संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सामाजिक समानता बढ़ भी सकती है एआई से, लेकिन घट भी सकती है
12-Jan-2025 6:26 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : सामाजिक समानता बढ़ भी सकती है एआई से, लेकिन घट भी सकती है

टेक्नॉलॉजी का इतिहास देखें तो उसमें आम लोगों को खास लोगों के मुकाबले कई किस्म से मुकाबले के लायक बनाया है। टेक्नॉलॉजी ने ऐसे कई औजार दिए हैं जिनके बिना विपन्न तबका सम्पन्न तबके का मुकाबला ही नहीं कर सकता था। मशीनों ने रोजगार भी पैदा किए, मजदूरों और कामगारों की उत्पादकता भी बढ़ाई, और लोगों के बीच का फासला घटाया है। एक वक्त था जब सिर्फ सम्पन्न तबके के घर टेलीफोन होता था, और उनके अड़ोस-पड़ोस के किसी व्यक्ति के लिए रिश्तेदार फोन करते थे, तो लोगों को बुलाया जाता था और वे उनके घर बैठकर दुबारा फोन आने का इंतजार करते थे। लोगों के पास घर या दफ्तर-दुकान में फोन होना ताकत और सम्पन्नता का सुबूत था। सम्पन्न लोग काम करते हुए भी अपने घर के लोगों के लिए फोन पर रहते थे, दूसरी तरफ गरीब मजदूर या कामगार घर से निकलने के बाद घर लौट जाने तक संपर्क के बाहर रहते थे। अब मोबाइल फोन की टेक्नॉलॉजी ने शुरूआती एक-दो साल के महंगे रेट के बाद गरीबों के हाथ में एक अभूूतपूर्व और असाधारण ताकत दे दी, और अब लोग झाड़ू लगाते हुए भी, बोरे लादते हुए भी, अपने तमाम करीबी लोगों और रोजगार से जुड़े के लिए उपलब्ध रहते हैं। कामगार के लिए एक काम निपटाते हुए भी अगला काम मौजूद रहता है, और यह मोबाइल फोन की टेक्नॉलॉजी कीमेहरबानी से ही हो पाया है।

ऐसे में टेक्नॉलॉजी ने दुनिया में समानता की एक क्रांति तो लाई है, लेकिन इसके साथ-साथ अब एआई के दाखिले से ऐसा भी लग रहा है कि खर्च करने की ताकत रखने वाला तबका एआई के औजारों का भुगतान करके क्या आगे निकलने की अधिक संभावनाएं खरीद पाएगा? अभी तो एआई खुद अपने शुरूआती दौर में है, और अपने इस्तेमाल करने वाले लोगों से वह लगातार सीख रहा है, और अपने को बेहतर बना रहा है। लेकिन दुनिया भर की कंपनियां जिस अंदाज में आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस में पूंजी निवेश कर रही हैं, उसे कुछ जानकार एक बुलबुला सा मानते हैं जो कि कुछ समय बाद फूट सकता है, और अधिकतर लोगों का पूंजी निवेश डूब भी सकता है। फिर भी निवेशकों का अंदाज यह है कि एआई पर टिकी हुई बहुत से ऐसी चीजें आगे आना बाकी हैं जो कि इस पर काम करने वाली कंपनियों को छप्पर फाडक़र कमाई दे जाएंगी। फिर एआई अपने-आपमें किसी टेक्नॉलॉजी का अंत नहीं है, वह महज  पेंट करने के एक ब्रश की तरह है जिससे अलग-अलग कलाकार अलग-अलग पेंटिंग बना सकते हैं, और पिकासो या मकबूल फिदा हुसैन करोड़ों-अरबों कमा सकते हैं। एआई विकसित करने वाले लोग महज ब्रश बनाने वाले लोग हैं। और इसका इस्तेमाल करने वाले लोग पेंटर। अब एआई से कमाई करने के अलग-अलग हजारों किस्म के जरिए हो सकते हैं जिनमें सैकड़ों तो मौजूदा कारोबार की उत्पादकता बढ़ाने वाले, और लागत को घटाने वाले आज भी साबित हो रहे हैं। बीमारियों की शिनाख्त और दवाईयों के आविष्कार का काम एआई की वजह से सैकड़ों गुना तेज हो गया है जो कि बहुत बड़े खर्च को बचा देगा। इस तरह एआई पर आधारित औजार अपने बनाने वाले लोगों का बड़ा फायदा भी करवा सकते हैं, और इस्तेमाल करने वाले लोगों का भी।

लेकिन हमारी एक आशंका यह भी है कि सतह पर तो इससे दुनिया में लोकतंत्र के बढऩे का आसार दिखता है, लेकिन एक खतरा यह दिखता है कि एआई के कई औजार ऐसे भी हो सकते हैं जो कि मोटी रकम से ही खरीदे जा सकें, और उतनी लागत न लगा पाने वाले लोग मुकाबले में पीछे रह जाएं? अगर एआई पर आधारित सॉफ्टवेयर और एप्लीकेशन बनाने वाले लोग कुछ चुनिंदा खरीददारों के हाथों में औजार बन जाएंगे, तो फिर वे इसे न खरीद पाने वाले लोगों के खिलाफ मुकाबले में एक हथियार भी बन जाएंगे। यह कुछ उसी किस्म का हो सकता है कि कुछ छात्रों को कम्प्यूटर और इंटरनेट की सहूलियत हासिल हो, और बाकी तमाम लोग उसके बिना महज किताबों से पढऩे को मजबूर हों। हमारी यह आशंका किसी भी नई टेक्नॉलॉजी के आने, और उसके महंगे रहने तक हर बार रहती आई है। अब एआई चूंकि पिछली हर किस्म की टेक्नॉलॉजी के मुकाबले बिल्कुल अलग किस्म की है, इसलिए इससे संभावनाएं और आशंकाएं भी अलग किस्म की हो सकती हैं। टेक्नॉलॉजी आमतौर पर चीजों को लोकतांत्रिक बनाती है, लेकिन कभी-कभी वह एक गैरबराबरी भी पैदा करती हैं। देखते हैं कि एआई से नफा-नुकसान कितने बरस चलता है, और कब जाकर यह सामाजिक समानता को बढ़ा सकेगी।

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)  

अन्य पोस्ट

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news