विचार / लेख
- सुशांत आचार्य
भारत में ऑनलाइन मनी गेमिंग पर प्रतिबंध का फैसला ऐसे समय आया है, जब यह उद्योग अभूतपूर्व रफ्तार से बढ़ रहा था। यूनिकॉर्न कंपनियों का उभार, करोड़ों की भागीदारी और फैंटेसी क्रिकेट का जुनून, ये सभी मिलकर एक ऐसा डिजिटल इकोसिस्टम बना रहे थे, जिसमें उम्मीदें ज्यादा थीं, और वास्तविक कमाई बेहद कम।
यह उद्योग गरीब भारतीयों की आकांक्षाओं पर न केवल खड़ा हुआ, बल्कि फला फूला भी, और फिर सरकार को अंतत: इसमें हस्तक्षेप करना पड़ा।
भारत की अर्थव्यवस्था जितनी तेज़ी से आगे बढ़ रही है, उतनी तेजी से रोजगार के अवसर नहीं बढ़ पाए। नतीजा यह रहा कि बड़ी संख्या में युवा, खासकर ग्रामीण और निम्न आय वर्ग वाले, ऑनलाइन गेमिंग को अतिरिक्त आय के तौर पर देखने लगे। सस्ते स्मार्टफोन, सस्ता डेटा और यूपीआई ने इस रुझान को और हवा दी। यह रुझान आकस्मिक नहीं था, यह एक सामाजिक और आर्थिक विस्थापन की कहानी भी है, जिसमें युवाओं को कहीं और अवसर न दिखे, तो उन्होंने डिजिटल दांव-पेंच को ही आजमाना शुरू कर दिया।
फेडरेशन ऑफ इंडियन फैंटेसी स्पोर्ट्स के अनुसार, लगभग 22.5 करोड़ भारतीय फैंटेसी गेम्स से जुड़े, इनमें से 85त्न क्रिकेट पर दांव लगाते थे, जिनमें से 30 वर्ष से कम उम्र के भारतीयों की भागीदारी लगभग एक-चौथाई थी, आंकड़े बताते हैं की इनमें से 40त्न लोगों की सालाना कमाई 3 लाख रुपये तक नहीं थे, अधिक कमाई वालों में अत्यधिक सक्रिय खिलाडिय़ों की संख्या केवल 12%, यानि यह उद्योग उन लोगों पर निर्भर था, जिनके लिए हार का मतलब सिर्फ पैसे का नुकसान नहीं, बल्कि परिवार की आर्थिक सुरक्षा पर गहरी चोट थी।
2023 में एक निजी प्रसारक ने भारत में ऑनलाइन सट्टे का अनुमान 3–4 लाख करोड़ रुपये बताया। इतनी बड़ी रकम डिजिटल प्लेटफॉर्मों पर रोजाना घूम रही थी, लेकिन इसका फायदा ज्यादातर कंपनियों को ही होता था। खिलाड़ी नुकसान के चक्कर से निकल ही नहीं पाते थे। लत लगाने वाले एल्गोरिदम, छोटे-छोटे दांव, करोड़ों के इनाम का लालच और लगातार नोटिफिकेशन, इन सभी ने मिलकर युवाओं की मानसिकता को प्रभावित किया। धीरे-धीरे यह मनोरंजन का रूप न रहकर एक छुपा हुआ मानसिक और सामाजिक संकट बनता गया।
इस पर लगे प्रतिबंध से राजस्व पर चोट लगना तय है। कई सालों तक इस उद्योग ने अपनी कमाई पर 18% जीएसटी दिया, लेकिन बाद में सरकार ने दांव की पूरी राशि पर 28% टैक्स की मांग की, जिसकी कुल डिमांड 1.12 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गई। यह विवाद बताता है कि, उद्योग का संचालन पारदर्शी नहीं था, कर संरचना अस्पष्ट थी, और डिजिटल सट्टेबाजी के वास्तविक पैमाने को लेकर सरकार भी आशंकित थी।
यह तो साफ था की प्रतिबंध राजस्व पर असर डालेगा, लेकिन सरकार का रुख स्पष्ट है, समाज की सुरक्षा को प्राथमिकता दी जाएगी।
2008 में Dream11 की शुरुआत एक छोटे प्रयोग के रूप में हुई थी। 2016 में यूपीआई लॉन्च होने के बाद इसमें अचानक तेजी आई। छोटे दांव-11 रुपये, 50 रुपये, और त्वरित भुगतान ने इसे आम भारतीयों तक पहुंचा दिया। इसके बाद, Dream11 यूनिकॉर्न बना, MPL ने तीन साल में यूनिकॉर्न का दर्जा हासिल किया, Games24x7 ने RummyCircle और MyvvCircle के साथ बाज़ार का बड़ा हिस्सा कब्जा लिया, 2024 तक उद्योग में 400 कंपनियों के सक्रिय होने का अनुमान था। लेकिन पीछे छिपी हकीकत यह थी कि जितना पैसा कंपनियों ने कमाया, उतना ही नुकसान करोड़ों खिलाडिय़ों को उठाना पड़ा।
ऑनलाइन गेमिंग कंपनियों ने यह तर्क दिया कि यह कौशल का खेल है। लेकिन डाटा बताता है कि, छोटे-छोटे नुकसान लत को बढ़ाते हैं, बड़ी जीत का लालच लोगों को बार-बार ऐप पर लाता है, 39 रुपये में 1 करोड़ जीतने जैसी कहानियाँ सिफ$ भ्रम पैदा करती हैं, यानी खेल कौशल का कम और मनोवैज्ञानिक चालाकियों का ज्यादा था।
विधेयक में ऑनलाइन गेमिंग से जुड़े खतरों को स्पष्ट किया गया है, हेरफेर युक्त डिज़ाइन, लत बढ़ाने वाले एल्गोरिदम, पारदर्शिता की कमी और वित्तीय बरबादी। इन कारणों से प्रतिबंध लगाने का कदम अनिवार्य हो गया। यह सिर्फ नीति सुधार नहीं, बल्कि एक सामाजिक हस्तक्षेप है।
प्रतिबंध के साथ कई चुनौतियां भी सामने हैं, इस उद्योग से जुड़े लाखों रोजगार, युवाओं के लिए सुरक्षित डिजिटल मनोरंजन, स्टार्टअप और गेमिंग सेक्टर में नवाचार की संभावनाएं, और सबसे महत्वपूर्ण, लत के शिकार लोगों के लिए सहायता तंत्र, सरकार को समानांतर संरचना विकसित करनी होगी, वरना खालीपन नए अनियंत्रित रास्तों को जन्म देगा।
ऑनलाइन मनी गेमिंग भारत की डिजिटल यात्रा की वह काली परछाईं थी, जहाँ तकनीक ने उम्मीदें भी जगाईं और कमजोरियों को भी गहरा किया। कम आय वाले भारतीयों की निराशा को मुनाफे में बदलने वाले इस मॉडल पर रोक लगाना एक कठिन लेकिन आवश्यक कदम था। राजस्व कम होगा, उद्योग प्रभावित होगा, लेकिन करोड़ों परिवारों की मानसिक और आर्थिक सुरक्षा इससे कहीं अधिक मूल्यवान है।


