विचार / लेख
18 नवंबर, बाल शोषण जागरूकता दिवस
-दिलीप कुमार पाठक
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 18 नवंबर को बाल यौन शोषण, उत्पीडऩ और हिंसा की रोकथाम और उपचार को विश्व दिवस के रूप में घोषित किया है। इस दिन का उद्देश्य बाल यौन शोषण को वैश्विक स्तर पर उठाने एवं लोगों को जागरूक करने के लिए उठाया गया सकारात्मक सोच का प्रतीक है द्य विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, हर साल लाखों बच्चे यौन हिंसा का अनुभव करते हैं। यह शोषण हमारे आसपास भी खूब दिखता है, बस हमें देखने की दृष्टि चाहिए। इसलिए ये संकल्प सभी सदस्य देशों, संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के निर्वाचित व्यक्तियों और अन्य साझीदारों, विश्व नेताओं, अभिनेता नागरिको समाज और अन्य संबंधित लोगों को इस विश्व दिवस पर इस तरह से शपथ लेने के लिए आमंत्रित करता है।
यह बाल यौन शोषण से प्रभावित लोगों के बारे में जन जागरूकता बढ़ाने और बाल यौन शोषण, भेदभाव और हिंसा को रोकने और समाप्त करने की आवश्यकता एवं जवाबदेही ठहराने को मान्यता देता है। इस प्रस्ताव को अफ्रीकी देश सिएरा लियोन और नाइजीरिया ने रखा था और 110 से अधिक देशों ने इसका समर्थन किया था। इसे तालियों की गडग़ड़ाहट के बीच आम सहमति से पारित किया गया। प्रस्ताव पेश करने वाली सिएरा लियोन की प्रथम महिला फातिमा माडा बायो ने बाल यौन शोषण को ए जघन्य अपराध करार दिया। संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों ने आज बच्चों के खिलाफ हो रही हिंसा, शोषण, दुर्व्यवहार, तस्करी, यातना और हानिकारक प्रथाओं को रोकने के लिए और भी तेज़ी से काम करने का आग्रह किया है। उन्होंने कहा कि जो बच्चे पीडि़त हुए हैं या बच गए हैं, उन्हें इलाज और न्याय मिलना बहुत जरूरी है। बाल यौन शोषण, दुव्र्यवहार और हिंसा एक गंभीर समस्या है जो पूरी दुनिया में फैली हुई है। लाखों बच्चे इसके शिकार हो रहे हैं। हमें मिलकर इन अपराधों को रोकना होगा, बच्चों को सुरक्षित रखना होगा, और जो लोग ऐसा करते हैं उन्हें सजा दिलानी होगी-चाहे वो ऑनलाइन हो या ऑफलाइन। कोविड-19, युद्ध, जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं जैसी बड़ी चुनौतियों के समय में, गरीबी बढ़ रही है, जिससे लोगों के साथ भेदभाव हो रहा है। इन सब से बच्चों की स्थिति और भी खराब हो रही है, और वे शोषण, दुर्व्यवहार और हिंसा का शिकार हो रहे हैं। जो बच्चे इन अपराधों का शिकार होते हैं, उनकी शारीरिक, मानसिक और यौन सेहत पर बहुत बुरा असर पड़ता है, और उनकी पूरी जिंदगी प्रभावित हो सकती है। यह उनके लिए यातना जैसा ही है, हमें इन समस्याओं को रोकने के लिए और भी काम करना होगा।
यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (क्कह्रष्टस्ह्र) अधिनियम, 2012, बच्चों को यौन शोषण, शोषण और उत्पीडऩ से बचाने के लिए एक भारतीय कानून है, लेकिन जन जाग्रति के बिना ये कानून काफी नहीं है। यूएनओ के आंकड़े बताते हैं कि दुनिया भर में, 20 वर्ष से कम आयु की लगभग 120 मिलियन बच्चियों ने विभिन्न प्रकार के जबरन यौन शोषण का अनुभव किया है। उच्च और मध्यम आय वर्ग में यौन हिंसा से पता चलता है कि लड़कियों में इसका प्रचलन 8त्न से 31त्न और 18 वर्ष से कम आयु के लडक़ों में 3त्न से 17त्न है। 5 वर्ष से कम आयु के 4 में से 1 बच्चा ऐसी माँ के साथ रहता है जो अंतरंग साथी हिंसा की शिकार है।
अक्सर एक बच्चा दंडित होने के डर से बात नहीं कर सकता, वो शर्म और शर्मिंदगी भी महसूस कर सकता है। यही कारण है कि वयस्कों और विशेष रूप से माता-पिता के लिए इन शारीरिक और मनोवैज्ञानिक दुव्र्यवहारों के खिलाफ सजग रहना जरूरी है द्य जानबूझकर या अनजाने में किसी बच्चे को नुकसान पहुंचाना, जिससे उन्हें दीर्घकालिक शारीरिक चोट या मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं, इसे भी शारीरिक शोषण के रूप में चिन्हित किया गया है। भावनात्मक दुर्व्यवहार का एक गैर-शारीरिक रूप है जिसमें मनोवैज्ञानिक या मौखिक दुव्र्यवहार शामिल हो सकता है द्य इस प्रकार का दुव्र्यवहार एक बच्चे को अवांछित, बेकार और प्यार रहित महसूस कराता है द्य इसमें ऐसे शब्द और कार्य शामिल हो सकते हैं, जो बच्चों में कम आत्मविश्वास, तनाव, चिंता, अवसाद और अनुशासनहीनता के कारण भावनात्मक क्षति का कारण बनते हैं।
विभिन्न प्रकार के बाल शोषण के बारे में स्वयं को शिक्षित करना सुनिश्चित करना ज़रूरी है। अपने बच्चों से बात करने से न शर्माएं, बल्कि यह भी सुनिश्चित करें कि आप उनके पर्सनल स्पेस पर आक्रमण न करें। बच्चों को उनके अधिकारों के बारे में शिक्षित करें द्य बच्चों से उचित और अनुचित व्यवहार के बारे में बात करें। बच्चे को बताएं कि आप उनके लिए हमेशा मौजूद हैं और प्रोडक्टिव बातचीत को प्रोत्साहित करें। यदि आप दुव्र्यवहार की कोई घटना देखते हैं, तो तुरंत इसकी रिपोर्ट करें या जांच की मांग करें, बच्चे भगवान का रूप होते हैं हम सभी की जिम्मेदारी है कि हम उनकी रक्षा करें। (लेखक पत्रकार हैं)


