विचार / लेख
-चंदन कुमार जजवाड़े
कहा जाता है कि राजनीति में कुछ भी बेवजह नहीं होता है। संभव है कि वजह बाद में पता चले।
बिहार में नीतीश कुमार कुछ भी करने वाले होते हैं तो उसके संकेत पहले से ही मिलने लगते हैं। कई बार लगता है कि ये तो सामान्य बात है लेकिन कुछ महीने बाद ही असामान्य हो जाती है।
नीतीश कुमार की एक तस्वीर पर ख़ूब बात हो रही है। इस तस्वीर में नीतीश कुमार ने हँसते हुए तेजस्वी यादव के कंधे पर हाथ रखा है और तेजस्वी हाथ जोडक़र थोड़ा झुक कर हँस रहे हैं।
हालांकि यह एक सरकारी कार्यक्रम की तस्वीर है। जहां पक्ष और विपक्ष का आना एक औपचारिक रस्म होता है। लेकिन कई बार औपचारिक रस्म में ही अनौपचारिक चीज़ें हो जाती हैं।
दरअसल आरिफ़ मोहम्मद ख़ान राज्यपाल की शपथ ले रहे थे और इसी कार्यक्रम में नीतीश कुमार भी मौजूद थे और बिहार विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव भी।
दोनों नेताओं की यह तस्वीर आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव के उस बयान के बाद आई है, जिसमें उन्होंने एक चैनल के कार्यक्रम में कहा था कि नीतीश कुमार के लिए उनके दरवाज़े खुले हुए हैं।
बिहार में इसी साल विधानसभा के चुनाव होने हैं और राज्य के सियासी गलियारों में पिछले कुछ दिनों से नीतीश कुमार को लेकर लगातर अटकलें लगाई जा रही हैं। इन अटकलों को नीतीश की चुप्पी ने भी हवा दी है।
लालू के इस बयान के बाद बिहार में कांग्रेस के नेता शकील अहमद ख़ान ने भी कहा, ‘गांधीवादी विचारधारा में विश्वास करने वाले लोग गोडसेवादियों से अलग हो जाएंगे, सब साथ हैं, नीतीश जी तो गांधीजी के सात उपदेश अपने टेबल पर रखते हैं।’
कऱीब एक साल पहले ही नीतीश कुमार ने बिहार में महागठबंधन का साथ छोड़ा था और वापस एनडीए में चले गए थे। वो अगस्त 2022 में दोबारा बिहार में महागठबंधन से जुड़े थे।
गुरुवार को जब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से पत्रकारों ने इस मुद्दे पर सवाल किया तो वो ख़ामोश दिखे, लेकिन राज्य के नए राज्यपाल ने पत्रकारों के सवाल के जवाब में कहा, ‘आज शपथ ग्रहण का दिन है, राजनीतिक सवाल मत पूछिए।’
हालांकि जेडीयू के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री ललन सिंह ने लालू के बयान से किनारा करते हुए कहा, ‘छोडि़ए न... लालू जी क्या बोलते हैं, क्या नहीं बोलते हैं ये लालू जी से जाकर पूछिए हमलोग एनडीए में हैं और मज़बूती से एनडीए में हैं।’
हालांकि ललन सिंह का यह कहना बहुत मायने नहीं रखता है क्योंकि नीतीश कुमार ने तो यहां तक कहा था कि मिट्टी में मिल जाऊंगा लेकिन फिर से बीजेपी के साथ नहीं जाऊंगा।
क्या नीतीश फिर पाला बदल सकते हैं?
बिहार में बीजेपी के नेता कई बार इस तरह का बयान देते हैं कि वो राज्य में अपना मुख्यमंत्री और अपनी सरकार चाहते हैं।
पिछले दिनों बीजेपी विधायक और राज्य सरकार में उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा ने भी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती के मौक़े पर कहा था कि अटल जी को सच्ची श्रद्धांजलि तब होगी जब राज्य में बीजेपी का अपना मुख्यमंत्री होगा।
हालांकि बाद में वो अपने बयान से पलटते नजऱ आए और एक बयान जारी कर नीतीश कुमार को बिहार में एनडीए का चेहरा बताया।
हाल के समय में देशभर में कई क्षेत्रीय दलों में टूट हुई है, जिनमें महाराष्ट्र की शिव सेना और एनसीपी जैसे दल भी शामिल हैं। बिहार में रामविलास पासवान के निधन के बाद उनकी पार्टी एलजेपी के भी दो टुकड़े हो गए, जिसके लिए चिराग पासवान ने बीजेपी के प्रति नाराजग़ी भी जताई थी।
इसके अलावा ओडिशा में बीजू जनता दल जैसी ताक़तवर क्षेत्रीय पार्टी भी बीजेपी से हार गई। क्षेत्रीय पार्टियों के कमज़ोर पडऩे का सीधा फायदा बीजेपी को हो रहा है। ऐसे में क्या नीतीश के मन में भी बीजेपी का डर है?
वरिष्ठ पत्रकार सुरूर अहमद कहते हैं, ‘डर बड़े-बड़े नेताओं को होता है तो नीतीश कुमार को क्यों नहीं होगा। इसलिए नीतीश कुमार दो तरह से खेल रहे हैं। वो बीजेपी के साथ हैं और तेजस्वी के कंधे पर हाथ रखकर संकेत दे रहे हैं कि हालात बदले तो वो आरजेडी के साथ भी आ सकते हैं।’
सुरूर अहमद मानते हैं कि अगर नीतीश को कभी बिहार की सत्ता किसी और को सौंपनी पड़े तो उनकी पार्टी में कोई नेता नहीं है और वो बिहार के मौजूदा नेताओं को यहां की सत्ता नहीं सौंपेंगे, ऐसी स्थिति में उनके लिए तेजस्वी यादव ज़्यादा सही हैं।
हालांकि वरिष्ठ पत्रकार कन्हैया भेलारी बिहार की मौजूदा सियासत को कुछ अलग नज़रिए से देखते हैं।
उनका कहना है, ‘नीतीश राजनीतिक तौर पर मज़बूत हैं, इसलिए उनकी चर्चा होती रहती है। अलग बीजेपी ने नीतीश की पार्टी तोड़ी तो भी उनका वोट नहीं तोड़ पाएंगे। नीतीश के भरोसे ही केंद्र की सरकार चल रही है तो बीजेपी ऐसा क्यों करेगी।’
उनका मानना है कि बिहार और महाराष्ट्र जैसे राज्य में बहुत फक़ऱ् है। नीतीश कुमार सियासी तौर पर बहुत अनुभवि नेता हैं, जो हर चाल को पहले ही भांप लेते हैं।
वो कहते हैं, ‘नीतीश अगर आरजेडी के साथ जाते हैं तो भी वो ज़्यादा से ज़्यादा सीएम ही रहेंगे, पीएम नहीं बन जाएंगे। हो सकता है कि नीतीश कुमार बीजेपी पर दबाव बना रहे हों कि वो 122 विधानसभा सीटें चाहते हैं, बाक़ी सीटें बीजेपी अपने सहयोगियों के साथ बांटे।’
बिहार में कैसे शुरू हुईं अटकलें
बिहार में विधानसभा की 243 सीटें हैं और राज्य के पिछले विधानसभा चुनाव में जेडीयू को महज़ 43 सीटों पर जीत मिली थी जबकि उसने 115 सीटों पर चुनाव लड़ा था। हालांकि इसके बाद भी नीतीश कुमार ही राज्य के मुख्यमंत्री बने थे।
पहले उन्होंने एनडीए में रहकर सीएम पद अपना दावा बनाए रखा और फिर अगस्त 2022 में महागठबंधन में आ गए। उनकी पार्टी ने उस वक्त आरोप भी लगाया था कि जेडीयू को तोडऩे की कोशिश की जा रही थी।
वरिष्ठ पत्रकार नचिकेता नारायण कहते हैं, ‘दरअसल नीतीश को लेकर नई चर्चा पिछले दिनों बीजेपी के वरिष्ठ नेता और गृह मंत्री अमित शाह के एक बयान के बाद शुरू हुई।’
‘एक चैनल के कार्यक्रम में अमित शाह से पूछा गया कि एनडीए ने महाराष्ट्र में बिना सीएम का चेहरा पेश किए बड़ी जीत हासिल की है, तो क्या बीजेपी बिहार में भी ऐसा प्रयोग करना चाहेगी? तो अमित शाह ने कहा मैं पार्टी का सामान्य कार्यकर्ता हूँ। इस तरह के फ़ैसले लेना संसदीय बोर्ड का काम होता है।’
नचिकेता नारायण कहते हैं कि नीतीश को लेकर अमित शाह ने स्पष्ट बयान नहीं दिया और यहीं से नीतीश ने चुप्पी अपना ली है, जो बीजेपी पर दबाव बनाने की कोशिश भी हो सकती है ताकि उन्हें विधानसभा चुनावों में साझेदारी में ज़्यादा से ज्य़ादा सीटें मिल सकें।
नचिकेता नारायण मानते हैं, ‘लालू प्रसाद यादव ने नीतीश के लिए दरवाजा खुला होने की बात कहकर एक सधी हुई चाल चली है। इसका असर धीरे-धीरे समझ में आएगा। लालू जानते हैं कि एनडीए में किसी भ्रम या टूट का फ़ायदा आरजेडी को होगा।’
दरअसल बिहार में इसी साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और नीतीश कुमार की जेडीयू राज्य की एक ऐसी पार्टी है जो आरजेडी या बीजेपी किसी के साथ भी गठबंधन में जा सकती है।
आंकड़े बताते हैं कि नीतीश कुमार की पार्टी अकेले भले ही बहुत कुछ हासिल न कर पाए लेकिन वो जिस गठबंधन में होती है, उसकी ताक़त काफ़ी बढ़ जाती है।
सुरूर अहमद कहते हैं, ‘बिहार को लेकर जो ख़बरे चल रही हैं या चलाई जा रही हैं, वह काफ़ी दिनों से हो रहा है। लेकिन बीते 15 दिनों से इसमें कुछ ख़ास बातें देखी गईं। पहले 15 दिसंबर से नीतीश महिला सम्मान यात्रा पर जाने वाले थे, जिसे स्थगित कर दिया, फिर प्रगति यात्रा की योजना बनाई गई। लेकिन 25-26 दिसंबर के आसपास नीतीश को लेकर अटकलें गर्म होनी शुरू हो गईं।’
इसी दौरान 19 और 20 दिसंबर को राजधानी पटना में ‘बिहार बिजनेस कनेक्ट -2024’ का आयोजन हुआ, जिसमें निवेश के अहम समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए। इस कार्यक्रम के आखिरी दिन नीतीश कुमार को मुख्य अतिथि के तौर पर आना था, लेकिन वो इसमें नहीं आ सके।
इस मामले ने भी सियासी अटकलों को काफी हवा दी।
नीतीश को लेकर क्या है बेचैनी?
बिहार में बीजेपी के सहयोगी दलों की बात करें तो ये पार्टियाँ आमतौर पर सेक्युलर पॉलिटिक्स के लिए जानी जाती हैं।
इनमें नीतीश कुमार की जेडीयू, चिराग पासवान की एलजेपी (आर), पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी की पार्टी हम (सेक्युलर) और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा जैसे दल शामिल हैं।
टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज़ के पूर्व प्रोफ़ेसर पुष्पेंद्र कुमार कहते हैं, ‘बीजेपी के साथ आने से इन दलों के सेक्युलर वोटों में जो नुक़सान होता है, उसे आरिफ़ मोहम्मद ख़ान को राज्यपाल बनाकर एक संदेश देने और भरने कोशिश ज़रूर की गई है। लेकिन बीजेपी मूल रूप से बिहार को लेकर बेचैन रहती है।’
प्रोफ़ेसर पुष्पेंद्र कुमार कहते हैं, ‘लोकसभा चुनावों में बीजेपी नीतीश कुमार से साथ एकता चाहती है। लेकिन विधानसभा चुनाव में वह अपनी ताक़त बढ़ाकर अपने बूते राज्य में सरकार बनाना चाहती है, इसलिए नीतीश कुमार को कमज़ोर करना चाहती है। पिछली बार भी चिराग पासवान की मदद से यह कोशिश की गई।’
‘इस तरह से देखें तो नीतीश कुमार बीजेपी की ज़रूरत भी हैं और बेचैनी की वजह भी। यही बेचैनी कई बार बीजेपी नेताओं के बयान में भी नजऱ आती है।’
हालांकि बाद में वो अपने बयान से पलटते नजऱ आए और एक बयान जारी कर नीतीश कुमार को बिहार में एनडीए का चेहरा बताया है।
पुष्पेंद्र कुमार मानते हैं कि नीतीश कुमार अपनी चुप्पी से रहस्य बनाकर रखते हैं, बाक़ी संजय झा जैसे नेता लोगों के बीच मान्य नेता नहीं हैं, वो बीजेपी और नीतीश के बीच डोर का काम करते हैं, इससे ज़्यादा कुछ नहीं हैं।
बिहार के मौजूदा सियासी समीकरण पर नचिकेता नारायण कहते हैं, ‘बिहार में भ्रम की जो स्थिति है उसकी सच्चाई नीतीश कुमार को छोडक़र कोई नहीं जानता है। पिछली बार भी जब नीतीश कुमार ने गठबंधन बदला था तो दो दिन पहले तक उनके मंत्रियों तक को कुछ पता नहीं था।’
(बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूजरूम की ओर से प्रकाशित) (bbc.com/hindi)