-दिलनवाज पाशा
पूर्व राजनयिक, केरल के तिरुवनंतपुरम से सांसद और वरिष्ठ कांग्रेस नेता शशि थरूर ने एक बार फिर ऐसा बयान दिया है, जिसे उनकी पार्टी की लाइन के खिलाफ माना जा सकता है।
दिल्ली में एक परिचर्चा के दौरान रूस-यूक्रेन युद्ध और भारत की कूटनीति पर टिप्पणी करते हुए शशि थरूर ने कहा- ‘मुझे यह स्वीकार करना होगा कि 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध पर भारत के रुख़ की आलोचना करने पर मुझे शर्मिंदगी उठानी पड़ी। मोदी ने दो हफ्तों के अंतराल में यूक्रेन के राष्ट्रपति और रूस के राष्ट्रपति दोनों को गले लगाया और दोनों जगह उन्हें स्वीकार किया गया।’
शशि थरूर की इस टिप्पणी के बाद जहां बीजेपी ने कहा कि ‘देर आए दुरुस्त आए’, वहीं कांग्रेस ने इस पर चुप्पी साध रखी है।
कांग्रेस के किसी भी प्रवक्ता या नेता ने इसे लेकर सार्वजनिक टिप्पणी नहीं की है।
केरल से सांसद और राज्य में पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष कोड्डिकुन्नील सुरेश ने बीबीसी से कहा, ‘पार्टी ना ही थरूर की इस टिप्पणी को महत्व दे रही है और ना ही इस पर टिप्पणी कर रही है।’
शशि थरूर के बयान पर क्या बोली बीजेपी?
बीबीसी ने इस विषय पर और भी कांग्रेस नेताओं से बात करनी चाही, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल सकी।
वहीं बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य रवि शंकर प्रसाद ने मीडिया से बात करते हुए कहा, ‘देर आए दुरुस्त आएज् जिस तरह से शशि थरूर ने स्वीकार किया है, कांग्रेस के दूसरे नेताओं को भी करना चाहिए।’
केरल बीजेपी के अध्यक्ष के सुरेंद्रन ने शशि थरूर के इस बयान का स्वागत किया है।
बीबीसी से बात करते हुए उन्होंने कहा, ‘थरूर ने सच स्वीकार किया है, जो कांग्रेस सांसद राहुल गांधी के मुंह पर तमाचा है। राहुल हमेशा भारत की विदेश नीति की आलोचना करते हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सवाल उठाते हैं।’
के सुरेंद्रन ने बीबीसी से कहा, ‘शशि थरूर ने जो सच बोला है, उस पर कांग्रेस ख़ामोश है क्योंकि इस सच ने राहुल गांधी की पोल खोल दी है जो हमेशा कहते रहते हैं कि वैश्विक स्तर पर भारत का क़द घट रहा है।’
रूस-यूक्रेन युद्ध और भारत की तटस्थता
भारत ने फऱवरी 2022 में रूस के यूक्रेन पर आक्रमण और इसके बाद से जारी युद्ध पर तटस्थ रुख़ अपनाया है। दुनियाभर के देशों ने जब रूस की आक्रामकता की आलोचना की थी, भारत ऐसा करने से बचता रहा था।
शशि थरूर ने अब स्वीकार किया है कि पहले उन्होंने भारत के नज़रिए की आलोचना की थी, लेकिन अब उन्हें लगता है कि यही सही विदेश नीति थी और यह प्रभावशाली रही। थरूर ने भारत की संतुलित विदेश नीति की तारीफ भी की।
अपनी टिप्पणी में थरूर ने ये भी कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूक्रेन गए और ज़ेलेंस्की से गले मिले और उससे पहले वो मॉस्को में पुतिन से गले मिले थे। थरूर ने कहा कि दोनों ही जगहों पर मोदी को स्वीकार किया गया।
शशि थरूर ने ये सुझाव भी दिया कि भारत ने जिस तरह से इस संघर्ष से दूरी बनाई है, वह एक अच्छा मध्यस्थ हो सकता है और ज़रूरत पडऩे पर यूक्रेन में शांति बल भी भेज सकता है।
थरूर एक पूर्व राजनयिक और भारत के पूर्व विदेश राज्य मंत्री भी हैं। ऐसे में उनकी टिप्पणी को मोदी सरकार की विदेश नीति पर मुहर माना जा रहा है।
भारत की विदेश नीति और कांग्रेस का रुख
हालांकि, विपक्षी कांग्रेस यूं तो विदेश नीति को लेकर अक्सर ख़ामोश ही रहती है या सरकार की नीति का समर्थन करती है, लेकिन गज़़ा में जारी संघर्ष के मामले में कांग्रेस नेताओं ने खुलकर भारत की नीति के खिलाफ रुख अपनाया है।
कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी फ़लस्तीन के समर्थन में कई बार बोल चुकी हैं और इसराइल की आक्रमकता पर सवाल उठा चुकी हैं। यह भारत की इसराइल-फिलस्तीनी संघर्ष को लेकर मौजूदा नीति के खिलाफ है।
मार्च 2022 में संयुक्त राष्ट्र में रूस-यूक्रेन युद्ध पर हुए मतदान से भारत दूर रहा था। इसके बाद दिए एक भाषण में राहुल गांधी ने तर्क दिया था कि इस मुद्दे पर भारत की ख़ामोशी वैश्विक मामलों में उसकी नैतिक स्थिति को कमज़ोर करती है।
कांग्रेस पार्टी भारत-चीन सीमा पर चीन की आक्रामकता को लेकर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश नीति पर सवाल उठाती रही है।
दिसंबर 2024 में कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा था कि भारत प्रतिक्रियावादी विदेश नीति पर चल रहा है और दक्षिण एशिया में भारत की विदेश नीति अपना प्रभाव खो रही है।
ऐसे में अब, शशि थरूर के खुलकर मोदी सरकार की विदेश नीति के समर्थन में आने से कांग्रेस के लिए असहज स्थिति पैदा हो गई है।
शशि थरूर के बयान के क्या संकेत हैं?
ये पहली बार नहीं है जब थरूर ने मोदी सरकार की विदेश नीति की तारीफ़ की हो।
हालांकि, विश्लेषक इसे भारत की विदेश नीति की तारीफ़ के बजाय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ़ के रूप में देख रहे हैं।
वरिष्ठ पत्रकार विनोद शर्मा कहते हैं, ‘कोई भी राष्ट्र अपने हितों को सर्वोपरि रखते हुए अपनी विदेश नीति बनाता है। रूस-यूक्रेन युद्ध मामले में भारत ने भी ऐसा ही किया है और अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए एक तटस्थ नीति बनाई है। इसमें कोई शक़ नहीं है कि इस नीति से भारत को फ़ायदा हुआ है। लेकिन थरूर ने भारत की विदेश नीति की तारीफ़ करते हुए ख़ासतौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम लिया। इससे तो यही लगता है कि वो बीजेपी को संकेत दे रहे हैं।’
विनोद शर्मा कहते हैं, ‘शशि थरूर के बयान पर तो ये ही कहा जा सकता है कि बदले-बदले सरकार नजर आते हैं। थरूर एक राजनेता हैं और वो जो भी कुछ बोल रहे हैं, सोच समझकर बोल रहे हैं। ये उनकी कांग्रेस में अपने क़द को बढ़ाने या फिर बीजेपी के कऱीब जाने की नीति का हिस्सा हो सकता है।’
थरूर का ये बयान जहां बीजेपी के लिए कांग्रेस पर सवाल उठाने का मौक़ा है, वहीं कांग्रेस को एक बार फिर से अंदरूनी राजनीति को लेकर सवालों का सामना करना पड़ेगा।
केरल में यूडीएफ़ के संयोजक एमएम हसन ने केरल कांग्रेस के नेतृत्व को इस बयान से दूर करते हुए मीडिया को दिए बयान में कहा कि ये राष्ट्रीय नेतृत्व के दायरे में आता है।
केरल में अगले साल चुनाव
केरल में साल 2026 में विधानसभा चुनाव होने हैं। विश्लेषक मानते हैं कि शशि थरूर केरल में कांग्रेस का चेहरा बनना चाहते हैं।
वरिष्ठ पत्रकार विनोद शर्मा कहते हैं, ‘थरूर के बयान के पीछे राजनीतिक उद्देश्य नजर आ रहा है। वो सिर्फ विदेश नीति की तारीफ नहीं कर रहे हैं बल्कि ख़ासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ कर रहे हैं। इसका अलग मतलब निकाला जा सकता है। केरल में चुनाव आने वाले हैं। थरूर की ये महत्वाकांक्षा रही है कि कांग्रेस उन्हें मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित करे, जिसकी चुनाव हो जाने से पहले संभावना नहीं है।’
विनोद शर्मा कहते हैं, ‘थरूर ने ये भी कहा था कि अंदरूनी सर्वे में ये सामने आया है कि मैं मुख्यमंत्री पद के लिए मजबूत दावेदार हो सकता हूं। एक तरह से थरूर अपनी तारीफ स्वयं कर रहे हैं।’
शशि थरूर का लंबा राजनयिक करियर रहा है और वे साल 2009 से लगातार सांसद हैं। 2014 में जब बीजेपी की लहर थी, तब भी थरूर ऐसे चुनिंदा कांग्रेसी नेताओं में थे जिन्होंने अपनी सीट बचा ली थी। वे पिछली चार बार से लगातार अपनी सीट जीत रहे हैं।
विश्लेषक मानते हैं कि थरूर अपनी महत्वाकांक्षा ज़ाहिर कर रहे हैं, लेकिन उन्हें संभलकर चलना होगा।
विनोद शर्मा कहते हैं, ‘इसमें कोई दो राय नहीं है कि थरूर एक चर्चित नेता हैं, करिश्माई नेता हैं और अगर कांग्रेस चुनाव जीतने पर उन्हें सीएम बनाती है, तो वो अच्छा विकल्प साबित हो सकते हैं। लेकिन केरल में कांग्रेस का स्थानीय नेतृत्व भी है, जो लंबे समय से कार्यरत हैं, मुझे लगता है कि जिस तरह की अंदरूनी राजनीति वो कर रहे हैं, वो ना ही कांग्रेस के लिए ठीक है और ना ही थरूर के लिए।’
क्या बीजेपी में थरूर के लिए जगह है?
विश्लेषक मानते हैं कि थरूर के बयान के दो स्पष्ट संकेत हैं- या तो वो पार्टी छोडऩे का मन बना चुके हैं या फिर कांग्रेस नेतृत्व पर अपना क़द बढ़ाने के लिए दबाव डाल रहे हैं।
लेकिन सवाल ये है कि क्या बीजेपी में उनके लिए जगह होगी। विनोद शर्मा को लगता है कि अगर थरूर बीजेपी के साथ जाते हैं तो ये बीजेपी के लिए फ़ायदे की बात होगी।
विनोद शर्मा कहते हैं, ‘बीजेपी अगर उन्हें अपने साथ ले आती है तो उसे केरल में एक बड़ा चेहरा मिल जाएगा। बीजेपी को केरल में एक बड़े चेहरे की तलाश है। बीजेपी ने राजीव चंद्रशेखर को केरल में उतारा था, कई और चेहरों को सामने लाया गया लेकिन केरल में बीजेपी की एक करिश्माई चेहरे की तलाश अभी पूरी नहीं हुई है। अगर थरूर बीजेपी के साथ आते हैं तो राज्य में उसे बड़ा चेहरा मिल सकता है।’
लेकिन क्या बीजेपी थरूर का स्वागत करने के लिए तैयार है? बीबीसी के इस सवाल पर केरल बीजेपी के अध्यक्ष के सुरेंद्रन कहते हैं, ‘अभी ये अपरिपक्व सवाल है।’
हालांकि, सुरेंद्रन हंसते हुए ये ज़रूर कहते हैं, ‘ये थरूर पर निर्भर है कि वो क्या चाहते हैं, हम अभी से क्या कहें।’