विचार / लेख
-महेंद्र सिंह
किसानों का भविष्य देश में नाजुक मोड़ पर है। किसानी और किसान के हालात में आजादी के बाद बहुत से परिवर्तन हुए, मगर इतना बड़ा मोड़ कभी नहीं आया। किसानों को पहले ही अपने फसलों के कम दाम मिलते थे। मगर जो कुछ भी मिल रहा था, उसे भी छीनने की ऐसा प्रयास कभी नहीं हुआ। सरकार किसान की आमदनी न बढ़ा पाए यह तो हम देखते आ रहे थे, नीतियों के मायाजाल के चलते किसान को न्याय न मिल पाए, यह भी देखते थे। मगर अन्याय की नीतियों की घोषणा खुलेआमकी जाए, यह अब देख रहे हैं। अब अगर किसान चेतना और संगठन मजबूत नहीं हुए तो किसान को न्याय न संसद में मिलेगा और न किसी अदालत में।
कभी किसानों के आंदोलन को इतना बदनाम करने की कोशिश नहीं की गई थी। कभी यह बताने की कोशिश नहीं की गई थी कि किसान का हित सरकार या पूँजीपति किसान से कहीं ज्यादा जानते हैं। इस अभूतपूर्व स्थिति में देश में किसानों को अपना अस्तित्व बचाने के बारे में सोचना चाहिए। ऐसा नहीं है कि सरकार और कोरपोरेट वाले सारे खेतों को खा जाएंगे, उनमें उद्योग लगा देंगे। खेत रहेंगे, किसानी कम भले हो जाए, वह भी रहेगी। मगर किसान अपने ही खेत में कोरपोरेट का गुलाम होता चला जाएगा।
जबरन थोपे गए तीन कृषि कानूनों और बिजली संशोधन बिल ने किसानों, मजदूरों को जबरदस्त पीड़ा पहुँचाई है कि मानो उन पर आकाशीय बिजली उन्हें भस्म करने के लिए बार-बार कौंध रही है। परंतु यह अच्छा है कि देश के किसानों का एक बड़ा हिस्सा अपनी जीविका एवं अस्तित्व के लिए एक ऐतिहासिक संघर्ष के लिए खड़ा हो गया है।
शांतिपूर्वक आंदोलन कर रहे प्रदर्शनकारी किसानों ने पुलिस के लाठी चार्ज, कडक़ड़ाती ठंड में पानी की बौछारों, आँसू गैस के गोलों का साहसपूर्वक सामना किया है। सरकार ने सडक़ों पर खाई खुदवा दी, जिस से शांतिप्रिय किसान न गुजर सकें। दूसरी तरफ देखें तो बंगाल के राज्यपाल टीएमसी सरकार को संविधान विरोधी बता रहे हैं। पुलिस की ओर से बार-बार उकसाए जाने के बावजूद किसानों ने धीरज रखा और हिंसा के लिए उत्तेजित नहीं हुए। अफसोस है कि सरकार इस किसान संघर्ष को विफल करने के लिए घटिया असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक हथकंडे अपना रही है।
सरकार हीले बहाने छोड़ यह क्यों नहीं मान रही है कि प्रत्येक वर्ष खरीफ और रबी फसलों का एमएसपी घोषित किया जाएगा। किसान हितैषी बनने के स्वांग से पीछे नहीं हटने वाली सरकार खेती के कोरपोरेटीकरण के मौजूद कानूनों को छोडक़र नए किसान समर्थक कानून क्यों नहीं बनाना चाहती। क्यों नहीं सरकार ऐलान कर देती कि मंडियों और उनके बाहर किसानों के अनाज उत्पाद एमएसपी से कम कीमत पर खरीदने वालों को दो वर्ष की सज़ा और जुर्माने से दंडित किया जा सकेगा। किसान देश में अथवा देश के बाहर कहीं भी एमएसपी से अधिक कीमत मिलने पर ही अपने अनाज उत्पाद बेच सकेंगे।
इस अभूतपूर्व घड़ी में किसानों को देश में अपना अस्तित्व कायम रखने के लिए मिलकर अपना मजबूत संगठन बनाना चाहिए। जिसमें सभी जातियों, भाषाओं व धर्मों के किसान हों। अगर एक संगठन संभव नहीं हो तो संगठनों का एक मंडल बनाना चाहिए। किसान को याद रखना होगा कि उसे हर हालत में राजनीति को अपने पक्ष में करना है। अगर वह ऐसा नहीं कर पाया तो उसे बहुत पीछे धकेल दिया जाएगा।
किसान संगठनों को मिल जुलकर प्रत्येक प्रदेश, जिले, ब्लाक गाँव और राष्ट्र स्तर पर समिति औरक़ार्यकारिणी का निर्माण करना चाहिए। भ्रामक जुमलों फरेबी वादों, हिंदुत्व के भ्रमजाल, भ्रामक प्रपंचों से भी उसे सावधान रहना होगा। किसान राजनीतिक लड़ाई तब तक नहीं जीत पाएगा, जब तक कि वह अपने सदियों पुराने अपने सीधे- सादे धर्म को नहीं अपनाएगा।
किसानों ने हिंदुत्व के माया जाल को परख लिया है। सभी जातियों के किसान हिंदुत्व की बजाय किसान धर्म को मानें और आपस में भाईचारा और मेलमिलाप को मजबूत करें। किसान ही राष्ट्र है, किसानों के कारण ही गाय गऊमाता कहलाती है। किसानों की अवहेलना कर भारत माता का ढोंग बेमानी है। किसानों और उनसे सहानुभूति रखने वाली जनता को हर स्तर पर फूट डालने वाली ताकतों का गाँव से बहिष्कार करना चाहिए।
मध्यप्रदेश में भाजपा के कृषि मंत्री ने सार्वजनिक बयान में किसान संगठनों को कुकुरमुत्ता बताया है, अर्थात देश के किसान ग्रामीण भाजपा के लिए घास, फूस और कीड़े मकोड़े हैं। किसान संघर्ष को खालिस्तान की साजिश तक बता दिया गया। इशारा पाकर कई मीडिया चैनलों ने भी किसानों को खालिस्तानी और देशद्रोही बता कर आंदोलन को अवैध ठहराने की पहल की। मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है। इसे अपनी विश्वसनीयता धूमिल करने से बचना चाहिए। उन्हें याद रखना चाहिए कि किसानों के बेटे ही छावनियों में हैं और सरहद पर तैनात हैं।
मीडिया से ही एक और आवाज आई है, जो चैनलों के शोर में दब गई है। हाल ही में वरिष्ठ पत्रकार और कृषि मामलों के जानकार पी. साईनाथ ने मोदी सरकार द्वारा लाए गए तीनों कृषि विधेयकों की कड़े शब्दों में आलोचना की है। उन्होंने माना कि इन कानूनों के चलते देश में चारों और चौतरफा अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी। पूर्व में किसानों के लिए थोड़ी बहुत व्यवस्था बनी हुई थी, सरकार उसे भी उजाड़ रही है। उन्होंने फसल बीमा योजना को राफेल से भी बड़ा घोटाला बताया है। (लेखक सेवानिवृत प्राचार्य हैं)