विचार / लेख
-अशोक पांडे
तीस साल का होते-होते बीथोवन तकरीबन बहरा हो चुका था। बहुत बचपन से ही एक विलक्षण संगीतकार के रूप में पहचान लिए गए बीथोवन को उस समय तक दुनिया सर्वकालीन सर्वश्रेष्ठ पियानिस्ट के तौर पर जानने लगी थी। उनकी रची हर सिम्फनी यूरोप के संगीत-संसार में तहलका मचा दिया करती थी।
वह छब्बीस-सत्ताईस साल का था जब पहली बार उसे बहरेपन की बीमारी का पता चला। वह अपने घर पर संगीत की रचना कर रहा था जब किसी ने उसके काम में बाधा डाली। इससे क्रुद्ध होकर बीथोवन खूब चीखा-चिल्लाया। शांत होने पर उसे भान हुआ कि उसे थोड़ा कम सुनाई दे रहा है। सुनने की उसकी यह स्थिति लगातार खराब होती चली गयी। बीच में उसने आत्महत्या करने की भी सोची।
बहरेपन का इलाज करवाने के उद्देश्य से वह वियेना चला आया जहाँ के तमाम चश्मों-जलस्रोतों के पानी में चमत्कारिक औषधीय गुण बताए जाते थे। वियेना में वह एक घर से दूसरा घर बदलता रहा जब तक कि घर बदलने की उसकी सनक एक मिथ नहीं बन गयी। बताते हैं अपने कोई पैंतीस साल के वियेना प्रवास में उसने 60 घर बदले।
धीरे-धीरे वह सार्वजनिक जीवन से दूर होता चला गया। 1810 के आसपास जब वह चालीस का हुआ, सुनने की उसकी शक्ति पूरी तरह जा चुकी थी। यह उसका जीवट था कि उसने जीवन के अंतिम सालों में एक से एक बेहतरीन संगीत रचनाएं कीं और जीते जी अपने आप को दुनिया के महानतम संगीतकार के रूप में स्थापित कर लिया था। 56 साल की उम्र में हुई मौत से एकाध बरस उसने एक कंसर्ट की जिसमें लोगों की ऐसी भीड़ उमड़ी कि पुलिस बुलानी पड़ी। कंसर्ट के बाद पंद्रह मिनट तक तालियों की गडग़ड़ाहट गूँजती रही जिससे बेखबर बीथोवन की कुर्सी को श्रोताओं की दिशा में घुमाना पड़ा ताकि वह उस तारीफ़ को देख सके।
मानव सभ्यता में रचे गए संगीत के सबसे मीठे टुकड़े बीथोवन ने केवल अपने मस्तिष्क और आत्मा के कानों की मदद से रचे जिन्हें वह खुद कभी नहीं सुन सका।
1802 में जब वह बत्तीस साल का था, बीथोवन वियेना के हेलीगेनश्टाट में रहता था। पिछले पांच सालों से अपनी बीमारी के चलते वह घनघोर निराशा से जूझ रहा था। उसे लगता था वह जल्द मर जाएगा। यहाँ से उसने उस साल 6 अक्टूबर को अपने भाइयों, कार्ल और योहान के लिए एक लंबा ख़त लिखा जिसे अब हेलीगेनश्टाट टेस्टामेंट के नाम से जाना जाता है।
इसमें एक जगह वह लिखता है – ‘मैं बहुत दुखी हो गया था – थोड़ा और निराशा होती तो मैंने अपने जीवन का अंत कर लेना था। सिर्फ मेरी कला ने मुझे बचाया। मुझे यह असंभव लगा कि उस सब को बाहर निकाले बिना दुनिया से जाया जा सकता है जो मुझे लगता है मेरे भीतर था।’
‘लोग कहते हैं मुझे धैर्य को अपना गाइड बना लेना चाहिए। और मैंने वैसा ही किया भी है। मुझे उम्मीद है मेरा विश्वास मजबूत बना रहेगा। जऱा सोचिये अठ्ठाइस साल की आयु में मैं दार्शनिक बन जाने को मजबूर कर दिया गया हूं। एक कलाकार के लिए यह स्थिति किसी भी और इंसान से कहीं अधिक मुश्किल है।’
जीवन के सबसे निराश-उदास पलों में मैं सम्हाल कर रखे गए हेलीगेनश्टाट टेस्टामेंट के उस रिप्रोडक्शन को फैलाकर देखता रहता हूँ जो कोई पंद्रह साल पहले, ढाका में रहने वाले मेरे अजीज संगीतकार दोस्त जुबैर ने वियेना के उसी घर में तोहफे के बतौर दिया था जहां उसे लिखा गया था।
टेढ़ी-मेढ़ी बेपरवाह हैण्डराइटिंग में उसकी लिखी इबारत जऱा भी समझ में नहीं आती। उसे देखने का फौरी असर यह होता है कि निराशा की गर्त से उठकर जीवन का महाराग बना बीथोवन का संगीत, अंधेरी रातों में झिलमिल पतंगी कागज़ से बनी कंदील की तरह दिपदिप करने लगता है।
हर बड़े संगीत की मुलायम, दुलारभरी रोशनी में नए सपने पैदा करने की ताब छिपी होती है। यकीन मानिए!


