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नीतीश कुमार सीएम बने तो एनडीए सरकार के सामने होंगी ये चुनौतियां
17-Nov-2025 8:22 PM
नीतीश कुमार सीएम बने तो एनडीए सरकार के सामने होंगी ये चुनौतियां

-दीपक मंडल

बिहार में मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए ने शानदार जीत दजऱ् की है।

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि नीतीश कुमार का एक बार फिर सीएम बनना लगभग तय है।

बिहार में बुनियादी इन्फ्रास्ट्रक्चर, शिक्षा, रोजगार और महिलाओं के सशक्तिकरण को लेकर उन्होंने कई अच्छे कदम उठाए हैं।

पिछले 20 साल के दौरान किए गए सुधारों की वजह से ही नीतीश कुमार को ‘सुशासन बाबू’ कहा जाने लगा है।

लेकिन अभी भी बिहार देश के सबसे पिछड़े राज्यों में से एक है।

विश्लेषकों का मानना है कि अगर नीतीश कुमार सीएम बनते हैं तो उन्हें अपने नए कार्यकाल में बहुत कुछ ऐसा करना होगा जिससे बिहार का आर्थिक और सामाजिक विकास तेज़ हो सके।

आइए देखते हैं कि बिहार के सामने क्या बड़ी चुनौतियां हैं और नई सरकार को किन मोर्चों पर काम करना होगा।

1. पलायन और रोजगार

बिहार विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल और प्रशांत किशोर की पार्टी जनसुराज ने बिहार से रोजगार के लिए पलायन को बड़ा मुद्दा बनाया था।

आरजेडी के नेतृत्व में चुनाव लड़ रहे महागठबंधन ने राज्य में हर परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने का वादा किया था तो एनडीए ने एक करोड़ नौकरियां देने की बात कही थी।

दरअसल बिहारी नौजवानों का रोजग़ार के लिए देश के दूसरे राज्यों में पलायन करना इस राज्य के लिए बड़ी समस्या है।

‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में हर तीन में से दो घरों का कम से कम एक सदस्य दूसरे राज्य में काम करता है।

1981 में, केवल 10-15 फ़ीसदी परिवारों में ही कोई प्रवासी मजदूर था लेकिन 2017 तक ये आंकड़ा बढक़र 65 फीसदी हो गया।

अखबार ने एक हालिया रिपोर्ट का हवाला देकर कहा है कि 2023 में भारत के चार सबसे व्यस्त अनरिजर्व्ड रेल मार्ग बिहार से शुरू होने थे। ये इस बात का सबूत है कि बिहार का वर्किंग फोर्स किस तरह राज्य से बाहर जा रहा है।

बिहार में छोटी जोत, इंडस्ट्री में नौकरियों की कमी और कमजोर मैन्युफैक्चरिंग बेस की वजह से लोगों को रोजगार के लिए घर छोडऩा पड़ता है।

बिहार का 54 फीसदी वर्किंग फोर्स अभी भी खेती-बाड़ी से जुड़ा है। जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह 46 फीसदी है। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में सिर्फ पांच फीसदी लोगों को रोजगार मिला है जबकि राष्ट्रीय औसत 11 फीसदी है।

बिहार भारत की सबसे युवा आबादी वाले राज्यों में से एक है। यहां आधे से अधिक लोग 15-59 वर्ष की कामकाजी आयु वर्ग के हैं। फिर भी यहां अच्छी नौकरियों की कमी है।

2. शहरीकरण और इन्फ्रास्ट्रक्चर

2011 की जनगणना के मुताबिक केरल में शहरीकरण 47.7, गुजरात में 42.6 और तमिलनाडु में 48.4 फ़ीसदी की दर से बढ़ा लेकिन बिहार में सिर्फ 11.3 फ़ीसदी की दर से शहरीकरण हुआ है।

बिहार में नीतीश कुमार के शासन के दौरान इन्फ्रास्ट्रक्चर मजबूत करने के लिए काफी अच्छा काम हुआ है। लेकिन शहरीकरण की दर अब भी काफी कम है।

2013 से 2023 तक के नाइट लाइट (रात में दिख रही रोशनी) डेटा के मुताबिक़ बिहार के ज़्यादातर विधानसभा क्षेत्र अभी भी ग्रामीण हैं।

नाइट लाइट डेटा किसी इलाके में मानव गतिविधियों और बिजली के इस्तेमाल का आकलन करने में काम आ सकता है।

रात में लाइट सिस्टम न सिर्फ सडक़ और गाडिय़ों का दिखाता है बल्कि ये कंस्ट्रक्शन और सडक़ निर्माण जैसी आर्थिक गतिविधियों को भी दिखाता है।

नाइट लाइट सिस्टम का ये पैटर्न शहरी विकास और तरक्की का संकेत हो सकता है।

3. मैन्युफैक्चरिंग मजबूत करने की चुनौती

दूसरे राज्यों की तुलना में देखें तो बिहार का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर राज्य की जीडीपी में सिफऱ् 5 से 6 फीसदी का योगदान करता है।

ये दो दशक पहले जैसी स्थिति है। जबकि गुजरात की जीडीपी (जीएसडीपी) में मैन्युफैक्चरिंग की हिस्सेदारी 36 फीसदी है।

बिहार की मैन्युफैक्चरिंग में ये ठहराव न केवल राज्य के भीतर की चुनौतियों को दिखाता है, बल्कि असमान औद्योगिक विकास के राष्ट्रीय रुझान को भी जाहिर करता है।

फैक्ट्रियों की सीमित संख्या होने से राज्य में कौशल विकास बाधित हो रहा है। इससे कामकाजी उम्र के लोगों का एक बड़ा हिस्सा दूसरे राज्यों में पलायन करने को मजबूर है।

4. अपराध कम करने की चुनौती

नीतीश कुमार को बिहार में तथाकथित ‘जंगल राज’ खत्म करने का श्रेय दिया जाता है। लेकिन स्टेट क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के मुताबिक़ 2015 से 2024 के बीच बिहार में अपराध दर में भारी बढ़ोतरी हुई है।

‘इंडियन एक्सप्रेस’ की एक रिपोर्ट में कहा गया है नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के मुताबिक इसी अवधि राष्ट्रीय स्तर पर अपराध बढऩे की दर 24 फीसदी रही।

2022 की तुलना में 2023 में बिहार में अपराध में 1.63 फीसदी की बढ़ोतरी हुई।

2023 में बिहार में हत्या के 2862 मामले दर्ज हुए। उत्तर प्रदेश में दर्ज 3026 हत्या के मामलों के बाद ये देश में दूसरा बड़ा आंकड़ा है।

सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों पर हमले के मामले में बिहार सबसे आगे रहा।

2023 में पुलिस और सरकारी कर्मचारियों पर हमलों के 371 मामले दर्ज हुए।

5. कमाई बढ़ाने का दबाव

बिहार ने शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी सुविधाओं में अंतर को कम करने में अच्छी तरक्की की है। लेकिन प्रति व्यक्ति आय के मामले में, यह भारत का सबसे गरीब राज्य बना हुआ है।

भारत की प्रति व्यक्ति आय 1।89 लाख रुपये को पार कर गई है, लेकिन बिहार की राष्ट्रीय औसत के एक तिहाई से भी कम, लगभग 60,000 रुपये है।

राजधानी पटना में प्रति व्यक्ति आय 2,15,049 रुपये है, जो शिवहर जैसे अन्य जिलों की तुलना में लगभग चार गुना है, जहां यह मुश्किल से 33,399 रुपये तक पहुंचती है।

ये आंकड़े राज्य के शहरी केंद्र में धन और अवसर के केंद्रीकरण को दिखाते हैं, जिससे ग्रामीण बिहार को तालमेल बिठाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।

6. ड्रॉप आउट कम करने की चुनौती

बिहार में स्कूल छोडऩे वालों की दर चिंताजनक है। छात्र-छात्राओं का एक बड़ा हिस्सा मिडिल स्कूल से आगे नहीं बढ़ पाता।

इससे कम सामाजिक गतिशीलता, सीमित कौशल और रोजग़ार की कम संभावनाओं का एक चक्र बन जाता है।

शिक्षा में इस पिछड़ेपन की वजह से राज्य में आर्थिक ठहराव आता है। इससे बिहार के युवा भारत की ग्रोथ स्टोरी का हिस्सा नहीं बन पाते हैं।

बिहार में असामान्य डेमोग्राफिक़ पैटर्न दिखता है। यहांं मृत्यु दर राष्ट्रीय औसत से थोड़ा कम है वहीं प्रजनन दर 2.8 के ऊंचे स्तर पर बनी हुई है।

तुलनात्मक तौर पर कम शिशु मृत्यु दर की वजह से ये ट्रेंड जनसंख्या बढ़ाने में मददगार साबित हो रहा है। इससे राज्य के संसाधनों और सार्वजनिक सेवाओं पर और दबाव पड़ रहा है।

बड़े परिवार और तेजी से बढ़ती आबादी की वजह से बिहार को शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और रोजगार पैदा करने में तुरंत बड़ा निवेश करना होगा। लेकिन इन चुनौतियों के बावजूद बिहार की युवा आबादी और बेहतर होते हेल्थ इंडिकेटर ये बताते हैं कि उम्मीदें बरकरार हैं।

शिक्षा, स्किल डेवलपमेंट और रोजग़ार पैदा करके बिहार बदलाव की दिशा में और बड़ी छलांग लगा सकता है। (bbc.com/hindi)


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