेक्स और हस्तमैथुन भौतिक और मानसिक सेहत से जुड़े हैं- अंतरिक्ष में यह तथ्य बदल नहीं जाता.
प्रोस्टेट में बैक्टीरिया पनपने के जोखिम से बचे रहने के लिए पुरुषों का स्खलन अनिवार्य है. ऑर्गेजम यानी सेक्स की चरम अनुभूति की अवस्था भी तनाव और चिंता को दूर करने में उपयोगी पाई गई है और उससे नींद भी अच्छी आती है. भारी दबाव वाले अंतरिक्ष अभियानों में तो ये काफी मददगार है.
क्या अंतरिक्ष में किसी ने सेक्स किया है?
सिर्फ अंदाजा ही लगाया जा सकता है लेकिन लगता है कि अंतरिक्ष में सेक्स तो हुआ है. दो अंतरिक्ष अभियान ऐसे हैं जो अंतरिक्ष में पहले संभोग के घटित होने के लिए चिन्हित किए जा सकते हैं.
अंतरिक्ष की यात्रा करने वाली दुनिया की दूसरी महिला, रूसी अंतरिक्षयात्री स्वेतलाना सावित्सकाया, 1982 में आठ दिनों के लिए सोयूज टी-7 अंतरिक्ष अभियान में शामिल हुई थीं. उनके दो पुरुष सहकर्मी वहां पहले से थे. और ये स्त्री-पुरुष का पहला साझा स्पेस मिशन भी था.
जर्मन अंतरिक्षयात्री उलरिश वॉल्टर ने अपनी किताब ह्योलेनरिटडुर्चराउमउंडत्साइट (दिक-काल का एक भीषण सफर) में उस टीम के डॉक्टर गियोर्गेइविच गाजेन्को के हवाले से दर्ज किया है कि यौन संसर्ग को ही ध्यान में रखकर उस उड़ान की योजना बनाई गई थी.
चर्चा में रहा दूसरा अभियान 1992 का था जब नासा का अंतरिक्ष यान इंडेवर, एक शादीशुदा जोड़े के साथ रवाना किया गया था. मार्क ली और जेन डेविस दोनों अंतरिक्षयात्री थे और नासा में मिले थे. उड़ान से एक साल पहले उन्होंने गुपचुप विवाह कर लिया था. अंतरिक्ष की उनकी साझा उड़ान एक लिहाज से उनका हनीमून था.
धरती से कितना अलग है वहां पर सेक्स?
तो ये माना जा सकता है कि अंतरिक्ष में सेक्स एक वास्तविकता है. लेकिन वो धरती पर होने वाले सेक्स से कितना अलग है? कुछ बुनियादी बातें देखी जाएं- पहली बात है सेक्स की कामना.
हमारे पास सार्वजनिक रूप से जो थोड़ी बहुत सामग्री उपलब्ध है, उससे पता चलता है कि स्पेस में कामोद्दीपन कम रहता है. कम से कम यात्रा की शुरुआत में ऐसा नहीं होता है कि सेक्स की आग भड़क उठे.
ये इसलिए होता है क्योंकि माइक्रोग्रैविटी यानी अंतरिक्ष में महसूस होने वाली भारहीनता, से हॉरमोन में बदलाव होने लगते हैं, जैसे कि एस्ट्रोजन कम होने लगता है. उसके स्तर में कमी को सेक्स की चाहत में गिरावट से जोड़ा जाता है.
दुर्भाग्यवश हम में से बहुत से लोगों को अंतरिक्ष में हॉरमोन के बारे में जानकारी, पुरुषों पर हुए परीक्षणों के आधार पर ही मिलती है. ऐसा इसलिए क्योंकि अंतरिक्षयात्रियों में सिर्फ साढ़े 11 प्रतिशत ही महिलाएं हैं. अंतरिक्ष में जाने वालीं अपेक्षाकृत कम औरतों ने, माहवारी रोकने के लिए गर्भनिरोधक उपायों की सहमति दी हुई होती है. लेकिन इसमें मुश्किल ये आती है कि पता नहीं चल पाता, हॉरमोन में बदलाव कृत्रिम वजहों से आते हैं या अंतरिक्ष उड़ान की वजह से.
अंतरिक्ष में सेक्स करने की इच्छा में बदलाव का दूसरा फैक्टर है अंतरिक्षयात्रियों के समय के बोध में बदलाव. सारालिन मार्क कहती हैं, "अगर आप ठीक इस समय धरती का चक्कर लगा रहे हैं, हर 90 मिनट में आपकी आंतरिक घड़ी की लय बदल जाती है और उससे सब कुछ बदल जाता है, जिसमें आपके सेक्स हॉरमोन भी शामिल हैं और संभवतः आपकी कामेच्छा भी.”
अंतरिक्षयात्री वॉल्टर का अनुभव भी विज्ञान से मेल खाता है. अपनी किताब में वो लिखते हैं कि अंतरिक्ष में अपनी दस दिन छोटी अवधि में उनमें सेक्स की इच्छा ही नहीं जगी. लेकिन एक उम्मीद हैः वॉल्टर के मुताबिक, अंतरिक्षयात्रियों की कामेच्छा, वहां कुछ सप्ताह बिताने के बाद फिर से सामान्य हो जाती है, यानी वापस पटरी पर आ जाती है.
अंतरिक्षयात्रियों में सेक्स की उत्तेजना
वैसे कामेच्छा को लेकर हमारा ज्ञान अभी धुंधला ही है, लेकिन हमारे पास इसकी बेहतर जानकारी है कि क्या अंतरिक्ष में रहते हुए इंसानों में सेक्स की उत्तेजना पैदा हो सकती है या नहीं.
माइक्रोग्रैविटी यानी सूक्ष्मगुरुत्व की वजह से रक्त-प्रवाह का मार्ग उलट जाता है और वो शरीर के निचले हिस्से में जाने के बजाय ऊपर की ओर बहने लगता है- मस्तिष्क और छाती की ओर. इंटरनेट इस बारे में कई किस्म की अटकलों से भरा पड़ा है कि क्या इसी के चलते अंतरिक्ष में पुरुषों का शिश्न खड़ा नहीं हो पाता है.
सारालिन मार्क से जब ये पूछा गया कि स्पेस बोनर यानी अंतरिक्ष में शिश्न के आकार में असाधारण वृद्धि, क्या संभव है, तो उनका जवाब स्पष्ट थाः "जी हां, माइक्रोग्रैविटी उस पर कोई असर नहीं डालती.” रूट वुल्पे भी सहमत हैं: "कोई वजह नहीं कि ऐसा जीवविज्ञानी लिहाज से होना असंभव हो.”
दो बार अंतरिक्ष की यात्रा करने वाले अमेरिकी अंतरिक्षयात्री रॉन गारान को सोशल मीडिया नेटवर्किंग प्लेटफॉर्म- रेडडिट पर हुई एक ऑनलाइन परिचर्चा, आस्क मी ऐनीथिंग में पूछा गया था कि क्या अंतरिक्ष में इरेक्शन संभव है. उनका जवाब थाः "इंसानी जिस्म में जो कुछ भी धरती में घटित होता है वह भला अंतरिक्ष में क्यों नहीं हो सकता.”
औरतों के मामले में भी, अंतरिक्ष में कामोत्तेजना संभव है लेकिन योनि में आर्द्रता जिस भौतिक तरीके से धरती में महसूस होती है वैसी वहां नहीं होती. शून्य गुरुत्व में, निर्बाध बहने के बजाय, द्रव अपने मूल बिंदु पर ही जमा हो जाता है यानी एक बूंद या धब्बा जैसा वहां पर उभर आता है.
जहां चाह वहां राह
जीवविज्ञान की बुनियादी बातें तो बहुत हो गई. अब ये अंदाजा लगाना बाकी रह गया है कि आखिर अंतरिक्ष में सेक्स होता कैसे है. एक बात तो तय हैः अंतरिक्ष में सेक्स करना धरती पर सेक्स करने के मुकाबले ज्यादा मशक्कत का काम है.
शून्य गुरुत्व में, न्यूटन का गति का तीसरा सिद्धांत यानी हरेक क्रिया की बराबर और विपरीत प्रतिक्रिया होती है- एक वास्तविक चुनौती बन जाता है. वोल्पे कहते हैं, "हमें ये अंदाजा नहीं है कि संभोग की क्रिया में गुरुत्व हमारी कितनी मदद करता है. सेक्स में दबाव लगता है. अंतरिक्ष में किसी प्रतिबल की अनुपस्थिति में, संभोग का मतलब आप लगातार अपने साथी को खुद से दूर धकेल रहे होते हैं.”
लेकिन कहते हैं ना, जहां चाह वहां राह. जर्मनी के सरकारी रेडियो एनडीआर को दिए एक इंटरव्यू में वॉल्टर ने सुझाया कि अंतरिक्षयात्री सेक्स के लिए, महासागरों की डॉल्फिनों वाला तरीका अपना सकते हैं जहां एक तीसरी डॉल्फिन संभोगरत अन्य दो साथियों को पकड़े रहती है ताकि वे एकदूसरे से छिटकते न रहें.
वोल्पे के पास एक और आईडिया हैः "अंतरिक्ष स्टेशन की दीवारों में हर चीज वेल्क्रो की चिप्पियों से ढकी रहती है. तो आप उसका फायदा उठा सकते हैं. एक साथी दीवार से सट जाए या चिपक जाए तो काम बन सकता है. अंतरिक्ष में थोड़ा रचनात्मक तो होना ही पड़ेगा.” (dw.com)
जर्मनी का निर्वाचक वर्ग यानी मतदाता समूह बूढ़ा हो रहा है और सिकुड़ भी रहा है. अंगेला मैर्केल के बाद के युग में जर्मन संसद के लिए इसका क्या अर्थ होगा?
डॉयचे वैले पर ईयान बाटेसन, येन्स थुराऊ की रिपोर्ट-
जर्मनी में 26 सितंबर को होने वाले मतदान के लिए करीब छह करोड़ मतदाता हैं. चार साल पहले हुए पिछले आम चुनाव की तुलना में इस संख्या में करीब 13 लाख की गिरावट आई है और आधे से अधिक मतदाता भी 50 साल से अधिक आयु के हैं.
यह बदलाव जर्मनी में व्यापक जनसांख्यिकीय परिवर्तन का हिस्सा है, जिसमें देश में जन्म से अधिक मौतें लगातार जारी हैं. हालांकि प्रवासन ने जर्मनी की आबादी को स्थिर करने में मदद की है, लेकिन उनमें से कई प्रवासी मतदान करने में सक्षम नहीं हैं. नतीजतन, जर्मनी का मतदाता समूह उम्रदराज होता जा रहा है और सिकुड़ता जा रहा है.
एक बूढ़ा मतदाता आधार
जनसंख्या में जैसे-जैसे उम्रदराज लोगों की संख्या बढ़ती जाती है, चुनावों में सत्ता के पीढ़ीगत संतुलन में भी बदलाव होता है. पश्चिमी जर्मनी में साल 1987 के राष्ट्रीय चुनाव में 23 फीसद मतदाता तीस साल से कम उम्र के थे और 26 फीसद मतदाताओं की उम्र साठ साल के आस-पास थी. साल 2021 में होने वाले चुनाव के लिए संघीय रिटर्निंग ऑफिसर को उम्मीद है कि तीस साल से कम उम्र के मतदाताओं की संख्या सिर्फ 15 फीसद रह जाएगी और साठ साल की उम्र वाले मतदाताओं की संख्या 38 फीसद से ऊपर रहेगी.
इस परिवर्तन ने बेबी बूमर्स को प्रभावित किया है, यानी द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पैदा हुई पीढ़ी जो आज अपनी उम्र के साठवें दशक में है. और यह प्रवृत्ति आगे भी जारी रहेगी क्योंकि बाद में पैदा हुए जर्मन नागरिकों के कम बच्चे हैं.
इसके अलावा, पुराने मतदाताओं में मतदान करने की प्रवृत्ति ज्यादा रही है. साल 2017 में हुए पिछले आम चुनाव में 70 वर्ष के ऊपर के मतदाताओं में से 76 फीसद ने मतदान में हिस्सा लिया था और 81 फीसद मतदाता 60 की उम्र के आस-पास थे. इस बीच 21 से 24 आयु वर्ग के मतदाताओं में सिर्फ 67 फीसद ने मतदान में हिस्सा लिया.
बुजुर्ग और युवा मतदाताओं में मतदान की प्रवृत्ति में भी फर्क देखा गया है. डीडब्लू से बातचीत में बर्लिन स्थित इंफ्राटेस्ट डिमैप पोलिंग इंस्टीट्यूट के मैनेजिंग डायरेक्टर निको जीगल कहते हैं, "पुराने मतदाताओं में युवा मतदाताओं की तुलना में दीर्घकालिक पार्टी संबद्धता होने की संभावना अधिक होती है. यह प्रवृत्ति अक्सर जीवन के पहले चरणों में विकसित होती है.”
जर्मनी में पुराने मतदाता क्रिश्चियन डेमोक्रैट या सोशल डेमोक्रैट जैसी जर्मनी की ऐतिहासिक बड़ी पार्टियों के पक्ष में मतदान करते हैं और उनकी निष्ठा बदलने की संभावना बहुत कम होती है.
पूर्व-पश्चिम विभाजन
जर्मन एकीकरण के तीस से भी ज्यादा साल होने के बावजूद, पूर्व और पश्चिम में जर्मन मतदाता कैसे वोट करते हैं, इस पर अभी भी मतभेद हैं. सेंटर-राइट क्रिश्चियन डेमोक्रैटिक यूनियन और उसकी सहयोगी पार्टी, बावेरियन क्रिश्चियन सोशल यूनियन (CSU), सेंटर-लेफ्ट सोशल डेमोक्रैट्स (SPD), प्रो-फ्री मार्केट फ्री डेमोक्रैट्स (FDP) और ग्रीन पार्टी को उनका अधिकांश समर्थन देश के पश्चिमी हिस्से से ही मिलता है.
कम्युनिस्ट लेफ्ट पार्टी और धुर दक्षिणपंथी पार्टी एएफडी को ज्यादातर समर्थन पूर्वी हिस्से से मिलता है. यह पूर्व में कम्युनिस्ट जर्मन डेमोक्रैटिक रिपब्लिक का कम घनी आबादी वाला क्षेत्र है जहां देश की कुल आठ करोड़ 32 लाख में से सिर्फ एक करोड़ 25 लाख की आबादी निवास करती है.
राजनीतिक दलों का समर्थन आय के स्तर से सबसे अधिक प्रभावित होता है. सीडीयू/सीएसयू, एसपीडी और विशेष रूप से ग्रीन्स और एफडीपी के मतदाता आम तौर पर औसत आय से ऊपर वाले होते हैं. एसपीडी के मतदाता आम तौर पर मध्य आय वर्ग वाले होते हैं. और वामपंथी और एएफडी के समर्थक आम तौर पर औसत आय से कम कमाते हैं जिनमें से कई पूर्वी जर्मनी और उन क्षेत्रों में स्थित हैं जो गैर-औद्योगीकरण से प्रभावित हुए हैं.
ग्रीन पार्टी का प्रदर्शन शहरी क्षेत्रों में बेहतर रहता है जहां अपेक्षाकृत युवा और सुशिक्षित आबादी है. ग्रीन्स ने पारंपरिक रूप से युवा वोट का एक बड़ा प्रतिशत जीता है, मसलन साल 2019 के यूरोपीय संसद के चुनाव में उन्हें जर्मनी के 24 साल से कम उम्र के लोगों का 34 फीसद समर्थन हासिल किया.
लेकिन गर्मियों में ग्रीन्स के संक्षिप्त उछाल के दौरान भी, वे पूर्वी भाग में अपनी पैठ बनाने में असफल रहे. पोल्स्टर फोर्सा के अनुसार, जून महीने में पश्चिमी जर्मनी में हुए सर्वेक्षण में 26 फीसद ने जबकि पूर्वी जर्मनी में सिर्फ 12 फीसद ने ग्रीन्स के पक्ष में मतदान करने की इच्छा जताई.
पुरुष और महिलाएं
जर्मनी में साल 2021 के चुनाव के लिए में तीन करोड़ 12 लाख महिलाएं और दो करोड़ 92 लाख पुरुष वोट देने की पात्रता रखते हैं. कुल मिलाकर, संघीय चुनावों में पुरुषों और महिलाओं के मतदान का प्रतिशत लगभग समान है लेकिन 70 साल से अधिक उम्र के पुरुषों की तुलना में महिलाओं की भागीदारी कम होती है.
पार्टी की प्राथमिकताओं के मुताबिक, सीडीयू/सीएसयू पार्टियों और ग्रीन्स पार्टी को हालिया संघीय चुनावों में पुरुषों की तुलना में महिला मतदाताओं का ज्यादा समर्थन मिला जबकि एएफडी के लिए महिलाओं के मुकाबले दोगुने पुरुषों ने मतदान किया.
निवासी जो मतदान नहीं कर सकते
बढ़ती आबादी और जन्म से अधिक मौतों के बावजूद, प्रवासन के कारण जर्मनी की आबादी अब तक काफी हद तक स्थिर रही है. लेकिन उनमें से कई प्रवासी राष्ट्रीय चुनावों में मतदान करने में सक्षम नहीं हैं क्योंकि वे जर्मन नागरिक नहीं हैं.
जर्मनी में पंजीकृत यूरोपीय संघ के नागरिक स्थानीय चुनावों में मतदान करने में सक्षम हैं, लेकिन जर्मनी में रहने वाले करीब एक करोड़ लोग यानी हर आठ में से एक व्यक्ति आम चुनाव में मतदान की योग्यता नहीं रखता, क्योंकि उसके पास जर्मन नागरिकता नहीं है. बर्लिन जैसे महानगर में यह संख्या और भी ज्यादा है क्योंकि जर्मन राजधानी की लगभग एक चौथाई आबादी के पास जर्मन पासपोर्ट नहीं है.
कई विदेशी नागरिकों ने निवास की जरूरतों को पूरा करने के बाद भी जर्मन नागरिक नहीं बनने का विकल्प चुना है क्योंकि इसके लिए उन्हें अपनी पिछली नागरिकता को त्यागना पड़ता है.
उम्र, प्राथमिकताएं और जलवायु परिवर्तन
जब राजनीतिक मुद्दों को प्राथमिकता देने की बात आती है तो उम्र भी एक महत्वपूर्ण कारक बन जाता है. जर्मनी में युवा मतदाताओं के लिए जलवायु परिवर्तन सबसे अधिक दबाव वाला विषय पाया गया है. प्रकृति और जैव विविधता संरक्षण संघ यानी एनएबीयू के एक सर्वेक्षण के अनुसार, बुजुर्ग मतदाताओं के संबंध में ऐसा नहीं है. 65 वर्ष से अधिक आयु वालों में से 60 फीसदी का मानना है कि वे युवा पीढ़ी के जलवायु और प्रकृति संरक्षण हितों के चलते अपने मतदान के निर्णय को प्रभावित नहीं होने देंगे.
एनएबीयू के अध्यक्ष जॉर्ज आंद्रियास क्रूगर सर्वेक्षण को परिणामों को चौंकाने वाला बताते हैं, "हम अन्य सर्वेक्षणों से जानते हैं कि बुंडस्टाग चुनावों के लिए जलवायु और पर्यावरण संरक्षण सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों में से हैं. जलवायु परिवर्तन के परिणामों से सबसे ज्यादा हमारे बच्चों और नाती-पोतों को निपटना होगा.”(dw.com)
सुमी खान
ढाका, 24 सितम्बर | बांग्लादेश के सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को आतंकवादियों के अल्पसंख्यक शिकार झुमोन दास को डिजिटल सुरक्षा अधिनियम के तहत एक हेफाजत-ए-इस्लाम नेता के खिलाफ सोशल मीडिया पर एक आपत्तिजनक पोस्ट के लिए दर्ज एक मामले में सशर्त जमानत दे दी।
एडवोकेट जेड.आई. खान पन्ना ने दास की जमानत याचिका का नेतृत्व किया। उन्होंने आईएएनएस को बताया, "न्यायमूर्ति मुस्तफा जमान इस्लाम और न्यायमूर्ति केएम जाहिद सरवर की अदालत की उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने इस शर्त पर जमानत की अनुमति दी कि दास संबंधित निचली अदालत की अनुमति के बिना अपने गृह जिले से बाहर नहीं जाएंगे।"
वरिष्ठ अधिवक्ता सुब्रतो चौधरी, पन्ना और अधिवक्ता नाहिद सुल्ताना जूथी ने दास की जमानत के लिए तर्क दिया, जबकि सहायक अटॉर्नी जनरल मिजानुर रहमान राज्य के लिए खड़े हुए हैं।
दास ने निचली अदालत में सात बार जमानत याचिकाएं दायर की और उनकी अस्वीकृति के बाद जमानत के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। दास की गिरफ्तारी के बाद से, कई राजनीतिक, सामाजिक और अधिकार संगठन जेल से उनकी रिहाई की मांग कर रहे हैं। उनकी पत्नी, उनके एक साल के बच्चे के साथ, शहर में विभिन्न संगठनों द्वारा आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों में शामिल हुईं और उनकी रिहाई की मांग की।
15 मार्च को, हेफाजत-ए-इस्लाम के तत्कालीन नेता जुनैद बाबूनागरी और मामुनुल हक ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बांग्लादेश यात्रा के विरोध में सुनामगंज के डेराई उपजिला में एक रैली में बात की थी।
हेफाजत कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि शाला उपजिला के हबीबपुर यूनियन परिषद के नोआगांव गांव के दास ने मामुनुल हक के खिलाफ आपत्तिजनक फेसबुक स्टेटस पोस्ट किया था। 16 मार्च को गिरफ्तार दास को अगले दिन एक अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया।
इस बीच, सौ से ज्यादा हेफाजत कार्यकर्ताओं ने 17 मार्च को फेसबुक पोस्ट को लेकर नोआगांव गांव में हिंदू समुदाय पर हमला किया, लगभग 90 घरों और मंदिरों में तोड़फोड़ की और लूटपाट की।
हमले को लेकर शाला थाने में मामला दर्ज कराया गया जबकि दास के खिलाफ इसी थाने में डिजिटल सुरक्षा कानून के तहत मामला दर्ज किया गया था।
दास की पत्नी स्वीटी रानी दास ने कहा कि "जिन्हें हमारे गांव पर हमला करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया, वे मुक्त हो गए लेकिन मेरे पति अभी भी जेल में बंद हैं।"
दास का बेटा सौम्य छह महीने का था जब उसके पिता जेल में बंद हुए। वह 12 सितंबर को एक साल का हो गया और वह अभी तक अपने पिता को पहचान नहीं पाया है, हालांकि उसकी तस्वीर के साथ खेल रहा है। सौम्य के पहले जन्मदिन पर उनकी मौसी ने एक छोटी सी पार्टी रखी। एक छोटा सा केक काटा गया और पास के घरों के कुछ बच्चों को आमंत्रित किया गया।
इस बीच, दास के बड़े भाई, 27 वर्षीय नुपुर दास ने कहा, "रोटी और मक्खन का प्रबंधन करना हमारे लिए एक बड़ी चुनौती है। हमें अब अपने भाई के मामले में पैसा खर्च करना है। मुझे नहीं पता कि यह कब तक जारी रहेगा।"
दास की पत्नी पति की अनुपस्थिति में परिवार चलाने के लिए संघर्ष कर रही थी। (आईएएनएस)
सैन फ्रांसिस्को, 24 सितम्बर | गूगल ने घोषणा की है कि लॉक्ड फोल्डर इन फोटोज जल्द ही सभी एंड्रॉइड डिवाइस पर मिलने लगेगी। द वर्ज की रिपोर्ट के अनुसार, यह फीचर विशेष रूप से जून में नए पिक्सेल फोन पर जारी किए गए थे। गूगल ने अभी यह खुलासा नहीं किया है कि इस फीचर को सभी स्मार्टफोन में कब तक रोलआउट किया जाएगा।
फोटो लॉक किया गया फोल्डर जल्द ही एंड्रॉइड 6.0 और उसके बाद के संस्करण चलाने वाले उपकरणों के लिए उपलब्ध होगा। एक बार यह लाइव हो जाने पर, यूजर्स गूगल फोटो से एक सूचना प्राप्त करने के बाद इस फोल्डर को सेट करने में सक्षम होंगे।
गूगल फोटो लॉक्ड फोल्डर एप्लिकेशन के मुख्य ग्रिड, सर्च और आपके डिवाइस फोटो तक पहुंचने वाले ऐप्स से चयनित चित्रों/वीडियो को छुपाता है।
इसके अलावा, इन तस्वीरों का बैकअप या शेयार नहीं किया जाएगा और इन्हें एक्सेस करने के लिए डिवाइस स्क्रीन लॉक की आवश्यकता होगी। यहां तक कि यूजर्स को सुरक्षित स्थान के अंदर होने पर भी स्क्रीनशॉट लेने की अनुमति नहीं होगी।
गूगल ने पहले एक ट्वीट में कहा,एट द रेट गूगल फोटोज में लॉक किए गए फोल्डर के साथ, आप एक पासकोड संरक्षित स्थान में फोटो जोड़ सकते हैं और जब आप अपने फोन पर फोटो या अन्य ऐप्स के माध्यम से स्क्रॉल करते हैं तो वे दिखाई नहीं देंगे। लॉक किया गया फोल्डर सबसे पहले गूगल पिक्सल और अधिक एंड्रॉइड डिवाइस पर लॉन्च हो रहा है।
गूगल फोटोज एप में लाइब्रेरी - यूटिलिटीज - लॉक्ड फोल्डर में जाकर कोई लॉक्ड फोल्डर सेट कर सकते है। (आईएएनएस)
अरुल लुईस
न्यूयॉर्क, 24 सितम्बर | भारत के विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला के अनुसार, अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कहा है कि वह पाकिस्तान से आतंकवाद पर कार्रवाई करने और यह सुनिश्चित करने के लिए कह रही हैं कि आतंकी समूह नई दिल्ली या वाशिंगटन को निशाना न बनाएं।
उन्होंने कहा कि जब गुरुवार को उनकी बैठक के दौरान आतंकवाद के मुद्दे सामने आए, तो "उपराष्ट्रपति ने उस संबंध में पाकिस्तान की भूमिका का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि वे आतंकवादी समूह थे जो वहां काम कर रहे थे। उन्होंने पाकिस्तान से कार्रवाई करने के लिए कहा ताकि ये समूह अमेरिकी सुरक्षा और भारत की सुरक्षा को प्रभावित नहीं कर सकें।"
श्रृंगला ने जोर देकर कहा कि वह सीमा पार आतंकवाद के तथ्य पर प्रधानमंत्री की ब्रीफिंग से सहमत हैं, और इस तथ्य से भी सहमत हैं कि भारत कई दशकों से आतंकवाद का शिकार रहा है, और इस तरह के आतंकवाद के लिए पाकिस्तान के समर्थन पर लगाम लगाने और बारीकी से निगरानी करने की आवश्यकता है।
दोनों नेताओं के बीच बैठक के बाद वाशिंगटन में पत्रकारों को जानकारी देते हुए उन्होंने कहा कि पहली आमने-सामने की मुलाकात, 'गर्मजोशी और सौहार्द को दर्शाती है।'
उन्होंने कहा कि चर्चा में कोविड -19 महामारी, जलवायु परिवर्तन, प्रौद्योगिकी क्षेत्र में सहयोग, साइबर सुरक्षा और अंतरिक्ष को भी शामिल किया गया था।
व्हाइट हाउस ने बैठक के बाद एक बयान में कहा कि मोदी और हैरिस ने आतंकवाद और साइबर अपराध सहित आधुनिक खतरों का सामना करने के लिए द्विपक्षीय सुरक्षा सहयोग के विस्तार का समर्थन किया।
हैरिस राष्ट्रीय अंतरिक्ष परिषद की अध्यक्ष भी हैं। उन्होंने 'विस्तारित यूएस-भारत अंतरिक्ष सहयोग को प्रोत्साहित किया, और उन्होंने और प्रधानमंत्री मोदी ने अंतरिक्ष पर मौजूदा, मजबूत द्विपक्षीय सहयोग के निर्माण के तरीकों पर चचा की। (आईएएनएस)
अरुल लुईस
न्यूयॉर्क, 24 सितम्बर | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू किए गए विभिन्न कार्यक्रमों के तहत भारत में निवेश और विनिर्माण को आकर्षित करने की काफी संभावनाएं हैं। उनसे मुलाकात करने वाले सीईओ ने भारत को विनिर्माण के लिए एक महत्वपूर्ण गंतव्य बताया है।
क्वालकॉम के सीईओ क्रिस्टियानो अमोन ने गुरुवार को प्रधानमंत्री मोदी के साथ अपनी बैठक के बाद वाशिंगटन में संवाददाताओं से कहा, "सेमीकंडक्टर्स के लिए एक बहुत ही लचीला आपूर्ति श्रृंखला में विविधता लाने और बनाने की आवश्यकता के कारण, हमारा मानना है कि भारत विनिर्माण के लिए एक महत्वपूर्ण गंतव्य हो सकता है।"
150 अरब डॉलर की कंपनी के सीईओ ने कहा, "भारत को निवेश के लिए एक गंतव्य बनाने में आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के मद्देनजर प्रधानमंत्री मोदी का ²ष्टिकोण बहुत सफल रहा है।
भारत के लिए आशावाद का उच्च स्तर तब आया है जब अमेरिका और कई अन्य देश अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं और अपने विनिर्माण आधारों पर चीन पर नजर रखते हुए पुनर्विचार कर रहे हैं, जो रणनीतिक लक्ष्यों के साथ भविष्य की प्रौद्योगिकियों पर अपना कब्जा जमाने की कोशिश कर रहा है।
जब क्वाड के नेता - प्रधान मंत्री मोदी, राष्ट्रपति जो बिडेन और जापान के प्रधान मंत्री योशीहिदे सुगा और ऑस्ट्रेलिया के स्कॉट मॉरिसन - शुक्रवार को शिखर सम्मेलन के दौराना मुलाकात करेंगे तो रणनीतिक महत्व के कारण हाई-टेक का विविधीकरण उनकी प्राथमिकताओं में से एक होने की उम्मीद है।
जापान के व्यावसायिक प्रकाशन निक्केई ने पिछले हफ्ते बताया कि क्वाड शिखर सम्मेलन के संयुक्त बयान का एक मसौदा "सेमीकंडक्टर्स के लिए एक सुरक्षित आपूर्ति श्रृंखला बनाने की दिशा में काम करने के लिए सहमत होना होगा।"
मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र में बोलते हुए, बिडेन ने कहा है कि उभरती प्रौद्योगिकियों में चुनौतियों का सामना करने के लिए क्वाड को आगे बढ़ाया जाएगा।
फस्र्ट सोलर के सीईओ मार्क विडमार ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने औद्योगिक नीति के साथ-साथ व्यापार नीति के बीच वास्तव में मजबूत संतुलन बनाने के लिए जो किया है, वह भारत में विनिर्माण स्थापित करने के लिए फस्र्ट सोलर जैसी कंपनियों के लिए एक आदर्श अवसर है।
उन्होंने कहा, "घरेलू क्षमताओं को सुनिश्चित करने और ऊर्जा स्वतंत्रता और सुरक्षा पर ध्यान देने के साथ अपने दीर्घकालिक जलवायु लक्ष्यों और उद्देश्यों को सुनिश्चित करने के लिए उनकी प्रतिबद्धता सराहनीय है।"
फस्र्ट सोलर दुनिया के सबसे बड़े डेवलपर और ग्रिड से जुड़े फोटोवोल्टिक सौर ऊर्जा प्रणालियों के फाइनेंसर में से एक है।
मंत्रालय द्वारा ट्विटर पर पोस्ट किए गए वीडियो साक्षात्कारों की श्रृंखला में जनरल एटॉमिक्स के सीईओ विवेक लाल ने कहा, "प्रधानमंत्री मोदी द्वारा पेश किए गए बहुत प्रशंसनीय नीतिगत नुस्खे और सुधार निश्चित रूप से भारत में बहुत रुचि और निवेश को उत्प्रेरित करेंगे।"
उन्होंने कहा, "अमेरिकी कंपनियों में मेरे कई सहयोगी भारत को एक बहुत ही आशाजनक गंतव्य के रूप में देखते हैं।"
उन्होंने कहा कि भारत और अमेरिका दोनों में सुधारों ने 'विन-विन' की स्थिति पैदा की है और दोनों देश उनके सहयोग से लाभान्वित हो सकते हैं।
जनरल एटॉमिक्स एक रक्षा और प्रौद्योगिकी कंपनी है और ड्रोन के विकास और निर्माण में अग्रणी है।
एडोब के सीईओ शांतनु नारायण ने कहा कि वह भारत में व्यापार और निवेश के माहौल को बेहतर बनाने के लिए प्रधानमंत्री के बहुत बड़े समर्थक और प्रशंसक हैं।
उन्होंने कहा कि भारत में स्टार्टअप्स के लिए इकोसिस्टम अद्भुत है।
उन्होंने कहा, "वास्तव में जो प्रेरणादायक है, वह यह है कि ये भारतीय स्टार्टअप वास्तव में पूरी दुनिया में अपना विकास कर रहे हैं।"
प्रधानमंत्री मोदी ने निवेश कंपनी ब्लैकस्टोन के सीईओ स्टीफन श्वार्जमैन से मुलाकात की।
प्रधानमंत्री कार्यालय के एक ट्वीट में कहा गया है कि "भारत में निवेश को अधिक गति देते हुए, उन्होंने भारत में विभिन्न निवेश अवसरों पर चर्चा की, जिसमें राष्ट्रीय बुनियादी ढांचा पाइपलाइन और राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन के कारण उत्पन्न होने वाले अवसर शामिल हैं।" (आईएएनएस)
तालिबान के संस्थापकों में से एक और इस्लामी कानून के जानकार ने कहा है कि अफगानिस्तान में एक बार फिर से कठोर सजा लागू की जाएगी
मुल्ला नूरुद्दीन तुराबी तालिबान के संस्थापकों में से एक हैं और इस्लामी कानून की कठोर व्याख्या के जानकार हैं. उन्होंने कहा कि है कि अफगानिस्तान में फिर से फांसी की सजा दी जाएगी और दोषियों के हाथ काटे जाएंगे. हालांकि उन्होंने कहा कि यह सार्वजनिक तौर पर नहीं होगा. पिछली बार जब तालिबान ने अफगानिस्तान पर शासन किया था तो ऐसी सजा सार्वजनिक तौर पर दी जाती थी.
समाचार एजेंसी एसोसिएटेड प्रेस के साथ एक साक्षात्कार में मुल्ला नूरुद्दीन तुराबी ने अतीत में तालिबान की फांसी पर नाराजगी के दावे को खारिज कर दिया. पिछले शासन में फांसी की सजा स्टेडियम में दी जाती थी, जिसे देखने के लिए भारी भीड़ जमा होती थी. तुराबी ने साथ ही अफगानिस्तान के नए शासकों के खिलाफ किसी भी साजिश के लिए दुनिया को चेतावनी दी है.
काबुल में उन्होंने कहा, "स्टेडियम में सजा के लिए सभी ने हमारी आलोचना की, लेकिन हमने उनके कानूनों और उनके दंड के बारे में कभी कुछ नहीं कहा." उन्होंने कहा, "कोई हमें नहीं बताएगा कि हमारे कानून क्या होने चाहिए. हम इस्लाम का पालन करेंगे और कुरान के आधार अपने कानून बनाएंगे."
तालिबानी शासन कैसा होगा
15 अगस्त को जब से तालिबान ने काबुल पर कब्जा कर लिया और देश पर अपना नियंत्रण जमा लिया, अफगानी जनता और दुनिया यह देख रही है कि क्या वे 1990 के दशक के अंत के अपने कठोर शासन को फिर से बनाएंगे या नहीं.
तुराबी की टिप्पणियां यह बताती हैं कि कैसे तालिबान के नेता एक रूढ़िवादी और कठोर नजरिए में उलझे हुए हैं, भले ही वे वीडियो और मोबाइल फोन जैसी तकनीकों को स्वीकार कर रहे हों.
तुराबी अब 60 साल के हो गए हैं. वे तालिबान के पिछले शासन के दौरान न्याय मंत्री और तथाकथित सदाचार प्रचार एवं अवगुण रोकथाम विभाग के प्रमुख थे. उस समय दुनिया ने तालिबान द्वारा दी जाने वाली सजाओं की निंदा की थी. कठोर सजा काबुल के खेल स्टेडियम में या खुले मैदान पर दी जाती थी. सजा को देखने के लिए अक्सर सैकड़ों अफगान पुरुष आते थे.
गोली मारकर दी जाती थी सजा
सजायाफ्ता हत्यारों को आमतौर पर एक ही गोली में मार दिया जाता था. सजा को अंजाम पीड़ित परिवार देता था, जिसके पास "ब्लड मनी" लेने के बदले दोषी को जिंदा रहने देने का विकल्प होता. जो लोग चोरी के दोषी होते थे उनके हाथ काट दिए जाते थे. हाईवे पर डकैती के दोषी का एक हाथ और एक पांव काट दिया जाता था.
सुनवाई और दोषी ठहराने की प्रक्रिया शायद ही कभी सार्वजनिक होती थी और न्यायपालिका भी अक्सर इस्लामी मौलवियों के पक्ष की ओर झुकाव रखता, ऐसे मौलवियों का कानूनी ज्ञान कम और वे धार्मिक निषेधाज्ञा तक सीमित रहते थे.
तुराबी कहते हैं कि इस बार जज जिनमें महिलाएं भी शामिल होंगी, मामलों का फैसला करेंगे, लेकिन अफगानिस्तान के कानूनों की नींव में कुरान होगा. उनके मुताबिक वैसी ही सजा बहाल की जाएगी.
तुराबी कहते हैं, "सुरक्षा के लिए हाथ काटना बहुत जरूरी है." इससे भय पैदा होगा. तुराबी का कहना है कि मंत्रिमंडल इसका अध्ययन कर रहा है कि सजा को सार्वजनिक रूप से देना चाहिए या नहीं. उनके मुताबिक सजा के लिए एक नीति बनाई जाएगी.
एए/वीके (एपी)
अमेरिका के न्यू मेक्सिको में 23,000 साल पुराने मानव पदचिन्ह मिले हैं. इसे इस बात का संकेत माना जा रहा है कि आखिरी हिम युग के अंत से पहले ही उत्तरी अमेरिका में मानव सभ्यता मौजूद थी.
इस खोज से इस महाद्वीप में सबसे पहले बसने वाले लोगों का इतिहास हजारों साल पीछे चला गया है. ये पदचिन्ह बहुत पहले ही सूख चुकी एक झील के किनारे मिट्टी में पाए गए. यह इलाका अब न्यू मेक्सिको रेगिस्तान का हिस्सा है. धीरे धीरे इन पदचिन्हों में गाद भर गई और ये ठोस हो कर पत्थर बन गए.
इससे हमारे प्राचीन रिश्तेदारों के होने के सबूत का संरक्षण हो पाया और अब वैज्ञानिकों को उनकी जिंदगी के बारे में विस्तार से जानने का मौका मिला है.
प्राचीन प्रवासन
अमेरिकी पत्रिका साइंस में छपे एक अध्ययन में बताया गया, "कई चिन्ह बच्चों और किशोरों के लगते हैं. वयस्कों के बड़े पदचिन्ह उनसे कम ही हैं. इसका एक कारण तो श्रम विभाजन हो सकता है, जिसके तहत वयस्क ऐसा काम करते हैं जिनमें कौशल लगता हो और 'सामान ढोना और लाना-ले जाना बच्चे करते हैं."
अध्ययन में यह भी लिखा गया, "बच्चे किशोरों के साथ ही चलते थे और दोनों ने साथ मिलकर ज्यादा पदचिन्ह छोड़े हैं." शोधकर्ताओं को इनके अलावा मैमथ, पूर्व ऐतिहासिक भेड़िए और विशालकाय स्लॉथ के पदचिन्ह भी मिले हैं. ऐसा लगता है कि ये पशु भी उसी समय उस झील के आस पास थे जब ये मानव वहां गए थे.
अमेरिका को इंसानों द्वारा बसाए गए आखिरी महाद्वीप के रूप में जाना जाता है. दशकों से सबसे ज्यादा माना जाने वाला सिद्धांत तो यह कहता है कि मानव पूर्वी साइबीरिया से एक जमीनी पुल के जरिए उत्तरी अमेरिका आए थे. यह इलाका आज बेरिंग स्ट्रेट के नाम से जाना जाता है.
अलास्का पहुंचने के बाद ये मानव बेहतर आबहवा की तलाश में दक्षिण की ओर चले गए. मैमथों को मारने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले भालों के सिरों जैसे पुरातात्विक सबूत लंबे समय से 13,500 साल पुरानी एक संस्कृति का संकेत दे रहे थे. इस संस्कृति का तथाकथित क्लोविस संस्कृति से संबंध माना जाता है.
और भी संभावनाएं
इसका नाम न्यू मेक्सिको के एक शहर के नाम पर पड़ा. इसे इस महाद्वीप की पहली सभ्यता माना जाता था और अमेरिकी मूल प्रजाति के नाम से जाने जाने वाले समूहों का अगुआ माना जाता था.
हालांकि पिछले बीस सालों में क्लोविस संस्कृति की अवधारणा को नई खोजों से चुनौती मिली है. इनकी वजह से सबसे पहली बस्तियों की उम्र और पीछे चली गई है. सामान्य रूप से यह नई उम्र भी 16,000 सालों से ज्यादा पुरानी नहीं थी.
यह वो युग है जब तथाकथित "आखिरी ग्लेशियल मैक्सीमम" का अंत हो गया था यानी कि वो काल जिसमें बर्फ की चादरें सबसे ज्यादा क्षेत्रफल में फैली हुई थीं. यह काल करीब 20,000 साल पहले तक चला था.
इसे बेहद अहम माना जाता है क्योंकि यह माना जाता है कि महाद्वीप के उतारी इलाकों के अधिकांश हिस्से बर्फ से ढके होने की वजह से एशिया से उत्तरी अमेरिका और उसके आगे मानव प्रवासन बहुत मुश्किल रहा होगा.
अध्ययन के लेखकों का कहना है कि इससे उत्तरी अमेरिका में इंसानों के होने की पहले से ज्यादा ठोस बेसलाइन सामने आई है. हालांकि यह संभव है कि वो इससे भी पहले आए हों.
सीके/ (एपी, एएफपी)
उत्तर कोरिया ने कहा है कि 1950-53 के युद्ध की औपचारिक समाप्ति की घोषणा दक्षिण कोरिया की अपनी जल्दबाजी है.
उत्तर कोरिया ने दक्षिण कोरिया के साथ संघर्ष को औपाचारिक रूप से खत्म मान लेने की अपील को खारिज कर दिया है. उसने कहा है कि यह अमेरिका की उत्तर कोरिया के खिलाफ आक्रामक नीति को छिपाकर रखने की चाल भी हो सकती है.
संयुक्त राष्ट्र महासभा में इस हफ्ते दिए अपने सालाना भाषण में दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति मून जाए-इन ने युद्ध समाप्ति की घोषणा की अपनी अपील को फिर से दोहराया था. उन्होंने कहा था कि इस कदम से परमाण्विकरण रोकने और कोरियाई प्रायद्वीप में स्थायी शांति स्थापित करने में मदद मिल सकती है.
‘पहले अमेरिका पीछे हटे'
उत्तर कोरिया के उप विदेश मंत्री री थाए सोंग ने मून की अपील को खारिज करते हुए कहा कि जब तक अमेरिका की नीतियां नहीं बदलतीं, ऐसा करना जल्दबाजी होगी.
री ने कहा, "यह साफ तौर पर समझा जाना चाहिए कि इस वक्त युद्ध समाप्ति की घोषणा स्थिरता लाने में जरा भी मददगार नहीं होगी बल्कि अमेरिका की आक्रामक नीतियों को ढकने के लिए इसका दुरुपयोग किया जा सकता है.”
उत्तर कोरियाई प्रतिनिधि ने कहा कि अमेरिका के हथियार और सैनिक अभी भी दक्षिण कोरिया और उसके आसपास तैनात हैं और अमेरिका उस इलाके में नियमित युद्धाभ्यास करता है जो दिखाता है कि उत्तर कोरिया की ओर उसकी आक्रामक नीतिया दिन ब दिन और विद्वेषपूर्ण होती जा रही हैं.
कोरियाई युद्ध
उत्तर और दक्षिण कोरिया के बीच 1950 से 1953 के बीच युद्ध हुआ था. यह युद्ध किसी शांति समझौते पर खत्म नहीं हुआ था बल्कि युद्धविराम के आधार पर रोका गया था. इसलिए तकनीकी आधार पर दोनों देश अब भी युद्धरत हैं.
उत्तर कोरिया चाहता है कि युद्ध की औपचारिक समाप्ति के लिए अमेरिका के साथ एक शांति समझौता हो, जिसके तहत अमेरिका के 28,500 सैनिक वापस बुलाए जाएं और प्रतिबंधों में ढील दी जाए
दोनों कोरियाई देशों ने 2018 में युद्ध समाप्ति की घोषणा की बात कही थी जब अमेरिका के साथ कूटनीतिक वार्ता शुरू हुई थी. 2019 में जब तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग उन से मुलाकात की थी तब भी ऐसी अटकलें थीं कि युद्ध समाप्ति का ऐलान हो सकता है.
तब ऐसा कोई ऐलान नहीं हुआ और हालात जस के तस बने रहे. तब डॉनल्ड ट्रंप ने उत्तर कोरिया को परमाणु हथियार छोड़ने के लिए राजी करने की कोशिश भी की थी जिसके बदले प्रतिबंध हटाने की अटकलें भी लगाई गई थीं.
हाल के महीनों में किम जोंग उन ने चेतावनी दी है कि अमेरिका ने अपनी आक्रामकता नहीं छोड़ी तो उत्तर कोरिया अपने परमाणु हथियारों के जखीरे को बढ़ाएगा और ज्यादा आधुनिक हथियार हासिल करेगा. पिछले हफ्ते ही उत्तर कोरिया ने छह महीनों में पहली बार एक मिसाइल परीक्षण किया था.
वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)
-एंथनी जर्चर
अमेरिकी बॉक्सर माइक टाइसन की कही एक बात बहुत प्रचलित है कि ''मुंह पर घूसा पड़ने से पहले सबके पास कोई न कोई योजना ज़रूर होती है.'' यही बात राजनीति पर भी लागू हो जाती है.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने भी अपने कार्यकाल की शुरुआत कई तरह की योजनाओं के साथ की थी जैसे कोरोना महामारी से राहत, बुनियादी ढांचे में निवेश और सरकारी सुरक्षाओं को बढ़ाना.
लेकिन, पिछले डेढ़ महीनों में जो बाइडन पर उसी तरह का एक घूसा पड़ा है यानी उनके सामने मुश्किलें खड़ी हो गई हैं और योजनाएं रखी रह गई हैं.
अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिका की वापसी के बाद बनी स्थितियों के चलते जो बाइडन की पब्लिक अप्रूवल रेटिंग पहली बार नकारात्मक हुई है. वहीं, महंगाई बढ़ी हुई है और कोरोना वायरस के डेल्टा वेरिएंट बढ़ी परेशानियों ने बाइडन प्रशासन की क्षमताओं पर सवाल खड़े कर दिए हैं. खासतौर पर स्वतंत्र मतदाताओं के बीच उनकी छवि पर असर पड़ा है.
हालांकि, उनकी कुछ योजनाएं जैसे महामारी राहत क़ानून बन गए हैं, लेकिन डेमोक्रेट्स के अंदरूनी टकराव और रिपब्लिकन के विरोध के चलते इस एजेंडे के अन्य हिस्सों के भविष्य पर संदेह बना हुआ है.
जो बाइडन के सामने इस समय कई चुनौतियां हैं जो उनके कार्यकाल के पहले ही साल को कांटों भरा रास्ता बना रही हैं.
हालांकि, चुनौतियां राजनीतिक सफलता के लिए मौके लेकर आती हैं लेकिन इनसे राजनीतिक रसातल में गहरे डूबने का ख़तरा भी बना रहता है.
'बिल्ड बैक बेटर' और 'केयरिंग इकोनॉमी' पर सफलता, विफलता निर्भर
इस साल की शुरुआत में डेमोक्रेट्स ने राष्ट्रपति कार्यकाल के पहले आधे हिस्से के लिए बाइडन के विधायी एजेंडे को लागू करने के लिए दो चरणीय योजना बनाई थी.
पहला था द्विदलीय बुनियादी ढांचा खर्च पैकेज. सीनेट ने इसे अगस्त में पास कर दिया लेकिन अब ये हाउस ऑफ़ रिप्रेज़ेनटेटिव्स में अटका पड़ा है.
बाइडन की योजना के खरबों डॉलर के दूसरे हिस्सा को लेकर कदम उठाना बाकी है. इससे हिस्से में बच्चों की देखभाल, शिक्षा, स्वास्थ्य, बुज़ुर्गों की देखभाल, परिवार के लिए छुट्टियां आदि कल्याणकारी कार्य शामिल हैं.
बाइडन के इन दो प्रस्तावों 'बिल्ड बैक बेटर' और 'केयरिंग इकोनॉमी' पर इस साल उनकी सफलता या विफलता निर्भर करती है.
दूसरा पैकेज डेमोक्रेटिक वोट के ज़रिए कांग्रेस में पास कराया जा सकता है लेकिन इस पैकेज में होने वाले खर्च और इसके आकार को लेकर सभी डेमोक्रेट्स को तैयार करना आसाना नहीं होगा. डेमोक्रेट्स के अंदरूनी टकराव भी जाहिर होते रहे हैं.
पश्चिमी वर्जिनिया से आने वाले जो मंचिन एक प्रभावित सेंटरिस्ट हैं. उन्होंने साफ़तौर पर कह दिया है कि वो 1.5 ट्रिलियन डॉलर की लागत के पैकेज का समर्थन नहीं करने वाले हैं. उन्होंने चिंता जताई है कि इससे पर्यावरण को नुक़सान पहुंच सकता है, टैक्स बढ़ सकता है और अमेरिका वैश्विक तौर पर कम प्रतिस्पर्धी हो सकता है.
वर्मोंट के बर्नी सैंडर्स राष्ट्रपति उम्मीदवार भी रह चुके हैं. वह कहते हैं कि वो 3.5 ट्रिलियन डॉलर की योजना से कम कुछ भी स्वीकार नहीं करेंगे.
वो सरकार द्वारा बुज़ुर्गों के लिए चलाई जा रही स्वास्थ्य योजना का दायरा बढ़ाना चाहते हैं. ये बुज़ुर्गों के लिए सरकार के लोकप्रिय प्रोग्राम 'मेडिकेयर' को सभी अमेरिकियों के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य इंश्योरेंस योजना में तब्दील करने की ओर एक कदम है.
कोई सीनेटर या पार्टी के भीतर कोई भी गुट कांग्रेस में पारित होने वाले किसी भी खर्च पैकेज की उम्मीदों को झटका दे सकता है.
जो बाइडन को डेमोक्रेटिक पार्टी के अंदर सभी को खुश रखना होगा या कम से कम नाखुशी के साथ नियंत्रित रखना होगा.
आगे और भी मुश्किल मसले आने वाले हैं जैसे अमेरिकी ऋण-सीमा का विस्तार और अगले वित्तीय वर्ष का बजट है जिसे हफ़्तों के अंदर स्वीकृत कराना ज़रूरी है ताकि सरकारी कामकाज में रुकावट न आए.
एक ज़रा-सा भी झटका राष्ट्रपति बाइडन के नाजुक विधायी एजेंडे को पटरी से उतार सकता है.
गर्भपातः एक बड़ा राजनीतिक मसला
ये मसला अगले साल राजनीतिक रूप से गर्माने वाला है. अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट 15 हफ़्ते में गर्भपात पर प्रतिबंध के मिसिसिपी क़ानून पर एक मामले की सुनवाई करने वाला है.
सुप्रीम कोर्ट टेक्सास के उस क़ानून को अनुमति दे चुका है जिसमें छह हफ़्तों के बाद गर्भपात पर प्रतिबंध लगाया गया है. इसे अनुमति देने के साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दे दिए थे कि वो 'रो बनाम वेड' मामले के फ़ैसले को पलट सकता है.
इस मामले में फ़ैसला सुनाया गया था कि अमेरिका का संविधान सरकारी प्रतिबंधों के बावजूद भी महिलाओं के गर्भपात के अधिकार को सुरक्षित करता है.
अगर ऐसा होता है तो राज्यों के कोई क़ानून या नियम बनाने से पहले बाइडन प्रशासन पर महिलाओं के गर्भपात के अधिकार को सुरक्षित करने के लिए क़ानून लाने का दबाव बन सकता है.
बाइडन प्रशासन ने टेक्सास के गर्भपात संबंधी क़ानून ख़िलाफ़ मुक़दमा दायर किया है, लेकिन गर्भपात संबंधी अधिकारों की वक़ालत करने वाले चाहते हैं कि सरकार कांग्रेस में इस मामले को उठाए. लेकिन, ऐसी कोशिशों में रिपब्लिकन रुकावट डाल सकते हैं.
हालांकि, इस क़ानून के ख़िलाफ़ लड़ाई 2022 के मध्यावधि चुनावों तक डेमोक्रेट्स के समर्थकों को व्यस्त रख सकती है. टेक्सास के क़ानून में गर्भपात के लिए इतना कम समय दिया गया है कि उस दौरान कई महिलाओं को गर्भधारण का भी पता नहीं चलता. इसमें रेप या करीबी रिश्तों के बीच हुए गर्भधारण के लिए भी छूट नहीं दी गई है.
इसे अमेरिका में बहुत ही कम समर्थन मिलने वाला है. इस मसले को लगातार उठाकर जो बाइडन उन उदारवादियों को अपनी तरफ कर सकते हैं जो कुछ महीनों पहले उनसे छिटक गए हैं.
लेकिन, अगर जो बाइडन इस मामले को ठीक से नहीं संभाल पाते तो गर्भपात को लेकर हुई हार उनके डेमोक्रेटिक आधार को खिसका सकती है.
कोरोना महामारी
बाइडन सरकार यह मानती आई है कि उनके प्रशासन की सफलता कोरोना महामारी को प्रभावी ढंग से संभालने पर निर्भर करती है.
एक समय ऐसा लगा भी कि अमेरिका ने इस महामारी पर जीत पा ली है. जुलाई में राष्ट्रपति ने अमेरिकियों से कहा था कि उन्हें इस वायरस से 'आज़ादी' मिलने ही वाली है. लेकिन, डेल्टा वेरिएंट के हमले से हालात बदल गए. फिर से नियम सख्त हो गए और अस्पताल उन मरीजों से भरने लगे जिन्होंने वैक्सीन नहीं लगाई थी.
इसके बाद राष्ट्रपति बाइडन के सुर बदल गए और उन्होंने वैक्सीन न लगवाने वाले 25 प्रतिशत लोगों को पूरे राष्ट्र को ख़तरे में डालने के लिए ज़िम्मेदार ठहराया.
उन्होंने बड़ी कंपनियों में कर्मचारियों के लिए वैक्सीनेशन और टेस्टिंग को अनिवार्य करने का आदेश दे दिया. इसके तहत करीब एक करोड़ अमेरिकी कर्मचारी आएंगे.
शुरुआत में ये देखा गया कि वैक्सीन न लगाने वाले लोग इस दबाव पर क्या प्रतिक्रिया देंगे क्योंकि रिपब्लिकंस ने उनके समर्थन में बोलना शुरू कर दिया था. इसे क़ानूनी चुनौती दी जा सकती थी या राजनीतिक प्रतिरोध हो सकता था.
लेकिन, सर्वेक्षणों में सामने आया कि इस फ़ैसले को लेकर बहुमत राष्ट्रपति बाइडन के पक्ष में है. एक मॉर्निंग कंसल्ट सर्वे के मुताबिक 58 प्रतिशत लोगों ने निजी कर्मचारियों के लिए वैक्सीन और टेस्टिंग अनिवार्य करने के फ़ैसले का समर्थन किया.
लगभग इतने ही लोगों ने सरकारी कर्मचारियों और स्वास्थ्यकर्मियों के लिए इसे अनिवार्य बनाने का समर्थन किया. इस सर्वे में दोनों ही फ़ैसलों को 60 प्रतिशत समर्थन मिला.
ये आंकड़े दिखाते हैं कि वैक्सीन से जुड़ी अनिवार्यता डेमोक्रेट्स के लिए राजनीतिक जीत दिलाने वाला एक मुद्दा हो सकता है. लेकिन, बाइडन प्रशासन के लिए ये फायदेमंद तब होगा जब कड़े फ़ैसलों से बेहतर नतीजे भी आएंगे.
अफ़ग़ानिस्तान ने पहले रेटिंग बढ़ाई फिर...
पहले देखा गया था कि अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिका की वापसी जो बाइडन के लिए उपलब्धि बनकर आई है. उनकी अप्रूवल रेटिंग भी बढ़ी हुई थी लेकिन अमेरिकी सेना की वापसी के बाद अफ़ग़ानिस्तान में बनी अराजक स्थिति से जो बाइडन की रेटिंग में गिरावट आ गई.
तालिबान के अफ़ग़ानिस्तान पर कब्ज़े को अमेरिका की हार बताया गया. अमेरिका को अफ़ग़ानिस्तान की बुरी हालत के लिए ज़िम्मेदार ठहराया गया.
हालांकि, सरकार को लगता है कि समय के साथ अफ़ग़ानिस्तान का मुद्दा अपना राजनीतिक असर खो देगा लेकिन फिर भी कई आशंकाएं बनी हुई हैं.
अगर अफ़ग़ानिस्तान इस्लामिक चरमपंथियों के लिए सुरक्षित ठिकाना बन गया और वहां रह रहे अमेरिकियों को धमकाया गया या तालिबान ने अमेरिका के क्षेत्रिय सहयोगियों को अस्थिर करने की कोशिश की तो इससे जो बाइडन के फैसले पर सवाल खड़े हो सकते हैं.
वहीं, रिपब्लिकंस इसे राजनीतिक मुद्दा बनाए रखना चाहते हैं. वो विदेश मंत्री एंटनी ब्लिकन का इस्तीफ़ा मांग रहे है. इसमें कुछ डेमोक्रेट्स भी शामिल हैं.
राजनयिक संबंधों की मुश्किलें
जो बाइडन को घरेलू ही नहीं बल्कि वैश्विक चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है.
जो बाइडन के आठ सालों तक उप-राष्ट्रपति बने रहने और सीनेट की विदेशी संबंध समिति में दशकों बिताने के बाद अंतरराष्ट्रीय मामले उनका अनुकूल पक्ष माने जा रहे थे.
लेकिन अनुभव हमेशा आसान सफलता नहीं दिलाते.
हाल ही में अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के बीच हुए ऑकस समझौते ने फ्रांस को नाराज़ कर दिया है.
यूरोपीय संघ के जिन नेताओं को ये उम्मीद थी कि जो बाइडन अपने पूर्ववर्ती डोनाल्ड ट्रंप की 'अमेरिका फर्स्ट' की नीति में बदलाव लाएंगे, उन्हें अब झटका लगा है.
हालांकि, बहुत कम अमेरिकी मतदाताओं को अमेरिका-फ्रांस संबंधों की मजबूती से फर्क पड़ता है. लेकिन, आने वाले समय में इसके प्रभावों के लेकर विवाद ज़रूर हो सकता है.
बाइडन प्रशासन आगामी वैश्विक जलवायु सम्मेलन में यूरोप के सहयोग की उम्मीद कर रहा है और अमेरिकी मतदताओं (खासतौर पर डेमोक्रेटिक पार्टी के समर्थक) के लिए पर्यावरण बेहद अहम मसला है.
इस हफ़्ते संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठकों के दौरान रुठों को मनाने के लिए जो बाइडन को काफी तैयारी करने की ज़रूरत है. वैक्सीन लगवा चुके यूरोपीय यात्रियों के लिए नवंबर में अपनी सीमाएं खोलना अमेरिकी सौगातों की शुरुआत हो सकती है. (bbc.com)
नई दिल्ली, 23 सितम्बर | कराची में लापता हुए पाकिस्तानी पत्रकार वारिस रजा अपने घर लौट आए हैं और उन्होंने कहा है कि उन्हें सावधानी बरतने की चेतावनी दी गई है। पत्रकार ने हालांकि कहा कि वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अपने अधिकार का प्रयोग करना जारी रखेंगे।
इससे पहले रजा के परिवार ने कहा था कि उसे कराची के गुलशन-ए-इकबाल इलाके में मंगलवार और बुधवार की दरम्यानी रात को हिरासत में लिया गया था। फ्राइडे टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, गुलशन-ए-इकबाल में पुलिस ने हालांकि दावा किया कि उन्हें घटना के बारे में कोई जानकारी नहीं है।
14 घंटे तक लापता रहने के बाद घर लौटते हुए रजा ने बीबीसी को बताया कि उनकी आंखों पर पट्टी बांधी गई थी और उन्हें किसी अज्ञात स्थान पर ले जाया गया। उन्होंने कहा कि लेकर जाने वाले लोगों ने कहा कि वे रेंजर्स के साथ नहीं हैं। उन्होंने उल्लेख किया कि वे एक खुफिया एजेंसी से जुड़े हैं, लेकिन उन्होंने इसका नाम नहीं बताया।
रजा ने रजा ने बीबीसी को बताया कि उनका अपहरण करने वालों ने उन्हें बताया कि वह राष्ट्र के खिलाफ लिख रहे हैं, जिस पर उन्होंने जवाब दिया कि वह पाकिस्तान के संविधान के अनुच्छेद 9 के अनुसार लिख रहे हैं। अपहरण करने वालों ने फिर उससे पूछा कि वह किस लेख के बारे में बात कर रहे हैं, जिस पर रजा ने कहा कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से संबंधित है।
अपहरण करने वाले कथित एजेंसी के लोगों ने उनसे उनके फेसबुक पोस्ट और एक अखबार के लिए लिखे कॉलम के बारे में भी सवाल पूछे। उन्होंने रजा से पूछा, आप हाइब्रिड सिस्टम के खिलाफ क्यों हैं? क्या यह वाकई इतना बुरा है।
रजा ने जवाब दिया कि हाइब्रिड सिस्टम लोकतांत्रिक मानदंडों के खिलाफ है और इसलिए उन्होंने इसका विरोध किया है।
रजा का अपहरण करने वालों ने उनसे कहा कि वह एक ईमानदार व्यक्ति हैं, जिसे इस बारे में सोचना चाहिए कि वह पाकिस्तान मीडिया विकास प्राधिकरण के खिलाफ क्यों हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि पत्रकार को इसके बाद समझाया गया कि सावधान रहें और फिर से इस तरह का काम न दोहराएं।
रजा ने कहा कि उन्होंने जोर देकर कहा कि वह अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को नहीं छोड़ेंगे। बाद में उन्हें गुलशन-ए-इकबाल थाने के पास लाया गया और छोड़ दिया गया।
रजा उर्दू दैनिक एक्सप्रेस से जुड़े हैं और पाकिस्तान की कम्युनिस्ट पार्टी के प्रमुख सदस्य रहे हैं। वे प्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव भी हैं। (आईएएनएस)
वॉशिंगटन, 23 सितम्बर : अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी, वॉशिंगटन में अमेरिकी CEOs के साथ मुलाकात की. उन्होंने टॉप 5 कंपनियों के CEO से मुलाक़ातकी जिसमें 5 CEO में दो भारतीय अमेरिकी हैं. पीएम ने एडोब से शांतनु नारायण, जनरल एटॉमिक्स से विवेक लाल, क्वालकॉम के क्रिस्टियानो आमोन, फर्स्ट सोलर के मार्क विडमार और ब्लैकस्टोन के स्टीफन ए श्वर्ज़मैन से मुलाकात की. अमेरिका की उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस से भी आज उनका मुलाकात का कार्यक्रम है.सूत्रों के अनुसार, Qualcomm के सीईओ क्रिस्टियानो आमोन के साथ पीएम की मुलाकात अच्छी रही. Qualcomm भी भारत में अच्छी खासी मौजूदगी है जिसमें R&D शामिल है. आमोन ने 5 G, पीएम वाणी (PM WANI) सहित अन्य अहम डिजिटल कार्यक्रमों में भारत के साथ काम करने को लेकर उत्सुकता जताई. उन्होंने कहा कि भारत एक बड़ा बाजार है और वे इसे बड़े एक्सपोर्ट मार्केट के तौर पर देखते हैं.
चीन में माता-पिता बच्चों के वीडियो गेम खेलने को लेकर बनाए गए नियम से खुश हैं. नए नियम इसी महीने से लागू हुए हैं. चीन ने कंपनियों के लिए भी गेम को लेकर कड़े निर्देश जारी किए हैं.
ली झांगुओ के दो बच्चे हैं. एक चार साल का और दूसरा आठ साल का, उनके पास खुद का स्मार्टफोन नहीं है लेकिन लाखों चीनी बच्चों की तरह वे ऑनलाइन गेमिंग से वाकिफ हैं. ली कहते हैं, "अगर मेरे बच्चे हमारे मोबाइल फोन या आईपैड लेते हैं और अगर हम उनके स्क्रीन टाइम की बारीकी से निगरानी नहीं करते हैं, तो वे तीन से चार घंटे तक ऑनलाइन गेम खेल सकते हैं." ली कहते हैं अब वे ऐसा नहीं कर पाते हैं.
कई अन्य माता-पिता की तरह ली चीनी सरकार की नई नीति से खुश हैं, जिसके तहत बच्चे शुक्रवार, शनिवार और रविवार को रोज सिर्फ एक घंटा ऑनलाइन गेम खेल पाएंगे.
गेमिंग को लेकर सख्त किए गए नियम
नेशनल प्रेस एंड पब्लिकेशन एडमिनिस्ट्रेशन (एनपीपीए) ने पिछले महीने एक अधिसूचना में कहा था कि बच्चे शुक्रवार शाम से लेकर शनिवार और रविवार की देर शाम 8 बजे से रात 9 बजे के बीच ऑनलाइन गेम खेल सकते हैं.
चीन के 2019 के कानून के मुताबिक बच्चे सप्ताह के आम दिनों में 90 मिनट से अधिक ऑनलाइन गेम नहीं खेल सकेंगे लेकिन अब नियम और कड़े कर दिए गए हैं.
विशेषज्ञों का कहना है कि यह स्पष्ट नहीं है कि क्या ऐसी नीतियां बच्चों को ऑनलाइन गेमिंग की लत से रोकने में मदद कर सकती हैं. क्योंकि बच्चे इसके बजाय सोशल मीडिया में लीन हो सकते हैं. वे कहते हैं कि यह माता-पिता पर निर्भर है कि वे अपने बच्चों को अच्छी आदतें कैसे सिखाएं.
देश में वीडियो गेम की निगरानी करने वाले नियामक के नए दिशा-निर्देशों के मुताबिक सार्वजनिक छुट्टी वाले दिन बच्चे तय समय पर एक घंटा गेम खेल सकते हैं. इससे पहले 18 साल तक के बच्चों को प्रतिदिन 90 मिनट वीडियो गेम खेलने की इजाजत थी. चीन की कम्युनिस्ट सरकार अपने युवाओं पर गेमिंग के नकारात्मक प्रभाव से लेकर बुरी आदतों, और आंखों पर पड़ने वाले असर को लेकर चिंतित है.
प्रेस एंड पब्लिकेशन्स एडमिनिस्ट्रेशन ने एक बयान में कहा, "नवयुवक मातृभूमि का भविष्य हैं और नाबालिगों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की सुरक्षा का जनता के हितों से संबंध है. इससे राष्ट्रीय पुनर्जीवन के प्रति नए लोगों में रूचि जगाने में भी मदद मिलती है.'
ऑनलाइन गेमिंग का चस्का
2018 में सरकारी रिपोर्टों में अनुमान लगाया गया था कि 10 में से एक चीनी नाबालिग इंटरनेट गेमिंग का आदी था. ऐसी समस्याओं के निदान और उपचार के लिए अब चीन में केंद्र खुल गए हैं.
गेमिंग कंपनियों ने बच्चों को समय से अधिक गेम खेलने से रोकने के लिए वास्तविक नाम रजिस्ट्रेशन और फेशियल रिकॉग्निशन तकनीक को अपनाना शुरू कर दिया है. कुछ मामलों में कंपनियां गेम खेलने वाले बच्चों की पहचान के लिए इस तकनीक का छिटपुट तरीके से इस्तेमाल करेगी और ज्यादा समय खेलने वालों को गेम से बाहर कर देगी. नियम में गेमिंग कंपनियों से हिंसक सामग्री पर भी नियंत्रण करने को कहा गया है.
9 साल के बच्चे की मां लियो यंबीन कहती हैं, "कई माता-पिता अपने बच्चों की खराब पढ़ाई के लिए गेमिंग को जिम्मेदार मानते हैं लेकिन मैं इससे असहमत हूं. जब तक बच्चे पढ़ना नहीं चाहेंगे वे खेलने के लिए बहाना निकाल ही लेंगे. गेम पर रोक लगाई जा सकती है लेकिन अब शॉर्ट वीडियो ऐप्स हैं, सोशल मीडिया, टीवी ड्रामा भी है."
बीजिंग में किशोर मनोवैज्ञानिक ताओ रान के मुताबिक, "कुछ नाबालिग बहुत होशियार होते हैं, अगर आपके पास ऐसा करने के लिए एक प्रणाली है जो उन्हें गेमिंग से प्रतिबंधित करें तो वे सिस्टम को हराने की कोशिश करेंगे. वे अपने बड़े रिश्तेदारों के पहचान पत्र लेकर गेम खेल सकते हैं और फेशियल रिकॉग्निशन तकनीक का भी उपाय निकाल लेंगे."(dw.com)
एए/सीके (एपी)
पोलैंड में एलजीबीटी समुदाय के लोगों के खिलाफ घृणा अपराध चरम पर है. दक्षिणपंथी नेताओं के निशाने पर समुदाय के लोग हैं. ऐसे में वे बर्लिन को सुरक्षित ठिकाना मानकर यहां रहना पसंद कर रहे हैं.
जब रूढ़िवादी नेताओं ने अपने भाषणों में एलजीबीटी समुदायों को निशाना बना शुरू किया तो पश्चिमी पोलैंड के एक समलैंगिक व्यक्ति पिओत्र कालवारिषकी ने फैसला किया अब देश छोड़ने का वक्त आ गया है. साल 2019 के यूरोपीय संसद चुनाव के हफ्तों बाद कालवारिषकी और उनके पार्टनर पॉज्नान शहर छोड़कर बर्लिन आ गए. उन्होंने अपने देश में बढ़ते होमोफोबिया के कारण बर्लिन में बसने का फैसला किया. कई और एलजीबीटी सदस्य हैं जो बर्लिन को अपने शहरों की तुलना में ज्यादा सुरक्षित मानते हैं और यहीं पनाह ले रहे हैं.
बर्लिन को मानते हैं सुरक्षित
टेक कंपनी में काम करने वाले 27 साल के कालवारिषकी कहते हैं, "यह पहली बार था जब नेता खुले तौर पर समलैंगिकता विरोधी बयान दे रहे थे. मुझे पता था कि पोलैंड समलैंगिक मित्र देश नहीं है, फिर भी आप बड़े शहरों में समलैंगिक हो सकते हैं. लेकिन यह बहुत ज्यादा हो रहा था."
आइएलजीए-यूरोप समर्थन समूह के मुताबिक एलजीबीटी+ लोगों के लिए कानूनी सुरक्षा के मामले में पोलैंड 27 सदस्यीय यूरोपीय संघ में सबसे नीचे है. देश भर में दर्जनों स्थानीय अधिकारियों ने तथाकथित "एलजीबीटी विचारधारा मुक्त" घोषणाएं जारी की हैं, जिसकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निंदा हुई और यूरोपीय संघ के वित्त पोषण तक पहुंच खोने का खतरा पैदा हुआ.
निशाने पर एलजीबीटी समुदाय
देश की सत्ताधारी कंजर्वेटिव 'लॉ एंड जस्टिस' पार्टी के कार्यकाल में समलैंगिक, उभयलिंगी और ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों पर दबाव बढ़ता गया और पिछले चुनाव में तो उन पर दबाव और बढ़ गया. गैर-बाइनरी न तो पुरुष और न ही खुद को महिला बताने वाले 26 वर्षीय फिफी कुन्सविक्ज के मुताबिक, "दक्षिणपंथी पार्टी के लिए एलजीबीटी+ लोग एक विचारधारा हैं. हम इंसान नहीं है. हम सामान्य नहीं हैं. उन्होंने हमें जनता का दुश्मन बना दिया है."
कुन्सविक्ज साल 2019 में बर्लिन आने के बाद खुद को ज्यादा सुरक्षित मानते हैं. सोशल मीडिया कंपनी में काम करने वाले कुन्सविक्ज कहते हैं, "मैं यहां पोलैंड की तुलना में अधिक सुरक्षित हूं."
पिछले साल दिसंबर में बर्लिन आई 31 वर्षीय लेस्बियन मार्ता मालाचोस्का कहती हैं कि वह वॉरसॉ में अपनी गर्लफ्रेंड का हाथ पकड़ने से डरती थीं क्योंकि नेताओं ने देश में एलजीबीटी विरोधी भावना भड़काई.
मालाचोस्का कहती हैं, "जब हमने सरकार को समलैंगिकता विरोधी कहते हुए सुनना शुरू किया तो हमने समाज में हिंसक व्यवहार का अनुभव किया."
मालाचोस्का भी सोशल मीडिया कंपनी के लिए काम करती हैं. वो कहती हैं, "बर्लिन में किसी को कोई परवाह नहीं कि आप किसके साथ रहते हैं, किससे प्यार करते हैं. यहां किसी को कोई मतलब नहीं."
अपराध बढ़े
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक 2019 पोलैंड में एलजीबीटी+ लोगों के खिलाफ रिपोर्ट किए गए घृणा अपराध दोगुने हो गए. हालांकि असली आंकड़े कहीं अधिक हो सकते हैं क्योंकि लोग रिपोर्ट करने से डरते हैं.
यूरोपीय संघ के 2020 के एक सर्वे में पाया गया कि पोलिश एलजीबीटी+ लोगों में से केवल 16 प्रतिशत ने अपने खिलाफ अपराध की रिपोर्ट करने पुलिस के पास गए. पोलैंड में मानवाधिकार कार्यकर्ता लिडका मकोव्स्का कहती हैं, "चार साल पहले इन मामलों को पुलिस के पास ले जाना आसान था, लेकिन अब एलजीबीटी+ लोग पुलिस को रिपोर्ट करने से डरते हैं."
बर्लिन में रहने वाले कई एलजीबीटी+ समुदाय के लोगों का कहना है कि शहर का मुख्य आकर्षण लिंग और यौन अल्पसंख्यकों के प्रति इसकी स्वीकार्य संस्कृति है. हालांकि शहर में पिछले साल समुदाय के खिलाफ घृणा अपराधों में 36 फीसदी की उछाल दर्ज की गई है.
एए/सीके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
न्यूजीलैंड के राजनीतिक दल माओरी पार्टी ने देश का नाम बदलने का अभियान छेड़ा है. पार्टी चाहती है कि देश का आधिकारिक नाम बदलकर कर आओतिएरोआ कर दिया जाए. पर क्यों?
डॉयचे वेले पर विवेक कुमार की रिपोर्ट
पिछले हफ्ते माओरी पार्टी ने एक ऑनलाइन याचिका शुरू की जिसमें दो मांगें की गई हैं. पहली तो यह कि न्यूजीलैंड का नाम बदलकर आओतिएरोआ कर दिया जाए. और दूसरी, देश के सारे शहरों, कस्बों और जगहों के नाम वापस वह कर दिए जाएं जो अंग्रेजों के आने से पहले माओरी काल में हुआ करते थे.
याचिका कहती है, "अब समय आ गया है कि ते रिओ माओरी को देश की पहली और आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया जाए. हम एक पोलीनीजियन देश हैं. हम आओतिएरोआ हैं."
याचिका में देश की संसद से यह मांग की गई है कि देश का नाम बदलने के साथ ही एक प्रक्रिया शुरू की जाए जिसके तहत 2026 तक देश की तमाम जगहों के वही नाम रख दिए जाएं तो ते रिओ माओरी भाषा में हुआ करते थे.
मांगकोसमर्थन
माओरी पार्टी की इस मांग को भारी समर्थन मिल रहा है. याचिका शुरू होने के दो दिन के भीतर ही उस पर 50 हजार से ज्यादा लोग दस्तखत कर चुके थे. पार्टी के एक नेता राविरी वाइतीती ने पत्रकारों से कहा कि इतनी तेजी से न्यूजीलैंड में शायद ही किसी याचिका को समर्थन मिला हो.
उन्होंने कहा, "पिछले साल के चुनाव ने हमें बताया कि 80 प्रतिशत लोग ते रिओ माओरी को अपनी पहचान का हिस्सा बनाने पर गर्व महसूस करते हैं. हमारी याचिका को मिला समर्थन उस बात की पुष्टि करता है. हम इसके लिए शुक्रगुजार है और कोशिश करते रहेंगे कि हमारी आवाज सुनी जाए."
भारतीय मूल की सपना सामंत न्यूजीलैंड में रहती हैं. पेशे से डॉक्टर और जुनून से मानवाधिकार कार्यकर्ता सामंत कहती हैं कि यह एक जरूरी और सामयिक पहल है. डीडब्ल्यू से उन्होंने कहा, "नाम में यह बदलाव देशाहंकार या राष्ट्रवाद नहीं है. यह साम्राज्यवाद के वक्त में हुई गलतियों को ठीक करने की पहल है."
क्योंउठीहैमांग?
माओरी लोग न्यूजीलैंड के मूल निवासी हैं. वे मानते हैं कि आओतिएरोआ नाम इस जगह को पूर्वी पोलीनिजिया से आए एक यात्री कूपे ने दिया था. यह नाम माओरी लोक कथाओं में 1200-1300 एडी में मिलता है.
इन लोक कथाओं के मुताबिक कूपे, उनकी पत्नी कुरामारोतिनी और उनके जहाज का चालकदल एक ऐसी जगह की खोज में निकले थे जो क्षितिज के पार हो. तब उन्हें सफेद बादल में लिपटी यह जगह मिली. उसे देखकर कुरामारोतिनी चिल्लाईं, ."हे आओ! हे आओ! हे आओतिआ! हे आओतिएरोआ!." (एक बादल, एक बादल! एक सफेद बादल! एक लंबा सफेद बादल!)
इसी कहानी का एक और रूप भी है जिसमें कहा जाता है कि कूपे की बेटी ने जमीन को सबसे पहले देखा था और उस छोटी नाव के नाम पर जगह का नाम रख दिया जो उस वक्त कूपे चला रहे थे.
मौजूदा नाम न्यूजीलैंड का जिक्र 1640 के दशक में मिलता है जब डच यात्री आबेल तस्मान ने न्यूजीलैंड का दक्षिणी द्वीप देखा था. तब इस द्वीप को नीदरलैंड्स के जीलैंड प्रांत के नाम पर न्यूजीलैंड यानी नया जीलैंड कहा गया.
एक सदी बाद अंग्रेज खोजी और यात्री कैप्टन जेम्स कुक ने ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड का सटीक नक्शा बनाने की कोशिश की और तब इस जगह को न्यूजीलैंड के नाम से ही दर्ज किया.
विवादक्याहै?
यूं तो आओतिएरोआ नाम न्यूजीलैंड में आमतौर पर इस्तेमाल होता है. पासपोर्ट में भी इसे प्रयोग किया जाता है. लेकिन देश का नाम बदलने को लेकर बहुत से लोग असहमत हैं क्योंकि वे आओतिएरोआ नाम की ऐतिहासिकता और प्रमाणिकता पर भरोसा नहीं करते.
बहुत से लोग मानते हैं कि आओतिएरोआ नाम न्यूजीलैंड के सिर्फ एक द्वीप के लिए प्रयोग हुआ था ना कि पूरे देश के लिए. दूसरी तरफ यह भी कहा जाता है कि माओरी लोगों ने तो कभी जमीन के नाम रखे ही नहीं, इसलिए यह नाम कुछ ही सौ साल पहले चलन में आया था.
लेबर पार्टी के पूर्व सांसद माइकल बासेट ने मीडिया से बातचीत में कहा, "इन जगहों के लिए माओरी लोगों के पास कोई नाम नहीं था. आओतिएरोआ को तो तुलनात्मक रूप से हाल के समय में स्वीकार किया गया."
देश के पूर्व प्रधानमंत्री विन्सटन पीटर्स ने भी नाम बदलने की अपील का विरोध किया है. उन्होंने ट्विटर पर कहा, "यह माओरी उग्र वामपंथियों की बकवास है. देश और शहरों का नाम बदलना एक मूर्खतापूर्ण उग्रवाद है. हम ऐसा कोई नाम नहीं रखने जा रहे जिसकी कोई ऐतिहासिक विश्वसनीयता नहीं है. हम खुद को न्यूजीलैंड ही रखेंगे."
अबक्याहोगा?
जुलाई में नैशनल पार्टी के एक सदस्य स्टुअर्ट स्मिथ ने नाम बदलने के मुद्दे पर जनमत संग्रह कराने की मांग की थी. उन्होंने कहा कि जब तक जनमत संग्रह नहीं हो जाता, तब तक इस नाम का औपचारिक दस्तावेजों में प्रयोग प्रतिबंधित किया जाना चाहिए.
माओरी याचिका के जवाब में भी कई याचिकाएं शुरू हो चुकी हैं जिनमें नाम बदलने का विरोध किया जा रहा है.
देश के प्रधानमंत्री जसिंडा आर्डर्न ने हालांकि अभी तक इस याचिका पर कोई टिप्पणी नहीं की है लेकिन 2020 में उन्होंने कहा था कि आओतिएरोआ को न्यूजीलैंड के साथ अदल-बदलकर इस्तेमाल करना एक अच्छी बात है. तब उन्होंने कहा था, "हालांकि आधिकारिक नाम बदलने की बात पर हमने अभी विचार नहीं किया है." (dw.com)
ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने कहा है कि उन्होंने फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों से बातचीत करने की कोशिश की है लेकिन वह अब तक सफल नहीं हो पाए हैं. ब्रिटेन ने फ्रांस को गुस्सा थूकने को कहा है.
संयुक्त राष्ट्र और क्वाड नेताओं की बैठक में हिस्सा लेने अमेरिका पहुंचे ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने बुधवार को वॉशिंगटन में कहा कि वह फ्रांस के साथ संबंधों को दोबारा बनाने में सब्र से काम लेंगे.
पिछले हफ्ते फ्रांस ने अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के बीच हुए समझौते पर नाराजगी जताते हुए ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका से अपने राजदूत वापस बुला लिए थे. इस समझौते के चलते ऑस्ट्रेलिया और फ्रांस के बीच 2016 में हुआ अरबों डॉलर का पनडुब्बी समझौता टूट गया था जिससे फ्रांस नाराज है.
बाइडेन-माक्रों बातचीत
अमेरिका ने फ्रांस के साथ बातचीत करके संबंधों को सामान्य करने की दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं. फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने अमेरिकी नेता जो बाइडेन से बुधवार को फोन पर बात की. इसके बाद फ्रांस ने कहा है कि उसका राजदूत अगले हफ्ते अमेरिका लौट जाएगा.
आधे घंटे तक चली इस बातचती को व्हाइट हाउस ने दोस्ताना बताया और कहा कि दोनों नेताओं ने अगले महीने मिलने का कार्यक्रम बनाया है. बातचीत के बाद एक साझा बयान भी जारी किया गया जिसमें कहा गया कि बाइडेन और माक्रों ने विस्तृत मश्विरे की प्रक्रिया शुरू की जिसका मकसद एक दूसरे का भरोसा जीतना है.
व्हाइट हाउस प्रवक्ता जेन साकी ने कई बार पत्रकारों के इस सवाल को नजरअंदाज किया कि जो बाइडेन ने माक्रों से माफी मांगी या नहीं. कई बार पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि बाइडेन ने माना है कि "ज्यादा सलाह मश्विरा किया जा सकता था."
साकी ने कहा, "राष्ट्रपति को उम्मीद है कि यह फ्रांस के साथ अमेरिका से लंबे, महत्वपूर्ण और सहयोगी रिश्तों के सामान्य होने की ओर लौटने की ओर कदम है."
साझा बयान के मुताबिक बाइडेन और माक्रों इस बात पर सहमत हुए हैं कि "फ्रांस और यूरोपीय सहयोगियों से जुड़े रणनीतिक मसलों पर और ज्यादा खुली बातचीत से स्थिति को ज्यादा फायदा होता."
बोरिस जॉनसन की दो टूक
आकुस समझौते के तीसरे पक्ष ब्रिटेन के रुख में ज्यादा नरमी नहीं दिखी है. वॉशिंगटन पहुंचे ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने बिना किसी लाग लपेट के कहा कि फ्रांस को गुस्सा थूक कर आगे बढ़ने के बारे में सोचना चाहिए.
जॉनसन ने कहा कि आकुस समझौता "मूलभूत रूप से वैश्विक सुरक्षा के लिए एक महान कदम है." उन्होंने कहा, "तकनीक साझा करने की एक नई साझीदारी के लिए बहुत समदर्शी तीन सहयोगी कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हुए हैं. ऐसा नहीं है कि इसमें अन्य देश नहीं आ सकते. यह किसी को बाहर धकेलने की कोशिश नहीं है. मिसाल के तौर पर यह चीन के खिलाफ नहीं है."
समझौते के बाद फ्रांस ने ब्रिटेन के साथ होने वाली विदेश मंत्री स्तरीय बैठक रद्द कर दी थी. यह बैठक इसी हफ्ते होनी थी नाराज फ्रांस ने बैठक रद्द करने का फैसला किया. फ्रांस की रक्षा मंत्री फ्लोरेंस पार्ली ने अपने ब्रिटिश समकक्ष बेन वॉलेस से न मिलने का फैसला खुद किया. इस बारे में ब्रिटिश रक्षा मंत्रालय ने कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.
ऑस्ट्रेलिया से नहीं हुई बात
लेकिन ऑस्ट्रेलिया के साथ संबंधों को सामान्य करने की दिशा में खास प्रगति नहीं हो पाई है. मॉरिसन ने कहा है कि उन्होंने भी फ्रांसीसी राष्ट्रपति से फोन पर बात करने की कोशिश की थी लेकिन कामयाबी नहीं मिल पाई.
मॉरिसन ने कहा, "हां, हमने कोशिश की है. और अब तक वह मौका नहीं आया है. लेकिन हम धैर्य रखेंगे."
ऑस्ट्रेलियाई नेता ने कहा कि वह फ्रांस की निराशा समझते हैं और मानते हैं कि अमेरिका फ्रांस के बीच मतभेद अलग तरह के हैं. उन्होंने कहा, "मैं इंतजार करूंगा और जब सही वक्त आएगा और मौका मिलेगा तो हम भी ऐसी ही बातचीत करेंगे."
आकुस समझौते पर अमेरिकी नेताओं से चर्चा करने के बाद मॉरिसन ने कहा कि ऑस्ट्रेलिया, यूके और अमेरिका के बीच त्रिपक्षीय समझौते को दोनों दलों के नेताओं का समर्थन मिला है.
फ्रांस की नाराजगी
फ्रांस ऑस्ट्रेलिया के साथ करीब 60 अरब डॉलर का समझौता रद्द किए जाने से नाराज है. अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और युनाइटेड किंग्डम ने मिलकर एक नया रक्षा समूह बनाया है जो विशेषकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर केंद्रित होगा. इस समूह के समझौते के तहत अमेरिका और ब्रिटेन अपनी परमाणु शक्तिसंपन्न पनडुब्बियों की तकनीक ऑस्ट्रेलिया के साथ साझा करेंगे जिसके आधार पर ऐडिलेड में नई पनडुब्बियों का निर्माण होगा.
इस कदम को क्षेत्र में चीन के बढते प्रभाव के जवाब के तौर पर देखा जा रहा है. लेकिन नए समझौते के चलते फ्रांस की जहाज बनाने वाली कंपनी नेवल ग्रुप का ऑस्ट्रेलिया के साथ हुआ समझौता खत्म हो गया है.
नेवल ग्रुप ने 2016 में ऑस्ट्रेलिया के साथ समझौता किया था जिसके तहत 40 अरब डॉलर की कीमत की पनडुब्बियों का निर्माण होना था, जो ऑस्ट्रेलिया की दो दशक पुरानी कॉलिन्स पनडुब्बियों की जगह लेतीं.
फ्रांस का दावा है कि इस समझौते से पहले उससे सलाह-मश्विरा नहीं किया गया. पिछले हफ्ते फ्रांस के विदेश मंत्री ज्याँ-इवेस ला ड्रिआँ ने कहा था कि ऑस्ट्रेलिया ने आकुस के ऐलान से जुड़ीं अपनी योजनाओं के बारे में उनके देश को सिर्फ एक घंटा पहले बताया.
टीवी चैनल फ्रांस 2 को ला ड्रिआँ ने कहा, "असली गठजोड़ में आप एक दूसरे से बात करते हैं, चीजें छिपाते नहीं हैं. आप दूसरे पक्ष का सम्मान करते हैं और यही वजह है कि यह एक असली संकट है."
रिपोर्टः वीके/एए (रॉयटर्स, एपी)
कार्बन मुक्त भविष्य के लिए जर्मनी ग्रीन हाइड्रोजन को जादुई हथियार मानता है. खासकर उन उद्योगों के लिए जिनका कार्बन उत्सर्जन बहुत ज्यादा है. लेकिन राष्ट्रीय हाइड्रोजन प्लान में चुनाव बाद कुछ बदलाव देखने को मिल सकते हैं.
जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल की सरकार ने अपने बनाए अंतिम कानूनों में से एक की मई में घोषणा कर सबको चौंका दिया था. अपनी उदासीन पड़ी जलवायु साख को चमकाने की कोशिश में उन्होंने जर्मनी को तय लक्ष्य से पांच साल पहले ही यानी 2045 तक कार्बन न्यूट्रल बनाने की घोषणा की. बर्लिन मानता है कि डीकार्बनाइजेशन की इस योजना में इलेक्ट्रिक गाड़ियों जैसे सामान्य बदलावों से इतर हाइड्रोजन भी केंद्रीय भूमिका निभाएगा.
मैर्केल की सरकार ने जून, 2020 में एक राष्ट्रीय हाइड्रोजन रणनीति प्रस्तुत की, जिसका उद्देश्य "उन सेक्टरों में जलवायु संरक्षण को संभव बनाना था, जहां ऐसा किया जाना कठिन है." जैसे- स्टील निर्माण, निर्माण, हवाई यातायात और जहाजों से होने वाला भारी परिवहन.
पर्यावरण मंत्री स्वेन्या शुल्से ने रणनीति पेश करते हुए कहा, "इनमें भी कार्बन न्यूट्रैलिटी "संभव है क्योंकि 'ग्रीन हाइड्रोजन' हल बन सकता है." उन्होंने सिर्फ पवन, सौर ऊर्जा और अन्य नवीकरणीय ऊर्जा से हाइड्रोजन बनाने के जर्मन लक्ष्य के संदर्भ में यह बात कही.
इस योजना में हाइड्रोजन के विश्वसनीय, किफायती और टिकाऊ उत्पादन और इसके परिवहन और भंडारण के लिए एक गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढांचा स्थापित किया जाना है. जिसके लिए सरकार शुरुआत में 7 बिलियन यूरो या 8.2 बिलियन डॉलर की मदद देगी और अतिरिक्त 2 बिलियन यूरो अंतरराष्ट्रीय भागीदारी के जरिए विदेशों से हाइड्रोजन के आयात को सुनिश्चित करने के लिए सुरक्षित रखे जाएंगे.
दरअसल सरकार ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन उपकरण लाने की कोशिश कर रही है, जिससे 2030 तक 5 गीगावाट क्षमता और साल 2040 तक और 5 गीगावाट अतिरिक्त क्षमता हासिल की जा सके. आसान भाषा में कहें तो 5 गीगावाट क्षमता से ग्रीन हाइड्रोजन पांच परमाणु रिएक्टर की संयुक्त शक्ति के बराबर ऊर्जा पैदा करता है, और यह लिथुआनिया की साल भर की ऊर्जा जरूरत के बराबर है.
पर्यावरण सुरक्षा के पाले में सभी राजनीतिक दल
इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि जर्मनी की ग्रीन पार्टी कार्बन उत्सर्जन मुक्त इस अभियान को दिल खोलकर समर्थन दे रही है. जलवायु परिवर्तन पर लोगों की बढ़ती चिंता के बीच ग्रीन पार्टी पर्याप्त शक्तिशाली है कि वह सितंबर के आम चुनावों के बाद इस एक्शन प्लान को बढ़ावा दे सके. चाहे वह गठबंधन में छोटी सहयोगी बनकर ऐसा करे या सरकार से बाहर रहकर.
यह योजना सोशल डेमोक्रेट्स और सीडीयू/सीएसयू की वर्तमान सरकार की ही दिमागी उपज है. इस नाते अगर कंजरवेटिव ब्लॉक की इन पार्टियों से कोई जर्मन चांसलर बना तो उसके ग्रीन हाइड्रोजन योजना से पीछे हटने की संभावना नहीं होगी.
हालांकि धुर दक्षिणपंथी एएफडी पार्टी इस मामले में अलग है. फिलहाल उसके साथ कोई भी पार्टी गठबंधन नहीं करना चाहती. जिससे बिजनेस समर्थक लिबरल फ्री डेमोक्रेट्स (FDP) जर्मनी में ग्रीन हाइड्रोजन को लेकर मुख्यधारा की सोच से बाहर हो जाती है. गैस के स्रोत की बात आने पर एफडीपी ने 'नई तकनीकी को स्वीकार करने वाला' बने रहने की प्रतिबद्धता जताई है. ऐसे में लिबरल लोग मायने रखते हैं क्योंकि पहले की कई सरकारों की तरह वे इस साल भी किंगमेकर बन सकते हैं.
ग्रीन बनाम ब्लू, ग्रे और टरक्वाइज
फिलहाल जर्मनी की सारी हाइड्रोजन 'ग्रे हाइड्रोजन' है, जिसे जीवाश्म हाइड्रोकार्बन्स का इस्तेमाल कर बनाया जाता है. यह अपेक्षाकृत कम खर्चीली है, क्योंकि ग्रीन हाइड्रोजन के मुकाबले इसका दाम करीब पांच गुना कम है. हरा रंग पर्यावरण के लिए सबसे अनुकूल हाइड्रोजन की निशानी है क्योंकि इसे नवीकरणीय ऊर्जा की मदद से इलेक्ट्रोलिसिस के जरिए बनाया जाता है और इसे बनाने की प्रक्रिया पूरी तरह से कार्बन डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन से मुक्त होती है.
फिर ब्लू हाइड्रोजन आती है, जिसे जीवाश्म गैस से बनाया जाता है लेकिन इसे कम कार्बन वाला माना जाता है क्योंकि यह कार्बन डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन को जमीन के नीचे दबाने के लिए कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज (CCS) तकनीकी का इस्तेमाल करती है. और अंतत: टरक्वाइज हाइड्रोजन है, जिसका निर्माण नैचुरल गैस पाइरोलिसिस का इस्तेमाल कर किया जाता है. यह एक ऐसी विधि है जिससे कार्बन डाई ऑक्साइड पैदा होने के बजाए ठोस कार्बन पैदा होता है.
जर्मनी के लिबरल लोगों की तरह ईयू कमीशन ने भी सभी चार तरह के हाइड्रोजन को कार्बन न्यूट्रैलिटी हासिल करने की दिशा में महत्वपूर्ण माना है. उनका कहना है कि हाइड्रोजन बाजार को शुरुआती चरण में आगे बढ़ाने के लिए जीवाश्म आधारित हाइड्रोजन और इसकी कार्बन स्टोरेज क्षमता की जरूरत होगी.
बहस में गहमागहमी भी
हालांकि जर्मनी के ग्रीन हाइड्रोजन रोडमैप ने राजनेताओं, बिजनेसमैन और शिक्षाजगत में एक जीवंत बहस खड़ी कर दी है. एनर्जी कंपनी ई.ऑन की एक वरिष्ठ अधिकारी काथरीना राइषे मानती हैं कि अगले कुछ सालों में "विकल्प ग्रीन और ब्लू हाइड्रोजन नहीं होंगे बल्कि ब्लू हाइड्रोजन और कोयला होंगे." राइषे ने यह बयान जर्मन हाइड्रोजन काउंसिल की चेयरवुमन के तौर पर दिया. यह काउंसिल बिजनेस, सिविल सोसाइटी और पर्यावरणीय समूहों के 25 विशेषज्ञों का एक समूह है, जिन्हें सरकार की ओर से राष्ट्रीय रणनीति की निगरानी के लिए नियुक्त किया गया है.
जुलाई, 2020 में राइषे ने एक काउंसिल रिपोर्ट पेश की थी जिसने ब्लू हाइड्रोजन का जोरदार समर्थन किया गया था. इसमें कहा गया था कि अकेले ग्रीन हाइड्रोजन जर्मन उद्योगों को डीकार्बनाइज करने के लिए पर्याप्त नहीं होगी. और यह हाइड्रोजन मार्केट को एकमात्र स्रोत (नवीकरणीय स्रोतों) तक सीमित कर देगी. "ऐसा करके यह फायदे के बजाए नुकसान ज्यादा करेगी."
हालांकि पर्यावरण समूहों ने सरकार के पर्यावरण को केंद्र में लाने के कदम का स्वागत किया है. बुंड इंवायरमेंटल एनजीओ की वेरेना ग्रेचेन ने डीडब्ल्यू को बताया कि जीवाश्म गैस पर आधारित हाइड्रोजन को पर्यावरण संरक्षण के मामले में "ग्रीन हाइड्रोजन के समान नहीं माना जा सकता." हाइड्रोजन काउंसिल का एक सदस्य होने के नाते ग्रेचेन रिपोर्ट में भी एक असहमति की आवाज रही हैं.
जलवायु थिंक टैंक ई3जी के एक रिसर्चर फेलिक्स हाइलमन ने डीडब्ल्यू को एक ईमेल में बताया, सरकार की मान्यता है कि केवल ग्रीन हाइड्रोजन ही टिकाऊ है, "जो पिछले दरवाजे से लंबे समय तक जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल में बने रहने के खतरे को कम करती है."
बड़े स्तर पर कामकाज
जर्मनी की वर्तमान हाइड्रोजन खपत सालाना 55 टेरावाट घंटे (TWh) है और इसका उत्पादन पैटर्न दुनिया के बाकी हिस्सों के समान ही है, जिसका उत्पादन दुनिया के अन्य हिस्सों की तरह ही प्राकृतिक गैस का उपयोग कर किया जाता है. विशेषज्ञों का आकलन है कि प्लान के मुताबिक 2030 तक हाइड्रोजन के उत्पादन में 5 गीगावाट की बढ़ोतरी इसे केवल 14 टेरावाट घंटे बढ़ा सकेगी. जबकि सरकारी आंकड़ों के मुताबिक उस समय तक हाइड्रोजन की मांग 90-110 टेरावाट घंटे तक पहुंचने का अनुमान है.
सिस्टम अनेलिस्ट ओलिवियर गुइलन और होल्गर हंसेल्का जर्मन हेल्महोल्त्स एसोसिएशन के लिए भविष्य की हाइड्रोजन मांग और इससे जुड़े इंफ्रास्ट्रक्चर की मॉडलिंग कर रहे हैं. शोध संगठनों की वेबसाइट पर प्रकाशित एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि आदर्श तो यही रहेगा कि मांग का लगभग आधा घरेलू सौर और पवन ऊर्जा से पैदा किया जाए लेकिन इसके लिए पहले नवीकरणीय बिजली उत्पादन की क्षमता को अगले दशक में चौगुना करना की जरूरत होगी.
अपनी नीति की घोषणा के बावजूद सरकार को हाइड्रोजन योजना की सीमाओं की जानकारी है और वह उत्तरी यूरोप के साथ ही स्पेन और उत्तरी अफ्रीका के बहुत से पवन और सौर ऊर्जा उत्पादक देशों के साथ आयात साझेदारी स्थापित करने का प्रयास कर रही है. संभावनाओं का एक एटलस विकसित किया जा रहा है ताकि ऐसे इलाकों को खोजा जा सके, जो हाइड्रोजन के उत्पादन और निर्यात के लिए सबसे उपयुक्त हों.
जर्मन उद्योग जगत भी हाइड्रोजन अभियान की तेजी की बराबरी करने की उम्मीद कर रहा है और सरकारी फंडिंग का लाभ पाने के लिए लगभग 20 अरब यूरो की 60 से ज्यादा परियोजनाएं शुरू कर चुका है. ताकि वह उन योजनाओं का लाभ ले सके, जिनका सरकार की ओर से वादा किया गया है. लेकिन फेडरेशन ऑफ जर्मन इंडस्ट्रीज (बीडीआई) के प्रमुख सिगफ्रीड रूसवुर्म निवेश कर रहे लोगों को यह चेतावनी देना जरूरी समझते हैं कि निवेश "मनमाने नहीं होने चाहिए."
रूसवुर्म ने एक जर्मन रेडियो स्टेशन डॉयचलैंडफुंक से कहा, "हमें एक रणनीति की जरूरत है... और हम गारंटी चाहते हैं कि संभावित नए प्लांट संचालन के लिए पर्याप्त हाइड्रोजन की सप्लाई कर सकें. अगर यह सुनिश्चित नहीं किया गया, तो भविष्य में इसके लिए कोई निवेश नहीं आएगा."
अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी ने संयुक्त राष्ट्र की बैठक में शामिल होने की इच्छा जाहिर की है. संयुक्त राष्ट्र की एक समिति इस अनुरोध का मूल्यांकन कर रही है.
आमिर खान मुत्तकी ने इस विषय में संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंटोनियो गुटेरेश को चिट्ठी लिख कर इस समय न्यू यॉर्क में चल रही संयुक्त राष्ट्र जनरल असेंबली की 76वीं आम बहस में अफगानिस्तान का प्रतिनिधित्व करने का अनुरोध किया है. संयुक्त राष्ट्र ने बताया कि चिट्ठी संस्था के न्यू यॉर्क स्थित मुख्यालय को "अफगानिस्तान के इस्लामिक अमीरात" के विदेश मंत्रालय द्वारा भेजी गई है.
चिट्ठी में तालिबान ने दलील दी है कि अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी को "हटा दिया गया है" और दूसरे देश अब उन्हें राष्ट्राध्यक्ष के रूप में मान्यता नहीं देते हैं. चिट्ठी में यह संकेत भी दिया गया है कि तालिबान संयुक्त राष्ट्र में अफगानिस्तान के राजदूत को हटा कर अपने प्रवक्ता सुहैल शाहीन को वहां भेजना चाहता है.
मान्यता का सवाल
तालिबान का कहना है कि मौजूदा राजदूत गुलाम इसकजाई अब देश का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं और उनका मिशन खत्म हो चुका है. अमेरिका, जर्मनी और दूसरे कई राष्ट्र अब तालिबान को अफगानिस्तान के वास्तविक शासक के रूप में देखते हैं, लेकिन उन्होंने अभी तक उसे एक वैध सरकार की मान्यता नहीं दी है.
संयुक्त राष्ट्र सचिवालय ने तालिबान की चिट्ठी को परिचय-पत्र समिति को विचार करने के लिए भेज दिया है. इस समिति में नौ देशों के प्रतिनिधि हैं, जिनमें अमेरिका, रूस, चीन, स्वीडन, नामिबिया, द बहामास, भूटान, सिएरा लियोन और चिली शामिल हैं.
संयुक्त राष्ट्र के प्रवक्ता फरहान हक ने बताया कि इस समिति के पास यह फैसला करने की शक्ति है कि किसी भी देश का प्रतिनिधित्व करने के लिए किस नेता और किस राजदूत को मान्यता दी जाए.
अफगानिस्तान का प्रतिनिधि कौन
हक ने यह भी कहा, "ऐसा नहीं है कि संयुक्त राष्ट्र सरकारों को मान्यता दे रहा है, ऐसा उसके सदस्य देश कर रहे हैं." पूर्व में ऐसे भी मामले हुए हैं जब संयुक्त राष्ट्र में किसी देश का राजदूत उस देश के शासकों से सम्बद्ध नहीं रहा है.
जैसे अफगानिस्तान पर तालिबान का 1990 के दशक के मध्य से 2001 तक नियंत्रण था, लेकिन उस समय संयुक्त राष्ट्र में देश का प्रतिनिधित्व पिछली सरकार के राजदूत ही कर रहे थे, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने तालिबान को मान्यता नहीं दी थी. फिलहाल संयुक्त राष्ट्र में आम बहस 27 सितंबर तक चलेगी, लेकिन अभी यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि बहस में अफगानिस्तान की तरफ से कौन भाग लेगा. (dw.com)
सीके/एए (डीपीए)
अगर आप रात में कई बार सांस लेने में तकलीफ के कारण जग जाते हैं और सुबह आपका मुंह सूखा रहता है, साथ ही पूरे दिन सिर दर्द और थकान महसूस करते हैं तो यह अब्सट्रक्टिव स्लीप एप्निया के कारण हो सकता है.
(dw.com)
'डेंटल स्लीप मेडिसिन' पर हुए एक सम्मेलन के मुताबिक भारत में करीब 40 लाख लोग, खासकर बुजुर्ग और मोटे लोग ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया (ओएसए) सिंड्रोम से पीड़ित हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि अगर कोई व्यक्ति सांस लेने में तकलीफ के कारण रात में कई बार जगता है और पूरे दिन सिर दर्द और थकान के साथ सुबह शुष्क मुंह का अनुभव करता है, तो यह अब्सट्रक्टिव स्लीप एप्निया के कारण हो सकता है.
श्वसन चिकित्सा में ओएसए का आमतौर पर निरंतर पॉजिटिव वायुमार्ग दबाव मशीनों के साथ इलाज किया जाता है, लेकिन दंत चिकित्सा भी आसान प्रबंधन प्रदान करती है.
सरस्वती डेंटल कॉलेज के डीन प्रोफेसर अरविंद त्रिपाठी के मुताबिक , "मोटापा, जीवन शैली का तनाव और दांतों का पूरा गिरना ऊपरी वायुमार्ग में दबाव का कारण बन सकता है. यह सांस लेने पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है. अगर ऐसी स्थिति लंबे समय तक बनी रहती है और अनुपचारित छोड़ दी जाती है, तो यह शरीर की ऑक्सीजन की आवश्यकता को प्रभावित करती है और हृदय और श्वसन संबंधी समस्याएं पैदा कर सकती है."
दंत चिकित्सा के विशेषज्ञों का कहना है कि इस स्थिति का इलाज मैंडिबुलर उन्नति उपकरण के साथ किया जा सकता है, एक मौखिक उपकरण जो अस्थायी रूप से जबड़े और जीभ को आगे बढ़ाता है, गले के कसने को कम करता है और वायुमार्ग की जगह को बढ़ाता है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के लखनऊ कार्यालय के डॉ अंकुर के मुताबित, "लगभग 80 प्रतिशत रोगियों को नहीं पता कि वे ओएसए से पीड़ित हैं और यह घातक हो सकता है. इसलिए लोगों को इसके बारे में बुनियादी जानकारी होनी चाहिए."
खर्राटों का वक्त पर इलाज न किया जाए तो यह स्लीप एप्निया बीमारी बन सकती है. इस हाल में सोते समय सांस कुछ सेकेंड के लिए रुक जाती है. ऐसे में तीखी आवाज के साथ सांस आती है, ये एप्निया कहलाता है.
एए/वीके (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 21 सितम्बर| पाकिस्तान के सूचना एवं प्रसारण मंत्री फवाद चौधरी ने मंगलवार को कहा कि पाकिस्तान में अपनी निर्धारित श्रृंखला से इंग्लैंड और न्यूजीलैंड क्रिकेट टीमों की वापसी, प्रधानमंत्री इमरान खान द्वारा बाद के अफगान अभियानों के लिए पाकिस्तान को आधार के रूप में उपयोग करने पर अमेरिका को साफतौर पर मना करने का परिणाम है। पाकिस्तानी अखबार द एक्सप्रेस ट्रिब्यून की एक हालिया रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है।
जुलाई में, इमरान खान ने स्पष्ट रूप से कहा था कि वह अमेरिका को अपने अफगान अभियानों के लिए पाकिस्तान को आधार के रूप में इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं देंगे और इस बयान से काफी हलचल हुई थी, जिससे मुख्यधारा और सोशल मीडिया पर समान रूप से बहस हुई थी।
मंगलवार को खान की अध्यक्षता में हुई एक कैबिनेट बैठक के बाद एक प्रेस वार्ता में, चौधरी ने कहा कि पाकिस्तान अमेरिका को साफतौर पर मना करने की कीमत चुका रहा है। यह कहते हुए कि राष्ट्रों को इस तरह की कीमत चुकानी होगी, यदि वे अपना सिर ऊंचा रखना चाहते हैं, रिपोर्ट में कहा गया है कि यह वास्तव में भुगतान करने के लिए एक छोटी सी कीमत है और गर्वित राष्ट्र ऐसी कीमतों का भुगतान करते रहते हैं।
सूचना मंत्री ने इंग्लैंड और न्यूजीलैंड द्वारा सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए पाकिस्तान में होने वाले क्रिकेट मैच को छोड़कर अपने देश निकल जाने पर सामने आ रही विभिन्न प्रतिक्रियाओं के बीच यह बयान दिया है। कैबिनेट की चर्चा के बारे में एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, "यदि आप कहते हैं कि बिल्कुल नहीं, तो फिर आपको एक कीमत चुकानी होगी। मुझे लगता है कि देश कीमत चुकाने और ऐसी चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार है।"
चौधरी ने कहा कि न्यूजीलैंड और इंग्लैंड क्रिकेट टीमों द्वारा एक के बाद एक वापसी से अकेले पाकिस्तान टेलीविजन (पीटीवी) को करीब 20 करोड़ से 25 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।
चौधरी ने कहा, "हमने अपने वकीलों के साथ चर्चा शुरू कर दी है कि हम उन्हें अदालतों में कैसे ले जा सकते हैं।"
बता दें कि न्यूजीलैंड और इंग्लैंड ने पाकिस्तान में सुरक्षा कारणों के चलते क्रिकेट सीरीज खेलने से मना कर दिया है, जिसके बाद से ही पाकिस्तानी खेल प्रशंसक निराश हैं और सोशल मीडिया पर अपनी भड़ास निकाल रहे हैं। केवल प्रशंसक ही नहीं, बल्कि पूर्व पाकिस्तानी क्रिकेटर्स से लेकर राजनेता भी इस घटना को लेकर लगातार बयान दे रहे हैं, क्योंकि वह दो देशों की टीमों की ओर से सुरक्षा कारणों से वापस चले जाने के बाद हुए अपमान को सहन नहीं कर पा रहे हैं। (आईएएनएस)
सैन फ्रांसिस्को, 21 सितम्बर | एप्पल के विश्लेषक मिंग-ची कू ने एक नवीनतम शोध नोट में दावा किया है कि क्यूपर्टिनो स्थित टेक दिग्गज अपना पहला फोल्डेबल आईफोन 2024 में लॉन्च कर सकती है, जबकि पहले यह 2023 में होने वाला था। आईमोर ने कुओ के हवाले से कहा, "हमने अंडर-डिस्प्ले फिंगरप्रिंट वाले आईफोन के लॉन्च में देरी और फोल्डेबल आईफोन को क्रमश: 2एच23 और 2024 करने के लिए अपने पूवार्नुमान को संशोधित किया है। हमारा मानना है कि इससे 2022 और 2023 में आईफोन शिपमेंट को नुकसान होगा।"
बिजनेस कोरिया ने हाल ही में बताया कि एप्पल और एलजी एक फोल्डेबल ओएलईडी पैनल विकसित कर रहे हैं जो मोटाई कम करने के लिए ऩक्काशी का उपयोग करता है और आकार में 7.5-इंच की संभावना है।
साइट का मानना है कि एप्पल के पहले फोल्डेबल स्मार्टफोन में क्लैमशेल डिजाइन होगा।
इससे पहले, कुओ ने कहा था कि एप्पल 2016 से फोल्डेबल डिवाइस पर शोध कर रहा है, लेकिन हाल के महीनों में फोल्डेबल आईफोन को लेकर अफवाहें काफी बढ़ गई हैं।
गैलेक्सी जेड फ्लिप जैसी डिजाइन वाला आगामी फोल्डेबल आईफोन भी उसी बाजार में प्रतिस्पर्धी प्रतिद्वंद्वियों की तुलना में अधिक किफायती होगा।
एप्पल भी सैमसंग गैलेक्सी फोल्ड के समान फोल्डिंग डिस्प्ले वाले आईफोन की इंजीनियरिंग की प्रक्रिया में है और आईफोन निर्माता ने सैमसंग से फोल्डेबल डिस्प्ले के एक बैच का आदेश दिया है, यह सुझाव देते हुए कि यह एक फोल्डेबल आईफोन पर काम कर रहा है।
एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि कंपनी अपने फोल्डेबल आईफोन के लॉन्च के बाद आईपैड मिनी को भी बंद कर सकती है।(आईएएनएस)
चीन का एवरग्रांदे समूह अरबों डॉलर के ऋण को चुकाने से चूक सकता है, जिसे लेकर वैश्विक निवेशक चिंता में हैं. कंपनी का कहना है कि उस पर निर्माण और दूसरे क्षेत्र में 38 लाख से ज्यादा लोगों की नौकरियां निर्भर हैं.
चीन के नियामकों ने अभी तक यह नहीं कहा है कि वो एवरग्रांदे समूह को लेकर क्या कर सकते हैं. अर्थशास्त्री उम्मीद कर रहे हैं कि अगर समूह और बैंकों में ऋण चुकाने को लेकर समझौता नहीं हो पाया तो ऐसे में सरकार हस्तक्षेप कर सकती है. लेकिन आशंका है कि कोई भी आधिकारिक समाधान बैंकों और बॉन्ड धारकों के लिए घाटे नहीं बचा पाएगा.
ऑक्सफर्ड इकोनॉमिक्स के टॉमी वू ने एक रिपोर्ट में कहा कि सरकार "कंपनी को बचा लेने की कोशिश करती हुई दिखाई नहीं देना चाहती है", लेकिन संभव है कि "व्यापक जोखिम को घटाने और आर्थिक उथल पुथल को समेटने" के ऋण के स्वरूप को बदलने" की व्यवस्था कर सकती है.
क्या है एवरग्रांदे
चीन की कई बड़ी कंपनियों का ऋण बढ़ता जा रहा है और सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी इसे अर्थव्यवस्था के लिए खतरा मानती है. सरकार ने कंपनियों के ऋण पर लगाम लगाने के लिए कई कोशिशें की हैं और एवरग्रांदे समूह इन कोशिशों के सबसे बड़े पीड़ितों के रूप में सामने आया है.
23 सितंबर को एवरग्रांदे को ब्याज का भुगतान करना है और निवेशकों देखना चाह रहे हैं कि समूह इस भुगतान के बारे में क्या करता है. समूह का मुख्यालय हांग कांग के पास शेनजेन शहर में है. इसकी स्थापना 1996 में की गई थी और धीरे-धीरे ये चीन में घर, ऑफिस टावर और शॉपिंग मॉल बनाने वाला सबसे बड़ा समूह बन गया.
कंपनी का कहना है कि उसके पास दो लाख से भी ज्यादा कर्मचारी हैं और निर्माण और दूसरे क्षेत्रों में 38 लाख से भी ज्यादा लोगों की नौकरियां उस पर निर्भर हैं. कंपनी का यह भी दावा है कि उसके पास 280 शहरों में 1,300 परियोजनाएं चल रही हैं और उसके पास कुल 350 अरब डॉलर की संपत्ति है.
एवरग्रांदे का संस्थापक शू जिआइन 2017 में चीन का सबसे अमीर उद्यमी था. हुरुन रिपोर्ट के मुताबिक तब उसके पास 43 अरब डॉलर की संपत्ति थी. इंटरनेट उद्योगों की सफलता के साथ वो सूची में नीचे आ गया है, लेकिन फिर भी पिछले साल वो देश का सबसे अमीर रियल एस्टेट डेवलपर था.
2020 में हुरुन की परोपकारी व्यक्तियों की सूची में भी उसका नाम सबसे ऊपर था. अनुमान है कि उसने उस साल करीब 42 करोड़ डॉलर दान में दिए. एवरग्रांदे अब इलेक्ट्रिक गाड़ियां, मनोरंजन पार्क, स्वास्थ्य क्लिनिक, मिनरल वाटर और दूसरे उद्योगों में चली गई है.
अभी तक क्या असर हुआ है
इस साल की शुरुआत से लेकर अभी तक हांग कांग शेयर बाजार में कंपनी के शेयरों में 85 प्रतिशत की गिरावट आई है. शू ने कंपनी को ऋण के आधार पर ही बनाया था. वैसे तो पूरा रियल एस्टेट उद्योग ही उधार के पैसों पर चलता है, लेकिन संभव है कि शू ने बाकियों के मुकाबले कुछ ज्यादा ही ऋण ले लिया हो.
30 जून तक एवरग्रांदे का बॉन्डधारकों, बैंकों, ठेकेदारों और दूसरे ऋणदाताओं पर 310 अरब डॉलर की देनदारी थी. इसमें से 37.3 अरब डॉलर तो साल भर के अंदर देना है जो कंपनी की नकद पूंजी (13.5 अरब डॉलर) का लगभग तीन गुना है. एवरग्रांदे तब फंसी जब नियामकों ने रियल एस्टेट से संबंधित ऋण लेने पर नई पाबंदियां लगाईं.
ये पाबंदियां ऋण पर निर्भरता को कम करने के कम्युनिस्ट पार्टी के लंबे अभियान के तहत लगाईं गईं. अर्थशास्त्री एक दशक से भी ज्यादा समय से चेतावनी दे रहे हैं कि चीन के ऋण का बढ़ता स्तर खतरे का कारण बन सकता है. कम्युनिस्ट पार्टी ने 2018 तक इस तरह के वित्तीय जोखिमों को कम करने को एक प्राथमिकता बनाया हुआ है.
लेकिन इसके बावजूद पिछले साल कुल कॉर्पोरेट, सरकारी और आम लोगों का ऋण आर्थिक उत्पादन के 300 प्रतिशत पर पहुंच गया. यह 2018 में 270 प्रतिशत था. यह एक मध्यम आय वाले देश के लिए असामान्य रूप से ज्यादा है.
कम्युनिस्ट पार्टी क्या करना चाह रही है
कम्युनिस्ट पार्टी व्यापार और ऋण-आधारित निवेश की जगह देश के अंदर खपत पर आधारित आर्थिक विकास को बढ़ावा देना चाह रही है. इस वजह से वो ऋण पर लगाम रही है. 2014 के पहले तक तो वित्तीय बाजारों में डर फैलने से बचाने के लिए वो हस्तक्षेप करके कंगाल हो रहे उधारकर्ताओं को बचा लेती थी.
2014 में पार्टी ने उधारकर्ताओं और ऋणदाताओं को जबरदस्ती अनुशासन की राह पर लाने के लिए कई कदम उठाए. इन कदमों के तहत उसने 1949 के बाद पहली बार कॉर्पोरेट ऋण चुकाने में असमर्थता की अनुमति दी. तब से इस तरह की और भी अनुमतियां दी गई हैं, लेकिन उनमें कोई भी उधारकर्ता एवरग्रांदे जितना बड़ा नहीं था.
वैसे तो दूसरी बड़ी रियल एस्टेट कंपनियों का हाल ऐसा नहीं है, लेकिन 2017 के बाद से सैकड़ों छोटी कंपनियां बंद जरूर हुई हैं. उस साल से नियामकों ने निर्माण से पहले मकान बेचने जैसी पैसे इकट्ठे करने के तरीकों पर अंकुश लगाना शुरू कर दिया था.
चीन के बाहर असर
हालांकि माना जाता है कि चीन के आवासीय रियल एस्टेट से देश की वित्तीय व्यवस्था को ज्यादा खतरा नहीं है, क्योंकि ज्यादातर मकान नकद पैसों से खरीदे जाते हैं, ना कि ऋण से. इस वजह से अमेरिका में 2008 में जो हुआ था वैसा कुछ यहां होने की संभावना कम है.
कुछ टिप्पणीकारों ने कहा है कि एवरग्रांदे कहीं चीन का "लेहमन लम्हा" ना बन जाए, लेकिन अर्थशास्त्री कहते हैं कि वित्तीय बाजार में इसके व्यापक असर का खतरा कम है. एवरग्रांद के पास 18 अरब डॉलर के बकाया विदेशी मुद्रा के बॉन्ड हैं जिनमें से अधिकांश चीनी बैंकों और अन्य संस्थानों के पास हैं.
इसके अलावा कंपनी के पास 215 अरब डॉलर की जमीन और स्थिर दामों वाले आंशिक रूप से तैयार प्रोजेक्ट भी हैं. इसके बावजूद अगर कंपनी ऋण चुकाने से चूक ही जाती है तो चीन की बैंकिंग व्यवस्था में इतना पैसा है कि वो उस घाटे को पचा लेगी. लेकिन निवेशक नियामकों के कदमों का इंतजार कर रहे हैं.(dw.com)
सीके/एए (एपी)