-डॉ. आर.के. पालीवाल
कनाडा और उसकी सरकार पिछले एक साल से गंभीर विवादों में उलझा है। यहां के कुछ इलाकों को मिनी पंजाब कहते हैं जहां भारत से गए सिख समुदाय के रिहायशी इलाके और गुरुद्वारे आदि के कारण पंजाब के किसी कस्बे या शहर में घूमने का अहसास होता है। सिख समुदाय अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और कर्मठता के लिए मशहूर है। उसने कड़ी मेहनत कर कनाडा में भी अच्छा खासा दबदबा बनाया है जो आर्थिक संपन्नता के साथ राजनीतिक शक्ति के रूप में भी सामने आया है। प्रधानमंत्री पद से हटे जस्टिन ट्रुडो के वोट बैंक में भी सिख समुदाय की अच्छी खासी भागीदारी बताई जाती है। यहीं से भारत और कनाडा के अंतरराष्ट्रीय रिश्तों में खटास की शुरुआत हुई थी। यह खटास बढ़ते बढ़ते उस स्तर पर पहुंच गई जहां से उसे सही पटरी पर लाने में बहुत ज्यादा मेहनत की आवश्यकता होगी।
भारत और कनाडा ने अपने देश से एक दूसरे के राजनयिकों को निष्कासित कर यह संदेश दिया था कि दोनों देश यह मामला अपने हिसाब से काफी गंभीरता से ले रहे हैं। भारत और कनाडा के संबंध केवल पंजाब से कनाडा गए भारतीयों के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं हैं बल्कि कनाडा में बसे अन्य प्रांतों के एन आर आई भी इससे प्रभावित हो रहे हैं। दूसरी तरफ कनाडा अमेरिका का पड़ोसी है इसलिए अमेरिका का बाइडेन प्रशासन अक्सर कनाडा की हां में हां मिलाने की कोशिश करता रहा है ताकि पड़ोसी से सौहार्दपूर्ण संबंध बने रहें। जिस तरह से कनाडा ने वहां रहने वाले खालिस्तान समर्थकों की हत्या करने के लिए भारत सरकार पर उंगली उठाई है वैसा ही कदम अमेरिका ने भी उठाया है।
2023 में जब कनाडा में खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की गोली मारकर हत्या हुई थी तब कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो ने उसमें भारत सरकार से जुड़े लोगों के इस हत्या में शामिल होने की बात की थी। भारत सरकार शुरू से इस मामले से पल्ला झाड़ती रही है। हद तो तब हुई जब कनाडा ने अलगाववादी हरदीप निज्जर की हत्या के मामले में सीधे भारतीय उच्चायोग के सर्वोच्च अधिकारी उच्चायुक्त संजय कुमार वर्मा को ‘पर्सन ऑफ इंटरेस्ट’ यानी संदिग्ध बता दिया। अपने देश के सर्वोच्च राजनयिक अधिकारियों के खिलाफ बगैर पुख्ता सबूतों के इतना गंभीर आरोप किसी भी सरकार को कड़े कदम उठाने पर मजबूर करेगा। इसलिए केंद्र सरकार ने भी सख्त कदम उठाकर न केवल अपने उच्चायुक्त सहित दूसरे राजनयिकों को वापस बुलाने का फैसला लिया था , साथ ही कनाडा के राजनयिकों को भी वापसी के लिए कहा था।
हाल ही में कनाडा में कनाडा फर्स्ट अभियान के अंतर्गत यह निर्णय किया गया कि कनाडा में वहां के नागरिकों को ही प्राथमिकता के आधार पर नौकरी दी जाएगी। माना जा रहा है कि कनाडा सरकार के इस फैसले से वहां रह रहे भारतीय समुदाय के काफी लोगों को नौकरी से वंचित होना पड़ सकता है। वैसे भी कनाडा में ऐसी स्थिति में भारतीय समुदाय के लोगों का रहना मुश्किल होगा जब दोनों देशों के बीच राजनयिक रिश्ते निम्नतम स्तर पर पहुंच गए हैं। कनाडा और भारत के संबंध उस निम्नतम स्तर पर पहुंच गए जहां और नीचे जाने की गुंजाइश नहीं रहती। कनाडा सरकार जिस तरह से अपने नागरिक संरक्षण के नाम पर खालिस्तान समर्थकों को शै दे रही है उसे नजरअंदाज करना भारत सरकार के लिए असंभव है।
कनाडा में जिस तरह से हिंदू और सिख एक दूसरे के धर्मस्थलों तक को निशाना बना रहे हैं यह दोनों के लिए खतरनाक संकेत है। कनाडा में काफी संख्या में हिंदू और सिख युवा पढ़ाई और कमाई के लिए बसे हैं। यदि वे अपने संसाधन और ऊर्जा एक दूसरे को नीचा दिखाने में बर्बाद करेंगे तो यह उनके खुद के लिए, कनाडा में रहने वाले अप्रवासी भारतीय समुदाय और हमारे देश के लिए कष्टप्रद और शर्मनाक है। अभी तक अमेरिका कनाडा के सुर में सुर मिलाता रहा है। आशा की धुंधली किरण यही है कि आतंकवाद के खिलाफ जोरदार चुनावी भाषण देने वाले नव निर्वाचित अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस मुद्दे पर कनाडा को समझाएंगे। जस्टिन ट्रुडो का प्रधानमंत्री पद से हटना भी भारत के लिए शुभ समाचार बन सकता है।