-रजनीश कुमार
दुनिया में दो दामादों की चर्चा आजकल ज़ोरों पर है. तु्र्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन के 42 साल के दामाद बेरात अलबायराक ने ख़ुद ही वित्त मंत्री से इस्तीफ़ा दे दिया तो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दामाद जैरेड कशनर जल्द ही व्हाइट हाउस छोड़ने पर मजबूर होंगे.
बेरात और जैरेड के बीच की दोस्ती भी चर्चा में रही है. बेरात की दोस्ती राष्ट्रपति ट्रंप की बेटी इवांका से भी है. कहा जाता है कि अर्दोआन अपने दामाद की दोस्ती के बल पर ही ट्रंप प्रशासन से डील करते थे.
बेरात का वित्त मंत्री से इस्तीफ़े को अमेरिका में जो बाइडन के आने से भी जोड़ा जा रहा है. जैरेड कशनर राष्ट्रपति ट्रंप के सीनियर सलाहकार हैं. ट्रंप की विदेश नीति में जैरेड की अहम भूमिका मानी जाती है.
अमेरिकी कांग्रेस में तुर्की को लेकर ट्रंप की नीति की आलोचना भी होती रही है. इसी साल एक टीवी इंटरव्यू में अर्दोआन ने बेरात और कशनर की दोस्ती को अमेरिका और तुर्की के बीच 'बैकडोर डिप्लोमैसी' कहा था.
तुर्की को लेकर ट्रंप की नीतियां चौंकाने वाली रही हैं. उन्होंने पहले के रिपब्लिकन राष्ट्रपति से बिल्कुल अलग लाइन ली. ट्रंप ने तुर्की को लेकर दो बार हैरान किया. पहली बार तब जब ट्रंप ने उत्तरी सीरिया से अमेरिकी सैनिकों को बुलाने का फ़ैसला किया.
ट्रंप प्रशासन
दूसरी बार ट्रंप ने अमेरिका समर्थित कुर्दिश लड़ाकों पर तुर्की के सैनिकों को हमले की अनुमति दी तो पूरी दुनिया हैरान रह गई थी.
ट्रंप प्रशासन ईरान को प्रतिबंधों को कड़ा से कड़ा करता गया लेकिन तुर्की के सरकारी बैंकों ने इन प्रतिबंधों का उल्लंघन किया तो अमेरिका ने कोई सज़ा नहीं दी. यहां तक कि तुर्की में रूसी मिसाइल डिफेंस सिस्टम लगाए जाने पर भी ट्रंप प्रशासन चुप रहा.
ट्रंप के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन आर बोल्टन भी कह चुके हैं कि ट्रंप अक्सर निजी रिश्तों को राष्ट्रीय हितों के आड़े आने देते थे. बोल्टन ने कहा था कि ट्रंप पर्सनल रिलेशनशिप और नेशनल रिलेशनशिप में कन्फ्यूज रहते थे.
बोल्टन ने कहा था कि रूस से हथियारों की ख़रीद के मामले में ट्रंप तुर्की पर प्रतिबंध लगाने को लेकर अनिच्छुक थे.
न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार रूसी मिसाइल, बैंकों पर प्रतिबंध के साथ अन्य मामलों में अर्दोआन जब भी फँसे अपने दामाद बेरात और ट्रंप के कारोबार के टर्किश साझेदार मेहमत अली यालसिन्दोग को कशनर के ज़रिए व्हाइट हाउस भेजा.
ट्रंप और अर्दोआन की राजनीति
अप्रैल में बेरात ट्रंप इंटरनेशनल होटल में आयोजित एक कॉन्फ़्रेन्स में आए थे. इस कॉन्फ़्रेंस का आयोजन ट्रंप के टर्किश कारोबारी साझेदार मेहमत अली ने किया था.
इसी दौरे में जैरेड कशनर ने राष्ट्रपति ट्रंप से ओवल ऑफिस में बेरात की मुलाक़ात कराई थी और तुर्की रूस से हथियारों की ख़रीद के मामले में प्रतिबंध से बच गया था.
ट्रंप और अर्दोआन की जैसी राजनीति है, उसमें वो स्वाभाविक साझेदार नहीं हो सकते. अर्दोआन इस्लामिक राजनीति के चैंपियन हैं और उन्हें लगता है पश्चिम का पतन हो रहा है. दूसरी तरफ़ ट्रंप आक्रामक राष्ट्रवादी हैं और मुसलमानों को लेकर कई बार पूर्वाग्रह से ग्रसित रहे हैं.
यहां तक कि अर्दोआन के सबसे बड़े दुश्मनों से ट्रंप की दोस्ती है. इसमें सऊदी अरब, मिस्र, यूएई और इसराइल शामिल हैं. ट्रंप के दामाद जैरेड कशनर की दोस्ती सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन-सलमान से भी है.

ट्रंप टावर इस्तांबुल में भी है और ट्रंप 2012 में उसका उद्घाटन करने गए. इसी दौरे में ट्रंप ने कहा था, "मेरी बेटी को तुर्की बहुत पसंद है. उसे इस्तांबुल भी बहुत भाता है. वो यहां हमेशा आकर ख़ुश होती है और यहां कई बार आ चुकी है."
'रिश्ता महज़ राजनीतिक नहीं है'
जिस दामाद से अर्दोआन को इतना कुछ मिल रहा था, वो सरकार से बाहर क्यों हुए? क्या अर्दोआन के परिवार के भीतर सब कुछ ठीक है? अब तक अर्दोआन के दामाद को उनका राजनीतिक उत्तराधिकार समझा जा रहा था. बेरात की शादी अर्दोआन की बड़ी बेटी एसरा से हुई है.
जेएनयू में मध्य-पूर्व मामलों के प्रोफ़ेसर एके पाशा कहते हैं कि अर्दोआन को पता है कि बाइडन प्रशासन फैमिली बेस्ड प्रशासन नहीं होगा.
वह कहते हैं, "ट्रंप के साथ अर्दोआन उनके दामाद जैरेड कशनर और बेटी इवांका के ज़रिए अपने दामाद की दोस्ती के दम पर साध लेते थे लेकिन अब ऐसा नहीं होने जा रहा है. अब बाइडन प्रशासन में उनके दामाद काम नहीं आएंगे."
इस साल की शुरुआत में बेरात से उनके ससुर यानी राष्ट्रपति अर्दोआन से रिश्तों को लेकर सवाल किया गया था तो उन्होंने तुर्की के सरकारी प्रसारक टीआरटी से कहा था, "ये रिश्ता महज़ राजनीतिक नहीं है. हमारा रिश्ता आदर्श और आत्मीय है."
लेकिन इस बयान के छह महीने बाद ही बेरात का राजनीतिक करियर और रिश्ता दोनों ही नेपथ्य में जाता दिख रहा है.
अर्थव्यवस्था की हालत
बेरात ने आठ नवंबर की शाम इंस्टाग्राम पर एक पोस्ट लिखकर अपने इस्तीफ़े की घोषणा की थी. उनका इस्तीफ़ा तब आया, जब तुर्की की अर्थव्यवस्था में लगातार गिरावट जारी है. बेरात ने अपने इस्तीफ़े को स्वास्थ्य कारणों से जोड़ा है.
बेरात के इस्तीफ़े से एक दिन पहले ही तुर्की के केंद्रीय बैंक के प्रमुख को अर्दोआन ने हटा दिया था. आलोचकों का कहना है कि तुर्की की ग़लत आर्थिक नीतियों के कारण अर्थव्यवस्था की हालत बद से बदतर होती गई. तुर्की की मुद्रा लीरा में इस साल 30 फ़ीसदी की गिरावट आई है.
अर्दोआन ने अपने दामाद के इस्तीफ़े के बाद लुत्फ़ी इलवान को वित्त मंत्री बनाया है. लुत्फ़ी पूर्व उप-प्रधानमंत्री थे. उन्होंने अर्थशास्त्र की पढ़ाई भी की है और अब वो 740 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था वाले तुर्की के वित्त मंत्री हैं.
ये भी कहा जा रहा है कि अमेरिका में सत्ता परिवर्तन को देखते हुए तुर्की में इस तरह की हलचल है. जो बाइडन के बारे में कहा जाता है कि वो तुर्की के मामले में सख़्ती से पेश आएंगे और किसी बैकडोर डिप्लोमैसी को तवज्जो नहीं देंगे.
हालाँकि, अर्दोआन ने बाइडन को अब तक जीत बधाई नहीं दी है. यह भी कहा जा रहा है कि बाइडन के आने से तुर्की की अर्थव्यवस्था को और झटका लग सकता है जिससे बचने के लिए अर्दोआन वित्त मंत्रालय का ज़िम्मा और मज़बूत हाथों में सौंप रहे हैं.
बेरात का इस्तीफ़ा
अर्दोआन ने पूर्व वित्त मंत्री नैसी अगबाल को केंद्रीय बैंक का प्रमुख बनाया है. नैसी अर्दोआन के दामाद की नीतियों की कड़े आलोचक रहे हैं. अपने इस्तीफ़े में बेरात ने जैसी भाषा का इस्तेमाल किया है, उससे लगता है कि वो निराश थे.
उन्होंने अपने इस्तीफ़े में अर्दोआन का ज़िक्र भर किया है. बेरात ने इस्तीफ़े में अपने सहकर्मियों, अल्लाह और मुसलमानों को शुक्रिया कहा है लेकिन अपने ससुर को शुक्रिया नहीं कहा. यहां तक कि उन्होंने अपनी पोस्ट में पार्टी के भीतर की कलह की ओर भी संकेत किए.
उन्होंने लिखा है कि दोस्तों-दुश्मनों और सही-ग़लत के बीच फ़र्क़ करना मुश्किल हो गया है.
42 साल के बेरात ने न्यूयॉर्क की पेस यूनिवर्सिटी से बिज़नेस की पढ़ाई की है. तुर्की की संसद में जाने से पहले बेरात टर्किश कंपनी के सीईओ थे. 2015 में वो अर्दोआन सरकार में ऊर्जा मंत्री बने और साल 2018 में वित्त मंत्री बना दिए गए.
लेकिन वित्त मंत्री बनने के बाद उनकी आर्थिक नीतियों की काफ़ी आलोचना हुई. दूसरी तरफ़ अर्दोआन का वित्त मंत्रालय और न्यायपालिका में दख़ल भी बढ़ता जा रहा था. इससे निवेशकों और कारोबारियों का भरोसा कम हो रहा था.
अर्दोआन के बाद सबसे ताक़तवर
विदेशी निवेश में गिरावट आ रही थी और महंगाई, बेरोज़गारी बढ़ती जा रही थी. ऐसे में मध्य वर्ग के बीच अर्दोआन की लोकप्रियता भी प्रभावित हुई. इसी साल बेरात ने तुर्की की मुद्रा लीरा में सुधार लाने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार से खर्च किया.
हालांकि इससे लीरा की सेहत में कोई मज़बूती नहीं आई. 2017 में एक अमेरिकी डॉलर 3.5 लीरा में मिल रहा था जो आज की तारीख़ में नौ लीरा के आसपास पहुंच गया है. विपक्षी पार्टियां अर्थव्यवस्था की बुरी हालत को देखते हुए समय से पहले चुनाव की मांग करने लगी थीं.
तुर्की के विपक्षी दल के एक पूर्व सांसद अयकान एर्दमीर ने कहा कि बेरात की गिनती ऐसे अयोग्य मंत्री के तौर पर होगी जिसने तुर्की की अर्थव्यवस्था को बर्बाद करके रख दिया.
विपक्षी नेताओं ने कहना शुरू कर दिया था कि अर्दोआन या तो अपने दामाद को चुनें या चुनाव हारने की तैयारी करें. बेरात तुर्की की सरकार में अर्दोआन के बाद सबसे ताक़तवर माने जाते थे.
लेकिन उनके वित्त मंत्री बनने के बाद से तुर्की की मुद्रा लीरा और विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट थमी नहीं. अर्दोआन की जस्टिस एंड डिवेलपमेंट पार्टी यानी एकेपी में भी अर्दोआन के बाद कोई था तो वो बेरात ही थे.
राजनीतिक संघर्ष और पार्टी के भीतर कलह
बेरात के कद में हैरान करने वाला उछाल आया और उसी तरह की नाटकीय गिरावट भी.
फ़ाइनैंशियल टाइम्स अख़बार से एमआईटी में तुर्की मूल के प्रोफ़ेसर और व्हाइ नेशंन्स फेल के सह-लेखक दारोन एकेमोगलु ने बेरात के इस्तीफ़े को लेकर कहा है, "अपने ससुर के कारण बेरात इस सरकार में काफ़ी ताक़तवर थे. उन्होंने एक ऐसी टीम बनाई थी जो स्वतंत्र रूप से काम करती थी."
इसी अख़बार से सरकार के एक पूर्व अधिकारी ने कहा है, "सामान्य लोकतंत्र में हर कोई कैबिनेट के झगड़े, राजनीतिक संघर्ष और पार्टी के भीतर की कलह को लेकर बात करता है लेकिन तुर्की में परिवार की कलह पर बात हो रही है. इसी से पता चलता है कि तुर्की किस तरह का देश बन रहा है."
अर्दोआन तुर्की के लोकप्रिय फायरब्रैंड नेता हैं. वो पिछले क़रीब 20 सालों से 8.3 करोड़ आबादी वाले तुर्की पर शासन कर रहे हैं. उनके शासनकाल में तुर्की का लोकतंत्र अधिनायकवाद की तरफ़ बढ़ रहा है.
सरकार में अर्दोआन के दामाद की एंट्री को भी इसी राजनीति का हिस्सा माना जाता है. 2001 में एकेपी पार्टी बनी और अर्दोआन एक सह-संस्थापक थे. शुरुआत में इस पार्टी की विचारधारा इतनी संकीर्ण नहीं थी.
हालांकि, इस्तांबुल के पूर्व मेयर अर्दोआन ने अपनी राजनीति की शुरुआत इस्लामिक सियासत से ही की थी. 2002 के चुनाव में अर्दोआन की नई नवेली पार्टी सत्ता में आई तो तुर्की के सेक्युलर धड़ों और वामपंथियों के लिए चौंकाने वाला था.
लेकिन एकेपी को तुर्की के ग़रीबों और रूढ़िवादियों से जमकर समर्थन मिला. अर्दोआन ने महिलाओं के हिजाब पहनने पर प्रतिबंध को हटाने की बात कही थी. ऐसे मुद्दों ने तुर्की के रूढ़िवादियों को प्रभावित किया.
इसके अलावा अर्दोआन ने कुर्दिश भाषा के इस्तेमाल को लेकर लगी पाबंदी में ढील दी तो उन्हें कुर्दों का भी समर्थन मिला. अर्दोआन ने सरकार और कुर्दिश लड़ाकों के बीच बातचीत भी शुरू करवाई. अर्थव्यवस्था में भी तेज़ी आई.
एकेपी की सरकार ने इन्फ़्रास्ट्रक्चर और हेल्थ सेक्टर में जमकर निवेश किया. 2007 में तुर्की में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश शीर्ष पर था और 19 अरब डॉलर की एफडीआई आई. अर्दोआन के साथ उनके परिवार के सदस्य भी कई मौक़ों पर दिखने लगे थे.
ख़ास कर विदेशी दौरों में सार्वजनिक कार्यक्रमों के दौरान उनके परिवार के सदस्य दिख जाते थे. लेकिन परिवार वाले कभी सरकार में शामिल नहीं हुए. 10 साल पहले मीडिया में अटकलें तेज़ हुई थीं कि अर्दोआन अपनी छोटी बेटी सुमेय्यी को पेड सलाहकार बना सकते हैं.
लेकिन तब अर्दोआन ने इसे ख़ारिज करते हुए कहा था कि वो इन फ़र्ज़ी मीडिया रिपोर्ट्स पर भरोसा नहीं करते हैं. तब ऐसा लगता था कि अर्दोआन सरकार में अपने परिवार को शामिल करने को लेकर अनिच्छुक हैं.
फ़ाइनैंशियल टाइम्स से एकेपी के एक पूर्व सीनियर पदाधिकारी ने कहा कि अर्दोआन के नेतृत्व के तेवर में परिवर्तन में सत्ता से बेदख़ल होने के डर की अहम भूमिका रही है.
उन्होंने कहा, "अर्दोआन दबंग की तरह आगे बढ़ रहे हैं और आंतरिक बहस को लेकर पूरी तरह से अनिच्छुक रहे हैं. अर्दोआन और उनकी पार्टी के तेवर में परिवर्तन एक साथ हुआ और यह परिवर्तन अर्दोआन के प्रभुत्व के बढ़ने की कहानी है."
2013 में ग़ाज़ी पार्क के बाहर विशाल विरोध प्रदर्शन हुआ. तब लाखों लोग सड़क पर उतर आए थे. सभी प्रदर्शनकारी नारे लगे रहे थे कि- रेचेप तैय्यप अर्दोआन इस्तीफ़ा दो. प्रदर्शन के कुछ महीनों बाद अर्दोआन का आंतरिक धड़ा भ्रष्टाचार के मामले जाँच के दायरे में आया.
अर्दोआन के मन में तुर्की की आर्मी को लेकर भी डर सताता रहा है कि कहीं तख्तापलट न हो जाए. 2016 में एक कोशिश ऐसी हुई भी लेकिन नाकाम रही. कहा जाता है कि ऐसे में अर्दोआन को लगा कि परिवार के अलावा किसी और पर भरोसा नहीं किया जा सकता है.
इन सालों में अर्दोआन के ज़्यादातर पुराने सहयोगी जो कि सरकार में शीर्ष स्थानों पर थे, उन्हें अलग-थलग कर दिया गया या सरकार छोड़कर बाहर होना पड़ा.
अब्दुल्लाह गुल एकेपी के सह-संस्थापक थे और वो 2014 तक राष्ट्रपति रहे लेकिन अर्दोआन के राष्ट्रपति बनने के बाद उन्हें सरकार से जाना पड़ा.
अली बाबाकन ने 2000 के दशक में तुर्की की अर्थव्यवस्था के लिए काम किया और उन्होंने ही ईयू में तुर्की को शामिल कराने के लिए वार्ता शुरू की थी. इन्हें भी 2015 में कैबिनेट से जाना पड़ा.
अहमत दवुतोगलु प्रधानमंत्री रहे लेकिन उन्हें भी 2016 में अर्दोआन से अनबन के कारण जाना पड़ा. इसी तरह से मेरिल लिंच के पूर्व बैंकर मेहमत सिमसेक को भी अर्दोआन से विवाद के कारण राजनीति छोड़नी पड़ी.
2016 में अर्दोआन के ख़िलाफ़ सेना के नाकाम तख़्तापलट के बाद तुर्की की राजनीतिक व्यवस्था ही बदल दी गई. अर्दोआन ने तुर्की में प्रेजिडेंशियल सिस्टम लागू कर दिया और इस व्यवस्था में उन्हें बेशुमार ताक़त मिल गई.
इस दौरान 95,000 लोगों को जेल में बंद किया गया और 130,000 लोगों को बर्खास्त या निलंबित कर दिया गया. सैकड़ों पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को भी गिरफ़्तार किया गया. आज की तारीख़ में अर्दोआन की सरकार में केवल उनके वफ़ादार हैं.
बेरात अलबायारक की अर्दोआन की बड़ी बेटी एसरा से शादी 2004 में हुई थी. उन्हें 2018 में दुनिया की 19वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का वित्त मंत्री बनाया गया. तब बेरात की उम्र महज़ 40 साल हो रही थी. तुर्की के विपक्षी पार्टी उनके दामाद को लेकर मज़ाक भी उड़ाते थे.
एकेपी में भाई-भतीजावाद के आरोप भी तब से लगने लगे. विदेशी निवेशकों ने बेरात पर आर्थिक समझ नहीं होने का भी आरोप लगाया. लोगों के बीच भी बेरात की छवि कोई अच्छे वित्त मंत्री की नहीं रही.
पार्टी के भीतर भी यही कहा जाता था कि दामाद होने के कारण उन्हें यह पद मिला है.
यूरोप के मीडिया रिपोर्ट्स में कहा जाता था कि अर्दोआन ने वित्त मंत्री के तौर पर अपने दामाद को इसलिए भी पसंद किया क्योंकि उन्हें अंग्रेज़ी बहुत अच्छी आती थी और साथ ही अमेरिका में न्यूयॉक की पेस यूनिवर्सिटी से एमबीए किया है.
इसके साथ ही बेरात परिवार के सदस्य थे और अर्दोआन उन पर भरोसा कर सकते थे. 66 साल के अर्दोआन अब भी तुर्की में सबसे लोकप्रिय नेता हैं और उनकी लोकप्रियता इसी तरह बनी रही तो वो 2033 तक सत्ता में बने रह सकते हैं.
बेरात के पिता यानी अर्दोआन के समधी इस्लामिक लेखक और बुद्धिजीवी हैं. वो अर्दोआन को दशकों से जानते थे. बेरात ने कैबिनेट में रहते हुए मीडिया और न्यायपालिका में भी अच्छी पैठ बनाई.
पार्टी के भीतर ऐसी चर्चा आम थी कि अर्दोआन के दामाद का दखल हर जगह है. बेरात की गृह मंत्री सुलेमान सोयलु से अनबन की चर्चा भी आम थी. सुलेमान को बेरात का प्रतिद्वन्द्वी माना जाता था.
अल-मॉनिटर की रिपोर्ट के अनुसार बेरात के इस्तीफ़े की कई वजहें हैं. इस रिपोर्ट के अनुसार बेरात केंद्रीय बैंक में नए प्रमुख की नियुक्ति से नाराज़ थे.
इसके अलावा ये भी कहा जा रहा है कि एकेपी के दर्जनों सांसदों ने बेरात को लेकर विपक्षी पार्टी में शामिल हो जाने की धमकी दी थी. एक बात यह भी कही जा रही है कि अर्दोआन वित्त मंत्रालय के नेतृत्व को बदलना चाहते थे.
अल-मॉनिटर की रिपोर्ट के अनुसार बेरात और अर्दोआन के बीच मतभेद लगातार बढ़ रहे थे. इस रिपोर्ट में कहा गया है, "एकेपी सांसदों का कहना है कि बेरात ने अर्दोआन का भरोसा खो दिया था."
अर्दोआन जिस ऑटोमन साम्राज्य के गर्व की वापसी चाहते हैं, उस साम्राज्य में भी दामादों की भूमिका सराहनीय नहीं रही है. इसी तरह से आधुनिक इतिहास में भी तुर्की के पड़ोसी देश इराक़ के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन और मिस्र के राष्ट्रपति गमाल अब्देल नासीर के दामादों की भूमिका बहुत सार्थक नहीं रही. इन दोनों के दामाद भी राजनीति और सैन्य मामलों में सक्रिय रहे थे.
खाड़ी के कई देशों में भारत के राजदूत रहे तलमीज़ अहमद कहते हैं कि दरअसल 'इन लॉ' को अक्सर 'आउट लॉ' हो जाते हैं.
वो कहते हैं, "कई साम्राज्यों दामादों की भूमिका सत्ता से बेदख़ल कराने में रही है. ऑटोमन साम्राज्य में भी ऐसा ही रहा. अगर ट्रंप की हार हुई है तो उनके दामाद की भूमिका को देखा जाएगा. ट्रंप प्रशासन फैमिली बेस्ड सरकार हो गई थी. बाइडन की सत्ता ऐसी नहीं होगी. बाइडन का सामना करने के लिए अर्दोवान अभी से तैयारी कर रहे हैं."
"अर्दोआन ख़ुद को अब यूरोपीयन बता रहे हैं और सऊदी के किंग से भी 21 नवंबर को बात हुई है. अर्दोआन को जितना समझिए उतना ही कम मालूम पड़ता है क्योंकि तत्काल ही वो नया नैरेटिव गढ़ देते हैं और पुराने नैरेटिव ध्वस्त हो जाते हैं. कई मामलों में अर्दोआन और मोदी एक जैसे लगते हैं और दोनों को समझना इतना आसान नहीं है." (bbc.com)