विचार / लेख

तालिबान सरकार के विदेश मंत्री मुत्तकी का भारत आना दोनों देशों के लिए कितना फायदेमंद
06-Oct-2025 10:46 PM
तालिबान सरकार के विदेश मंत्री मुत्तकी का भारत आना दोनों देशों के लिए कितना फायदेमंद

-नियाज फारूकी

अफगानिस्तान में तालिबान शासन के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी यात्रा प्रतिबंधों से छूट मिलने के बाद अगले हफ्ते भारत दौरा करने वाले हैं। अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ क्षेत्रीय हालात के मद्देनजर इस दौरे को अहम बता रहे हैं।

भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में मुत्तकी को दी गई छूट की पुष्टि की लेकिन यह नहीं बताया कि तालिबानी नेता भारत आएंगे या नहीं।

लेकिन तालिबान विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी ने बीबीसी से पुष्टि की कि मुत्तकी भारत आएंगे लेकिन उन्होंने अधिक जानकारी देने से इनकार कर दिया।

अफगान तालिबान नेता यात्रा प्रतिबंधों के कारण संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से छूट हासिल करने के बाद ही किसी अन्य देश की यात्रा कर सकते हैं। अगस्त 2021 में तालिबान के अफग़़ानिस्तान पर क़ब्ज़ा करने के बाद से यह तालिबान सरकार के किसी मंत्री की पहली आधिकारिक भारत यात्रा होगी।

भारत ने अभी तक तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी है लेकिन हाल के दिनों में संपर्क तेज हुए हैं। मई 2025 में कश्मीर के पहलगाम में हुए हमले के बाद भारत के विदेश मंत्री एस। जयशंकर ने तालिबान सरकार के विदेश मंत्री से फोन पर बात की थी।

भारत ने कैसे बढ़ाए तालिबान सरकार से संपर्क

अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञों का कहना है कि मुत्तकी का ये दौरा भारत और अफगानिस्तान दोनों के लिए एक अहम कूटनीतिक क्षण है। क्योंकि इससे दशकों पुरानी भारत और तालिबान की दुश्मनी समाप्त होने की उम्मीद जगी है।

भारत अतीत में अफगान तालिबान के विरोधी समूहों का समर्थन करता रहा है। इनमें वे समूह भी शामिल हैं जिन्होंने 2021 तक अफगान सरकार का नेतृत्व किया था। जबकि तालिबान को भारत के प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान का एक हथियार माना जाता था।

मुत्तकी की भारत यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने काबुल के पास बगराम एयर बेस को वापस लेने की घोषणा की है।

जिंदल यूनिवर्सिटी में अफगान अध्ययन के प्रमुख प्रोफेसर राघव शर्मा का कहना है कि इस समय मुत्तकी का आना इसलिए अहम है क्योंकि अफगानिस्तान में चीन का प्रभाव बढ़ रहा है।

रूस ने भी तालिबान के साथ राजनयिक संबंध बढ़ाए हैं।

राघव शर्मा के मुताबिक, ‘पाकिस्तानी सरकारों के साथ तालिबान के नजदीकी रिश्तों के कारण भारत उनके साथ अपने रिश्तों को लेकर सतर्क रहा है।’

शर्मा कहते हैं, ‘मुत्तकी का दौरा ऐसे समय में हो रहा है जब अफगान मोर्चे पर बहुत कुछ हो रहा है। यह इस तथ्य की ओर इशारा करता है कि तालिबान के सत्ता में आने के बाद से भारत का उससे बहुत धीमा और सतर्क तालमेल अब अपना असर दिखा रहा है।’

कोलकाता में आलिया विश्वविद्यालय में अफगान-भारत संबंधों के रिसर्चर मोहम्मद रियाज़ का कहना है कि 2010 से यह साफ हो गया था कि अफगान तालिबान अफगानिस्तान के राजनीतिक परिदृश्य पर फिर से उभर रहा है।

उनके मुताबिक, ‘उस समय दुनिया भर के विभिन्न देशों ने तालिबान से संपर्क शुरू कर दिया था लेकिन भारत ने उनसे संपर्क करने में देरी की।

वो कहते हैं, ‘भारत पहले तालिबान से दूरी बनाए रखता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है।’

हालांकि तालिबान के काबुल पहुंचने के बाद भारत ने अपने राजनयिक कर्मचारियों को वापस बुला लिया और सीधा संपर्क स्थगित कर दिया। लेकिन जल्द ही उसने अपनी रणनीति बदल दी।

भारत को अहसास हो गया था कि तालिबान से पूरी तरह दूरी बनाना संभव नहीं है’

दिल्ली में रहने वाले अंतरराष्ट्रीय मामलों के प्रोफेसर अजय दर्शन बहिरा कहते हैं, ‘भारत ने जल्द ही पर्दे के पीछे बातचीत शुरू कर दी ताकि तालिबान से यह आश्वासन मिल सके कि वे अपने क्षेत्र का इस्तेमाल भारत विरोधी गतिविधियों के लिए नहीं होने देंगे।’

उनके अनुसार, ‘भारत को यह एहसास हो गया है कि तालिबान से पूरी दूरी बनाए रखने की नीति व्यावहारिक नहीं है।’

प्रोफ़ेसर बहिरा का कहना है कि तालिबान सरकार को मान्यता दिए बिना उसे मदद मुहैया करना और साझेदारी के बगैर वहां मौजूद रहना तालिबान के प्रति भारत की नीति में संतुलन को दर्शाता है।

भारत और तालिबान की प्राथमिकताएं

स्थानीय मीडिया रिपोर्टों के अनुसार,जब दोनों पक्षों के बीच कुछ विश्वास बहाल हुआ तो तालिबान ने 2022 में अपने एक राजनयिक को दिल्ली भेजा।

हालांकि भारत ने अभी तक उसे अफगान दूतावास का कार्यभार संभालने की अनुमति नहीं दी है।

2024 में ऐसी खबरें आईं कि एक तालिबान राजनयिक ने मुंबई वाणिज्य दूतावास का प्रभार संभाल लिया है लेकिन दोनों ओर से इस पर कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया।

2022 में भारत ने काबुल में अपना दूतावास सीमित आधार पर फिर से खोला और 2025 में विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने दुबई में मुत्तकी से मुलाकात की, अंतत: मई 2025 में पहलगाम हमले के बाद दोनों विदेश मंत्रियों ने फोन पर बात की। लेकिन एस। जयशंकर और मुत्तकी के बीच हुई इस बातचीत के बाद दोनों देशों की ओर से जारी किए गए बयानों में उनकी राष्ट्रीय प्राथमिकताएं दिखीं।

भारत ने राष्ट्रीय सुरक्षा की बात की क्योंकि वह चाहता है कि अफगानिस्तान फिर से भारत विरोधी चरमपंथी समूहों के लिए पनाहगाह न बने। जबकि अफगानिस्तान ने वीजा और व्यापार का उल्लेख किया क्योंकि वे अंतरराष्ट्रीय मान्यता और निवेश चाहते हैं।

तालिबान सरकार के साथ चीन और रूस के घनिष्ठ संबंधों के बावजूद तालिबान नेता संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंधों के कारण बिना अनुमति के अंतरराष्ट्रीय यात्रा नहीं कर सकते हैं। इसलिए वैश्विक स्तर पर उनके लिए अवसर सीमित हैं।

मुत्तकी के संभावित दौरे का एजेंडा घोषित नहीं किया गया है लेकिन विशेषज्ञों को उम्मीद है कि यह दोनों सरकारों की प्राथमिकताओं को बताएगा। हालांकि ये जरूरी नहीं कि ये एक-दूसरे से मेल खाती हों।

मोहम्मद रियाज कहते हैं, ‘अफगानिस्तान में भारत के कई हित हैं, जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

खासकर तब जब तालिबान विरोधी गुट बिखरे हुए हैं और उन्हें वैश्विक ताकतों का समर्थन नहीं मिल रहा।  उनके अनुसार, ‘भारत अफगानिस्तान में अपनी स्थिति बनाए रखने के लिए तालिबान सरकार के साथ नजदीकी बढ़ा रहा है। इसके साथ ही वो अपने पूर्व अफगान सहयोगियों को भी अलग-थलग कर रहा है।

विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को अफगानिस्तान में मानवाधिकार की स्थिति पर आपत्ति है लेकिन इसके बावजूद वह तालिबान को नजरअंदाज नहीं कर सकता।

रियाज़ का कहना है कि अफगान तालिबान के साथ भारत की क्षेत्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दे शामिल हैं। इसमें पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों की ओर से तालिबान और अन्य सशस्त्र समूहों को प्रॉक्सी के रूप में इस्तेमाल करने की चिंता भी शामिल है।

उनके मुताबिक भारत अफगानिस्तान में चीन के प्रभाव को कम करने के लिए वहां दीर्घकालिक निवेश विकल्पों पर भी विचार कर रहा है।

प्रोफेसर बहिरा का कहना है कि भारत ने बीच का रास्ता अपनाया है और तालिबान को औपचारिक मान्यता दिए बिना उसके साथ सीमित लेकिन सार्थक संबंध सुनिश्चित किए हैं। उन्होंने कहा, ‘यह दृष्टिकोण संवाद के रास्ते खुले रखता है अफगानिस्तान को भारत विरोधी आतंकवादी समूहों के लिए आश्रय स्थल बनने से रोकता है।’

तालिबान क्या संदेश देना चाहता है

मुत्तकी के सितंबर में भारत आने की बात कही गई थी लेकिन तालिबान पर संयुक्त राष्ट्र के यात्रा प्रतिबंधों के कारण नहीं आ सके।

लेकिन 30 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने उन्हें 9 से 16 अक्तूबर के बीच दिल्ली आने की अनुमति दे दी। वह अक्तूबर के अंत में मॉस्को प्रारूप वार्ता में भाग लेने वाले रूसी प्रतिनिधियों से भी मुलाकात करेंगे।

प्रोफेसर शर्मा कहते हैं, ‘यह तालिबान के लिए अपने लोगों को यह संदेश देने का एक अवसर है कि वो पाकिस्तान की कठपुतली नहीं हैं। उन पर लंबे समय से ये आरोप लगाया जाता रहा है।’

लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि तालिबान के साथ भारत की नजदीकी के कुछ स्पष्ट नकारात्मक पहलू भी हैं।

कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि इससे अफगान नागरिकों के बीच यह धारणा मजबूत होगी कि पाकिस्तान और भारत, दोनों ही अफगानिस्तान को युद्ध के मैदान के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं।

प्रोफेसर शर्मा कहते हैं, ‘चाहे यह सच हो या नहीं धारणाएं किसी देश की सार्वजनिक छवि को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। यह हमारे लिए बिल्कुल भी स्वागत योग्य नहीं है।’

हालांकि उनका कहना है कि मुत्तकी की यात्रा निस्संदेह संबंधों को आगे बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगी। (bbc.com/hindi)


अन्य पोस्ट