विचार / लेख
केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने ‘धार्मिक, आहार संबंधी’ चिंताओं के चलते पशु प्रोटीन-आधारित बायोस्टिमुलेंट्स को दी गई मंजूरी वापस ले ली है. इसका फसलों पर क्या असर होगा?
डॉयचे वैले पर साहिबा खान का लिखा-
हाल ही में केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने "धार्मिक और आहार संबंधी समस्याओं" की वजह से, मुर्गी के पंख, ऊतक, गोवंश की खाल और कॉड मछली के छिलके सहित पशुओं से मिलने वाले 11 जैव-उत्तेजकों यानी बायोस्टिमुलेंट्स की बिक्री के लिए दी गई मंजूरी वापस ले ली है. पहले धान, टमाटर, आलू, खीरा और मिर्च जैसी फसलों के लिए इनके इस्तेमाल को मंजूरी दी गई थी लेकिन अब इस फैसले को वापस ले लिया गया है.
बायोस्टिमुलेंट्स क्या होते हैं?
साधारण शब्दों में, बायोस्टिमुलेंट्स वो पदार्थ हैं जो पौधों के विकास में मदद करते हैं. ये पौधों की पोषक तत्व ग्रहण करने की क्षमता बढ़ाते हैं और फसल की गुणवत्ता सुधारते हैं. ये उर्वरकों की तरह सीधे पौधों को पोषण नहीं, और ना ही कीटनाशकों की तरह कीड़ों को मारते हैं.
फॉर्च्यून बिजनेस इनसाइट्स के अनुसार, भारतीय बायोस्टिमुलेंट्स मार्केट 2024 में 295 अरब रुपये यानी 355.53 मिलियन डॉलर का था और 2032 तक इसके 943 अरब रुपये यानी करीब 1.1 बिलियन डॉलर तक पहुंच जाने का अनुमान है. देश में प्रमुख निर्माता कंपनियों में कोरोमंडल इंटरनेशनल, सिंगेंटा और गोदरेज एग्रोवेट शामिल हैं. बायोस्टिमुलेंट्स आमतौर पर तरल या स्प्रे के रूप में बेचे जाते हैं.
सरकार ने क्यों रोकी बिक्री?
दरअसल, सरकार की ये कार्रवाई खासतौर पर प्रोटीन हाइड्रोलाइसेट वाले बायोस्टिमुलेंट्स को लेकर हुई है. ये प्रोटीन को तोड़कर बनाए जाने वाले अमीनो एसिड और पेप्टाइड्स का मिश्रण होते हैं. ऐसे हाइड्रोलाइसेट पौधों से भी आ सकते हैं, जैसे सोयाबीन, अल्फाल्फा, और मक्का, और जानवरों से भी, जैसे गाय की खाल, मुर्गी के पंख या सूअर का ऊतक.
30 सितंबर को कृषि मंत्रालय ने 11 ऐसे बायोस्टिमुलेंट्स को इस्तेमाल सूची से बाहर कर दिया है. ये उत्पाद हरे चने, टमाटर, मिर्च, कपास, खीरा, सोयाबीन, अंगूर और धान जैसी फसलों में इस्तेमाल किए जाते थे. जानवरों से बने होने की वजह से इसमें गाय की खाल, बाल, मुर्गी के पंख, सूअर का ऊतक, हड्डियां और कॉड व सार्डीन मछली के छिलके जैसी चीजें शामिल थीं.
2021 तक, भारतीय बाजार में बायोस्टिमुलेंट्स एक दशक से भी ज्यादा समय तक खुलेआम बेचे जा रहे थे, और उनकी सुरक्षा, बिक्री या प्रभावी इस्तेमाल के लिए कोई खास सरकारी नियम नहीं थे. लेकिन 2021 में, सरकार ने बायोस्टिमुलेंट्स को फर्टिलाइजर कंट्रोल ऑर्डर यानी एफसीओ के तहत ला दिया, जिसका मतलब था कि कंपनियों को इन उत्पादों को पंजीकृत कराना होगा और सुरक्षा व प्रभाव साबित करना होगा. इसके बावजूद, उन्हें 16 जून, 2025 तक बेचने की अनुमति थी, बशर्ते इसके लिए एप्लीकेशन पहले ही जमा करा दी गई हो.
इन जैव-उत्तेजकों को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) की ओर से मंजूरी दिए जाने के बाद इस साल की शुरुआत में अलग-अलग अधिसूचनाओं के जरिए उर्वरक (गैर कार्बनिक, कार्बनिक या मिश्रित) (नियंत्रण) आदेश (एफसीओ), 1985 की अनुसूची VI में शामिल किया गया था. इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च के महानिदेशक मांगी लाल जाट ने भारतीय अखबार इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि इन पशु स्रोत-आधारित बायोस्टिमुलेंट्स के लिए फिलहाल अनुमति ‘रद्द' कर दी गई है.
अंडे के कुछ मजेदार फंडे
सेहत के लिए तो अंडे अच्छे होते ही हैं, साथ ही कुछ जगहों पर तो इनका साज सजावट के लिए भी इस्तेमाल होता है. जानिए अंडों से जुड़ी कुछ मजेदार बातें.
ताजा या बासी?
वैसे तो अंडे बहुत जल्दी खराब नहीं होते लेकिन अगर आपको शक है तो पानी के ग्लास में अंडा डाल दें. अगर वह नीचे चला जाता है तो अंडा ताजा है और अगर पानी में ऊपर ही तैरता रहता है तो समझ लें कि बासी है.
खाएं या ना खाएं
अगर अंडे में थोड़ा हिस्सा लाल निकल आए, तो अक्सर लोग उसे खाने में संकोच करते हैं. लेकिन इसे खाना हानिकारक नहीं है. ये अंडे की जर्दी से जुड़ी हुई कुछ रक्त कोशिकाएं होती हैं.
उबला या नहीं?
अगर आप अंडा तोड़ने से पहले सुनिश्चित करना चाहते हैं कि वह ठीक से उबला है या नहीं, तो उसे मेज पर छोड़ दें. अगर अंडा ठीक से घूम रहा है, तो वह अंदर तक पक गया है और अगर इधर उधर लड़खड़ा रहा है, तो अब भी अंदर से कच्चा है.
पीला या सफेद?
अंडे के सफेद हिस्से में 57 फीसदी प्रोटीन होता है. अधिकतर लोग मानते हैं कि पीले हिस्से में कॉलेस्ट्रॉल के अलावा और कुछ भी नहीं होता लेकिन ऐसा नहीं है. अंडे की जर्दी में विटामिन ऐ, बी, डी और ई होता है.
कितनी पीली जर्दी?
जर्दी के पीलेपन से उसके पोषण का कोई लेना देना नहीं है. जर्दी का रंग मुर्गी के आहार पर निर्भर करता है. इसीलिए हर जगह के अंडे देखने में थोड़े अलग होते हैं.
हैंगओवर का इलाज
अगर रात में पार्टी में जरूरत से ज्यादा पी ली है, तो अगली सुबह नाश्ते में अंडे खाने से मदद मिलती है. अंडा शरीर में मौजूद विषैले तत्वों को सोख लेता है और हैंगओवर से बचाता है.
सिर्फ मुर्गी के ही नहीं
हालांकि आम तौर पर मुर्गी के ही अंडे खाए जाते हैं लेकिन दरअसल बतख, बटेर, हंस और यहां तक कि शुतुरमुर्ग के अंडे भी खाए जा सकते हैं.
सारा साल अंडे
एक मुर्गी एक साल में लगभग 250 से 280 अंडे दे सकती है. मुर्गियां सारा साल अंडे देती हैं. अंडे देने का कोई खास सीजन नहीं होता. दुनिया भर की अंडों की 40 प्रतिशत पैदावार चीन में होती है.
कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पिछले साल भी अनियमित बायोस्टिमुलेंट्स पर चिंता जताई थी. उन्होंने कहा, "लगभग 30,000 बायोस्टिमुलेंट कई सालों तक बिना किसी जांच के बेचे जा रहे थे. पिछले चार सालों में करीब 8,000 ऐसे उत्पाद भी बाजार में उपलब्ध थे. सख्त जांच के बाद अब संख्या लगभग 650 रह गई है.
शाकाहार और धर्म का मसला
भारत में शाकाहारी होने की प्रवृत्ति सांस्कृतिक, धार्मिक, जातीय और सामाजिक जड़ों से जुड़ी हुई है. हालांकि, हाल के वर्षों में मांसाहारी भोजन की खपत में बढ़ोतरी देखी गई है, फिर भी एक बड़ी आबादी शाकाहारी है.
प्यू रिसर्च सेंटर की ओर से 2021 में किए गए एक अध्ययन के अनुसार, भारत में लगभग 39% वयस्क खुद को शाकाहारी मानते हैं. इस अध्ययन में करीब 30 हजार भारतीय वयस्कों से बात की गई थी, जो 26 राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों से थे. इसमें पाया गया था कि जैन समुदाय में शाकाहारी होने की दर 92 फीसदी है, जबकि मुस्लिम समुदाय में यह दर केवल 8 फीसदी है. हिंदू समुदाय में यह दर 44 फीसदी है, और अन्य धर्मों में यह दर अलग अलग है.
वर्ल्ड ऐटलस के अनुसार, भारत में 38 फीसदी लोग शाकाहारी हैं, यानी यह दुनिया में सबसे अधिक शाकाहारी आबादी वाला देश है. यह रिपोर्ट 2023 में आई थी.
क्या सब के शाकाहारी हो जाने से खत्म हो जाएगा भूख का संकट
हालांकि सोशल एक्टिविस्ट और कृषि विशेषज्ञ कविता कुरुघंटी का कहना है कि इस आधार पर इन बायोस्टिमुलेंट्स पर रोक लगाना उनकी समझ से से परे है. उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "गाय का दूध तो गाय से आता, फिर भी वो शाकाहार है. कुछ पूर्वी राज्यों में मछली को शाकाहार समझा जाता रहा है. केवल पेड़ों से बनने वाली चीजें ही शाकाहारी नहीं होतीं. इसलिए सरकार का यह कहकर इन बायोस्टिमुलेंट्स पर रोक लगाना मुझे समझ नहीं आता.”
भारत में त्योहारों से लेकर रोजमर्रा के जीवन में खान पान संबंधित कई मामले सामने आए हैं जिन्हें ध्रुवीकरण का नतीजा भी कहा जाता रहा है. इस कारण फसलों में ऐसे उत्पाद इस्तेमाल करना और उनकी बिक्री, शाकाहार और उससे जुड़ी ध्रुवीकरण राजनीति पर भी असर डालते हैं.
कितने असरदार होते हैं जानवरों वाले बायोस्टिमुलेंट्स?
पौधों की बढ़त के लिए बायोस्टिमुलेंट्स पर कई शोध हुए हैं. 2021 में साइंस डायरेक्ट नाम के ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर छपे एक शोध के अनुसार पौधों से बने बायोस्टिमुलेंट्स, जैसे प्रोटीन हाइड्रोलाइसेट, अक्सर जानवरों से बने स्टिमुलेंट्स की तुलना में पौधों को जल्दी बड़ा होने में मदद करते हैं. इसमें अमीनो एसिड की संरचना और जैविक सक्रियता की बड़ी भूमिका होती है. यानी अगर आप ज्यादा स्थिर और लगातार फायदा चाहते हैं, तो पौधों से बने बायोस्टिमुलेंट्स ज्यादा भरोसेमंद हैं.
दूसरी तरफ, 2018 में फ्रंटियर्स पर छपे एक बड़े शोध में से एक आर्टिकल का कहना था कि जानवरों से बने बायोस्टिमुलेंट्स भी कुछ फसलों जैसे टमाटर और लेटस में असर दिखा सकते हैं, लेकिन उनका फायदा वातावरण, फसल की किस्म और लगाने के तरीके पर निर्भर करता है. इसलिए इनका इस्तेमाल करते समय थोड़ी सावधानी जरूरी है.
कुल मिलाकर कहा जाए तो, पौधों से बने बायोस्टिमुलेंट्स ज्यादातर परिस्थितियों में बेहतर और सुरक्षित विकल्प हैं, जबकि जानवरों से बने बायोस्टिमुलेंट्स कुछ खास स्थितियों में ही ज्यादा असरदार हो सकते हैं.
किसानों और उद्योग के लिए असर
फिर भी कृषि विशेषज्ञ कविता कुरुघंटी कहती हैं कि सरकार किस बुनियाद पर उत्तेजकों को बांट रही है, वो भी साफ नहीं है. वो पूछती हैं, "दूध, घी आदि जैसी दूध से बनी चीजों से प्राप्त पंचगव्य का वर्गीकरण कैसे किया जाएगा? जीवामृत में गाय के गोबर और मूत्र का क्या? क्या यह पशु-जनित नहीं है?”
बहरहाल इस फैसले से किसानों पर तत्काल असर पड़ सकता है, खासकर जो जानवरों से बने बायोस्टिमुलेंट्स का इस्तेमाल कर रहे थे. वहीं, उद्योग को भी अपने उत्पादों और मार्केटिंग रणनीति पर बदलाव करना पडेगा.


