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वो नोबेल विजेता लेखिका जिन्होंने गर्भपात के बाद दुनिया को हकीकत बताने की ठानी
19-Dec-2025 11:24 PM
वो नोबेल विजेता लेखिका जिन्होंने गर्भपात के बाद दुनिया को हकीकत बताने की ठानी

-वीबेका वेनेमा-लॉरा गॉजी

‘उस गर्भपात का हर पल मेरे लिए हैरानी भरा था,’ एनी एर्नॉ कहती हैं।

फ्रांस की नोबेल साहित्य पुरस्कार विजेता ने यह बात 1963 में छिपकर करवाए गए एक गर्भपात के बारे में बात करते हुए कही। उस गर्भपात ने लगभग उनकी जान ही ले ली थी।

उस समय वह 23 साल की एक छात्रा थीं और लेखक बनने का सपना देख रही थीं।

उनका परिवार मजदूर और दुकानदारों का था। परिवार में वो पहली थीं जो विश्वविद्यालय जा पाई थीं, ऐसे में उन्हें लग रहा था कि उनका भविष्य उनके हाथ से निकल रहा है।

बाद में उन्होंने लिखा, ‘मैंने यौन संबंध बना लिए थे और अपने अंदर बढ़ती चीज़ को मैं सामाजिक रूप से असफल होने के धब्बे के रूप में देख रही थी।’

जब वह अपने पीरियड का इंतजार कर रही थीं तब उनकी डायरी में दर्ज एक-शब्द की एंट्रियां ऐसे लगती थीं जैसे बर्बादी की उलटी गिनती ।

अब उनके पास दो ही रास्ते थे - खुद गर्भपात करने की कोशिश करना या किसी डॉक्टर या छिपकर गर्भपात कराने वाले को ढूंढना। पैसे लेकर यह काम करने वाले ऐसे लोग, जो आमतौर पर महिलाएं होती थीं, ‘एंजेल मेकर्स’ कहलाते थे।

लेकिन इस बारे में जानकारी हासिल करना असंभव था। गर्भपात गैरकानूनी था और इसमें शामिल किसी भी व्यक्ति - यहां तक कि गर्भवती महिला को भी जेल हो सकती थी।

एर्नॉ कहती हैं, ‘यह सब गुप्त था, कोई बात नहीं करता था, उस समय की लड़कियों को बिल्कुल पता नहीं था कि गर्भपात कैसे होता है।’

चुप्पी तोडऩा

एर्नॉ अकेले छूटने जैसा महसूस कर रही थीं- लेकिन उनका निश्चय पक्का था। और जब उन्होंने उस समय के बारे में लिखना तय किया तो उनका मक़सद दरअसल यह दिखाना था कि इस समस्या का सामना करने में कितनी हिम्मत चाहिए होती है।

वह कहती हैं, ‘यह सच में जिंदगी और मौत की लड़ाई थी।’

अपनी किताब ‘हैपनिंग’ में एर्नॉ ने घटनाओं को बेहद साफ और तथ्यात्मक भाषा में, बिना किसी झिझक के लिखा है।

वह कहती हैं, ‘असल में फर्क़ तो विस्तृत ब्यौरों से पड़ता है।’

‘वह बुनाई की सुई थी, जो मैं अपने माता-पिता के घर से लाई थी। यह भी कि जब आखिरकार मेरा गर्भपात हुआ, तो मुझे पता नहीं था कि प्लेसेंटा भी बाहर निकलेगा।’

उन्हें यूनिवर्सिटी के हॉस्टल से अस्पताल ले जाना पड़ा था क्योंकि उनका ख़ून बहुत ज़्यादा बह रहा था।

वह कहती हैं, ‘किसी महिला के साथ की जाने वाली यह सबसे भयानक हिंसा है। आखिर हम महिलाओं के साथ कैसे यह सब होने दे सकते थे?’

‘मुझे यह सब लिखने में शर्म नहीं आई। मुझे यह अहसास था कि मैं कुछ ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण काम कर रही हूं।’

‘मुझे लगा कि जिस चुप्पी ने गैर-कानूनी गर्भपात को घेर रखा था, वही चुप्पी क़ानूनी गर्भपात पर भी छाई हुई है। तब मैंने सोचा, ‘यह सब भुला दिया जाएगा।’

साल 2000 में प्रकाशित हैपनिंग अब फ्रांस के स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल है। इस पर एक फि़ल्म भी बनी है, जिसने कई पुरस्कार जीते हैं।

एर्नॉ कहती हैं कि युवाओं के लिए यह जानना जरूरी है कि गैरकानूनी गर्भपात कितना खतरनाक होता है, क्योंकि कभी-कभी राजनेता कानूनी गर्भपात तक पहुंच पर भी पाबंदियां लगाने की कोशिश करते हैं। वह अमेरिका के कुछ राज्यों और पोलैंड में हुए हाल के घटनाक्रमों की ओर इशारा करती हैं।

वह कहती हैं, ‘अपने शरीर पर और इस वजह से प्रजनन पर नियंत्रण मूलभूत आज़ादी है।’

फ्रांस ने अब सुरक्षित गर्भपात के अधिकार को अपने संविधान में शामिल कर लिया है, और ऐसा करने वाला वह पहला देश बन गया है। लेकिन एर्नॉ चाहती हैं कि उन अनगिनत महिलाओं को पहचान मिले, जो गैरकानूनी गर्भपात के बाद बच नहीं पाईं।

कोई नहीं जानता कि ठीक-ठीक यह संख्या क्या होगी क्योंकि अक्सर मौत के कारण को छिपा दिया जाता था। अनुमान है कि 1975 में गर्भपात को क़ानूनी रूप मिलने से पहले फ्ऱांस में हर साल 3 लाख से लेकर 10 लाख तक महिलाओं ने गैर-कानूनी गर्भपात करवाया था।

वह कहती हैं, ‘मुझे लगता है कि उनके लिए एक स्मारक होना चाहिए, जैसे फ्रांस में अज्ञात सैनिकों के लिए है।’

एर्नॉ इस साल की शुरुआत में पेरिस के मेयर से मिलने वाले एक प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थीं, जिसने ऐसा स्मारक बनाने का प्रस्ताव रखा था। लेकिन उनके इस प्रस्ताव पर कोई कार्रवाई होगी या नहीं, यह मार्च के चुनावों के नतीजों पर निर्भर करेगा।

यह विषय आज भी लोगों को झकझोरने की ताकत रखता है। जब एर्नॉ की किताब ‘द ईयर्स’ पर आधारित एक नाटक में गर्भपात का दृश्य आता है, तो अक्सर दर्शकों को हॉल से बाहर ले जाना पड़ता है।

‘जो हुआ उसे आज बलात्कार माना जाएगा’

एर्नॉ कहती हैं कि उन्हें कुछ मज़ेदार प्रतिक्रियाएं भी मिलीं। एक विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ने उनसे कहा, ‘मेरा जन्म 1964 में हुआ था, यह मैं भी हो सकती थी!’

वह कहती हैं, ‘यह महिलाओं की ताकत के प्रति असाधारण डर को दिखाता है।’

अपने लेखन में एर्नॉ ने निडर होकर अपनी जिंदगी की पड़ताल की है।

उनकी किताबों में उन शर्मनाक विषयों पर बात की गई है, जिनका अनुभव तो कई लोगों ने किया है, लेकिन जिन पर बात करने की हिम्मत बहुत कम लोग करते हैं - यौन उत्पीडऩ, परिवार के गंदे राज़, मां को अल्ज़ाइमर में खोना।

हैपनिंग के अंत में वह लिखती हैं- ‘ये सब मेरे साथ इसलिए हुआ ताकि मैं इन्हें बयान कर सकूं।’

हालांकि, वह आधुनिक मूल्यों को पुराने समय पर नहीं थोपतीं। उनका उद्देश्य है कि जो हुआ और जैसा उन्होंने उस समय महसूस किया, उसे ठीक-ठीक बता दिया जाए।

अपनी किताब ‘अ गल्र्स स्टोरी’ में वह अपने पहले यौन अनुभव का जिक्र करती हैं। वह एक समर कैंप में काम कर रही थीं और एक बड़े उम्र के कैंप लीडर ने उनका शोषण किया था।

उस समय, उन्हें समझ नहीं आया कि क्या हो रहा है, और वह ‘कुछ ऐसे थीं जैसे सांप के सामने चूहा, जिसे पता ही नहीं कि क्या करना है।’

अब, वह मानती हैं कि इसे बलात्कार माना जाएगा, लेकिन कहती हैं कि उनकी किताब में यह शब्द शामिल नहीं है। ‘क्योंकि मेरे लिए महत्वपूर्ण यह है कि मैं ठीक वही बता सकूं जो हुआ था, बिना किसी राय के।’

एनी एर्नॉ का कोट

ये घटनाएं उनकी निजी डायरियों में दर्ज थीं, जिन्हें एर्नॉ 16 साल की उम्र से लिखती थीं। शादी के बाद, ये अनमोल चीजें उनकी मां के घर के एक बॉक्स में रख दी गईं थीं। इनके साथ ही उनके दोस्तों की लिखी चि_ियां भी थीं।

लेकिन 1970 में, जब एर्नॉ की मां उनके पास रहने आईं, तो वह सब कुछ ले आईं-सिवाय उस बॉक्स और उसके अंदर की चीजों के।

एर्नॉ कहती हैं, ‘मैं समझ गई थी कि उन्होंने उन्हें पढ़ा और सोचा होगा कि उन्हें नष्ट कर दिया जाना चाहिए। उन्हें निश्चित रूप से बहुत ज़्यादा घृणा हुई होगी।’

यह ऐसा नुकसान था जिसका हिसाब नहीं लगाया जा सकता था लेकिन एर्नॉ अपने रिश्ते को एक बेकार की बहस की वजह से खऱाब नहीं करना चाहती थीं।

और उनके अतीत को मिटाने की उनकी मां की यह कोशिश सफल भी नहीं हुई।

एर्नॉ अपनी किताब ‘ए गल्र्स स्टोरी’ में लिखती हैं, ‘सच्चाई आग में भी जीवित रही।’

बिना डायरियों के वह अपनी याददाश्त पर ही निर्भर थीं और यह काफ़ी ठीक निकली।

वह कहती हैं, ‘मैं अपनी इच्छा से अपने अतीत में सैर कर सकती हूं। यह ऐसा है जैसे प्रोजेक्टर पर कोई फि़ल्म चल रही हो।’

अपनी महत्वपूर्ण पुस्तक ‘द ईयर्स’ लिखने के लिए भी उन्होंने यही तरीका अपनाया। यह युद्ध के बाद की पीढ़ी का एक साझा इतिहास है।

वह कहती हैं, ‘मुझे बस यह पूछना था कि युद्ध के बाद क्या हो रहा था? और मैं उस सबको देख सकती थी, सुन सकती थी।’

ये यादें सिर्फ उनकी अपनी नहीं हैं, बल्कि उनके चारों ओर के लोगों की साझा यादें भी हैं। एर्नॉ का पालन-पोषण नॉरमैंडी में अपने माता-पिता के कैफे में हुआ था, जहां वह सुबह से रात तक ग्राहकों से घिरे रहते थे।

इसका मतलब था कि उन्हें कम उम्र से ही वयस्कों की समस्याओं के बारे में पता चल गया था- जो उन्हें शर्मिंदा करता था।

वह कहती हैं, ‘मुझे यकीन नहीं था कि मेरे सहपाठियों को दुनिया के बारे में उतना ही पता है जितना मुझे था। मुझे नफरत थी कि मुझे उन पुरुषों के बारे में पता था जो नशे में रहते थे, जो बहुत पीते थे। इसलिए मैं बहुत सारी चीजों पर शर्मिंदा होती थी।’

 

‘मैं लिखूंगी ताकि अपने लोगों का बदला ले सकूं’

एर्नॉ बेहद सादी और अलंकार रहित शैली में लिखती हैं। उन्होंने एक बार बताया था कि यह शैली तब विकसित हुई जब उन्होंने अपने पिता के बारे में लिखना शुरू किया। वह एक मेहनतकश आदमी थे जिनके लिए सीधी भाषा ही सही लगी।

नोबेल पुरस्कार जीतने पर अपने भाषण में उन्होंने कहा कि 22 साल की उम्र में उन्होंने अपनी डायरी में लिखा था, ‘मैं लिखूंगी ताकि अपने लोगों का बदला ले सकूं।’ यह वाक्य उनके लिए हमेशा मार्गदर्शक रहा। उनका लक्ष्य था, ‘समाज के खास वर्ग में जन्म लेने से जुड़े अन्याय को दूर करना।’

ग्रामीण, मजदूर वर्ग की जिंदगी से निकलकर उपनगरों में मध्यम वर्ग की जिंदगी तक पहुंचने वाली व्यक्ति के रूप में वह खुद को आंतरिक प्रवासी कहती हैं।

पिछले 50 सालों से वह सजऱ्ी में रहती हैं-यह पेरिस के आसपास बनाए गए ‘पांच नए शहरों’ में से एक है। 1975 में वह अपने पति और बच्चों के साथ जब यहां आई थीं, तब यह शहर बन ही रहा था। उन्होंने इसे अपने चारों ओर बढ़ते हुए देखा।

वह कहती हैं, ‘हम सब इस जगह में बराबर हैं-सब प्रवासी हैं, चाहे फ्ऱांस के भीतर से आए हों या बाहर से।’

वह कहती हैं, ‘मुझे नहीं लगता कि अगर मैं मध्य पेरिस में रहती, तो फ्ऱांसीसी समाज को लेकर मेरा नजरिया ऐसा ही होता।’

अब जिस घर में वह रहती हैं वह उन्होंने अपने पहले साहित्यिक पुरस्कार की रक़म से खरीदा है।

लिखने के प्रति उनका जुनून आज भी कायम है। और इस आधुनिक 85 वर्षीय महिला के लिए अपने पाठकों से जुड़ाव बेहद अहम है।

1989 में जब एक विवाहित सोवियत राजनयिक के साथ उनका गहरा प्रेम संबंध ख़त्म हुआ, तो उसके बारे में लिखकर ही वह उससे उबर पाईं।

और उस किताब ‘अ सिंपल पैशन’ के प्रकाशित होने के बाद, उन्हें पाठकों से और भी सांत्वना मिली।

वह कहती हैं, ‘अचानक मुझे महिलाओं से बहुत सारी चि_ियां मिलने लगीं, और पुरुषों से भी, जो मुझे अपने प्रेम संबंधों के बारे में बताते थे। मुझे लगा कि मैंने लोगों को अपने राज खोलने का मौका दिया।’

वह आगे कहती हैं कि ऐसे रिश्तों में जिनमें आप पूरी तरह डूब जाते हों, एक तरह की शर्म का अहसास होता है, ‘लेकिन इसके साथ ही, मैं यह भी कहना चाहती हूं कि यह मेरी जिंदगी की सबसे खूबसूरत याद है।’

यह लेख नोबल प्राइज आउटरीच और बीबीसी के एक को-प्रोडक्शन के रूप में तैयार किया गया है। (bbc.com/hindi)


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