ग्रामीणों ने कहा पहाड़ में जगह-जगह पड़ रही है दरार
अभिनय साहू की विशेष रिपोर्ट
अम्बिकापुर/उदयपुर, 27 जुलाई (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। सरगुजा जिले के उदयपुर ब्लॉक अंतर्गत विश्व की सबसे प्राचीनतम नाट्यशाला रामगढ़ एवं पहाड़ के ऊपरी हिस्से पर भगवान राम का काफी पुराना मंदिर है। कहा जाता है कि महाकवि कालिदास के मेघदूत में वर्णित रामगिरि पर्वत यही है, जहाँ उन्होंने बैठकर अपनी कृति मेघदूत की रचना की थी। यहाँ पर विश्व की प्राचीनतम गुफा नाट्य शाला स्थित है। इसे रामगढ़ नाट्य शाला के नाम से भी जाना जाता है। स्थानीय मान्यता है कि 14 बरस वनवास के दौरान एक लंबा समय राम, लक्ष्मण, सीता का यहां व्यतीत हुआ था।
ग्रामीणों ने बताया कि अब विश्व की यह प्राचीनतम नाट्यशाला आस-पास के कोल माइंस के लिए किए जा रहे विस्फोट के कारण खतरे में पड़ गया है,जगह-जगह दरारें पड़ रही है। जानकारी के मुताबिक़ पुरातत्व,धार्मिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से देश भर में प्रसिद्ध रामगढ़ से महज 5 से 7 किलोमीटर की दूरी पर परसा ईस्ट एवं केते बासेन की खुली कोल खदान है। खदान में कोयला निकालने हेतु बारूद का उपयोग किया जाता है और बड़ी चट्टानों को तोडऩे के लिए बड़ी मात्रा में यहां बड़े विस्फोट होते हैं। रामगढ़ पहाड़ी के आसपास के लोगो ने बताया कि जब बड़े विस्फोट होते हैं तो रामगढ़ की पहाड़ी पर हल्की कंपन्न उत्तपन्न होती है। इन विस्फोटों से रामगढ़ की पहाड़ी को लगातार क्षति हो रहा है।जबकि प्रबन्धन यह मानने को तैयार ही नहीं है कि उनके कोल उत्पादन हेतु किये जा रहे बारूद विस्फोट का प्रभाव अगल-बगल के क्षेत्रों में पड़ रहा है।
बदातुर्रा के आधा दर्जन से अधिक पहाड़ी कोरवा की बस्ती में कभी भी हो सकता है गंभीर हादसा
हसदेव बचाओ आंदोलन से जुड़े रामलाल ने बताया कि रामगढ़ पहाड़ी पर कई हिस्से इस स्थिति में धीरे-धीरे पहुंच रहे हैं कि कभी भी कोई गंभीर हादसा हो सकता है। कई पत्थर बीच से टूट रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर कोल खनन हेतु किये जाने वाले विस्फोट के प्रभाव से जब धरती के अंदरूनी क्षेत्र में हलचल होती है तो उसके प्रभाव से कई हिस्से नीचे की ओर दब रहे हैं। जिसे समय के साथ भूस्खलन एवं प्राकृतिक प्रभाव बता कर स्थानीय वन विभाग के अधिकारी भी मौन साध लेते हैं।
उन्होंने कहा कि बदातुर्रा एक मुहल्ला है जहां पर कुछ पहाड़ी कोरवा परिवार रहते हैं और वहां सोलर सिस्टम भी लगाये गए हैं। इसके ऊपरी हिस्से पर रामगढ़ का एक हिस्सा लगातार क्षतिग्रस्त हो रहा जो यहां कभी भी गिर सकता है। इससे न सिर्फ सोलर सिस्टम क्षतिग्रस्त होगा बल्कि 7-8 लोगों की यह बस्ती भी प्रभावित होगी। कभी भी कोई गंभीर हादसा हो सकता है।
स्थानीय निवासी और सामाजिक कार्यकर्ता क्रांति कुमार रावत कहते हैं-मैंने इसकी मौखिक शिकायत कई बार वन विभाग को की है लेकिन उस ओर उनका कोई ध्यान नहीं है। यदि कोई गंभीर घटना-दुर्घटना हुई तो जवाबदेही कौन लेगा। आगे क्रांति बताते हैं बड़े विस्फोट से रामगढ़ के ऊपर आने के लिए स्थानीय लोगों द्वारा बनाया गया पैदल रास्ता जिससे जानकार स्थानीय ही अधिकतर आते हैं वह भी किसी भी दिन बंद हो जाएगा। लगातार उसे क्षति पहुंच रही है। अब सवाल तो यह भी उठता है कि किसी प्रसिद्ध पुरातात्विक स्थल के नजदीक कोल खदान को पर्यावरणीय स्वीकृति कैसे मिल गई?
आंदोलन से जुड़े आनंद कुसरो कहते हैं ऐसा होने से एक गांव जो घाटबर्रा नाम का है उसका पूरा अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा। भविष्य में वह गांव रहेगा ही नहीं। इससे आमजनमानस में नाराजग़ी है यदि इतने क्षेत्रों में पेड़ों की कटाई शुरू हुई और कोल उत्पादन शुरू हुआ तो इस पुरातात्विक स्थल रामगढ़ के आसपास के क्षेत्र लगातार प्रभावित होंगे।
क्षेत्र में खदान नहीं खुलने देने को लेकर लगातार आंदोलन कर रहे स्थानीय लोगों में वहां के युवा काफी जागरूक हैं। युवा कहते हैं फिलहाल गांव, बस्ती, घर, जंगल के बाद अब लोगों की बड़ी चिंता यह है कि अब रामगढ़ का अस्तित्व भी संकट में है।खैर स्थानीय लोग वर्षों से आंदोलनरत हैं और लगातार आवाज़ उठा रहे हैं।
मैं मौके पर जाकर जांच करता हूं-एसडीएम
रामगढ़ पहाड़ी में आ रही दरार को लेकर छत्तीसगढ़ द्वारा उदयपुर एसडीएम बन सिंह नेताम सिंह से बातचीत की गई तो उन्होंने कहा कि मैं तहसीलदार के साथ स्वयं मौके पर जाकर देखता हूं और जहां मीईनिंग के लिए ब्लास्ट हो रहा है उसकी डिस्टेंस कितनी है इसकी भी जांच करवाता हूं।साथ ही एसडीएम ने कहा कि पहाड़ के नीचे जहां पहाड़ी कोरवा लोग रह रहे है मैं वहां भी जाऊंगा।