विचार / लेख
नेपाल में हाल ही में हुए हिंसक प्रदर्शनों में दर्जनों लोग मारे गए. इनमें अधिकतर युवा थे और वे भ्रष्टाचार व बेरोजगारी के खिलाफ थे. बड़ी संख्या में नेपाली रोजगार की कमी के कारण नौकरी की तलाश में विदेश जाने को मजबूर हैं
डॉयचे वैले पर आमिर अंसारी का लिखा-
नेपाल में हुए व्यापक विरोध प्रदर्शनों ने तत्कालीन सरकार को इस्तीफा देने पर मजबूर कर दिया. हालिया घटनाक्रम उन ग्रामीण युवाओं के संघर्षों को रेखांकित करता है, जो अपने देश की स्थिति से निराश होकर विदेश में बेहतर अवसरों की तलाश में हैं.
इन्हीं युवाओं में से एक हैं, संतोष सोनार. 31 साल के संतोष बेरोजगार हैं और बहुत बेताब होकर नौकरी की तलाश कर रहे हैं. उन्हें यह भी डर है कि जिस दिन उन्हें अपने गृह क्षेत्र से बाहर नौकरी मिल जाएगी, उनका परिवार और बिखर जाएगा. संतोष की पत्नी काम के सिलसिले में विदेश में हैं. वह अपनी बेटी और मां के साथ रहते हैं. बाहर नौकरी मिलने पर उन्हें अपनी बेटी को मां के पास छोड़कर जाना होगा.
"यहां नौकरी के अवसर नहीं हैं"
काठमांडू के ग्रामीण इलाके फारपिंग में रहने वाले संतोष बताते हैं, "यहां शिक्षा पूरी करने के बाद भी नौकरी के मौके नहीं हैं." नेपाल में उनके जैसे अनगिनत युवा हैं, जो अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद लगातार किसी-न-किसी तरह की आजीविका की तलाश में रहते हैं.
विश्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक, नेपाल में 15 से 24 वर्ष की आयु का हर पांचवां युवा बेरोजगार है. आश्चर्यजनक रूप से, देश का 82 प्रतिशत कार्यबल किसी-न-किसी अनौपचारिक क्षेत्र में काम करता है. इस हिमालयी देश के सकल राष्ट्रीय उत्पाद में सामान्य श्रमिकों का प्रति व्यक्ति योगदान केवल 1,447 अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष के बराबर है.
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देश में नौकरी नहीं, विदेश जाने को मजबूर
कितनी बड़ी संख्या में नेपाली विदेश में काम करते हैं, इसका अंदाजा कुछ हद तक इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि संतोष के गृह क्षेत्र फारपिंग के हर दूसरे घर का एक व्यक्ति विदेश में रहता और काम करता है.
संतोष की पत्नी अमृता 22 साल की हैं. वह दुबई में वेट्रेस का काम करती हैं. संतोष, जो पहले भारत के बेंगलुरु शहर में काम करते थे, बताते हैं, "मैं और मेरी पत्नी एक-दूसरे को बहुत याद करते हैं."
संतोष कहते हैं, "एक पुरुष के लिए अपनी पत्नी से दूर रहना बहुत मुश्किल होता है. फिर यह सोचना और भी दर्दनाक हो जाता है कि जब मुझे नौकरी मिल जाएगी, तो मुझे अपनी छोटी बेटी और मां को छोड़ना पड़ेगा. लेकिन हम क्या कर सकते हैं?" नेपाल की आबादी लगभग तीन करोड़ है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, पिछले साल ही आठ लाख से ज्यादा नेपाली काम की तलाश में देश छोड़कर चले गए.
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देश की अंतरिम प्रधानमंत्री सुशीला कार्की के सामने अब भ्रष्टाचार और बेरोजगारी जैसी समस्या से निपटना बड़ी चुनौती है. पद संभालने के बाद उन्होंने कहा कि अंतरिम सरकार छह महीने में नई सरकार के लिए चुनाव कराएगी. कार्की ने युवाओं के प्रदर्शनों के दौरान हुई तोड़फोड़ की जांच कराने की भी बात कही है.
संतोष कहते हैं कि उन्होंने विरोध प्रदर्शनों में हिस्सा नहीं लिया था, लेकिन वे इसका समर्थन करते हैं. उनकी 48 साल की मां माया सोनार एक ऐसे भविष्य का सपना देखती हैं, जब युवाओं को भोजन और परिवार के बीच चुनाव न करना पड़े. वह कहती हैं, "हमें एक परिवार की तरह रहना याद आता है, लेकिन मुझे भी पता है कि युवाओं के पास कोई और विकल्प नहीं है."


