अंतरराष्ट्रीय
अमेरिका के टेक्सस में गर्भधारण के छह हफ्ते बाद गर्भपात कराने पर बैन लगा दिया गया है. सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से इस कानून को रोकने की अपील की है और कहा है कि इससे महिलाओं के संवैधानिक अधिकार का हनन होता है.
नया कानून एक सितंबर से लागू हो जाएगा. गर्भपात के अधिकार का समर्थन करने वाले समूहों ने अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट में 30 अगस्त को इस कानून को रोकने की आपात अपील दायर की.
'प्लांड पेरेंटहुड', गर्भपात की सेवांए और महिलाओं के लिए अन्य सेवाएं देने वाले समूहों ने अदालत को बताया कि यह कानून "तुरंत और अनर्थकारी रूप से टेक्सस में महिलाओं को गर्भपात के अधिकार से दूर कर देगा."
अधिकार का उल्लंघन
समूहों ने यह भी कहा कि इस कानून की वजह से "टेक्सस में गर्भपात कराने वाले मरीजों में से 85 प्रतिशत को देखभाल नहीं मिल पाएगी" और कई गर्भपात क्लिनिक बंद भी हो जाएंगे.
इन समूहों ने जुलाई में ही टेक्सस की राजधानी ऑस्टिन की फेडरल अदालत में इस कानून को चुनौती दी थी. उन्होंने कहा था कि कानून महिलाओं के गर्भपात कराने के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन करता है.
19 मई को पारित किया गया कानून एक तरह से विचित्र भी है क्योंकि यह हर नागरिक को यह अधिकार देता है कि वो छह हफ्तों की समय सीमा के बाद गर्भपात कराने वाली महिला की मदद करने वाले किसी भी व्यक्ति के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा सकें.
इस तरह के कानून को 'हार्टबीट' गर्भपात बैन कहा जाता है और इस तरह के कई कानून रिपब्लिकन सरकारों वाले राज्यों में लाए गए हैं. इन कानूनों का उद्देश्य है कि भ्रूण के कार्डिएक टिश्यू के धड़कने का पता चल जाने के बाद गर्भपात कराना संभव ना हो सके.
एक कानूनी लड़ाई
ऐसा अक्सर गर्भ के छह सप्ताह पूरा होने पर पता चलने लगता है. कभी कभी यह समय आने तक महिलाओं को गर्भ का पता भी नहीं चलता.
कई अदालतों ने इस तरह के प्रतिबंधों को रोक दिया है क्योंकि इनसे 1973 के 'रो बनाम वेड' मामले में आए सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले का उल्लंघन होता है.
इसी फैसले के बाद के पूरे देश में गर्भपात को कानूनी मान्यता मिली थी. मिसिसिपी राज्य ने तो सुप्रीम कोर्ट से अपील की है कि वो 'रो बनाम वेड' फैसले को ही पलट दे.
राज्य में 2018 में पास किए गए एक कानून के तहत गर्भ धारण के 15 सप्ताह के बाद गर्भपात पर बैन लगा दिया गया था. इस अपील पर सुप्रीम कोर्ट के जज अक्टूबर में सुनवाई करेंगे और जून 2022 तक फैसला आने की उम्मीद है.
सुप्रीम कोर्ट से उम्मीद
टेक्सस में जो मामला दायर किया गया है उसमें अपील की गई है कि जजों, काउंटी क्लर्कों और राज्य के दूसरे अधिकारियों को नागरिकों द्वारा दर्ज किये मामलों के जरिए नए कानून को लागू कराने से रोका जाए.
मामला दायर करने वालों ने एक गर्भपात-विरोधी समूह के निदेशक के खिलाफ भी मामला दर्ज कराया है. उनका कहना है कि इस समूह ने नए कानून के तहत खुद कदम उठाने की धमकी दी है.
इसके पहले एक फेडरल जज ने इस मामले को रद्द किए जाने की एक कोशिश को खारिज कर दिया था. इसके तुरंत बाद एक निचली अदालत में अपील दायर की गई और अदालत ने मामले में आगे की सुनवाई पर रोक लगा दी.
गर्भपात सेवाएं देने वाली संस्थाओं ने इसी अदालत में नए कानून को रोकने की भी अपील की थी लेकिन 29 अगस्त को अदालत ने उनके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया. 30 अगस्त को याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया कि वो या तो टेक्सस वाले कानून पर रोक लगाए या निचली अदालत में सुनवाई चलने दे.
सीके/वीके (रॉयटर्स)
दक्षिण अफ्रीका में वैज्ञानिक असामान्य रूप से तेजी से म्यूटेट होने वाले कोरोना वायरस के नए वेरिएंट की पड़ताल कर रहे हैं. हाल के महीनों में इस वेरिएंट के मामले बढ़े हैं.
दक्षिण अफ्रीका के नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर कम्युनिकेबल डिजीज (NICD) ने सोमवार को इस नए वेरिएंट के बारे में बताया है. इस वेरिएंट का नाम सी.1.2 (C.1.2) है और पिछले हफ्ते क्वाजुलु नैटल रिसर्च इनोवेशन ऐंड सीक्वेंसिंग प्लैटफॉर्म ने इसको लेकर पूर्व प्रकाशित स्टडी में चेताया था, जिसकी अभी समीक्षा की जानी बाकी है.
दक्षिण अफ्रीका के अधिकांश कोरोना वायरस मामले वर्तमान में डेल्टा संस्करण के कारण हो रहे हैं जिसका पहली बार भारत में पता चला था. C.1.2 वेरिएंट ने वैज्ञानिकों का ध्यान आकर्षित इसलिए किया क्योंकि दुनिया भर में मिले वेरिएंट्स की तुलना में इसमें लगभग दोगुना तेजी से म्यूटेशेन हुआ है. यह दक्षिण अफ्रीका में पहली लहर के दौरान सामने आए वेरिएंट C.1 से निकलकर ही बना है.
नए वेरिएंट का पता पहली बार मई में चला था, शोध में पाया गया है कि दक्षिण अफ्रीका में C.1.2 के जीनोम हर महीने बढ़ रहे हैं. यह मई में 0.2 प्रतिशत से बढ़कर जून में 1.6 प्रतिशत हो गया और जुलाई में यह दो प्रतिशत हो गया.
एनआईसीडी के वैज्ञानिकों ने सोमवार को कहा कि C.1.2 केवल "बहुत निम्न स्तरों पर मौजूद" था और यह भविष्यवाणी करना जल्दबाजी होगी कि यह कैसे विकसित हो सकता है.
नए वेरिएंट से बचाएगा टीका?
एनआईसीडी के शोधकर्ता पेनी मूर कहती हैं, "इस स्तर पर हमारे पास यह पुष्टि करने के लिए प्रयोगात्मक डेटा नहीं है कि यह एंटीबॉडी के प्रति संवेदनशीलता के संदर्भ में कैसे प्रतिक्रिया देता है." वे आगे कहती हैं, लेकिन "हमें पूरा विश्वास है कि दक्षिण अफ्रीका में जो टीके लगाए जा रहे हैं, वे हमें गंभीर बीमारी और मौत से बचाते रहेंगे."
अब तक C.1.2 दक्षिण अफ्रीका के सभी नौ प्रांतों के साथ-साथ चीन, मॉरीशस, न्यूजीलैंड और ब्रिटेन सहित दुनिया के अन्य हिस्सों में पाया गया है.
तेजी से हो रहा बदलाव
हालांकि इस वेरिएंट की फ्रीक्वेंसी इतनी नहीं है कि यह "चिंता के स्वरूपों या रुचि के स्वरूपों" के लिए योग्यता हासिल कर पाए. जैसे कि अधिक संक्रामक डेल्टा और बीटा वेरिएंट्स में देखने को मिला. ये दोनों वेरिएंट्स अफ्रीका में पिछले साल के आखिर में पाए गए थे.
दक्षिण अफ्रीका अब तक 27 लाख मामलों के साथ महाद्वीप का सबसे ज्यादा प्रभावित देश है, कोरोना के कारण दक्षिण अफ्रीका में 81,830 लोग मारे जा चुके हैं. अब एक नए वेरिएंट ने वैज्ञानिकों के लिए नई चिंता पैदा कर दी है. C.1.2 में 44-59 के बीच बदलाव आए हैं जो कि वुहान में मिले वायरस से कहीं अधिक है.
एए/वीके (एएफपी, एपी)
अफगानिस्तान में काबुल के हामिद करजई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे को तालिबान ने अपने नियंत्रण में ले लिया है. अमेरिका का आखरी विमान अफगानिस्तान से जा चुका है और 20 साल लंबा उसका अभियान खत्म हो गया है.
सोमवार रात को अमेरिका का आखिरी विमान अफगानिस्तान से रवाना हो गया. इसके साथ ही 20 साल लंबा उसका अभियान खत्म हुआ और काबुल हवाई अड्डे पर तालिबान ने नियंत्रण कर लिया, जिसने हाल ही में अफगानिस्तान पर नियंत्रण कर लिया है.
अमेरिकी सेना ने ऐलान किया कि उसके सभी सैनिक अब अफगानिस्तान से जा चुके हैं. सेंट्रल कमांड के जनरल केनेथ मकैंजी ने कहा, "मैं यहां अफगानिस्तान से निकासी पूरी हो जाने की घोषणा के लिए आया हूं.”
15 अगस्त को तालिबान ने काबुल में प्रवेश किया था और उसके साथ ही काबुल हवाई अड्डे पर लोगों का जमावड़ा शुरू हो गया था, जो देश छोड़कर जाना चाहते थे. पिछले दो हफ्तों में अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने एक लाख 22 हजार लोगों को अफगानिस्तान से निकाला है.
तालिबान ने किया आजादी का ऐलान
ऐसी खबरें हैं कि आखिरी अमेरिकी विमान के जाने के बाद अफगानिस्तान में जश्न मनाया गया. राजधानी काबुल में खुशी में हवा में गोलियां दागी गईं.
तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने एक ट्वीट कर कहा, "आज रात अफगानिस्तान समयानुसार 12 बजे बाकी बचे अमेरिकी सैनिक भी काबुल से चले गए और हमारा देश पूरी तरह आजाद हो गया.”
एएफपी के संवाददाताओं ने बताया है कि उन्होंने कई चेकपोस्ट पर खुशी में गोलीबारी की आवाजें सुनीं. ऐसे कुछ वीडियो सोशल मीडिया पर भी शेयर किए जा रहे हैं जिनमें तालिबान को हवा में गोलीबारी करते देखा जा सकता है.
अमेरिका मदद जारी रहेगी
अभी भी बड़ी तादाद में ऐसे लोग अफगानिस्तान में हैं, जो देश से निकलना चाहते हैं. हालांकि, वे छह परिवार सुरक्षित अमेरिका लौट गए हैं हैं जो अमेरिका में शरणार्थी के रूप में बस चुके हैं. वे गर्मियों की छुट्टियों में अफगानिस्तान आए थे और फंस गए थे. सैन डिएगो में एक स्कूल के अधिकारियों ने पुष्टि की है कि वे लोग सुरक्षित लौट आए हैं. हालांकि ऐसे कम से कम दो परिवार अब भी अफगानिस्तान में हैं. इनमें कजोन वैली यूनियन स्कूल डिस्ट्रिक्ट के छात्र शामिल हैं.
अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने कहा है कि अमेरीकियों, अफगानों और उन सभी की मदद लगातार जारी रहेगी जो देश छोड़ना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि 200 से कम अमेरिकी ही अब अफगानिस्तान में बचे हैं. उन्होंने कहा कि काबुल में अमेरिकी दूतावास निकट भविष्य में बंद रहेगा और वहां से काम कर रहे दूतावास के अधिकारी अब कतर में दोहा से काम करेंगे.
अमेरिकी सेना के मुताबिक अफगानिस्तान से उड़े आखिरी चंद विमानों में कोई अमेरिकी नागरिक नहीं था. अमेरिका अब बाकी बचे लोगों को निकालने के लिए कूटनीतिक तरीके अपनाएगा.
अमेरिकी सैन्य उपकरण बंद
अमेरिकी सेना ने सोमवार को आखिरी विमान के जाने से पहले अपने अफगानिस्तान में छूटे सारे उपकरणों और हथियारों को आदि को स्थायी तौर पर बंद कर दिया है ताकि उन्हें इस्तेमाल ना किया जा सके.
जनरल मकैंजी ने बताया कि 73 विमानों को अयोग्य कर दिया गया. उन्होंने कहा, "वे विमान अब कभी उड़ाए नहीं जा सकेंगे. कोई उनका इस्तेमाल नहीं कर सकता. वैसे भी उनमें से ज्यादातर ऐसे थे जो किसी मिशन पर इस्तेमाल नहीं हो सकते. फिर भी, अब उन्हें कभी उड़ाया नहीं जा सकता.”
रिपोर्टः वीके/एए (रॉयटर्स, एएफी, डीपीए)
जर्मनी के आम चुनावों से चार हफ्ते पहले चांसलर पद के तीनों उम्मीदवारों ने एक टीवी बहस के दौरान एक-दूसरे का सामना किया. इनमें से किस उम्मीदवार ने अंगेला मैर्केल की जगह लेने के लिए सबसे मजबूत चुनौती पेश की?
डॉयचे वेले पर क्रिस्टॉफ स्ट्राक की रिपोर्ट
इस निर्णायक मुकाबले का लोगों को उत्सुकता से इंतजार था. 26 सितंबर को जर्मनी के मतदाता एक ऐसी नई सरकार चुनने के लिए मतदान करेंगे, जिसकी मुखिया अंगेला मैर्केल नहीं होंगी. वे 16 सालों से चांसलर के पद पर रहने के बाद इस बार के चुनावों में हिस्सा नहीं ले रही हैं. इसी क्रम में उनका स्थान लेने के लिए दावेदारी करने वाले तीन उम्मीदवार प्राइम टाइम डिबेट में आमने-सामने आए.
हाल ही में हुए ओपिनियन पोल्स के नतीजों के मुताबिक मैर्केल की सेंटर-राइट क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन (सीडीयू/सीएसयू) और जूनियर गठबंधन पार्टनर, सेंटर-लेफ्ट सोशल डेमोक्रेट्स (एसपीडी) के बीच 21 फीसदी और 24 फीसदी के साथ कांटे की टक्कर है, जबकि ग्रीन पार्टी भी ज्यादा पीछे नहीं है. ऐसे में यह भी हो सकता है कि अगली सरकार के गठन के लिए तीनों पार्टियां को साथ आना पड़े और तभी जरूरी बहुमत हासिल किया जा सके.
इस हालात में चांसलर पद के तीनों ही उम्मीदवारों को तेजी से अपनी स्थिति और मजबूत करने की जरूरत है. सीडीयू/सीएसयू के कैंडिडेट आर्मिन लाशेट जर्मनी के सबसे ज्यादा जनसंख्या वाले राज्य नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया के मुख्यमंत्री हैं और चुनावों में अपनी स्थिति बचाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. ओलाफ शॉल्त्स (एसपीडी) इस समय देश के वित्त मंत्री और वाइस-चासंलर हैं. उनकी हालिया लोकप्रियता रेटिंग में बढ़त देखी गई है. और अनालेना बेयरबॉक, जो ग्रीन पार्टी की को-चेयर हैं, वे अपने प्रचार अभियान के शुरुआती दिनों के झटकों से उबरने की कोशिश कर रही हैं.
अफगानिस्तान
अभी टीवी बहस शुरु हुए सिर्फ पांच मिनट ही हुए थे कि तीनों राजनेता अफगानिस्तान के मुद्दे पर भिड़ गए. विवाद के केंद्र में थी, जर्मन सैन्य बलों यानी बुंडसवेयर की स्थिति. जिसके बारे में तीनों ही उम्मीदवारों का विचार यह था कि इसके पास फंड और पर्याप्त हथियारों की कमी है.
सबसे पहले लाशेट ने ओलाफ शॉल्त्स के खिलाफ मोर्चा खोला और उनकी एसपीडी पर जर्मन सेना के आधुनिकीकरण के मुख्य तरीके सैन्य ड्रोन को रोकने का आरोप लगाया. शॉल्त्स ने सीडीयू और फ्री मार्केट समर्थक फ्री डेमोक्रेटिक पार्टी (FDP) की 2013 तक सत्ता में रही पूर्व सरकार पर सैन्य बलों के बजट और हथियारों पर इंवेस्ट करने में नाकाम रहने के लिए पलटवार किया.
शॉल्त्स ने दावा किया कि उनके केंद्रीय मंत्री रहने के दौरान उन्होंने बुंडसवेयर के बजट में सबसे बड़ी बढ़ोतरी की है और यह अब करीब 50 बिलियन यूरो या 43 खरब रुपये से ज्यादा हो चुका है.
वहीं ग्रीन पार्टी की अनालेना बेयरबॉक, जो कभी किसी सरकारी पद पर नहीं रही हैं, वे यह बताने को काफी उत्सुक दिखी कि वे अफगानिस्तान के मामले में मौजूदा गठबंधन को विफल क्यों पाती हैं. उन्होंने बताया, जून में उनकी पार्टी के बुंडसवेयर के और स्थानीय सहायकों को अफगानिस्तान से निकालने के प्रस्ताव को सत्ताधारी गठबंधन ने नहीं माना था. "यह एक आपदा थी, जिसे आते हुए देखा जा सकता था."
कोविड महामारी
कोरोना वायरस महामारी से लड़ने के मुद्दे पर तीनों ही उम्मीदवारों ने वैक्सीनेशन के महत्व पर जोर दिया. हालांकि अनिवार्य वैक्सीनेशन को लागू करने के मुद्दे पर उनमें अंतर दिखा. सिर्फ बेयरबॉक ने इसका समर्थन किया.
तीनों कैंडिडेट से पब्लिक ट्रांसपोर्ट में कोविड-19 से जुड़े प्रतिबंधों के बारे में सवाल किया गया- "जिनके पास कोविड-19 टेस्ट की निगेटिव रिपोर्ट है, या जो कोविड-19 से छह महीने के अंदर स्वस्थ हुए हैं, या जिन्हें दो हफ्ते या उससे पहले ही वैक्सीन की दोनों डोज लग चुकी हैं, उन्हें ही ट्रेन में यात्रा की अनुमति दी जाए?" शॉल्त्स और बेयरबॉक इस नियम को लागू करने के पक्ष में थे. लाशेट ने खुद को इस सवाल से दूर कर लिया और तर्क दिया कि ऐसे किसी भी नियम को लागू कराना आसान नहीं होगा.
लाशेट ने उन आरोपों को खारिज किया, जिनमें उन पर अपने राज्य में लगातार कोरोना वायरस महामारी से गलत तरह से निपटने की बात कही गई है. जर्मनी भर में महामारी की चौथी लहर फैल रही है, वहीं उनके राज्य में मामले खासकर ज्यादा हैं. उन्होंने जोर दिया कि वे संक्रमण से जुड़ी अलग-अलग स्थितियों से उचित रूप से निपटे हैं.
जलवायु परिवर्तन से लड़ाई
तीनों ही उम्मीदवारों ने रिन्यूएबल एनर्जी और जलवायु संरक्षण कार्यक्रमों को और बढ़ावा देने की शपथ ली लेकिन इससे जुड़े उनके विचारों, तेजी और तरीकों में अंतर रहा. लाशेट और शॉल्त्स ने रोक और प्रतिबंध जैसे तरीकों का स्पष्ट तौर पर विरोध किया. शॉल्त्स ने जर्मनी को 2045 तक कार्बन मुक्त राज्य बनाने की बात कही. उन्होंने तर्क दिया, "कार्बन-मुक्त अर्थव्यवस्था की राह में समय लगता है. हमें यह समझना होगा कि ऐसा रातोंरात नहीं किया जा सकता."
लाशेट ने कहा, "हमें अब शुरु हो जाना चाहिए और गति पकड़ लेनी चाहिए, लालफीताशाही कम कर देनी चाहिए और प्रक्रिया को तेज कर देना चाहिए." उन्होंने कहा, ऐसा करते हुए, सरकार को बैन और प्रतिबंधों पर कम और नये प्रयोगों पर ज्यादा निर्भर रहना चाहिए. लाशेट ने ग्रीन पार्टी पर उद्योग विरोधी नजरिया रखने का आरोप लगाया और चेताया कि कड़े नियम उद्योगों को जर्मनी से बाहर कर देंगे. उन्होंने चेतावनी दी, "स्ट्रील इंडस्ट्री भारत या चीन चली जाएगी."
ग्रीन पार्टी की उम्मीदवार ने अपने विरोधियों पर अक्षम और ईमानदार नहीं होने का आरोप लगाते हुए उनकी आलोचना की. बेयरबॉक ने कहा, "मुझे यह सुनने में बहुत डरावना लगता है. आप किसी चीज को सिर्फ इसलिए बैन नहीं करना चाहते क्योंकि चुनाव अभियान पर इसका बुरा असर होगा." बेयरबॉक ने तेजी से रिन्यूएबल एनर्जी को बढ़ावा देने का सुझाव दिया और 2030 तक इंटरनल कंबशन इंजन पर रोक लगाए जाने का प्रस्ताव रखा, और यह भी कहा कि सभी नई इमारतों की छत पर सोलर पैनल लगाने की बाध्यता होनी चाहिए.
इस मामले पर उन्होंने अंतत: कहा, "अगर हम अगली संघीय सरकार को क्लाइमेट न्यूट्रैलिटी के लिए प्रतिबद्ध नहीं कर सके तो हमारे सामने एक बहुत बड़ी समस्या होगी."
टैक्स
बिजनेस समर्थक कंजरवेटिव उम्मीदवार लाशेट ने अपने सेंटर-लेफ्ट एसपीडी और ग्रीन उम्मीदवारों पर टैक्स बढ़ोतरी की योजना बनाने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि यह ऐसे समय में हानिकारक होगा, जब देश कोरोना वायरस महामारी से उबरने की कोशिश कर रहा है.
हालांकि शॉल्त्स ने जोर दिया कि खासकर ज्यादा कमाई करने वालों पर 3 फीसदी की टैक्स की बढ़ोतरी की जा सकती है, जो उपयुक्त होगी. बेयरबॉक ने इस पर सहमति जताई और इस बात पर बल दिया कि इन सबसे बढ़कर कम आय वाले और सिंगल पेरेंट्स के लिए करों में कटौती की जानी चाहिए.
किसे मिले सबसे ज्यादा नंबर?
बेयरबॉक ने लाशेट पर पहले से तैयार तर्क दोहराने का आरोप लगाया, जबकि लाशेट ने बेयरबॉक पर लोकप्रिय जुमले बोलकर नंबर बनाने की कोशिश करने का आरोप लगाया. हालांकि शॉल्त्स इससे अलग रहे और अपने आपको किसी गहमागहमी में नहीं फंसने दिया.
इसके बाद जनमत शोध कंपनी फोर्सा ने एक ओपिनियन पोल कराया, जिसमें 2500 लोग शामिल हुए. जिनमें से 36 फीसदी ने शॉल्त्स को सबसे आगे रखा. जबकि 30 फीसदी ने बेयरबॉक और केवल 25 फीसदी ने लाशेट को सबसे आगे बताया.
पिछले दो दशकों से जर्मनी में शीर्ष उम्मीदवारों के बीच लाइव टीवी बहस एक आम बात हो गई है. अक्सर इसमें सरकार के वर्तमान प्रमुख को उसके प्रतिद्वंदी के सामने खड़ा किया जाता है. लेकिन यह साल अलग है क्योंकि युद्ध बाद के जर्मन इतिहास में पहली बार कोई मौजूदा चांसलर फिर से चुने जाने के लिए प्रचार नहीं कर रही हैं. जबकि यह हाई-प्रोफाइल बहसें 'डुअल्स' यानी दो लोगों के बीच होने वाली मानी जाती थी, इस साल पहली बार इसमें तीन उम्मीदवार शामिल रहे, इसलिए इसे 'ट्रिएल' नाम दिया गया है (जो अभी तक शब्दकोश में भी नहीं है).
इस बहस के दो संस्करण अभी होने हैं: एक 12 सितंबर को और दूसरा 19 सितंबर को आयोजित किया जाएगा. ये तीनों राजनेता निर्णायक मुकाबले के दूसरे और तीसरे भाग में फिर से आमने-सामने होंगे. (dw.com)
पाकिस्तान क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान शाहिद अफ़रीदी सोशल मीडिया पर एक बार फिर सुर्ख़ियों में हैं.
शाहिद अफ़रीदी का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है जिसमें वो तालिबान की तारीफ़ करते नज़र आ रहे हैं.
वीडियो में अफ़रीदी ये कहते दिख रहे हैं कि तालिबान इस बार सकारात्मक सोच के साथ लौटा है.
पाकिस्तानी पत्रकार नाइला इनायत ने एक वीडियो ट्वीट किया है जिसमें अफ़रीदी पत्रकारों से बात करते हुए कहते हैं, "बेशक तालिबान आए हैं और बड़े पॉज़िटिव फ़्रेम ऑफ़ माइंड के साथ आए हैं. ये चीज़ हमें पहले नज़र नहीं आई थीं. महिलाओं को काम करने की इजाज़त है, उन्हें राजनीति में आने की इजाज़त मिल रही है."
अफ़रीदी ने कहा, "तालिबान क्रिकेट को सपोर्ट कर रहे हैं, श्रीलंका के हालात की वजह से इस बार सिरीज़ नहीं हो सकी, लेकिन मैं समझता हूँ कि तालिबान क्रिकेट को बहुत ज़्यादा पसंद करते हैं."
पत्रकार नाइला इनायत ने वीडियो ट्वीट करते हुए लिखा कि अफ़रीदी को तालिबान का अगला प्रधानमंत्री होना चाहिए.
अफ़रीदी के इस बयान पर लोगों ने काफ़ी चुटकी ली है.
कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने ट्विटर पर लिखा, "हां, तालिबान वही सकारात्मकता लेकर आया है, जैसे हर बार अफ़रीदी के बल्लेबाज़ी के लिए उतरने पर उनके कप्तान को होती थी. वह चमत्कार की उम्मीद करते थे, लेकिन 10 में से नौ बार ब्रेनफ़ेल हो जाता था."
क्रिकेटर अफ़रीदी
अफ़रीदी को उनकी आक्रामक बल्लेबाज़ी के लिए जाना जाता है. उन्होंने 398 वन मुक़ाबले खेले और सात हज़ार के क़रीब रन बनाए, लेकिन उनका बल्लेबाज़ी औसत 23 से कुछ अधिक ही रहा.
हैंडल @HKZ_506 ने लिखा, "दो साल पहले उन्होंने एक किताब लॉन्च की थी और बरखा को इंटरव्यू दिया था. तब उन्होंने कहा था कि वो अपनी बेटियों को कोई खेल खेलने या संगीत की इजाज़त नहीं देंगे. वो तालिबान से अलग नहीं हैं."
मनीष मुंद्रा ने लिखा, "बिल्कुल. वो वहाँ भी 20-20 लीग शुरू कर सकते हैं. तालिबान प्रो लीग."
मेजर पूनिया ने ट्वीट किया है-"मिलिए तालिबान प्रेमी शाहिद अफ़रीदी से जो खुले तौर पर तालिबान का समर्थन करते हैं. एक ख़ूंख़ार आतंकी संगठन जो पूरी तरह से मानवता और महिलाओं की आज़ादी के ख़िलाफ़ है."
पाकिस्तानी मूल के और अब कनाडा में रह रहे पत्रकार और लेखक तारेक फ़तेह ने ट्वीट किया, "देखिए, पाकिस्तानी क्रिकेटर शाहिद अफ़रीदी काबुल में तालिबान के आतंकी राज का बचाव कर रहे हैं. अफ़रीदी इसलिए उनकी तारीफ़ कर रहे हैं कि क्योंकि वो तालिबान के क्रिकेट प्रेम को इस बात का सबूत मान रहे हैं कि वो महिलाओं को काम करने की इजाज़त देंगे."
अफ़रीदी अक्सर अपने बयानों को लेकर विवादों में रहे हैं. हाल ही उन्होंने पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में आयोजित हो रही क्रिकेट प्रीमियर लीग को भी अपना समर्थन दिया था. (bbc.com)
चीन में अब 18 साल से कम उम्र के बच्चे एक तय समय और दिन ही वीडियो गेम खेल सकेंगे.
चीन के वीडियो गेम नियामक ने कहा है कि ऑनलाइन गेमर्स जिनकी उम्र 18 साल से कम है उन्हें शुक्रवार, वीकेंड और छुट्टियों वाले दिन सिर्फ़ एक घंटे ही वीडियो गेम खेलने की अनुमति होगी.
नेशनल प्रेस एंड पब्लिकेशन एडमिनिस्ट्रेशन ने सरकारी समाचार एजेंसी शिंहुआ को बताया कि वीडियो गेम खेलने की अनुमति केवल रात 8 बजे से रात 9 बजे के बीच होगी.
गेमिंग कंपनियों को भी निर्देश दिया गया है कि इस समय सीमा से इतर बच्चों को वीडियो गेम खेलने से रोकें. इस महीने की शुरुआत में सरकारी मीडिया आउटलेट ने ऑनलाइन गेम को "आध्यात्मिक अफ़ीम" कहा था.
बच्चों के घंटे तय होने के साथ ही ऑनलाइन गेमिंग कंपनियों की निगरानी भी बढ़ायी जाएगी. नियामक ने अपने आदेश में कहा है कि इस बात की जांच की जाएगी कि जो नियम लागू किए गए हैं, उनका पालन हो रहा है या नहीं.
इससे पहले बच्चों के लिए प्रति दिन 90 मिनट ऑनलाइन गेमिंग की अनुमति थी. इसके साथ ही छुट्टी वाले दिन के लिए तीन घंटे का समय सीमित किया गया था.
चिंता क्यों हुई?
नियामक का यह क़दम युवाओं पर बढ़ते गेमिंग के प्रभाव के कारण उपजी चिंता को दर्शाता है.
सरकार नियंत्रित इकोनॉमिक इंफ़ॉर्मेशन डेली ने एक महीने पहले अपने एक लेख में दावा किया था कि बहुत से किशोर ऑनलाइन गेमिंग के आदी हो गए हैं और इसका उन पर बेहद बुरा प्रभाव पड़ रहा है. इस लेख का चीन की कुछ सबसे बड़ी ऑनलाइन गेमिंग फ़र्मों के शेयरों मूल्यों पर साफ़ असर दिखाई दिया था.जुलाई महीने में चीन की सबसे बड़ी गेमिंग कंपनी Tencent ने घोषणा की थी कि वह रात दस बजे से सुबह आठ बजे के बीच गेम खेलने वाले बच्चों को रोकने के लिए फ़ेशियल रिकग्निशन (चेहरे की पहचान) शुरू कर रही है. यह क़दम इस आशंका के बाद उठाया गया था कि बच्चे नियमों को दरकिनार करने के लिए एडल्ट आईडी का इस्तेमाल कर रहे हैं.
चीन के करोड़ों युवाओं के लिए शायद यह अच्छी ख़बर नहीं होगी.
चीनी अधिकारी लंबे समय से युवाओं में गेमिंग की लत और दूसरी नुकसानदेह ऑनलाइन गतिविधियों के बारे में चिंता ज़ाहिर करते रहे हैं.
चीन पूंजी और प्रौद्योगिकी के विस्तार के साथ-साथ देश की युवा पीढ़ी पर इसके संभावित प्रतिकूल प्रभाव को लेकर शंका ज़ाहिर करता रहा है.
अलीबाबा, दीदी और टेनसेंट जैसे चीन के टेक दिग्गजों पर भी इस विषय को लेकर व्यापक कार्रवाई की गई है . साथ ही गेमर्स के लिए नए नियम लागू किये गए हैं.
अभिभावकों की प्रतिक्रिया
इन नए नियमों को लागू करके चीनी सरकार युवाओं के बीच "सकारात्मक ऊर्जा" का संचार करने और "सही मूल्यों" के बारे में शिक्षित करने की उम्मीद कर रही है.
एक ओर जहां कई चीनी माता-पिता गेमिंग प्रतिबंध की सराहना कर रहे हैं वहीं कुछ लोगों ने सोशल मीडिया के माध्यम से इन नियमों को सरकार का हस्तक्षेप बताकर इसको "अनुचित" और "मनमाना" कहा है.
एक व्यंग्यात्मक टिप्पणी में कहा गया है कि मैं कब शौचालय जाऊं, कब खाना खाऊं और कब बिस्तर पर जाऊं आप ये भी क्यों नहीं तय कर देते हैं. क्यों नहीं इसके लिए भी नियम बना देते हैं. (bbc.com)
अमेरिकी सेना का कहना है कि उसने अफ़ग़ानिस्तान को छोड़ते समय काबुल एयरपोर्ट पर रह गए अपने विमानों और सैन्य गाड़ियों को बेकार कर दिया है ताकि तालिबान उनका इस्तेमाल ना कर सकें.
अमेरिकी सेंट्रल कमान के प्रमुख जनरल केनेथ मैकेंज़ी ने कहा कि उनके सैनिकों ने 73 एयरक्राफ़्ट, 70 बख़्तरबंद गाड़ियों और 27 हम्वी वाहनों को निष्क्रिय कर दिया.
उन्होंने कहा, ये एरक्राफ़्ट दोबारा कभी नहीं उड़ेेंगे, उन्हें कोई इस्तेमाल नहीं कर सकेगा.
अमेरिकी सैनिकों के काबुल छोड़ने के बाद अमेरिकी अख़बार लॉस एंजेल्स टाइम्स के एक रिपोर्टर ने एयरपोर्ट का एक वीडियो पोस्ट किया है.
इसमें दिखता है कि तालिबान के लोग एयरपोर्ट के हैंगर में जाकर अमेरिकी विमानों का मुआयना कर रहे हैं.
अमेरिका ने साथ ही अपने अत्याधुनिक रॉकेट डिफ़ेंस सिस्टम को भी निष्क्रिय कर दिया है जो वो काबुल एयरपोर्ट पर छोड़ आया है.
इसी सी-रैम सिस्टम से अमेरिकी सेना ने सोमवार इस्लामिक स्टेट के एक रॉकेट हमले को नाकाम किया था.
इससे पहले पिछले कुछ सप्ताह से ऐसी रिपोर्टें आती रही हैं कि तालिबान लड़ाके बड़ी संख्या में अमेरिका में बने सैन्य हथियारों और वाहनों के साथ देखे जा रहे हैं.
इन्हें असल में अमेरिकी सेना ने अफ़ग़ानिस्तान की सेना को दिया था, मगर उन्होंने बड़ी आसानी से समर्पण कर दिया जिसके बाद ये हथियार और वाहन तालिबान के हाथों में चले गए. (bbc.com/hindi)
अमेरिकी ड्रोन हमले में मारे गए लोगों के परिवार के एक सदस्य ने बीबीसी को बताया है कि हमले में छह बच्चों सहित उनके परिवार के 10 सदस्यों की मौत हो हुई है.
इन सभी लोगों की जान रविवार को उनके घर में खड़ी एक कार में हुए विस्फोट के कारण गई है.
अमेरिकी सेना ने कहा था कि उसने इस्लामिक स्टेट समूह की अफ़ग़ानिस्तान शाखा से जुड़े कम से कम एक व्यक्ति को ले जा रही एक कार को निशाना बनाया गया था. अमेरिका ने ये भी कहा था कि ड्रोन हमले की वजह आसपास के लोग प्रभावित हुए होंगे.
बीबीसी को पता चला है कि मारे गए लोगों में से कुछ ने पहले अंतरराष्ट्रीय संगठनों के लिए काम किया था और उनके पास अमेरिकी वीज़ा भी था.
मारे जाने वाली सबसे छोटी बच्ची सुमाया की उम्र महज़ दो साल थी और सबसे बड़े बच्चे फ़रज़ाद की उम्र सिर्फ़ 12 साल थी.
मरने वालों के एक रिश्तेदार रामिन यूसुफी ने कहा, "यह ग़लत है, यह एक क्रूर हमला है और यह ग़लत जानकारी के आधार पर हुआ है."
एक अन्य रिश्तेदार एमाल अहमदी ने बीबीसी को बताया कि हमले में उनकी दो साल की बेटी की मौत हो हुई है.
अहमदी ने कहा कि उन्होंने और उनके परिवार के सदस्यों ने अमेरिका जाने के लिए अर्ज़ी दी थी और वो एयरपोर्ट जाने के लिए फ़ोन कॉल का इंतज़ार कर रहे थे.
जिन लोगों ने अमेरिका जाने की अर्ज़ी दी थी, उनमें नासिर भी शामिल थे. नासिर अमेरिकी सेना के साथ दुभाषिए के रूप में काम कर चुके थे. अहमदी कहते हैं कि अमेरिका ने "एक ग़लती की. ये एक बहुत बड़ी ग़लती थी."
आम लोग कैसे मारे गए, अभी नहीं मालूम
अमेरिकी सेना की सेंट्रल कमांड ने कहा है कि वे घटना की जांच कर रहे हैं. लेकिन फ़िलहाल वो ये साफ़ तौर नहीं बता पा रहे हैं कि इन लोगों की मौत कैसे हुई है.
सेंट्रल कमांड ने एक बयान में कहा है कि ड्रोन हमले के बाद कई "शक्तिशाली विस्फोट" हुए थे.
उनके मुताबिक, "अंदर बड़ी मात्रा में विस्फोटक सामग्री थी जिसके फटने की वजह और अधिक लोगों की जान गई होगी."
अमेरिकी सेना ने इससे पहले कहा था कि वो काबुल के हमीद करज़ई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे को 'इस्लामिक स्टेट इन ख़ुरासान' नाम के संगठन से ख़तरे को ख़ात्मा करने में सफल रही है.
पिछले गुरुवार को काबुल हवाई अड्डे के बाहर एक आत्मघाती हमले में 100 से अधिक अफ़ग़ान नागरिकों और 13 अमेरिकी सैनिकों की मौत हो गई थी. इस हमले की ज़िम्मेदारी 'इस्लामिक स्टेट इन ख़ुरासान' ने ही ली थी.
जान गँवाने वाले सभी लोग अफ़ग़ानिस्तान छोड़ने वाली फ़्लाइट्स में से एक में सवार होने की उम्मीद कर रहे थे ताकि वो तालिबान के क़ब्ज़े वाले अफ़गानिस्तान से दूर निकल सकें.
31 अगस्त की डेडलाइन
जैसे-जैसे काबुल हवाई अड्डे को खाली करने की 31 अगस्त की डेडलाइन करीब आ रही थी, अमेरिका ने बार-बार एयरपोर्ट के आस-पास हमले की चेतावनी दी थी.
सोमवार को एक अधिकारी ने रॉयटर्स समाचार एजेंसी को बताया कि एक अमेरिकी मिसाइल रोधी प्रणाली ने काबुल के ऊपर से हवाईअड्डे की ओर दाग़े गए रॉकेटों को रोका है.
स्थानीय समाचार संस्थानों के वीडियो और तस्वीरों में काबुल की छतों पर धुंआ उठता दिख रहा हैऔर सड़क पर जलती हुई कार दिखाई दे रही है.
व्हाइट हाउस ने एक बयान में कहा कि राष्ट्रपति जो बाइडेन को रॉकेट हमले के बारे में जानकारी दी गई।
प्रेस सचिव जेन साकी ने एक बयान में कहा, "राष्ट्रपति को सूचित किया गया था कि काबुल हवाई अड्डे पर ऑपरेशन बिना रुके जारी है. उनके उस आदेश पालन हो रहा है जिसमें कमांडो को अपनी फ़ोर्स की हिफ़ाज़त के लिए जो भी ज़रूरी कदम उठाने और उन्हें दोगुना करने को कहा था."
सोमवार की घटना से अब तक किसी भी अमेरिकी या अफ़ग़ान के मरने की सूचना नहीं मिली है.
अमेरिकी सेना ने हवाई अड्डे को किसी भी संभावित हमले से बचाने के लिए एंटी-रॉकेट और मोर्टार सिस्टम स्थापित किया है. (bbc.com)
वाशिंगटन। पेंटागन ने सोमवार को घोषणा की कि 20 साल के अमेरिकी सैन्य अभियानों के बाद अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी पूरी हो गई है। अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन ने ट्वीट कर बताया कि अफगानिस्तान छोड़ने वाला आखिरी अमेरिकी सैनिक मेजर जनरल क्रिस डोनह्यू हैं, जो 30 अगस्त को सी-17 विमान में सवार हुए और यह काबुल में अमेरिकी मिशन के अंत का प्रतीक है। इसके साथ ही यूएस सेंट्रल कमांड के कमांडर जनरल केनेथ मैकेंजी ने पेंटागन न्यूज कॉन्फ्रेंस के दौरान अफगानिस्तान से अमेरिकी वापसी को पूरा करने की घोषणा की।
जनरल केनेथ मैकेंजी ने कहा कि मैं यहां अफगानिस्तान से अपनी वापसी के पूरा होने और अमेरिकी नागरिकों को निकालने के लिए सैन्य मिशन की समाप्ति की घोषणा करने के लिए हूं। मैकेंजी ने बताया कि आखिरी अमेरिकी सी-17 सैन्य विमान ने हामिद करजई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से आधी रात को उड़ान भरा। उन्होंने कहा तालिबान दोनों पक्षों के बीच गहरी दुश्मनी के बावजूद निकासी और अंतिम उड़ानों के संचालन में बहुत मददगार और उपयोगी रहा है।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने तय की थी समयसीमा
बता दें कि अल कायदा द्वारा अमेरिका पर 11 सितंबर 2001 के हमलों के बाद 2001 में ही तालिबान को सत्ता से बेदखल करने के लिए अमेरिकी सैनिक नाटो गठबंधन के नेतृत्व में अफगानिस्तान आए थे। राष्ट्रपति जो बाइडन ने इस साल की शुरुआत में अमेरिकी सेना की वापसी के लिए 31 अगस्त की समय सीमा तय की थी। वहीं, इस्लामिक स्टेट-खुरासन (IS-K) ने दो सप्ताह के निकासी अभियान के दौरान दो हमले किए थे। एक आत्मघाती बम विस्फोट में 13 अमेरिकी सैनिकों सहित 120 से अधिक लोग मारे गए थे। इसके बाद भारी सुरक्षा के बीच काबुल हवाई अड्डे से अंतिम उड़ान संपन्न हुई हैं। (एएनआई)
काबुल. अमेरिका और कई प्रमुख यूरोपीय देशों समेत 90 से अधिक देशों ने तालिबान की तरफ से विदेशी और अफगान नागरिकों को निकालने के लिए दिए गए आश्वासन पर एक संयुक्त बयान जारी किया है. संयुक्त बयान में इन सभी देशों ने बताया कि उन्हें तालिबान की तरफ से आश्वासन दिया गया है कि सभी विदेशी नागरिकों और किसी भी अफगान नागरिक को अपने देशों से यात्रा प्राधिकरण के साथ सुरक्षित रूप से अफगानिस्तान से बाहर जाने की अनुमति दी जाएगी.
संयुक्त बयान में कहा गया है कि हम सभी ये सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं कि हमारे नागरिक, निवासी, कर्मचारी, अफगान जिन्होंने हमारे साथ काम किया है और जो जोखिम में हैं, वो अफगानिस्तान के बाहर के गंतव्यों के लिए स्वतंत्र रूप से यात्रा करना जारी रख सकते हैं. साथ ही कहा कि हम नामित अफगानों को यात्रा दस्तावेज जारी करना जारी रखेंगे और हमें तालिबान से स्पष्ट उम्मीद और प्रतिबद्धता है कि वो हमारे संबंधित देशों की यात्रा कर सकते हैं.
बयान पर हस्ताक्षर करने वाले देशों में ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, जापान, नीदरलैंड, न्यूजीलैंड, स्विट्जरलैंड, यूक्रेन, ब्रिटेन शामिल हैं. ये संयुक्त बयान तालिबान की तरफ से सार्वजनिक बयानों के आधार पर जारी किया गया था. 90 से अधिक देशों का ये बयान तालिबान के राजनीतिक कार्यालय की तरफ से घोषणा किए जाने के एक दिन बाद आया है, जिसमें उसने कहा कि देश से बाहर जाने के इच्छुक अफगान नागरिकों को सम्मानजनक तरीके से ऐसा करने की अनुमति दी जाएगी.
शनिवार को तालिबान के राजनीतिक कार्यालय के उप निदेशक शेर मोहम्मद अब्बास स्टानिकजई ने कहा कि जो अफगान विदेश जाने का इरादा रखते हैं, वो देश में वाणिज्यिक उड़ानों को फिर से शुरू करने के बाद पासपोर्ट और वीजा जैसे कानूनी दस्तावेज लेकर सम्मानजनक तरीके से और मन की शांति के साथ ऐसा कर सकते हैं. इस बीच तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह ने रविवार को कहा कि चरमपंथी समूह अमेरिकी बलों की वापसी की 31 अगस्त की समय सीमा के बाद भी लोगों को काबुल छोड़ने की अनुमति देगा. जब से तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया है, स्थानीय अफगानों समेत हजारों लोग आतंक के शासन से भागने की पूरी कोशिश कर रहे हैं.
नई दिल्ली, 30 अगस्त | यूनिसेफ ने भविष्यवाणी की है कि अगर मौजूदा प्रवृत्ति जारी रही, तो अफगानिस्तान में पांच साल से कम उम्र के दस लाख बच्चों को गंभीर और तीव्र कुपोषण की स्थिति का सामना करना पड़ेगा। यूनिसेफ दक्षिण एशिया के क्षेत्रीय निदेशक जॉर्ज लारिया-अडजेई ने कहा कि 22 लाख लड़कियों सहित 40 लाख से अधिक बच्चे अब स्कूल से बाहर हैं।
उन्होंने कहा कि लगभग 300,000 बच्चे या युवा अपने घरों से भागने को मजबूर हुए हैं, जिनमें से बहुतों ने ऐसे ²श्य देखे हैं, जिन्हें किसी बच्चे को कभी नहीं देखना चाहिए।
उन्होंने कहा, बच्चे और किशोर मानसिक स्वास्थ्य सहायता की सख्त जरूरत में चिंता और भय से जूझ रहे हैं।
लारिया-अडजेई ने कहा कि बच्चों ने हाल के हफ्तों में बढ़े हुए संघर्ष और असुरक्षा की सबसे भारी कीमत चुकाई है।
इन बच्चों को न केवल अपने घरों से भागने पर मजबूर होना पड़ा है बल्कि उनके स्कूल छूट गए हैं और वे अपने दोस्तों से भी दूर हो चुके हैं। इसके अलावा वे बुनियादी स्वास्थ्य सेवा से भी वंचित हैं, जो उन्हें पोलियो, टेटनस और अन्य बीमारियों से बचा सकती हैं।
उन्होंने चेताते हुए कहा, अब एक सुरक्षा संकट के साथ, खाद्य कीमतों में उछाल, एक भीषण सूखा, कोविड-19 का प्रसार और आने वाली कठोर सर्दी को देखते हुए बच्चे पहले से कहीं अधिक जोखिम हैं।
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष के एक वरिष्ठ अधिकारी ने रविवार को देश का दौरा समाप्त करने के बाद कहा कि अफगान बच्चों की जरूरतें पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गई हैं, इसलिए दुनिया उन्हें अब नहीं छोड़ सकती।
अफगानिस्तान को सहायता में कटौती पर विचार करने वाले कुछ मानवीय साझेदारों के साथ, लारिया-अडजेई ने स्वास्थ्य केंद्रों को चालू रखने, स्कूलों को खोलने और गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों के इलाज के लिए उपलब्ध सेवाओं के लिए पर्याप्त संसाधनों को लेकर चिंता व्यक्त की।
यूनिसेफ, जो छह दशकों से अधिक समय से अफगानिस्तान में है, पूरे देश में अपनी उपस्थिति बनाए हुए है और प्रतिक्रिया को बढ़ाने के लिए वातार्कारों के साथ जुड़ रहा है।
एजेंसी वर्तमान में विस्थापित लोगों के लिए शिविरों में मोबाइल स्वास्थ्य और पोषण टीमों का समर्थन कर रही है और बच्चों के अनुकूल स्थान, पोषण केंद्र और टीकाकरण स्थल स्थापित कर रही है। इसके साथ ही यह अतिरिक्त जीवन रक्षक आपूर्ति की तैयारी कर रही है और समुदाय-आधारित शिक्षा कक्षाओं में हजारों छात्रों का समर्थन कर रही है।
हालांकि, लारिया-अडजेई ने जोर देकर कहा है कि अधिक संसाधनों की सख्त जरूरत है। यूनिसेफ ने हाल ही में बढ़ते मानवीय संकट को दूर करने के लिए 19.2 करोड़ डॉलर की अपील शुरू की और दानदाताओं से समर्थन बढ़ाने का आग्रह किया।
अडजेई ने कहा कि युवा लोग और बच्चे हमें बता रहे हैं कि उन्हें सबसे बुनियादी वस्तुओं और सेवाओं की सख्त जरूरत है। (आईएएनएस)
काबुल/नई दिल्ली, 30 अगस्त| सुरक्षा विशेषज्ञों द्वारा समर्थित वैश्विक मीडिया रिपोटरें से संकेत मिला है कि अब अफगानिस्तान में स्थापित तालिबान 2.0 ने 600,000 छोटे हथियारों, 200 विमानों/हेलिकॉप्टरों, ब्लैक हॉक्स, नाइट विजन डिवाइस, बॉडी आर्मर और चिकित्सा आपूर्ति सहित 85 अरब डॉलर के सैन्य उपकरणों को नियंत्रित कर लिया है। पिछले महीने तक अफगानिस्तान की रक्षा के लिए काम करने वालों ने इन बायोमेट्रिक विवरणों के बारे में बताया है।
मानव इतिहास में किसी भी प्रतिबंधित संगठन के पास इतनी बड़ी मात्रा में अत्याधुनिक हथियार और डिवाइस कभी नहीं रहे हैं। यह एक और बात है कि प्रतिबंधित होने की स्थिति संभावित रूप से जा सकती है, क्योंकि दुनिया अफगानिस्तान में जमीनी हकीकत से जाग रही है। अब सवाल यह है कि पूरी दुनिया में कई गलतियों की कीमत कौन चुकाएगा, जो निश्चित रूप से असहाय अफगान लोगों तक सीमित नहीं होगी।
सवाल यह है कि विरोधियों के अलावा, उनमें से जातीय अल्पसंख्यक, जो इस नव-अधिग्रहीत सैन्य शक्ति के निशाने पर होंगे - नए शासकों के झूठे आश्वासनों के बावजूद भय में जीने को मजबूर हैं।
बेशक ऐसा कहा जा रहा है कि यह एक नया तालिबान है, जो कि कुछ हद तक नई सोच के साथ चलेगा, मगर उसके बारे में कुछ भी स्पष्ट नहीं कहा जा सकता है और उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता है। हालांकि उसके शासन में अन्य देशों को व्यापारिक और राजनैतिक रिश्ते तो फिर भी रखने ही होंगे और खासकर पड़ोसी देशों के बीच एक रिश्ता बनना लाजिमी भी है।
नए शासन और उसकी नीतियों का असर निश्चित तौर पर उसके पड़ोसी पाकिस्तान के साथ ही भारत और खासकर जम्मू-कश्मीर पर होना तय है।
तालिबान के पास अत्याधुनिक हथियार होना चिंताजनक है। यहां ध्यान देने वाली मुख्य बात यह है कि भारत ने इसका अनुमान लगाया था - अगर पूरी तरह से नहीं तो काफी हद तक अनुमान जरूर लगाया गया था। इसने हाल के वर्षों में अमेरिका से जल्दबाजी में देश नहीं छोड़ने का आग्रह किया था। भारत ने ओबामा, ट्रंप और बाइडेन प्रशासनों को चेतावनी दी थी कि वे सभी अमेरिकी योजनाओं और कार्रवाई को एक प्रमुख बिंदु पर आधारित करें।
अब जब ऐसा हो गया है, तो शायद यह समझना आसान हो गया है कि भारत ने अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को समाप्त करने के लिए कार्रवाई क्यों की। इसने राज्य की राजनीतिक और संवैधानिक स्वायत्तता को रद्द कर दिया और दो केंद्र शासित प्रदेश बनाकर राज्य (प्रांत) को ही भंग कर दिया, जिसके बाद क्षेत्र सीधे तौर पर नई दिल्ली से शासित होने लगा।
यह एक सही कदम था या नहीं, इसके बारे में सोचने के बजाय अब इसे अफगानिस्तान के घटनाक्रम के संदर्भ में देखा जाना चाहिए या फिर इसे अफगान-पाक क्षेत्र में बुद्धिमानी से रखते हुए देखा जाना चाहिए।
किसी भी मामले में, नई दिल्ली ने अपने घरेलू विकल्पों को बंद नहीं किया है, जिसमें आधिकारिक घोषणाओं के अनुसार, क्षेत्र की प्रांतीय स्थिति को पुनर्जीवित करना, संभवत: उचित समय पर पूर्ण राज्य का दर्जा देना शामिल है।
लेकिन यह तालिबान के आगमन के साथ जम्मू-कश्मीर और लद्दाख क्षेत्रों के लिए बाहरी सुरक्षा खतरे के बारे में है। जिस तरह से पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने खाड़ी देशों और मध्य एशियाई गणराज्यों का दौरा किया है, उसे नए काबुल शासन की शीघ्र मान्यता के लिए देखा जा रहा है और इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
कश्मीर घाटी के बफीर्ली होने से पहले ही सीमा पार से घुसपैठ के प्रयास के रूप में एक शुरूआत हो चुकी है।
सीमा पार से ताकत हासिल करने वाले तत्वों द्वारा हिंसा के साथ-साथ कश्मीर में सीमा पार से घुसपैठ में बड़ी वृद्धि हुई है। एक नतीजा यह हुआ कि अल्पसंख्यक हिंदुओं का एक बड़ा हिस्सा अपने घरों से भागने को मजबूर हो गया है।
नया घटनाक्रम खासकर भारत में इतिहास की पुनरावृत्ति की ओर इशारा करता है, जहां ऐसी आशंकाएं हैं कि अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा कश्मीर घाटी में सुरक्षा स्थिति को प्रभावित कर सकता है। वहीं ऐसी भी आशंकाएं हैं कि इससे अन्य दो केंद्र शासित प्रदेशों में भी आतंकवाद से संबंधित हिंसा बढ़ सकती है। इस बात के संकेत पहले ही मिल चुके हैं कि पीर पंजाल के दक्षिण में और कश्मीर घाटी में घुसपैठ के प्रमुख रास्ते संवेदनशील हो सकते हैं और वहां और भी कड़ी चौकसी बरती जा रही है। नापाक इरादों के लिए मार्ग पुंछ-राजौरी या उत्तरी कश्मीर हो सकते हैं और दोनों ही इलाकों में मुठभेड़ होती भी देखी गई है।
हालांकि, पाकिस्तान स्थित संगठनों ने भी योजना बनाई है। भारतीय सुरक्षा बलों के आकलन के अनुसार, पाकिस्तान से जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) और लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) के कई गुर्गों ने अफगानिस्तान की स्थिति से महीनों पहले घुसपैठ की थी।
निश्चित तौर पर अफगान-पाकिस्तान का एक संबंध है। भारत की एनआईए का कहना है कि अफगानिस्तान के हेलमंद प्रांत में स्थित अल-कायदा और तालिबान शिविरों में करीब 1,000 पाकिस्तानी आतंकवादियों को प्रशिक्षित किया गया है।
भारत के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत ने अपने एक बयान में कहा है, हम इस बात से चिंतित हैं कि अफगानिस्तान से आतंकवादी गतिविधि भारत में कैसे बढ़ सकती है और इस मुद्दे को लेकर हमारी आकस्मिक योजना चल रही है और हम इसके लिए तैयार हैं।(आईएएनएस)
कभी जहां करोड़ों बेकार हो चुके टायरों का ढेर लगा रहता था, कुवैत वहां एक नया शहर बनाने की योजना बना रहा है. साथ ही यह कोशिश भी की जा रही है कि दोबारा टायरों को इस तरह फेंकने की जरूरत ही ना पड़े.
यह जगह तेल के भंडार वाले इस देश के उत्तर की तरफ स्थित है और लगभग दो वर्ग किलोमीटर में ही फैली है. लेकिन इसे हाल तक टायरों के कब्रिस्तान के रूप में जाना जाता था, क्योंकि पूरे देश से बेकार हो गए टायर यहीं लाकर पटक दिए जाते थे.
शहर बनाने की योजना पर काम शुरू होने से पहले यहां चार करोड़ से भी टायरों का एक ढेर मौजूद था. करीब 17 सालों से टायर यहां लाए जा रहे थे, लेकिन 2012 से 2020 के बीच में यहां तीन बार आग लगने की बड़ी घटनाएं हुईं.
पर्यावरण पर असर
इन घटनाओं से आखिरकार इस इलाके के पर्यावरण पर असर पर सरकार का ध्यान गया और फिर असर हमेशा के लिए बंद कर देने का फैसला लिया गया. अल-जाहरा प्रांत से लगभग पांच किलोमीटर दूर यह लैंडफिल अब खाली है.
वहां मौजूद देश के तेल मंत्री मोहम्मद अल-फरेस ने बताया, "हम एक बड़े कठिन दौर से निकल चुके हैं जिसमें पर्यावरण को काफी भारी जोखिम था. आज यह इलाका साफ है और सभी टायरों को हटा दिया गया है ताकि 'साद अल-अब्दुल्ला शहर' परियोजना को शुरू किया जा सके."
बीते कुछ महीनों में टायरों को लादे हुए ट्रकों ने इस लैंडफिल से अल-सलमी प्रांत तक 44,000 से भी ज्यादा चक्कर लगाए हैं. अल-सलमी कुवैत के औद्योगिक इलाके के पास है और फरेस ने बताया कि यहां से हटाए गए टायरों को अस्थायी रूप से वहीं रखा जाएगा.
फिर ना बने लैंडफिल
उन्होंने बताया कि टायरों को या तो काटा जाएगा या किसी और तरह से इस्तेमाल किया जाएगा. उन्हें देश के अंदर भी इस्तेमाल किया जा सकता है या उनका निर्यात भी किया जा सकता है. फरेस ने यह भी कहा कि भंडारण "अंतरराष्ट्रीय मानकों के तहत किया जाएगा".
पर्यावरण प्राधिकरण के महानिदेशक शेख अब्दुल्ला अल-सबाह के मुताबिक सभी टायरों को रीसायकल करने की योजना बनाई जा रही है ताकि एक और लैंडफिल की जरूरत से बचा जा सके.
उन्होंने बताया, "पहले से ही एक फैक्ट्री उन्हें किसी दूसरे इस्तेमाल के लायक बना रही है और हमें उम्मीद है कि हमें कोई ऐसी कंपनी मिल जाएगी तो इस मसले को हल करने में हमारी मदद करेगी." ईपीएससीओ ग्लोबल जनरल कॉन्ट्रैक्टिंग कंपनी के प्रमुख अला हसन ने बताया कि उनकी कंपनी टायरों से कच्चा माल निकालने का काम करती है.
इनमें ऐसी चीजें भी होती हैं जो सड़क और फुटपाथ बनाने के काम आती हैं. हसन ने बताया कि उनकी कंपनी दूसरी फैक्ट्रियों के साथ मिल कर एक साल में लगभग बीस लाख टायरों को काटने या किसी दूसरे इस्तेमाल के लायक बनाने का काम कर सकती है.
सीके/ (एएफपी)(dw.com)
अफगानिस्तान में यूनिवर्सिटी के एंट्रेस एग्जाम में एक लड़की ने टॉप किया है. तालिबान ने उसे बधाई दी है. लेकिन वह डरी हुई हैं, बहुत सारे अन्य युवाओं की तरह.
20 साल की साल्गी को पिछले हफ्ते जब पता चला कि उसने यूनिवर्सिटी की प्रवेश परीक्षा में टॉप किया है, तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा. पिछले कई महीनों से साल्गी अपने घर में बंद इस परीक्षा की तैयारी में जुटी थी. और जब रिजल्ट आना था तो उनका पूरा परिवार सोलर एनर्जी से चलने वाले टीवी के सामने डटा था.
साल्गी कहती हैं कि उनकी मेहनत रंग लाई है. वह बताती हैं, "उस पल में मुझे लगा कि किसी ने मुझे पूरी दुनिया तोहफे में दे दी है. मेरी मां खुशी से रोने लगी. और उसके साथ मैं रोने लगी.”
अनिश्चित भविष्य
साल्गी और उनके परिवार की यह खुशी जल्दी ही चिंता में बदल गई क्योंकि उन्हें याद आ गया कि देश अब तालिबान के नियंत्रण में है. 15 अगस्त को तालिबान काबुल में घुस गया था और अब देश शरिया कानून लागू करने की तैयारी कर रहा है. पिछली बार जब तालिबान सत्ता में था तो महिलाओं के पढ़ने और काम करने पर कड़ी पाबंदियां थीं.
साल्गी कहती हैं, "हमारा भविष्य अनिश्चित है. सोचते रहते हैं कि अब क्या होगा. मुझे लगता है कि मैं सबसे किस्मत वाली और बदकिस्मत एक साथ हूं.”
देश की करीब दो तिहाई आबादी 25 साल से कम आयु की है. यानी पूरी एक पीढ़ी है जिसे तालिबान का शासन याद नहीं है, जो 20 साल पहले सत्ता से हटा दिए गए थे. 1996 से 2001 तक तालिबान ने अफगानिस्तान पर राज किया था लेकिन 9/11 के आतंकी हमले के बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला किया और तालिबान को सत्ता से बाहर कर दिया.
आजादी छिनने का डर
दोबारा सत्ता में आने के बाद तालिबान ने छात्रों को यकीन दिलाया है कि उनकी पढ़ाई प्रभावित नहीं होगी. उन्होंने कहा है कि महिला अधिकारों का सम्मान किया जाएगा. साथ ही तालिबान ने प्रतिभाशाली पेशेवरों से देश ना छोड़ने की भी अपील की है.
लेकिन मोबाइल फोन, पॉप म्यूजिक और लैंगिक मिश्रण की आदि हो चुकी इस नई पीढ़ी को पुरानी बातों के आधार पर डर सता रहा है कि उनकी सारी आजादियां छीन ली जाएंगी. समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने कई युवाओं से बातचीत की.
21 साल की सूजन नबी कहती हैं कि उन्होंने बड़ी बड़ी योजनाएं बना रखी थीं. वह बताती हैं, "अपने लिए मैंने आने वाले 10 साल के लिए कई ऊंचे लक्ष्य तय किए थे. हमें जिंदगी की उम्मीद थी, बदलाव की उम्मीद थी. लेकिन एक हफ्ते में उन्होंने देश कब्जा लिया और 24 घंटे में हमारी उम्मीदें, हमारे सपने हमसे छीन लिए गए.”
इस बारे में तालिबान प्रवक्ता को कुछ सवाल भेजे गए हैं, जिनके जवाब अब तक नहीं मिले हैं.
15 अगस्त की सुबह जब तालिबान काबुल की ओर बढ़ रहे थे तब 26 साल के जावेद यूनिवर्सिटी से घर की ओर दौड़ पड़े थे. अपना पूरा नाम बताने से डर रहे जावेद ने सारे ईमेल, सारे सोशल मीडिया मेसेज डिलीट कर दिए हैं, खासकर वे जो अमेरीकियों को भेजे गए थे.
जावेद बताते हैं कि अमेरिकी फंड से चलने वाले प्रोग्राम से उन्हें जितने भी सर्टिफिकेट मिले थे, वे सारे उन्होंने अपने घर के पिछवाड़े में जला दिए. अपने अच्छे काम के लिए उन्हें एक ट्रॉफी मिली थी जो उन्होंने तोड़ दी. पिछले दो हफ्ते में ऐसे तमाम लोगों ने देश छोड़ देने की कोशिश की है, जो विदेशी संस्थाओं के लिए काम करते थे.
इतिहास का डर
इन युवाओं ने तालिबान को अपने माता-पिता द्वारा सुनाए गए किस्से-कहानियों में ही जाना है. बहुतों ने तो पहली बार तालिबान लड़ाकों को देखा भी तब जब वे काबुल की सड़कों पर पैट्रोलिंग करते नजर आए.
लोकतांत्रिक सरकार के दौरान अफगानिस्तान में सेकंड्री स्कूल में बच्चों की संख्या काफी बढ़ी है. 2001 में 12 फीसदी बच्चे सेकंड्री स्कूल में दाखिला लेते थे. वर्ल्ड बैंक के मुताबिक 2018 में इनकी संख्या बढ़कर 55 फीसदी हो गई.
कभी देश में सिर्फ एक रेडियो स्टेशन हुआ करता था, आज वहां 170 रेडियो स्टेशन हैं, 100 से ज्यादा अखबार और दर्जनों टीवी स्टेशन हैं. और, स्मार्टफोन और इंटरनेट तो तालिबान के राज में होता ही नहीं था, जिसने युवाओं के लिए अंतरराष्ट्रीय सीमाएं खोल दी हैं.
18 साल की इलाहा तमीम ने यूनिवर्सिटी की प्रवेश परीक्षा पास की है. वह कहती हैं, "ये चीजें तो हम हर वक्त इस्तेमाल करते हैं. जब रिलैक्स होना है तब भी और जब दुनिया में हो रही नई घटनाओं के बारे में जानना है तब भी. मैं इन्हें खोना नहीं चाहती.”
तालिबान के भरोसा देने के बावजूद बहुत सी लड़कियों ने स्कूल आना बंद कर दिया है. तमीम कहती हैं, "मैं ऐसे माहौल में बड़ी हुई हूं जहां हम आजाद थे. स्कूल जा सकते थे. बाहर जहां चाहे जा सकते थे. मेरी मां उस बुरे वक्त की कहानियां सुनाती है. वे कहानियां बहुत डरावनी हैं.”
दोहा स्थित तालिबान के राजनीतिक दफ्तर के सदस्य अम्मार यासिर ने प्रवेश परीक्षा में प्रथम आने वाली साल्गी को खुद बधाई दी है. मेडिकल स्कूल में दाखिले के लिए यारिस ने ट्विटर पर शुभकामनाएं भेजी हैं.
साल्गी उम्मीद करती हैं कि वह डॉक्टर बन पाएंगी. वह कहती हैं, "अगर तालिबान लड़कियों को उच्च शिक्षा हासिल करने देता है और रुकावट पैदा नहीं करता है तो ठीक है. नहीं तो मेरी जिंदगी की सारी मेहनत खतरे में है.”
वीके/एए (रॉयटर्स)
अमेरिकी रक्षा मंत्रालय ने काबुल में किए हवाई हमले में आम नागरिकों के मारे जाने की खबरों की जांच का वादा किया है. तालिबान भी अपने स्तर पर जांच करेगा.
अमेरिकी सेना के सेंट्रल कमांड के प्रवक्ता बिल अर्बन ने कहा कि हम किसी भी आम नागरिक की जान जाने की संभावना से दुखी हैं. एक बयान जारी कर अर्बन ने कहा, "हम आज काबुल में एक वाहन पर किए गए हमले के दौरान आम नागरिकों के मारे जाने की खबरों से परिचित हैं. हम जानते हैं कि वाहन के नष्ट होने से ताकतवर धमाके हुए थे, जिससे संकेत मिलता है कि वाहन में बड़ी मात्रा में विस्फोटक थे. हो सकता है इससे और लोगों की भी जानें गई हों. अगर ऐसा हुआ होगा तो हमें बहुत दुख है."
अमेरिका ने रविवार को काबुल के करीब एक वाहन पर रॉकेट से हमला किया था. कहा गया था कि इस वाहन में एक आत्मघाती हमलावर था जो काबुल में हमला करने के मकसद से जा रहा था. शुक्रवार को इस्लामिक स्टेट खोरसान ने काबुल में एक आत्मघाती हमला कर सौ से ज्यादा लोगों मार डाला था.
अमेरिकी समाचार चैनल सीएनएन ने खबर दी कि इस हमले में एक ही परिवार के नौ लोगों की जान गई. मरने वालों में छह बच्चे होने की बात कही गई है. एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर समाचार एजेंसी एपी को बताया कि काबुल एयरपोर्ट के करीब हुए इस हवाई हमले में तीन बच्चे मारे गए.
उधर तालिबान ने कहा है कि वे भी इस हमले की जांच कर रहे हैं और पता लगाया जाएगा कि जिस वाहन पर हमला किया गया, उसमें वाकई कोई आत्मघाती हमलावर सवार था या नहीं.
विदेश मंत्रियों की बैठक
सोमवार को कई देशों के विदेश मंत्री अफगानिस्तान पर चर्चा के लिए मिलने वाले हैं. अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने एक बयान में बताया है कि कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, युनाइटेड किंग्डम, तुर्की, कतर, यूरोपीय संघ और नाटो के प्रतिनिधि इस बैठक में शामिल होंगे.
अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने कहा, "ये प्रतिनिधि आने वाले दिनों और हफ्तों में अफगानिस्तान पर एक साझी रणनीति अपनाने पर चर्चा करेंगे." बैठक के बाद अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन का संबोधन भी होगा जिसमें वह अफगानिस्तान में हो रही गतिविधियों पर जानकारी देंगे.
अफगानिस्तान में जिंदगी दूभर
सरकार के न रहने के कारण अफगानिस्तान में लोगों की आम जिंदगी अस्त-व्यस्त हो गई है, जिस कारण भुखमरी और आर्थिक संकट का अंदेशा जताया जा रहा है. आम जरूरत की चीजों के दाम आसमान छू रहे हैं और लोगों के पास संसाधन खत्म हो रहे हैं.
देश में आटा, तेल और चावल बहुत महंगा हो चुका है. देश की मुद्रा कमजोर हो रही है और पाकिस्तान में करंसी बदलने वाले अफगान मुद्रा को लेने से इनकार कर रहे हैं. शनिवार को अधिकारियों ने बैंकों को दोबारा खोलने के आदेश दिए. पैसे निकालने की सीमा 20 हजार अफगानी यानी लगभग 17 हजार भारतीय रुपये कर दी गई है. बैंकों के बाहर लंबी कतारें देखी जा सकती हैं.
तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने कहा है कि कुछ दिन के भीतर नई कैबिनेट का ऐलान किया जाएगा और नए प्रशासन के आने के साथ ही ये दिक्कतें खत्म हो जाएंगी.
तालिबान ने संयुक्त राष्ट्र और पश्चिमी देशों से अफगानिस्तान के साथ संबंध कायम रखने की अपील की है. ब्रिटेन ने कहा है कि ऐसा तभी हो सकता है जब तालिबान मानवाधिकारों का सम्मान करे और देश से बाहर जाना चाहने वाले लोगों को सुरक्षित निकलने दे.
वीके/एए (रॉयटर्स, एपी, डीपीए)
वैज्ञानिकों ने उत्तरी ध्रुव के पास एक छोटे से द्वीप की खोज की है, जिसे पृथ्वी पर "सबसे उत्तरी" शुष्क भूमि कहा जाता है. कहा जा रहा है कि यह जल्द ही समुद्री में डूब जाएगा.
वैज्ञानिकों ने दुनिया के सुदूर उत्तर में शुष्क भूमि के एक टुकड़े की खोज की है, जिसका अभी तक नामकरण नहीं हुआ है. यह द्वीप ग्रीनलैंड के उत्तर में स्थित है, लेकिन कहा जा रहा है कि यह जल्द ही समुद्री में डूब जाएगा.
जुलाई महीने में वैज्ञानिकों ने नमूने इकट्ठा करने के लिए उड़ान भरी थी और अनुमान लगाया कि यह ग्रीनलैंड के उत्तरी भाग में हो सकता है. उन्होंने सोचा कि यह ओडाक द्वीप था, जिसे 1978 से जाना जाता है. लेकिन जब उन्होंने आर्कटिक द्वीपों के पंजीकरण के प्रभारी अधिकारी डेनिश से अपनी स्थिति की जांच की, तो वे 800 मीटर (2,625 फीट) आगे उत्तर में थे. ओडाक द्वीप को अब तक पृथ्वी का सबसे उत्तरी क्षेत्र माना जाता था.
कोपेनहेगन विश्वविद्यालय के भूवैज्ञानिक विज्ञान और प्राकृतिक संसाधन विभाग के मॉर्टन रेश के मुताबिक, "हमें बताया गया था कि मेरे जीपीएस में कुछ गड़बड़ी हो सकती है, जिसके कारण हमें ओडाक द्वीप पर उतरना पड़ा."
वे आगे कहते हैं, "तथ्य यह है कि हमने दुनिया में सबसे उत्तरी शुष्क स्थान की खोज की है. इस खोज ने डेनमार्क को थोड़ा और फैला दिया है." ओडाक उत्तरी ध्रुव से 700 किलोमीटर दक्षिण में है, जबकि नया द्वीप ओडाक से 780 मीटर उत्तर में है.
कोपेनहेगन विश्वविद्यालय द्वारा जारी एक बयान के मुताबिक, "यह अभी भी एक अनाम द्वीप, ग्रीनलैंड का सबसे उत्तरी भाग और पृथ्वी का सबसे उत्तरी द्वीप है."
हालांकि द्वीप समुद्र तल से केवल 30 से 60 मीटर ऊपर है, इसलिए संभव है कि इसका जीवन बहुत लंबा न हो और समुद्र इसे निगल जाए. रेश के मुताबिक, "कोई नहीं जानता कि द्वीप कितने समय तक बचेगा. सिर्फ एक एक मजबूत तूफान ही इसे गायब कर सकता है."
ग्रीनलैंड का डेनिश स्वायत्त क्षेत्र हाल के सालों में सुर्खियों में रहा है. खासकर तब जब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डॉनाल्ड ट्रंप ने आर्कटिक क्षेत्र के इस हिस्से को खरीदने की इच्छा जताई थी. हालांकि डेनिश सरकार ने प्रस्ताव को अस्पष्ट बताते हुए खारिज कर दिया था.
एए/वीके (डीपीए, एपी)
तालिबान के कार्यवाहक उच्च शिक्षा मंत्री ने कहा कि अफगान महिलाओं को विश्वविद्यालय में पढ़ने की अनुमति होगी लेकिन उनके शासन में मिश्रित कक्षाओं पर प्रतिबंध रहेगा.
पश्चिमी सेनाओं के निकलने के पहले ही 15 अगस्त को अफगानिस्तान पर कब्जा करने वाले तालिबान ने कहा है कि देश में लड़कियां यूनिवर्सिटी में पढ़ पाएंगी लेकिन वे लड़कों के साथ बैठकर नहीं पढ़ पाएंगी. पिछली बार जब तालिबान सत्ता में आया था तो उसने लड़कियों के पढ़ने पर प्रतिबंध लगा दिया था.
1996 से 2001 तक तालिबान ने अफगानिस्तान पर राज किया था लेकिन 9/11 के आतंकी हमले के बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला किया और तालिबान को सत्ता से बाहर कर दिया.
उच्च शिक्षा के लिए कार्यवाहक मंत्री अब्दुल बकी हक्कानी के मुताबिक, "अफगानिस्तान के लोग शरिया कानून के मुताबिक पढ़ाई जारी रखेंगे. लड़के और लड़कियां अलग-अलग वातावरण में पढ़ेंगे."
उन्होंने कहा कि तालिबान "एक उचित और इस्लामी पाठ्यक्रम बनाना चाहता है जो हमारे इस्लामी, राष्ट्रीय और ऐतिहासिक मूल्यों के अनुरूप हो और दूसरी ओर अन्य देशों के साथ प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम हो."
लड़कियों और लड़कों को भी प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में अलग किया जाएगा जो कि पहले से ही गंभीर रूढ़िवादी अफगानिस्तान में आम था.
तालिबान ने महिलाओं के अधिकारों में हुई प्रगति का सम्मान करने का वचन दिया है, लेकिन सिर्फ इस्लामी कानून की उनकी सख्त व्याख्या के मुताबिक. सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या महिलाएं काम कर सकती हैं, सभी स्तरों पर शिक्षा प्राप्त कर सकती हैं और पुरुषों के साथ घुलने-मिलने में सक्षम हो सकती हैं.
लेकिन तालिबान की रीब्रांडिंग को संदेह के साथ देखा जा रहा है, कई लोगों ने सवाल किया कि क्या वह अपने वादों पर कायम रहेगा. रविवार को काबुल में हुई शिक्षा मंत्री की बैठक में कोई भी महिला मौजूद नहीं थी, जिसमें तालिबान के अन्य वरिष्ठ अधिकारी भी शामिल थे.
पिछली सरकार के दौरान शहर के एक विश्वविद्यालय में काम करने वाली एक लेक्चरर ने कहा, "तालिबान के उच्च शिक्षा मंत्रालय ने विश्वविद्यालयों के कामकाज को फिर से शुरू करने के लिए केवल पुरुष शिक्षकों और छात्रों से परामर्श किया है."
उन्होंने कहा कि यह "फैसला लेने में महिलाओं की भागीदारी की व्यवस्थित रोकथाम" और "तालिबान की प्रतिबद्धताओं और कार्यों के बीच एक अंतर" को दर्शाता है.
तालिबान ने 1996 से 2001 से अफगानिस्ता पर राज किया था. उस दौरान देश में शरिया यानी इस्लामिक कानून लागू कर दिया गया था और महिलाओं के काम करने, लड़कियों के पढ़ने और बिना किसी पुरुष के अकेले घर से बाहर जाने जैसी पाबंदियां लगा दी गई थीं. तालिबान के दोबारा सत्ता में आने पर बहुत से लोगों को वैसे ही कानून दोबारा लागू होने का भय है.
एए/सीके (एएफपी, एपी)
काबुल : अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट खुरासान के आत्मघाती बम हमलावर पर किए गए अमेरिकी ड्रोन हमले में 6 बच्चों समेत 9 आम नागरिकों की भी मौत हो गई है। बताया जा रहा है कि ये सभी 9 लोग एक ही परिवार के सदस्य थे। इस घटना के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की आईएसआईएस के खिलाफ कार्रवाई सवालों के घेरे में आ गई है।
अमेरिकी टीवी चैनल सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक एक ही परिवार के नौ सदस्य मारे गए हैं जिसमें छह बच्चे हैं। इससे पहले अमेरिका की सेना के सेंट्रल कमान ने कहा था कि वे आम नागरिकों की मौत का आकलन कर रहे हैं। इससे पहले काबुल में अमेरिकी ड्रोन हमले में उस वाहन को निशाना बनाया गया, जिसमें इस्लामिक स्टेट के एक सहयोगी संगठन के कई आत्मघाती हमलावर सवार थे। अधिकारियों ने बताया कि ये आत्मघाती हमलावर काबुल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर अमेरिकी सेना के सैन्य निकासी अभियान को निशाना बनाना चाहते थे।
तालिबान के कब्जे के बाद से बहुत अराजकता की स्थिति
यह हमला ऐसे समय पर किया गया है जब अमेरिका अफगानिस्तान से लोगों को निकालने के लिए एक ऐतिहासिक अभियान संचालित कर रहा है, जिसमें काबुल के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से हज़ारों लोगों को निकाला गया है। अफगानिस्तान में दो सप्ताह पहले तालिबान के कब्जे के बाद से बहुत अराजकता की स्थिति है। इस्लामिक स्टेट के एक सहयोगी संगठन द्वारा किये गए आत्मघाती हमले के बाद तालिबान ने हवाई क्षेत्र के आसपास सुरक्षा बढ़ा दी है। उस आत्मघाती हमले में 180 से अधिक लोग मारे गए थे। ब्रिटेन ने शनिवार को अपनी निकासी उड़ानें समाप्त कर दीं।
अमेरिका के सबसे लंबे युद्ध से सभी सैनिकों को वापस निकालने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन द्वारा निर्धारित मंगलवार की समयसीमा से पहले, अमेरिकी सैन्य मालवाहक विमानों ने रविवार को हवाई अड्डे से उड़ान जारी रखी। हालांकि, देश में रह गए अफगानिस्तानी नागरिकों को तालिबान के अपने पहले के दमनकारी शासन में वापस आने की चिंता है। इस आशंका को हाल ही में विद्रोहियों द्वारा देश में एक लोक गायक की गोली मारकर हत्या किये जाने के बाद बल मिला है। तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्ला मुजाहिद ने इससे पहले पत्रकारों को भेजे संदेश में कहा कि हमले में एक हमलावर को निशाना बनाया गया, जो विस्फोटकों से लदे वाहन को चला रहा था। मुजाहिद ने कुछ और जानकारियां दीं। (navbharattimes.indiatimes.com)
तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान की अपनी समस्या है, उसे खुद इस समस्या को सुलझाना होगा, ये हमारी समस्या नहीं है. इस तरह से पाकिस्तान को लेकर तालिबान ने अपना रुख साफ कर दिया है. तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने कहा है कि टीटीपी का मुद्दा पाकिस्तान का है और इसे पाकिस्तान सरकार को हल करना चाहिए न कि अफगानिस्तान को. हमारा रुख स्पष्ट है, हम किसी दूसरे देश की शांति को नष्ट करने के लिए अपनी जमीन का इस्तेमाल किसी को नहीं करने देंगे.Also Read - Pakistan: दाऊद इब्राहिम के करीबी कुख्यात गैंगस्टर फहीम मचमच की कोरोना से मौत
ये बातें मुजाहिद ने शनिवार को जियो न्यूज पर एक इंटरव्यू के दौरान कही. तालिबान की तरफ से आया ये बयान पाकिस्तान के मुंह पर एक करारा तमाचा भी है. इस जवाब से ये भी साफ हो गया है कि तालिबान पाकिस्तान की कठपुतली बनकर रहने वाला नहीं है, इसीलिए अब भविष्य में पाकिस्तान को भी तालिबान से उतना ही खतरा हो सकता है जितना किसी दूसरे देश को होगा.
जबीहुल्लाह ने इस इंटरव्यू के दौरान साफ कर दिया कि उसका तहरीक-ए-तालिबान, टीटीपी से कोई लेना-देना नहीं है. इसे पाकिस्तान, उसके उलेमा या फिर दूसरे धार्मिक नेता देखें. हमें इस बात से कोई मतलब नहीं है कि वो इस पर क्या फैसला लेते हैं और उनकी रणनीति क्या होती है. उन्होंने ये भी साफ कर दिया कि तालिबान अफगानिस्तान की जमीन पर किसी भी आतंकी गुट को दूसरे देश के खिलाफ हमले की इजाजत नहीं देगा. इस बात को लेकर बेहद स्पष्ट है और पहले भी ये दोहरा चुका है.
बता दें कि अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी के बाद पाकिस्तान में टीटीपी के सक्रिय होने का खतरा बढ़ गया था और उसे उम्मीद थी कि बेहतर संबंधों के चलते तालिबान टीटीपी से पाकिस्तान की पैरवी करेगा. (india.com)
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक रेडियो कार्यक्रम में पुष्टि की है कि उनकी पिछले साल 'तालिबान के प्रमुख' से बात हुई थी.
यह प्रमुख कौन था, इसके बारे में वो साफ़-साफ़ नहीं बता सके लेकिन जब रेडियो शो के होस्ट ने उनसे पूछा कि वो मुल्ला अब्दुल ग़नी बरादर की बात कर रहे हैं तो उन्होंने कहा कि 'हाँ मैंने उनसे बात की थी.'
पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप ने गुरुवार 26 अगस्त को कंज़रवेटिव टॉक रेडियो होस्ट ह्यू ह्यूवेट के कार्यक्रम में यह बात रखी.
उन्होंने बताया कि अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी सुरक्षाबलों के लिए साल 2020 में जब बातचीत जारी थी तो उन्होंने यह बातचीत की थी.
मुल्ला अब्दुल ग़नी बरादर तालिबान के सह-संस्थापक और उपनेता हैं जबकि संगठन के नेता हिब्तुल्लाह अख़ुंदज़ादा हैं.
ट्रंप की मुलाक़ात कैसे तय हुई
रेडियो कार्यक्रम में जब उनसे पूछा गया कि क्या उन्होंने मुल्ला बरादर से बात की थी और उन्होंने उनसे क्या कहा था? तो इस सवाल पर ट्रंप ने कहा कि उन्होंने मुल्ला बरादर को साफ़ और कड़े लफ़्ज़ों में कहा था कि अगर उन्हें (अमेरिका) नुक़सान पहुँचाया गया तो वो 'तालिबान को ऐसी चोट देंगे, जो घटना आज तक विश्व इतिहास में कभी नहीं हुई होगी.'
ट्रंप ने विस्तार से इस पर बात की और उन्होंने बातचीत की शुरुआत उत्तर कोरिया और किम जोंग उन से मुलाक़ात के मुद्दे से शुरू की.
उन्होंने कहा, "मेरी उनसे (तालिबान नेता) बातचीत तय कराई गई और लोग कह रहे थे कि आपको यह नहीं करना चाहिए. वैसे, मैंने उत्तर कोरिया के किम जोंग-उन के साथ भी बातचीत तय की थी. हमारे (अमेरिका-उत्तर कोरिया) बीच कोई परमाणु युद्ध नहीं हुआ था. मैं अगर राष्ट्रपति न होता तो ओबामा की बात सच होती और हमारे बीच परमाणु युद्ध हो चुका होता."
"राष्ट्रपति ओबामा ने मुझसे कहा था कि हम उत्तर कोरिया के साथ परमाणु युद्ध की ओर जा रहे हैं. मैंने कहा कि आपने कभी उनसे बातचीत की तो उन्होंने कहा 'नहीं'. मैंने कहा कि आपको नहीं लगता कि यह अच्छा आइडिया नहीं है."
"लेकिन कोई बात नहीं, मैं जानता था कि वो (ओबामा) उनसे बातचीत करना चाहते थे लेकिन वो कभी बात करने नहीं गए और मुझे लगता है कि दूसरा पक्ष (उत्तर कोरिया) भी ओबामा से बातचीत नहीं करना चाहता था. मैंने उस जाने-माने (तालिबान) प्रमुख से बातचीत की."
ट्रंप ने बातचीत में क्या कहा था
इसके बाद कार्यक्रम के होस्ट ह्यू ने उनसे पूछा कि क्या वो बरादर की बात कर रहे हैं तो उन्होंने कहा कि 'हां मैं उन्हीं की बात कर रहा हूं, जिनको एक प्रमुख के तौर पर जाना जाता है.'
ट्रंप ने कहा कि 'उस प्रमुख को लेकर कोई निश्चिंत नहीं था लेकिन मैं अब निश्चिंत हूं कि वो वही थे, जिनसे मैंने बात की थी और मुझे याद है कि मैंने उनसे जैसे बात की थी तो मैंने परिचय में भी हेलो कहा था और वो ज़ोर से कुछ चिल्लाए थे और उसके बाद मैंने उनसे बातचीत शुरू की थी.'
"मैंने कहा था कि सुनिए हम एक लंबी बातचीत शुरू करने जा रहे हैं और मैं एक बात कहना चाहता हूँ और मैं इसे आपके आगे फिर नहीं दोहराऊंगा. मैं यह कह रहा हूं कि अगर संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ कुछ भी बुरा हुआ, अगर आपने हमारे नागरिकों या किसी भी अमेरिकी नागरिक के साथ कुछ भी बुरा किया, या अगर आपने कुछ भी असामान्य किया तो आप जान लीजिए कि मैं आपको ऐसी चोट दूंगा कि विश्व इतिहास में कभी किसी ने किसी को नहीं मारा होगा. आपको ऐसी मार पड़ेगी कि कभी किसी देश ने और कभी किसी शख़्स ने विश्व इतिहास में किसी को ऐसे नहीं मारा होगा."
"इसके बाद हमने ख़ास जगहों और शहर में बातचीत शुरू की. मुझे याद है कि मैंने उनके शहर का नाम दोहराया था. इससे हमने बात शुरू की थी. इसके बाद उन्होंने मुझसे एक सवाल पूछा था और मैंने उनसे कहा था कि हां पूछिए. बस वही एक सवाल उन्होंने किया था."
गिलगित से 32 साल पहले उड़ान भरने वाला वो विमान आख़िर कहां ग़ायब हो गया?
तालिबान से बातचीत में भारत के सामने दुविधा क्या है?
"मैंने बातचीत के दौरान कहा कि हम 21 सालों के बाद (अफ़ग़ानिस्तान) छोड़ने जा रहे हैं. और जब हम छोड़ेंगे तो आपको हमें अकेला छोड़ना होगा और हम बड़े सम्मान और बड़े गौरव के साथ जा रहे हैं. और हम इस स्थिति का ध्यान रखने जा रहे हैं. हम अपना समय लेंगे. हमने एक मई की तारीख़ तय की है लेकिन वे (तालिबान) कुछ शर्तें लागू करवाने से चूक गए. मैं एक मई को बाहर आना चाहता था. मैंने बातचीत में कहा था कि हम एक मई से पहले छोड़ देंगे. लेकिन उन्होंने शर्तों को तोड़ा और उसके बाद हमने उन पर बम बरसाए और तेज़ी से वार किया."
"इसके बाद उन्होंने कहा कि हम उन शर्तों पर सहमत हों जाएं जो वो कह रहे हैं लेकिन मैंने कहा कि नहीं क्योंकि आप पहले ही पिछली शर्तों पर सहमत थे. हमने उन्हें अच्छे से पकड़ रखा था. वे काबुल में नहीं थे. आप देखिए कि उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान पर कहां से क़ब्ज़ा करना शुरू किया था, जहां पर मैंने उन्हें छोड़ा था. जैसे ही मैं गया वे खूंखार होना शुरू हो गए क्योंकि वे दूसरे राष्ट्रपति से सौदा कर रहे थे."
'राष्ट्रपति कार्यालय की ताक़त का हुआ एहसास'
"मुझे यह एकबार फिर एहसास हुआ कि एक राष्ट्रपति कार्यकाल कितना महत्वपूर्ण और ताक़तवर होता है, जब तक यह नहीं हुआ था तब तक मुझे एहसास नहीं था कि राष्ट्रपति का कार्यालय कितना महत्वपूर्ण है क्योंकि बीते हफ़्ते से बहुत तेज़ी से कुछ डरावने और बेवकूफ़ाने फ़ैसले लिए गए हैं."
इसके बाद ट्रंप ने अमेरिकी सेना के पहले ही देश छोड़ देने की कड़ी आलोचना की. उन्होंने कहा कि लोगों के निकलने और अपने साज़ो सामान को लाने से पहले ही सेना को जाने देने की अनुमति दे देना ख़राब फ़ैसला था. पूर्व राष्ट्रपति ने बताया कि सेना का सामान ही 83 अरब डॉलर का था.
उन्होंने कहा कि उन सामान को कोई इस्तेमाल करने के लिए नहीं समझ सकता है और हज़ारों गाड़ियों को ऐसे ही छोड़ दिया गया.
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के इस इंटरव्यू के बाद अमेरिकी मीडिया में उन पर सवाल भी उठ रहे हैं. मीडिया में कई पत्रकार यह सवाल खड़े कर रहे हैं कि जब उन्हें बरादर का नाम ही नहीं पता था तो उन्होंने किससे बात की थी.
इसके अलावा उत्तर कोरिया के साथ परमाणु युद्ध टाल देने जैसे उनके दावों का भी मखौल उड़ाया जा रहा है क्योंकि उनका दावा था कि उन्होंने किम जॉन्ग उन से मुलाकात करके यह किया था.
इस इंटरव्यू के हवाले से ट्रंप की इस बात को लेकर भी आलोचना हो रही है कि क्या वो आज तक अमेरिकी राष्ट्रपति और उसके कार्यालय की ताक़त के बारे में नहीं जानते थे. इसके अलावा वो इंटरव्यू के दौरान कभी राष्ट्रपति की ताक़त जानने और कभी न जानने की दोहरी बातें कह रहे हैं. (bbc.com)
टोक्यो, 29 अगस्त | टोक्यो पैरालम्पिक में महिला टेबल टेनिस एकल क्लास 4 वर्ग में रजत पदक जीतने वाली पैरा एथलीट भाविना पटेल ने कहा है कि भविष्य में लोग उन्हें जब भी चीनी खिलाड़ी जोउ यिंग के खिलाफ खेलते देखेंगे तो इन्हें अलग भाविना नजर आएगी। विश्व रैंकिंग में 12वें नंबर की खिलाड़ी भाविना को फाइनल मुकाबले में यिंग के हाथों 19 मिनट तक चले मुकाबले में 7-11, 5-11, 6-11 से हार का सामना करना पड़ा।
भाविना ने कहा, "मुझे बहुत खुशी है कि मैंने पदक जीता लेकिन साथ ही थोड़ा निराश हुई हूं। मैं थोड़ी नर्वस हो गई थी। हालांक मैं आप सभी को आश्वस्त करती हूं कि जब भी भविष्य में मैं यिंग का सामना करूंगी तो आप एक अलग भाविना देखेंगे। उन्होंने मुझसे बेहतर खेला।"
भाविना के पति निकुल ने कहा, "हमारी शादी को चार वर्ष हो गए हैं। मैं यह कहना चाहता हूं कि वह मुझसे ज्यादा मजबूत हैं। रियो से पहले उनके दस्तावेज को लेकर कोई परेशानी थी जिसके कारण उन्होंने अवसर मिस कर दिया। हम दोनों निराश थे लेकिन मैं बहुत खुश हूं जिस तरह भाविना ने वापसी की।"
भाविना ने कहा, "अगर ऐसा नहीं होता तो मैं यहां पदक नहीं जीत पाता। मैं जिस दौर से गुजरी मैं नहीं चाहती कि जो लोग दिव्यांग है उन्हें इन चीजों का सामना करना पड़े।"
भारतीय पैरालम्पिक समिति (पीसीअई) की अध्यक्ष दीपा मलिक ने भी भाविना की जीत पर खुशी जाहिर की। (आईएएनएस)
लॉस एंजिल्स, 29 अगस्त | डिक्सी फायर, इस साल अमेरिका में सबसे बड़ी जंगल की आग और कैलिफोर्निया के इतिहास में दूसरी सबसे बड़ी आग है, जो अब तक 48 प्रतिशत नियंत्रण के साथ 756,000 एकड़ से अधिक को झुलसा चुकी है। कैलिफोर्निया डिपार्टमेंट ऑफ फॉरेस्ट्री एंड फायर प्रोटेक्शन (सीएएल फायर) के अनुसार, आग, जो 14 जुलाई को पैराडाइज से लगभग 10 मील उत्तर पूर्व में शुरू हुई थी, शनिवार की सुबह पांच काउंटियों में 756,768 एकड़ में फैल गई है।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने शनिवार को सीएएल फायर के हवाले से कहा कि मध्य से उच्च ऊंचाई तक नमी की रिकवरी खराब थी, जिससे आग पूरी रात सक्रिय रूप से जलती रही।
कुछ निकासी आदेशों को चेतावनी में कम कर दिया गया है और कुछ चेतावनियों को हटा दिया गया है, जिससे कुछ निवासियों को अपने घरों और व्यवसायों में लौटने की इजाजत मिल गई है।
44 दिनों से सक्रिय डिक्सी फायर ने 1,275 संरचनाओं को नष्ट कर दिया और अभी भी बट्टे, प्लुमास, तेहामा, लासेन और शास्ता काउंटी में 11,833 संरचनाओं को खतरा हुआ।
अब तक तीन दमकलकर्मी घायल हुए हैं जिनमें किसी नागरिक के हताहत होने या घायल होने की सूचना नहीं है। (आईएएनएस)
काबुल, 29 अगस्त | तालिबान ने काबुल के निवासियों से सरकारी वाहन, हथियार और गोला-बारूद उनके पास सौंपने का निर्देश दिया है। यह जानकारी तालिबान के प्रवक्ता जैबिदुल्लाह मुजाहिद के हवाले से मिली है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने एक ट्विटर पोस्ट में मुजाहिद के हवाले से कहा कि काबुल में रहने वाले सभी लोगों को 'वाहन, हथियार और गोला-बारूद या किसी भी अन्य चीजों सहित सभी सरकारी संपत्ति वापस करने के लिए' सूचित किया जाता है।
तालिबान की सरकारी संपत्ति वापस करने के आह्वान का समर्थन करने के लिए, नेताओं ने अपने उपदेशों में लोगों से सरकारी संपत्ति को सौंपने का भी अनुरोध किया है, अगर उन्होंने संपत्ति अपने पास रखी है।
तालिबान के नेताओं ने सरकारी कर्मचारियों से अपने कार्यालयों में लौटने और सामान्य रूप से अपना काम फिर से शुरू करने का भी अनुरोध किया है। (आईएएनएस)
काबुल, 29 अगस्त | संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (यूएनएचसीआर) ने अनुमान लगाया है कि तालिबान के कब्जे के मद्देनजर अगले चार महीनों में करीब 5,00,000 अफगानों के युद्धग्रस्त देश छोड़ने की संभावना है। टोलो न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार, शनिवार को जारी एक बयान में यूएनएचसीआर ने कहा कि अगस्त के मध्य में तालिबान के हाथों पूर्व सरकार के पतन के बाद राजनीतिक अनिश्चितता लोगों को बड़े पैमाने पर प्रवास शुरू करने के लिए मजबूर करेगी।
उप उच्चायुक्त केली टी. क्लेमेंट्स ने कहा, "हालांकि हमने इस समय बड़ी संख्या में अफगानों का पलायन नहीं देखा है, लेकिन अफगानिस्तान के अंदर की स्थिति किसी भी उम्मीद से कहीं अधिक तेजी से विकसित हुई है।"
यूएनएचसीआर ने पड़ोसी देशों से अफगान शरणार्थियों के लिए अपनी सीमाएं खुली रखने को कहा।
इस बीच, विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफपी) ने संयुक्त राष्ट्र से कहा है कि वह जरूरतमंद अफगानों के लिए भोजन उपलब्ध कराने के लिए संगठन को 12 मिलियन डॉलर प्रदान करे।
कई निवासियों का कहना है कि राजनीतिक अनिश्चितता, बेरोजगारी और सुरक्षा के मुद्दों ने उन्हें देश छोड़ने के लिए मजबूर किया है।
हबीबुल्लाह का परिवार उन हजारों परिवारों में से एक है जो काबुल हवाईअड्डे के बाहर इंतजार कर रहे हैं और देश छोड़ने की उम्मीद कर रहे हैं।
हबीबुल्ला ने टोलो न्यूज को बताया, "मैंने विदेशियों के साथ चार साल तक काम किया, लेकिन अब मैं बेरोजगार हूं। मैंने अफवाहें सुनीं कि तालिबान विदेशियों के साथ काम करने वाले लोगों को खोज रहे हैं और उन्हें मार रहे हैं। मुझे देश छोड़ना होगा।"
हबीबुल्लाह के बेटे एजातुल्लाह ने कहा, "बेरोजगारी और सुरक्षा खतरों ने हमें अपनी जान बचाने के लिए देश छोड़ने के लिए मजबूर किया है।"
कई अफगान महिलाओं का कहना है कि वे अनिश्चित भविष्य का सामना कर रही हैं। उनका कहना है कि उन्होंने पढ़ाई की है और खूब मेहनत की है लेकिन पता नहीं उनका क्या होने वाला है।
काबुल निवासी रहीला ने कहा, "हमने चुनौतियों को स्वीकार किया और अफगानिस्तान में पढ़ाई की। अब हमें नहीं पता कि हमारा क्या होगा। मुझे देश में लड़कियों के भविष्य की चिंता है।" (आईएएनएस)
काबुल, 29 अगस्त | अमेरिका और गठबंधन बलों ने काबुल हवाईअड्डे के सैन्य खंड के प्रवेश द्वार सहित तीन फाटकों का नियंत्रण तालिबान को सौंप दिया है। समूह के एक अधिकारी ने रविवार को स्थानीय मीडिया को इसकी जानकारी दी। समाचार एजेंसी सिन्हुआ के अनुसार, अधिकारी इनहामुल्लाह सामानगनी ने टोलो न्यूज से कहा, "अमेरिकी सैनिकों का हवाई अड्डे के एक छोटे से हिस्से पर नियंत्रण है, जिसमें एक ऐसा क्षेत्र भी शामिल है, जहां हवाई अड्डे का रडार सिस्टम स्थित है।"
तालिबान ने करीब दो हफ्ते पहले हवाईअड्डे के मुख्य द्वार पर विशेष बलों की एक यूनिट तैनात की थी।
उन्होंने कहा, हम हवाईअड्डे की सुरक्षा और तकनीकी जिम्मेदारी संभालने के लिए तैयार हैं।
अमेरिका ने तालिबान को हवाईअड्डे के फाटक का नियंत्रण ऐसे समय सौंपा है, जब कुछ दिन पहले 26 अगस्त को आईएस-के आतंकवादियों ने सुविधा के पूर्वी द्वार आत्मघाती हमला किया था, जिसमें 170 अफगान और 13 अमेरिकी सैनिक मारे गए थे।
इससे पहले तालिबान के एक अधिकारी ने कथित तौर पर कहा था कि समूह के विशेष बल, और तकनीकी पेशेवरों और योग्य इंजीनियरों की एक टीम अमेरिकी बलों के जाने के बाद हवाई अड्डे के सभी प्रभार लेने के लिए तैयार हैं।
सैन्य विमानों समेत दर्जनों विमानों ने शनिवार देर रात से हवाईअड्डे से उड़ान भरी।
राष्ट्रपति जो बाइडेन द्वारा निर्धारित समय सीमा के अनुसार, सभी अमेरिकी और गठबंधन बलों के 31 अगस्त को देश छोड़ने की उम्मीद है। (आईएएनएस)