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दिल्ली में मुफ़्त वादों की होड़ में क्यों हैं आम आदमी पार्टी, बीजेपी और कांग्रेस, इन्हें पूरा करना कितना मुश्किल
19-Jan-2025 10:29 PM
दिल्ली में मुफ़्त वादों की होड़ में क्यों हैं आम आदमी पार्टी, बीजेपी और कांग्रेस, इन्हें पूरा करना कितना मुश्किल

-चंदन कुमार जजवाड़े

देश की राजधानी दिल्ली में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए सियासी दल पूरी ताकत के साथ चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं। इन चुनावों में आप, बीजेपी और कांग्रेस तीनों ही ‘मुफ्त’ की कई योजनाओं के ज़रिए मतदाताओं को लुभाने की कोशिश में लगी है।

दिल्ली में 5 फऱवरी को विधानसभा चुनावों के लिए वोटिंग होनी है। इन चुनावों में दिल्ली की सत्ता को बचाए रखना आम आदमी पार्टी के लिए बेहद अहम है। वहीं तीन दशकों से राज्य की सत्ता पर काबिज़ होने के लिए बीजेपी भी संघर्ष कर रही है। जबकि कांग्रेस पार्टी भी दिल्ली में अपनी खोई हुई राजनीतिक ज़मीन को दोबारा हासिल करने की कोशिश में है और इन तीनों ही प्रमुख दलों के लिए लोकलुभावन वादे चुनाव प्रचार का अहम हिस्सा बनते दिख रहे हैं।

हम जानने की कोशिश करेंगे कि दिल्ली के वोटरों के सामने किए जा रहे इन बड़े-बड़े वादों को पूरा करने के लिए राज्य के पास कितना बजट है और क्या ऐसे ‘मुफ़्त की सुविधाओं’ से जुड़े वादे पूरे किए जा सकते हैं?

चुनावी वादे कितना बड़ा आर्थिक बोझ

भारत में कल्याणकारी योजनाएं पुराने समय से चलाई जा रही हैं। देश के कई इलाक़ों में फैली गऱीबी और लोगों की ज़रूरत के लिए इसे काफ़ी ज़रूरी भी माना गया है।

ऐसी योजनाओं में गऱीबों के लिए राशन, पीने का स्वच्छ पानी, बेसहारा, विधवा और बुज़ुर्गों के लिए पेंशन, गऱीबों के लिए चिकित्सा सुविधा जैसी कई योजनाएं शामिल हैं।

टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज़ के पूर्व प्रोफ़ेसर पुष्पेंद्र कुमार कहते हैं, ‘अगर मुफ़्त की कही जानी वाली इन रेवडिय़ों से वोट मिलता है तो इसका सीधा मतलब है कि देश में वो ‘गऱीबी’मौजूद है जो लोगों को दु:ख देती है।’

उनका कहना है, ‘आजकल छोटे शहरों और कस्बों में भी आपको चमकते बाज़ार दिख जाते हैं और उसके पीछे यह गऱीबी दब जाती है। सरकार इस गऱीबी को स्वीकार करने से इनकार करती है, लेकिन उसे पता है कि इसपर ध्यान नहीं दिया तो लोगों का ग़ुस्सा फूट सकता है, इसलिए लोगों के खातों में पैसे ट्रांसफर किए जा रहे हैं।’

‘चाहे वो किसान सम्मान योजना हो, महिलाओं को पैसे देने हों या लाडली बहन जैसी योजना हो। इसका नुक़सान यह हो रहा है कि सरकार रोजग़ार और दूरगामी योजनाओं जैसी चीज़ों में निवेश नहीं कर रही है।’

हालांकि 1970 के दशक में भारत के दक्षिणी राज्यों में ऐसी कई योजनाएं शुरू की गईं और लोगों को सीधा सरकारी लाभ पहुंचाया गया। इनमें से कई योजनाएं काफी सफल भी रही हैं।

ऐसी योजनाएं धीरे-धीरे देश के अन्य राज्यों में भी लागू की गईं, जिनमें बिहार में महिलाओं के लिए साइकिल योजना और दिल्ली में 200 यूनिट तक फ्री बिजली की योजना भी शामिल है।

इसके अलावा केंद्र सरकार भी कई ऐसी योजनाएं चलाती हैं, जिसके तहत लोगों को मुफ़्त में राशन या किसानों को किसान सम्मान निधि देना शामिल है।

आर्थिक मामलों के जानकार शरद कोहली कहते हैं, ‘मुफ़्त की इन योजनाओं का सबसे बड़ा नुक़सान यह है कि लोग आज के छोटे फायदे के लिए कल का बड़ा नुक़सान कर रहे हैं। पहले आने वाली दो-तीन पीढिय़ों को ध्यान में रखकर योजना बनती थी, अब ऐसा नहीं हो रहा है।’

‘अगर दिल्ली की बात करें तो मुफ़्त की योजनाओं की वजह से पहली बार दिल्ली का बजट नुक़सान में जा सकता है, जो हमेशा सरप्लस रहता था। हमारा अनुमान है कि इस वित्त वर्ष के अंत तक दिल्ली का बजट 6 हज़ार करोड़ रुपये के नुक़सान का होगा।’

लोगों को सुविधाएं देने के मामले में राजनीतिक दलों में ऐसी होड़ देखी जा रही है कि अगर आम आदमी पार्टी ने महिलाओं के लिए 2100 रुपये देने का वादा किया तो बीजेपी ने 2500 रुपये देने का वादा कर दिया है।

वहीं, दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार 200 यूनिट बिजली फ्री देती है तो कांग्रेस ने इसे 300 यूनिट करने का वादा किया है।

शरद कोहली कहते हैं, ‘कई बार राजनीतिक दल ऐसे वादे कर देते हैं जिसे पूरा नहीं किया जा सकता है। जैसा पंजाब में हुआ है, जहां आम आदमी पार्टी की सरकार महिलाओं को पैसे नहीं दे पाई है।’

जाहिर है ऐसी योजनाओं को पूरा करने के लिए राज्य सरकार के पास संसाधन और बजट मौजूद होना चाहिए।

वरिष्ठ पत्रकार संजीव पाण्डेय कहते हैं, ‘पंजाब में आप सरकार को कई समस्याएं विरासत में मिली हैं। उसके पास दिल्ली की तरह टैक्स से मिलने वाला अपना राजस्व नहीं है। हिमाचल प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा मिलने के बाद लुधियाना, जालंधर और कई इलाक़ों से कारखाने पंजाब से हिमाचल चली गईं। इसके अलावा वाघा बॉर्डर बंद होने की वजह से पंजाब का पाकिस्तान से बिजऩेस बुरी तरह प्रभावित हुआ।’

वो कहते हैं, ‘पंजाब में किसानों को पहले से ही मुफ़्त बिजली मिल रही है। आप सरकार ने महिलाओं को मुफ़्त बस सेवा, कुछ तबकों को 300 यूनिट बिजली फ्री बिजली दी है। जो वादा पंजाब में आप सरकार पूरा नहीं कर पाई है, वो है ओल्ड पेंशन स्कीम और इसके पीछे केंद्र सरकार की भी बड़ी भूमिका है।’

बीजेपी के रुख़ में बदलाव

दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने लगातार दो चुनावों में बड़ी जीत हासिल की है, जिसमें उसकी मुफ़्त की योजनाओं का बड़ा योगदान माना जाता है।

साल 2013 में पहली बार अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस के समर्थन से 49 दिनों तक दिल्ली में सरकार चलाई थी।

इस दौरान अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आप सरकार ने दिल्ली के लोगों के लिए मुफ़्त बिजली, पानी और अन्य सुविधाओं की कई घोषणा की और इन चुनावों में वो इसे और आगे ले जाने का वादा कर रही है।

साल 1993 से दिल्ली की सत्ता में वापसी का इंतज़ार कर रही बीजेपी भी अब ऐसी ही 'मुफ़्त की योजनाओं' के रास्ते पर है और कांग्रेस पार्टी भी इसे ही आधार बनाकर दिल्ली में अपनी पुरानी ताक़त वापस हासिल करने के प्रयास में लगी है।

आम आदमी पार्टी ने अपने चुनावी वादों के दम पर साल 2015 के चुनावों में दिल्ली से कांग्रेस को पूरी तरह साफ कर दिया। 70 सीटों की विधानसभा में बीजेपी भी महज़ 3 सीटों पर सिमट गई। साल 2020 में भी आम आदमी पार्टी सरकार की योजनाओं का दिल्ली में उसे बड़ा लाभ मिला और उसने बड़ी जीत दर्ज की। मुफ़्त की योजनाओं का वोटरों पर हो रहे इस असर को अब बीजेपी और कांग्रेस भी समझ रही है और दोनों ही दलों ने ऐसे कई वादे वोटरों से किए हैं।

जबकि साल 2022 में प्रधानमंत्री मोदी ने गुजरात में चुनाव प्रचार के दौरान कहा था, ‘आजकल हमारे देश में मुफ्त की रेवड़ी बांटकर वोट बटोरने का कल्चर लाने की भरसक कोशिश हो रही है। ये रेवड़ी कल्चर देश के विकास के लिए बहुत घातक है। देश के लोगों को और खासकर मेरे युवाओं को बहुत सावधान रहने की जरूरत है।’

उस वक्त आम आदमी पार्टी भी गुजरात विधानसभा चुनावों में अपनी ताक़त आज़मा रही थी और चुनाव प्रचार में उसका दिल्ली में चल रही योजनाओं को जनता के सामने पेश करने पर काफ़ी जोर था। जबकि बीजेपी ने मौजूदा दिल्ली विधानसभा चुनावों के लिए अपने संकल्प पत्र में लिखा है, ‘दिल्ली में भाजपा की सरकार बनने पर न केवल मौजूदा कल्याणकारी योजनाएं जारी रहेंगी, बल्कि उन्हें और अधिक प्रभावी और भ्रष्टाचार मुक्त बनाएंगे।’

लोकलुभावन वादे

बीजेपी ने अपने संकल्प पत्र में हर गऱीब महिला को हर महीने 2500 रुपये देने का वादा किया है। इसमें वरिष्ठ नागरिकों के मिलने वाला पेंशन 2 हजार से बढ़ाकर 2500 करने का वादा किया गया है।

बीजेपी ने अन्य वादों के अलावा हर गर्भवती महिला को 21 हज़ार रुपये की आर्थिक मदद और 6 पोषण किट देने का वादा भी किया है। उसने हर गऱीब परिवार की महिला को 500 रुपये में एलपीजी गैस सिलेंडर और होली-दिवाली पर एक-एक सिलेंडर मुफ़्त देने का संकल्प भी लिया है।

दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने बीजेपी के संकल्प पत्र पर प्रतिक्रिया दी है और कहा है, ‘बीजेपी ने सरेआम खुले में स्वीकार किया कि दिल्ली में केजरीवाल की ढेरों कल्याणकारी योजनाएं चल रहीं हैं जिसका लाभ बीजेपी वालों के परिवारों को भी मिल रहा है। हमें राजनीति करनी नहीं आती, काम करना आता है और काम ऐसा करते हैं कि हमारे विरोधी भी उसकी तारीफ़ करते हैं।’

आम आदमी पार्टी की सरकार दिल्ली में मुफ़्त बिजली, पानी, इलाज, शिक्षा, महिलाओं को मुफ़्त बस यात्रा, बुज़ुर्गों की मुफ़्त तीर्थ यात्रा की योजना चला रही है।

उसने अब इसे और बढ़ाने का वादा किया है, जिसमें हर महिला को हर महीने 2100 रुपये, बुज़ुर्गों इलाज का पूरा खर्च, पुजारियों-ग्रंथियों को हर महीने 18 हज़ार रुपये का सम्मान और छात्रों को भी बसों में मुफ़्त यात्रा जेसे कई वादे किए हैं।

आप ने दिल्ली मेट्रो में छात्रों को 50 फ़ीसदी छूट देने का वादा भी किया है।

वहीं कांग्रेस पार्टी ने अपने लोकलुभावन वादों में आम सरकार की 200 यूनिट फ्री बिजली की योजना को बढ़ाकर 300 यूनिट करने का वादा किया है।

कांग्रेस ने महिलाओं के लिए ‘प्यारी दीदी योजना’, स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए ‘जीवन रक्षा योजना’, युवाओं के लिए ‘युवा उड़ान योजना’ और इसके अलावा ‘महंगाई मुक्ति योजना’ जैसे कई वादे किए हैं।

सुप्रीम कोर्ट में मामला

ऐसी सरकारी योजनाओं को सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती दी गई है और यह मामला अब भी चल रहा है। इससे जुड़ी दो याचिकाएं वकील अश्विनी उपाध्याय ने भी सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की है।

उनका कहना है, ‘मैंने साल 2022 में याचिका डाली थी, जिसपर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। मैनें मांग की है कि जनकल्याणकारी योजनाओं और मुफ़्त को योजनाओं को परिभाषित किया जाए। मेरा कहना है कि रोटी, कपड़ा और मकान से जुड़ी योजनाओं को ‘कल्याणकारी योजना’ और बाक़ी को मुफ्तखोरी माना जाए।’

अश्विनी उपाध्याय ने मांग की है कि चुनावी घोषणापत्र के लिए एक ‘फॉरमेट’ हो और हर दल उसके मुताबिक़ अपनी घोषणा करे, जिसमें राज्य पर मौजूदा कजऱ्, चुनावी वादों के बाद बढऩे वाला कर्ज और सरकार बनने पर इसकी भरपाई की योजना का जि़क्र हो।

अश्विनी उपाध्याय के मुताबिक़, ‘जब मैंने जनहित याचिका डाली थी तब भारत सरकार पर 150 लाख़ करोड़ रुपये का कजऱ् था, जो अब बढक़र 225 लाख़ करोड़ हो गया है। जबकि दिल्ली सरकार का कर्ज 55 हजार से बढक़र एक लाख़ करोड़ हो गया है।’

अश्विनी उपाध्याय ने मांग की है कि जो पार्टी 5 साल सरकार चलाने के बाद कजऱ् को कम नहीं कर सके, उसपर चुनाव लडऩे पर पाबंदी लगा दी जाए।

बीते साल बीजेपी नेता और विधायक जीतेन्द्र महाजन की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस जस्टिस मनमोहन सिंह की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा था कि आम आदमी पार्टी शहर में आधारभूत ढांचों को बेहतर करने में नाकाम रही है।

बीते साल नवंबर में इस मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि सरकार ज़रूरी इंफ्रास्ट्रक्चर की मरम्मत करने की बजाय फ्रीबीज़ देने को प्राथमिकता दे रही है।

ये एक फ्लाईओवर की मरम्मत कर उसे लोगों के लिए खोलने से जुड़ा मामला था। सुनवाई के दौरान ये सामने आया था कि पीडब्ल्यूडी विभाग फ्लाइओवर बनाने वाले कॉन्ट्रेक्टर को 8 करोड़ रुपये का भुगतान नहीं कर सकी थी।

आंकड़ों में क्या है?

साल 2024-25 के दिल्ली के बजट के मुताबिक़ दिल्ली सरकार ने 78, 800 करोड़ का बजट पेश किया था।

इसके अनुसार दिल्ली में साल 2022-23 में 40 से ज्यादा करोड़ फ्री टिकट (दिल्ली की सरकारी बसों में महिलाओं को मुफ्त बस यात्रा के लिए पिंक टिकट जारी किए जाते हैं) किए गए।

साल 2019 से पिछले साल तक 87 हजार बुजुर्गों को मुफ्त तीर्थ यात्रा कराई गई।

दिल्ली में करीब 59 लाख घरेलू उपभोक्ता बिजली के थे पिछले साल के बजट के मुताबिक एक साल में 3।41 करोड़ बिजली का बिल जीरो यानी शून्य रहा।

दिल्ली जल बोर्ड का बजट 7 हज़ार करोड़ से ज्यादा का है। सरकार हर परिवार को दो हजार लीटर मुफ्त पानी देती है।

पिछले साल के बजट में दिल्ली में हर महिला को 1000 रुपये हर महीने देने का वादा किया गया था, जिसका बजट 2000 करोड़ रखा गया था। अब आम आदमी पार्टी इसे 2100 करने का वादा कर रही है, यानी यह बजट 4000 करोड़ से ज्यादा का होगा।

वहीं मनीकंट्रोल ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा कि अगर आम आदमी पार्टी दिल्ली में हर महिला को 2,100 रुपये प्रतिमाह देने के वादे को चुनाव जीतने के बाद पूरा करती है तो उसे 2026 के बजट में 10 हजार करोड़ रुपये अतिरिक्त चाहिए होंगे, जो उसके सब्सिडी बिल का दोगुना होगा।

इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में हर साल 3600 करोड़ बिजली सब्सिडी, 200 करोड़ पानी सब्सिडी और बस ट्रेवल पर 70 करोड़ की सब्सिडी दी जा रही है।

बीते साल अक्तूबर में इस तरह की ख़बरें आई थीं कि दिल्ली सरकार का बजट 31 सालों में पहली बार घाटे में जा सकता है।

वित्त विभाग के हवाले से मीडिया में रिपोर्ट आई कि वित्त वर्ष 2024-2025 के ख़त्म होने से पहले दिल्ली का बजट घाटे में जा सकता है। अनुमानों के अनुसार जहां इस वर्ष राजस्व से आय 62,415 करोड़ है, वहीं खर्च 63,911 करोड़ हो सकता है।

इन बयानों के बीच 16वें वित्त आयोग आयोग के चैयरमैन अरविंद पनगढिय़ा का एक बयान बीते दिनों चर्चा में रहा था।

कुछ दिन पहले उन्होंने फ्रीबीज़ (रेवडिय़ों) के सवाल पर कहा था कि जो पैसा परियोजनाओं के लिए दिया जाता है उसे केवल परियोजनाओं के कार्यान्वयन में ही लगाया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा था, ‘ये पैसा मुफ्त रेवडिय़ों के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। फ्रीबीज के लिए आम बजट में प्रावधान किया जाना चाहिए, जिसमें राज्यों से भी कर आता है।’

‘इस पर आयोग का न तो नियंत्रण है और न ही ऐसा कुछ उसे करना चाहिए, यानी राज्य सरकारें कैसे अपना पैसा खर्च करती हैं ये उनका फैसला है।’

‘आखिर में नागरिकों को ही फैसला लेना है। अगर नागरिक मुफ्त की रेवडिय़ों को देखते हुए अपनी सरकार चुनते हैं, तो वो रेवड़ी मांग रहे हैं। आखिर में नागरिकों को चुनना है उन्हें बेहतर सुविधाएं, बेहतर सडक़ें, पानी तक पहुंच चाहिए या फिर फिर कैश ट्रांसफर यानी...रेवड़ी चाहिए।’ (bbc.com/hindi)

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