विचार / लेख

एक बीमार की जा चुकी गाय का दूध फायदेमंद नहीं हो सकता
24-May-2025 9:04 PM
एक बीमार की जा चुकी गाय का दूध फायदेमंद नहीं हो सकता

-सत्येन्द्र पी.एस

आज भिंडी और तरोई बनाया। एक किलो तरोई में 4 जन के खाने को कम लगा तो सोचा आधी किलो भिंडी भी बना लेते हैं। आधे किलो भिंडी काटी। एक भी भिंडी में कीड़ा नहीं निकला। इसी तरह से जब बैगन बनाता हूँ तो उसमें भी कोई कीड़ा नहीं मिलता है।

गांव में जब हमारे यहाँ खेती होती थी तो 10 भिंडी में से एक भिंडी में कीड़ा जरूर मिलता था। बैगन में तो 10 में से 6 बैगन में कीड़ा निकल जाता था। तो कीड़े वाले पोर्शन को काटकर निकाल दिया जाता था और शेष बैगन की सब्जी बन जाती थी।  

अब कीड़े गायब हैं। बाजार में मिलने वाली किसी सब्जी में आपको कीड़े नहीं मिलेंगे।

कभी ध्यान में आता है कि इसमें से कीड़े कहां गायब हुए हैं?

कीड़े 2 तरीके से गायब किए गए हैं। पहला तो जेनेटिकली मोडिफाइड बीज और दूसरा कीड़ों को मारने वाले केमिकल्स। आज की तारीख में किसानों के पास भी नेनुआ, सरपुतिया, बैगन, तरोई, लौकी, कोहड़ा का बीज नहीं मिलेगा। इस समय बीज कम्पनियों और कीटनाशक की कम्पनियों का एक नेक्सस बन गया है। यह गिरोह किसानों को बीज और कीटनाशक बेचता है। और ये कम्पनियां इतने महंगे बीज और कीटनाशक बेचती हैं कि किसान ज्यादा पैसा इन्ही को दे देते हैं। उन्हें केवल यह लगता है कि उत्पादन बहुत हुआ, मुनाफा गायब है। खैर, किसान जाए भाड़ में, वह मेरा मसला नहीं है, क्योंकि किसान तो आपको आतंकवादी लगते हैं उनका दुख दर्द लिखा तो आप मुझे राष्ट्रविरोधी घोषित कर देंगे।

मसला यह है कि आप जो लौकी, नेनुआ, सरपुतिया, तरोई, बैगन, पालक खा रहे हैं न... उसे कीड़े भी खाने को तैयार नहीं हैं। उनको पता है कि उन्होंने ये सब्जियां खाई तो वह मर जाएंगे। आपको यह बात पता नहीं है, क्योंकि आप तत्काल नहीं मरते। पहलेपेट मे गैस बनती है, अपच होता है, डकार और पाद मारने की क्रिया बढ़ती है। फिर लिवर खराब होता है, फिर किडनी खराब होती है, फिर कैंसर होता है। फिर मेदांता, मैक्स, फोर्टिस, पारस, यथार्थ हॉस्पिटल जाकर अपनी पूरी जमा पूंजी दे देते हैं। और फिर 5-7 साल संघर्ष करके मर जाते हैं। इस तरह आपका चक्र पूरा हो जाता है।

लखनऊ में उमराव नेचुरोपैथी बगैर कीटनाशक, बगैर केमिकल्स, बगैर जीएम, बगैर यूरिया, डाई खाद के सब्जियां उगाने की कवायद कर रहा है। मैं नजदीक से जुड़ा हूँ, इसलिए जन्नत की हकीकत पता है। हर सब्जी में कीड़ों का हमला होता है। केवल सीजनल सब्जियां ही बच पाती हैं क्योंकि सीजन पर सब्जियों का प्रोडक्शन इतना ज्यादा होता है कि कीड़ों को खाने के लिए पर्याप्त होता है।

अभी इस साल उमराव नेचुरोपैथी ने एक एकड़ स्ट्रॉबेरी लगवाया। नवम्बर में मैं गया था तो शानदार फसल थी। ऐसा लगा कि यह लाभदायक सौदा होगा।  शुरुआती फसल करीब एक लाख रुपये में बिक गई। उम्मीद थी कि जनवरी फरवरी में जब फसल पीक पर होगी तो ठीक ठाक सेल हो जाएगी। इतनी फसल में करीब 5 लाख रुपये लगे थे। लेकिन शीतलहर में ही कीड़ों का हमला हो गया। कृषि वैज्ञानिकों ने कहा कि केमिकल झोंकिए, केवल अपने खाने भर को बगैर केमिकल वाला रखिए। उन लोगों ने मना कर दिया कि नो केमिकल्स। और परिणाम यह हुआ कि उस कमर्शियल खेती में 6 महीने में विशुद्ध रूप से 4 लाख रुपये का घाटा हो गया! उसमें एक केयरटेकर रहते हैं, जिनको सालाना करीब 2 लाख रुपये देने पड़ते हैं, उसके अलावा जो निराई गोड़ाई, रोपाई बोआई का खर्च अलग से आता है। स्ट्रॉबेरी एक कोशिश थी, जिससे मामला नो प्रॉफिट नो लॉस में आ जाए।

इस तरह से होती है खेती!

खैर... उनका मकसद बिजनेस नहीं है। अपने लिए प्रोडक्शन करते हैं जिससे खुद को, परिजनों को, जो इलाज के लिए आते हैं, उन्हें खाने भर को मिल जाए। आलू भिंडी बेचना उन लोगो के वश की बात भी नहीं है और वह कोई बिजनेस मॉडल भी नहीं बना पाएंगे कि कम से कम नो प्रॉफिट नो लॉस में विषरहित सब्जियां उगाई जा सकें। लेकिन एक कवायद की जा रही है कि कुछ सिस्टम बन पाए। स्वास्थ्य के लिए कुछ बेहतर किया जा सके। कम से कम अपना स्वास्थ्य तो बेहतर रखा ही जाए!

आप भी बता सकते हैं कि इन केमिकल्स से बचने के लिए क्या क्या किया जा सकता है? नॉन वेज और खतरनाक है। वह ऑप्शन तो कतई न दें। आयुर्वेद पढ़ेंगे तो पता चलेगा कि किस तरह का मांस खाने से फायदा होता है। एक बीमार की जा चुकी गाय का दूध आपके लिए फायदेमंद नहीं हो सकता, जिसके बच्चे को मारकर उसका दूध निकाला जा रहा है। गाय को इस तरह जेनेटिकली मोडिफाई कर दिया गया है कि वह अपने बेटा बेटी को पिलाने की जरूरत से 50 गुने ज्यादा दूध देती है।


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