चांसलर बनने के बाद ओलाफ शॉल्त्स पहली बार अमेरिका के दौरे पर हैं. यूक्रेन संकट के बीच अमेरिका समेत कुछ साझेदार जर्मनी की दोस्ती पर शक जताने लगे हैं.
यूक्रेन के मुद्दे पर अपना पक्ष साफ तौर पर न रख पाने की वजह से जर्मनी की भूमिका पर सवाल खड़े हो रहे हैं. विपक्षी दल और आलोचक कह रहे हैं कि बढ़ते विवाद के बीच चांसलर ओलाफ शॉल्त्स म्यूट मोड में चले गए हैं. जर्मन मीडिया में भी अमेरिका और जर्मनी के रिश्तों की तल्खी पर आशंकाएं जताई जा रही हैं. जर्मनी की प्रतिष्ठित पत्रिका डेय श्पीगल ने जनवरी में एक रिपोर्ट छापी जिसमें कहा गया कि शॉल्त्स अपने व्यस्त कार्यक्रम के कारण अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से मुलाकात का समय ही नहीं निकाल पा रहे हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति कार्यालय व्हाइट हाउस ने तुरंत इसका खंडन किया.
लेकिन मामला ठंडा नहीं पड़ रहा है. ओलाफ शॉल्त्स सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी (एसपीडी) के नेता हैं. एसपीडी के ही पूर्वी चांसलर गेरहार्ड श्रोएडर के रूस और रूसी कंपनियों के साथ अच्छे ताल्लुक रहे हैं. हाल ही में अपने भारत दौरे पर विवादित बयान देने की वजह से जर्मन नौसेना के शीर्ष अधिकारी को इस्तीफा देना पड़ा है. लेकिन पूर्व चांसलर श्रोएडर अब भी उसी अधिकारी की तरह रूस की कार्रवाई को तर्कपूर्ण सा बता रहा हैं. यह बैकग्राउंड भी शॉल्त्स को परेशान कर रहा है.
रूस के साथ नॉर्ड स्ट्रीम 2 पाइपलाइन प्रोजेक्ट के कारण जर्मनी और अमेरिका के रिश्तों में पहले भी तल्खी दिख चुकी है. डॉनल्ड ट्रंप के कार्यकाल में तो रिश्ते बेहद कमजोर पड़ गए. बाइडेन के व्हाइट हाउस में आने के बाद रिश्ते सुधरे जरूर हैं लेकिन कितने, इसका पता यूक्रेन संकट से चलेगा. अमेरिका और पूर्वी यूरोप के देश नॉर्ड स्ट्रीम 2 पाइपलाइन का विरोध करते रहे हैं. अब यूक्रेन को हथियार न देने के कारण जर्मनी की आलोचना हो रही है.
तेज होती आलोचनाओं के बीच अमेरिका रवाना होने से पहले शॉल्त्स ने सार्वजनिक टीवी चैनल जेडडीएफ से बात करते हुए कहा कि नाटो के लिए जितना पैसा जर्मनी देता है, उतना और यूरोप में कोई नहीं देता. शॉल्त्स के मुताबिक जर्मनी कुछ नहीं कर रहा है, ये कहना ठीक नहीं है.
मुलाकात का माहौल पहले से ही तय है
वॉशिंगटन में जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की मुलाकात से पहले एक वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारी ने जोर देते हुए कहा कि यूक्रेन के मामले जर्मनी की भूमिका अहम है. अमेरिकी अधिकारी ने यह भी कहा कि वे बर्लिन के साथ मिलकर यूक्रेन पर हमले की स्थिति में रूस पर लगाए जाने वाले प्रतिबंधों पर भी चर्चा कर रहे हैं.
चांसलर शॉल्त्स अमेरिका के बाद यूक्रेन और रूस का भी दौरा करने वाले हैं. फरवरी के तीसरे हफ्ते में कीव और मॉस्को पहुंचने से पहले शॉल्त्स लात्विया, लिथुएनिया और एस्टोनिया भी जाएंगे. यूक्रेन संकट से उपजते तनाव को कम करने के लिए अब फ्रांस भी पहले के मुकाबले ज्यादा सक्रिय हो चुका है. फिलहाल फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों मॉस्को में हैं. आने वाले दिनों में जर्मनी चांसलर से भी माक्रों की मुलाकात होगी. यूरोपीय संघ के सबसे ताकतवर दो देश जर्मनी और फ्रांस पोलैंड के राष्ट्रपति से भी बातचीत करेंगे.
एक दूसरे पर दबाव बनाते रूस और नाटो
रूसी सेना ने बीते कई हफ्तों से यूक्रेन को तीन तरफ से घेरा है. यूक्रेन की उत्तरी, पूर्वी और दक्षिणी सीमा के करीब एक लाख से ज्यादा रूसी सैनिक तैनात हैं. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक रूसी सेना युद्ध में इस्तेमाल होने वाले साजो सामान भी तैनात कर चुकी है. रूस ने यूक्रेन के पड़ोसी देश बेलारूस में भी 30,000 सैनिक भेजे हैं. मॉस्को का कहना है कि वह बेलारूस के साथ सैन्य अभ्यास करेंगे. कुछ विश्लेषकों का कहना है कि युद्ध जैसा माहौल बनाकर रूस नाटो से कुछ मांगें मनवाने की कोशिश कर रहा है.
जनवरी में रूसी विदेश मंत्री सेरगई लावरोव ने स्विट्जरलैंड के जिनेवा शहर में अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन से बातचीत की. उस दौरान रूस ने अमेरिका के सामने कई शर्तें रखीं. इन शर्तों में यूक्रेन को कभी नाटो में शामिल न करने और पूर्वी यूरोप से नाटो की सैन्य तैनाती और मशीनरी हटाने की मांग भी शामिल है.
पूर्वी यूरोप में रूस के साथ सीमा साझा करने वाले लात्विया, नॉर्वे और एस्टोनिया नाटो के सदस्य हैं. रूस की सीमा से थोड़ा सा दूर बसा लिथुएनिया भी नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन (नाटो) में शामिल है. नाटो में कुल 30 देश शामिल हैं. दूसरे विश्वयुद्ध के बाद अमेरिका और सोवियत संघ के बीच महाशक्ति बनने की होड़ के बीच 1949 में नाटो की स्थापना हुई. तब नाटो का मकसद यूरोप के देशों को सोवियत संघ से बचाना था.
ओएसजे/आरपी (डीपीए, एपी, एएफपी)
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान जल्द ही रूस के दौरे पर जा सकते हैं. अगर ऐसा हुआ तो पिछले दो दशकों में ये पहली बार किसी पाकिस्तानी प्रधानमंत्री का रूस दौर होगा.
न्यूज़ एजेंसी पीटीआई ने एक अख़बार के हवाले से जानकारी दी है कि ये दौरा 23 से 26 फ़रवरी तक का हो सकता है. वहीं रूस की सरकार (क्रेमलिन) की ओर से कहा गया है कि वो इसके तारीख़ की घोषणा करेगी.
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने अभी हाल ही में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाक़ात की है. विंटर ओलंपिक के बीच चीन के दौरे पर पहुंचे इमरान ख़ान इसी रविवार को जिनपिंग से मिले.
एक संयुक्त बयान में दोनों देशों ने अपनी चिंताओं और अहम हितों से जुड़े मुद्दों पर एक दूसरे को मदद देने की बात दोहराई है.
बता दें कि शिनजियांग प्रांत में कथित तौर पर मानवाधिकार उल्लंघन को लेकर अमेरिका, यूरोपियन यूनियन और दूसरे पश्चिमी देश इस विंटर ओलंपिक का बहिष्कार कर चुके हैं.
इमरान ख़ान के रूस के दौरे को पश्चिमी देशों के लिए एक संदेश की तरह देखा जा रहा है. ख़ासकर तब, जब अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी फौजों की वापसी के बाद पाकिस्तान में सैन्य ठिकाना देने से इमरान ने अमेरिका को मना कर दिया था. साथ ही अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन ने पद संभालने के बाद से इमरान ख़ान को फ़ोन ही नहीं किया.
ऐसे में यूक्रेन संकट के बीच चीन के बाद इमरान ख़ान का रूस दौरा पश्चिमी देशों के लिए संदेश है.
बताया जा रहा है कि इमरान ख़ान और व्लादिमीर पुतिन के बीच द्विपक्षीय सहयोग के साथ-साथ साझा हितों वाले क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर भी बातचीत होगी.
पीटीआई के मुताबिक़, 17 जनवरी को ख़ान और पुतिन के बीच बातचीत हुई थी जिसमें दोनों ने द्विपक्षीय सहयोग और क्षेत्रीय, अंतराष्ट्रीय मुद्दों पर विचार साझा किए.
इस दौरान इमरान ख़ान ने पुतिन के उस बयान की भी तारीफ़ की, जिसमें पुतिन ने कहा था कि पैग़बर मोहम्मद का अपमान करना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत नहीं आता है.
इमरान ख़ान ने ये भी कहा था कि दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़ाने और साझा सहयोग पर ज़ोर देने को लेकर बात हुई है. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान और रूस के बीच रिश्ते बेहतरी की तरफ़ जा रहे हैं. ये भी कहा गया कि दोनों ही देशों को प्रमुखों ने एक दूसरे को अपने देश आने का निमंत्रण दिया था.
पिछले महीने बताया जा रहा था कि इस्लामाबाद और मास्को, व्लादिमीर पुतिन के पाकिस्तान दौरे को लेकर योजना बना रहे थे. दो सालों के दौरान दोनों ही देश दौरे को लेकर चर्चा कर रहे थे लेकिन कोरोना समेत कई कारणों की वजह से ये दौरा पूरा नहीं हो सका.
पीटीआई ने अख़बार के हवाले से कहा है कि पुतिन के दौरे से पहले मॉस्को कुछ ''महत्वपूर्ण'' तैयार करना चाहता था.
पिछले कुछ सालों में पाकिस्तान और रूस के बीच के रिश्ते पहले की कड़वाहट को पीछे छोड़ते हुए बेहतर हुए हैं. अमेरिका और पाकिस्तान के रिश्तों में जो खटास आई है, ये भी एक वजह है कि इस्लामाबाद, मॉस्को के और क़रीब होता चला गया.
क़रीब 9 साल के गैप के बाद पिछले साल रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव पाकिस्तान पहुंचे थे और राष्ट्रपति पुतिन की ओर से ये कहा था कि रूस, पाकिस्तान की हरसंभव मदद करने को तैयार है.
दोनों देशों के बीच सिर्फ़ कारोबारी रिश्ते ही मज़बूत नहीं हुए हैं बल्कि रूस चाहता है कि पाकिस्तान को हथियार बेचे जाएं. अब तक कोई मौकों पर ये भारत के विरोध की वजह से नहीं हो सका है.
रूस और पाकिस्तान साल 2016 से नियमित तौर पर जॉइंट मिलिट्री एक्सरसाइज़ कर रहे हैं ये भी दोनों देशों के बीच के रिश्तों को दर्शाता है. साथ ही दोनों देश कई अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर भी साझा विचार रखते हैं.
ऐसे में अब इमरान ख़ान अगर रूस के दौर पर जाते हैं तो यूक्रेन में चल रहे तनाव के बीच अमेरिका और पश्चिमी देशों की निगाह तो रहेगी ही, साथ ही भारत भी इस दौरे पर बारीक़ नज़र रखना चाहेगा.
यूक्रेन संकट की बात करें तो यूक्रेन की सीमाओं पर रूस के सैनिकों की तैनाती और इसे लेकर पश्चिमी देशों के विरोध पर दुनियाभर की नज़र है.
अमेरिका का कहना है कि रूस की ये कोशिश अंतरराष्ट्रीय शांति के लिए ख़तरा है. वहीं रूस लगातार कहता आया है कि यूक्रेन पर हमला करने की उसकी योजना नहीं है.
चीन का रुख रूस की तरफ़ है और पश्चिमी देश भी ये देख रहे हैं रूस का समर्थन करते कौन से देश दिख रहे हैं. (bbc.com)
-हमजा अमीर
इस्लामाबाद, 7 फरवरी| पाकिस्तान की मौजूदा खराब आर्थिक स्थिति शिक्षित युवाओं पर भारी पड़ रही है, जिनमें से 31 प्रतिशत से अधिक बेरोजगार हैं और वे बिगड़ती स्थिति के बीच भविष्य के अवसरों के बारे में अनिश्चित हैं। एक नई रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है।
पाकिस्तान इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स (पीआईडीई) द्वारा जारी रोजगार की स्थिति पर एक रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान के 31 प्रतिशत से अधिक युवा वर्तमान में बेरोजगार हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, इन 31 फीसदी में से 51 फीसदी महिलाएं हैं, जबकि 16 फीसदी पुरुष हैं, जिनमें से कई के पास पेशेवर डिग्री भी है। पाकिस्तान की करीब 60 फीसदी आबादी 30 साल से कम उम्र की है।
पाकिस्तान इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है, 6.9 प्रतिशत की वर्तमान बेरोजगारी दर एक चिंता का कारण बनी हुई है और रोजगार के अवसर नहीं होने का मुद्दा पाकिस्तान में सुर्खियां बटोर रहा है।
इसमें कहा गया है कि शहरी क्षेत्रों में रहने वाली महिलाएं ग्रामीण और पुरुष समकक्षों की तुलना में कहीं अधिक बेरोजगार हैं।
दिलचस्प बात यह है कि रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि कामकाजी आयु वर्ग का एक बड़ा हिस्सा श्रम बल का हिस्सा भी नहीं है।
रिपोर्ट के अनुसार, ये लोग या तो हतोत्साहित वर्कर हैं या उनके पास आय के अन्य साधन हैं।
बेरोजगारी की चौंकाने वाली दर नीतिगत पहलों के माध्यम से युवाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा करने के इमरान खान के नेतृत्व वाली सरकार के दावों को नकारती है।
पीआईडीई ने यह भी खुलासा किया कि आश्चर्यजनक रूप से कामकाजी आयु वर्ग का एक बड़ा हिस्सा श्रम शक्ति का हिस्सा भी नहीं है। द एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट में कहा गया है कि ये लोग या तो निराश श्रमिक हैं या उनके पास आय के अन्य साधन हैं।
इसमें यह भी कहा गया है कि घोषणाओं और नीतिगत पहलों के बावजूद, महिला श्रम बल भागीदारी दर (एलएफपीआर) आश्चर्यजनक रूप से कम है।
रिपोर्ट में यह भी पता चला है कि शिक्षा को रामबाण और सभी अवसरों की कुंजी माना जाता है, लेकिन वास्तविकता हमें अन्यथा दिखाती है।
पीआईडीई ने खुलासा किया कि एलएफएस के अनुसार, स्नातक बेरोजगारी बहुत अधिक है। इसमें कहा गया है कि पेशेवर लोगों सहित डिग्री वाले 31 प्रतिशत से अधिक युवा बेरोजगार हैं, जिनमें 51 प्रतिशत महिलाएं और 16 प्रतिशत पुरुष हैं।
इसमें कहा गया है कि ग्रामीण स्नातक बेरोजगारी शहरी की तुलना में बहुत अधिक है, जो एक अन्य चिंताजनक कारक है।
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि शहरी क्षेत्रों में खुदरा और थोक व्यापार सेवा (सर्विस) क्षेत्र का सबसे बड़ा नियोक्ता बना हुआ है, जबकि पशुधन सहित कृषि, ग्रामीण पाकिस्तान में अधिकतर लोगों को रोजगार प्रदान करती है।
रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान में सार्वजनिक रोजगार बेहतर वेतन वाली नौकरियों के अवसर प्रदान करता है। सरकारी नौकरियों के लिए प्रसिद्ध वरीयता, इसलिए उचित प्रतीत होती है क्योंकि सरकारी में मासिक वेतन निजी क्षेत्र की नौकरियों की तुलना में काफी अधिक है।
इसमें कहा गया है कि एलएफएस ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में एक तिहाई युवाओं को सिस्टम से अलग कर देता है क्योंकि वे न तो नियोजित हैं और न ही नामांकित हैं।
द एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार, इस रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि युवा महिलाओं के लिए स्थिति अधिक खराब बनी हुई है और इनमें 60 प्रतिशत न तो काम कर रहीं हैं और न ही पढ़ाई कर पा रहीं हैं। (आईएएनएस)
पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वाह के कुर्रम जिले में पाकिस्तानी सेना की एक चौकी को अफगानिस्तान के अंदर से निशाना बनाया गया. पाकिस्तानी तालिबान के संघर्ष-विराम समझौते से हटने के बाद से इस तरह के हमले बढ़े हैं.
पाकिस्तान आर्मी पब्लिक रिलेशंस (आईएसपीआर) की ओर से जारी एक बयान के मुताबिक, खैबर पख्तून ख्वाह प्रांत के कुर्रम जिले में अफगानिस्तान के अंदर से सेना की चौकी पर आतंकवादियों ने गोलियां चलाईं, जिसमें उसके कम से कम पांच जवान मारे गए. बयान के मुताबिक पाकिस्तानी सुरक्षा बलों ने भी फायरिंग का जवाब दिया, जिसमें आतंकियों को भी भारी नुकसान हुआ है, हालांकि इस बात की पुष्टि किसी स्वतंत्र सूत्र ने नहीं की है.
हमलावरों ने कथित तौर पर अफगानिस्तान के खोस्त प्रांत से सटे एक चौकी अंगोर तांगी को निशाना बनाया और सुरक्षा बलों और आतंकवादियों के बीच गोलीबारी रविवार रात करीब आठ बजे शुरू हुई और कई घंटों तक चली. हमले में कई पाकिस्तानी सैनिकों के घायल होने की भी खबर है.
तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) या पाकिस्तान तालिबान, जिसने काबुल के पतन के बाद अफगान तालिबान के साथ एक संबद्ध को नवीनीकृत किया है. उसने रविवार के हमले की जिम्मेदारी ली है. उसने एक बयान जारी कर हमले की जिम्मेदारी ली है. पिछले नवंबर में पाकिस्तानी सरकार और टीटीपी के बीच एक संघर्षविराम समझौता हुआ था, लेकिन यह कुछ दिनों बाद टूट गया, और तब से समूह के हमले तेज हो गए हैं.
आईएसपीआर ने एक बयान में कहा, "अफगानिस्तान के अंदर, अंतरराष्ट्रीय सीमा के दूसरी ओर कुर्रम जिले में आतंकवादियों ने पाकिस्तानी सैनिकों पर गोलियां चलाईं." बयान में कहा गया है, "पाकिस्तान के खिलाफ गतिविधियों के लिए आतंकवादियों द्वारा अफगान क्षेत्र के इस्तेमाल की पाकिस्तान कड़ी निंदा करता है और उम्मीद करता है कि अफगान की अंतरिम सरकार भविष्य में पाकिस्तान के खिलाफ इस तरह की गतिविधियों की अनुमति नहीं देगी."
पाकिस्तानी आंतरिक मंत्री शेख राशिद अहमद ने भी एक बयान में कहा, "जैसा कि वादा किया गया था, तालिबान सरकार को इस तरह के सीमा पार आतंकवादी हमलों को रोकना चाहिए." सेना ने कहा कि अफगानिस्तान के अंदर के आतंकवादियों ने भी पाकिस्तान-अफगान सीमा पर बाड़ को नुकसान पहुंचाने के कई प्रयास किए. आईएसपीआर के बयान में कहा गया है कि पाकिस्तानी सेना आतंकवादियों के खिलाफ देश की सीमाओं की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है और "हमारे बहादुर सैनिकों के बलिदान से हमारे संकल्प को और मजबूती मिलेगी."
अफगान तालिबान सरकार के उप प्रवक्ता बिलाल करीमी ने रॉयटर्स से कहा, "हम अन्य देशों, विशेष रूप से अपने पड़ोसियों को आश्वस्त करते हैं कि किसी को भी अफगान क्षेत्र का इस्तेमाल आतंकी गतिविधियों करने के लिए अनुमति नहीं दी जाएगी."
खैबर पख्तून ख्वाह प्रांत का कुर्रम जिला पहले तहरीक-ए-तालिबान की गतिविधियों का केंद्र रहा है, लेकिन पिछले कुछ सालों से यहां स्थिति अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण रही है. इस जिले का एक हिस्सा अफगान राज्य खोस्त से मिलता है और दूसरा छोर अफगान राज्य नंगरहार से सटा हुआ है.
पाकिस्तान-अफगान सीमा पर हमले से कुछ दिन पहले विद्रोहियों ने बलूचिस्तान प्रांत में दो हमले किए थे. पाकिस्तानी सेना का कहना था कि दो सैन्य चौकियों पर हुए हमलों में कम से कम 20 आतंकी और नौ सैनिक मारे गए. पिछले हफ्ते हुए हमले की जिम्मेदारी नवगठित बलूचिस्तान नेशनलिस्ट आर्मी ने ली थी.
एए/सीके (एएफपी, रॉयटर्स)
अमेरिका ने कहा है कि रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन अब किसी भी दिन यूक्रेन पर हमले का हुक्म दे सकते हैं. हालांकि जो बाइडेन सरकार ने अब भी कूटनीतिक रास्तों से मसले हल होने की उम्मीद नहीं छोड़ी है.
अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सलीवन ने रविवार को कहा कि कुछ दिनों या हफ्तों में व्लादीमीर पुतिन अपनी सेनाओं को यूक्रेन पर हमला करने का आदेश दे सकते हैं. साथ ही उन्होंने कहा कि अमेरिका और उसके यूरोपीय सहयोगी कूटनीतिक कोशिशें जारी रखेंगे.
‘फॉक्स न्यूज संडे' नाम के कार्यक्रम में सलिवन ने कहा, "हम बहुत करीब हैं. रूस अब किसी भी दिन यूक्रेन के खिलाफ सैन्य हमला कर सकता है. या इसमें एक-दो हफ्ते भी लग सकते हैं. या फिर इसके बजाय रूस के पास कूटनीतिक रास्ता चुनने का विकल्प भी है.”
फौजें तैयार हैं
शनिवार को दो अमेरिकी अधिकारियों ने कहा था कि यूक्रेन पर पूरी ताकत से हमला करने के लिए रूस को जितनी सैन्य क्षमता की जरूरत है, उसकी लगभग 70 प्रतिशत तैयार की जा चुकी है. रूस ने एक लाख से ज्यादा सैनिक यूक्रेन की सीमा के पास जमा कर रखे हैं. हालांकि वहां की सरकार ने कहा है कि उसकी यूक्रेन पर आक्रमण की कोई योजना नहीं है लेकिन उसकी मांगें नहीं मानी गईं तो ‘सैन्य कार्रवाई' की जा सकती है.
रूस ने जो बड़ी मांगें सामने रखी हैं उनमें यह वादा भी शामिल है कि यूक्रेन को पश्चिमी देशों के सैन्य संगठन नाटो की सदस्यता नहीं दी जाएगी. 30 सदस्यों वाले इस संगठन ने रूस की इस मांग को अस्वीकार्य बताते हुए खारिज कर दिया है. रूस यह वादा भी चाहता है कि नाटो रूस की सीमा के पास पश्चिमी हथियार तैनात नहीं करेगा.
माक्रों रूस के दौरे पर
रविवार को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने फ्रांस के अपने समकक्ष इमानुएल माक्रों से करीब 40 मिनट तक फोन पर बात की. माक्रों सोमवार को मॉस्को के दौरे पर जा रहे हैं जो यूक्रेन को लेकर बढ़े तनाव को शांत करने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है. माक्रों के कार्यालय से जुड़े सूत्रों ने बताया कि दोनों नेताओं ने फ्रांसीसी राष्ट्रपति के दौरे से पहले रणनीतिक समायोजन पर बात की.
जेक सलिवन का मानना है कि रूस के हमले का नतीजा यूक्रेन के उस डोनबास इलाके के छीने जाने के रूप में सामने आ सकता है, जहां यूक्रेन के अलगाववादियों ने 2014 में विद्रोह किया था.
सलिवन ने समाचार चैनल एबीसी के ‘दिस वीक' कार्यक्रम को बताया, "हमारा मानना है कि व्लादीमीर पुतिन द्वारा हमले का आदेश दिए जाने की बहुत गंभीर संभावना है. ऐसा कल भी हो सकता है और एक-दो हफ्ते के भीतर भी. सेनाएं किसी भी वक्त हमले के लिए पूरी तरह से तैयार की जा चुकी हैं.”
पोलैंड पहुंचे अमेरिकी सैनिक
यूक्रेन ने कहा है कि उसके पास अभूतपूर्व अंतरराष्ट्रीय समर्थन है और वह मजबूती से तैयार है. वहां के विदेश मंत्री दमित्रो कुलेबा ने रविवार को लोगों से अपील की कि ‘प्रलंयकारी अनुमानों' पर ध्यान ना दें.
वैसे अमेरिका यह स्पष्ट कर चुका है कि यूक्रेन के पक्ष में लड़ने के लिए सैनिक नहीं भेजे जाएंगे. लेकिन पिछले यूक्रेन को उसने हथियार और अन्य साज-ओ-सामान दिया है. साथ ही पिछले हफ्ते जिन दो हजार अतिरिक्त अमेरिकी सैनिकों को यूरोप में तैनाती का ऐलान अमेरिका ने किया था, उनका एक हिस्सा पोलैंड पहुंच चुका है.
रविवार को लगभग 1,700 सैनिकों को लिए विमान पोलैंड में उतरे. बाइडेन ने अपने सैनिकों को एक संदेश भी भेजा है जिसमें मुट्ठी लहराते हुए उन्होंने कहा, "हम आपके बारे में सोच रहे हैं.”
वीके/सीके (रॉयटर्स)
सोशल मीडिया साइट फेसबुक चलाने वाली कंपनी मेटा ने कहा है कि वह एक ऐसा नया फीचर शुरू कर रही है, जिसके जरिए वर्चुअल रिएलिटी में लोग एक दूसरे से निश्चित दूरी बनाए रख सकेंगे.
डॉयचे वैले पर विवेक कुमार की रिपोर्ट-
मेटा ने नया ‘पर्सनल बाउंड्री' फीचर शुरू किया है जिसके जरिए वर्चुअल रिएलिटी में लोग एक दूसरे की निजी सीमा में ना जा सकें. कंपनी का कहना है कि मेटावर्स में ग्राहकों की सुरक्षा और यौन उत्पीड़न जैसी चिंताओं के मद्देनजर यह नया फीचर पेश किया गया है.
‘पर्सनल बाउंड्री' का फीचर ऐसा अहसास कराएगा कि लोगों के वर्चुअल अवतार एक दूसरे से करीब चार फुट दूर हैं. यह फीचर वर्चुअल रिएलिटी हेडसेट के जरिए होराइजन वर्ल्ड्स और होराइजन वेन्यूज आदि ऐप्स में इस्तेमाल हो सकेगा.
अनचाहा संपर्क बंद
एक ब्लॉग पोस्ट में कंपनी ने कहा कि यह एक डिफॉल्ट सेटिंग होगी जो ग्राहकों के बीच अनचाही नजदीकी को सीमित कर देगी और लोगों के लिए किसी की निजता का सम्मान संभव हो पाएगा. बहुत से ग्राहकों ने ऐसी चिंताएं जाहिर की थीं कि वर्चुअल वर्ल्ड में लोग अपने अवतारों के जरिए एक दूसरे की निजता को भंग करते हुए उनके बेहद करीब जा सकते हैं. कुछ लोगों इसके जरिए यौन उत्पीड़न होने के खतरों के प्रति भी चिंता जताई थी.
फेसबुक इंक ने पिछले साल ही अपना नाम बदलकर मेटा रख लिया था और कहा था भविष्य के इंटरनेट को ध्यान रखते हुए कंपनी अब मेटावर्स में निवेश करना चाहती है. दुनियाभर की तकनीकी कंपनियां इस वक्त मेटावर्स में ही भविष्य खोज रही हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि यह भविष्य का इंटरनेट हो सकता है, जिसमें वर्चुअल रिएलिटी और अन्य तकनीकों की मिश्रण कर संवाद यानी एक दूसरे से बातचीत एक अलग स्तर पर पहुंच जाएगी.
क्या है मेटावर्स?
आप यूं समझिए कि इंटरनेट जिंदा हो जाए तो क्या होगा. यानी जो कुछ भी वर्चुअल वर्ल्ड में, स्क्रीन के पीछे हो रहा है, वह एकदम आपके इर्द गिर्द होने लगे. यानी आप स्क्रीन को देखेंगे नहीं, उसके भीतर प्रवेश कर जाएंगे.
इस रूप में देखा जाए तो कल्पना की कोई सीमा नहीं है. मिसाल के तौर पर अब आप वीडियो कॉल करते हैं. मेटावर्स में आप वीडियो कॉल के अंदर होंगे. यानी आप सिर्फ एक दूसरे को देखेंगे नहीं, उसके घर, दफ्तर या जहां कहीं भी हैं, वहां आभासी रूप में मौजूद होंगे. और यह सिर्फ एक मिसाल है.
ऑनलाइन होने वाली हर गतिविधि को आप इसी संदर्भ में देख सकते हैं. भविष्य की तकनीक पर निगाह रखने वाली विक्टोरिया पेटरॉक कहती हैं कि इसमें शॉपिंग से लेकर सोशल मीडिया तक सारी ऑनलाइन एक्टविटीज शामिल होंगी. पेटरॉक के शब्दों में, "संपर्क का यह अगला स्तर है, जहां सारी चीजें एकसाथ एक आभासी दुनिया का हिस्सा बन जाएंगी. तो जैसे आप असल जिंदगी जीते हैं, वैसे ही वर्चुअल जिंदगी जिएंगे.”
कैसे काम करेंगे नए फीचर
मेटा ने कहा है कि नया फीचर पहले से मौजूद ‘हस्त-उत्पीड़न उपायों' का नया स्तर होगा. अब यदि कोई व्यक्ति अपने अवतार के जरिए अपने हाथों को अन्य अवतार के नजदीक लेकर जाता है तो वे हाथ गायब हो जाते हैं. मेटा ने ‘सुरक्षित क्षेत्र' या सेफ जोन फीचर भी दिया हुआ है जिसमें लोग अगर किसी तरह का खतरा महसूस करें तो अपने चारों ओर एक गोला बना सकते हैं.
मेटा के लिए होराइजन के उपाध्यधक्ष विवेक शर्मा ने ब्लॉग में कहा कि कंपनी मानती है कि नए फीचर लोगों के लिए व्यवहार के नए मानक स्थापित करने में मददगार साबित होंगे. उन्होंने कहा, "यह एक जरूरी कदम है. और इसके अलावा भी अभी बहुत कुछ करना बाकी है. हम ऐसे नए रास्ते तलाशना जारी रखेंगे जिनके जरिए वीआर में लोगों को सहज महसूस करवाया जा सके.”
उन्होंने कहा कि भविष्य में लोगों को अपने निजी क्षेत्र की सीमा कम या ज्यादा करने का विकल्प देने पर भी विचार किया जा सकता है. फिलहाल तो अन्य अवतारों के साथ हाई-फाइव या फिस्ट-बंप करने के लिए लोगों को हाथ ही बढ़ाना होगा. (dw.com)
काबुल, 6 फरवरी | अफगानिस्तान की राष्ट्रीय मुद्रा अफगानी के मुकाबले अमेरिकी डॉलर में कुछ दिनों पहले की तुलना में गिरावट आई है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, दा अफगानिस्तान बैंक (डीएबी) द्वारा जारी विदेशी विनिमय दर के अनुसार, 1 डॉलर का मूल्य 27 जनवरी को 103.3 अफगानी से गिरकर रविवार को 86.86 अफगानी हो गया है।
काबुल के बाजारों में खाद्य और गैर-खाद्य पदार्थों की कीमतों में भी गिरावट आई है। (आईएएनएस)
पूर्वी यूरोप में अमेरिकी फौज की तैनाती के बीच यूक्रेन के मुद्दे पर रूस को चीन का समर्थन मिला है. दोनों देशों ने मिलकर इशारों में अमेरिका को संदेश दिया है.
शुक्रवार को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन विंटर ओलंपिक के उद्धाटन में शरीक होने के लिए बीजिंग पहुंचे. वहां पुतिन की मुलाकात चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से हुई. दोनों नेताओं की बीच यूक्रेन पर भी चर्चा हुई. इसके बाद दोनों नेताओं ने एक साझा बयान दिया. इस बयान को रूसी राष्ट्रपति कार्यालय की वेबसाइट पर भी पोस्ट किया गया है.
बयान में किसी देश का नाम लिए बिना कहा गया, "कुछ ताकतें जो कि दुनिया के बहुत छोटे हिस्से का प्रतिनिधित्व करती हैं, वे अंतरराष्ट्रीय समस्याओं को सुलझाने के लिए एकतरफा तरीके और ताकत की राजनीति, दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में दखलंदाजी, उनके वैधानिक अधिकारों और हितों को नुकसान पहुंचाने, भड़काने, असहमति और टकराव का समर्थन कर रही हैं."
आम तौर पर चीन अंतराष्ट्रीय विवादों पर सीधी टिप्पणी से बचता है. लेकिन अमेरिका और पश्चिम की नई हिंद प्रशांत नीति बीजिंग को भी खटक रही हैं. सामरिक हितों से जुड़े मुद्दे रूस और चीन को साथ ला रहे हैं. वहीं मॉस्को को लगता है कि बीजिंग की मदद से उसकी अर्थव्यवस्था ढहने से बची रहेगी. दोनों देश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य हैं. दोनों के पास वीटो का अधिकार है.
रूसी हमले का डर कितना गंभीर
यह सब ऐसे वक्त में हो रहा है जब रूस ने करीब एक लाख सैनिक यूक्रेन की पूर्वी और उत्तरी सीमा पर तैनात किए हैं. वहीं क्रीमिया में तैनात रूसी सेना ने तीसरी तरफ से यूक्रेन को घेरा हुआ है. अमेरिकी सरकार ने चेतावनी दी है कि रूस अपने सैनिकों की संख्या बढ़ाकर 1,75,000 कर सकता है. पश्चिम के खुफिया विशेषज्ञों के मुताबिक रूसी सेना हमले की तैयारी के लिए जरूरी साजोसामान जुटा रही है. यूक्रेन बॉर्डर के पास रूस के फील्ड हॉस्पिटल बने हैं, जिनमें ब्लड सप्लाई की भी व्यवस्था की गई है. इन तैयारियों के साथ ही रूसी सेना यूक्रेन के उत्तरी पड़ोसी बेलारूस के साथ सैन्य अभ्यास करने जा रही है. अनुमान है कि इस सैन्याभ्यास में 30 हजार रूसी सैनिक शामिल होंगे.
इसके जबाव में हाल के हफ्तों में यूक्रेन को पश्चिमी देश हथियार देने लगे हैं. अमेरिका और ब्रिटेन एंटी टैंक सिस्टम दे रहे हैं और पूर्वी बाल्टिक के देश एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइलें. यूरोपीय संघ ने यूक्रेन को एक अरब यूरो की मदद देने का एलान किया है. इस बीच यूक्रेन ने जर्मनी से हथियार मांगे हैं. जर्मनी किसी भी विवादित इलाके में हथियार नहीं बेचता है. लेकिन अब यूक्रेन ने आत्मरक्षा का हवाला देकर जर्मनी से तुरंत हथियार मुहैया कराने की अपील की है. गैस के लिए रूस पर काफी हद तक निर्भर रहने वाला जर्मनी अब तक अपना स्टैंड साफ नहीं कर सका है. लेकिन एक सवाल अब भी बरकरार है कि क्या पुतिन वाकई यूक्रेन पर हमला करेंगे, अगर हां, तो ये हमला छोटा होगा या बड़ा.
पहले तनाव कैसे कम हुआ?
यह पहला मौका नहीं है जब रूस और यूक्रेन के बीच तनाव भड़का हो या रूसी सेना यूक्रेनी बॉर्डर के पास तैनात हुई हो. मार्च-अप्रैल 2021 में भी रूस ने काले सागर के पास हजारों सैनिक भेजकर अभ्यास किया था. तब भी यूक्रेन और अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने विवाद भड़कने की चेतावनी दी. लेकिन उस वक्त रूसी सेना के पास युद्ध के लिए जरूरी सारा साजोसामान नहीं था.
जून 2021 में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की मुलाकात जिनेवा में हुई थी. उस दौरान भी पुतिन ने तनाव कम करने के नाम पर अपनी मांगों की सूची रख दी. एक प्रमुख मांग यह थी कि यूक्रेन के नाटो में शामिल होने पर बैन लगाया जाए और यूरोपीय संघ के पूर्वी देशों में सेना और मिलिट्री हार्डवेयर को हटाया जाए. इस बातचीत के बाद कुछ समय के लिए तनाव कम हो गया.
ओएसजे/आरएस (एपी, एएफपी, डीपीए)
ईलॉन मस्क मंगल ग्रह पर इंसानी बस्ती बसाना चाहते हैं, लेकिन उनका सपना अधूरा रह सकता है. उन्होंने चिंता जताई है कि जब धरती की आबादी ही कम हो जाएगी, तो मंगल पर रहने के लिए किसे भेजा जाएगा.
ईलॉन मस्क चाहते हैं कि धरती के अलावा दूसरे ग्रह पर भी इंसानों की बस्ती हो. दो दशक पहले स्थापित उनकी कंपनी स्पेसएक्स का मुख्य लक्ष्य मंगल ग्रह पर इंसानों की बस्ती बसाना है. इसके पीछे उनका तर्क था कि अगर जलवायु परिवर्तन, अधिक जनसंख्या, तीसरे विश्व युद्ध या किसी और वजह से धरती से इंसानों का अस्तित्व खत्म होने का खतरा उत्पन्न हो जाए, तो हमें प्लान बी के लिए तैयार रहना चाहिए.
हालांकि, निर्णायक समिति अभी इस बात पर कोई फैसला नहीं ले पाई है कि आखिर ऐसा क्या होगा जिसकी वजह से हमारी पृथ्वी वीरान हो जाएगी. इस बीच मस्क ने जनवरी महीने में ट्वीट कर एक नई चिंता जाहिर की है. वह है, ‘जनसंख्या में भारी गिरावट.'
मस्क की इस चिंता में कुछ सच्चाई हो सकती है. 2020 में द लांसेट जर्नल में इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन (आईएचएमई) के शोधकर्ताओं की ओर से एक अध्ययन प्रकाशित किया गया था. इसमें कहा गया है कि 2050 के बाद दुनिया की आबादी कम हो सकती है.
इसका मतलब है कि मंगल ग्रह पर इंसानी बस्ती बसाने के लिए मस्क की योजना के तहत जितने लोगों की जरूरत हो सकती है, शायद उतने लोग उस समय तक धरती पर न हों. इस बात को मस्क ने खुद उस ट्वीट में स्वीकार किया है. उन्होंने लिखा है, "अगर धरती पर पर्याप्त लोग नहीं होंगे, तो निश्चित रूप से मंगल पर इंसानी बस्ती बसाने के लिए पर्याप्त लोग नहीं मिलेंगे."
आईएचएमई ने अनुमान लगाया है कि 2064 तक दुनिया की जनसंख्या अपने सबसे उच्चतम स्तर तक पहुंच जाएगी. उस समय पूरी दुनिया की आबादी करीब 9 अरब 73 करोड़ होगी. इसके बाद, सदी के अंत तक यह आबादी करीब एक अरब कम हो जाएगी.
यह निष्कर्ष संयुक्त राष्ट्र के पिछले अनुमान से बिल्कुल अलग है. संयुक्त राष्ट्र ने अनुमान लगाया है कि वर्ष 2100 तक दुनिया की आबादी करीब 11 अरब हो जाएगी. हालांकि, मस्क ने अपने ट्विटर पोस्ट में संयुक्त राष्ट्र के इस अनुमान को ‘बकवास' बताया है.
आबादी कम होने की वजह
इन अनुमानों में महिलाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. जनसंख्या में गिरावट के लिए मुख्य रूप से घटती जन्म दर जिम्मेदार होती है. शोधकर्ताओं ने बताया कि बेहतर शिक्षा और गर्भ निरोधकों तक आसान पहुंच की वजह से जन्म दर में बदलाव देखने को मिल रहा है. महिलाएं कम बच्चे पैदा कर रही हैं.
सवाल यह है कि ऐसा क्यों होता है? डेनमार्क का मामला इस सवाल का बेहतर जवाब हो सकता है. नेशनल ब्यूरो ऑफ इकोनॉमिक रिसर्च के 2018 के एक अध्ययन के अनुसार, बच्चे के जन्म के बाद महिलाओं की कमाई में भारी गिरावट हुई जबकि पुरुषों की आय पहले की तरह ही बनी रही.
कुछ देशों में इन चुनौतियों से निपटने के लिए कई कदम उठाए गए हैं. इनमें महिलाओं को वेतन के साथ मातृत्व अवकाश देना, रोजगार सुरक्षा, बच्चों की देखभाल और आर्थिक प्रोत्साहन जैसे कार्यक्रम शामिल हैं. अध्ययन के लेखकों ने स्वीडन को इस मामले में एक उदाहरण की तरह पेश किया है. वहां 1990 के दशक में जन्म दर 1.5 फीसदी थी, जो 2019 में बढ़कर 1.9 फीसदी हो गई.
शोधकर्ता इस बात से भी चिंतित थे कि महिलाओं की शिक्षा और गर्भ निरोधकों तक आसान पहुंच की वजह से जन्म दर में कमी होने पर, उनकी स्वतंत्रता और अधिकार खतरे में पड़ सकते हैं. मां बनने के बाद आर्थिक रूप से सुरक्षा उपलब्ध कराने की जगह कुछ देश इससे विपरीत काम कर सकते हैं. वे जनसंख्या में कमी रोकने के लिए प्रजनन संबंधी स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच सीमित कर सकते हैं. शोधकर्ताओं ने रोमानिया और सोवियत संघ जैसे देशों का उदाहरण भी दिया, जहां 60 के दशक में जन्म दर बढ़ाने के लिए प्रतिबंधों और पाबंदियों का इस्तेमाल किया गया था.
अच्छे और बुरे नतीजे
शोधकर्ताओं का कहना है कि हो सकता है कि मस्क कम आबादी वाली दुनिया को पसंद न करते हों, लेकिन जरूरी नहीं कि यह एक बुरी चीज हो. उन्होंने कहा कि इससे पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि जब लोग कम होंगे तब संसाधनों का इस्तेमाल भी कम होगा. साथ ही, कार्बन का उत्सर्जन भी कम होगा. हालांकि, जनसंख्या में कमी से धरती को लाभ हो सकता है, लेकिन यह जलवायु परिवर्तन को कम करने का कोई समाधान नहीं है.
जापान, स्पेन और यूक्रेन जैसे देशों की आबादी इस सदी के अंत तक आधी या उससे कम हो सकती है. 2015 में एक बच्चे की नीति समाप्त होने के बावजूद, चीन की आबादी 1.4 अरब से कम होकर 70 करोड़ तक पहुंच सकती है. हालांकि, सभी देशों में आबादी में गिरावट देखने को नहीं मिलेगी. अनुमान से पता चलता है कि उप-सहारा अफ्रीका, उत्तरी अफ्रीका और मध्य पूर्व इलाके की आबादी 2017 की तुलना में 2100 में ज्यादा हो सकती है.
वहीं, उच्च आय वाले पश्चिमी यूरोप के देश 2040 से पहले जनसंख्या वृद्धि के मामले में अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच जाएंगे. जर्मनी की आबादी 2035 तक 8.5 करोड़ हो जाएगी और फिर 2100 तक घटकर 6 करोड़ तक पहुंच जाएगी. भारत की आबादी भी 2048 तक अपने उच्चतम स्तर तक पहुंच जाएगी. यह करीब एक अरब 60 करोड़ तक पहुंच सकती है और फिर 2100 तक कम होकर 1.09 अरब हो सकती है.
कुछ देशों में कम होती कामकाजी आबादी का भी अनुमान लगाया गया है. शोधकर्ताओं का कहना है कि इसके आर्थिक दुष्परिणाम सामने आएंगे. जैसे, जीडीपी में वृद्धि की दर कम हो सकती है. सेवानिवृत्त होने वालों की संख्या बढ़ने और कामकाजी आबादी कम होने से सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं पर असर पड़ता है. पेंशन से जुड़े कार्यक्रमों के लिए आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.
अध्ययन के लेखकों का कहना है कि इस स्थिति में अप्रवासन मददगार साबित हो सकते हैं. कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे जो देश प्रवासन की मदद से अपनी कामकाजी आबादी को बनाए रखने में सक्षम हैं वे समृद्ध हो सकते हैं.
शोधकर्ताओं ने इस तरह के अनुमान मौजूदा जनसंख्या के रूझान के आधार पर लगाए हैं. हो सकता है कि ये अनुमान पूरी तरह सच साबित न हों, लेकिन भविष्य की स्थितियों को लेकर कुछ इशारे तो कर ही सकते हैं.
धरती पर एक उड़ती निगाह डाली जाए तो जलवायु परिवर्तन की जिम्मेदार वजहों की शिनाख्त करने में मदद मिल सकती है. पिछले दिनों 14वें यूरोपीय अंतरिक्ष सम्मेलन में अंतरिक्ष विशेषज्ञों ने इस बारे में अपने विचार रखे.
डॉयचे वैले पर ओकेरी न्गुतजीनाजो की रिपोर्ट-
पहले जर्मन अंतरिक्ष यात्री आलेग्जांडर गर्स्ट ने जब अंतरिक्ष की उड़ान भरी थी तो वह रोमांचित थे. उन्होंने उससे पहले धरती की सैटेलाइट तस्वीरें ही देखी थीं लेकिन असली दृश्यों के मुकाबले तो वे कुछ भी नहीं थीं.
उन्होंने कहा, "जो ग्रह जो मुझे अपरिमित संसाधनों से लैस बड़ा ही विशाल ग्रह जैसा लगता था, उसे जब मैंने पहली बार अपनी आंखों से देखा तो वो अचानक ही एक बहुत ही फैले हुए अनन्त अंधकार में एक छोटा, डरावना सा बिंदु भर दिखने लगा. उस अनुभव ने मुझे पृथ्वी को अलग ढंग से देखने का अवसर दिया.”
गर्स्ट, 2014 में मई से नवंबर के दरमियान अंतरिक्ष स्पेस स्टेशन की अभियान संख्या 40 और 41 का हिस्सा थे. जून 2018 में 56वें और 57वें अभियान में वह दोबारा अंतरिक्ष यात्रा पर गए.
उन्होंने कहा, "पहली बार अंतरिक्ष की उड़ान मेरे लिए सारगर्भित थी. एक जियोफिजिस्ट के नाते मैं पृथ्वी के व्यास, वायुमंडल की मोटाई को सटीक तौर पर जानता हूं. मुझे लगता था कि मैं सब कुछ जानता हूं.”
14वें यूरोपीय अंतरिक्ष सम्मेलन में वक्ता के रूप में शामिल गर्स्ट ने कहा कि अंतरिक्ष की खोज जलवायु संकट के लिए एक समाधान मुहैया करा सकती है, जो यह है कि एक कदम पीछे रख कर "बाहर से समस्या को” देखने की जरूरत है. उन्होंने कहा, "हम अंतरिक्षयात्रियों को वो नजारा, नजरिए में वो बदलाव, वापस धरती पर लेकर आना होगा.”
नई प्रौद्योगिकियों में खर्च होता अंतरिक्ष का बजट
अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए यूरोपीय संघ के बजट का एक मोटा हिस्सा चाहिए, और गर्स्ट के मुताबिक इतना तो बनता ही है. उनका कहना है कि अंतरिक्ष अन्वेषण में काम आने वाली प्रौद्योगिकियों को विकसित करने का लाभ सिर्फ अंतरिक्ष में मानव जीवन को स्थापित करने तक महदूद नहीं है.
गर्स्ट कहते है कि अंतरिक्ष के अनुभव शोधकर्ताओं को "ऐसी प्रौद्योगिकियां बनाने में मदद कर सकते हैं जिनका इस्तेमाल हम धरती में कर सकते हैं, वे चीजें, जो इस धरती को बचाने के लिए हमें चाहिए.”
वह कहते हैं कि अंतरिक्ष में ऐसे अध्ययन किए गए हैं जिनमें ये छानबीन की गई है कि पौधे की जड़ें आखिर ये कैसे जानती हैं कि किस दिशा में उगना है. इस प्रश्न पर भरपूर माथापच्ची जारी है ताकि ऐसे पौधे विकसित किए जा सकें जो सूखी मिटटी में गहरे पानी को खोजने में ज्यादा तेजी के साथ अपनी जड़ों को उगा सकें.
वह बताते हैं, "ये चीज उस वक्त बड़े काम आएगी जब जलवायु परिवर्तन बहुत सारे इलाकों को वाकई बदल देगा, जो पहले हरे-भरे थे और अब सूखे हैं.”
यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के महानिदेशक योसेफ आशबाखेर ने पाया कि जलवायु के आधा से ज्यादा पैमाने, जैसे कि समुद्र की सतह का तापमान, ग्लेशियरों का पिघलना, ध्रुवीय बर्फ का पिघलना और समुद्र के जलस्तर में वृद्धि आदि अंतरिक्ष में मापे जाते हैं.
वह कहते हैं, "उपग्रहों के बिना हम जलवायु परिवर्तन के स्तर को नहीं जान पाएंगे." उनके मुताबिक इस सूचना के बिना जलवायु संकट से जुड़े फैसलों को लागू कर पाना कठिन होगा.
‘हम सब चश्मदीद हैं'
यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला फॉन डेर लेयन के साथ पिछले सप्ताह अंतरिक्ष से एक वर्चुअल इंटरव्यू के दौरान जर्मन अंतरिक्षयात्री और पदार्थ विज्ञानी मथियास माउरर ने अंतरिक्ष से जलवायु संबंधित कई ब्यौरों ओर इंगित किया था. वह छह महीने के स्पेस एक्स साइंस मिशन के तहत इन दिनों अंतरिक्ष में हैं.
धरती से 400 किलोमीटर ऊपर अंतरिक्ष में उड़ान भरते हुए और दिन में 16 बार धरती का चक्कर काटते हुए माउरर कहते हैं कि वे कटे-फटे और जले हुए जंगल, सूखा और झीलें देख सकते हैं. वह कहते हैं, "हम ये भी देख सकते हैं कि मानव खनन ने धरती की सतह को किस कदर खुरच कर रख दिया है.”
माउरर के मुताबिक वह वास्तविक समय में प्राकृतिक घटनाओं को होता हुए भी देखने में समर्थ हैं, जैसे कि हाल में ब्राजील में आई बाढ़ या टोंगा में पानी के नीचे ज्वालामुखी के फटने की घटना. उन्होंने कहा, "कॉपरनिकस के जुटाए पृथ्वी के पर्यवेक्षण डाटा पर राजनीतिज्ञों को अमल करना चाहिए.”
कॉपरनिकस यूरोपीय संघ का पृथ्वी के पर्यवेक्षण का कार्यक्रम है. वो उपग्रहों और गैर अंतरिक्षीय डाटा की मदद से सूचनाएं मुहैया कराता है.
बहुत सारा अंतरिक्ष कबाड़
अंतरिक्ष अनुसंधान से जुड़ा एक मुद्दा अक्सर उठता है, वो है अंतरिक्ष में फैला कचरा. आशंका है कि ज्यादा से ज्यादा निजी कंपनियों में चांद पर जाने की होड़ मची है जैसे कि अरबपति ईलॉन मस्क की कंपनी स्पेस एक्स है. इस होड़ में अंतरिक्ष में और कबाड़ बिखरने का डर है.
यूरोपीय स्पेस एजेंसी के अंतरिक्ष मलबे पर जनवरी 2022 में जारी अपडेट के मुताबिक अंतरिक्ष निगरानी के नेटवर्क के जरिए करीब 30,600 बेकार चीजें नियमित रूप से ट्रैक की जाती हैं. माउरर का कहना है कि दो सप्ताह पहले ही उनके अंतरिक्ष स्टेशन को ऐसे ही मलबे के ढेर से टकरा जाने की चेतावनी मिली थी. धरती पर स्थित स्टेशन की टीम को इस बात की गणना करनी पड़ी थी कि वो मलबा क्या वाकई अंतरिक्ष स्टेशन से टकराएगा.
वह कहते हैं, "ये दिखाता है कि अंतरिक्ष में बहुत सारा मलबा बिखरा हुआ है और यह एक बहुत महत्त्वपूर्ण विषय है, न सिर्फ आईएसएस के लिए क्योंकि ये मलबा हमें जोखिम में डालता है, बल्कि इसलिए भी क्योंकि हमारे पास अपेक्षाकृत पुराने उपग्रह हैं.”
माउरर ने ये भी पाया कि भविष्य में अंतरिक्ष कबाड़ से बचने के लिए कार्रवाई की जरूरत है. ईएसए ने ऐलान किया है कि 2030 तक वह अंतरिक्ष मलबे को लेकर एक नेट हिस्सेदारी को दर्ज करना चाहती है. माउरर ने कहा कि इसका मतलब ये भी होगा कि अंतरिक्ष से बहुत सारा पुराना कबाड़ हटाना पड़ेगा और नये मलबे की आमद को भी कम करना होगा.
माउरर और गर्स्ट, दोनों को उम्मीद है कि अंतरिक्ष खोज के निष्कर्षों से राजनीतिज्ञों और वैज्ञानिकों को जलवायु परिवर्तन के समाधानों की तलाश में मदद मिलेगी. उनका आशावाद इस मशहूर कथन को दोहराते हुए झलकता है कि "देयर इज नो प्लैनट बी” यानी "हमारे लिए कोई दूसरा ग्रह नहीं है.” (dw.com)
मोरक्को के एक गांव में पांच साल का बच्चा 32 मीटर गहरे बोरवेल में फंसा हुआ है. पांच दिन बाद भी उसे निकालने की कोशिशें जारी हैं.
मोरक्को में राहत और बचावकर्मी लगातार पांचवें दिन रयान तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं. पांच साल का रयान मंगलवार (दो फरवरी) को 32 मीटर गहरे बोरवेल में गिर गया. तब से बच्चे की सेहत के बारे में कोई खबर नहीं है.
रयान को बाहर निकालने के लिए राहत और बचावकर्मी मोरक्को के इघराने गांव में जुटे हैं. एक टेलीविजन चैनल से बात करते हुए रयान के पिता ने कहा, "मुझे उम्मीद है कि मेरा बच्चा जीवित बाहर निकलेगा."
रयान की मां के मुताबिक, मंगलवार को खेलते समय उनका बेटा बोरवेल में गिर गया. फफकती आवाज में रयान की मां ने कहा, "पूरा परिवार उसे खोजने निकला, इसी दौरान हमें पता लगा कि वह बोरवेल में गिर चुका है."
मोरक्को के प्रतिद्वंद्वी माने जाने वाले पड़ोसी देश अल्जीरिया में भी रयान की सलामती के लिए दुआएं मांगी जा रही है. उत्तरी अफ्रीका में #SaveRayan ट्रेंड कर रहा है.
रेस्क्यू में जोखिम
रेक्स्यू टीम बुल्डोजर और फ्रंट एंड लोडरों का इस्तेमाल कर रास्ता तैयार कर चुकी है. लेकिन आखिरी के दो मीटर की खुदाई में जमीन खिसकने का खतरा है. रेक्स्यू ऑपरेशन के लीडर अब्देसलाम माकौदी कहते हैं, "हम पर थकान हावी हो रही है, लेकिन इसके बावजूद पूरी रेस्क्यू टीम काम पर लगी हुई है."
मोरक्को के जिस गांव में यह दुर्घटना हुई है, वहां इस वक्त कड़ाके की सर्दी भी पड़ रही है. मौसमी चुनौतियों के बीच गुरुवार को रेस्क्यू टीम ने पाइप के जरिए बोरवेल की गहराई तक ऑक्सीजन और पानी की सप्लाई भी पहुंचाई. मौके पर हजारों लोगों भीड़ जमा है. कई लोग पेड़ों पर चढ़े हुए हैं और राहतकर्मियों का हौसला बढ़ा रहे हैं.
रयान जिस बोरवेल में गिरा है, उसकी गोलाई सिर्फ 45 सेंटीमीटर है. राहत दल में इंजीनियर, कंस्ट्रक्शन एक्सपर्ट, मेडिकल दल और टोपोग्राफर शामिल हैं. बचाव दल के मुताबिक घटनास्थल की जमीन बालुई मिट्टी और पत्थरों से भरी है, जिसके चलते मुश्किलें आ रही हैं.
कई देशों में हो चुके हैं ऐसे हादसे
कुएं या बोरवेल में बच्चों के गिरने की दुर्घटनाएं कई देशों में हो चुकी हैं. भारत के हरियाणा राज्य में 2006 में प्रिंस नाम का एक बच्चा 60 फुट गहरे बोरवेल में गिर गया. सेना की मदद से पांच दिन बाद प्रिंस को सही सलामत बाहर निकाला गया. भारत में कई दूसरे राज्यों में भी ऐसी घटनाएं हुईं और कई में बच्चों की मौत हो गई. पाकिस्तान में भी कभी कभार इस तरह के हादसे होते रहते हैं.
2019 में स्पेन में भी दो साल का एक बच्चा 70 मीटर गहरे बोरवेल में गिर गया. 13 दिन बाद जब उसे निकाला गया, तब तक उसकी मौत हो चुकी थी. इन घटनाओं के बाद कई देशों में खाली बोरवेलों को बंद करने के नियम लागू किए गए.
ओएसजे/आरएस (एएफपी, रॉयटर्स)
वियना, 6 फरवरी| पश्चिमी ऑस्ट्रिया में बीते 24 घंटे में हिमस्खलन की 3 अलग-अलग घटनाएं हुईं, जिसमें 8 लोगों की मौत हो गई। ये जानकारी ऑस्ट्रिया की न्यूज एजेंसी एपीए से सामने आई है।
पुलिस ने शनिवार को कहा कि घटनाएं वोरार्लबर्ग और टायरॉल राज्यों में शुक्रवार और शनिवार को हुई। ऑस्ट्रिया-स्विस सीमा के पास एक हिमस्खलन में 4 स्वीडिश स्कीयर और उनके ऑस्ट्रियाई गाइड मारे गए।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ के मुताबिक, अधिकारियों ने शनिवार और रविवार को और हिमस्खलन की चेतावनी जारी की है। (आईएएनएस)
बीजिंग विंटर ओलंपिक में पहली बार पूरी तरह कृत्रिम बर्फ का इस्तेमाल हो रहा है. शोधकर्ताओं का कहना है कि इससे वैश्विक तापमान वृद्धि पर काफी ज्यादा असर पड़ेगा. अगर यही हाल रहा, तो शीतकालीन खेलों का अस्तित्व खत्म हो सकता है.
डॉयचे वैले पर स्टुअर्ट ब्राउन की रिपोर्ट-
इस बार विंटर ओलंपिक का आयोजन चीन में किया जा रहा है. यह आयोजन 4 फरवरी 2022 से 20 फरवरी 2022 तक होगा. इसमें डाउनहिल स्कीइंग और स्नोबोर्डिंग जैसे खेल भी शामिल हैं जिनके लिए काफी ज्यादा बर्फ की जरूरत होती है. लेकिन चीन में जिस जगह पर इस खेल का आयोजन किया जा रहा है वहां पारंपरिक रूप से काफी कम बर्फ होती है.
यह समस्या 2014 में भी सामने आयी थी. उस समय इस खेल का आयोजन रूस के सोची में हुआ था. यह इलाका उपोष्णकटिबंधीय (मकर रेखा तथा कर्क रेखा के समीप का क्षेत्र) था. चीन में डाउनहिल स्कीइंग और स्नोबोर्डिंग का आयोजन यांगकिंग और जांगजिआकू के बंजर पहाड़ों में किया जाना है. यहां पूरी तरह कृत्रिम बर्फ का इस्तेमाल किया जाएगा. ऐसे में इसका काफी ज्यादा असर पर्यावरण पर होगा.
स्ट्राउससबर्ग यूनिवर्सिटी में हाइड्रोलॉजी की प्रोफेसर कारमेन डी जोंग ने बीजिंग में होने वाले शीतकालीन खेलों के पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव पर शोध किया है. वह कहती हैं, "बर्फ का उत्पादन करने वाली तोपें न सिर्फ काफी ज्यादा ऊर्जा का इस्तेमाल करती हैं, बल्कि इसके लिए 30 किलोमीटर दूर से पानी भी लाना पड़ता है." हालांकि, बर्फ बनाने की प्रक्रिया ही नहीं, बल्कि कई और भी कारण हैं जिनकी वजह से डी जोंग ने इस साल के विंटर ओलंपिक को ‘अब तक का सबसे अस्थिर खेल' करार दिया है.
वह कहती हैं कि स्की रन बनाने के लिए काफी पेड़ों को काटा गया है जिसके कारण मिट्टी का कटाव बढ़ जाएगा. साथ ही, खेल गांव बसाने और बुनियादी ढांचे जैसे कि सड़क और पार्किंग का निर्माण करने के लिए भी भारी मशीनों का इस्तेमाल किया गया है. एक अनुमान के मुताबिक, इससे एक करोड़ टन कार्बन का उत्सर्जन हुआ है.
ओलंपिक खेल का आयोजन करने वाली समिति ‘बीजिंग आयोजन समिति (बीओसी)' ने वादा किया था कि वह कम से कम कार्बन उत्सर्जन करने का प्रयास करेगी और ज्यादातर काम अक्षय ऊर्जा की मदद से किया जाएगा. जोंग कहती हैं कि समिति ने आयोजन स्थल के लिए विंड टरबाइन और सोलर फार्म का निर्माण किया है, इसके बावजूद काफी ज्यादा कार्बन उत्सर्जन हुआ है.
उन्होंने कहा कि शुष्क क्षेत्र में बर्फ बनाने के लिए पानी को पहाड़ पर पहुंचाया जा रहा है. इसके ‘इस्तेमाल में खर्च होने वाली ऊर्जा' को जलवायु तटस्थता की गणना में शामिल नहीं किया गया है.
वह कहती हैं, "समस्या यह है कि बीजिंग की जलवायु बर्फ बनाने के लिए उपयुक्त नहीं है. शुष्क मौसम होने की वजह से तेज हवाएं बहती हैं और धूल उड़ाती हैं. ये धूल बर्फ पर जम जाती है. इसका साफ मतलब है कि यूरोपीय आल्प्स की तुलना में इस इलाके में दोगुनी बर्फ की जरूरत होगी. इसलिए, स्नो गन का इस्तेमाल सामान्य से अधिक समय तक किया जा रहा है और इसके लिए काफी ज्यादा पानी का इस्तेमाल हो रहा है."
यह समस्या इसलिए बढ़ गई है कि इस खेल का आयोजन ऐसे शुष्क इलाकों में किया जा रहा है जहां पानी और बर्फ की कमी है. अधिकांश यूरोपीय या उत्तरी अमेरिकी देश खर्च और पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों की वजह से इस खेल का आयोजन करने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं. ऐसे में इस खेल का आयोजन एशियाई देश कर रहे हैं.
शीतकालीन खेलों के भविष्य को खतरा
कृत्रिम बर्फ पर बीजिंग की निर्भरता कोई नई बात नहीं है. 2014 के विंटर ओलंपिक के दौरान रूस के सोची में 80 फीसदी कृत्रिम बर्फ का इस्तेमाल किया गया था. 2018 में विंटर ओलंपिक का आयोजन उत्तरी कोरिया के प्योंगयांग में किया गया था. यहां भी 90 फीसदी कृत्रिम बर्फ का इस्तेमाल हुआ था. 2010 का विंटर ओलंपिक कनाडा के वैंकूवर में आयोजित किया गया था. यहां गर्मी की वजह से कृत्रिम बर्फ बनाना काफी मुश्किल काम था, इसलिए हेलिकॉप्टर से बर्फ को वहां ले जाया गया.
अगर बर्फ बनाने के लिए अक्षय ऊर्जा से संचालित होने वाली मशीनों का इस्तेमाल करने के बावजूद वैश्विक स्तर पर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को नाटकीय रूप से कम करने में सफलता नहीं मिलती है, तो इसका साफ असर शीतकालीन खेलों के भविष्य पर पड़ेगा.
एक नए अध्ययन से पता चला है कि ऐसा होने पर विंटर ओलंपिक का आयोजन करने वाले पिछले 21 आयोजकों में से सिर्फ एक ही 2100 तक इस खेल के लिए ‘सुरक्षित हालात' उपलब्ध करा सकेंगे. हालांकि, अगर पेरिस जलवायु समझौते के उत्सर्जन लक्ष्यों को पूरा कर लिया जाता है, तो जलवायु के अनुकूल मेजबान देशों की संख्या बढ़कर आठ हो जाएगी.
इस अध्ययन में खास तौर पर गर्म मौसम में स्कीइंग की सुरक्षा को लेकर एथलीटों से बात की गई है. साथ ही, जलवायु से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया गया है. जिस तरीके से धरती के तापमान में वृद्धि हो रही है वह जारी रही, तो अगले 30 सालों के अंदर विंटर ओलंपिक खेलों की मेजबानी करने वाले देशों की संख्या कम हो जाएगी.
अध्ययन के मुख्य लेखक और वॉटरलू यूनिवर्सिटी में भूगोल और पर्यावरण प्रबंधन के प्रोफेसर डेनियल स्कॉट कहते हैं, "अगर हम उत्सर्जन में कटौती की दर से नीचे जाते हैं, तो इस सदी के मध्य तक हमारे पास सिर्फ चार ऐसे देश होंगे जहां शीतकालीन खेलों का आयोजन जलवायु के अनुकूल स्थितियों में हो सकेगा. वहीं, इस सदी के अंत में जापान का सप्पोरो ही एक ऐसा इलाका होगा जहां ऐसे खेलों का आयोजन किया जा सकेगा."
स्कॉट ने कहा कि 2014 में रूस के सोची में खेल का आयोजन हुआ था. यह जगह पहले से इस खेल के हिसाब से जलवायु के अनुकूल नहीं थी. जिस तरह से वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है उससे कई और देशों में इस खेल का आयोजन नहीं हो पाएगा. कई स्की एथलीटों को भी "अपने खेल के भविष्य के बारे में वाकई चिंता है."
संस्थागत परिवर्तन की जरूरत
सिर्फ ओलंपिक की मेजबानी करने वाली जगहों को जलवायु के अनुकूल बनाने से समस्या का हल नहीं होगा. ऑस्ट्रिया के इंसब्रुक में मौजूद जलवायु को लेकर काम करने वाला समूह ‘प्रोटेक्ट आवर विंटर्स यूरोप (पीओडब्ल्यू)' के समन्वयक जोरेन रोंग कहते हैं कि खेल पर ध्यान केंद्रित करने' और हर दो साल में एक बड़े आयोजन के दौरान कार्बन के उत्सर्जन को कम करने से वैश्विक तापमान में वृद्धि कम नहीं होने वाली है.
रोंग कहते हैं, "पीओडब्ल्यू चाहती है कि अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति, ओलंपिक खेल का आयोजन करने वाले अलग-अलग देश और इससे जुड़े लोग एक मंच पर आएं. वे ऊर्जा के स्रोत, वितरण और उसके उपभोग को लेकर सरकारों से संस्थागत परिवर्तन की मांग करें और इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं."
अमेरिकी स्कीयर रिवर रैडामस यूथ ओलंपिक गेम्स में तीन बार स्वर्ण पदक जीत चुके हैं. उनकी उम्र 23 वर्ष है. वे इस बार भी बीजिंग ओलंपिक में हिस्सा लेने वाले हैं. रैडामस भी अपने खेल पर जलवायु परिवर्तन की वजह से होने वाले प्रभाव को लेकर चिंतित हैं और उन्होंने पीओडब्लू को आर्थिक रूप से सहायता भी की है.
वह कहते हैं, "इस सीजन में यूरोप में 15.5 डिग्री सेल्सियस तापमान पर दौड़ का आयोजन किया गया. इसे आयोजित करने में इंटरनेशनल स्की फेडरेशन को काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा, क्योंकि सर्दियों के मौसम में भी यह काफी गर्म था. इसलिए, सामूहिक प्रयास के तौर पर बड़े निगमों को एक साथ आगे बढ़ना होगा, क्योंकि ये परिवर्तन हमें काफी ज्यादा प्रभावित करते हैं."
रोंग ने डीडब्ल्यू को बताया, "अगर हम शीतकालीन खेलों को बचाना चाहते हैं, तो हमें उत्सर्जन को तुरंत कम करने की जरूरत है." डाउनहिल स्कीइंग के पूर्व विश्व चैंपियन फेलिक्स नॉयरेउथेर जर्मनी के म्यूनिख शहर में रहते हैं. वह भी शीतकालीन खेलों की वजह से जलवायु पर पड़ने वाले प्रभावों की तीखी आलोचना करते हैं. वह गर्मी के मौसम में ग्लेशियर पर होने वाले अभ्यास और वनों को काटने को गलत ठहराते हैं. उन्होंने पिछले साल अक्टूबर महीने में यूरोपीय आल्प्स में वैश्विक तापमान वृद्धि के असर पर एक डॉक्यूमेंट्री रिलीज की थी. इस मौके पर कहा था, "ओलंपिक खेलों को स्पष्ट रूप से अधिक टिकाऊ बनाने की जरूरत है, अन्यथा उनका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा."
प्रशिक्षण की जरूरत
डेनियल स्कॉट के अनुसार, अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति और स्की प्रतियोगिता के आयोजकों को स्थानीय स्तर पर और लगातार एक ही क्षेत्र में प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करना चाहिए. इससे खिलाड़ियों को यात्रा भी कम करनी पड़ेगी और कार्बन का उत्सर्जन भी कम होगा.
अमेरिकी स्कीयर रिवर रैडामस कहते हैं, "महामारी का एक फायदा यह हुआ कि एथलीटों को अपने देश में ही प्रशिक्षण लेना पड़ा जबकि पिछले वर्षों में उन्होंने चिली या न्यूजीलैंड की यात्रा की थी. इससे हमें न तो ज्यादा यात्रा करनी पड़ी और न ही ज्यादा समय बर्बाद हुआ. यह जलवायु परिवर्तन के नजरिए से भी सकारात्मक कदम है. यह भले ही छोटा कदम है, लेकिन छोटे-छोटे कदम ही बड़े बदलाव ला सकते हैं."
इन सब के बीच, पीओडब्ल्यू के रोंग का मानना है कि संस्थागत प्रयास के बगैर व्यक्तिगत प्रयास सफल नहीं होंगे. वह कहते हैं, "अगर उत्सर्जन को कम करने और हमें वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 से 2 डिग्री सेल्सियस के बीच बनाए रखना है, तो ठोस उपाय अपनाने होंगे. ऐसा न होने पर, शीतकालीन खेलों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा." डेनियल स्कॉट भी इस बात से सहमत हैं कि इस खेल के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए, पेरिस समझौते के लक्ष्यों के करीब रहना होगा. (dw.com)
सियोल, 5 फरवरी | अमेरिका और आठ अन्य देशों ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) से उत्तर कोरिया के हालिया मिसाइल परीक्षणों की निंदा करने का आग्रह किया है। योनहाप समाचार एजेंसी ने शनिवार को बताया कि शुक्रवार की बैठक ने उत्तर कोरिया को मिसाइल प्रक्षेपण की हालिया श्रृंखला के लिए जिम्मेदार ठहराने के लिए लगभग दो सप्ताह में अमेरिका और अन्य समान विचारधारा वाले देशों द्वारा दूसरे प्रयास को चिह्न्ति किया।
उत्तर कोरिया ने 30 जनवरी को वर्ष के अपने सातवें और आखिरी मिसाइल प्रक्षेपण का मंचन किया।
यूएस. संयुक्त राष्ट्र में राजदूत लिंडा थॉमस-ग्रीनफील्ड ने एक संयुक्त बयान में कहा, "डीपीआरके द्वारा 30 जनवरी को एक मध्यवर्ती दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल (आईआरबीएम) का प्रक्षेपण डीपीआरके के हाल के कई सुरक्षा परिषद प्रस्तावों के उल्लंघन में एक महत्वपूर्ण वृद्धि है जो इस क्षेत्र को और अस्थिर कराने का प्रयास करता है। हम इस गैरकानूनी कार्रवाई की कड़े शब्दों में निंदा करते हैं।"
डीपीआरके उत्तर कोरिया के आधिकारिक नाम, डेमोक्रेटिक पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ कोरिया का संक्षिप्त नाम है।
बयान पर यूएनएससी के आठ अन्य सदस्य देशों, अल्बानिया, ब्राजील, ब्रिटेन, फ्रांस, आयरलैंड, जापान, नॉर्वे और संयुक्त अरब अमीरात के संयुक्त राष्ट्र के प्रतिनिधियों ने हस्ताक्षर किए।
उन्होंने नोट किया कि आईआरबीएम 2017 के अंत के बाद से उत्तर कोरिया द्वारा किए गए सबसे लंबी दूरी के परीक्षण के रूप में चिह्न्ति है, साथ ही प्योंगयांग ने इस साल मिसाइल परीक्षणों के सात दौर में अब तक नौ बैलिस्टिक मिसाइलें दागी हैं।
उन्होंने अपने संयुक्त बयान में कहा, "जनवरी में लॉन्च की गई नौ बैलिस्टिक मिसाइलें डीपीआरके द्वारा अपने डब्ल्यूएमडी और बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रमों के इतिहास में एक महीने में किए गए प्रक्षेपणों की सबसे बड़ी संख्या है।"
उन्होंने कहा, "हम सभी परिषद सदस्यों से इन खतरनाक और गैरकानूनी कृत्यों की निंदा करने के लिए एक स्वर में बोलने का आह्वान करते हैं।"
उत्तर कोरिया ने नवंबर 2017 के बाद से परमाणु और लंबी दूरी की मिसाइल परीक्षण पर एक स्व-लगाया स्थगन बनाए रखा है, जब उसने उस साल सितंबर में अपने छठे और आखिरी परमाणु परीक्षण के बाद एक अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल का अंतिम परीक्षण किया था।
(आईएएनएस)|
वाशिंगटन, 5 फरवरी | यूएस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) ने 18 साल और उससे ज्यादा उम्र के लोगों के लिए मॉडर्ना कोरोना वैक्सीन के इस्तेमाल के लिए अपने वैक्सीन सलाहकारों की सिफारिश का समर्थन किया है।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन (एफडीए) ने सोमवार को मॉडर्ना कोरोना वैक्सीन को पूर्ण मंजूरी देने के बाद यह सिफारिश की।
सीडीसी के निदेशक रोशेल वालेंस्की ने एक बयान में कहा, "अब हमारे पास एक और पूरी तरह से स्वीकृत कोरोना वैक्सीन है।"
उन्होंने कहा, "अगर आप टीकाकरण से पहले अनुमोदन का इंतजार कर रहे हैं, तो अब लगभग 2.12 करोड़ अमेरिकियों में शामिल होने का समय है, जिन्होंने पहले ही अपनी प्राथमिक सीरीज पूरी कर ली है। "
इससे पहले शुक्रवार को, सीडीसी के वैक्सीन सलाहकारों ने 18 साल और उससे अधिक उम्र के लोगों के लिए दो-खुराक वाली मॉडर्ना कोरोना वैक्सीन की सिफारिश करने के लिए सर्वसम्मति से मतदान किया।
स्पाइकवैक्स नाम का यह टीका फाइजर-बायोएनटेक के संयुक्त राज्य अमेरिका में दो पूरी तरह से स्वीकृत कोरोना टीकों के रूप में शामिल है।
पूर्ण अनुमोदन से पता चलता है कि स्पाइकवैक्स सुरक्षा, प्रभावशीलता और विनिर्माण गुणवत्ता के लिए एफडीए के कठोर मानकों को पूरा करता है। (आईएएनएस)
ब्रिटेन के ब्रैडफर्ड शहर में महिला पुलिस कर्मचारी सादे कपड़ों में सड़कों पर उतरेंगी. इसका मकसद उन कार-चालकों को धर-दबोचना है जो सड़क चलती लड़कियों और महिलाओं पर फब्तियां कसते हैं.
डॉयचे वैले पर स्वाति बक्शी की रिपोर्ट-
उत्तरी-ब्रिटेन में बसे ब्रैडफर्ड शहर में कार में बैठे मर्दों की बेहूदा टिप्पणियां और अवांछित व्यवहार झेलने वाली लड़कियों व महिलाओं के लिए शायद ये खबर थोड़ी राहत लेकर आई है. कार में होने का फायदा उठाकर, सड़क पर चल रही महिलाओं को इस तरह परेशान करने वाले मर्दों को सबक सिखाने के लिए महिला पुलिकर्मियों को सादे कपड़ों में तैनात किया जा रहा है.
ये कदम ब्रैडफर्ड विश्वविद्यालय की छात्राओं की तरफ से आई कई शिकायतों के बाद उठाया जा रहा है. पुलिस कार्रवाई के तहत महिला पुलिसकर्मी वर्दी की जगह सादे कपड़े पहनकर शहर की उन सड़कों पर उतरेंगी जहां पर छात्राओं ने इस तरह की हरकतें झेलने की बात कही है. ब्रैडफर्ड विश्वविद्यालय तक जाने वाली ग्रेट हॉर्टन रोड इस तरह की घटनाओं के लिए कुख्यात है जहां महिलाओं का सुरक्षित चल पाना दूभर है.
डर नहीं लड़कियों को तंग करने वाले मर्दों को
विश्वविद्यालय में एलजीबीटीक्यू+ अधिकारी मेग हेंडरसन ने मीडिया से बातचीत में कहा कि उन्हें उम्मीद है कि ये कार्रवाई कैंपस के पास इस तरह की हरकतें करने वाले कार-चालकों को रोकने में मदद करेगी. हेंडरसन का मत है कि ऐसा नहीं है कि फब्तियां कसने वाले मर्दों को किसी खास आयु-सीमा में बांटा जा सकता है. इसमें हर उम्र के मर्द शामिल हैं. उन्हें लगता है कि उनके और महिलाओं के बीच कार एक ऐसी दीवार है जिसके सहारे वो बच निकलेंगे.
यॉर्कशर लाइव अखबार से बातचीत में हेंडरसन ने कहा कि "कुछ इस तरह की शिकायतें भी आई हैं जहां लड़कियों का तब तक पीछा किया गया जब तक कि वो सड़क छोड़कर किसी बिल्डिंग में ना चली गई हों. ये निश्चित तौर पर स्वंतत्रता से जीने के अधिकार का हनन है और कुछ लोगों के ताकतवर महसूस करने का दुर्भावनापूर्ण तरीका है.”
ब्रैडफर्ड शहर में महिलाओं की सुरक्षा का मसला नया नहीं है और विश्वविद्यालय इस दिशा में जागरूकता के लिए प्रयासरत दिखता है. इसी कड़ी में पिछले साल दिसंबर में ‘रीक्लेम द नाइट' मार्च आयोजित किया गया था जिसमें कैंपस बिल्डिंग से शहर के मुख्य पार्क तक लोगों ने महिलाओं की सुरक्षा की मांग करते हुए जुलूस निकाला. कोविड के चलते करीब दो साल की बंदी के बाद कैंपस के फिर से खुलने पर छात्राओं के साथ अभद्र व्यवहार से जुड़ी शिकायतें तेजी से बढ़ी हैं.
पकड़े गए तो कोर्ट-कचहरी और जुर्माना
कार-चालकों के दुर्व्यवहार के विरुद्ध ये पुलिसिया कार्रवाई सार्वजनिक स्थल सुरक्षा आदेश के तहत की जा रही है जो पूरे ब्रैडफर्ड शहर में लागू है. ये मुख्य रूप से मोटर ड्राइवरों के ऐसे व्यवहार से जुड़ा है जो किसी को परेशान करे या पीड़ा पहुंचाए. पुलिस की कार्रवाई के दौरान जो ड्राइवर गाड़ी के भीतर से ऐसी कोई हरकत या टिप्पणी करते पाए जाएंगे उनके लिए सजा का प्रावधान है. पकड़े जाने पर पुलिस एक निश्चित जुर्माना राशि वसूलेगी और मामला बढ़ने पर कचहरी तक जा सकता है.
ऐसे मामलों में दोषी को एक हजार पाउंड तक का जुर्माना लगने की संभावना है. ब्रैडफर्ड शहर में डिटेक्टिव सुपरिंटेंडेट तान्या विलकिंस ने मीडिया से कहा कि क्रिसमस के पहले ही शहर की पुलिस को कार-चालकों के खिलाफ छात्राओं की इन शिकायतों के बारे में जानकारी दी गई थी. चूंकि ये शिकायतें सीधे पुलिस के पास नहीं आई हैं इसलिए वर्दी की जगह सादे कपड़ों में पुलिसकर्मियों की मदद से स्थिति को ठीक से समझने की कोशिश की जा रही है. इससे सटीक जानकारी जुटाई जाएगी कि आखिर हो क्या रहा है.
ब्रैडफर्ड में गंभीर है छेड़खानी की समस्या
ब्रैडफर्ड शहर वेस्ट यॉर्कशर काउंटी में आता है जहां महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामले चिंताजनक हालात का नजारा पेश करता रहा है. स्थानीय अखबार लगातार इस तरह की रिपोर्टें छापते रहे हैं कि शहर में महिलाएं शाम को घर से बाहर निकलने में बिल्कुल सुरक्षित महसूस नहीं करतीं. वेस्ट यॉर्कशर की मेयर ट्रेसी ब्रबिन ने इन दिक्कतों से निपटने के लिए ‘सुरक्षित सड़कें' नाम के अपने विशेष प्रयास के लिए छह लाख पचपन हजार पाउंड यानी तकरीबन छह करोड़ चौंसठ लाख रुपए की सरकारी फंडिंग हासिल की है.
नई सरकारी फंडिग के तहत जनवरी से मार्च 2022 के बीच ऐसे कदम उठाए जा रहे हैं जिससे महिलाएं सड़कों पर निडर होकर चल सकें. खासकर विश्वविद्यालय की छात्राओं की शिकायत रही है कि वे कैंपस में तो सुरक्षित हैं लेकिन कैंपस से बाहर नहीं. प्रशासन और पुलिस की इन तीन महीने की कोशिशों का कोई नतीजा निकलता है या ये सिर्फ कागजी कैंपेन बन कर रह जाते हैं, ये अगले कुछ महीनों में साफ होगा. (dw.com)
जर्मन सरकार ने इंटरनेट बेस्ड मैसेंजर सर्विस टेलीग्राम के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की चेतावनी दी है. जर्मनी का कहना है कि भड़काऊ कटेंट के प्रति जवाबदेही के लिए टेलीग्राम को एक कॉन्टैक्ट पर्सन नियुक्त करना होगा.
जर्मनी के आंतरिक मामलों के मंत्रालय ने शुक्रवार को टेलीग्राम के प्रतिनिधियों से बातचीत की. मंत्रालय के प्रवक्ता के मुताबिक इस बातचीत में धुर दक्षिणपंथियों और वैक्सीन व महामारी संबंधी पांबदियों का विरोध करने वाले लोगों की चर्चा हुई. ऐसे कई समूह संवाद के लिए इनक्रिप्टेड मैसेजिंग सर्विस टेलीग्राम का इस्तेमाल करते हैं. इनक्रिप्टेड या सेल्फ डिलीट ऑप्शन के चलते अपराध के मामलों में इन संदेशों तक पहुंचना बहुत मुश्किल होता है.
बर्लिन में पत्रकारों को जानकारी देते हुए गृह मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, "गृह मंत्रालय ने टेलीग्राम के शीर्ष प्रबंधन के प्रतिनिधियों के लिए शुरुआती सकारात्मक बातचीत की है." गृह मंत्री नैन्सी फैजर ने भी अपने ट्वीट में लिखा, "बातचीत जारी रखने और संवाद को और तेज करने पर सहमति भी बनी है." जनवरी में फैजर ने टेलीग्राम को बैन करने की चेतावनी दी थी. उन्होंने तब यह भी कहा था कि जर्मनी यूरोपीय संघ के साझेदार देशों के साथ मिलकर टेलीग्राम को रेग्युलेट करने पर चर्चा भी करेगा.
न्याय मंत्रालय ने भी दी चेतावनी
ऐसी ही चेतावनी जर्मनी के न्याय मंत्री मार्को बुशमन भी दे चुके हैं. जर्मन अखबार राइनिषे पोस्ट और बॉनर गेनराल अनसाइगर से बात करते हुए बुशमन ने कहा कि, "कानूनी कार्रवाई बेहद स्पष्ट है."
जर्मन सरकार ने टेलीग्राम से कहा है कि वह जर्मन प्रशासन के लिए एक कॉन्टैक्ट पर्सन नियुक्त करे. बुशमन ने कहा, उदाहरण के लिए हम ये देखना चाहते हैं कि कानूनी कार्रवाई के मामले में टेलीग्राम की एसेट्स कहां है और उन्हें कैसे चेक किया जा सकता है.
जर्मन न्याय मंत्री के मुताबिक टेलीग्राम सिर्फ एक मैसेंजर सर्विस भर नहीं है. वह टेलीग्राम को एक तरह का सोशल नेटवर्क बता रहे हैं. लेकिन फेक न्यूज, हेट स्पीच, भड़काऊ भाषण या चाइल्ड पोर्नोग्राफी के मामले में सोशल मीडिया पर जिस तरह की कानूनी जिम्मेदारियां हैं, टेलीग्राम इससे बचा हुआ है. जर्मनी और यूरोप में वैक्सीन के कट्टर विरोधियों और धुर दक्षिणपंथियों के बीच टेलीग्राम बहुत पॉपुलर है.
क्या है टेलीग्राम
पहली नजर में टेलीग्राम, व्हाट्सऐप की तरह एक सामान्य मैसेंजर सर्विस जैसा लगता है. लेकिन कुछ फीचर 2013 में रिलीज हुए टेलीग्राम को दूसरे मैसेंजरों के मुकाबले कहीं ज्यादा सुरक्षित बनाते हैं. क्लाउड बेस्ट टेलीग्राम में यूजर्स को सेल्फ डिस्ट्रक्टिंग मैसेजिंग का विकल्प मिलता है. इसके ऑप्शन के तहत मैसेज भेजने वाला तय कर सकता है कि उसका मैसेज कब खुद डिलीट हो जाएगा. 24 घंटे, सात दिन एक महीने के ऑटो डिलीट मोड के जरिए तस्वीरें और वीडियो भी भेजे जा सकते हैं.
व्हाट्सऐप में जहां एक ग्रुप में एडमिन समेत कुल 256 मेम्बर हो सकते हैं, वहीं टेलीग्राम पर एक साथ करीब 2,00,000 मेम्बर्स का ग्रुप बनाया जा सकता है. 2021 में व्हाट्सऐप ने जब अपनी डाटा प्राइवेसी पॉलिसी में बदलाव किए तो टेलीग्राम ने दावा किया कि वह यूजर्स के डाटा के साथ किसी तरह का खिलवाड़ नहीं करेगा. इसके बाद भारत समेत तमाम देशों में बड़ी संख्या में लोगों ने टेलीग्राम डाउनलोड किया. पिछले साल में टेलीग्राम दुनिया में सबसे ज्यादा डाउनलोड किया जाने वाला ऐप बन गया और इसके यूजर्स की संख्या भी पहली बार एक अरब के पार चली गई.
निजता के साये में अपराध की दुनिया
हाल ही में भारत में बुल्ली बाई नाम के एक ऐप का पता चला जिसमें मुस्लिम महिलाओं की तस्वीरें शेयर कर उनकी बोली लगाई जा रही थी. मामले की जांच के दौरान टेलीग्राम पर बने ऐसे ग्रुप का भी पता चला जहां हिंदू महिलाओं की तस्वीरें शेयर कर आपत्तिजनक बातें लिखी जा रही थीं.
सितंबर 2021 में भारत के केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने टेलीग्राम पर अपना फैक्ट चेकिंग चैनल लॉन्च किया. मंत्रालय ने इसकी जानकारी देते हुए कहा कि टेलीग्राम पर उसके नाम से चल रहे बाकी चैनल फेक हैं.
अरब देशों में इस्लामिक स्टेट के बढ़ते प्रभाव के दौरान भी टेलीग्राम पर आतंकवादियों को गुप्त संवाद का तरीका मुहैया कराने के आरोप लगे थे. 2021 में फाइनेंशियल टाइम्स अखबार ने साइबररिंट के सहयोग से एक शोध किया. इस शोध के बाद दावा किया गया कि टेलीग्राम साइबर हैकरों का भी गढ़ है.
ओएसजे/एमजे (रॉयटर्स, डीपीए)
स्पेन की संसद के निचले सदन में श्रम सुधार विधेयक पास करवाने के लिए सत्तारूढ़ समाजवादी सरकार के पास बहुमत नहीं था. विपक्षी सांसद की वोट से हुआ फैसला.
तीन फरवरी को स्पेन की संसद में प्रस्तावित श्रम सुधार विधेयक पास हो गया. लेकिन इस विधेयक से ज्यादा चर्चा, इसके पास होने के तरीके की हो रही है. दरअसल, विधेयक के लिए हुए मतदान में सत्ता पक्ष एक वोट से आगे रहा. विपक्ष का दावा है कि उनके ही एक सांसद से गलती हुई और विधेयक के समर्थन में वोट चला गया. स्पेन की संसद के निचले सदन हाउस ऑफ डेप्युटीज में 350 सीटें हैं. किसी भी विधेयक को पास करवाने के लिए न्यूनतम संख्या बल 175 होना चाहिए.
सत्ताधारी सोशलिस्ट गठबंधन के पास सिर्फ 155 सीटें हैं. सोशलिस्ट पार्टी और उसके सहयोगियों ने नौ अन्य पार्टियों के साथ विधेयक पर आम सहमति बनाई. इसके बावजूद वे बिल पास करवाने की स्थिति में नहीं लग रहे थे. जब मतदान हुआ तो सत्ता पक्ष को एक मत विपक्षी सांसद की ओर से मिल गया. विधेयक के पक्ष में 175 और विपक्ष में 174 मत डाले गए. और सिर्फ एक मत के अंतर से विधेयक पास हो गया.
दूसरी तरफ विपक्ष इसे बेईमानी बता रहा है. पीपल्स पार्टी का कहना है कि उनके एक सांसद ने स्क्रीन पर "ना" का बटन दबाया था, लेकिन मत "हां" के पक्ष में चला गया. कंप्यूटर की गलती की वजह से ऐसा हुआ है. उनकी शिकायत है कि सदन की अध्यक्षा ने उनकी शिकायत के बावजूद नतीजा बदलने से इनकार कर दिया. पीपल्स पार्टी के अध्यक्ष पाबलो कसादो ने कहा है कि वे इस कानून को संवैधानिक न्यायालय में चुनौती देंगे.
विधेयक में क्या था?
ये विधेयक श्रम सुधारों से जुड़ा है. नए कानून से ज्यादातर अस्थायी अनुबंध अधिकतम तीन महीने के लिए ही किए जा सकेंगे. इसके अलावा वेतन और सेवा शर्तों पर फिर से ट्रेड यूनियनें और कर्मचारी संघ सरकार या कंपनियों से मोलभाव कर सकेंगी. इस नए कानून से, पिछली रूढ़िवादी सरकार की ओर से साल 2012 में उद्योगों के हित में लाए गए कुछ नियम खत्म हो जाएंगे. जिस वक्त ये कानून लाए गए थे, तब स्पेन बड़े कर्ज संकट का सामना कर रहा था. इस विधेयक को दिसंबर 2021 में मंत्रिमंडल ने पास कर दिया था.
प्रधानमंत्री पेद्रो सांचेज की सरकार के लिए ये कानून बनाना आर्थिक नजरिए से भी जरूरी था. यूरोजोन की चौथी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति स्पेन को यूरोपीय संघ की ओर से महामारी से रिकवरी के लिए आर्थिक मदद मिलनी है. उस मदद के लिए एक जरूरी शर्त ये श्रम सुधार भी थे. यानी इस कथित गलती से स्पेन को यूरोपीय संघ से अरबों डॉलर की आर्थिक मदद का रास्ता खुल गया है. सत्तारूढ़ समाजवादी गठबंधन ने ये विधेयक लाने से पहले ट्रेड यूनियनों और कर्मचारी संघों से चर्चा की थी. चर्चा के बाद वे भी विधेयक के समर्थन में थे.
क्यों जरूरी था विधेयक?
स्पेन में अस्थायी और कम अवधि के अनुबंधों की वजह से नौकरी की सुरक्षा एक बड़ा सवाल है. खासतौर पर युवाओं के बीच में. नवंबर 2021 तक के उपलब्ध आंकड़ों में 25 साल से कम उम्र के युवाओं में से 29.2 फीसदी बेरोजगार हैं. ये देश के औसत 14.1 फीसदी के दोगुने से भी ज्यादा है. पूरे यूरोजोन यानी यूरो मुद्रा वाले 19 देशों में ये आंकड़ा 7.2 फीसदी है. छोटी अवधि के अनुबंध असुक्षा का भाव बढ़ाते हैं और मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर डाल सकते हैं.
आरएस/एके (एपी, रॉयटर्स)
इसी सप्ताह अफगानिस्तान में दो और महिला कार्यकर्ता लापता हो गईं. उन्हें गायब करने के आरोप तालिबान पर लग रहे हैं और अब संयुक्त राष्ट्र ने तालिबान से इस मामले में जानकारी मांगी है.
इसी के साथ 2022 में अभी तक अफगानिस्तान में अचानक लापता हो जाने वाली महिला कार्यकर्ताओं की संख्या चार हो गई है. बताया जा रहा है कि इन दोनों महिलाओं को तालिबान ने हिरासत में ले लिया है लेकिन इन रिपोर्टों की पुष्टि नहीं हो पाई है.
इसी बीच अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र के मिशन (यूएनएमए) ने बताया कि उसने तालिबान से इस बारे में "तुरंत जानकारी" मांगी है. संस्था ने एक ट्वीट में कहा, "संयुक्त राष्ट्र "गायब" महिला कार्यकर्ताओं और उनके रिश्तेदारों को छोड़े जाने की मांग दोहरा रहा है."
तालिबान ने फंसाया
अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र की विशेष राजदूत रीना अमीरी ने भी तालिबान से कहा कि वो महिलाओं के अधिकारों का सम्मान करे. उन्होंने ट्विटर पर लिखा, "अगर तालिबान अफगान लोगों से और दुनिया से मान्यता चाहते हैं तो उन्हें अफगान लोगों के और विशेष रूप से महिलाओं के अधिकारों का सम्मान करना पड़ेगा."
यूएनएमए ने गायब हुई महिलाओं का नाम नहीं बताया लेकिन एक और अधिकार कार्यकर्ता ने बताया कि तालिबान ने जहरा मोहम्मदी और मुरसल अयार को गिरफ्तार कर लिया है. इस कार्यकर्ता ने नाम ना जाहिर करने की शर्त पर बताया, "जहरा एक दंत चिकित्सक हैं और एक क्लीनिक में काम करती हैं. उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया है."
उन्होंने यह भी बताया कि अयार से उनके एक पुरुष सहयोगी ने उनका वेतन उन्हें देने के लिए उनका पता मांगा और उसके बाद उनके घर से उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. उन्होंने बताया, "इस तरह से उन्हें फंसाया गया. तालिबान ने उन्हें ढूंढ निकाला और गिरफ्तार कर लिया."
लापता कार्यकर्ता
उन्होंने यह भी बताया कि अयार के पिता को भी गिरफ्तार कर लिया गया है. कुछ ही हफ्तों पहले तमन्ना जरयाबी परयानी और परवाना इब्राहिमखेल नाम की कार्यकर्ता भी काबुल में एक प्रदर्शन में शामिल होने के बाद इसी तरह गायब हो गई थीं.
संयुक्त के मानवाधिकार उच्चायुक्त ने इन महिलाओं और उनके परिवार के चार रिश्तेदारों के लिए चिंता जताई है. ये सब अभी भी लापता हैं. तालिबान ने कहा है कि इनमें से किसी के बारे में उसे कोई जानकारी नहीं है. उसने यह भी कहा है कि वो मामले की जांच कर रहा है.
अगस्त 2020 में देश में सत्ता हथियाने के बाद तालिबान ने विरोध के खिलाफ कड़े कदम उठाए हैं. महिलाओं की रैलियों को जबरन तितर-बितर कराया गया, आलोचकों को गिरफ्तार किया गया और प्रदर्शनों पर खबर कर रहे स्थानीय पत्रकारों को मारा-पीटा.
तालिबान ने वादा तो किया है कि 1996 से 2001 के बीच उनके पहले कार्यकाल के दौरान उन्होंने जो कड़े इस्लामी कानून लागू किए थे उतने कड़े कानून इस बार लागू नहीं किए जाएंगे. लेकिन सत्ता में आते ही बहुत जल्द ही महिलाओं को अधिकांश सरकारी नौकरियों से प्रतिबंधित कर दिया और लड़कियों के अधिकांश माध्यमिक स्कूल भी बंद कर दिए.
सीके/एए (एएफपी)
इन दिनों ऑनलाइन डेटिंग का कल्चर तेजी से बढ़ता जा रहा है. पुरुष हों या महिलाओं, अंजान लोगों से ऑनलाइन डेटिंग साइट्स के जरिए जुड़ते हैं, कुछ दिन बातें करते हैं और जब उन्हें लगता है कि उनकी अंडरस्टैंडिंग अच्छी है तो मिलना शुरू कर देते हैं. कई बार तो वो एक दूसरे से ऑनलाइन ही प्यार करने लगते हैं. फिर ये भी जानने की कोशिश नहीं करते कि सामने वाले शख्स का बैकग्राउंड क्या है. इसी बात का फायदा एक ठग ने उठाया और कई महिलाओं से लाखों रुपये एंठ लिए.
हाल ही में ओटीटी प्लेटफॉर्म नेटफ्लिक्स पर टिंडर स्विंडलर नाम की एक नॉन फिक्शन मूवी रिलीज हुई है जिसे लोगों का काफी अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है. दरअसल, ये मूवी इजरायल के एक असली शख्स पर बनी है जिसका नाम है साइमन लीव. 31 साल का साइमन ने लंबे वक्त तक खुद को करोड़पति बताकर कई महिलाओं को ठगने का काम किया मगर फिर उसकी चोरी पकड़ी गई और वो जेल चला गया. अब जब वो छूट चुका है, तभी वो सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव है.
इस तरह ऑनलाइन डेटिंग एप पर करता था नाटक
अब सवाल ये उठता है कि शख्स ठगने के काम को अंजाम कैसे देता था. आपको बता दें कि साइमन टिंडर पर ऐसी महिलाओं को फंसाता था जो काफी अकेली होती थीं और आसानी से पैसों के लिए आकर्षित हो जाती थीं. वो अपनी फोटोज और बातों के जरिए महिलाओं को ये बताता था कि वो एक हीरा व्यापारी है और देश-दुनिया की सैर करता है. फोटोज में उसकी अमीरी साफ झलती थी. कीमती कारें, प्राइवेट प्लेन, याच पर एंजॉय करना. ये सब देखकर महिलाएं आकर्षित हो जाती थीं.
महिलाओं के पैसों से ही खरीदता था कीमती चीजें
महिलाओं को नहीं पता था कि ये सब कुछ सिर्फ छलावा है. जब महिलाएं उसके जाल में फंस जाती थीं तब वो उनसे कहता था कि उसके पीछे गुंडे या अंतरराष्ट्रीय गैंग पड़ा है. कई बार वो कहता था कि उसके बैंक अकाउंट फ्रीज कर दिए गए हैं और अगर उसने गुंडों को तुरंत पैसे नहीं दिए तो वे उसकी जान ले लेंगे. इसके बाद औरतें कई बार अपनी जमा-पूंजी उसे भेज देती थीं या फिर पैसे ना होने पर लोन तक ले लेती थीं. इस तरह उनसे पैसे एंठ कर वो फरार हो जाता था. शख्स को इजरायल में कैद भी हुई मगर अब वो छूट चुका है और इजरायल में ही रह रहा है. महिलाओं से ठगे हुए पैसों से ही वो कीमती चीजें खरीदता था और फिर से उन्हें फंसाने में लग जाता था.
अमेरिका के एक ऑपरेशन में इस्लामिक स्टेट के नेता अबू इब्राहिम अल-हाशिमी अल-क़ुरैशी को मार दिया गया है. सीरिया के इदलिब प्रांत में हुई इस कार्रवाई की जानकारी गुरुवार को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने दी. तुर्की से सटे इस इलाके में अमेरिकी ऑपरेशन आधी रात को हुआ.
अंग्रेज़ी अख़बार द हिंदू ने इस ख़बर को जगह दी है. ऑपरेशन की जानकारी देते हुए बाइडन ने ट्वीट किया, ''पिछली रात, मेरे आदेश पर काम करते हुए अमेरिकी सैन्य बलों ने दुनिया के लिए एक बड़े आतंकी ख़तरे आईएसआईएस के ग्लोबल लीडर को ख़त्म कर दिया.''
द हिंदू की रिपोर्ट में बताया गया है कि अमेरिकी हमले के बीच क़ुरैशी ने बम से ख़ुद को उड़ा लिया. इस दौरान महिलाओं और बच्चों समेत उनके परिवार के कुछ सदस्यों की मौत हो गई. एसोसिएटेड प्रेस के हवाले से रिपोर्ट में बताया गया है कि इदलिब प्रांत में हुए इस हमले में 6 बच्चों और 4 महिलाओं समेत कुल 13 लोगों की मौत हुई है. साथ ही पेंटागन ने एक बयान जारी कर कहा कि कोई भी अमेरिकी हताहत नहीं हुआ है. (bbc.com)
चांद पर पहुंचने की कोशिशें अब एक नियमित दौड़ का रूप लेती जा रही हैं. अमेरिका, चीन और भारत के अलावा यूरोप भी भविष्य में चंद्रमा और मंगल पर संभावित मिशन के लिए खुद को तैयार करने के लिए काम कर रहा है.
यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) के प्रमुख ने हाल ही में कहा था "सोचिए क्या होता अगर क्रिस्टोफर कोलंबस के पास अमेरिका तक पहुंचने के लिए जहाज नहीं होता?" उनका मतलब था कि अब जब चांद तक पहुंचने की दौड़ चल रही है तो यूरोप के पास ऐसा कोई अंतरिक्ष यान नहीं है जो यूरोपीय अंतरिक्ष यात्रियों को वहां ले जा सके. नतीजतन, यूरोपीय अंतरिक्ष यात्रियों को अमेरिकी और रूसी अंतरिक्ष यान पर निर्भर रहना पड़ता है, और इसे बदलने की जरूरत है
ईएसए के महानिदेशक योसेफ एशबाखर ने जनवरी के अंत में ब्रसेल्स में आयोजित 14वीं यूरोपीय अंतरिक्ष कांग्रेस को अपने संबोधन में इस मुद्दे को उठाया था. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने अपने आर्टेमिस कार्यक्रम के तहत 2025 तक चंद्रमा पर पहुंचने की योजना बनाई है. चीन अपने अंतरिक्ष यात्रियों को 2030 तक चंद्रमा पर भेजना चाहता है और भारत इस साल गगनयान कार्यक्रम के तहत चंद्रमा के लिए एक परीक्षण उड़ान शुरू कर रहा है. इस संदर्भ में योसेफ ने कहा, ''सवाल उठता है कि क्या हमें यूरोपीय नागरिक होने के नाते खुद चांद पर पहुंचना चाहिए या दूसरे लोगों को वहां पहुंचते देखना चाहिए."
एयरबस और फ्रांसीसी समूह साफरान के स्वामित्व वाली यूरोपीय अंतरिक्ष कंपनी एरियाना समूह दो चरणों में मानवयुक्त अंतरिक्ष यान बनाने में सक्षम होने का दावा करती है. फ्रांसीसी अंतरिक्ष एजेंसी के अध्यक्ष फेलिप बैप्टिस्ट ने कहा है कि अगर योजना को अमल में लाया जाता है तो यह चंद्रमा और मंगल पर भविष्य के मिशन का मार्ग प्रशस्त कर सकता है. लेकिन ऐसा करना या न करना यूरोप के लिए एक राजनीतिक मुद्दा है.
इस महीने की 16 तारीख को फ्रांस में यूरोपीय अंतरिक्ष शिखर सम्मेलन हो रहा है, जिसमें इस मुद्दे पर विस्तार चर्चा की जाएगी. सम्मेलन में आने वाले वर्षों के लिए प्राथमिकताएं और बजट निर्धारित करने के लिए इस साल नवंबर में एक और मंत्री स्तरीय बैठक भी होनी है.
वहीं निजी कंपनियां अब इस क्षेत्र में प्रमुख खिलाड़ी बन गई हैं, जिसमें ईलॉन मस्क का स्पेसएक्स अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन तक ले जा रहा है. स्पेसएक्स के ड्रैगन कैप्सूल में आईएसएस जाकर आने वाले फ्रांसीसी अंतरिक्ष यात्री थॉमस पेस्केट ने चालक दल की उड़ानों के मामले में यूरोप में अधिक महत्वाकांक्षा का आह्वान किया है.
ईएसए का 2021 का अंतरिक्ष अभियान का बजट 82.2 करोड़ डॉलर का है, जो कि नासा के बजट का सिर्फ सात प्रतिशत है. इस बीच, मैकंजी कंसल्टेंसी के मुताबिक अंतरिक्ष से संबंधित कंपनियों में निजी क्षेत्र की फंडिंग पिछले साल 10 अरब डॉलर से अधिक हो गई है. यह सबसे सर्वाधिक है.
एए/सीके (एएफपी)
टेक कंपनी मेटा के मालिक मार्क जकरबर्ग की दौलत गुरुवार को 29 अरब डॉलर घट गई जो अब तक एक दिन में किसी की संपत्ति में हुई सबसे बड़ी गिरावटों में से एक है.
गुरुवार को मेटा कंपनी के चौथी तिमाही के नतीजों के आशा से कमतर प्रदर्शन के बाद शेयरों में आई गिरावट के चलते मार्क जकरबर्ग को अपनी संपत्ति में भी खासा नुकसान झेलना पड़ा है. उनकी निजी संपत्ति में 29 अरब डॉलर की कमी आई है.
मेटा के शेयरों की कीमत में 26 प्रतिशत की गिरावट के चलते कंपनी की कुल बाजार कीमत में 200 अरब डॉलर की कमी हुई जो किसी अमेरिकी कंपनी के लिए एक दिन में अब तक की सबसे बड़ी गिरावट है.
85 अरब डॉलर रह गई संपत्ति
पिछले साल ही फेसबुक से नाम बदलकर मेटा रख लिया था. कंपनी में मार्क जकरबर्ग की लगभग 12.8 प्रतिशत की हिस्सेदारी है. फोर्ब्स पत्रिका के मुताबिक इस गिरावट के कारण मेटा के सीईओ और संस्थापक मार्क जकरबर्ग की संपत्ति घटकर 85 अरब डॉलर रह गई है.
ऐसा तब हुआ है जब एक अन्य अरबपति एमेजॉन के मुखिया जेफ बेजोस की संपत्ति उसी दिन करीब 20 अरब डॉलर बढ़ गई क्योंकि उनकी कंपनी ने उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन किया. ई-कॉमर्स कंपनी एमेजॉन में जेफ बेजोस की लगभग 9.9 प्रतिशत की हिस्सेदारी है.
एमेजॉन को हाल ही में इलेक्ट्रिक वाहन बनाने वाली कंपनी रिवियान में निवेश का फायदा मिला और उसका चौथी तिमाही का मुनाफा बढ़ गया. साथ ही कंपनी ने अमेरिका में अपनी वीडियो सर्विस प्राइम की सब्सक्रिप्शन के दाम बढ़ाने का भी ऐलान किया. इसके चलते कंपनी के शेयरों में 15 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई.
अंबानी, अडानी से भी गरीब हुए मार्क जकरबर्ग
फोर्ब्स पत्रिका के मुताबिक बेजोस दुनिया के सबसे धनी व्यक्ति हैं और 2021 में बेजोस की संपत्ति बीते साल के मुकाबले 57 प्रतिशत बढ़कर 177 अरब डॉलर हो गई थी.
जकरबर्ग को एक दिन में हुआ नुकसान अब तक के एक दिन में हुए कुछ सर्वाधिक घाटों में से एक है. पिछले साल नवंबर में अमेरिकी उद्योगपति ईलॉन मस्क को एक ही दिन में 35 अरब डॉलर का नुकसान हुआ था. ऐसा तब हुआ था जब मस्क ने ट्विटर पर पूछा कि क्या उन्हें अपनी कंपनी टेस्ला में 10 फीसदी हिस्सेदारी बेच देनी चाहिए. इसके फौरन बाद कंपनी के शेयरों की कीमत गिरने लगी और मस्क को एक ही दिन में 35 अरब डॉलर की चपत लग गई. कंपनी के शेयर अब तक उस गिरावट से उबर नहीं पाए हैं. हालांकि मस्क ने उससे पहले एक ही दिन में 20 खरब रुपये भी कमाए थे.
गुरुवार को हुए घाटे के बाद अब अरबपतियों की फोर्ब्स की मौजूदा लिस्ट में मार्क जकरबर्ग 12वें नंबर पर पहुंच गए हैं. फिलहाल वह भारतीय उद्योगपतियों मुकेश अंबानी और गौतम अडानी से भी नीचे आ गए हैं. हालांकि जानकारों का मानना है कि जकरबर्ग का यह नुकसान कागजी ही रहेगा क्योंकि कंपनी के शेयर जल्दी ही इस झटके से उबर सकते हैं. पिछले साल जकरबर्ग ने मेटा के 4.47 अरब डॉलर के शेयर बेच दिए थे.
वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)
रूस में तैनात डॉयचे वेले के पत्रकारों को बताया गया है कि शुक्रवार को स्थानीय समयानुसार सुबह 9 बजे से ब्यूरो बंद कर दिया जाएगा.
रूस ने मॉस्को में डॉयचे वेले का स्टूडियो बंद कर दिया है और कर्मचारियों को पत्रकार होने के नाते मिले अधिकार छीन लिए हैं. संस्थान ने इसे अनावश्यक प्रतिक्रिया बताते हुए कानूनी चुनौती देने की बात कही है.
गुरुवार को रूस ने कहा कि जर्मनी के प्रसारक डॉयचे वेले का मॉस्को दफ्तर बंद किया जा रहा है और देशभर के उसके कर्मचारियों के अधिकार वापस लिए जा रहे हैं. रूसी विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा कि रूसी क्षेत्र में डीडबल्यू के उपग्रह और अन्य प्रसारण भी बंद किए जा रहे हैं. एक दिन पहले ही अमेरिका ने जर्मनी में और सैनिक भेजने का ऐलान किया था.
रूसी चैनल पर रोक की प्रतिक्रिया
पिछले हफ्ते जर्मनी ने रूस के सरकारी चैनल आरटी के जर्मन भाषी कार्यक्रमों पर रोक लगा दी थी. रूस ने इसे अभिव्यक्ति और मीडिया की आजादी पर हमला बताया था और इस कदम की आलोचना की थी. उसने कहा कि इस फैसले में शामिल अधिकारियों पर उसके यहां आने पर प्रतिबंध लगाया जाएगा.
गुरुवार को रूस की सरकार ने डॉयचे वेले के खिलाफ कई कड़े कदम उठाने का ऐलान किया. उसने कहा कि डॉयचे वेले को एक ऐसे विदेशी मीडिया संस्थान के रूप में वर्गीकृत करने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी जो विदेशी एजेंट वाले काम करता है. अगर ऐसा किया जाता है तो डीडबल्यू को रूस में और अधिक जांच-पड़ताल से गुजरना होगा.
बाद में देश की संसद के निचले सदन ड्यूमा ने आधिकारिक तौर पर डॉयचे वेले के पत्रकारों को परिसर में आने और आयोजन की कवरेज करने से प्रतिबंधित कर दिया. रूस के इस कदम की जर्मनी में कड़ी प्रतिक्रिया हुई है.
‘अनावश्यक प्रतिक्रिया'
रूस के कदम को ‘अनावश्यक प्रतिक्रिया' बताते हुए डॉयचे वेले के महानिदेशक पीटर लिम्बर्ग ने कहा कि यह फैसला रूस में हो रही घटनाओं के बारे में लिखने की संस्थान की प्रतिबद्धता को और मजबूत करेगा.
एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, "यह एक और संकेत है जो दिखाता है कि रूस की सरकार मीडिया की आजादी और विचारों की आजादी में विश्वास नहीं रखती. अगर हमें देश छोड़ना भी पड़ा, तो भी हम रूस पर अपनी रिपोर्टिंग को और गहन करेंगे. रूस में जो हो रहा है उसे हम नजरअंदाज नहीं करेंगे. हम उसके बारे में लिखेंगे. हम ऐसा और ज्यादा करेंगे.”
लिम्बर्ग ने कहा कि रूस के कदम को जर्मनी की प्रतिक्रिया में उठाया हुआ कदम नहीं माना जा सकता क्योंकि रूसी पत्रकारों को अब भी जर्मनी में काम करने की इजाजत है और आरटी व डॉयचे वेले में मूल फर्क यह है कि आरटी एक सरकारी संस्थान है जबकि एक डीडबल्यू एक सार्वजनिक सेवा संस्थान है.
डीडबल्यू महानिदेशक ने कहा, "हम रूस की ओर से कुछ कदमों की तो उम्मीद कर रहे थे लेकिन यह रूसी सरकार द्वारा पूरी तरह अनावश्यक प्रतिक्रिया है.” उन्होंने कहा कि इस फैसले को पलटने के लिए डीडबल्यू कानूनी उपायों पर विचार करेगा.
मॉस्को में डीडबल्यू के ब्यूरो प्रमुख यूरी रेषेतो ने कहा कि उन्हें शुक्रवार सुबह दफ्तर बंद करने कर्मचारियों के पहचान पत्र लौटाने को कहा गया है. रेषेतो ने बताया, "हम स्तंभित हैं. हम सबके लिए यह एक निजी समाचार है. इस वक्त बहुत सारे सवाल अनुत्तरित हैं. तकनीकी सवाल हैं, कानूनी सवाल हैं.”
तनाव बढ़ेगाः जर्मनी
जर्मन विदेश मंत्रालय ने कहा है कि रूस के इस फैसले से जर्मनी और रूस के संबंधों में तनाव और बढ़ेगा. मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने एक बयान जारी कर कहा, "रूस की सरकार ने आज डॉयचे वेले के खिलाफ जो कदम उठाया है, वह निराधार है और जर्मन-रूस संबंधों में नए तनाव का संकेत है. अगर यह कदम असल में लागू किए जाते हैं तो रूस में निष्पक्ष पत्रकारों के काम पर और ज्यादा पाबंदियां लगेंगी, जो तनाव के समय में खासतौर पर जरूरी होता है.”
जर्मनी की संस्कृति और मीडिया मंत्री क्लॉउडिया रॉथ ने भी रूस के फैसले की आलोचना की है. उन्होंने कहा, "रूस में डॉयचे वेले के प्रसारण पर प्रतिबंध और मॉस्को में उसके दफ्तर की तालाबंदी अस्वीकार्य है. डॉयचे वेले एक स्वतंत्र संस्थान है. इसका अर्थ है कि आरटी (जर्मन) के उलट जर्मनी की सरकार इसके कार्यक्रमों पर किसी तरह का प्रभाव नहीं रखती. इसलिए मैं रूसी पक्ष से आग्रह करती हूं कि आरटी के लाइसेंसिंग को लेकर हुई समस्या का इस्तेमाल राजनीति के लिए ना करे.”
वीके/एए (एएफपी, रॉयटर्स, इंटरफैक्स, डीपीए, एपी)
सीरिया के इदलीब प्रांत में अमेरिकी सेना की कार्रवाई में इस्लामिट स्टेट के मौजूदा नेता अबू इब्राहिम अल हाशिमी अल कुरयाशी की मौत हो गई है. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने गुरुवार को यह जानकारी दी.
इदलीब में अमेरिकी सैनिकों ने यह हमला अबू इब्राहिम अल हाशिमी को लक्ष्य बना कर ही किया था. अबू इब्राहिम अल हाशिमी ने 21 अक्टूबर 2019 को इस्लामिक स्टेट की कमान संभाली थी. इसके कुछ ही दिन पहले इसी इलाके में अमेरिकी हमले में इस्लामिक स्टेट के तब नेता रहे अबू बकर अल बगदादी की मौत हुई थी.
बीते कुछ समय से इस्लामिक स्टेट फिर से उभरने की कोशिश में था. पिछले महीने करीब 10 दिन की लड़ाई के बाद इस्लामिक स्टेट के लड़ाकों ने एक जेल को अपने कब्जे में ले लिया था. इन घटनाओं को देख कर ही अमेरिकी हमले की योजना बनाई गई. इस इलाके में सीरिया के गृहयुद्ध में विस्थापित हुए लोग कैंपों में रह रहे हैं. सबसे पहले आई खबर में 13 लोगों के मरने की बात कही गई जिनमें चार महिलाएं और छह बच्चे भी शामिल थे.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने बयान दिया है कि उन्होंने इस हमले का आदेश, "अमेरिकी लोगों और हमारे सहयोगियों की सुरक्षा और दुनिया को एक सुरक्षित जगह बनाने के लिए दिया था." बाइडेन ने बयान में यह भी कहा है, "हमारी सशस्त्र सेनाओं की बहादुरी और कुशलता से हमने अबू इब्राहिम अल हाशिमी अल कुरयाशी को जंग के मैदान से बाहर कर दिया है." उन्होंने यह भी बताया कि इस ऑपरेशन में शामिल सभी अमेरिकी नागरिक सुरक्षित लौट आए हैं. अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन के संक्षिप्त बयान में भी इस बात की पुष्टि की गई है कि कोई अमेरिकी सैनिक हताहत नहीं हुआ है और अभियान सफल रहा.
ओसामा बिन लादेन को मारने जैसा हमला
अमेरिकी सेना का हमला अल कायदा के नेता ओसामा बिन लादेन को मारने के अभियान जैसा ही था. अमेरिकी सेना का खास दस्ता हेलीकॉप्टर में सवार हो कर सीरिया में विद्रोहियों के कब्जे वाले इलाके में एक मकान पर पहुंचा. चश्मदीदों का कहना है कि उसके बाद दो घंटे तक वहां गोलीबारी हुई. स्थानीय लोगों का कहना है कि तुर्की की सीमा पर मौजूद आतमेह में बड़ी देर तक गोलियों और धमाकों की आवाजें गूंजती रहीं.
आतमेह के बाहरी मैदानी इलाके में जैतून के पेड़ों से घिरा दोमंजिला मकान का ऊपरी हिस्सा ढह गया है. मकान के बाकी बचे हिस्से की दीवारों और फर्श पर वहां खून बिखरा हुआ है. एक बिखरे हुए बेडरूम में बच्चे का लकड़ी का पालना और एक गुड़िया नजर आई है. किचेन का दरवाजा पूरी तरह से ध्वस्त हो गया है. कमरे में पैगंबर मोहम्मद की जीवनी और कई धार्मिक किताबें भी नजर आई हैं. समाचार एजेंसी एपी के लिए काम करने वाले एक पत्रकार ने कई स्थानीय लोगों से बात की है. उन्होंने पहचान गोपनीय रखने की शर्त पर बताया कि अमेरिकी रक्षा विभाग शुरू में हमले के लक्ष्य को नहीं पहचान सका था.
डरे हुए हैं इदलीब के शरणार्थी
पास के शरणार्थी शिविर में रहने वाले जमील एल देदो ने बताया, "शुरुआती लम्हे तो बेहद डरावने थे, किसी को नहीं पता था कि हो क्या रहा है. हम इस बात से डरे हुए थे कि यह सीरियाई विमान हो सकते हैं जिसने हमारे मन में बैरल बमों की याद ताजा कर दी थी जो पहले हम पर गिराए गए थे." सीरिया के गृहयुद्ध के शुरुआती दिनों में राष्ट्रपति बशर अल असद की सेना विद्रोहियों पर कच्चे विस्फोटकों से भरे कंटेनर आसमान से गिराया करती थी.
इदलीब मोटे तौर पर तुर्की के समर्थन वाले लड़ाकों के नियंत्रण में है लेकिन यह अल कायदा का भी गढ़ रहा है और इसके कई शीर्ष कमांडर यहीं पर मौजूद हैं. इस्लामिक स्टेट के प्रतिद्वंद्वी गुटों के साथ ही कई दूसरे चरमपंथियों ने भी इसे अपना घर बनाया है. अमेरिका पहले ड्रोन का इस्तेमाल इदलीब के इलाके में रहने वाले अल कायदा के सदस्यों को ठिकाने लगाने में करता रहा है. हेलीकॉप्टर में यहां आ कर हमला करने का मतलब साफ है कि अमेरिका को यहां किसी बड़े नेता के छिपे होने का अंदेशा था. इसी तरह के हमले में अमेरिकी सैनिकों ने ओसामा बिन लादेन को भी निशाना बनाया था.
एनआर/एमजे (एपी)