विचार / लेख

हिन्दुत्व किससे खतरे में ?
31-Oct-2024 8:21 AM
हिन्दुत्व किससे खतरे में ?

-केशव कृपाल पांडेय 

कोई भी धर्म हो उसके अनुयाई उस धर्म के ठीक-ठीक पालन से और अनुरूप आचरण से जाने जाते हैं। लेकिन हिन्दूधर्म धर्माचरण की मर्यादा से निश्चिन्त तथा निष्क्रिय केवल पंडाल, शोभायात्रा, उत्सव, मेले और दिव्य दरबार में सहभागिता पर निर्भर हो गया है। पहले तो हमारा धर्म 'हिन्दू' धर्म है नहीं, पर जो है, मैं उसी की बात कर रहा हूं। 

वर्णव्यवस्था, चारों आश्रम, संध्या, तर्पण, पूजन, भक्ष्य-अभक्ष्य का विवेक, रोटी-बेटी के रिश्ते आदि अब कहां को बचे हैं? इनकी पूर्णतया वापसी संभव है भी नहीं। लेकिन सत्य, दया, धर्म, त्याग, तप आदि आध्यात्मिक मूल्यों की हिफाजत करना तो संभव है।

इनका बचे रहना उचित है या अनुचित, इससे परे प्रश्न यह है‌ कि इस प्रकार ‌हमारे स्वयं के धर्म से क्रमशः च्युत होने में क्या विधर्मी और मुसलमान कारण हैं? अगर नहीं तो फिर हमारे धर्म को इनसे से खतरा क्यों बताया जाता है?‌ धर्मसम्राट पूज्य करपात्रीजी महाराज कहा करते थे कि अपने धर्म में दृढ़ निष्ठा रखने वाला मुसलमान उस हिन्दू से अच्छा है‌ जो अपना धर्माचरण छोड़कर केवल हिन्दू होने की बात करता है।

वर्तमान समय में हिन्दू अपने धर्म का जितना विरोध कर रहे हैं, मुसलमान उसका एक अंश भी करता दिखाई नहीं देता। हमने कभी नहीं सुना कि हमारे देवताओं, प्रतीकों, ब्राह्मणों और महापुरुषों को मुसलमान ने अपमानित किया है। 

वर्तमान में धर्माचरण और आध्यात्मिक मूल्यों से‌ सर्वथा विहीन जो हिन्दू समाज दृश्यमान है, वह फल के छिलके की तरह स्वरस-विहीन है। उसे देखकर केवल फल की याद आ सकती है कि छिलका भी कभी फल था। 

आज का हिन्दू एक समुदाय या बहु संख्यक जनसमूह का वाचक हो गया है, धर्माश्रयी नहीं। जैसे मराठी, बंगाली, पहाड़ी और पंजाबी आदि शब्दों का व्यवहार होता है। यह विशेष हिन्दू अपने तथाकथित उत्कर्ष के अमृतकाल में किसी धार्मिक अनुशासन का मोहताज न होकर एक गैर पंजीकृत राजनीतिक संगठन का प्रारूप बन‌ चुका है।

हमारी गौ माता जिनके लिए भगवान के विविध अवतार हुआ करते हैं, बूचड़खानों में तड़प रही हैं और हम हिरण के पीछे पागल हो रहे हैं। मतवाला हिन्दू सड़क पर छटांक भर मांस पिंड के पीछे बवाल काट कर गौ माता से उऋण होना चाहता है और मस्जिदों पर ध्वजारोहण को परम धर्म समझ रहा है। हमारे खास मन्दिर आत्मशांति और आत्मोद्धार की पवित्र भावना से दूर पर्यटन, पैसा और जनमत के विस्तार की प्रयोगशाला बन रहे हैं। अब विचार कीजिए कि हिन्दू या हिन्दुत्व को खतरा हिन्दू से है या किसी पराये से?

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