तस्वीर / ‘छत्तीसगढ़’
छत्तीसगढ़ के कवर्धा में पिछले बरस अपने स्कूल की 13 बरस की बच्ची से यौन शोषण करने वाले शिक्षक कुंजबिहारी को जिला अदालत ने 20 साल की कैद सुनाई है। इस अधेड़ शिक्षक ने स्कूली छात्रा को ऑनलाईन पढ़ाने के नाम पर अश्लील वीडियो भेजना शुरू किया, और फिर उसे भावनात्मक कब्जे में लेकर, उसका यौन शोषण किया। हमारा ख्याल है कि देश में हर प्रदेश में हर दिन एक से अधिक ऐसी खबरें छपती हैं जिनमें नाबालिग के यौन शोषण में किसी की गिरफ्तारी दिखती है। दूसरी तरफ हर दिन ऐसी खबर भी दिखती है जिसमें स्कूली बच्चों के यौन शोषण से लेकर स्कूलों में नशे में पहुंचने वाले शिक्षकों पर कार्रवाई होती है, गिरफ्तारी भी होती है। हम यह मानकर चलते हैं कि हर शिक्षक पढ़े-लिखे रहते हैं, और घर या स्कूल में न सही, चायठेले या पानठेले पर तो उनकी पहुंच अखबारों तक रहती है, और वे यह जानते हैं कि किस तरह की हरकत करने पर पुलिस और अदालत की कैसी कार्रवाई होती है। अभी-अभी छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाके के एक ऐसे स्कूल के शिक्षक का वीडियो सामने आया है जिसमें वह शराब पिया हुआ स्कूल पहुंचता है, और वहां के बच्चे चप्पलें फेंक-फेंककर उस शिक्षक को मारते हैं, और उसे बचकर मोटरसाइकिल पर भागना पड़ता है। स्कूलों में नशे में पड़े हुए शिक्षकों की तस्वीरें और उनके वीडियो तो आम हैं। अब इस ताजा मामले से यह तरस भी आता है कि स्कूली शिक्षकों में सामान्य समझबूझ भी शून्य सरीखी है, और वह नाबालिग छात्रा के फोन पर अश्लील वीडियो भेजकर भी इस भरोसे में बैठा है कि न तो उसे कोई और देखेंगे, और न ही कोई कार्रवाई होगी। मूर्खता की यह पराकाष्ठा बताती है कि कैसे-कैसे बेअक्ल लोग शिक्षक तो बन गए हैं, लेकिन उनका ध्यान बच्चियों के शोषण पर है। हर महीने ही छत्तीसगढ़ में ऐसे शिक्षक और हेडमास्टर पकड़ा रहे हैं, जो कि बच्चियों का देहशोषण कर रहे हैं। और भारत की आम गरीब बच्चियों की हालत को ध्यान में रखते हुए सोचें तो यह समझ पड़ता है कि शोषण की शिकार दर्जनों बच्चियों में से कोई एक बच्ची ही शिकायत का हौसला कर पाती होगी।
छत्तीसगढ़ के स्कूलों को कई तरह से सुधारने की जरूरत है। राज्य बना तब से अब तक यह देखने में आया है कि सरकार चाहे जो भी रहे, क्लासरूम का फर्नीचर खरीदने में परले दर्जे का भ्रष्टाचार रहता है, और हर स्कूल में एक-दो कमरे ऐसे टूटे हुए फर्नीचर से भरे रहते हैं, जो कि सप्लाई होते ही टूट जाते हैं। भ्रष्टाचार इस दर्जे का संगठित है कि अच्छा फर्नीचर बनाने वाले लोग सरकारी सप्लाई में कहीं टिक ही नहीं सकते। इसके अलावा खेल का सामान, लाइब्रेरी की किताबें, स्कूलों की हर किस्म की खरीदी भ्रष्टाचार से भरी हुई है। और अब तो जिस तरह पिछली भूपेश सरकार की एक सबसे प्रतिष्ठा वाली योजना, आत्मानंद स्कूल का भ्रष्टाचार सामने आ रहा है, वह बताता है कि जब कलेक्टरों के स्तर पर अंधाधुंध और मनमानी स्थानीय फैसले लिए जाते हैं, तो कैसी-कैसी और नई-नई गड़बडिय़ां होती हैं। अभी आत्मानंद स्कूलों की जांच शुरू भी नहीं हुई है जिन पर सरकार के अलग-अलग विभागों का, जिला खनिज निधि का, और उद्योगों के सीएसआर का मनमाना पैसा खर्च किया और करवाया गया है।
दूसरी तरफ स्कूलों में पढ़ाई का हाल इतना बुरा है कि राष्ट्रीय स्तर के जो सर्वे हुए हैं, वे बताते हैं कि छत्तीसगढ़ में 5वीं में पढ़ रहे बच्चे भी दूसरी कक्षा की पढ़ाई भी करने लायक नहीं हैं। यह तो गनीमत कि सरकारी स्कूलों में दोपहर का भोजन मिलता है, जिसकी वजह से बहुत से गरीब बच्चे स्कूल नहीं छोड़ते हैं, और स्कूलों में दर्ज संख्या अच्छी-खासी दिखती है। लेकिन बहुत सी जगहों पर शिक्षकों ने अपने आपको कहीं भी अटैच करवा लिया है, और अपनी मर्जी के शहरों में रहते हैं। नतीजा यह होता है कि हजारों ऐसी स्कूलें हैं जहां एक-एक शिक्षक पांच-पांच कक्षाएं पढ़ा रहे हैं, और बच्चों का भगवान ही मालिक है। किसी भी पार्टी की सरकार रहती हो, स्कूल शिक्षा विभाग सप्लायरों का पसंदीदा विभाग रहता है क्योंकि सरकारी सप्लाई का घटिया सामान इस्तेमाल करने वाले बच्चे किसी शिकायत करने की समझ भी नहीं रखते हैं। गरीब बच्चों के मां-बाप इसी बात पर खुश रहते हैं कि उनके बच्चों को फीस नहीं देनी पड़ रही, स्कूल का यूनिफॉर्म सरकार दे रही है, दोपहर का भोजन भी वहां मिल रहा है, और किताबों का भी पैसा नहीं देना पड़ता। इन सहूलियतों के बाद मां-बाप पढ़ाई-लिखाई की उत्कृष्टता के बारे में सोचने का तो मानो अधिकार ही खो बैठते हैं। अब ऐसा लगता है कि स्कूल शिक्षामंत्री बृजमोहन अग्रवाल लोकसभा चुनाव जीत सकते हैं, और इस विभाग की जिम्मेदारी किसी और मंत्री पर आ सकती है, तो ऐसे में सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी को यह भी सोचना चाहिए कि क्या स्कूल शिक्षा को भ्रष्टाचार से मुक्त विभाग बनाया जा सकता है? सरकारों से भ्रष्टाचार मुक्त होने की उम्मीद आज के वक्त में शायद देश में कहीं भी बहुत जायज नहीं है, लेकिन आने वाली पीढ़ी की बुनियाद ही भ्रष्टाचार की वजह से कमजोर न हो, ऐसी फिक्र जिन लोगों को हो, उन्हें जरूर इस बारे में सोचना चाहिए।
जहां स्कूली शिक्षक छात्राओं से बलात्कार करते पकड़ाते हों, वहां न पकड़ाने वाले शिक्षकों के बारे में भी सरकार को सोचना चाहिए, और स्कूलों में ऐसी निगरानी समितियां बनानी चाहिए जो कि छात्र-छात्राओं से बात करके शिक्षकों के बारे में जानकारी ले। हो सकता है कि शिकायत बक्से लगाना कारगर हो, या हर स्कूल की दीवार पर ऐसे नंबर लिखे हों जहां फोन करके या संदेश भेजकर शिकायत दर्ज करवाई जा सके। इससे भी बेहतर विकल्प यह होगा कि उस इलाके में काम करने वाले कुछ प्रतिष्ठित और जिम्मेदार जनसंगठनों की मदद ली जाए, और बच्चों का हौसला बढ़ाया जाए कि वे अपने शोषण के खिलाफ शिकायत कर सकें। ऐसा हौसला बढऩे पर बच्चियों की शिकायत अभी कुछ हफ्ते पहले ही सामने आई है। भारत में अगर अगली नौजवान पीढ़ी को बेहतर बनाना है, तो उसकी शुरूआत स्कूलों में सुधार लाकर ही की जा सकती है। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)