अंतरराष्ट्रीय
रूस पर लगाए गए तमाम आर्थिक प्रतिबंधों के पूरी दुनिया पर दूरगामी प्रभाव पड़ सकते हैं. इसकी मुख्य वजह है विमानन, समुद्री और कार उद्योगों में इस्तेमाल किया जाने वाला रूसी कच्चा माल.
यूक्रेन पर हमला करने के बाद अमेरिका और यूरोप ने रूसी बैंकों, रूसी रईसों और अन्य संस्थाओं पर वित्तीय प्रतिबंध लगाए हैं. हालांकि रूसी कमोडिटी निर्यातक वीएसएमपीओ-एवीआईएसएमए (VSMPO-Avisma) पर अभी तक कोई प्रतिबंध नहीं लगा है, जो विमान निर्माता कंपनी बोइंग और एयरबस को टाइटेनियम की आपूर्ति करता है.
एयरबस ने कहा है कि वह अपनी आधी टाइटेनियम मांग के लिए रूस पर निर्भर है, जबकि एक अमेरिकी उद्योग सूत्र ने कहा कि वीएसएमपीओ-एवीआईएसएमए बोइंग की जरूरतों का एक तिहाई मुहैया कराता है. इस बीच कुछ रूसी बैंकों को वैश्विक वित्तीय प्रणाली स्विफ्ट से भी अलग कर दिया है. यह कदम टाइटेनियम सहित कई रूसी निर्यातों की आपूर्ति को भी प्रभावित कर सकता है.
टाइटेनियम का उत्पादन कहां होता है?
टाइटेनियम स्पंज कीमती धातु टाइटेनियम खनिज कणों से बनता है और इसका इस्तेमाल कई उद्योगों में किया जाता है. चीन इस समय दुनिया में टाइटेनियम स्पंज का सबसे बड़ा उत्पादक है. यूएस जियोलॉजिकल सर्वे के मुताबिक पिछले साल वैश्विक टाइटेनियम उत्पादन 2,10,000 टन था, जिसमें चीन का 57 प्रतिशत हिस्सा था. जापान 17 फीसदी के साथ दूसरे और रूस 13 फीसदी के साथ तीसरे स्थान पर था. पिछले साल कजाखस्तान ने 16,000 टन और यूक्रेन ने 3,700 टन का उत्पादन किया था.
बैंक से लेकर वोदका तक रूस का अलगाव बढ़ रहा है
ये आंकड़े बताते हैं कि रूस का टाइटेनियम भंडार बहुत बड़ा नहीं है. लेकिन वह इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान रखता है. यूएसजीएस का कहना है, "2021 में यूक्रेन टाइटेनियम खनिज का प्रमुख स्रोत था, जिसे रूस में आयात किया गया था." वियतनाम और मोजाम्बिक समेत कुछ अन्य देशों में भी यह खनिज संपदा है.
यूएसजीएस का अनुमान है कि यूक्रेन ने पिछले साल 5,25,000 टन टाइटेनियम खनिज सांद्र का उत्पादन किया था.
टाइटेनियम के प्रमुख आयातक
आयात और निर्यात कंसल्टेंसी सीआरयू का कहना है कि चीन टाइटेनियम का दुनिया का सबसे बड़ा खरीदार है, जिसने पिछले साल 16,000 टन से अधिक टाइटेनियम स्पंज खरीदा. अमेरिका ने 2020 में 19,000 टन ऐसे स्पंज का आयात किया, लेकिन एक साल बाद यह आयात घटकर 16,000 टन हो गया.
जापान, चीन और अमेरिका को सबसे अधिक टाइटेनियम स्पंज निर्यात करता है. सीआरयू के मुताबिक कोरोना महामारी के बाद निर्माण और विमानन उद्योगों में हालिया सुधार ने टाइटेनियम स्पंज की कीमत बढ़ा दी है.
इस धातु का इस्तेमाल मुख्य रूप से एयरोस्पेस उद्योग में किया जाता है. विमान के लैंडिंग गियर और विमान के ब्लेड के अलावा, इसका उपयोग टर्बाइनों के निर्माण में भी किया जाता है. समुद्री उद्योग में टाइटेनियम शीट का इस्तेमाल जहाज और पनडुब्बियां बनाने के लिए किया जाता है और ऑटो क्षेत्र में इसे इंटरनल कंबशन इंजन के पुर्जे तैयार करने के लिए किया जाता है.
धातु की रक्षा के अलावा यह तापमान को नियंत्रित करने में भी मदद करता है. इसका इस्तेमाल मानव जोड़ों के लिए कृत्रिम विकल्प के निर्माण और दंत प्रत्यारोपण में भी किया जाता है.
एए/ओएसजे (रॉयटर्स)
यूक्रेन ने रूस पर वैक्यूम बम इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है. बेहद विध्वंसक होने के कारण आबादी वाले इलाकों में वैक्यूम बम का इस्तेमाल बैन है. ऐसा क्या है जो वैक्यूम बमों को इतना खतरनाक बनाता है?
डॉयचे वैले पर मार्कुस ल्यूटिके की रिपोर्ट-
अमेरिका में तैनात यूक्रेन की राजदूत ने रूस पर थर्मोबैरिक हथियार इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है. यह दावा कितना सही है, इसकी अब तक पुष्टि नहीं हो सकी है. वॉशिंगटन में अमेरिकी नेताओं से मुलाकात के बाद सोमवार को यूक्रेनी राजदूत ओक्साना मार्कारोवा ने कहा, "उन्होंने आज वैक्यूम बम इस्तेमाल किया, जो जेनेवा संधि के तहत प्रतिबंधित है."
क्या होते हैं वैक्यूम बम
वैक्यूम बमों को एयरोसोल बम या फ्यूल एयर बम भी कहा जाता है. वैक्यूम बम असल में एक थर्मोबैरिक हथियार है. यह नाम ग्रीक भाषा से जुड़ा है और इसका अर्थ है, ताप और दबाव. ज्यादातर पारंपरिक हथियार पेट्रोलियम फ्यूल और ऑक्सीडाइजिंग एजेंट को मिलाकर बनाए जाते हैं. लेकिन वैक्यूम बम में 100 फीसदी पेट्रोलियम फ्यूल होता है. फटने के लिए इसे बाहरी ऑक्सीजनन की जरूरत पड़ती है.
वैक्यूम बम में पहली बार हल्का सा धमाका होता है, जो ईंधन को एक गुबार की तरह फैला देता है. इसके तुरंत बाद, दूसरे चरण में इस गुबार में एक तेज धमाका होता है. इस तरह थर्मोबैरिक हथियार आसपास हवा में मौजूद ऑक्सीजन को सोखकर भीषण धमाका करते हैं.
पुतिन की परमाणु धमकी में कितना दम
वैक्यूम बम बहुत तबाही मचाते हैं. फरवरी 2000 में अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के एक शोध का हवाला देते हुए ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा, "धमाके के करीब रहने वालों का नामोनिशान मिट जाता है. उसके दायरे में आने वाले कई किस्म की अंदरूनी और गुम चोटों का शिकार बनते हैं, जैसे कान के पर्दे फटना, कान के भीतर अंगों पर बेहद बुरी चोट, गंभीर दौरे पड़ना, फेफड़ों और अंदरूनी अंगों में छेद होना और संभावित अंधापन."
क्या ये हथियार तैनात किए गए?
26 फरवरी 2022 को अमेरिकी न्यूज चैनल सीएनएन के रिपोर्टर फ्रेडेरिक प्लाइटजन ने ट्विटर पर एक वीडियो पोस्ट किया. इस विडियो पोस्ट में कहा गया, "सीएनएन की टीम ने यूक्रेन में रूसी थर्मोबैरिक 'वैक्यूम बम' लॉन्चर देखा है." प्लाइटजन ने लिखा, "रूसी सेना ने थर्मोबैरिक रॉकेट शूट करने वाला टीओएस-1 हेवी फ्लेमथ्रोअर तैनात किया है....बेल्गोरोद के दक्षिण में."
म्यूनिख की जर्मन मिलिट्री यूनिवर्सिटी के फ्रांक जावर इसकी पुष्टि करते हुए कहते हैं, "हमें पता है कि उस इलाके में रूसियों ने इस तरह के हथियार सिस्टम तैनात किए हैं."
रूस पर आरोप लग रहे है कि उसने यूक्रेन के ओख्तिरका शहर में वैक्यूम बम इस्तेमाल किए. सोशल मीडिया चैनलों पर इन बमों के कथित धमाकों के वीडियो और फोटो शेयर हो रहे हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति कार्यालय व्हाइट हाउस के प्रवक्ता के मुताबिक अभी तक इन आरोपों की पुष्टि नहीं हुई है, "लेकिन अगर यह आरोप सही निकले तो यह संभावित एक युद्ध अपराध है." (dw.com)
बीजिंग. वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत से जारी तनाव के बीच चीन ने रक्षा खर्च को बढ़ाने का फैसला किया है. चीन ने शनिवार को रक्षा को लेकर यह बड़ी घोषणा की है. खास बात है कि चीन लगातार डिफेंस सेक्टर में अपने खर्च में इजाफा कर रहा है. जिसके चलते देश के पास एक मजबूत सेना तैयार हो गई है, यह सेना हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका के सशस्त्र बलों को चुनौती दे रही है. चीन में संसद सत्र शुक्रवार से शुरू हो गया है.
एपी के अनुसार, चीन ने साल 2022 के लिए रक्षा क्षेत्र के खर्च में 7.1 फीसदी बढ़ाकर 22900 करोड़ डॉलर करने की घोषणा कर दी है. पिछले वर्ष में चीन ने खर्च में 6.8 प्रतिशत की वृद्धि की थी. हालांकि, बीते कुछ समय से चीन लगातार सैन्य क्षमता बढ़ा रहा है. वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भी खबरें आई थी कि चीन ने सैन्य गतिविधियां बढ़ा दी हैं. रक्षा बजट के मामले में चीन अमेरिका के बाद दूसरे नंबर पर है.
सरकार का कहना है कि खर्च में हुई बढ़त का ज्यादातर हिस्सा जवानों के कल्याण के लिए जाएगा. ऑब्जर्वर्स का कहना है कि बजट में चीन हथियारों की खरीदी को छोड़ा गया है. इनमें से अधिकांश को घरेलू स्तर पर ही तैयार किया जाता है. सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी की सैन्य शाखा होने के चलते पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की सियासी भूमिका भी काफी बड़ी है.
शी जिनपिंग के मौजूदा कार्यकाल का अंतिम संसद सत्र
यूक्रेन को लेकर वैश्विक उथल-पुथल के बीच चीन में शुक्रवार को संसद का वार्षिक सत्र शुरु हुआ. वहीं राष्ट्रपति शी जिनपिंग का 10 साल का कार्यकाल इस साल समाप्त होने वाला है और वह अभूतपूर्व तौर पर तीसरा कार्यकाल शुरू करने की तैयारी में हैं. चीन का वार्षिक संसद सत्र शुक्रवार को शुरू हुआ जिसमें राष्ट्रीय विधानमंडल, नेशनल पीपुल्स कांग्रेस (एनपीसी) और सलाहकार निकाय चाइनीज पीपुल्स पॉलिटिकल कंसल्टेटिव कॉन्फ्रेंस (सीपीपीसीसी) शामिल हैं.
सीपीपीसीसी ने अपना सत्र शुरू किया जिसमें राष्ट्रपति शी और अन्य नेताओं ने हिस्सा लिया. सीपीपीसीसी में में 2,200 सदस्य हैं और इनमें से ज्यादातर सत्तारूढ़ चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) द्वारा मनोनीत हैं.
एनपीसी दो सप्ताह से अधिक समय तक वार्षिक विधायी कार्य करेगा जिसमें प्रधानमंत्री प्रधानमंत्री ली क्विंग द्वारा प्रस्तुत की जाने वाली कार्य रिपोर्ट को मंजूरी देना शामिल है. इसमें चीन अपने वार्षिक आर्थिक प्रदर्शन की रूपरेखा तैयार करेगा और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए अन्य आर्थिक पहलों के अलावा नए रक्षा परिव्यय की घोषणा करेगा.
(भाषा इनपुट के साथ)
-अब्दुलजलील अब्दुरासुलोव
अपनी पत्नी इरीना और बेटी सोफ़िया के साथ ओलेग
रूस के हमलों से बचकर यूक्रेन से भाग रहे एक परिवार को रूसी सैनिकों ने मार दिया है.
इस परिवार के रिश्तेदारों ने बीबीसी को बताया है कि उन पर दक्षिणी यूक्रेन में एक सुरक्षा चौकी पर हमला किया गया. कुल पांच लोगों की मौत हो गई.
इस लेख की कुछ जानकारियां पाठकों को विचलित कर सकती हैं.
24 फ़रवरी को जब रूस की सेनाओं ने यूक्रेन पर आक्रामण शुरू किया तब दक्षिणी शहर खेरसोन में रहने वाले फेडको परिवार ने जान बचाकर भागने की कोशिश की.
ये परिवार ग्रामीण क्षेत्र में अपने रिश्तेदारों के पास जा रहा था. ये इलाक़ा खेरसोन के मुक़ाबले अधिक सुरक्षित था.
पुलिसकर्मी ओलेग पीछे ही रुक गए थे क्योंकि हमले के बाद पुलिस विभाग हाई अलर्ट पर था.
उनके पिता उनकी पत्नी इरीना और दो बच्चों, छह साल की सोफिया और दो महीने के ईवान को लेने के लिए आए थे.
इस परिवार के गांव पहुंचने के कुछ देर बाद ही रूस की सेना यहां पहुंच गई थी. ये सैनिक क्राइमिया से यूक्रेन पहुंचे थे. रूस ने साल 2014 में यूक्रेन के इस प्रायद्वीप पर क़ब्ज़ा किया था.
यहां से घुसी रूसी सेना तेज़ी से यूक्रेन के इलाक़ों में आगे बढ़ी थी क्योंकि उसे किसी भारी प्रतिरोध का सामना नहीं करना पड़ा था.
बिजली और पानी की आपूर्ति बंद कर दी गई थी. परिवार को चिंता थी कि वो फिर से लड़ाई के बीच फंस जाएंगे इसलिए ये लोग गांव छोड़कर दूसरे गांव नोवा काखोव्का की तरफ़ बढ़े, जहां उनके रिश्तेदार रहते हैं.
अब वो एक बड़े समूह में थे जो दो कारों में सवार था. एक मैं ओलेग के मौसा-मौसी और भाई-बहने थीं. दूसरी कार में उनके माता-पिता, पत्नी और बच्चे थे.
यात्रा के दौरान उन्हें एक बांध से गुज़रना था जो पहले से ही रूस की सेना के नियंत्रण में था. ये बांध नाइप्रो नदि पर है जो यूक्रेन को दो हिस्सो में बांटती है.
पहली कार रूसी सैनिकों की सुरक्षा चौकी को पार कर गई थी लेकिन दूसरी गाड़ी उनकी नज़र से ओझल हो गई.
ओलेग के भाई डेनिस यूक्रेन के चेर्केसी शहर से मोबाइल के ज़रिए परिजनों की लोकेशन पर नज़र रखे हुए थे.
शाम को पांच बजकर 13 मिनट पर डेनिस ने अपनी मां के फ़ोन पर कॉल किया.
वो बताते हैं, "मैं अपनी मां को नोवा काखोव्का ना जाने के लिए समझाने की कोशिश कर रहा था. मैं उनसे कह रहा था कि ओडेसा जाओ, वहां मेरा एक फ्लैट है."
वो बताते हैं, उसी पल मैंने अपनी मां की चीख सुनीं, वो कह रहीं थीं, हे ईश्वर, वो एक बच्चा है, तुम ऐसा कैसे कर सकते हो.
वो बताते हैं कि उनकी भाभी भी चिल्ला रहीं थीं.
वो बताते हैं, "फिर मैंने गोली चलने की आवाज़ सुनी. कार रुक गई थी, गाड़ी का खुला दरवाज़ा बीप की आवाज़ कर रहा था. मैंने बच्चे को रोते हुए सुना. वो रोए जा रहा था. फिर मैंने और गोलियां चलने की आवाज़ सुनी."
डेनिस हतप्रभ थे, वो समझ नहीं पा रहे थे कि क्या हो रहा है और वो इस स्थिति में क्या कर सकते हैं.
उनकी मौसी जिनका नाम भी इरीना है, बदहवासी में अपनी बहन को फ़ोन करने की कोशिश कर रहीं थीं.
ईरीना ने कार में मौजूद सभी के फ़ोन लगाए लेकिन किसी ने नहीं उठाया. घंटियां बजती रहीं. अब इरीना परेशान हो गईं थीं, उन्होंने तय किया कि लौटकर देखें क्या हुआ है.
इरीना चैकप्वाइंट पर पहुंची और कार के बारे में पूछा तो एक सैनिक ने बताया कि वो गड्डे में पड़ी है.
सैनिक ने बताया कि ड्राइवर ने अधिकारी के आदेश का पालन नहीं किया और उन्हें कुचलने की कोशिश की.
इरीना बताती हैं कि वो सैनिकों के सामने गिड़गिड़ाईं और अपने पति के साथ कार के पास जाने की भीख मांगी. दो सैनिक उनके पति ओलेक्सेंदर को कार के पास लेकर गए. पूरी गाड़ी गोलियों से छलनी थी. कार के आगे पीछे और चारों तरफ़ गोलियों के निशान थे.
इवान को एक सैनिक ने कार से बाहर निकाला. वो रो रहा था.
"मैंने सैनिकों को बताया कि सोफ़िया भी कार में थी, पिछली सीट पर बैठी थी, और मैं कार की तरफ दौड़ी."
ओलेक्सेंदर बताते हैं, "मैंने उसे देखा, उसके सीने में गोली ने सुराख़ कर दिया था. तीन वयस्क, ओलेग के माता-पिता और पत्नी की मौत हो चुकी थी."
सोफ़िया अभी जीवित थी. इवान अब चुप हो गया था. इरीना और ओलेक्सेंदर उन्हें अपनी कार में लेकर आए और अस्पताल की तरफ़ दौड़े.
लेकिन डॉक्टर इन बच्चों को बचा नहीं सके.
अस्पताल जाकर पता चला कि इवान को भी गोली लगी थी.
ओलेक्सेंदर बताते हैं, "उसे कान में गोली लगी थी जो पीछे सिर से होते हुए निकल गई थी. उसका चेहरा साफ़ था लेकिन पीछे से सिर ख़ून में सना था. लेकिन वो ज़िंदा था और रो रहा था."
वो बताते हैं कि इस दौरान रूस के सैनिक वहीं थे लेकिन उन्होंने कार के पास जाकर किसी को देखने की कोई कोशिश नहीं की.
इरीना अब अपने आप को संभाल नहीं पा रही हैं. वो कहती हैं, "मुझे यक़ीन नहीं होता कि वो सब अब नहीं हैं. मैं समझ नहीं पा रही हूं कि हमारे साथ ऐसा हो गया है. मैं हर वक़्त बस रोती रहती हूं."
रूस की सेना ने अगले दिन परिवार को उनके शव उठाने की अनुमति दी. शवों का परीक्षण करने वाले डॉक्टर बताते हैं कि सभी को कई गोलियां लगी थीं.
बीबीसी ने इस घटना पर रूस का पक्ष जानने के लिए रूस के रक्षा मंत्रालय से संपर्क किया है. (bbc.com)
नई दिल्ली. रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच लगातार यूक्रेनी शिक्षण संस्थानों में पढ़ने वाले भारतीय छात्र-छात्राओं का स्वदेश लौटना जारी है. यहां लौटकर वे हालात बयान कर रहे हैं, वे बेहद भयावह हैं. जैसे- 22 साल का आदित्य. यूक्रेन की टेर्नोपिल नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में दूसरे साल की पढ़ाई कर रहे हैं. वे बताते हैं, ‘युद्धग्रस्त इलाकों से पड़ोसी देशों की सीमाओं पर जा रहे लड़के-लड़कियों के शरीर ठंड से गल रहे हैं. पैदल या ठुंसी हुई टैक्सियों से आगे बढ़ते हुए अपना सामान वहीं छोड़कर चल रह हैं. ठंड से गर्मी पाने के लिए दूसरों का पड़ा हुआ और जरूरी होने पर अपना भी सामान जला रहे हैं. किसी के पास खाने या पीने का सामान है तो कई लोग उसी को बांटकर अपनी भूख-प्यास मिटा रहे हैं.’
अभी 3 मार्च को विशेष विमान से दिल्ली के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरे आदित्य के मुताबिक, ‘जब 24 फरवरी को युद्ध शुरू हुआ तो हर किसी को यूक्रेन की सीमाओं की ओर भागते देखा. हम 5 दोस्तों ने भी वहां से निकलने का फैसला किया. पोलैंड से लगने वाली शेनी बॉर्डर हमारे इधर से करीब 200 किलोमीटर दूर है. हमने मिलकर टैक्सी से जाने का फैसला किया. लेकिन टैक्सी ड्राइवर ने हमें वहां से बहुत दूर ही छोड़ दिया. इसके बाद हमें आगे 2-3 दिन पैदल सफर करना पड़ा. सीमा चौकी शेनी बॉर्डर से करीब 3 किलोमीटर पहले है. वहां हमें रोक लिया गया. वहां हमारे साथ दुर्व्यवहार किया गया. यहां तक लड़कियों से भी. हमने देखा वहां अन्य छात्र-छात्राएं 4-4 दिन से बैठे हुए हैं. उस पार जाने के इंतजार में. तब हमारी उम्मीद टूट गई. एक बार तो लगा वापस टेर्नोपिल चले जाते हैं. हालांकि 6-7 घंटे बाद हमें सीमा पार जाने की इजाजत मिल गई.’
उन्होंने बताया, ‘रास्ते में हमारे पास खाने-पीने और अन्य जरूरत की चीजें खत्म होने लगीं. तब हमने जगह-जगह अन्य लोगों का जो सामान पड़ा मिला, उसमें से अपने काम की चीजें निकालकर इस्तेमाल कीं. रास्ते में पड़े दूसरों के और अपने भी कम इस्तेमाल वाले सामान को जलाकर शरीर को गर्म रखने का बंदोबस्त किया.’ इतना बताने के दौरान कई बार आदित्य की आंखें नम हो जाती हैं. उनकी मानें तो अभी कई लोगों का तो यूक्रेन में पता नहीं चला है कि वे कहां हैं. इनमें उनका दोस्त हिमेश भी है. वह 9 दिनों से लापता है. अभी 3 महीने पहले ही वह पढ़ने के लिए यूक्रेन आया था. मेडिकल की पहले साल की पढ़ाई कर रहा था. अब पता नहीं कहां, किस हाल में होगा.
ऐसे ही 19 साल की इकरा भी आदित्य के साथ ही लौटी हैं. वे ‘इंडिया टुडे’ से बातचीत के दौरान कहती हैं, ‘हमारे कॉलेज के कोऑर्डिनेटर ने हमारी बहुत मदद की. उन्होंने हमारे लिए बस का इंतजाम किया. ताकि हम रोमानिया बॉर्डर तक जा सकें. हालांकि बस ने हमें जहां छोड़ा, वहां से 5 दिन पैदल चलकर हम सीमा तक पहुंचे. हमें अपना सामान रास्ते में ही छोड़कर आना पड़ा क्योंकि इसके सिवा कोई चारा नहीं था. मुझे खारकीव में पढ़ने वाले साथियों के लिए बहुत डर लग रहा है. जब लड़ाई शुरू हुई, तब हमारे निकलने तक हमें अपने इर्द-गिर्द सिर्फ एक ही धमाका सुनाई दिया था. खारकीव में तो लड़ाई पूरे चरम पर है. पता नहीं, वे लोग कैसे होंगे.’ इतना बताने तक इकरा भी भावुक हो जाती हैं. वे यूक्रेन की फैंक्विस्क नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में पढ़ती हैं.
यूक्रेन से लौटने वाले करीब-करीब हर छात्र-छात्रा की ऐसी ही कहानियां हैं. और इधर, दिल्ली के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर अपने बच्चों का इंतजार कर रहे माता-पिता की आंखें पथराई जा रही हैं. यहां उतरने वाली हर विशेष उड़ान के साथ उन्हें उम्मीद बंधती है कि शायद इसमें उनका बच्चा वापस आ गया होगा. किसी-किसी की यह उम्मीद पूरी होती है तो चेहरे खिल जाते हैं. लेकिन जिनका इंतजार कुछ और घंटे बढ़ जाता है, उनके दिलों में आशंका बैठ जाती है कि क्या पता उनकी संतान सही-सलामत लौट भी पाएगी या नहीं.
अंतरराष्ट्रीय अपराध अदालत यानी आईसीसी ने यूक्रेन में संभावित युद्ध अपराध के खिलाफ जांच करने का एलान किया है. युद्ध अपराधों के लिए अंतरराष्ट्रीय मानक तय किए गए हैं. आखिर कैसे पता चलता है कि युद्ध अपराध हुआ है?
डॉयचे वैले पर मोनीर गाएदी की रिपोर्ट-
रूस के सैनिक यूक्रेन में लगातार हवाई हमले और टैंकों से नागरिक ठिकानों को निशाना बना रहे हैं. इन हमलों ने युद्ध अपराध की आशंका पैदा कर दी है. एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा है कि रूसी सेना यूक्रेन में "अविवेकपूर्ण हमले" कर रही है.
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने नागरिक इलाकों में रूस के मिसाइल हमले को युद्ध अपराध कहा है. मंगलवार को रूसी सेना ने खारकीव के फ्रीडम स्क्वेयर पर हवाई हमला किया. बुधवार को भी टीवी टावर और कई रिहायशी इमारतों पर बमबारी हुई. इनमें कई लोगों की जान भी गई है. अंतरराष्ट्रीय अपराध अदालत आईसीसी ने कहा है कि वो युद्ध अपराध की आशंकाओं को खंगालने के लिए जांच शुरू करने जा रहे हैं. बुधवार को एक बयान में अभियोजक करीम ए ए खान ने कहा है कि जांच शुरू करने के लिए "उचित आधार" मौजूद हैं और सबूतों को जमा करने का काम शुरू कर दिया गया है.
युद्ध के नियम
युद्ध अपराधों के लिए खासतौर पर अंतरराष्ट्रीय मानक तय किए गए हैं और इन्हें मानवता के खिलाफ अपराध से बिल्कुल अलग रखा गया है. किसी जंग के दौरान मानवता से जुड़े नियमों के गंभीर उल्लंघन के रूप में युद्ध अपराध की परिभाषा दी गई है. रोम स्टेच्यू ऑफ द इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट के तरफ से दी गई यह परिभाषा 1949 की जिनेवा कंवेंशन से निकली थी. इसका विचार यहां से आया कि किसी इंसान को सरकार या किसी देश की सेना की कार्रवाई के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता.
नरसंहार की रोकथाम करने वाला संयुक्त राष्ट्र का विभाग युद्ध अपराध को नरसंहार और मानवता के खिलाफ अपराध से अलग कर के देखता है. युद्ध अपराध किसी घरेलू संघर्ष या फिर दो देशों के बीच हो सकते हैं, जबकि नरसंहार और मानवता के खिलाफ अपराध शांति काल में या फिर सेना की किसी समूह या निहत्थे लोगों पर की गई कार्रवाई होती है.
उन गतिविधियों की एक लंबी सूची है जिन्हें युद्ध अपराध माना जाता है. इसमें लोगों को बंधक बनाना, जानबूझ कर हत्या करना, प्रताड़ना या फिर युद्ध बंदियों के साथ अमानवीय व्यवहार और बच्चों को युद्ध में जाने पर विवश करना भी शामिल है. हालांकि व्यवहार में बहुत कुछ ऐसा है जहां पर युद्ध अपराध की परिभाषा धुंधली पड़ जाती है.
टोरोंटो यूनिवर्सिटी के मंक स्कूल ऑफ ग्लोबल अफेयर्स एंड पब्लिक पॉलिसी के मार्क केर्स्टन कहते हैं, "युद्ध के कानून अकसर आम लोगों की मौत नहीं रोक पाते हैं. हर आम नागरिक की मौत अनिवार्य रूप से गैरकानूनी नहीं है." शहरों या गांवों पर हमला, आवासीय परिसरों या स्कूलों पर बमबारी यहां तक कि नागरिक समूहों की हत्या भी अनिवार्य रूप से युद्ध अपराध नहीं है, अगर उनकी सेना की जरूरतों के हिसाब से यह उचित हो. यही काम युद्ध अपराध हो जाएंगे अगर इसका नतीजा बेवजह के विध्वंस, पीड़ा और मौत तो हो मगर सेना को उस हमले का फायदा ना मिले.
अंतर, समानता और सावधानी
किसी आदमी ने या फिर सेना ने युद्ध अपराध किया है या नहीं यह पता लगाने के लिए अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून ने तीन सिद्धांत दिए हैंः अंतर, समानता और सावधानी. समानता सेनाओं को किसी हमले का जवाब अत्यधिक हिंसा से देने से रोकती है. केर्स्टन ने डीडब्ल्यू से कहा, "उदाहरण के लिए अगर एक सैनिक मरता है तो आप जवाबी कार्रवाई में पूरे शहर पर बम नहीं गिरा सकते."
अंतरराष्ट्रीय रेड क्रॉस कमेटी के मुताबिक उन चीजों को भी निशाना बनाने की मनाही है जिनसे, "संयोगवश आम लोगों की जान गई हो, आम लोग घायल हुए हो या फिर किसी नागरिक सामान को नुकसान हुआ हो और जो सेना को संभावित फायदा मिलने के लिहाज से अत्यधिक सीधी और ठोस कार्रवाई हो."
सावधानी के लिए जरूरी है कि सभी पक्ष संघर्ष को पूरी तरह से टालें या फिर आम लोगों को होने वाला नुकसान कम से कम रखें. केर्स्टेन का कहना है कि आखिरकार, "अंतर का सिद्धांत यह कहता है कि आपको लगातार नागरिक, युद्धरत आबादी और चीजों में अंतर करना है." इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि यह काम मुश्किल हो सकता है, "उदाहरण के लिए ऐसे बैरक पर हमला करना जहां लोग हों और वो कहें कि युद्ध में हिस्सा नहीं ले रहे हैं तो यह युद्ध अपराध होगा. इसी तरह से किसी ऐसे सैन्य अड्डे को निशाना बनाया जहां रखे जेनरेटर अस्पताल को बिजली देते हों."
आम लोगों और सैनिकों के बीच फर्क करना मुश्किल होता जा रहा है. केर्स्टन का कहना है, "देशद्रोही होते हैं, सादे कपड़ों में अधिकारी होते हैं, हमला करने वाले जंग में हर वक्त खुद को छिपाए रखते हैं, ये सब बहुत सामान्य सी चालें हैं."
समय से मुकाबला
जब आईसीसी अभियोजकों के पास यह मानने के लिए वजहें होती हैं कि युद्ध अपराध हुआ है तो वे सबूत ढूंढने के लिए जांच शुरू करते हैं. इसके जरिए उन खास बिंदुओं की तलाश की जाती है जिनसे किसी व्यक्ति को उस अपराध का दोषी ठहराया जा सके. केर्स्टन का कहना है, "यूक्रेन के युद्ध में हुए अपराधों के लिए ये वही पल हैं जिनकी ओर हम बढ़ रहे हैं."
तेजी बहुत जरूरी है नहीं तो सबूत बिगड़ जाएंगे या फिर खत्म हो जाएंगे. अभियोजकों के लिए ऐसे संदिग्ध अपराधों की सफल जांच करना और मुश्किल हो जाता है जब संघर्ष में एक पक्ष ने सबूतों के साथ छेड़छाड़ की हो या फिर गवाह मौजूद ना हों. (dw.com)
यूक्रेनी नेताओं ने कहा है कि जेपरजिया परमाणु बिजली संयंत्र में आग लग गई है. इस संयंत्र को रूसी सेना ने घेर लिया था और इस पर लगातार गोलीबारी की जा रही थी.
यूक्रेन के जेपरजिया में स्थित यूरोप के सबसे बड़े परमाणु बिजली संयंत्र में आग लगने की खबर है. रूसी गोलबारी के बाद यह आग लगी है. हालांकि अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) ने कहा है कि संयंत्र के इर्दगिर्द विकिरण के स्तर में कोई बदलाव नहीं देखा गया है.
जेपरजिया में रात भर से गोलाबारी हो रही थी. यूक्रेन के ऊर्जा मंत्रालय ने बताया कि आग संयंत्र के उस हिस्से में लगी है, जहां ट्रेनिंग दी जाती है. यह खबर लिखे जाने तक अग्निशमनकर्मी आग पर काबू पाने में कामयाब नहीं हो पाए थे.
संयंत्र के निदेशक ने यूक्रेन24 नामक टीवी चैनल को बताया कि परिसर विकिरणों से सुरक्षित है. यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने इस घटना के बाद कहा कि रूस की गोलाबारी की वजह से परमाणु खतरा पैदा हो गया था.
खेरसॉन पर कब्जा
रूसी सैनिकों ने यूक्रेन के एक अहम बंदरगाह पर कब्जा कर लिया है और एक दूसरे बंदरगाह पर घेरा डाल दिया है. रूसी सैनिक यूक्रेन को समुद्री किनारों से काटना चाहते हैं. रूसी सैनिकों का कहना है कि उन्होंने यूक्रेन के खेरसॉन पर नियंत्रण कर लिया है. स्थानीय यूक्रेनी अधिकारियों ने भी इसकी पुष्टि की है.
काले सागर के इस तटवर्ती शहर की सरकारी इमारतों पर अब रूसी सैनिकों का कब्जा है. हालांकि स्थानीय अधिकारियों का कहना है कि वो अब भी काम कर रहे हैं और जितना संभव है, आम लोगों की मदद करने की कोशिश कर रहे हैं. एक हफ्ते पहले शुरू हुए हमले के बाद रूस के कब्जे में जाने वाला यह यूक्रेन का पहला शहर है. खेरसॉन के बाद ऐसा लग रहा है कि रूसी सैनिकों ने मिकोलेव का रास्ता पकड़ लिया है. काले सागर के किनारे मौजूद यह शहर यूक्रेन का एक अहम बंदरगाह और जहाज बनाने का केंद्र है.
रूसी सैनिकों ने कई मोर्चों पर अपना हमला तेज कर दिया है. हालांकि सैनिकों और टैंकों का एक बड़ा दस्ता राजधानी कीव के बाहर कई दिनों से अटका हुआ है. गुरुवार को एक और रणनीतिक रूप से अहम बंदरगाह वाले शहर मारियोपोल के बाहरी इलाकों में भारी बमबारी हुई. यह शहर पूरी तरह से अंधेरे, अकेलेपन और डर में घिर गया है. शहर की बिजली और फोन लाइन मोटे तौर पर चली गई है. घरों और दुकानों में खाने और पानी की कमी है. फोन नहीं चलने के कारण राहतकर्मियों को यह भी समझ में नहीं आ रहा है कि घायलों को कहां ले कर जायें.
यूक्रेन के दूसरे सबसे बड़े शहर खारकीव में हालत और भी खराब है. यहां पिछले तीन दिन से भारी बमबारी हो रही है. पूरा शहर धूल और धुएं से अटा पड़ा है. गिरती छतों और बमों की चपेट में आने से बचने के लिए लोग भाग कर ट्रेन स्टेशन पहुंच रहे हैं और ट्रेनों में सवार हो रहे हैं. उन्हें यह भी नहीं पता कि जाना कहां है.
कीव से 25 किलोमीटर दूर सैनिक कारवां
गुरुवार सुबह युक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने कहा कि रूस की जमीनी सेना रुक गई है और रूस ने हवाई हमलों का मुंह खोल दिया है. उन्हें यूक्रेनी रक्षा तंत्र से जवाब दिया जा रहा है. राष्ट्रपति ने कहा, "कीव ने मिसाइल और बम के हमले की एक और रात झेली है हमारा एयर डिफेंस काम कर रहा है. खेरसॉन, इज्युम और उन सारे शहरों ने जिन पर हवाई हमला हुआ है, उन्होंने कुछ भी नहीं छोड़ा है." कीव में मौजूद पत्रकारों ने भी बुधवार की रात कई मिसाइलों के धमाकों की आवाजें सुनी. कई मिसाइलों को यूक्रेन के एयर डिफेंस सिस्टम की मदद से बेकार भी किया गया.
किसी वॉर फिल्म जैसा दिखने लगा है यूक्रेन का दूसरा सबसे बड़ा शहर खारकीव
इस बीच रूसी सैनिकों का करीब 65 किलोमीटर लंबा काफिला जो मंगलवार की सुबह यूक्रेन की तरफ बढ़ा था वह अब भी कीव के बाहर 25 किलोमीटर की दूरी पर खड़ा है. यूक्रेनी सैनिकों ने कीव में घुसने के रास्तों पर सख्त मोर्चेबंदी कर रखी है. आम लोगों ने भी हथियार उठा लिए हैं और इसमें 60 साल से ज्यादा की उम्र वाले बुजुर्ग भी हैं.
500 रूसी सैनिकों की मौत
अब तक कम से कम 227 आम लोगों की मौत दर्ज हुई है और 525 लोग घायल हुए हैं. ये आंकड़े संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयुक्त के हैं. आयुक्त ने माना है कि यह संख्या असल के मुकाबले बहुत कम है. यूक्रेन ने पहले कहा था कि 2000 से ज्यादा आम लोगों की मौत हुई है.
रूस ने युद्ध शुरू होने के बाद पहली बार गुरुवार को बताया है कि उसके करीब 500 सैनिकों की मौत हुई है और लगभग 1600 सैनिक घायल हैं. यूक्रेन ने अपने सैनिकों की मौत का कोई आंकड़ा नहीं दिया है. यूक्रेन के मिलिट्री जनरल स्टाफ ने फेसबुक पोस्ट में लिखा है कि 9000 रूसी सैनिक युद्ध में हताहत हुए हैं. इसमें यह भी साफ नहीं किया गया है कि इसमें घायल सैनिकों की संख्या भी शामिल है या नहीं.
यूक्रेन पर हमले के कारण रूस पर लगे प्रतिबंधों का जर्मनी को भी होगा तगड़ा नुकसान
सात दिन की लड़ाई में यूक्रेन के करीब 2 फीसदी से ज्यादा लोग देश के बाहर जाने के लिए मजबूर हुए हैं. पूरे युक्रेन में ट्रेन स्टेशनों पर भारी भीड़ आ रही है. लोगों के हाथ में कंबल में लिपटे बच्चे हैं और वो पहिए वाली सूटकेस धकेलते हुए वहां पहुंचने की कोशिश में हैं जहां पहुंच कर वो शरणार्थी बन जाएंगे. तकरीबन 10 लाख से ज्यादा लोग जो यूक्रेन से हाल के दिनों में बाहर गए हैं उनमें कम से कम 200 अनाथ बच्चे भी हैं जो हंगरी पहुंचे हैं. उनकी मानसिक और शारीरिक स्थित ठीक नहीं है. इनमें से कई बच्चों ने बमबारी के दौरान घंटों तक जमीन के नीचे बने शेल्टरों में छिप कर जान बचाई है.
संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी ने 4.4 करोड़ की आबादी वाले यूक्रेन में इस युद्ध के कारण 40 लाख लोगों के शरणार्थी बनने की आशंका जताई है. यूरोपीय संघ ने इन लोगों को अस्थायी रेजिडेंट परमिट देन की बात कही है. इसके आधार पर इन्हें 27 देशों में पढ़ाई या काम करने का अधिकार मिल जायेगा. इस प्रस्ताव को अभी सदस्य देशों की मंजूरी मिलनी बाकी है, हालांकि सदस्य मोटे तौर पर इस मामले में सहमति जता चुके हैं.
दूसरे दौर की बातचीत
यूक्रेन के अधिकारियों का एक प्रतिनिधिमंडल रूस के साथ युद्धविराम पर बातचीत शुरू हो गई है. यूक्रेन के राष्ट्रपति के सलाहकार मिखाइलो पोडल्याक इसका नेतृत्व कर रहे है. इससे पहले पोडोल्याक ने ट्वीटर पर जानकारी दी कि वो बातचीत में शामिल होने के लिए दूसरे सदस्यों के साथ हैलीकॉप्टर में बैठ चुके है. उनके साथ प्रतिनिधिमंडल में शामिल सांसद डेविड अराखामिया ने कहा है कि वो रूस के साथ मानवीय गलियारे पर बातचीत करना चाहते हैं. बातचीत शुरू होने से पहले रूसी विदेश मंत्री ने कहा है कि रूसी सैनिक यूक्रेन के सैनिक ठिकानों को ध्वस्त करने की कार्रवाई में जुटे रहेंगे. उनका यह भी कहना है कि यूक्रेन पर शासन कौन करेगा यह यूक्रेन के लोग तय करेंगे.
रूसी प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के सहयोगी व्लादिमीर मेडिंस्की कर रहे हैं. उनका कहना है कि बातचीत के प्रस्तावों में सैन्य तकनीकी, मानवीय, अंतरराष्ट्रीय और राजनीतिक मसले शामिल हैं. बेलारूस और रूस के मुताबिक यह बातचीत बेलारूस के ब्रेस्ट इलाके में होगी जिसकी सीमा पोलैंड से लगती है.
रूस में आखिरी बचे उदारवादी रेडियो स्टेशन एखो मोस्कवी बंद हो गया है. रेडियो के संपादक का कहना है कि यूक्रेन में जंग की कवरेज को लेकर उस पर बहुत दबाव आ गया था जिसके बाद कंपनी बोर्ड को भंग करने का फैसला किया गया है. यह स्टेशन रूस में समाचार और सम सामयिक विषयों के प्रसारण का प्रमुख केंद्र था. मंगलवार को इसका प्रसारण बंद होने के बाद भी यह यूट्यूब पर चल रहा था. रूस की स्वतंत्र मीडिया पर कई सालों से सरकार दबाव बनाती आ रही है. बहुत से चैनल और प्रसारण केंद्र पहले ही बंद हो चुकी हैं.
रूसी लोगों पर युद्ध का असर
रूस पर लगे पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के कारण वहां काम करने वाली बड़ी अंतरराष्ट्रीय कंपनियों ने अपना काम समेटना शुरू कर दिया है. इसके साथ ही रूस के बेहद अमीर लोगों पर भी होगा. इन लोगों की संपत्तियां यूरोपीय देशों में हैं और ये अपने बच्चों को यूरोप के महंगे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने भेजते हैं. फ्रेंच अधिकारियों ने गुरुवार को बताया कि उन्होंने इगोर सेचिन के एक यॉट को जब्त कर लिया है. इगोर सेचिन व्लादिमीर पुतिन के सहयोगी और रूस की प्रमुख तेल कंपनी रोजनेफ्ट के मालिक हैं.
इस बीच रूस के एक और रईस रोमान अब्रामोविच ने इस बात की पुष्टि कर दी है कि वो फुटबॉल क्लब प्रीमियर लीग चेल्सी को बेचने की कोशिश में हैं. यह सौदा कम से कम 2.5 अरब डॉलर का होगा. अब्रामोविच ने क्लब की बिक्री से मिलने वाले पैसे को यूक्रेन के युद्ध पीड़ितों की मदद के लिए देने का एलान किया है.
रूस के आमलोगों पर भी प्रतिबंधों का असर दिख रहा है. ऑनलाइन पेमेंट सिस्टम काम नहीं कर रहा है और एटीएम मशीनों से भी पर्याप्त नगदी नहीं मिल पा रही है. ऐसे में लोगों को खरीदारी करने में दिक्कत हो रही है. आने वाले दिनों में यह परेशानी और ज्यादा बढ़ने की उम्मीद है. रूबल की कीमत घट गई है और चीजों की महंगाई काफी ज्यादा बढ़ गई है.
एनआर/एडी(रॉयटर्स, एपी, एएफपी)
यूक्रेन का खारकीव शहर बर्बाद हो गया है. एक बड़ी आबादी जान बचाने के लिए भाग चुकी है. जो नहीं भाग पाए हैं, वे डरकर छुपे हुए हैं. इस तबाही के बीच भी कई लोगों को अपना फर्ज याद है. पढ़िए ऐसी ही एक पत्रकार की आपबीती.
धमाके, हवाई बमबारी और मिसाइल हमले की चेतावनी देते सायरन और तबाह हो चुके घर. यूक्रेन के खारकीव की रहने वाली ओलेना ओस्टैपचेनको जब अपने शहर की बर्बादी, इसकी आपबीती सुनाना शुरू करती हैं, तो मिसाल देने के लिए उन्हें जो इकलौता संदर्भ याद आता है वह है, सोवियत संघ के दौर में बनी दूसरे विश्वयुद्ध की भयावहता बयान करने वाली फिल्में. ओलेना के शहर में अभी जो हो रहा है, उससे मिलता-जुलता बस यही उदाहरण उनकी स्मृति में है.
खारकीव, यूक्रेन का दूसरा सबसे बड़ा शहर है. यह रूस की सीमा के पास बसा है और यहां ज्यादातर लोग रूसी भाषा बोलते हैं. 24 फरवरी को तड़के जब रूस ने अपने पड़ोसी यूक्रेन पर हमला किया, तो उसके शुरुआती निशाने की परिधि में खारकीव भी था.
इस बात को अब एक हफ्ते से ज्यादा वक्त हो चुका है. इस दौरान खारकीव पर लगातार हमले हो रहे हैं. उसके आसमान से मिसाइलों की जैसे बारिश हो रही है. रिहाइशी इलाके और प्राशासनिक इमारतें तहस-नहस हो चुकी हैं. देखकर लगता है मानो 40 का दशक लौट आया हो. जैसे यह शहर अचानक ही वापस विश्व युद्ध के दौर में पहुंच गया हो.
क्यों युद्ध शुरू होने तक रुके रहे लोग?
ओलेना पत्रकार हैं. वह एक ऑनलाइन समाचार वेबसाइट के लिए लिखती हैं. अपने शहर का हाल बताते हुए वह कहती हैं, "हमने किताबों में युद्ध का जो हाल पढ़ा है, फिल्मों में जैसा देखा है, यह वैसा ही कोई दृश्य लगता है." एक हफ्ते पहले तक यहां लगभग 14 लाख लोगों का बसेरा था, लेकिन अब बहुत से लोग जान बचाकर भाग गए हैं. ओलेना कहती हैं कि वे भागने वाले लोग सीधे-सादे, सरल लोग थे. क्योंकि उन्होंने भागने की जल्दी नहीं दिखाई. जब तक युद्ध उनके दरवाजे तक नहीं पहुंच गया, वे रुके रहे. ओलेना, उनके आखिरी घड़ी तक रुके रहने की वजह बताती हैं, "हमने सोचा, हम 21वीं सदी में जी रहे हैं. रूसी पक्का हम पर बम नहीं गिराएंगे."
ओलेना, उनका 25 साल का बेटा जो अभिनेता है और उसके पार्टनर ने अबतक अपना शहर छोड़ा है. वे घर में हैं, लेकिन बाहर कदम रखने से भी डरते हैं. घर भी सुरक्षित नहीं लगता. वे गलियारे और बाथरूम में रहते हैं. उनका डर बेवजह नहीं है. शहर के कई लोग बस इसलिए मारे गए क्योंकि वे जरूरत का सामान लेने घर से निकले थे. अब यहां सामान्य जिंदगी नामुमकिन सी हो गई है.
न्यूज एजेंसी एएफपी से बात करते हुए ओलेना कहती हैं, "आज थोड़ी शांति थी. जिंदगी में थोड़ी सुगबुगाहट आई थी, लेकिन जैसे ही किसी प्लेन की आवाज कानों में पड़ती है, वह क्रूर सा खौफ लौट आता है. हमने बचपन में जो फिल्में देखी थीं, उनमें ऐसा ही होता था."
बेटे के लिए रुक गईं ओलेना
गोलीबारी शुरू होने के पहले ओलेना ने सोचा था कि वह अपना शहर खारकीव नहीं छोड़ेंगी. फिर चाहे यह यूक्रेन के पास रहे, या इसपर रूस का कब्जा हो जाए. मगर अब वह असहाय महसूस करती हैं. कहती हैं, "बम धमाकों और मिसाइलों के मुकाबले मैं कुछ नहीं कर सकती हूं." दो दिन पहले ओलेना ने भागने का मन बनाया. वह तैयार थीं, लेकिन उनका बेटा एक अस्पताल में वॉलंटियर बन गया.
वह नहीं भागना चाहता है, सो अब ओलेना भी कहीं नहीं जाएंगी. वह रुक गई हैं क्योंकि डरती हैं कि अगर वह गईं, तो इतनी अकेली हो जाएंगी कि शायद अपना मानसिक संतुलन खो देंगी. उन्हें उम्मीद है कि उनके रुकने से शायद उनके बेटे को कुछ राहत मिले. ओलेना को लगता है कि वह अपने बेटे को मना लेंगी कि वह कोई जोखिम ना उठाए, अपनी जान दांव पर ना लगाए.
ओलेना का शहर कभी बहुत गुलजार, जिंदादिल था. सोवियत संघ के जमाने में वह कुछ समय के लिए यूक्रेन की राजधानी भी रहा था. लेकिन आज वह पहचाना नहीं जाता. शहर का सार्वजनिक यातायात थम गया है. सड़क पर राहगीर और साइकल सवार भी दिखने बंद हो गए हैं. राजधानी कीव की तरह खारकीव की मेट्रो सुरंगें भी हवाई बमबारी से बचने के लिए शेल्टर में तब्दील कर दी गई हैं. बिजली, पानी और हीटिंग सिस्टम की आपूर्ति भी कई बार रोकी जाती है. सुपरमार्केट कुछ देर के लिए खुलते हैं, लेकिन ज्यादातर रैक खाली हैं. मीट की तो खासतौर पर तंगी है.
किससे मिलती है हिम्मत?
इस हिंसा और निराशा के बीच भी ओलेना को जो एक चीज आगे बढ़ा रही है, वह है उनका काम. उनकी पत्रकारिता. लोगों तक खबर पहुंचाने का उनका फर्ज. वह भी तब, जब यह तक पक्का नहीं कि उन्हें वेतन मिलेगा भी कि नहीं. मिलेगा, तो कब मिलेगा. ओलेना कहती हैं, "यह मुझे खुद को बटोरने में मदद करता है."
3 मार्च को यूक्रेन और रूस के बीच फिर से वार्ता होने की उम्मीद है. मगर ओलेना को इस बातचीत से कुछ बड़ी राहत मिलने की बहुत आस नहीं है. वह कहती हैं, "मुझे नहीं पता कि हम किस चीज से उम्मीद लगा सकते हैं." ओलेना अपनी निराशा में संकेत देती हैं कि शायद अब एक ही उपाय शेष है. शायद रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को सत्ता से बेदखल करके ही यह युद्ध रुक सकेगा.
पेरिस के ग्रीवां संग्रहालय ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की एक मोम की प्रतिमा को हटा दिया है. संग्रहालय का कहना है कि यूक्रेन पर पुतिन के हमले के विरोध में मूर्ति को हटाया गया.
ग्रीवां संग्रहालय का कहना है कि कुछ प्रदर्शनकारियों ने हाल के दिनों में पुतिन की प्रतिमा को तोड़ने की कोशिश की है, जिससे उसे नुकसान पहुंचा है. पुतिन की यह मोम की प्रतिमा साल 2000 में बनाई गई थी. अब इस प्रतिमा को म्यूजियम के गोदाम में रखा गया है. ग्रीवां संग्रहालय ने यह भी कहा कि वह पुतिन की प्रतिमा को यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की की मूर्ति से बदल सकता है.
ग्रीवां संग्रहालय के निदेशक इवेज डेलोमिओ ने फ्रांसीसी रेडियो ब्लू को बताया, "पुतिन जैसे व्यक्ति के चरित्र को दुनिया के सामने पेश करना हमारे लिए संभव नहीं है. संग्रहालय के इतिहास में पहली बार हम हाल की ऐतिहासिक घटनाओं के कारण ऐसा कर रहे हैं."
उन्होंने बताया कि सप्ताहांत में संग्रहालय पहुंचे दर्शकों ने प्रतिमा पर हमले किए और उसे क्षतिग्रस्त कर दिया. उन्होंने कहा, "जो हुआ उसके परिणामस्वरूप, हमने और हमारे कर्मचारियों ने फैसला किया कि हम इस प्रतिमा के बाल और इसकी स्थिति को रोज-रोज ठीक नहीं कर सकते."
संग्रहालय के एक प्रवक्ता ने कहा कि यह साफ नहीं है कि पुतिन की प्रतिमा को प्रदर्शनी में कब दोबारा लगाया जाएगा. किसी वॉर फिल्म जैसा दिखने लगा है यूक्रेन का दूसरा सबसे बड़ा शहर खारकीव
"हीरो बन गए जेलेंस्की"
संग्रहालय में पुतिन की प्रतिमा को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच रखा गया था. संग्रहालय के निदेशक से जब यह पूछा गया कि अब पुतिन की मूर्ति की जगह कौन लेगा, तो डेलोमिओ ने कहा कि शायद यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की.
उन्होंने कहा, "शायद राष्ट्रपति जेलेंस्की की प्रतिमा को पुतिन की मूर्ति से बदल दिया जाएगा. वह विरोध जारी रख और अपने देश से नहीं भागकर हीरो बन गए हैं. वे दुनिया के इतिहास में आज की तारीख में अपने लिए जगह बना सकते हैं."
2014 में रूस द्वारा क्रीमिया को यूक्रेन से अलग करने के बाद एक महिला ने इस प्रतिमा पर हमला किया था और मूर्ति के सिर पर चाकू से वार किया था. यूक्रेन पर हमले के साथ ही दुनियाभर में यूक्रेन के समर्थन में प्रदर्शनों का दौर जारी है. लोग रूस से हमले रोकने के लिए कह रहे हैं.
यूक्रेन पर रूस के हमले की चौतरफा निंदा हो रही है. पश्चिम देश रूस पर प्रतिबंध लगा रहे हैं लेकिन पुतिन इन प्रतिबंधों के दबाव में फिलहाल आते नहीं दिख रहे हैं. 2014 में रूस ने जब क्रीमिया को यूक्रेन से अलग कर अपने साथ मिला लिया तभी से उस पर प्रतिबंधों का दौर शुरू हो गया था. इसके बाद रूसी राष्ट्रपति के आलोचक आलेक्सी नावाल्नी को 2020 में जहर देने के बाद ये सिलसिला और आगे बढ़ा था. यूक्रेन पर हमले के कारण रूस पर लगे प्रतिबंधों का जर्मनी को भी होगा तगड़ा नुकसान
पुतिन ने यूक्रेन पर हमला कर दावा किया कि सैन्य ऑपरेशन का लक्ष्य नागरिकों की रक्षा करना और यूक्रेन का "विसैन्यीकरण" सुनिश्चित करना है.
एए/वीके (रॉयटर्स)
भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के राष्ट्राध्यक्षों ने गुरुवार शाम एक औचक मुलाकात की. क्वॉड संगठन की इस बैठक में यूक्रेन के हवाले से ताइवान पर बातचीत हुई.
गुरुवार को एकाएक हुई क्वॉड देशों की वर्चुअल बैठक में भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के नेताओं ने कहा कि यूक्रेन जैसी घटना हिंद-प्रशांत क्षेत्र में नहीं होनी चाहिए. यूक्रेन युद्ध के साथ-साथ ताइवान को लेकर बढ़ती चिंताओं के दौरान यह बैठक हुई जिसमें भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन, अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन और जापान के प्रधानमंत्री फूमियो किशिदा शामिल हुए.
यूक्रेन पर रूस के हमले का हवाला देते हुए जापान के प्रधानमंत्री फूमियो किशिदा ने कहा, "हम इस बात पर सहमत हुए हैं कि यथास्थिति में बलपूर्वक एकतरफा बदलाव की इजाजत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में नहीं दी जा सकती.” किशिदा का इशारा चीन द्वारा ताइवान पर हमले की संभावना की ओर था. ताइवान खुद को एक स्वतंत्र लोकतांत्रिक देश मानता है जबकि चीन उसे अपना हिस्सा बताता है.
चीन के हमले के खतरे के बीच अमेरिकी अधिकारी पहुंचे ताइवान
बैठक के बाद किशिदा ने पत्रकारों को बताया, "हम इस बात पर भी सहमत हुए हैं कि यह घटना (यूक्रेन का युद्ध) इस बात को और अहम बना देती है कि एक आजाद और खुला हिंद-प्रशांत क्षेत्र कितना जरूरी है.”
चीन का नाम लिए बिना बातचीत
नेताओं ने बैठक के दौरान इसी तरह की टिप्पणियां कीं, जिनका इशारा चीन की ओर था. ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने कहा, "जो यूक्रेन में हो रहा है, उसे हम हिंद-प्रशांत में नहीं होने दे सकते. हम एक स्वतंत्र और खुला हिंद-प्रशांत बनाए रखने को प्रतिबद्ध हैं, जहां छोटे देशों को बड़ी ताकतों से डरने की जरूरत ना हो.”
इसी महीने ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में क्वॉड देशों के विदेश मंत्रियों की सालाना बैठक हुई थी. आने वाले महीनों में इन राष्ट्राध्यक्षों का जापान में मिलने का कार्यक्रम है लेकिन गुरुवार की बैठक का एकाएक ऐलान हुआ. बैठक के बाद जारी एक साझा बयान में क्वॉड नेताओं ने दोहराया कि क्षेत्र में सभी देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान होना चाहिए और वे सैन्य, आर्थिक व राजनीतिक दबाव से मुक्त रहें.
ताइवान: रक्षा प्रणालियों को मजबूत करने के लिए अमेरिका ने समझौते को दी मंजूरी
हालांकि साझा बयान में ताइवान का जिक्र नहीं किया गया लेकिन कहा गया कि नेताओं ने यूक्रेन विवाद और मानवीय संकट पर बात की. बयान के मुताबिक, "वे इस बात पर सहमत हुए कि मानवीय सहायता और आपदा राहत-बचाव की एक प्रक्रिया बनाए जाने की जरूरत है जो भविष्य में क्वॉड देशों को मानवीय चुनौतियों से निपटने में मददगार साबित होगी.”
ताइवान ने किया स्वागत
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने ट्वीट कर कहा कि इस बैठक में क्वॉड नेताओं ने "हिंद-प्रशांत समेत, पूरी दुनिया में संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के प्रति हमारी वचनबद्धता पर बात की.”
वॉशिंगटन में ताइवान के प्रतिनिधि कार्यालय ने क्वॉड की इस प्रतिबद्धता का स्वागत किया है. उन्होंने एक बयान में कहा, "ताइवान क्षेत्र के सभी शांतिप्रिय साझीदारों के साथ स्थिरता और प्रगति की दिशा में काम करता रहेगा.”
साझा बयान के मुताबिक भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बात पर जोर दिया कि "क्वॉड हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति, स्थिरता और प्रगति के अपने मुख्य लक्ष्य पर केंद्रित रहे.” भारतीय प्रधानमंत्री ने यूक्रेन संकट में कूटनीतिक हल की ओर लौटने की जरूरत पर बल दिया.
क्वॉड सदस्यों में भारत एकमात्र देश है जिसने यूक्रेन पर हमले को लेकर रूस की निंदा नहीं की है, बल्कि संयुक्त राष्ट्र में रूस के खिलाफ लाए गए प्रस्तावों पर मतदान से भी परहेज किया है.
वीके/एए (रॉयटर्स, एपी)
वाशिंगटन, 4 मार्च| अमेरिकी राज्य मैरीलैंड के मोंटगोमरी काउंटी में एक अपार्टमेंट परिसर में विस्फोट के बाद पांच लोगों घायल हो गए, जिससे उनकी हालत गंभीर है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, चार मंजिला अपार्टमेंट परिसर का एक हिस्सा, वाशिंगटन डीसी के बाहर कई किलोमीटर दूर, काले, सुलगते मलबे के ढेर में समा गया।
मोंटगोमरी काउंटी के फायर चीफ स्कॉट गोल्डस्टीन के अनुसार, गुरुवार सुबह करीब 10.30 बजे दमकलकर्मी घटनास्थल पर पहुंचे और इमारत में आग लगने और ढहने से पहले वे कुछ निवासियों को वहां से निकालने में सफल रहे।
गोल्डस्टीन ने संवाददाताओं से यह भी कहा कि लगभग 125 से 150 अग्निशामकों ने मामले को लेकर कहा था कि आग कैसे लगी यह बताना मुश्किल है।
मोंटगोमरी काउंटी फायर एंड रेस्क्यू के प्रवक्ता पीट पिरिंगर ने कहा कि सात से आठ लोग आग की चपेट में आए थे, हालांकि उन्हें ज्यादा चोटें नहीं लगी हैं, उनमें से कुछ लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
यह स्पष्ट रूप से एक बहुत दुखद घटना है, मोंटगोमरी काउंटी के कार्यकारी मार्क एलरिच ने बाद में कहा, काउंटी के अधिकारी अपार्टमेंट के निवासियों को आश्रय और अन्य सहायता प्रदान करने के लिए कदम उठाएंगे।
मैरीलैंड के गवर्नर लैरी होगन ने कहा कि राज्य के अधिकारी लोगों की सहायता करने के लिए मोंटगोमरी काउंटी के अधिकारियों के संपर्क में हैं। (आईएएनएस)
-समरा फ़ातिमा और मोहम्मद ज़ुबैर ख़ान
"मुझे अगर एक चारपाई मिल जाए, एक रोटी और उसके साथ खाने को कोई सालन मिल जाये तो मैं ख़ुश रहूंगा. मुझे ज़िंदा रहने के लिए किसी तरह की ऐश की ज़रुरत नहीं है... हालांकि, हमारी ज़िंदगी बहुत रंगीन गुज़री है और यूक्रेन में हमारे यहां होने वाली महफ़िलों का कोई जवाब नहीं. लोग सड़क पर आपके साथ सेल्फ़ी लेते हैं. बहुत से लोग आकर कहते हैं कि हम आपसे बहुत प्रभावित हैं. लेकिन मैंने इसे अपनी आदत नहीं बनाई है."
ये शब्द पाकिस्तानी मूल के अरबपति मोहम्मद ज़हूर के हैं, जिन्हें 'कीएव का शहज़ादा' भी कहा जाता है. दुनिया उन्हें 'स्टील किंग' और यूक्रेन की एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री की एक बड़ी हस्ती के रूप में जानती है.
उनकी पत्नी ने साल 2008 में मिसिज़ वर्ल्ड का ख़िताब जीता था और यूक्रेन की एक मशहूर गायिका हैं.
मोहम्मद ज़हूर ने यूक्रेन के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के साथ अपने घनिष्ठ संबंधों का ज़िक्र किया है. पिछले 11 वर्षों से, वह यूक्रेन में म्यूज़िक एवार्ड का आयोजन कर रहे हैं, जो उनके अनुसार "ग्रैमी" से कम नहीं हैं.
यूक्रेन पर रूसी हमले से दो दिन पहले वह अपनी आठ वर्षीय जुड़वां बेटियों को लेकर लंदन चले गए थे. जब मैंने लंदन में उनसे मुलाक़ात की, तो उनकी यूक्रेनी पत्नी यूक्रेन की सीमा के पास थी और देश छोड़ने की कोशिश कर रही थी.
बाद में हमें बताया गया कि वह अब यूक्रेन से निकल चुकी हैं.
कराची का एक छात्र यूक्रेन का सबसे अमीर व्यक्ति कैसे बना?
मैं पहली बार लंदन में इतने शानदार घर में दाख़िल हो रही थी. जब मैं उनका इंटरव्यू करने पहुंची तो उन्होंने ख़ुद दरवाज़ा खोला और एक 'जेंटल मेन' की तरह मेरा कोट लेकर हैंगर पर टांग दिया.
जैसे-जैसे हम घर में दाख़िल हो रहे थे, मेरे दिल में एक के बाद एक नए सवाल जन्म ले रहे थे, जिनके बारे में मैं पहले से सोच कर नहीं गई थी. अगर लंदन का घर इतना शानदार है, तो मोहम्मद ज़हूर का यूक्रेन का घर कैसा होगा? क्या यह वाक़ई सच है कि सपने चाहे कितने भी बड़े क्यों न हों, सच हो सकते हैं?
'स्टील किंग' बनने के बाद उन्होंने सारी स्टील मिलें बेच क्यों दीं? अब तक के व्यवहार को उनकी विनम्रता समझूं या पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव? और मैंने ये सारे सवाल इंटरव्यू के दौरान उनसे पूछे.
साथ ही यह भी समझने की कोशिश की कि कराची के एक छात्र से यूक्रेन के सबसे अमीर व्यक्ति बनने तक का सफ़र आख़िर कैसे पूरा हुआ.
कराची के रहने वाले मोहम्मद ज़हूर को आज पूरी दुनिया में स्टील की दुनिया का माहिर माना जाता है. वह साल 2008 तक सीधे तौर पर स्टील कारोबार से जुड़े हुए थे. यूक्रेन और ब्रिटेन सहित दुनिया में उनकी कई स्टील मिलें थीं. आने वाले वर्षों में, उन्होंने यूक्रेन और दुनिया भर में अपनी स्टील मिलें बेच दी.
इस समय वह दुनिया भर में स्टील के कारोबार पर सलाह और लेक्चर देने के अलावा, निवेश के कारोबार से जुड़े हुए हैं. इसके अलावा, यूक्रेन में उन्होंने कई वर्षों तक यूक्रेन में 'कीएव पोस्ट' नामक एक समाचार पत्र चलाया था. उनका दावा है कि अख़बार अपनी निष्पक्ष नीतियों और सरकार की आलोचना के कारण लोकप्रिय हुआ था, लेकिन बाद में उन्होंने इसे बेच दिया.
हम अभी इंटरव्यू की तैयारी कर ही रहे थे कि घर के बग़ीचे में खेल रही चार बच्चियां बार-बार मेरा ध्यान अपनी तरफ़ खींच रही थीं. मुझे इस बात की चिंता थी कि लगभग एक ही उम्र की चार बच्चियां इस घर में क्या कर रही हैं. वहां मौजूद मोहम्मद ज़हूर के दामाद ने मुझे बताया कि दो बेटियां उनकी हैं और दो ज़हूर की हैं.
वह मोहम्मद ज़हूर की पहली शादी से होने वाली बेटी के पति हैं.
ज़हूर की पहली पत्नी अब मास्को में रहती है और मास्को के साथ भी उनका गहरा संबंध रहा हैं. वह 13 साल तक मास्को में भी रहे. वहां भी उनके दोस्त रहते हैं.
ज़हूर ने ख़ुद बताया कि उनकी दूसरी पत्नी कमालिया ऐसे कई शॉज़ में गा चुकी हैं, जहां राष्ट्रपति पुतिन भी मेहमानों में शामिल थे. कमालिया के पिता मास्को से हैं और उनकी मां यूक्रेन से हैं, लेकिन कमालिया ख़ुद को यूक्रेनी ही मानती हैं.
हमलों की तमाम संभावनाओं के बावजूद कमालिया अपना देश नहीं छोड़ना चाहती थी. ज़हूर ने बताया, कि "22 फरवरी को, जब दुनिया भर के समाचार चैनल हमले की संभावना जाता रहे थे, तब भी वो यही कह रही थी कि रूसी हमारे भाई हैं और वे हम पर हमला नहीं करेंगे." इसलिए उन्होंने बच्चियों के साथ ज़हूर को पहले लंदन भेजा ख़ुद वहीँ रह गई थी.
ज़हूर ने कहा, "सरकार सहित 100 प्रतिशत लोग ये समझ रहे थे कि हमला नहीं होगा." मेरे उन सभी के साथ अच्छे संबंध हैं. राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की मेरे और मेरी पत्नी के भी अच्छे दोस्त हैं. मैं हमेशा उनसे पूछता रहता था कि क्या करना चाहिए?'
उन्होंने कहा, 'सब यही कहते थे कि हमारी भी ख़ुफ़िया जानकारी है और हमें ऐसा कुछ नज़र नहीं आ रहा है. आप बिल्कुल चिंता न करें. हमें नहीं लगता कि रूस हमला करेगा, वे सिर्फ़ वार्ता के लिए ऐसा करना चाहते हैं."
कराची से यूक्रेन तक का सफ़र
मोहम्मद ज़हूर का जन्म पाकिस्तान के सबसे बड़े शहर कराची में हुआ था. उनके पिता ख़ुशहाल ख़ान ख़ैबर पख़्तूनख़्वा प्रांत के मानसेहरा जिले के हसनैना गांव के रहने वाले हैं. ख़ुशहाल ख़ान पाकिस्तान बनने से पहले ही कराची चले गए थे.
इस इंटरव्यू के दौरान मोहम्मद ज़हूर ने कई बार इस बात पर ज़ोर दिया कि "मेरी सफलता में मेरे पिता की तरबियत, मां की दुआओं और अल्लाह की मर्ज़ी का बहुत बड़ा हाथ है."
उन्होंने बताया, कि "हम कराची में रहते थे और उस समय हमें यह बात अच्छी नहीं लगती थी कि हमारे पिता की सरकारी नौकरी के बावजूद हमारा जीवन दूसरों की तरह सम्मानजनक और शानदार नहीं था. मेरे पिता सिंध के डिप्टी अकॉउंटेंट जनरल थे. यह एक बहुत बड़ा पद था. लेकिन उनके साथ के लोग कारों में आते थे, जबकि मेरे पिता करीब 15 साल पुरानी साइकिल से आते-जाते थे. हमारी भी यही आदत थी. लेकिन आगे चल कर इसी चीज़ ने मेरी ज़िंदगी में एक बहुत बड़ी भूमिका निभाई."
मोहम्मद ज़हूर के देश से बहार निकलने के सफ़र की शुरुआत 1974 में उस समय हुई, जब उनका सेलेक्शन सोवियत संघ में इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए हुआ. उस समय, वह कराची में एनईडी यूनिवेर्सिटी में इंजीनियरिंग के प्रथम वर्ष के छात्र थे.
छात्रवृत्ति के लिए चुने गए 42 बच्चों में से कुछ को सेंट पीटर्सबर्ग, कुछ को मास्को और कुछ को डोनेट्स्क भेजा गया, जिनमें ज़हूर भी शामिल थे.
डोनेट्स्क में अपने छात्र जीवन के दिनों को याद करते हुए, उनके चेहरे पर एक मुस्कान दिखाई देती है. वो बताते हैं कि "अपने साथ जाने वालों में सबसे जल्दी रूसी भाषा मैंने सीखी, जिससे मुझे आगे बढ़ने में बहुत मदद मिली. इस बीच, कुछ सफल और कुछ असफल मुहब्बतें भी हुई, और शिक्षा के साथ साथ, मैंने दोस्त बनाने के अलावा जीवन के कई महत्वपूर्ण अनुभव भी किए."
अपने छात्र जीवन में ही उन्होंने अपने साथ पढ़ने वाली एक लड़की से शादी कर ली थी, जो बाद में उनके साथ पाकिस्तान में भी रहीं. इस छात्रवृत्ति की शर्त थी कि अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद, उन्हें वापस जाकर पांच साल तक पाकिस्तान स्टील मिल में काम करना होगा.
उनके मुताबिक़ जब वे पढ़ाई पूरी करके पाकिस्तान लौटे तो समस्याओं का एक ढेर उनका इंतज़ार कर रहा था.
पाकिस्तान स्टील मिल में पहली नौकरी
उन्होंने बताया कि सोवियत संघ से शिक्षा प्राप्त करने के बाद पाकिस्तान वापस जाने पर उन्हें पहले स्टील मिल के सुरक्षा विभाग में तैनात किया गया और बाद में निर्माण विभाग में ट्रांसफ़र कर दिया गया. दोनों ही विभागों का काम उनकी डिग्री से जुड़ा हुआ नहीं था.
उन्होंने मेटलर्जी में इंजीनियरिंग की थी. लेकिन उन्हें उनकी शिक्षा और कौशल के अनुसार काम नहीं दिया गया. उनके अनुसार विपरीत परिस्थितियों और रवैयों के बावजूद उन्होंने इतना शानदार परफॉर्म किया, कि जब उन्होंने वो नौकरी छोड़ने का मन बनाया तो उस समय के स्टील मिल के चेयरमेन ने उनका इस्तीफ़ा सात बार रिजेक्ट किया था.
ज़हूर ने बताया, कि "मेरे पास ऐसे बहुत सारे अवसर थे, जब मैं सिर्फ़ एक हस्ताक्षर कर के बहुत सारे पैसे कमा सकता था." लेकिन पापा की तरबियत का ऐसा असर था कि वो हो नहीं पाया."
सोवियत संघ वापसी
इस बीच, मास्को में एक कंपनी को किसी ऐसे व्यक्ति की ज़रुरत थी जो उन्हें पाकिस्तान के साथ व्यापार करने में मदद कर सके. और रूसी भाषा में माहिर होने और क़ाबिलियत की वजह से, ज़हूर को इस नौकरी के लिए चुन लिया गया. और इस तरह वे मास्को पहुंच गए.
मोहम्मद ज़हूर ने बताया, कि "80 के दशक के अंत में मास्को पहुंच कर, मैंने स्पेयर पार्ट्स की आपूर्ति शुरू कर दी थी. साथ ही, मैंने अपनी कंपनी से कहा कि यहां से स्टील ले कर जाना एक फायदेमंद सौदा हो सकता है. स्टील मिलों में मुझे लगभग सभी लोग जानते थे."
इस कारोबार में उनकी कंपनी ने पाकिस्तान को स्टील भेजना शुरू कर दिया, लेकिन इस बिक्री के बदले में पाकिस्तान से भुगतान नक़द के बजाय कपड़े के रूप में होता था. उन्होंने बताया कि इस काम में मुनाफ़ा बेशुमार यानि बाज़ार में मौजूदा मुनाफ़े से कई गुना ज़्यादा था.
ज़हूर बताते हैं "तीन साल के अंदर, मेरी सेलरी एक हज़ार से बढ़कर और बोनस मिलाकर 50 हज़ार डॉलर हो गई थी, और दूसरे मद में मेरे ऊपर, ऑफ़िस आने जाने का ख़र्च, किराया और अन्य खर्चों सहित लगभग डेढ़ लाख डॉलर ख़र्च होते थे.
फिर कई कारणों की वजह से उन्होंने सोचा कि क्यों न वो अपना ख़ुद का कारोबार शुरू करें.
उन्होंने बताया "उस समय, मैंने थाईलैंड के एक कारोबारी के साथ एक कंपनी शुरू की, जिसमें 51 प्रतिशत शेयर उसका और 49 प्रतिशत शेयर मेरा था.
और इस तरह स्टील की दुनिया पर राज करने की उनकी यात्रा शुरू हुई. धीरे-धीरे यूरोप और फिर दुनिया भर में उनके ऑफ़िस खुलने लगे.
स्टील किंग
साल 1996 में, उन्होंने डोनेट्स्क में उसी स्टील मिल को ख़रीद लिया, जहां उन्होंने छात्र जीवन में अपना आख़िरी प्रेक्टिकल पूरा करके डिग्री हासिल की थी.
ज़हूर डोनेट्स्क स्टील मिल के मालिक ज़रूर बन गए थे, लेकिन उसकी हालत बहुत ख़राब थी. उन्होंने बताया कि "हमने इसे बनाना शुरू कर दिया था. हमने अत्याधुनिक और बहुत ही शानदार मिल बनाई."
मोहम्मद ज़हूर ने बताया कि उसके बाद उन लोगों ने अमेरिका और दुनिया के विभिन्न देशों में स्टील मिलें लगाईं थी, जो बहुत ही सफलता से चल रही थीं. और यूक्रेन में उनके संबंध बढ़ चुके थे.
और इसी दौरान आर्थिक स्थिति के चलते अख़बार 'कीएव पोस्ट' बंद होने वाला था, जिसे मोहम्मद ज़हूर ने ख़रीद लिया और मीडिया इंडस्ट्री में क़दम रख दिया.
कीएव पोस्ट की लोकप्रियता और बिक्री
मोहम्मद ज़हूर के मुताबिक़, ''यूक्रेन के उस समय के माहौल में कीएव पोस्ट को चलाना बहुत मुश्किल था. लेकिन मैंने निवेश करने के बाद उसकी संपादकीय व्यवस्था को आज़ाद रखा था. उन्होंने अपनी संपादकीय टीम से कहा था कि निष्पक्ष रह कर शानदार अख़बार चलाना है. इसका साप्ताहिक सर्कुलेशन 30 हज़ार थी. उस समय यूक्रेन की आबादी 40 मिलियन थी."
लेकिन कई सालों तक अख़बार को सफलतापूर्वक चलाने के बाद उन्हें इसे बेचना पड़ा.
मोहम्मद ज़हूर ने कहा कि इस दौरान "हमने उस समय की सरकारों की भी कड़ी आलोचना की" और बाद में उन्होंने इस शर्त पर अख़बार बेच दिया था कि इसे बंद नहीं किया जाएगा और इसकी स्वतंत्र नीति जारी रहेगी, लेकिन कुछ समय पहले किसी कारण से यह बंद हो गया और उन्होंने सुना है कि इसे अब दोबारा लॉन्च किया जाएगा.
बुलंदी पर होते हुए स्टील मिलों की बिक्री
मोहम्मद ज़हूर ने बताया कि चीन ने साल 2008 के ओलंपिक की मेज़बानी की थी. इसकी तैयारी के लिए चीन दुनिया भर से स्टील ख़रीद रहा था. उन्होंने भी ख़ूब बेचा, लेकिन इसके साथ ही चीन के अंदर तेज़ी से स्टील मिलें लगनी शुरू हो गई.
उन्होंने कहा, कि "जब मैंने इस स्थिति को देखा, तो मुझे एहसास हो गया कि चीन की स्टील मिलों के चलने के बाद यह कारोबार फ़ायदेमंद नहीं रहेगा."
इस स्थिति को समझते हुए उन्होंने साल 2008 में अपने स्टील के कारोबार को पूरी तरह से बेच दिया. अब तक वो अपनी कंपनी के अकेले मालिक बन चुके थे, क्योंकि साल 2004 में उन्होंने अपने पार्टनर से सारे शेयर ख़रीद लिए थे.
मोहम्मद ज़हूर ने कहा था कि समय ने साबित कर दिया कि उनका फ़ैसला सही था. अब वे दुनिया भर में निवेश करते हैं. उन्होंने बताया "मेरा निवेश लगभग 10 करोड़ डॉलर है."
पत्नी और बच्चों का पाकिस्तान से लगाव
ज़हूर के घर में, हर कोई रूसी भाषा में बात करता है. लेकिन जब उनकी बड़ी बेटी से मेरी मुलाक़ात हुई, तो उन्होंने मुझसे उर्दू में पूछा, "आप कॉफी पियेंगी?" तब मुझे पता चला कि वो रूसी दीखते ज़रूर हैं लेकिन उनका रिश्ता पकिस्तान से भी जुड़ा हुआ है. उसने बताया कि कोरोना से पहले, वे हर साल पाकिस्तान जाते थे और उन्हें बॉलीवुड फ़िल्में बहुत पसंद हैं.
ज़हूर के घर में ज़्यादातर यूक्रेनी खाने बनते हैं, लेकिन पाकिस्तानी खाने भी पसंद किये जाते हैं.
मोहम्मद ज़हूर ने बताया, कि उनकी पत्नी कमालिया पाकिस्तान में चैरिटी का बहुत काम करती हैं. उनके मुताबिक़, साल 2005 में आए भूकंप के दौरान उन्होंने यूक्रेन से उपकरण ले जाकर पाकिस्तान में एक फील्ड अस्पताल बनाने में मदद की थी.
ज़हूर ने कहा, कि 'इस घटना के दो साल बाद तक कमालिया वहां जाती रही. उन्होंने कश्मीर के एक गांव को सशक्त बनाया. वहां एक यूक्रेनी फील्ड अस्पताल की व्यवस्था की. इसके अलावा, इस्लामाबाद में मौजूद कार्डियोलॉजी सेंटर में बच्चों में हृदय रोग पर शोध के लिए धन उपलब्ध कराया."
उनके मुताबिक कमलिया इसी तरह के कई सरकारी और गैर सरकारी संगठनों के साथ संपर्क में रहकर चैरिटी का काम कर रही हैं. वो जिस विनम्रता के साथ अपने प्रशंसकों से मिलती हैं वह भी ज़हूर को बेहद पसंद है.
कमालिया को पाकिस्तानी गायिका नाज़िया हसन के गाने बहुत पसंद हैं और वो उन्हें सीख कर बहुत से संगीत कार्यक्रमों में गा भी चुकी है. पाकिस्तान दिवस के मौके पर उन्होंने पाकिस्तानी दूतावास में 'दिल दिल पाकिस्तान' गाकर मेहमानों का दिल जीत लिया था.
यह एक मुश्किल सवाल था और जवाब में उन्होंने पूरे विश्वास के साथ कहा कि 'पाकिस्तान मेरा जन्मस्थान है, और मेरा पासपोर्ट ब्रिटेन का है, लेकिन मैं जन्म के बाद अगर किसी स्थान को अपना घर मानता हूं, तो वह यूक्रेन है, क्योंकि इस देश में मैंने शिक्षा हासिल की है, इस देश में मैंने दो बार शादी की और सारा पैसा वहीं कमाया. मैंने वहां लोगों को रोज़गार दिया, सोशल वर्क किये और वहीँ मेरे दोस्त हैं, जिनमें से कुछ ज़िंदा हैं और कुछ अब मर चुके हैं. मैं पाकिस्तानी राजनीति के बारे में भी ज़्यादा नहीं जानता, लेकिन मैं यूक्रेन में जितना रहा हूं पूरे मन से रहा हूं.
यूक्रेन पर रूसी हमले के कारण कारोबार को होने वाले संभावित नुक़सान के बारे में पूछे जाने पर भी उन्होंने बहुत ही धैर्य से जवाब दिया, कि उन्होंने अपनी सारी संपत्ति किसी एक स्थान या क्षेत्र में नहीं रखी, इसलिए वह ज़्यादा चिंतित नहीं होते.
लेकिन साथ ही, उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि वह ख़ुशक़िस्मत हैं कि अल्लाह ने उन्हें इतना दिया जिसकी उन्होंने कभी उम्मीद भी नहीं की थी.
एक गहरी सांस लेकर मुस्कुराते हुए उन्होंने कहा कि "जब 48 साल पहले में यूक्रेन आया था, तो मेरे पिता ने मुझे 120 डॉलर दिए थे. उस व्यक्ति की यही हैसियत थी और वो इतने ही दे सकते थे."
"उन 120 डॉलर को मैं 48 साल से खर्च कर रहा हूं, और अभी भी मेरे पास कुछ बचे हुए हैं." (bbc.com)
नई दिल्ली, 4 मार्च | यूक्रेन के राष्ट्रपति के सलाहकार मायखायलो पोडोलयक ने ट्वीट किया है कि उन्होंने और अन्य अधिकारियों ने बेलारूस में रूसी प्रतिनिधियों के साथ बातचीत शुरू कर दी है। उन्होंने एजेंडे में प्रमुख मुद्दों को रेखांकित किया है - तत्काल युद्धविराम और लगातार गोलाबारी झेल रहे गांवों और शहरों से नागरिकों की सुरक्षित निकासी।
सीएनएन मुताबिक, रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने एक वीडियो कॉन्फ्रेंस में कहा, "बातचीत चलेगी।"
लावरोव ने दावा किया कि यूक्रेनी पक्ष ने जानबूझकर आने में देरी की और कहा कि यूक्रेन संयुक्त राज्य की कठपुतली है।
साथ ही गुरुवार को क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने कहा कि एक रूसी प्रतिनिधिमंडल बेलारूस में अपने यूक्रेनी समकक्षों की प्रतीक्षा कर रहा है।
उन्होंने कहा, "हमारा प्रतिनिधिमंडल बीती रात वहां मौजूद था। यह यूक्रेन के वातार्कारों का पूरी रात और फिर सुबह इंतजार कर रहा था। वे अभी भी इंतजार कर रहे हैं। हम आशा करते हैं कि वे आज पहुंचेंगे।"
दूसरे दौर की वार्ता के लिए दोनों देशों के प्रतिनिधिमंडल बुधवार को मिलने वाले थे।
सोमवार को पहले दौर की वार्ता पांच घंटे तक चली और बिना किसी सफलता के खत्म हो गई।(आईएएनएस)
कोलंबो, 4 मार्च| श्रीलंका की जलसीमा में भारतीय मछुआरों के प्रवेश के खिलाफ उत्तरी मछुआरा संघ और एक पर्यावरण कार्रवाई समूह की याचिका पर श्रीलंका की अपील अदालत सुनवाई करेगी। भारतीय मछुआरों के श्रीलंकाई समुद्र में प्रवेश करने के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई करने के लिए पुलिस महानिरीक्षक को आदेश देने की मांग वाली रिट याचिका पर 5 मई को सुनवाई होनी है।
अपनी याचिका में उत्तरी प्रांत के मछुआरा संघ और पर्यावरण न्याय केंद्र ने दावा किया कि श्रीलंकाई जल में भारतीय ट्रॉलरों का प्रवेश श्रीलंका के मछुआरों की आजीविका, राष्ट्रीय मछली उत्पादन, मछली पकड़ने की निर्यात आय और श्रीलंका के समृद्ध पारिस्थितिकी तंत्र से वंचित करता है।
उन्होंने आरोप लगाया कि श्रीलंका के ऐतिहासिक जल और प्रादेशिक समुद्र में पिछले कुछ महीनों में भारतीय ट्रॉलरों द्वारा अवैध रूप से मछली पकड़ने की सूचना में अचानक वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा कि यह नौसेना और पुलिस की उन विदेशी मछुआरों को गिरफ्तार करने में विफलता का परिणाम है जो अवैध रूप से श्रीलंकाई जलक्षेत्र में प्रवेश करते हैं।
याचिकाकर्ताओं ने शिकायत की कि भारत और श्रीलंका के बीच समझौतों का उल्लंघन करते हुए भारतीय मछुआरे नियमित रूप से अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा (आईएमबीएल) को पार करते हैं और मछली पकड़ने के संचालन के लिए श्रीलंका के ऐतिहासिक जल और क्षेत्रीय समुद्र में प्रवेश करते हैं। (आईएएनएस)
नई दिल्ली/कीव, 2 मार्च| रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच 'डीपफेक' वीडियो की संख्या में अचानक उछाल ने अमेरिकी अधिकारियों को सतर्क कर दिया है। बताया जा रहा है कि इनका इस्तेमाल यूक्रेन विरोधी गलत सूचनाएं फैलाने के लिए किया जा रहा है। द गार्जियन की एक रिपोर्ट के अनुसार, 'यूक्रेन टुडे' नाम के एक रूसी प्रचार अभियान में युद्ध के इर्द-गिर्द फर्जी खबरों को बढ़ावा देने के लिए फेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम पर फर्जी अकाउंट का इस्तेमाल किया जा रहा है।
अमेरिकी खुफिया अधिकारी वीडियो और ऑडियो में हेराफेरी पर नजर रखे हुए हैं, क्योंकि गलत सूचना के कई मामले सामने आ सकते हैं।
फॉक्स न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार, एफबीआई अवैध डीपफेक के खिलाफ अभियान जारी रखे हुए है, क्योंकि तकनीक में सुधार जारी है।
एफबीआई साइबर डिवीजन यूनिट के प्रमुख प्रणव शाह ने रिपोर्ट में कहा, "ऑडियो, वीडियो, टेक्स्ट और छवियां जो कुछ ऐसा दिखाने के लिए बनाई गई हैं, जो जरूरी नहीं थीं।"
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि फेसबुक और ट्विटर ने सप्ताहांत में रूस समर्थक यूक्रेनी होने का दिखावा करने वाले कई फर्जी प्रोफाइलों को हटा दिया है।
यूक्रेन विरोधी दुष्प्रचार को बढ़ावा देने के लिए डीपफेक का उपयोग करते हुए रूस और बेलारूस के साथ संबंधों को प्रभावित करने वाले ऑपरेशन चलते पाए गए हैं।
'डीपफेक' वीडियो फर्जीवाड़ा है, जो लोगों को ऐसा कुछ कहते हुए दिखाते हैं जो उन्होंने कभी नहीं किया, जैसे कि फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग और यूएस हाउस स्पीकर नैन्सी पेलोसी के लोकप्रिय जाली वीडियो, जो वायरल हो गए।
हाल के वर्षो में 'डीपफेक' इतने विश्वसनीय हो गए हैं कि वास्तविक छवियों के अलावा उन्हें बताना मुश्किल हो सकता है।
फेसबुक और ट्विटर ने सप्ताहांत में दो यूक्रेन विरोधी 'गुप्त प्रभाव संचालन' को बंद कर दिया। एक का संबंध रूस से था, तो दूसरे का बेलारूस से।
पिछले हफ्ते, एआई न्यूज ने एक अध्ययन का हवाला देते हुए बताया कि मनुष्य अब वास्तविक और एआई-जनित 'डीपफेक' चेहरों के बीच अंतर नहीं कर सकते। (आईएएनएस)
-सिमोना क्रालोवा और सैंड्रो वेत्सको
एक मार्च यानी मंगलवार की रात (भारतीय समयानुसार) साढ़े दस बजे रूस के टेलीविज़न पर सरकारी मीडिया जो पेश कर रहा था वो वास्तविकता से परे कवरेज़ का एक बेहतरीन उदाहरण था.
जब बीबीसी वर्ल्ड टीवी ने अपने बुलेटिन की शुरुआत कीएव में एक टीवी टावर पर हुए हमले से की तो रूसी टीवी इस बात की घोषणा कर रहा था कि अपने शहरों पर हमलों के लिए यूक्रेन ही ज़िम्मेदार है.
अब सवाल ये उठता है कि रूस में टेलीविज़न देखने वाले लोग इस युद्ध के बारे में क्या देख रहे हैं? समाचारों के माध्यम से वो क्या सुन रहे हैं?
इस लेख में हम वो बताने जा रहे हैं, जो 01 मार्च 2022 को रूस की आम जनता ने वहां की सरकार या उसके कॉरर्पोरेट सहयोगियों के नियंत्रण वाले विभिन्न टीवी चैनलों पर देखा.
रूस में सरकारी नियंत्रण वाले मशहूर चैनलों में से एक चैनल वन पर ब्रेकफास्ट न्यूज़ अन्य देशों की ही तरह सामान्य ख़बरों, संस्कृति और हल्के फुल्के मनोरंजन के मिले-जुले स्वरूप से अलग नहीं होता है. लेकिन मंगलवार की सुबह मॉस्को के समय के मुताबिक 05:30 बजे (भारतीय समयानुसार सुबह 8 बजे) प्रसारण का ये क्रम बाधित हुआ.
एंकर ने कहा कि टीवी कार्यक्रम ताज़ा ख़बरों की वजह से बदला जा रहा है और आगे इस प्रोग्राम में समाचार ही प्रसारित होंगे. अनुभवहीन दर्शकों को गुमराह करने के लिए तैयार किए गए न्यूज़ बुलेटिन में बताया गया कि यूक्रेन की सेना के रूसी सेना को पहुंचाए गए नुकसान की ख़बरें ग़लत हैं.
एंकर दर्शकों को ये बताते हैं कि "इंटरनेट पर वो फ़ुटेज फ़ैलाई जा रही हैं जिसे फ़ेक के अलावा कुछ और नहीं कहा जा सकता." इसके बाद एक तस्वीर के माध्यम से उसे 'मामूली वर्चुअल हेरफेर' बताया जाता है.
फिर (मॉस्को के समयानुसार) सुबह 8 बजे हमने एनटीवी का सुबह का बुलेटिन देखा, जो कि क्रेमलिन के नियंत्रण वाले गज़प्रोम की एक सहायक कंपनी का है.
उस पर अधिकांश ख़बरें डोनबास की घटनाओं पर केंद्रित थीं, 24 फ़रवरी को यूक्रेन पर हमले से पहले, पुतिन ने कहा था कि वो यूक्रेन को नाज़ियों से मुक्त कराने के लिए सैन्य अभियान छेड़ रहे हैं.
हैरानगी की बात है कि कई मील लंबे उस सैन्य काफ़िले की किसी भी समाचार में चर्चा तक नहीं थी जो बेलारूस से यूक्रेन की राजधानी कीएव की तरफ़ बढ़ रही थी. जबकि आधे घंटे बाद ही बीबीसी रेडियो-4 के न्यूज़ बुलेटिन में उसके बारे में बताया जा रहा था.
एनटीवी के प्रस्तुतकर्ता ने कहा, "हम डोनबास की ताज़ा ख़बरों से शुरुआत कर रहे हैं. लुहान्स्क पीपल्स रिपब्लिक (एलएनआर) के लड़ाके अपना आक्रमण जारी रख रहे हैं और तीन किलोमीटर आगे बढ़ गए हैं, जबकि दोनेत्स्क पीपल्स रिपब्लिक (डीएनआर) की यूनिट 16 किलोमीटर बढ़ चुकी है."
प्रस्तुतकर्ता रूस समर्थित विद्रोहियों का ज़िक्र कर रहे थे जो 2014 यानी आठ साल पहले यूक्रेन में रूस के हस्तक्षेप के बाद से लुहान्स्क और दोनेत्स्क में मौजूद हैं.
रूस से दो सबसे अधिक लोकप्रिय चैनल रोसिया 1 और चैनल वन पर डोनबास क्षेत्र में यूक्रेन की सेना पर युद्ध अपराध का आरोप लगाया जा रहा है.
रोसिया 1 के प्रस्तुतकर्ता कहते हैं, "यूक्रेनियों को ख़तरा रूसी सेना से नहीं बल्कि ख़ुद उनके अपने राष्ट्रवादियों से है."
"वो नागरिकों को मानव ढाल के रूप में उपयोग कर रहे हैं, जानबूझ कर रिहाइशी इलाकों को हमले का निशाना बनवा रहे हैं जिससे डोनबास के शहरों में गोलीबारी बढ़ रही है."
चैनल 1 के प्रस्तुतकर्ता बता रहे हैं कि यूक्रेन की सेना अपने नागरिकों और रूस की सेना को उकसा रहे हैं.
रूस के चैनलों पर यूक्रेन की घटनाओं को युद्ध नहीं बताया जा रहा है. इसे वो यूक्रेन का सैन्यीकरण बंद करने और एक गणराज्य की रक्षा करने के लिए चलाया गया अभियान बता रहे हैं.
चैनल बार-बार बता रहा है कि यूक्रेन में सैन्य ठिकानों को ही निशाना बनाया जा रहा है.
सरकारी नियंत्रण वाले टीवी पर प्रस्तुतकर्ता और संवाददाता भावनात्मक भाषा और तस्वीरें दिखा रहे हैं, इसे जर्मनी के ख़िलाफ़ सोवियत संघ की लड़ाई या यूक्रेन में रूस के विशेष अभियान से जोड़ते हुए दिखाया जा रहा है.
रोसिया 1 के चैनल रोसिया 24 पर सुबह के एक बुलेटिन में बताया गया कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद उन राष्ट्रवादियों ने अपनी चाल नहीं बदली है जो बच्चों को अपना ढाल बनाया करते थे.
एक संवाददाता टीवी प्रसारण में कहते हैं, "वे फासीवादियों की तरह व्यवहार करते हैं. नियो नाज़ियों ने न केवल अपने सैन्य उपकरणों को रिहाइश के पास रखा है बल्कि बेसमेंट में बच्चों के पास भी रखा है."
यूक्रेन पर आरोप
रूसी टीवी चैनल, देश के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के उन अपुष्ट दावों को दोहरा रहा है जिनमें बीते हफ़्ते उन्होंने कहा था कि यूक्रेन महिलाओं, बच्चों और बुज़ुर्गों को मानव ढाल बना रहा है.
पश्चिम में मीडिया कह रहा है कि पुतिन की सेना को तेज़ी से आगे बढ़ने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है लेकिन रूसी टीवी पर रूस के अभियान को बहुत सफल बताया जा रहा है.
लगातार यूक्रेन के हथियार और हार्डवेयर नष्ट को किए जाने के बारे में ख़बरें दी जा रही हैं. बताया जा रहा है कि 1,100 से अधिक सैन्य ढांचों को और सैकड़ों की संख्या में हार्डवेयर को नष्ट किया जा चुका है.
किसी भी चैनल पर ये नहीं बताया जा रहा कि अभियान में रूसी सेना के कितने लोग हताहत हुए हैं.
रूसी चैनलों पर सुबह की ख़बरों में यूक्रेन के अन्य हिस्सों में उसकी सेना की कार्रवाई के बारे में बताया जा रहा है. सरकारी टीवी संवादताता कीएव या ख़ारकीएव से ग्राउंड रिपोर्ट नहीं कर रहे हैं. बल्कि वो अपनी सेना के साथ डोनबास से रिपोर्ट कर रहे हैं.
आखिर दोपहर के समाचार में एनटीवी ने उस बात का ज़िक्र किया कि जो बीबीसी ने अपने घंटों के कवरेज़ में बताया था, कि ख़ारकीएव के शहर पर गोलाबारी की गई है.
हालांकि रूसी चैनल ये ख़बर चला रहे हैं कि इस हमले के लिए रूसी सेना को ज़िम्मेदार ठहराना एक फ़ेक न्यूज़ है. चार घंटे बाद रोसिया 1 ने बताया कि यूक्रेन की सेना ख़ुद उसके लिए ज़िम्मेदार है.
चैनल ने सवाल उठाया कि "ख़ारकीएव पर हमला करके ये कहना कि रूस ने किया, गलत है. यूक्रेन ख़ुद पर प्रहार कर रहा है और पश्चिम के देशों को झूठ बोल रहा है. लेकिन क्या लोगों को गुमराह करना इतना आसान है?"
शाम पांच बजे के बुलेटिन में रोसिया-1 ने बताया कि यूक्रेन में रूस का मुख्य उद्देश्य क्या है, "पश्चिम के ख़तरे के ख़िलाफ़ रूस की रक्षा करना, जो मॉस्को के साथ अपने गतिरोध में यूक्रेन के लोगों का उपयोग कर रहा है."
यूक्रेन को लेकर रूस में जो तथाकथित फ़ेक न्यूज़ और अफ़वाहें बताई जा रही हैं उससे मुक़ाबला करने के लिए रूसी सरकार एक नई वेबसाइट शुरू कर रही है जहां केवल "सही सूचनाएं" ही पब्लिश किए जाने का दावा किया जा रहा है.
टीवी चैनलों को आधिकारिक वर्ज़न के लिए मीडिया वॉचडॉग रोसकोम्नाज़ॉर की ज़रूरत होती है.
लेकिन ऐसा भी नहीं कहा जा सकता की मंगलवार को वहां के प्रसारण में कोई विविधता नहीं थी. न्यूज़ बुलेटिन में जहां यूक्रेन में युद्ध अपराधों की बात की गई वहीं चैनल वन टीवी करेंट अफेयर्स टॉक शो द ग्रेट गे में क्रेमलिन समर्थक व्याचेस्लाव निकोनोव ने कार्यक्रम ख़त्म करने से पहले यूक्रेन के प्रति अपनी मोहब्बत के बारे में बताया.
"मैं यूक्रेन से बहुत प्यार करता हूं, मैं यूक्रेन वासियों से बहुत प्यार करता हूं. मैं कई बार वहां जा चुका हूं. ये वाकई एक शानदार देश है. और मुझे लगता है कि रूस निश्चित रूप से उसे समृद्ध और मित्र राष्ट्र बनाना चाहेगा... हम जीतेंगे."
रोसकोम्नाज़ॉर ने टिक टॉक से नाबालिगों के लिए सैन्य और राजनैतिक कंटेंट को हटाने का सुझाव दिया है.
आरोप है कि इनमें अधिकतर रूस विरोधी कंटेंट हैं. संस्था ने गूगल से रूसी सेना को पहुंचाए गए नुकसान के बारे में रॉयटर्स की तथाकथित ग़लत जानकारी को हटाने की मांग भी की है. साथ ही उसने रूस के ख़ास सैन्य अभियान को लेकर फ़ेक न्यूज़ की आड़ में ट्विटर के लोडिंग स्पीड को भी घटा दिया है और फ़ेसबुक की पहुंच को भी सीमित किया है.
इसने मीडिया संस्थानों से रूस के हमले पर रिपोर्ट करते समय केवल आधिकारिक रूसी स्रोतों का उपयोग करने का निर्देश भी जारी किया है.
साथ ही यह भी मांग की है कि "युद्ध की घोषणा" या "आक्रमण" जैसे शब्दों का उल्लेख न करें उसे हटा दें. इस आदेश पर कार्रवाई नहीं करने की सूरत में उन पर जुर्माना और ब्लॉक तक करने की धमकी दी गई है. एक स्वतंत्र टीवी चैनल Dozhd और लोकप्रिय रेडियो स्टेशन Ekho Moskvy पर तथाकथित ग़लत ख़बरों के प्रसारण को लेकर प्रतिबंध लगा भी दिया गया है.
इस कहानी में फ़्रांसिस स्कार ने भी सहयोग दिया है (bbc.com)
नई दिल्ली, 3 मार्च| रूस के प्रमुख स्टेट बैंक ने यूक्रेन पर मास्को के हमले के मद्देनजर कर्मचारियों और उसकी शाखाओं की सुरक्षा के लिए खतरों का हवाला देते हुए यूरोपीय संघ के वित्तीय बाजारों से बाहर निकलने का खुलासा किया है। आरटी के मुताबिक, स्बरबैंक ने बुधवार को एक बयान में घोषणा की कि यह निर्णय उसके सहायक बैंकों के 'धन के असामान्य आउटफ्लो' का सामना करने के परिणामस्वरूप लिया गया। वित्तीय दिग्गज ने यह भी दावा किया कि उसके कर्मचारी और शाखाएं खतरे में थीं।
संस्था ने अपनी विदेशी मुद्रा को संरक्षित करने के उपाय किए जाने के बाद एक नोटिस जारी किया, जिसमें कहा गया है, "रूस के सेंट्रल बैंक के निर्देश के कारण स्बरबैंक (रूस) अपनी यूरोपीय सहायक कंपनियों को तरलता की आपूर्ति करने में सक्षम नहीं होगा।"
हालांकि, इसने आश्वासन दिया कि इसके सहायक बैंकों के पास उच्च स्तर की पूंजी और संपत्ति की गुणवत्ता थी और ग्राहक जमा स्थानीय कानून के अनुरूप बीमाकृत थे।
आरटी ने बताया कि यूरोपीय संघ से रूस के सबसे बड़े ऋणदाता के जाने से स्विट्जरलैंड में उसके व्यवसाय पर कोई असर नहीं पड़ता है, जो उसने कहा कि सामान्य रूप से काम करना जारी है, क्योंकि उसके पास अपनी गतिविधियों को जारी रखने के लिए पर्याप्त स्तर की पूंजी और संपत्ति है।
जर्मनी, ऑस्ट्रिया, क्रोएशिया और हंगरी सहित कई यूरोपीय संघ के सदस्य राज्यों में स्बरबैंक चालू था और 2020 के अंत में इसने 14.4 अरब डॉलर से अधिक की यूरोपीय संपत्ति का दावा किया था। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 3 मार्च | रूस की अंतरिक्ष एजेंसी के प्रमुख रोस्कोस्मोस ने देश के उपग्रहों के संचालन को बाधित करने की कोशिश कर रहे हैकर्स को चेतावनी दी है कि उनके कार्यो को 'कैसस बेली, यानी एक ऐसी घटना जो युद्ध को सही ठहराती है' के रूप में समझा जा सकता है। आरटी के मुताबिक, रूस के आरकेए मिशन कंट्रोल सेंटर पर साइबर हमले के तुरंत बाद दिमित्री रोगोजि़न की टिप्पणी आई। बुधवार को एक समाचार चैनल से बात करते हुए अधिकारी ने कहा कि जो लोग ऐसा करने का प्रयास कर रहे हैं, उन्हें पता होना चाहिए कि यह एक अपराध है, जिसके लिए बहुत कड़ी सजा की जरूरत होती है।
रोगोजिन ने जोर देकर कहा कि किसी भी देश के अंतरिक्ष बलों के संचालन में व्यवधान एक तथाकथित कैसस बेली है, जो एक ऐसी घटना का वर्णन करने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक लैटिन शब्द है जो या तो युद्ध की शुरुआत की को सही ठहराता है।
रोस्कोस्मोस के प्रमुख ने जिम्मेदार लोगों को भी धमकी दी कि उनका निगम उनकी पहचान करेगा, और डेटा को रूसी सुरक्षा सेवाओं को सौंप देगा, ताकि वे हैकर्स के खिलाफ आपराधिक जांच शुरू कर सकें।
इससे पहले, कई टेलीग्राम समूहों ने दावा किया था कि एनबी65 हैकर समूह, जो कथित तौर पर बेनामी से जुड़ा हुआ है, ने रूस के उपग्रहों के साथ रोस्कोसमोस के संचार को सफलतापूर्वक भंग कर दिया था।(आईएएनएस)
यूक्रेन पर जारी संकट के बीच रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अपनी सेना को अपनी प्रतिरोधी शक्तियों को "स्पेशल अलर्ट" पर रखने का आदेश दिया है जिनमें परमाणु हथियार भी शामिल हैं. पुतिन ने अपने रक्षा प्रमुखों से कहा कि पश्चिम के आक्रामक बयानों की वजह से ऐसा करना ज़रूरी हो गया है.
वैसे, उनकी इस घोषणा का मतलब ये कतई नहीं है कि रूस परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करना चाहता है. मगर उनके इस एलान ने दुनिया में परमाणु हथियारों की चर्चा छेड़ दी है.
हालाँकि, शीत युद्ध के दौर के बाद से परमाणु हथियारों के भंडार में बहुत कमी आई है, मगर अभी भी दुनिया में सैकड़ों परमाणु हथियार हैं जिन्हें बहुत कम समय के भीतर दाग़ा जा सकता है.
क्या होते हैं परमाणु हथियार
ये बेहद शक्तिशाली विस्फोटक या बम हैं.
इन बमों को ताक़त या तो परमाणु के नाभिकीय या न्यूक्लियर कणों को तोड़ने या फिर उन्हें जोड़ने से मिलती है जिसे विज्ञान की भाषा में संलयन या विखंडन कहा जाता है.
परमाणु हथियारों के इस्तेमाल से बड़ी मात्रा में रेडिएशन या विकिरण निलकता है और इसलिए इनका असर धमाके बाद बहुत लंबे समय तक रहता है.
क्या परमाणु हथियारों का इस्तेमाल हुआ है
दुनिया में अब तक दो बार परमाणु बमों से हमला किया गया है जिनसे भयंकर नुक़सान हुआ.
आज से 77 साल पहले ये दोनों हमले अमेरिका ने किए थे जब उसने जापान के दो शहरों पर परमाणु बम गिराए.
6 अगस्त अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा शहर पर 9 अगस्त को नागासाकी पर परमाणु बम गिराए थे.
ऐसा माना जाता है कि हिरोशिमा में 80,000 और नागासाकी में 70,000 से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई थी.
कितनी संख्या है इनकी
वैसे परमाणु हथियारों के बारे में कोई भी देश खुलकर नहीं बनाता मगर ऐसा समझा जाता है कि परमाणु शक्ति संपन्न देशों की सेना के पास 9,000 से ज़्यादा परमाणु हथियार हैं.
स्वीडन स्थित संस्था थिंक टैक 'स्टॉकहोम इंटरनैशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट' (सिप्री) ने पिछले वर्ष अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि 2020 के आरंभ में इन नौ देशों के पास लगभग 13,400 परमाणु हथियार थे जिनमें से 3,720 उनकी सेनाओं के पास तैनात थे.
सिप्री के अनुसार इनमें से लगभग 1800 हथियार हाई अलर्ट पर रहते हैं यानी उन्हें कम समय के भीतर दाग़ा जा सकता है.
इन हथियारों में अधिकांश अमेरिका और रूस के पास हैं. सिप्री की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका के पास 2020 तक अमेरिका के पास 5,800 और रूस के पास 6,375 परमाणु हथियार थे.
भारत के पास कितने परमाणु हथियार हैं?
सिप्री की रिपोर्ट के अनुसार परमाणु हथियारों के मामले में भारत के पड़ोसी देश चीन और पाकिस्तान उससे कहीं आगे हैं.
रिपोर्ट के अनुसार 2021 तक भारत के पास जहाँ 150 परमाणु हथियार थे, वहीं पाकिस्तान के पास 160 और चीन के पास 320 परमाणु हथियार थे.
परमाणु शक्ति संपन्न देश
इन्हीं नौ देशों के पास परमाणु हथियार क्यों हैं
1970 में 190 देशों के बीच परमाणु हथियारों की संख्या सीमित करने के लिए एक संधि लागू हुई जिसका नाम है परमाणु अप्रसार संधि या एनपीटी.
अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ़्रांस और चीन भी इसमें शामिल हैं. मगर भारत, पाकिस्तान और इसराइल ने इसपर कभी हस्ताक्षर नहीं किया और उत्तर कोरिया 2003 में इससे अलग हो गया.
इस संधि के तहत केवल पाँच देशों को परमाणु हथियार संपन्न देश माना गया जिन्होंने संधि के अस्तित्व में आने के लिए तय किए गए वर्ष 1967 से पहले ही परमाणु हथियारों का परीक्षण कर लिया था.
ये देश थे - अमेरिका, रूस, फ़्रांस, ब्रिटेन और चीन.
संधि में कहा गया कि ये देश हमेशा के लिए अपने हथियारों का संग्रह नहीं रख सकते यानी उन्हें इन्हें कम करते जाना होगा.
साथ ही इन देशों के अलावा जितने भी देश हैं उनपर परमाणु हथियारों के बनाने पर रोक भी लगा दी गई.
इस संधि के बाद अमेरिका, ब्रिटेन और रूस ने अपने हथियारों की संख्या में कटौती की.
मगर बताया जाता है कि फ़्रांस और इसराइल के हथियारों की संख्या लगभग जस की तस रही.
वहीं भारत, पाकिस्तान, चीन और उत्तर कोरिया के बारे में फ़ेडरेशन ऑफ़ अमेरिकन सांइस्टिस्ट्स ने कहा कि ये देश अपने परमाणु हथियारों की संख्या बढ़ाते जा रहे हैं. (bbc.com)
नयी दिल्ली , 2 मार्च | रूस के राजदूत डेनिस अलीपोव ने बुधवार को कहा कि उनका देश यूक्रेन में फंसे भारतीय नागरिकों को बाहर निकालने के लिये सुरक्षित मार्ग बना रहा है। यूक्रेन स्थित भारतीय दूतावास ने भारतीय नागरिकों को किसी भी हालत में तत्काल खारकीव और कीव छोड़ने की चेतावनी जारी की है।
अलीपोव ने कहा, हम सुरक्षित मार्ग बनाने के लिये तेजी से काम कर रहे हैं ताकि उन इलाकों में फंसे भारतीय नागरिक सुरक्षित उसके जरिये रूस जा सकें।
उन्होंने कहा कि यूक्रेन के जिन इलाकों में संघर्ष गंभीर है, वहां से भारतीय छात्रों को सुरक्षित बाहर निकालने के लिये रूस हरसंभव प्रयास करेगा।
उन्होंने साथ ही यूक्रेन में मंगलवार की सुबह मारे गये भारतीय छात्र नवीन के परिजनों के प्रति संवेदना जतायी और कहा कि उसकी मौत की जांच होगी।
कर्नाटक का 21 साल का नवीन खारकिव शहर में स्थित खारकिव नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में अंतिम वर्ष का छात्र था। वह राशन लेने के लिये एक कतार में खड़ा था जब हमले में वह मारा गया।
राजदूत ने कहा कि खारकिव, सुमी और पूर्वोत्तर के अन्य क्षेत्रों में फंसे भारतीय नागरिकों को लेकर भारतीय प्रशासन से लगातार संपर्क बना हुआ है।
उन्होंने कहा कि रूस कुछ सुरक्षित गलियारा बनाने की तैयारी कर रहा है, जिससे लोग सुरक्षित तरीके से रूस में आ सकें।
राजदूत ने साथ ही कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत के तटस्थ और संतुलित रूख अपनाने से हम उसके प्रति कृतज्ञ हैं। भारत मौजूदा संकट को समझता है। वह इस संकट की गहराई, इसके कारण और पूरी स्थिति को बाखूबी समझता है। हमें उम्मीद है कि भारत आगे भी यही रूख रखेगा।
उन्होंने कहा कि रूस और भारत के बीच के रक्षा सौदे में देर नहीं होगी और जमीन से हवा में मार करने वाली लंबी दूरी की मिसाइल एस400 की डिलीवरी में कोई बाधा नहीं आयेगी।
राजदूत ने कहा कि प्रतिबंधों से सौदे में कोई दिक्कत नहीं आयेगी। (आईएएनएस)
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदोमीर ज़ेलेंस्की ने राजधानी कीएव में एक होलोकॉस्ट मेमोरियल पर रूस के मिसाइल हमले की आलोचना की है और इसे मानवता से परे बताया है. बेबीन यार मेमोरियल दूसरे विश्व युद्ध के दौरान कीएव में मारे गए 33 हज़ार से अधिक यहूदियों की याद में बना है. इन्हें नाज़ी सैनिकों ने मारा था.
ज़ेलेंस्की ने कहा- इस तरह का मिसाइल हमला ये दिखाता है कि रूस के कई लोगों के लिए हमारा कीएव पूरी तरह विदेश है. वे हमारी राजधानी के बारे में, हमारे इतिहास के कुछ भी नहीं जानते उन्होंने कहा- उनके पास हमारे इतिहास को मिटाने का आदेश है, हमारे देश को मिटाने का, हम सबको मिटाने का.
यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की ने बुधवार को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन से भी बात की. उन्होंने सुरक्षा सहायता सुनिश्चित कराने के लिए जॉनसन को धन्यवाद किया और कहा कि रूसी सैनिकों को रोकने के लिए ये बहुत ज़रूरी है. दोनों नेता इस पर सहमत थे कि पुतिन पर दबाव बढ़ाने के लिए और पाबंदियाँ लगाने की आवश्यकता है. बोरिस जॉनसन ने रूस के हमलों की निंदा की और कहा कि उनकी प्रार्थना यूक्रेन के लोगों के साथ है. (bbc.com)
रूस यूक्रेन के दूसरे बड़े शहर खारकीएव पर लगातार हमले कर रहा है. यहाँ के कई सरकारी भवनों को निशाना बनाया जा रहा है. अब खारकीएव में नगर परिषद भवन पर रूस ने क्रूज मिसाइल दागी है.
खारकीएव के डिप्टी गवर्नर ने यह जानकारी दी है. खारकीएव रूसी सीमा से महज 30 मील दूर है. पिछले दो दिनों से रूसी सेना यहाँ जम कर बमबारी कर रही है. शहर की सड़कों पर रूसी और यूक्रेनी सेना के बीच आमने-सामने की लड़ाई की खबरें हैं. पिछली रात रूस ने यहाँ विमान से सैनिक उतारे थे. इसके बाद लड़ाई और तेज हो गई.
मंगलवार को एक मिसाइल सरकारी मुख्यालय पर भी दागी गई थी. जिससे आसपास आग का गोला फैल गया था. इसने इमारत और आसपास की कारों को भारी नुकसान पहुँचाया. इस हमले के बाद यूक्रेन के राष्ट्रपति ने कहा था कि रूस रिहायशी इलाकों पर हमला कर युद्ध अपराध को अंजाम दे रहा है.
विज़ुअल जर्नलिज़्म टीम
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने देश की न्यूक्लियर फ़ोर्सज़ को 'स्पेशल अलर्ट' पर रखा है. उनके इस क़दम से दुनिया भर में चिंता जताई जा रही है.
लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि पुतिन का ये क़दम शायद यूक्रेन के साथ उनकी जंग में अन्य किसी देश को शामिल होने से रोकने के लिए है. इसे परमाणु हथियार इस्तेमाल करने की इच्छा का संकेत नहीं माना जाना चाहिए.
दुनिया में 80 साल से परमाणु हथियार मौजूद रहे हैं. बहुत से देश उन्हें एक हथियार के तौर पर देखते हैं जो उनकी राष्ट्रीय सुरक्षा की गारंटी देते हैं.
रूस के पास कितने परमाणु हथियार?
परमाणु हथियार की संख्या के आंकड़े अनुमान ही होते हैं लेकिन फ़ेडरेशन ऑफ़ अमेरिकन साइंटिस्ट्स नामक संस्था के मुताबिक रूस के पास दुनिया भर में 5,977 परमाणु हथियार हैं. इनमें से 1,500 एक्सपायर होने वाले हैं या पुराने हो जाने के कारण जल्द ही उन्हें तबाह कर दिया जाएगा.
बाक़ी के 4,500 हथियारों को स्ट्रैटेजिक न्यूक्लियर वेपन (रणनीतिक परमाणु हथियार) माना जाता है. इनमें बैलिस्टिक मिसाइलें और रॉकेट्स शामिल हैं जो लंबी दूरी तक मार कर सकते हैं. यही हथियार हैं जिन्हें परमाणु युद्ध के साथ जोड़कर देखा जाता है.
रूस के परमाणु हथियार
बाक़ी के हथियार काफ़ी छोटे और कम तबाही करने वाले हैं जिनका प्रयोग ज़मीन या पानी से कम दूरी के लक्ष्यों के लिए किया जा सकता है.
लेकिन इसका ये भी अर्थ नहीं है कि रूस के पास हज़ारों लंबी दूरी तक मार करने वाले परमाणु हथियार हैं जो किसी भी वक्त दाग़े जा सकते हैं
विश्लेषकों का अनुमान है कि रूस ने क़रीब 1,500 परमाणु हथियार तैनात कर रखे हैं. इसका अर्थ है कि इतने हथियार मिसाइल और एयर फ़ोर्स के अड्डों पर या पन्नडुब्बियों पर तैनात किए हुए हैं.
बाक़ी दुनिया की तुलना में कहां ठहरता है रूस?
दुनिया में नौ देशों - चीन, फ़्रांस, भारत, इसराइल, उत्तर कोरिया, पाकिस्तान,रूस, अमेरिका और ब्रिटेन - के पास परमाणु हथियार हैं.
परमाणु हथियार
चीन, फ़्रांस, रूस, अमेरिका और ब्रिटेन उन 191 देशों में शामिल हैं जिन्होंने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर किए हुए हैं.
इस संधि के अंतर्गत उन्हें अपने परमाणु हथियारों के जख़ीरे को कम करना है और सैद्धांतिक तौर पर पूरी तरह से ख़त्म करना है.
1970 और 1980 के दशक में इन देशों ने अपने हथियारों की संख्या में बड़ी कटौती की है.
भारत, इसराइल और पाकिस्तान ने कभी इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए. उत्तर कोरिया ने 2003 में ख़ुद को इस संधि से अलग कर लिया था.
विश्व की नौ परमाणु शक्तियों में से मात्र इसराइल ही ऐसा है जिसने आजतक कभी औपचारिक रूस से खुद के पास परमाणु हथियार होने की बात नहीं कही है.
लेकिन माना जाता है कि उसके पास परमाणु हथियार हैं.
यूक्रेन के पास कोई परमाणु हथियार नहीं है. रूसी राष्ट्रपति पुतिन के आरोपों के बावजूद आजतक इस बात का सबूत नहीं मिला है कि यूक्रेन पर परमणु हथियार जुटाने का प्रयास कर रहा है.
परमाणु हथियारों से कितनी तबाही?
परमाणु हथियारों का मकसद ही है अधिकतक तबाही. लेकिन तबाही का स्तर नीचे दी गई चीज़ों पर निर्भर करती है -
परमाणु हथियार का साइज़
ज़मीन से कितने ऊपर इसका विस्फोट हुआ
स्थानीय वातावरण
लेकिन छोटे से छोटा परमाणु हथियार में बड़ी संख्या में लोगों की जान ले सकता है और आने वाली पीढ़ियों पर भी असर डाल सकता है.
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापान के हिरोशिमा में गिराया गया अमेरिका परमाणु बम 15 किलोटन था.
परमाणु हथियार
आजकल के परमाणु बम एक हज़ार किलोटन तक के हो सकते हैं.
जैसे ही किसी इतने बड़े परमाणु हथियार के इस्तेमाल के बाद विस्फोट होगा, इसके आस-पास कुछ नहीं बचेगा.
परमाणु विस्फोट के दौरान, एक आँखे चौंधिया देने वाली रोशनी के बाद एक आग का गोला निकलता है जो अपने आस-पास कई किलोमीटर तक इमारतों और अन्य ढांचे को नेस्तनाबूद करते जाता है.
परमाणु हमला प्रतिरोधक क्या है और क्या ये कारगर रहा है?
न्यक्लियर डेटेरेंट यानी परमाणु हमला प्रतिरोधक का अर्थ है कि आप इतनी बड़ी संख्या में परमाणु हथियार तैयार रखें जो आपके दुश्मन को पूरी तरह से तबाह करने के काबिल हों. अगर ऐसा होगा तो आपका विरोधी कभी आप पर हमला नहीं करेगा.
इसके लिए अंग्रेज़ी में एक मुहावरा गढ़ा गया था जिसे MAD कहते हैं यानी म्यूचुअली एश्योरड डिस्ट्रक्शन.
रूस यूक्रेन संकट: दुनिया में किस देश के पास कितने परमाणु हथियार हैं
1945 के बाद न्यूक्लियर हथियारों की तकनीक और तबाही करने की क्षमता में बेतहाशा वृद्धि हुई है लेकिन राहत की बात है कि उसके बाद से उनका इस्तेमाल नहीं हुआ है.
रूस की परमाणु नीति भी अपने हथियार को डेटेरेंट के रूप में स्वीकारती है. रूस का कहना है कि वो नीचे दी गई चार सूरतों में ही परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करेगा.
रूसी फ़ेडरेशन या उसके सहयोगियों पर बैलिस्टिक मिसाइल का हमला
रूसी फ़ेडरेशन या उसके सहयोगियों पर परमाणु हमला
रूस की ऐसी मिलिट्री और सरकारी जगह पर हमला जिससे उसकी परमाणु क्षमता को ख़तरा हो
रूसी फ़ेडरेशन के ख़िलाफ़ आम हथियारों से ऐसा हमला की राज्य का अस्तित्व ही ख़तरे में पड़ जाए.
यहां तक कि पुतिन की धमकी भी एक चेतावनी है. ये उनके परमाणु हथियारों को इस्तेमाल करने की इच्छा को नहीं दिखाता. लेकिन युद्ध के दौरान अपने दुश्मन से होने वाले रिस्क के ग़लत आंकलन से चीज़ें कई बार हाथ से निकल जाती हैं.
तो क्या हमें चिंतित होना चाहिए?
ब्रिटेन के विदेश मंत्री बेन वैलेस ने बीबीसी न्यूज़ को बताया है कि ब्रिटेन ने अब तक रूसी परमाणु हथियारों को वास्तविक स्थान से हरकत करते नहीं देखा है.
ख़ुफ़िया सूत्रों के मुताबिक इस पर बारीक़ी से नज़र रखी जा रही है. (bbc.com)
एक फूटे हुए रॉकेट के अवशेष 9,300 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चांद की सतह से टकराने वाले हैं. तीन टन वजन वाले इस कचरे से इतना बड़ा गड्ढा हो सकता है जिसमें ट्रैक्टर जितने बड़े कई वाहन समा जाएंगे.
चांद की सतह के जिस तरफ यह कचरा टकराएगा वो सुदूर ऐसी जगह है जहां तक धरती की दूरबीनों की नजर नहीं पहुंचती है. सैटेलाइट चित्रों की मदद से टक्कर की पुष्टि करने में कई सप्ताह या कई महीने भी लग सकते हैं.
विशेषज्ञों का मानना है कि यह रॉकेट चीन का है जिसने इसे करीब एक दशक पहले अंतरिक्ष में छोड़ा था. यह तबसे अंतरिक्ष में इधर उधर भटक रहा है. लेकिन चीन के अधिकारियों ने इस रॉकेट के चीनी होने पर संदेह व्यक्त किया है.
निजी पर्यवेक्षक ने लगाया पता
बहरहाल, रॉकेट हो किसी का भी वैज्ञानिकों का मानना है कि इसकी टक्कर से चांद की सतह पर 10 से 20 मीटर गहरा गड्ढा हो जाएगा और चांद की धूल उड़ कर सतह पर सैकड़ों किलोमीटर तक फैल जाएगी.
पृथ्वी के पास ही अंतरिक्ष में तैर रहे कचरे पर नजर रखना तुलनात्मक रूप से आसान होता है. गहरे अंतरिक्ष में भेजी जाने वाली चीजों के किसी दूसरी चीज से टकराने की संभावना कम ही होती है और उन्हें अक्सर जल्दी ही भुला भी दिया जाता है.
सिर्फ शौकिया तौर पर खगोलीय जासूस की भूमिका निभा रहे मुट्ठीभर अंतरिक्ष पर्यवेक्षक उन पर नजर रखते हैं. इसी तरह के एक पर्यवेक्षक बिल ग्रे ने जनवरी में इस रॉकेट के चांद से टकराने के मार्ग का पता लगाया था. ग्रे एक गणितज्ञ और एक भौतिकशास्त्री हैं.
चीन का इनकार, संदेह बरकरार
शुरू में उन्होंने स्पेसएक्स को इसका जिम्मेदार बताया था जिसके बाद कंपनी की आलोचना भी हुई थी. लेकिन ग्रे ने एक महीने बाद बताया कि शुरू में वो गलत थे और अब उन्हें पता चला है कि वो "रहस्मयी" चीज स्पेसएक्स का रॉकेट नहीं है.
उन्होंने बताया कि संभव है कि वो एक चीनी रॉकेट का तीसरा चरण है जिसने 2014 में चांद पर एक टेस्ट सैंपल कैप्सूल भेजा था. कैप्सूल फिर वापस आ गया था लेकिन रॉकेट उसके बाद भटकता ही रहा.
चीनी सरकार के अधिकारियों का कहना है कि वो रॉकेट पृथ्वी के वायुमंडल में वापस लौट आने के बाद जल गया था. लेकिन एक जैसे नाम वाले दो चीनी मिशन थे जिनमें एक थी यह टेस्ट उड़ान और दूसरी थी 2020 का चांद की सतह से पत्थरों के सैंपल ले कर वापस आने वाला मिशन.
क्यों होती है टक्कर
अमेरिकी पर्यवेक्षकों का मानना है कि दोनों मिशनों की जानकारी को मिलाया जा रहा है. धरती के पास अंतरिक्ष कचरे पर नजर रखने वाले अमेरिकी अंतरिक्ष कमांड ने मंगलवार को बताया कि 2014 वाले मिशन का चीनी रॉकेट कभी धरती के वायुमंडल में कभी वापस आया ही नहीं.
लेकिन कमांड इस बात की पुष्टि नहीं कर पाया कि अभी चांद से टकराने वाली चीज किस देश की है. ग्रे का कहना है उन्हें पूरा विश्वास है कि यह चीन का ही रॉकेट है. चांद पर पहले से ही कई गड्ढे हैं. चांद का वायुमंडल लगभग न के बराबर है जिसकी वजह से वो लगातार गिरने वाले उल्कापिंडों और क्षुद्रग्रहों से अपना बचाव नहीं कर पाता है.
बीच बीच में अंतरिक्ष यान भी उससे टकराते रहते हैं. इनमें ऐसे यान भी हैं जिन्हें वैज्ञानिक परीक्षणों के लिए जानबूझकर टकराया जाता है. चांद पर कोई मौसम भी नहीं है जिसकी वजह से उसकी सतह का घिसाव भी नहीं होता और ये गड्ढे हमेशा के लिए रह जाते हैं.
सीके/एए (एपी)
मंगलवार को यूक्रेन पर रूस की तरफ से बड़ा हमला किया गया. इस हमले में कई नागरिक ठिकानों को भी निशाना बनाया गया है जिसमें आम लोगों की जानें गई हैं. युद्ध रोकने की कोशिशों में कोई खास प्रगति नहीं हुई.
रूसी सैनिकों की गोलीबारी ने यूक्रेन के दूसरे सबसे बड़े शहर खारकीव के मुख्य चौराहे और दूसरे नागरिक इलाकों पर भारी प्रहार किया है. हमले के बाद खारकीव का मुख्य चौराहा धूल और मलबे से भर गया है. रूसी सैनिकों का हमला सूरज निकलने के कुछ देर बाद ही शुरू हो गया. हमले के बाद एक प्रत्यक्षदर्शी ने कहा, "आप इसे रोए बिना नहीं देख सकते." एक आपातकालीन अधिकारी ने बताया कि मलबे में से कम से कम 6 लोगों के शव निकाले जा चुके है. 20 दूसरे लोग भी इसमें घायल हुए हैं. यह साफ नहीं है कि हमला किस हथियार से किया गया या कुल कितने लोग इसके शिकार हुए हैं.
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने आरोप लगाया है कि रूस यूरोप की जमीन पर कई पीढ़ियों बाद हो रही सबसे बड़ी जंग में दबाव बनाने के लिए आतंकवादी तरीकों का सहारा ले रहा है. रणनीतिक रूप से यूक्रेन के लिए अहम खारकीव में सोवियत जमाने की प्रशासनिक और रिहायशी इमारतों को निशाना बनाया गया है. सोशल मीडिया पर आ रही तस्वीरों और वीडियो में यह देखा जा सकता है. गोलीबारी में एक मैटर्निटी वार्ड भी ध्वस्त हो गया है. जेलेंस्की ने खराकीव के मुख्य चौराहे पर हमले को "साफ तौर पर आतंकवाद" माना है और इसके लिए रूसी मिसाइल को जिम्मेदार बताते हुए युद्ध अपराध कहा है.
शहर के केंद्र पर हमला
यह पहली बार है जब रूसी सेना ने शहर के केंद्र को निशाना बनाया है. खारकीव के बाहरी इलाके में कई दिनों से हमले चल रहे हैं. यूक्रेन के आपातकालीन सेवा का कहना है कि गोलाबारी के बाद 24 जगहों पर आग बुझाई है और 69 विस्फोटकों को बेकार किया गया है. बहुत सारे स्वयंसेवक और गार्डों ने इन प्रशासनिक इमारतों को अपना ठिकाना बनाया था. आशंका है कि कुछ स्वयंसेवक भी इस गोलीबारी के शिकार हुए हैं.
उधर रूसी सेना ने नागरिक ठिकानों को निशाना बनाने के आरोप से इनकार किया है. रक्षा मंत्री सर्गेइ शोइगो का कहना है कि सेना, "नागरिकों के जीवन की सुरक्षा के लिए सारे कदम उठा रही है. मैं इस बात पर जोर देना चाहूंगा कि हमले केवल सैन्य ठिकानों पर किए जा रहे हैं और बेहद सटीक हथियारों का इस्तेमाल किया जा रहा है."ऐसी खबरें आ रही हैं कि रूस ने आबादी वाले तीन इलाकों में क्लस्टर बमों का प्रयोग किया है. मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा है कि उसने एक क्लस्टर बम का इस्तेमाल पूर्वी यूक्रेन के अस्पताल पर हुए हमले में दर्ज किया है. स्कूल, अस्पताल और रिहायशी इमारतें हमले की चपेट में आई हैं लेकिन रूस इसे मानने से इनकार कर रहा है.
पश्चिमी देशों के तमाम उपायों के बावजूद रूसी अधिकारी लगातार धमकियां दे रहे है यहां तक कि रूसी राष्ट्रपति ने परामणु हथियारों को भी हाई अलर्ट पर रखने का आदेश दे दिया है.
रूस के पूर्व राष्ट्रपति और पुतिन के करीबी दमित्री मेदवेदेव ने तो यहां तक कह दिया है कि रूस के खिलाफ चल रही "आर्थिक जंग असल जंग में भी" बदल सकती है. मेदवेदेव रुस की सुरक्षा परिषद के उप प्रमुख हैं. फ्रांस के वित्त मंत्री ब्रूनो ले मायर ने कहा था कि यूरोपीय संघ रूस के खिलाफ आर्थिक जंग छेड़ने जा रहा है. इसी के जवाब में मेदवेदेव ने कहा, "अपनी जबान पर ध्यान दीजिए जेंटलमैन और यह मत भूलिए कि मानव इतिहास में आर्थिक जंग कई बार सचमुच की जंग में बदल गई है."
दूसरे दौर की बातचीत
रूस और यूक्रेन के प्रतिनधियों के बीच पहले दौर की बातचीत का कोई नतीजा नहीं निकला हालांकि दोनों पक्ष दूसरे दौर की बातचीत पर तैयार हो गए हैं. रूस की सरकारी समाचार एजेंसी तास ने खबर दी है कि दोनों पक्षों की 2 मार्च को दूसरे दौर की बातचीत होगी.
संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विभाग का कहना है कि उसने अब तक 136 आम लोगों की मौत दर्ज की है. इनमें 13 बच्चे भी हैं. जंग में मरने वालों की असल संख्या इससे बहुत ज्यादा हो सकती है. इस बीच खारकीव से एक भारतीय छात्र के मौत की भी खबर आई है. छात्र की उम्र 21 साल बताई गई है. भारत के विदेश विभाग ने इस बात की पुष्टि की है कि और कहा है कि कर्नाटक का एक छात्र यूक्रेन में मारा गया है और सरकार पीड़ित परिवार के संपर्क में है. बीते दिनों में करीब 8 हजार भारतीय छात्र यूक्रेन से वापस आए हैं. इनमें से 1,400 छात्रों को यूक्रेन के पड़ोसी देशों से छह खास उड़ानों में वापस लाया गया है. अनुमान है कि अब भी करीब 12,000 छात्र यूक्रेन में फंसे हुए हैं और मदद का इंतजार कर रहे हैं. भारत सरकार ने उन्हें निकालने के लिए एक बड़ा अभियान शुरू किया है.
पूरे यूक्रेन में बहुत सारे लोगों ने सोमवार को एक और रात शेल्टरों, तहखानों या फिर कॉरिडोर में बिताई है. खारकीव के एक तहखाने में कई पड़ोसियों के साथ पांच रातों से रह रही एकातेरिना बाबेंको ने कहा, "यह भयानक अनुभव है, और आपको बहुत अंदर तक मजबूती से जकड़ ले रहा है, इसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता. हमारे साथ छोटे बच्चे हैं, बुजुर्ग लोग हैं और साफ कहूं तो यह बहुत डरावना है."
यूक्रेन सेना के एक अधिकारी ने बताया कि मंगलवार को चेर्निहीव इलाके में बेलारूस के सैनिक भी जंग में शामिल हो गए हैं. यूक्रेनी अधिकारी ने ज्यादा ब्यौरा नहीं दिया. इससे कुछ ही पहले यूक्रेन के राष्ट्रपति आलेक्जांडर लुकाशेंको ने कहा था कि उनके देश की युद्ध में शामिल होने की कोई योजना नहीं है.
खारकीव के केंद्र को निशाना बनाने का उद्देश्य फिलहाल समझ में नहीं आ रहा है. पश्चिमी अधिकारियों का अनुमान है कि रूस चाहता है कि यूक्रेन के सैनिक खारकीव की सुरक्षा में लग जाएं इस बीच वह कीव को घेर ले. उनका मानना है कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का लक्ष्य यूक्रेन की सरकार को सत्ता से हटा कर वहां अपने मनपसंद लोगों को बिठाना है.
कीव को घेरने की को कोशिश
रूसी सेना मंगलवार सुबह भारी हथियारों और सैनिक साजो सामान के साथ करीब 60 किलोमीटर लंबा काफिला लेकर राजधानी कीव की तरफ बढ़ी. फिलहाल यह काफिला कीव से 25 किलोमीटर दूर बताया जा रहा है. रूसी सेना को यूक्रेन की तरफ से कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है साथ ही वह आसमान में भी अभी पूरी तरह से अपना दबदबा नहीं बना सकी है.
यूक्रेन के लोग रूसी सेना का रास्ता रोकने के लिए हर संभव तरीके अपना रहे हैं. दक्षिणी यूक्रेन में ओडेसा और मिकोलाइव के बीच एक हाइवे को स्थानीय लोगों ने ट्रैक्टर के टायरों में रेत भर कर जाम कर दिया. इसके ऊपर रेत की बोरियां रख कर उन्होंने रूसी सैनिक काफिले के रास्ते में बाधा खड़ी कर दी. कीव में सिटी हॉल के दरवाजे और खिड़कियों पर रेत से भरे बोरियों का अंबार लगा है.
संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी के मुताबिक यूक्रेन से बाहर जाने वाले लोगों की संख्या 6,60,000 को पार कर गई है एक दिन पहले यह संख्या 5,00,000 बताई गई थी. संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी आयुक्त की प्रवक्ता शाबिया मंटू का कहना है कि जिस दर से शरणार्थियों की संख्या बढ़ रही है उससे लग रहा है कि यह "इस शताब्दी में यूरोप की सबसे बड़ी शरणार्थी समस्या होगी." एजेंसी ने ज्यादा से ज्यादा देशों से शरणार्थियों को अपने देश में आने देने का अनुरोध किया है. इसके साथ ही मंटू ने कहा, "हम इस बात पर जोर दे रहे हैं कि किसी इंसान या समूह के साथ भेदभाव ना हो.
युद्ध अपराध
अंतरराष्ट्रीय अपराध अदालत के मुख्य अभियोजक ने कहा है कि उसने यूक्रेन में जांच शुरू करने की योजना बनाई है और वह युद्ध पर नजर रख रहे हैं. यूक्रेन और कनाडा ने अंतरराष्ट्रीय अपराध अदालत में इस बात की शिकायत करने की घोषणा की है. इस बीच पश्चिमी देशों ने यूक्रेन को हथियारों की सप्लाई बढ़ा दी है. हालांकि ये देश सैनिक भेजने से अब तक इंकार कर रहे हैं.
यूरोपीय आयोग की प्रमुख उर्सुला फॉन डेय लेयन ने बताया है कि मंगलवार को यूरोपीय संघ ने एक खास सत्र में यूक्रेन के लिए 56 करोड़ यूरो का बजट तय किया है. इस धन का इस्तेमाल के अंदर चल रहे संकट से निपटने और लाखों शरणार्थियों को मदद देने में किया जाएगा. यूक्रेन को यूरोपीय संघ में शामिल करने के सवाल पर उर्सुला फॉन डेय लेयन ने कहा "इसके लिए लंबा रास्ता तय करना होगा. हमें इस युद्ध को खत्म करना है उसके बाद अगले कदम उठाए जाएंगे." यूरोपीय संघ में शामिल होने की प्रक्रिया में सालों का वक्त लगता है. इसके लिए देशों को कारोबार, न्यायिक स्वतंत्रता और भ्रष्टाचार रोकने की कठोर शर्तों का पालन करना होता है.
एनआर/आरपी (एपी, एफपी, रॉयटर्स)


