विशेष रिपोर्ट
खरसिया उपचुनाव के बाद अर्जुन सिंह ने बदली थी नीति
‘छत्तीसगढ़’ की विशेष रिपोर्ट- शशांक तिवारी
रायपुर, 8 नवंबर (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। सरकार तेन्दूपत्ता नीति में बड़ा बदलाव करने जा रही है। खबर है कि तेन्दूपत्ता के करीब 19 फीसदी हिस्से का सरकारीकरण किया जाएगा। यानी बस्तर की सवा सौ से अधिक समितियों में तेन्दूपत्ता संग्रहण का काम सीधे सरकार की एजेंसी लघु वनोपज संघ करेगी। चर्चा है कि केन्द्रीय गृह मंत्रालय के निर्देश पर तेन्दूपत्ता नीति में बदलाव किया जा रहा है। खास बात यह है कि लघु वनोपज संघ उन इलाकों में तेन्दूपत्ता संग्रहण का काम करेगी, जो कि नक्सल प्रभाव से काफी हद तक मुक्त हैं। जबकि धुर नक्सल इलाकों में तेन्दूपत्ता संग्रहण का काम व्यापारियों के मार्फत होगा।
सरकार तेन्दूपत्ता नीति में करीब 20 साल बाद बदलाव करने जा रही है। इससे पहले अविभाजित मध्यप्रदेश में वर्ष-1988 से राज्य बनने तक तेन्दूपत्ता कारोबार का सरकारीकरण चलता रहा है। गौर करने लायक बात यह है कि अविभाजित मध्यप्रदेश में खरसिया उपचुनाव के बाद तेन्दूपत्ता के कारोबार में ठेकेदारी प्रथा को खत्म कर तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने तेन्दूपत्ता कारोबार का राष्ट्रीयकरण कर दिया था। उस वक्त तेन्दूपत्ता के कारोबार से दिग्गज भाजपा नेता लखीराम अग्रवाल का परिवार सीधे जुड़ा था। यह माना जाता है कि भाजपा के तेन्दूपत्ता कारोबारियों को झटका देने के लिए सरकारीकरण किया गया था जो कि खरसिया उपचुनाव में अर्जुन सिंह के खिलाफ थे।
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद जोगी शासनकाल में पहली बार तेन्दूपत्ता नीति में बदलाव किया गया था, और वर्ष-2003 में पहली बार अविभाजित दंतेवाड़ा जिला (बीजापुर, दंतेवाड़ा, और सुकमा) में तेन्दूपत्ता संग्रहण का काम व्यापारियों के लिए खोल दिया गया। बाद में भाजपा सरकार बनने के बाद तेन्दूपत्ता कारोबार की सरकारी व्यवस्था को बंद कर दिया गया, और संग्रहण का काम व्यापारियों के मार्फत होने लगा।
सरकार ने तेन्दूपत्ता संग्रहण के लिए नीति बनाई हुई है, और 55 सौ रूपए प्रति मानक बोरी की दर से संग्राहकों से तेन्दूपत्ता खरीदी होती है। अब सरकार इस व्यवस्था में बदलाव कर रही है। भरोसेमंद सूत्रों के मुताबिक वन विभाग, और लघु वनोपज संघ के आला अफसरों ने मिलकर नई नीति बनाई है। नई नीति के संदर्भ में अगस्त महीने में मुख्य सचिव अमिताभ जैन की अध्यक्षता में उच्चस्तरीय बैठक हुई थी।
कहा जा रहा है कि गृह मंत्रालय के निर्देश पर बनाई गई है। केन्द्र सरकार राज्य के सहयोग से पूरे इलाके को नक्सलमुक्त करने के लिए व्यापक अभियान छेड़ा हुआ है। ऐसे में धुर नक्सल प्रभावित इलाकों में विकास से जुड़ी कई योजनाओं पर काम चल रहा है। इसकी केन्द्र सरकार सीधे मॉनिटरिंग कर रही है।
सूत्रों के मुताबिक नई तेन्दूपत्ता नीति में अग्रिम विक्रय (व्यापारियों के मार्फत संग्रहण) और विभागीय संग्रहण-गोदामीकरण, दोनों व्यवस्था रहेगी। तेन्दूपत्ता का संग्रहण लघु वनोपज सिर्फ बस्तर संभाग की 129 समितियों में करेगी। बाकी बस्तर और राज्य के बाकी संग्रहण इलाकों की 773 समितियों में अग्रिम व्यवस्था के अंतर्गत तेन्दूपत्ता का संग्रहण किया जाएगा। यानी यहां व्यापारियों के मार्फत संग्रहण की व्यवस्था यथावत रहेगी। खास बात यह है कि बस्तर के अलावा दुर्ग, बिलासपुर, सरगुजा व रायपुर संभाग के कई जिलों में तेन्दूपत्ता का संग्रहण होता है। संग्रहण कार्य से करीब 13 लाख आदिवासी परिवार जुड़े हुए हैं।
कहा जा रहा है कि लघु वनोपज संघ ने जिन 129 समितियों में संग्रहण के लिए बीड़ा उठाया है, उनमें बीजापुर की 5, दंतेवाड़ा की 3, जगदलपुर की 15, सुकमा की 12, कांकेर की 20, भानुप्रतापपुर की 28, दक्षिण भानुप्रतापपुर की 25, नारायणपुर की 5, कोंडागांव की 9, और केशकाल की 5 समितियां हैं। बस्तर में 216 प्राथमिक सहकारी समिति हैं, जिनमें से 129 में ही लघु वनोपज संघ की खरीदी होगी। इन समितियों में तेन्दूपत्ता संग्रहण का लक्ष्य 3 लाख 7 हजार 2 सौ मानक बोरा है जो कि कुल संग्रहण लक्ष्य 16 लाख 72 हजार मानक बोरा है। यानी 18.4 फीसदी की ही लघु वनोपज के माध्यम से संग्रहण किया जाएगा। तेन्दूपत्ता की नई नीति को कैबिनेट की बैठक में रखा जाएगा। कैबिनेट की मंजूरी के बाद लघु वनोपज संग्रहण के लिए प्रशासनिक तैयारी करेगा। तेन्दूपत्ता संग्रहण का कार्य मार्च से शुरू होकर जून तक चलता है। चर्चा तो यह भी है कि जिन इलाकों में संग्रहण के काम में दिक्कत आएगी, वहां व्यापारियों को दिया जा सकता है। बहरहाल, विभाग जल्द ही नई नीति का ऐलान करेगा।