विचार / लेख
-द्वारिका प्रसाद अग्रवाल
छत्तीसगढ़ की राजधानी में स्थापित प्रशासन अकादमी में बुलाया जाता है मुझे प्रदेश के अधिकारियों को प्रशिक्षण देने के लिए।
कुछ समय पूर्व एक समूह के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम में जाने का संयोग हुआ। भोजन अवकाश के बाद मैं ‘गेस्ट रूम’ में बैठा कार्यक्रम के पुन: आरंभ की प्रतीक्षा कर रहा था। बगल के आरामदेह सोफा में एक सज्जन और बैठे हुए थे। परिचय हुआ, नाम-पता की पूछताछ हुई, आपस में ‘जय राम जी’ की हुई।
वे सज्जन कृषि विभाग में ज्वाइंट डायरेक्टर के पद पर कार्यरत थे। मैंने उनसे पूछा, ‘आप कृषि में हैं, सरकार की योजनाओं से कृषकों की स्थिति में क्या अंतर आया है?’
‘सुधार हो रहा है लेकिन जितना प्रयास किया जा रहा है, उस हिसाब से प्रगति नहीं है।’ उन्होने बताया।
‘क्यों? क्या परेशानी है?’
‘सरकार की योजनाएँ व्यावहारिक नहीं होती।’
‘क्या मतलब?’
‘आपको एक उदाहरण बताता हूँ। केंद्र सरकार ने घर-घर में टायलेट बनाना सुनिश्चित किया। टायलेट बन गये लेकिन उनका उपयोग नहीं हो रहा है क्योंकि पानी की व्यवस्था नहीं है। अधिकतर गावों में पीने के लिए पानी बड़ी मुश्किल से मिलता है, टायलेट के लिए उतना ढेर सारा पानी कहाँ से आएगा?’
‘तो क्या करना चाहिए था?’
‘पहले घर-घर में पानी का इंतज़ाम करना था, उसके बाद टायलेट बनवाने की योजना लागू करनी थी।’
‘जब इस योजना की रूपरेखा बन रही थी, तब यह बात योजनाकारों को नहीं सूझी ?’
‘सर, वहाँ एक से एक जानकार हैं, सलाहकार समिति में, लेकिन किसी की हिम्मत नहीं है कि कुछ कह सके।’
‘आप क्या बता रहे हैं? फिर सलाहकार करते क्या हैं?’
‘यस सर....यस सर।’
‘मतलब?’
‘पीएम ने सेक्रेटरी को कुछ कहा, जवाब है, ‘यस सर’; केंद्र ने मुख्यमंत्री को कहा, ‘यस सर’; मुख्यमंत्री ने अपने सेक्रेटरी को कहा, ‘यस सर’; सेक्रेटरी ने हमसे कहा; यस सर’, हमने फील्ड अफसर को कहा, ‘यस सर’। कोई भी अपने बॉस को कोई सलाह नहीं देता, कोई प्रतिरोध नहीं कर सकता।’
‘क्या अड़चन है, सुझाव देने में?’
‘किसी ने यदि हिम्मत की, कुछ कहा, तो सबके पास एक ही जवाब है, ‘ऊपर से आदेश है’, इसका एक मतलब है कि ‘जो कहा जा रहा है, चुपचाप करो और अपना मुंह बंद रखो, ज्यादा चूँ-चपड़ किए तो बस्तर जाने के लिए बिस्तर तैयार कर लो।’ उन्होने बताया।
इतने में खबर आ गई, ‘सर, चलिए ‘पोस्ट लंच सेशन’ करना है।’ उनसे बात अधूरी रह गई।