नई दिल्ली, 21 मई । ढलती उम्र अपने साथ सफेद बाल, झुर्रियां और कई शारीरिक व्याधियां लेकर आती है। आज की डेट में बाजार ऐसे कई सप्लीमेंट्स और क्रीम उपलब्ध कराता है जो दावा करते हैं कि बस कुछ दिन और चेहरा दमकता-चमकता और फाइन लाइंस से मुक्त होगा। लेकिन सदियों पहले हमारे ऋषि मुनियों और ज्ञानी ध्यानियों ने ऐसे उपाय सुझाए जो 'जरा' को धीमा करते हैं। आयुर्वेद में जरा को एजिंग या बुढ़ापे की ओर बढ़ने की प्रक्रिया कहते हैं। चरक संहिता में दो तरह के जरा का उल्लेख है। एक कालजरा और दूसरा अकालजरा। हम जिस जरा की बात कर रहे हैं वो कालजरा है। कालजरा एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जो समय के साथ शरीर में परिवर्तन लाकर जीवन के अंतिम चरण की ओर ले जाती है। यह प्रक्रिया उम्र के बढ़ने का स्वाभाविक परिणाम है, जिसे आयुर्वेद में संतुलित आहार, जीवनशैली और जड़ी-बूटियों के माध्यम से नियंत्रित करने के उपाय बताए गए हैं।
आयुर्वेद में जरा को एक स्वाभाविक शारीरिक और मानसिक प्रक्रिया माना जाता है, जो जीवन के विभिन्न चरणों से जुड़ी है। जरा को मानव जीवन का एक प्राकृतिक चरण माना जाता है, जो शरीर, मन और इंद्रियों में होने वाले परिवर्तनों को दर्शाता है। यह प्रक्रिया त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) के असंतुलन और धातुओं (शारीरिक ऊतकों) के क्षरण से प्रभावित होती है। आयुर्वेद इसे न केवल शारीरिक, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी देखता है। जरा विशेष रूप से वात दोष के बढ़ने से संबंधित है, जिसके कारण त्वचा में शुष्कता, जोड़ों में दर्द, कमजोरी, और पाचन शक्ति में कमी जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। आयुर्वेद के अनुसार जरा के कारण समय के साथ धातुओं (रस, रक्त, मांस, मेद आदि) का क्षरण और ओजस (जीवन शक्ति) में कमी आती है, वात दोष का बढ़ना, जो उम्र बढ़ने के साथ शारीरिक और मानसिक कमजोरी लाता है। वहीं,अनुचित आहार तनाव, नींद की कमी, और व्यायाम की कमी जरा को तेज कर सकती है। आयुर्वेद इसे मैनेज करने के गुर भी देता है। आयुर्वेद में जरा को धीमा करने और स्वस्थ उम्र बढ़ने (हेल्दी एजिंग) को बढ़ावा देने के लिए रसायन चिकित्सा का उपयोग किया जाता है। यह शरीर और मन को पुनर्जनन और पोषण प्रदान करता है।