विचार / लेख
-डॉ.संजय शुक्ला
पाषाण सभ्यता से लेकर आधुनिक सभ्यता के विकास में नदियों और तालाबों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। बदलते परिवेश में यह अतिशयोक्ति नहीं होगी कि आधुनिक सभ्यता ने सबसे ज्यादा असभ्यता इन्हीं नदियों और तालाबों के प्रति दिखाई है। हाल ही में छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से खबर आई कि शहर की ‘जीवनदायिनी’ खारून नदी में शहर के विभिन्न क्षेत्रों के नालों का गंदा पानी मिल रहा है। यह आलम तब है जब क?ई नालों के गंदे पानी को साफ करने के लिए सिवरेज ट्रिटमेंट प्लांट ‘एसटीपी’ लगे हुए हैं बावजूद खारून में झाग युक्त बदबूदार गंदा पानी मिल रहा है। अलबत्ता अकेले रायपुर के खारून नदी ही नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ की सभी प्रमुख नदियां मानवीय सभ्यता के निर्ममता का शिकार है।
कुछ दिनों पहले छत्तीसगढ़ की मोक्षदायिनी महानदी के बारे में खबर आई कि इसके तट पर राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ‘एनजीटी’ के नियमों और निर्देशों धता बताते हुए इसके तट पर संचालित हो रहे अवैध चूना और फर्शी पत्थर खदानों द्वारा मलबों के नदी में डाला जा रहा है। बात यदि छत्तीसगढ़ के नदियों जिसमें महानदी, शिवनाथ, हसदेव, केलो, इंद्रावती और अरपा की बात करें तो यह नदियां मानव सभ्यता और आधुनिक मशीनरी का कचरा ढोते - ढोते मरने के कगार पर है। दरअसल इन नदियों के तट पर स्थापित उद्योगों के औद्योगिक अपशिष्ट इन नदियों का सेहत बिगाड़ रहे हैं वहीं सरकार और समाज की उदासीनता भी इसके लिए जवाबदेह है।
छत्तीसगढ़ के प्रमुख औद्योगिक शहर कोरबा में हसदेव नदी की दुर्दशा देखने के बाद पता चलता है कि विकास के नाम पर नदियों पर किस तरह से बेरहमी की जा रही है? सरकार के तमाम दावों के बीच हसदेव में सफेद राखड़ और कोयला मिल रहा है। एक अध्ययन के मुताबिक हसदेव की पानी में काफी मात्रा में हैवी मैटल और कार्बनिक पदार्थ पाए गए हैं जो मानव स्वास्थ्य और परिस्थितिकी तंत्र के लिए ख़तरनाक है। इसी तरह से रायगढ़ की जीवनरेखा केलो नदी में लगातार घरेलू और औद्योगिक अपशिष्टों के मिलने के कारण इस नदी का पानी ‘जहर’ बन रही है। बस्तर की जीवनदायिनी इंद्रावती लौह अयस्क के शोधन के चलते मटमैली हो चुकी है। राज्य के प्रमुख नदियों के पानी के केमिकल टेस्ट रिपोर्ट बताती है कि इनके पानी में एसिड की मात्रा लगातार बढ़ रही है फलस्वरूप ऑक्सीजन की मात्रा घटती जा रही है।
राज्य के नदियों के पानी में कॉलिफार्म बैक्टीरिया तय मानक से सात गुना ज्यादा पाया गया है जो मानव और पशु स्वास्थ्य के लिए हानिप्रद है। रिपोर्ट के मुताबिक नदियों के पानी का हाइड्रोजन की संभावना ( पीएच) भी लगातार बढ़ रही है। विशेषज्ञों की मानें तो पानी में हाइड्रोजन की मात्रा न्यूनतम 6.5 और अधिकतम 8.5 होना चाहिए लेकिन राज्य के प्रमुख पांच नदियों के पानी का पीएच 7 से ज्यादा है जिसमें बढ़ोतरी की संभावना है। बिलाशक इसके के लिए प्रमुख वजह राज्य में जारी अंधाधुंध औद्योगिकीकरण है। उद्योगों से निकलने वाले अपशिष्ट जिसमें हानिकारक रसायन मिले होते हैं नदियों को लगातार बीमार बना रहे हैं। हालांकि ऐसा नहीं है कि सरकार और एनजीटी को राज्य के नदियों की फि़क्र नहीं है बावजूद पांचों प्रमुख नदियां ‘मलिन नदियों ’ में शामिल है।नदियों को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए प्रमुख नदियों में 22 से ज्यादा ‘एसटीपी’ बनाए जा चुके हैं वहीं नदियों को प्रदूषित करने वालों के खिलाफ लगातार कार्रवाई की जा रही है और जुर्माना वसूला जा रहा है लेकिन नतीजा सिफर है।
गौरतलब है कि भारत धार्मिक मान्यताओं वाला देश है जहाँ नदियां और तालाब सदियों से आस्था, सभ्यता,संस्कृति, और आजीविका का साधन रही हैं लेकिन आधुनिक विकास की बढ़ती भूख ने इन संसाधनों को मानव सभ्यता का कचरा और कल-कारखानों के जहरीले रसायन बहाने का साधन बना दिया है। देश की सर्वाधिक धार्मिक महत्व वाली गंगा और यमुना को सर्वाधिक प्रदूषित नदी खिताब दिया गया है। उत्तर भारतीयों के प्रमुख पर्व 'छठ पूजा ' के दौरान दिल्ली की झागदार यमुना की तस्वीर देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया की मीडिया में सुर्खियां बटोरती है। इस साल भी छठ पूजा के दौरान दिल्ली सरकार और प्रमुख विपक्षी दल ‘आप’ के बीच यमुना की सफाई पर खूब सियासी आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला चला जो आगे भी जारी रहने की संभावना है। वहीं प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान गंगा के पानी और प्रदूषण पर भी संसद से लेकर मीडिया में सत्ता और विपक्ष के बीच सियासी तलवार खींची गई थी।
अलबत्ता इसमें कोई इंकार नहीं कि आध्यात्मिक महत्व वाली गंगा, यमुना, नर्मदा, महानदी, क्षिप्रा अनेक नदियां प्रदूषण की वजह से डुबकी या आचमन के लायक नहीं हैं।केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक प्रदूषण के कारण देश की 328 नदियों का पानी सेहत के लिहाज से हानिकारक है। इन नदियों के पानी में मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक अमोनिया, हाइड्रोजन सल्फाइड,नाइट्रेट, क्रोमियम, लेड जैसे घातक रसायन और कोयला, चूना ,तांबा और लोहा जैसे हैवी मेटल्स पाए गए हैं। केंद्रीय जल आयोग ‘सीड्ब्ल्यूसी’ के एक अध्ययन से पता चला है कि देश की 81 नदियों और उसके सहायक नदियों में हानिकारक हैवी मेटल्स का स्तर काफी ऊंचा पाया गया।
दरअसल जीवनदायिनी नदियों के जीवन खतरे में डालने के लिए सरकार के साथ ही नागरिक समाज भी पूरी तरह से जिम्मेदार है। सरकार और स्थानीय नगरीय प्रशासनों द्वारा सौंदर्यीकरण और व्यवसायिक गतिविधियों के नाम पर नदियों के तटों को पाटकर सडक़ें और चौपाटियां बनाईं जा रही है। इसके अलावा सीवरेज एवं औद्योगिक अपशिष्टों के सीधे नदियों में डाले जाने की वजह से जहां नदियों का पर्यावरण बिगड़ रहा है वहीं इसकी जैव विविधता भी प्रभावित हो रही है। देश के अनेक नदियों में जलीय जीव जंतुओं और वनस्पतियां खत्म हो रही है।अलबत्ता नागरिक समुदाय भी नदियों को मैली करने में कम दोषी नहीं है प्रशासन के तमाम प्रतिबंधों के बावजूद विभिन्न धार्मिक अवसरों पर प्लास्टर ऑफ पेरिस और थर्मोकोल से बनी मूर्तियों को नदियों में विसर्जित किया जाता है। मूर्तियों के घातक रंग और रसायन जहां नदियों के पानी को प्रदूषित करते हैं वहीं प्लास्टर ऑफ पेरिस नदियों के तलहटी में जमा हो जाते हैं फलस्वरूप नदियों के रिचार्ज क्षमता प्रभावित होती है। इसके अलावा शवों, अस्थियों, पालिथीन और पूजा एवं हवन सामग्रियों को नदियों में विसर्जित किया जाता है जिसके चलते नदियां प्रदूषित हो रही है ।
बहरहाल क्या हम ऐसे भारत की कल्पना कर सकते हैं जहां नदियां न हों गंगा और यमुना न हों, जहां क्षिप्रा और नर्मदा न हो, जहां गोदावरी और ब्रम्हपुत्र न हो, जहां महानदी और शिवनाथ न हो? बिलाशक यह कल्पना बेमानी है लिहाजा नदियों पर सिर्फ सियासत नहीं बल्कि इन्हें साफ रखने की दिशा में सोचना होगा। आखिरकार नदियों के कल-कल में ही जीवन का कल यानि भविष्य है। मरती नदियां कैसे जी उठती है? इसका उदाहरण लंदन की टेम्स नदी है जिसे ‘डेड रिवर’ घोषित कर दिया गया था जिसमें जलीय जीव - जंतु भी जीवित नहीं रह सकते थे लेकिन ब्रिटेन सरकार और समाज की दृढ़ इच्छाशक्ति ने इस नदी को दुनिया का सबसे सुंदर और साफ नदी का तमगा दिला दिया। यह उदाहरण भारत के लिए भी प्रेरणा बन सकता है बशर्ते देश के राजनीतिक दल नदियों पर सियासत का कीचड़ फेंकने की जगह समाधान की दिशा में विचार करें। सरकारों का भी दायित्व है कि वह नदियों के सफाई के लिए लागू एक्शन प्लान के भ्रष्टाचार मुक्त और समयबद्ध क्रियान्वयन के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति प्रदर्शित करे वहीं नागरिक समाज का भी दायित्व है कि वह नदियों के प्रति उदार और स्व- अनुशासित हों तभी देश की नदियां अविरल और निर्मल होंगी।


