विशेष रिपोर्ट

पूर्वी विदर्भ की सीटों में कहीं बेटी और पिता में मुकाबला तो कहीं टिकट लौटाकर बेटे को उतारा मैदान पर
17-Nov-2024 1:37 PM
पूर्वी विदर्भ की सीटों में कहीं बेटी और पिता में मुकाबला तो कहीं टिकट लौटाकर बेटे को उतारा मैदान पर

0 विदर्भ की 62 सीटों में घमासान, फडऩवीस, पटोले, बावनफूले जैसे दिग्गज की साख दांव पर
 

  राजनांदगांव की सीमा पर छत्तीसगढ़ी गीतों से प्रचार  

नागपुर-गोंदिया से लौटकर प्रदीप मेश्राम

राजनांदगांव, 17 नवंबर (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। आगामी 20 नवंबर को नई सरकार चुनने जा रही महाराष्ट्र के विदर्भ की 62 सीटों पर पार्टी उम्मीदवारों के बीच मुकाबला रोमांचक  हो चला है। खासतौर पर पूर्वी विदर्भ की कई सीटों में  राजनीतिक दलों ने सियासी सफलता के लिए रिश्तेदारों को भी एक-दूसरे के खिलाफ मैदान में उतारने से परहेज नहीं किया है। वहीं राजनांदगांव जिले की सीमा से सटे गांवों में भाजपा-कांग्रेस समेत अन्य दलों के उम्मीदवार अपने पक्ष में माहौल बनाने के लिए छत्तीसगढ़ी गीतों का सहारा ले रहे हैं। छत्तीसगढ़ी आधारित चुनावी गीतों के जरिये राजनीतिक दलों को पासा पलटने का भरोसा है। 

पूर्वी विदर्भ के गढ़चिरौली के अहेरी सीट में पिता-पुत्री एक-दूसरे के खिलाफ सियासी तलवार ताने हुए खड़े हैं। भाजपा ने  इस सीट पर धरमराव बाबा आतराम को अधिकृत उम्मीदवार बनाया है तो शरद पवार की एनसीपी ने धरमराव की बेटी भाग्यश्री आतराम को खड़ा कर दिया है। इस सीट पर आतराम परिवार के दो और सदस्य अंबिश आतराम और दीपक आतराम भी अपना भाग्य आजमा रहे हैं। इसी तरह उद्धव ठाकरे के सरकार में गृहमंत्री रहे नागपुर से सटे काटोल सीट से अनिल देशमुख ने अपने बेटे शलील देशमुख को शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से उम्मीदवार बनाया है।

पहले अनिल देशमुख के नाम का ऐलान किया गया था, बाद में उन्होंने बेटे को चुनाव लड़ाने के इरादे से अपना नाम वापस ले लिया। इस सीट की खासियत यह है कि अजीत पवार की पार्टी ने भाजपा से गठबंधन होने के बावजूद अनिल देशमुख नामक एक नया चेहरा सामने ला दिया है। जिससे यहां की लड़ाई रोमांचक हो चली है। अजीत पवार की पार्टी से लड़ रहे अनिल देशमुख खेतीहर मजदूर हैं। 

इस बीच नागपुर जिले के सावनेर सीट में भी काफी गहमा-गहमी के साथ राजनीतिक लड़ाई चल रही है। इस सीट पर पूर्व मंत्री सुनील केदार ने अपनी पत्नी अनुजा केदार को कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में उतारा है। बीजेपी से आशीष देशमुख चुनाव लड़ रहे हैं। वह कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रंजीत देशमुख के पुत्र हैं।  विदर्भ के कुछ और ऐसे जिले हैं, जहां कई बड़े राजनीतिक महारथी अपना भाग्य आजमा रहे हैं। 

 

चंद्रपुर से सुधीर मुनगटीवार भाजपा से छठवीं बार किस्मत आजमा रहे हैं। मुनगटीवार वर्तमान महाराष्ट्र सरकार में बतौर वन मंत्री हैं। उनका पहली बार चुनाव लड़ रहे कांग्रेस के संतोष रावत से मुकाबला है। 

इस बीच विदर्भ के दिग्गज नेता पूर्व सीएम देवेन्द्र फडऩवीस,  महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष नाना भाऊ पटोले और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनफूले भी चुनाव मैदान में हैं। फडऩवीस नागपुर के दक्षिण-पश्चिम सीट से किस्मत आजमा रहे हैं। इसी तरह साकोली विधानसभा से पटोले भी जीत की उम्मीद लेकर लड़ रहे हैं। पटोले को मुख्यमंत्री का चेहरे के तौर पर देखा जा रहा है। उसी तरह कामठी विधानसभा से चंद्रशेखर बावनफूले भी चुनाव लडक़र विधानसभा में जाने जोर लगा रहे हैं। 

राजनांदगांव जिले की सीमा से सटे गोंदिया और आमगांव सीट में भी रोमांचक लड़ाई छिड़ी हुई है। गोंदिया सीट से भाजपा के विनोद अग्रवाल और कांग्रेस के गोपालदास अग्रवाल के बीच दिलचस्प लड़ाई नजर आ रही है। महाराष्ट्र के आखिरी छोर वाले आमगांव देवरी विधानसभा सीट आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित है। इस सीट पर भाजपा ने संजय पुराम को उम्मीदवार बनाया है। पुराम 2014 में भी विधायक रहे हैं। हालांकि विधानसभा 2019 के चुनाव में वह पराजित हुए थे। कांग्रेस के नए चेहरे के रूप में राजकुमार पुराम को उतारा है। चुनावी तैयारी और नतीजों को लेकर कई राजनीतिक पंडितों और पत्रकारों की नजर है।

नागपुर के एक प्रतिष्ठित अखबार के रिजनल एडिटर संजय देशमुख ने ‘छत्तीसगढ़’ को बताया कि  चुनावी रण में पार्टियां मतदाताओं को लुभाने के लिए कई अहम योजनाओं के जरिये अपना प्रभाव जमाने की कोशिश कर रही है। जिसमें लाड़ली बहना योजना और किसानों को कर्ज माफी जैसे मुख्य योजना शामिल है। इसी तरह चंद्रपुर के वरिष्ठ पत्रकार संजय तुमराम ने ‘छत्तीसगढ़’ से कहा कि इस बार का चुनाव काफी रोमांचकारी हो चला है। वजह यह है कि मौजूदा सरकार के कामकाज के आंकलन के आधार पर जनता वोट कर सकती है। कांग्रेस और एनसीपी भी सत्ता वापसी में जोर लगा रही है।

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