संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : नेताओं-अफसरों की बदसलूकी रिकॉर्ड करें मातहत अफसर-कर्मी
06-Sep-2020 6:18 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : नेताओं-अफसरों की  बदसलूकी रिकॉर्ड करें मातहत अफसर-कर्मी

छत्तीसगढ़ से जाकर आईएएस होते हुए उत्तरप्रदेश के महत्वपूर्ण रायबरेली जिले के कलेक्टर के बारे में खबर आई है कि उन्होंने भरी बैठक में जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी को गधा कहा, और जमीन में गड़वा देने को कहा। जब इसकी शिकायत चिकित्सा अधिकारियों के संघ को की गई और मीडिया ने कलेक्टर से पूछा तो उन्होंने कहा कि सीएमओ काम में शिथिलता बरत रहे थे, इसलिए उन्हें गुस्सा आया और उन्होंने कहा कि खाल खींचकर भूसा भरा दूंगा, लेकिन कोई गाली नहीं दी। आज ही छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव की एक खबर है कि वहां लोग ऐसे श्मशान बनाने का विरोध कर रहे थे जहां कोरोना-मृतकों के शव जलाए जाते, तो नगर निगम आयुक्त ने सरपंच से कहा- तेरे को सरपंच किसने बनाया, तू कहां से सरपंच बना, इसे अंदर करो, इसको उल्टा लटकाओ। 

अफसरों में भी जो प्रशासनिक या पुलिस अफसर होते हैं, उनमें से बहुतों का ऐसा बर्ताव आम बात है। खासकर जो लोग कलेक्टर या एसपी से लेकर थानेदार-तहसीलदार तक की कुर्सियों पर काबिज रहते हैं, उनके दिमाग को गर्मी कुर्सी की गद्दी से मिलती है, और बदसलूकी उस कुर्सी का एक बुनियादी हक सरीखा मान लिया जाता है। देश में जगह-जगह अफसरों की ऐसी बदतमीजी सामने आती है, और कई जगहों पर लाठी भांजने वाली पुलिस के अलावा प्रशासनिक अधिकारी भी खुद लाठी लेकर लोगों पर टूट पड़ते हैं। जगह-जगह ऐसी अफसरी-हिंसा के वीडियो बनते हैं, लेकिन उन पर होता कुछ नहीं। जब सरकार के बड़े लोग बंद कमरे में बैठते हैं, तो यही बात उठती है कि कोई कार्रवाई करने से अधिकारियों का मनोबल टूटेगा, और राजनीतिक ताकतें हिचक जाती हैं क्योंकि उन्हें भी अपने तमाम गलत काम उन्हीं अफसरों से करवाने होते हैं, वे भ्रष्टाचार में निर्वाचित नेताओं के भागीदार रहते हैं, और एक गिरोह के दो लोग भला एक-दूसरे के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों चाहेंगे? 

हिन्दुस्तान के लोकतंत्र में अफसरी मिजाज अभी तक आजाद भारत की जमीन पर पांव नहीं रख पाया है। अब तक अफसर अपने को अंग्रेज सरकार के एजेंट के रूप में ही देखते हैं, और मानते हैं कि वे संविधान से ऊपर हैं जो कि आजादी के कई बरस बाद लागू हुआ था। भारत में अखिल भारतीय स्तर की अधिकतर नौकरियों का मिजाज अंग्रेज सरकार के लिए काम करने का है। और तो और आईएएस और आईपीएस एसोसिएशन देश भर के अपने सदस्यों की मनमानी के खिलाफ कभी मुंह भी नहीं खोलते। अब रायबरेली कलेक्टर ने अपने कहे के बारे में जितना मंजूर किया है, क्या उस पर एसोसिएशन को कुछ कहना नहीं चाहिए? अपने मातहत अफसर की खाल खींचकर भूसा भरवा देने की बात क्या आईएएस एसोसिएशन का गौरव बढ़ाती है? दिक्कत यह है कि देश के बाकी सभी कर्मचारी संगठनों या दूसरे किस्म के संगठनों की तरह ही आईएएस और आईपीएस एसोसिएशन अपने सदस्यों की कामयाबी, मौलिक सूझ-बूझ की तारीफ के मंच बनकर रह गए हैं, और किसी की बुरी हरकतों, उनके जुर्म के बारे में ये कुछ भी नहीं कहते। अपने वर्गहित को सम्हालकर रखने के लिए देश के सबसे बड़े अफसरों के ऐसे संगठन उनके कुकर्मों को अनदेखा करते हैं। 

लेकिन एक बात हम पहले भी लिखते आए हैं कि आज का वक्त हर मोबाइल फोन पर रिकॉर्डिंग करने का है। लोगों को इस सहूलियत का फायदा उठाना चाहिए, और उनके सीनियर, या उनके जूनियर सरकारी कामकाज के सिलसिले में, या सरकारी कामकाज से परे उनसे कोई भी नाजायज बात अगर करते हैं, तो उसकी रिकॉर्डिंग करनी चाहिए, उसे सुबूत की तरह सम्हालकर रखना चाहिए, और उसे शिकायत में इस्तेमाल करना चाहिए। जिन लोगों का सरकारी अफसरों के साथ उठना-बैठना रहता है वे तो आए दिन इस तरह की बदसलूकी देखते रहते हैं। अगर मातहत कर्मचारी या अधिकारी इन बातों की रिकॉर्डिंग करेंगे, तो हमारी कानून की बहुत सहज समझ के आधार पर हम कह सकते हैं कि उसमें कुछ भी गैरकानूनी नहीं होगा। इससे यह जरूर होगा कि जब 10-20 अफसरों पर, या मंत्रियों पर, दूसरे नेताओं पर कोई कार्रवाई होगी, तो उसके झटके से बाकी बहुत से लोग सुधर जाएंगे। लोगों को अपनी निजी दिक्कतों को लेकर भी ऐसा हौसला दिखाना चाहिए, और सरकार में सुधार लाने के लिए इसे एक सामूहिक जिम्मेदारी मानकर भी लोगों को ऐसा करना चाहिए। मंझले दर्जे के अफसरों, और छोटे कर्मचारियों को बड़े लोगों से कई किस्म की बदसलूकी झेलनी पड़ती है, ऐसे अफसरों और कर्मचारियों के संगठनों को अपने लोगों की सुरक्षा के लिए उन्हें तरह-तरह की रिकॉर्डिंग सिखानी चाहिए ताकि वे गलत काम करने वाले नेताओं-अफसरों के स्टिंग ऑपरेशन कर सकें, उनके बदसलूकी रिकॉर्ड कर सकें।  (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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