राजपथ - जनपथ
विस्टाडोम कोच बस्तर की ट्रेन में..
रेलवे ने सबसे पहला विस्टाडोम कोच सन् 2018 में मुंबई-मडगांव रूट पर जन शताब्दी एक्सप्रेस में शुरू किया था। इसका मकसद पर्यटन को बढ़ावा देना था।
अब तक तिनसुकिया-नाहर लागून एक्सप्रेस, नाहर-लागून गुवाहाटी एक्सप्रेस, दार्जिलिंग-हिमाचल रेलवे टॉय ट्रेन, न्यू जलपाईगुड़ी-अलीराजपुर जंक्शन, सीएसटी मुंबई-पुणे, यशवंतपुर-बेंगलुरु, पुणे-मुंबई डेक्कन एक्सप्रेस, मुंबई-दादर-मडगांव और कालका शिमला ट्रेन में विस्टाडोम कोच लगाये जा चुके हैं। और अब रेलवे ने छत्तीसगढ़ के जगदलपुर से विशाखापट्टनम जाने वाली और विशाखापट्टनम से अरकू घाटी चलने वाली ट्रेनों में विस्टाडोम कोच लगाने का निर्णय लिया है। एक माह के भीतर यह लग जायेगी।
यानी अब जो लोग बस्तर से विशाखापट्टनम आते जाते हैं, वे इस रास्ते में पडऩे वाले मनमोहक दृश्यों को चारों ओर से 360 डिग्री कांच की चौड़ी खिड़कियों से देख सकेंगे। यह कोच केवल दिन में चलने वाली ट्रेनों में जोड़ा जाएगा।
रेलवे की ओर से पर्यटन को बढ़ावा देने की यह पहल बस्तर की खूबसूरती को और नजदीक से निहारने का मौका देगा।
रेलवे को बजट में क्या मिला?
अंबिकापुर को कोरबा और रेनुकूट तथा दिल्ली मुख्य मार्ग से रेल के जरिए जोडऩे की मांग करीब एक दशक पुरानी है। पिछले साल जनवरी महीने में सर्वेक्षण का काम पूरा हुआ तो लोगों को लगा कि इस बार बजट में इस परियोजना के लिए कोई राशि मिलेगी। इसके अलावा कुछ नई रेल लाइनों के सर्वे की मांग है, जिनमें जशपुर को रेल लाइन से जोडऩे की भी है। उसलापुर, मुंगेली, कवर्धा होते हुए राजनांदगांव के लिए नई ट्रैक के लिए भी सर्वेक्षण का काम पूरा हो चुका है। 9 साल पहले बताया गया था कि यह काम 3 साल में पूरा हो जाएगा। इसकी रफ्तार इतनी धीमी है कि 10-12 साल भी कम पड़ेंगे।
अब तो रेलवे बजट अलग से नहीं लाया जाता। पता नहीं चलता कि किसे क्या मिला। आने वाले सालों में 400 नई वंदे मातरम ट्रेनें चलाने की घोषणा की गई हैं। नई ट्रेनें, रुकी हुई ढेरों परियोजनायें, दूसरी तरफ रेलवे नौकरी भी खत्म कर रही है। दिमाग पर जोर डालिये, समझने की कुछ कोशिश करिये।
दुर्लभ वाइल्डलाइफ फोटोग्रॉफी
वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी बहुत धीरज और अनिश्चितकाल की प्रतीक्षा मांगती है। अब इसी तस्वीर को लीजिए। अंबिकापुर के एडिशनल एसपी नरेंद्र वर्मा बताते हैं की सारस क्रैन एक प्रवासी पक्षी है। लेकिन एक जोड़े ने बीते कई सालों से उसने सरगुजा में डेरा डाल रखा है। बड़ी मुश्किल से वे अपने मित्र प्रतीक के साथ उनके ठिकाने का पता लगा पाए और यह तस्वीर ले सके।
मास्क पहनकर खाना खाते राहुल
सोशल मीडिया पर राहुल गांधी का मजाक बनाने के लिये एक बड़ी टीम काम करती है। तमिलनाडु के एक कार्यक्रम में वे कुछ महिलाओं के साथ खाना-खाने के लिये बैठे हैं, जिसमें उन्होंने मास्क पहन रखा है। पुरानी तस्वीर अब वायरल की गई। साथ में यह कमेंट भी चस्पा किया गया कि चले हैं मोदी और योगी से मुकाबला करने। ये दुनिया के अकेले शख्स हैं, जो मास्क लगाकर भोजन कर लेते हैं। फिर भी पूछते हो कि इनको पप्पू क्यों कहा जाता है। एक फोटो में वे पंजाब के मुख्यमंत्री के साथ लंगर में बैठे हैं। इसमें भी उन्होंने मास्क पहन रखा है।
दोनों ही तस्वीरों के आईटी सेल से वायरल होने के बाद कांग्रेस की टीम सक्रिय हुई और तस्वीरों में दिखाया कि मास्क तो उन्होंने खाने से पहले उतार दिया था। तमिलनाडु की तस्वीर तो एक साल पुरानी है, तब वे वहां तीन दिन के दौरे पर थे। जवाबी ट्वीट में यह भी कहा गया कि अजूबा तो टेलीप्रॉम्टर मोदीजी हैं जो खुद मास्क नहीं पहनते पर लोगों को पहनने का ज्ञान देते हैं।
सोशल मीडिया पर कांग्रेस की सारी ताकत सफाई देने में ही निकल जाती है। ऐसी तगड़ी टीम उनके पास बचती नहीं है कि खुद मोर्चा खोलें।
केवल पांच दिन भटकें...
सरकारी महकमे की वेतन, पदोन्नति संबंधी मांगें भले ही पूरी न हों, लेकिन छुट्टियों की मुराद जरूर पूरी हो गई। पहले भी स्थानीय तीज-त्यौहारों को मिलाकर छुट्टियां कम नहीं थीं। अब सप्ताह में सिर्फ पांच दिन काम करना होगा। तर्क यह दिया गया है कि इसे कार्यक्षमता बढ़ेगी। ईंधन की खपत कम होगी। पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा, परिवार के साथ समय बिता सकेंगे, आदि-आदि। कर्मचारियों का एक फायदा यह भी है कि मंगलवार या गुरुवार को किसी पर्व के चलते अवकाश हो तो सिर्फ एक दिन की छुट्टी की अर्जी देकर सीधे चार दिन के लिये ड्यूटी से बच सकते हैं। सप्ताह में दो दिन छुट्टी के एवज में ड्यूटी का समय सुबह आधा घंटे पहले सुबह 10 बजे शुरू होने का दावा है। दो दिन की छुट्टी के बाद सोमवार को सुबह 10 बजे झांकना दिलचस्प होगा कि सरकारी दफ्तरों की कौन-कौन सी कुर्सियां भर चुकी हैं। अब तक 10.30 बजे के समय का ही पालन कहां हो पाता था?
बहुत से लोगों को लगता है कि कोरोना संक्रमण के कारण वैसे भी सरकारी कामकाज की रफ्तार घटी थी। दफ्तरों में फाइलों का अंबार लगा है। पांच दिन का सप्ताह रख देने से क्या इनसे छुटकारा मिलेगा? केंद्र सरकार की बात अलग है जहां आम लोगों को ज्यादा धक्के नहीं खाने पड़ते, लेकिन ब्लॉक, तहसील और जिला मुख्यालयों में आम लोगों को बहुत रहते हैं। साहबों को अब इन्हीं पांच दिनों में बैठकें भी लेनी है, दौरे भी करने हैं। ऊपर से लोगों की समस्या सुनने के लिये भी वक्त निकालना होगा। बस, इतना ही है कि पहले फरियादियों के पास पहले 6 दिन भटकने का विकल्प था, अब पांच दिन ही भटका करेंगे।
भाषा की बेइंसाफी गूगल तक में
भाषा की राजनीति हमेशा से महिलाओं को अनदेखा करने वाली रही है, और भाषा के मुताबिक महिलाओं का अस्तित्व ही नहीं होता। भाषा का समाजशास्त्र भी अधिकतर जगहों पर महिलाओं का जिक्र न करके सिर्फ पुरुषों को ही सब कुछ मान लेता है। अब जैसे गूगल पर भाषा की गलतियां या हिज्जों की गलतियां सुलझाने वाले व्याकरण को देखें तो वह किसी महिला के लिए ‘जानी-मानी’ शब्द को ही गलत मानता है, वह उसे ‘जाने-माने’ सुझाता है। मतलब यह कि या तो वह किसी महिला को अर्थशास्त्री नहीं गिनता, या फिर वह सुनयना नाम को महिला के रूप में नहीं जानता। हमने सुनयना की जगह अलग-अलग कई तरह के महिला नाम डालकर देखे, लेकिन गूगल को उनमें से किसी भी नाम को ‘जानी-मानी’ मानने पर आपत्ति है और वह एक पुरुष की तरह जाने-माने ही सुझाता है। भाषा के ऐसे लैंगिक भेदभाव जहां दिखें वहां उसका विरोध करना चाहिए। हिंदुस्तान में मोबाइल फोन से किसी को कॉल किया जाए और वे फोन न उठाएं तो मोबाइल कंपनी का कंप्यूटर महिला की आवाज में यह संदेश सुनाता है कि आप व्यक्ति को कॉल कर रहे हैं, वह उत्तर नहीं दे रहा है, कृपया बाद में लगाएं। यानी किसी महिला के पास भी मोबाइल हो सकता है और वह भी किसी कॉल को नहीं उठा सकती है ऐसा मोबाइल कंपनी का कंप्यूटर मानता ही नहीं, क्योंकि कंपनी ने उसमें मैसेज भी उसी तरह का रिकॉर्ड किया है। ऐसी ही तमाम बेइंसाफी का विरोध किया जाना चाहिए।
आरआर और प्रमोटी में तुलना
साल 2011 में नक्सलियों से भिडऩे के लिए आरक्षकों को वन टाइम प्रमोशन नीति से सीधे सब इंस्पेक्टर पदोन्नत हुए राज्य के 112 अफसरों में ज्यादातर निरीक्षक होकर नक्सल और मैदानी इलाकों में डटे हुए हैं। सेवा शर्तों में 10 साल के लिए माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में तैनाती की चुनौती को स्वीकार कर इनमें कुछ ने नक्सलियों को ढेर किया। नक्सल समस्या के घटते दायरे के लिए वन टाईम प्रमोशन के उपनिरीक्षकों को नक्सल शव हाथ लगने पर बहादुरी के लिए वीरता पदक के साथ आउट ऑफ प्रमोशन (ओटी) से पदोन्नत होकर निरीक्षक का ओहदा दिया गया। अब महकमे के भीतर इन अफसरों की काबिलियत को परखने के बजाए सीधी भर्ती से उपनिरीक्षक और प्रमोशन से निरीक्षक बने अफसर आरआर और प्रमोटी जैसे शब्दों का उपयोग कर रहे हैं। वन टाईम के अफसर को लेकर पुलिस विभाग में कानाफूसी और टीका-टिप्पणी आम बात हो गई है। 2011 में सरकार ने विशेष परीक्षा के जरिए 112 आरक्षकों के कंधे पर दो स्टार लगाकर ट्रेनिंग दी। इनमें कुछ आरक्षकों ने कठिन ट्रेनिंग होने और दीगर सेवा में जाने प्रशिक्षण छोड़ दिया। इस तरह प्रशिक्षण के बाद 95 को बस्तर में नक्सलियों से लडऩे के लिए भेजा गया। तैनाती के दौरान वन टाईम प्रमोशन के उपनिरीक्षक निलेश पांडे और पुष्पराज चंद्रवंशी को शहादत मिली। वहीं तीन ने अलग-अलग वजहों से दुनिया छोड़ दी। बताते हैं कि मौजूदा समय में 90 अफसरों में ज्यादातर निरीक्षक बन गए हैं। प्रमोशन से निरीक्षक बने अफसरों के लिए सीधी भर्ती के निरीक्षकों की ब्यूरोक्रेट्स की तर्ज पर आरआर और प्रमोटी या वन टाईम के आधार पर तुलना हो रही है। यह भी सच है कि वन टाईम के अफसरों को अब तक बैच भी अलॉट नहीं किया गया है। उपनिरीक्षक-निरीक्षक के मध्य बढ़ता तुलनात्मक नजरिया ऐसे अफसरों में मायूसी बढ़ा रहा है।
गांधीजी का चश्मा...
चश्मा बार-बार राजनीतिक मुद्दा बन जाता है। केंद्र की मोदी सरकार ने जब स्वच्छता अभियान शुरू किया तब प्रतीक के रूप में गांधी जी के चश्मे का इस्तेमाल शुरू किया गया। तब लोगों ने सवाल उठाया कि मोदी जी को बापू का सिर्फ चश्मा उनका केवल एक संदेश स्वच्छता का ही ध्यान आया, उनकी बाकी बातों से प्रेरणा क्यों नहीं ली जाती?
कांग्रेस ने बीते विधानसभा चुनाव में रमन का चश्मा नाम से एक पैरोडी गीत बनाया जिसका वीडियो भी खूब चला। इसने कांग्रेस की तरफ मतदाताओं का रुख मोडऩे में बड़ी भूमिका निभाई। अब गांधी जी के चश्मे पर छत्तीसगढ़ भाजपा का ध्यान गया है। नया रायपुर में मंत्रालय के सामने लगी प्रतिमा में गांधीजी की आंखों पर चश्मा नहीं लगा। छत्तीसगढ़ भाजपा ने इस पर ट्वीट करते हुए कहा कि भूपेश जी ने क्या इसलिए बापू का चश्मा गायब करा दिया ताकि वह छत्तीसगढ़ की बदहाली ना देखें। प्रतिक्रिया में कांग्रेस नेता आरपी सिंह ने कहा कि जहां-जहां बापू की मूर्ति ध्यान मुद्रा में है, वह बिना चश्मे की ही है। संसद भवन में भी बिना चश्मे की ही मूर्ति लगी है तो क्या इसलिए कि देश की बदहाली ही ना देख सके। उन्होंने सवाल उठाने वालों को अनपढ़ और जाहिल मित्र तक बता दिया। बरहाल, गांधीजी भाजपा और कांग्रेस दोनों की चिंता में है। गांधी पर सियासत पूरी है, बस अमल में कमी रह गई है।
नदी ही नहीं जमीन पर भी अंधाधुंध खुदाई..
नदियों को अवैध रेत उत्खनन से नुकसान तो हो रहा है, जगह-जगह खनिज विभाग जिस तरह से मिट्टी और मुरूम की खुदाई के लिए आंख मूंदकर मंजूरी दे रहा है उससे भी बड़ी क्षति होती है। आमतौर पर बड़ी परियोजनाओं के ठेकेदारों के आगे प्रशासन और ज्यादा खामोशी बरत लेता है। गेवरा से पेंड्रारोड रेल कॉरिडोर के निर्माण कार्य में किसानों के बीच अपनी निजी भूमि को मिट्टी और मुरूम खुदाई के लिए देने की होड़ लग गई। ठेकेदार ने राजस्व भूमि और वन भूमि पर भी खुदाई शुरू कर दी। कटघोरा के पोड़ी उपरोड़ा ब्लॉक के कई गांवों में अंधाधुंध मुरूम और मिट्टी की खुदाई के कारण पलाश, महुआ, सेमल के बड़े-बड़े पेड़ धराशायी कर दिये गये हैं। बहतराई ग्राम में विद्युत विभाग का 11,000 किलो वाट का टावर भी खतरे में है। राजस्व विभाग का कहना है कि उनके पास पेड़ों के नुकसान और सरकारी संपत्ति को क्षति पहुंचने की कोई खबर नहीं है। खनिज विभाग कहता है कि इसे रोकना प्रशासन का काम है। हमने तो खनन की अनुमति दे दी है। वन विभाग का कहना है यह वनभूमि में नहीं हो रहा है। यानि अपनी जवाबदारी सब एक दूसरे पर डाल रहे हैं।
सेनानी का 108 साल पुराना कंकाल
छत्तीसगढ़ में आमतौर पर स्कूलों में विज्ञान के छात्रों के पढ़ाई के लिए कंकाल की जरूरत नहीं है। मगर कुसमी ब्लाक के राजेंद्रपुर गांव के मल्टीपर्पस स्कूल में एक कंकाल का अवशेष कौतूहल पैदा करता है। इसे बीते 108 सालों से प्रिजर्व करके रखा गया है। यह कंकाल किसी साधारण व्यक्ति की नहीं, बल्कि अंग्रेजों से लोहा लेने वाले सेनानी की है। जिनका नाम लागुड़ बिगुड नगेसिया था। नगेसिया ने सन् 1913 में झारखंड में हुए टाना भगत आंदोलन में भाग लिया था। टाना भगत जी एक सेनानी थे जिन्होंने अंग्रेजों से लोहा लिया था अंग्रेजों ने उसकी हत्या कर दी। इसके विरोध में झारखंड में बड़ा आंदोलन हुआ जिसमें कहा जाता है कि अंग्रेज सैनिकों ने लागुड़ बिगुड नगेसिया और उसके एक साथी को खौलते तेल में डुबा कर मार डाला। मौत के बाद उनके कंकाल को स्कूल में सुरक्षित रखा गया। तब यह अंग्रेजों का एडवर्ड स्कूल था और इस समय मल्टीपरपज स्कूल है।
उनके परिजन अब इस कंकाल को वापस चाहते हैं। उनका कहना है कि अब इस कंकाल के कई हिस्से नष्ट हो चुके हैं। वैसे भी यहां छात्रों की पढ़ाई में इसकी जरूरत नहीं पड़ती। देखना होगा प्रशासन इस पर क्या निर्णय लेता है।
रेत की इतनी ज्यादा जरूरत नहीं
भवन निर्माण की तकनीक में लगातार सुधार होते रहे हैं। पहले ज्यादा छड़ों का प्रयोग होता था अब इंजीनियर और आर्किटेक्ट इसका कम इस्तेमाल करते हैं। लाल ईंट की जगह फ्लाई ऐश ब्रिक्स की सलाह इसलिए दी जाती है क्योंकि यह सस्ता है। इसमें सीमेंट भी कम लगता है।
रेत की अंधाधुंध खुदाई पर रोक लगाने की कोशिशों पर ढेर सारे राजनैतिक नजरिए के बीच एक आर्किटेक्ट प्रथमेश का कहना है कि हम भवन निर्माण में जरूरत से ज्यादा रेत इस्तेमाल करते हैं। एक मकान में जितनी रेत लगती है, उसका आधा हम अंदर-बाहर भराई में डाल देते हैं, जबकि यह् काम मुरूम, मलबा या स्टोन डस्ट से किया जा सकता है। ऐसा करने से लागत भी कम आएगी। कड़ाई से रोक लगा दें, तो रेत की जरूरत आधी रह जाएगी।
रेत पर कंट्रोल सिस्टम का भी एक सुझाव है। रजिस्टर्ड इंजीनियर लिख कर दें कि किसी भवन को बनाने कितनी रेत लगेगी, उस हिसाब से ही रेत की पर्ची जारी की जाए। प्राइवेट ही नहीं, सरकारी भवन और बिल्डर्स के निर्माण कार्य में रेत की बड़ी बर्बादी होती है। इन पर रोक लगे तो डिमांड कम होगी और उत्खनन भी कम होगा। चाहे वैध हो या अवैध।
मजदूरों के वेतन की खयानत
सरकारी काम लेने वाले ठेकेदारों के लिए जरूरी होता है कि वे एक निर्धारित वेतन अपने मजदूरों और कर्मचारियों को दें। केंद्र सरकार ने सार्वजनिक उपक्रमों को बैंक अकाउंट में वेतन डालने का निर्देश इसीलिए दिया है ताकि मजदूरों को उनके हक का पूरा पैसा मिले, ठेकेदार या मैनेजर उनका हिस्सा न खा जाएं। पर, जहां नियम हैं, वहां तोड़ भी।
बीते तीन साल से भिलाई स्टील प्लांट में एक ठेकेदार के नीचे काम कर रहे कई श्रमिकों को अचानक हटा दिया गया। मजदूरों ने वजह यह बताई कि खाते में वेतन आने के बाद ठेकेदार का आदमी उनसे दो से तीन हजार रुपए वापस करने के लिए कहता था। कभी कभी उन्होंने दो-तीन हजार दिए भी, पर मेहनत की कमाई से हर बार हिस्सा देना उनको मंजूर नहीं था। अब ये निकाले गए मजदूर बीएसपी के एक ऑफिस से दूसरे में चक्कर लगा रहे हैं। यूनियन से भी शिकायत कर चुके हैं, पर उनको वापस नहीं रखा गया है। राज्य सरकार के अधीन चलने वाले निर्माण कार्यों के मजदूरों के लिए भी इसी तरह से बैंक के जरिए भुगतान करने और उनका पीएफ अकाउंट खोलने एक नियम है, पर कुछ बड़े ठेका कंपनियों के अलावा कहीं भी इसका पालन नहीं होता है।
मास्क के बिना मोहल्ला क्लास
शिक्षा विभाग ने ‘पढ़ाई द्वार द्वार योजना’ के तहत मोहल्ला क्लास लगाने की अनुमति दी है। खासतौर पर यह उन लोगों के लिए है जो ऑनलाइन पढ़ाई से वंचित हैं। प्राथमिक शाला के बच्चों को भी इनमें बुलाया जा रहा है ताकि उनकी पढ़ाई लंबे समय तक अवरुद्ध ना रहे। उनके लिये ऑनलाइन पढ़ाई भी मुश्किल है। मगर, कई स्थानों पर इससे जुड़े गाइडलाइंस का पालन नहीं हो रहा है। मुंगेली जिले में शिक्षा विभाग ने बकायदा मोहल्ला क्लास लगाने के लिए शिक्षकों को व्हाट्सएप पर निर्देश तो जारी किया, पर इस बात की निगरानी का कोई प्रबंध नहीं किया कि बच्चों के बीच सोशल डिस्टेंस और मास्क का प्रयोग सुनिश्चित हो। इसके अलावा बस्तर, बिलासपुर आदि जिलों से भी कुछ तस्वीरें आई हैं जिनमें यह दिखाई दे रहा है कि बच्चे तो कोरोना संक्रमण से बेफिक्र हैं ही, शिक्षकों को भी परवाह नहीं है।
रेत कारोबारी बदला लेने पर उतारू
रेत के अवैध उत्खनन तथा परिवहन को लेकर मुख्यमंत्री की सख्ती का बदला ठेकेदारों, ट्रांसपोर्टरों और अधिकारियों ने एक साथ मिलकर आम जनता से लेना शुरू कर दिया है। रायपुर, बिलासपुर, बस्तर, रायगढ़ समेत तमाम जिलों में रेत के भाव दोगुने हो गए हैं। ठीक ऐसे समय में जब भवन निर्माण में तेजी आई है, एकाएक रेत की कीमत के चलते लागत बढऩे से लोग परेशान हो गये हैं। रायपुर में ही लोडिंग का जो शुल्क हजार रुपए था, अब उसे दो हजार कर दिया गया है। रॉयल्टी के नाम पर भी दो हजार रुपये वसूल किए जा रहे हैं। दोनों का वास्तविक शुल्क इससे आधा भी नहीं है। सरकार ने न तो रायल्टी बढ़ाई है न ही लोडिंग चार्ज में कोई अतिरिक्त शुल्क जोड़ा है। पर दो-ढाई हजार की अतिरिक्त वसूली सिर्फ इसलिये की जा रही है ताकि मुनाफाखोरी में कोई कमी न रह जाये। इधर घाटों में हो रही इस अतिरिक्त वसूली के बहाने ट्रांसपोर्टरों ने एक हाईवा के पीछे तीन से पांच हजार रुपये तक, अलग-अलग शहरों के अनुसार रेट बढ़ा दिया है। हकीकत यह है कि सीएम के आदेश के चलते ज्यादातर जिलों में खनिज विभाग और जिला प्रशासन अनमने ढंग से इस आदेश को लागू कर रहा है। अवैध खनन रुकने से पैदा हुई परिस्थितियों से निपटने के लिये वे कोई उपाय नहीं कर रहे हैं, लाचारी जता रहे हैं। यह याद रखने वाली बात है कि भाजपा शासनकाल के दौरान रेत के मनमाने दाम पर नियंत्रण करने के लिए ही घाटों की नीलामी की गई। लोगों को वाजिब दाम पर रेत उपलब्ध कराने का लक्ष्य था। पर प्रशासन और रेत के कारोबारी मिलकर यह साबित करना चाहते हैं कि रेत का अवैध खनन होते रहने में भलाई है। इसे रोका ना जाये, भले ही नदियां बर्बाद हो जायें।
शहीद बेटे की याद में प्रतिमा..
नक्सली हमले में शहीद हुए पुलिस जवान बासिल टोप्पो की याद में उसकी मां ने एक मूर्ति बनवाई है, ताकि इसे देखकर लोग खासकर बच्चे और युवा प्रेरणा ले सकें। जशपुर जिले के फरसाबहार विकासखंड के आरा गांव के स्कूल चौक में बासिल की मां ने यह स्मारक बनवाया है। उनके बेटे ने सन् 2011 में एक नक्सली हमले में बस्तर में जान गंवाई थी। बासिल की मां कहती हैं कि उन्हें अपने बेटे पर गर्व है और उनकी याद को हमेशा संजोये रखना चाहती हैं। गणतंत्र दिवस पर मूर्ति का मां ने रंग रोगन किया और शहीद दिवस पर बेटे को याद में सभा रखी। रक्षाबंधन के दिन बहनें इस प्रतिमा को राखी बांधती हैं। वैसे बासिल की याद को बनाये रखने के लिये पंचायत या प्रशासन को सामने आना चाहिये था, मगर, लंबे इंतजार के बाद पहल मां को ही करनी पड़ी।
जलवा-झांकी के अपने-अपने जतन
छत्तीसगढ़ में 15 साल बाद कांग्रेस की सरकार आना, कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों की बरसों पुरानी मुराद पूरी होने जैसा था। सत्ताधारियों का निगम-मंडल और संगठन में पद का मतलब जलवा होता है। पद की लालसा में बैठे कार्यकर्ताओं-नेताओं को लंबा इंतजार करना पड़ा। किस्तों में निगम-मंडल में नियुक्तियां हो गई हैं। अध्यक्ष, उपाध्यक्ष से लेकर थोक में सदस्य बनाए गए हैं। ऐसी नियुक्तियों में पद और विभाग महत्वपूर्ण नहीं होता, बल्कि पद पर बैठने वाले की प्रतिभा और कला उसे वीआईपी फील कराती है। कांग्रेसी तो इस कला में पारंगत माने जाते हैं, वे अपने हिसाब से जलवा-झांकी बना लेते हैं। निगम-मंडल के कई ऐसे पदाधिकारी हैं, जिनके जलवा-झांकी बनाने के तरीके काफी मजेदार हैं। कृषि से जुड़े निगम के एक पदाधिकारी ने ऐसा सस्ता, सुंदर और टिकाऊ तरीका निकाला है कि उसकी काफी चर्चा होती है। नेताजी को लगा कि जब तक सुरक्षाकर्मी नहीं होंगे तो रूतबा नहीं बन सकता, तो उन्होंने अपने गांव के अच्छी कद काठी वाले एक युवा को तलाशा। नीले रंग की सफारी पहनकर और एक पिस्टल पकड़ाकर तैनात कर लिया अपनी सुरक्षा में। इसका असर भी हुआ। इलाके के लोगों को लगता है कि नेताजी महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं, सरकार ने उन्हें विशेष सुरक्षा प्रदान किया है। इसी तरह एक और नेताजी हैं, जो रोजाना अपने दौरे का कार्यक्रम उसी तरह से जारी करते हैं, जैसे मुख्यमंत्री या मंत्रियों का जारी होता है। उसमें नेताजी के ब्लड ग्रुप से लेकर ओएसडी की जानकारी होती है। उनका कार्यक्रम बकायदा कलेक्टर व जिला प्रशासन को भेजा जाता है, ताकि वीआईपी ट्रीटमेंट मिल सके। कुल मिलाकर नेतागिरी में जलवा-झांकी का इतना महत्व है कि लोग बाग नए-नए जतन करने के लिए फुल-प्रूफ काम करते हैं।
राहुल के दौरे से सियासी हलचल
कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी का छत्तीसगढ़ दौरा फायनल होने के बाद राज्य में सियासी हलचल तेज हो गई है। छत्तीसगढ़ के कांग्रेस नेता लंबे समय से राहुल गांधी के छत्तीसगढ़ आने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। मुख्यमंत्री कई बार उन्हें छत्तीसगढ़ आने का न्यौता दे चुके हैं। कांग्रेसियों का इंतजार अब खत्म होने वाला है। राहुल गांधी को बुलाकर केन्द्र की मोदी सरकार पर निशाना साधने के लिए तमाम माहौल तैयार किए जा रहे हैं। जिसमें अमर जवान ज्योति और सेवा ग्राम की स्थापना जैसे मुद्दे शामिल हैं। इन मसलों को लेकर राहुल और पूरी कांग्रेस मोदी सरकार पर हमलावर है। इसी तरह गांधीजी की प्रिय धुन 'अबाइड विथ मी' की धुन भी छत्तीसगढ़ में इसी दौरान गूंजने वाली है, जब राहुल गांधी का दौरा प्रस्तावित है। इस धुन को केन्द्र सरकार ने गणतंत्र समारोह में बंद कर दिया है। दूसरी तरफ आपसी मतभेद के मुद्दे को भी राहुल गांधी के सामने उठाने के लिए तैयारी की जा रही है। शिकवा-शिकायतों का पुलिंदा तैयार किया जा रहा है। चूंकि उनके कई कार्यक्रम तय हैं और शेड्यूल काफी टाइट है। ऐसे में शिकवा-शिकायत के लिए समय मिल पाता या नहीं, यह देखने वाली बात है, लेकिन पार्टी के नेता अपनी तैयारियों में कोई कोर-कसर छोडऩा नहीं चाहते।
इंद्रावती पर नये पुल
दंतेवाड़ा में नक्सलियों के अवरोध के बावजूद छिंदनार पुल को आखिरकार तैयार कर लिया गया और 26 जनवरी को इसे आम लोगों के उपयोग के लिये खोल दिया गया। इस पर करीब 30 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। इससे दंतेवाड़ा शहर के उस पार रहने वाले दर्जन भर पंचायत के लोगों का आवागमन आसान हो सकेगा, जो बारिश के दिनों में पूरी तरह बंद हो जाता था। इंद्रावती पर कुछ छह पुल बनाने की योजना है।
मुखिया का एक्शन प्लान
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल साल 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर चुनावी फॉर्म में दिखाई दे रहे हैं। नई योजनाएं शुरू करने और पुरानी योजनाओं को विस्तार देने के साथ उनका फोकस गुड गवर्नेंस पर ज्यादा है। रेत माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश के तत्काल बाद जिला प्रशासन भी हरकत में आ गए हैं, अब अफसरों के हाथ-पैर इस तरह हिल रहे हैं, कि मानो दो दिन पहले तक उनमें मेहंदी लगी हुई थी। कोरबा जिले में पहले ही दिन रेत के अवैध उत्खनन से जुड़े लोगों पर कार्रवाई की गई। इसके अलावा मुख्यमंत्री अगले महीने तीन बड़े कार्यक्रम करने वाले हैं। जिसमें भूमिहीन कृषि मजदूर के लिए न्याय योजना की लांचिंग है। इसके अलावा राज्य के सभी शहरों में स्लम स्वास्थ्य योजना शुरू की जा रही है। नल-जल योजना की भी शुरूआत फरवरी में होगी। एक तरह से सरकार ने चुनावी मोड के लिए स्टार्ट ले लिया है। मार्च में आने वाला बजट भी लोक-लुभावन संभावित है। क्योंकि चुनावी साल यानी 2023 से पहले का यह बजट काफी महत्वपूर्ण हो जाता है। अभी तक के परफार्मेंस के आधार पर कहा जा रहा है कि सरकार ने हर वर्ग के लिए कुछ न कुछ किया है, ऐसे में उनका समर्थन सरकार को मिलेगा ही, लेकिन गवर्नेंस के मुद्दे पर परफार्मेंस को कमजोर माना जा रहा है। यही वजह है कि सीएम प्रशासन को चुस्त-दुरुस्त करने के मूड में है। जानकारों का मानना है कि चुनावी साल से पहले कड़ाई से संदेश अच्छा जाएगा, लेकिन सवाल यह है कि यह तेवर कब तक बरकरार रह पाते हैं।
छत्तीसगढ़ में अमर जवान ज्योति
छत्तीसगढ़ आर्म्ड फोर्स की माना स्थित चौथी बटालियन परिसर में अमर जवान ज्योति प्रज्ज्वलित करने की तैयारी पूरी हो गई है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी 3 फरवरी को किसके लिए तैयार किए जा रहे परिसर की आधारशिला रखेंगे। छत्तीसगढ़ सरकार का यह फैसला इसलिए अहमियत रखता है क्योंकि दिल्ली में केंद्र सरकार ने इंडिया गेट पर सन 1972 से प्रज्वलित अमर जवान ज्योति को वहां से हटाकर राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में शिफ्ट कर दिया है। राहुल गांधी के सामने ‘अबाइड विद मी’ धुन भी बजाई जाएगी, जिसे रिपब्लिक डे के समापन समारोह से केंद्र ने हटा दिया। महात्मा गांधी और शहीदों की स्मृति को चिरस्थायी बनाने के लिए राज्य सरकार का यह फैसला मायने तो रखता है, पर आप चाहे तो इसके पीछे की सियासत का भी अंदाजा लगा सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का असर
सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति और जनजाति को प्रमोशन में आरक्षण देने को लेकर राज्य सरकारों के मानकों में हस्तक्षेप से इनकार कर दिया है। छत्तीसगढ़ पर इस फैसले का खासा असर होने वाला है। फरवरी 2019 में राज्य सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर अनुसूचित जाति के शासकीय कर्मचारियों को 13त्न और अनुसूचित जनजाति को 32त्न आरक्षण देने का निर्णय लिया था। पिछड़ा वर्ग को 27त्न आरक्षण देने का दिया गया। इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी, जिसका केस अभी भी चल रहा है। सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट में राज्य सरकार के फैसले पर क्रियान्वयन से रोक लगा दी थी। हाईकोर्ट ने खास तौर पर पिछड़ा वर्ग की वास्तविक संख्या तय करने के लिए राज्य सरकार से डेटा की मांग की थी। 17 जुलाई 2020 को सरकार ने क्वांटिफिएबल डेटा एकत्र करने के लिए प्रमुख सचिव मनोज कुमार पिंगुआ, सचिव डीडी और डॉ. कमलप्रीत सिंह की एक कमेटी भी बनाई थी।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले को देखा जाए तो अब इस कमेटी की रिपोर्ट का विशेष मतलब नहीं रह गया है। सर्वोच्च अदालत ने कहा है आरक्षित वर्ग में जितनी भर्तियां हुई है, उसी प्रतिशत में आरक्षण का लाभ दिया जाए।
बहुत से लोगों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट ने सरकार पर आरक्षण का मसला छोडक़र अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ा है क्योंकि लोग सरकार के फैसले के ही खिलाफ तो अदालत गए थे।
आने वाले दिनों में हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान यह पता चलेगा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का यहां दायर की गई दर्जनों याचिकाओं पर क्या निर्णय आएगा।
500 रुपये में सिलेंडर !
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने देहरादून में उत्तराखंड की जनता से वादा किया कि सरकार बनने पर 500 रुपये से कम में घरेलू गैस सिलेंडर दिया जाएगा। कांग्रेस के घोषणा पत्र में भी इसे वहां शामिल किया गया है। इस घोषणा पर यदि अमल होता है तो सरकार को न केवल अपना टैक्स छोडऩा पड़ेगा बल्कि भारी सब्सिडी भी देनी पड़ेगी।
ऐसा लगता है कि उत्तराखंड सरकार की आमदनी, खर्च से बहुत ज्यादा होती होगी। अपने यहां तो राजस्व घाटे की चिंता के चलते ही विपक्ष के तमाम आरोपों के बावजूद शराबबंदी का मुहूर्त नहीं निकल पाया है।
भाजपा ने अपने महिला मोर्चा को 500 रुपए में छत्तीसगढ़ में भी गैस सिलेंडर देने की मांग को लेकर के आंदोलन पर लगा दिया है। ऐसा लगता नहीं कि इस प्रतिरोध का कोई हल निकलेगा। भाजपा का शायद इस बात पर ध्यान नहीं गया है कि मुख्यमंत्री ने वहां सालाना 40 हजार रुपए भी 5 लाख परिवारों को देने का वादा किया। दरअसल, बात यह है कि चुनाव तो उत्तराखंड में हैं छत्तीसगढ़ में नहीं। वायदे वहां किए जाते हैं जहां वोट लेने हों, अभी छत्तीसगढ़ में ऐसी कोई मजबूरी नहीं है।
यह वायदा भी लागू हो
इसके साथ-साथ लगे हाथों छत्तीसगढ़ के लोगों को अगले विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी की की हुई इस मुनादी की भी मांग करनी चाहिए कि 40 फीसदी टिकटें महिलाओं को दी जाएंगी। छत्तीसगढ़ में भी ऐसा होना चाहिए। महिला अधिकारों के लिए लडऩे वाले लोग तो पहले से महिला आरक्षण की मांग करते आ रहे हैं और यह अखबार तो महिला आरक्षण को 50 फीसदी बनाने की मांग करते आया है। चलो, 50 नहीं, तो 40 फीसदी सीटें तो अगले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की महिला उम्मीदवारों को मिले।
रेत और कलेक्टर, एसपी
रेत और जमीन का गैर-कानूनी कारोबार, जिसकी सरकार हो उसी की छत्रछाया में फलता-फूलता है। यह केवल छत्तीसगढ़ की बात नहीं है। पंजाब के मुख्यमंत्री के रिश्तेदारों के घर पड़े छापे का मामला तो ताजा है। यूपी राजस्थान और मध्य प्रदेश में रेत माफिया से उलझने वाले अफसरों पर प्राणघातक हमले होते रहे हैं। अवैध रेत उत्खनन की समस्या अपने प्रदेश में भी गहराती जा रही है। सीएम भूपेश बघेल ने कलेक्टर्स और एसपी को सख्त कार्रवाई करने का निर्देश ही नहीं दिया है, बल्कि यदि अवैध उत्खनन नहीं रुका तो इसके लिए उनको जिम्मेदार ठहराए जाने की भी चेतावनी दे दी है। कलेक्टरी और कप्तानी बचाने के लिए सीएम के आदेश के तुरंत बाद कुछ जिलों में तुरंत ताबड़तोड़ कार्रवाई शुरू हो गई। उम्मीद करनी चाहिए कि बाकी जिलों में भी दो-चार दिन के भीतर कुछ असर दिखेगा। उत्खनन के ज्यादातर मामलों में स्थानीय नेताओं का अफसरों पर दबाव रहता है । इसके चलते चाहते हुए भी अधिकारी इस कारोबार आंख मूंद लेते हैं। अप सीएम की तरफ से एक तरह से उनको कार्रवाई की खुली छूट मिल गई है। अभी भी अगर रेत की अवैध खुदाई नहीं रुकी है तो इसका सीधा मतलब यह है कि अफसर खुद माफियाओं को मदद करते हैं।
आईएएस अफसरों की तकलीफ
आईएएस अफसरों के काडर नियमों में संशोधन को लेकर पिछले दिनों जमकर सियासत देखने को मिली। कई राज्यों ने इसका विरोध करते हुए इसे संघीय व्यवस्था के खिलाफ बताया। जबकि केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति आईएएस अफसरों के लिए प्रतिष्ठापूर्ण माना जाता है। इसलिए हर काबिल अधिकारी एक न एक बार प्रतिनियुक्ति पर जाने के लिए इच्छुक रहते हैं। कई बार राज्य सरकार से अनुमति नहीं मिलने के कारण अधिकारी प्रतिनियुक्ति पर नहीं जा पाते। छत्तीसगढ़ से भी एक दर्जन से अधिक आईएएस प्रतिनियुक्ति पर हैं। कुछ और अफसर जाने की तैयारी में है। दरअसल, राज्य के कुछेक अफसर इस बात से निराश हैं कि उन्हें अपेक्षाकृत पोस्टिंग नहीं मिल रही है। उनके हिस्से की मलाई आईएफएस अफसर खा रहे हैं। कलेक्टरी में भी प्रमोशन से बने आईएएस को प्राथमिकता मिल रही है। ऐसे में उनमें से कुछ केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति को ही बेहतर मान रहे हैं।
नक्सल साथी एएसपी की खोज
गुजरे साल नवंबर के दूसरे सप्ताह में महाराष्ट्र पुलिस की नक्सल लड़ाई में माहिर सी-60 फोर्स की गोली से जान गंवाने वाले शीर्ष नक्सल नेता दीपक तिलतुमड़े और 26 साथियों की पुलिस से हुई मुठभेड़ का असल राज कानाफूसी के जरिए बाहर आ रहा है। नक्सल मोर्चे में कामयाबी के शिखर पर पहुंची गढ़चिरौली पुलिस सीसी मेंबर दीपक को मारकर वाहवाही बटोरने में लगी हुई है। घटना के करीब सवा दो माह बाद छत्तीसगढ़ पुलिस के अफसर सफलता का राज जाने के लिए जोर लगा रहे हैं। अफसरों को चौंकाने वाली सूचना में यह पता चला है कि मुठभेड़ में गढ़चिरौली पुलिस का एक एएसपी स्तर का अफसर बतौर नक्सली शामिल था। एएसपी को महाराष्ट्र पुलिस ने सुनियोजित तरीके से नक्सलियों के साथी बनाने के लिए एक बड़ा जोखिम लिया। नक्सलियों के साथ चलते इसी अफसर के जरिए दीपक के दल का लोकेशन पुलिस के हाथ लगा।
बताते हैं कि एएसपी ने नक्सलियों के राशन के थैलियों में एक ट्रैकर लगाया था। पुलिस ने इसी का फायदा उठाकर नक्सल दल की मौजूदगी के पुख्ता ठिकाने पर धावा बोल दिया। इस मुठभेड़ में गढ़चिरौली ने इतिहास रचते पहली बार किसी सीसी मेंबर को गोली से छलनी कर दिया। राजनांदगांव-गढ़चिरौली की सीमा पर ढ़ेर कर गढ़चिरौली पुलिस को शाबासी आज पर्यन्त मिल रही है। सुनते हैं कि इस सफलता का राज जानने के लिए केंद्र और राज्यों ने गढ़चिरौली पुलिस से कई बार संपर्क साधा लेकिन महाराष्ट्र के अफसरों ने गैरजरूरी सूचना देकर पूरे मुठभेड़ की असली कहानी को सामने नहीं आने दिया।
चर्चा है कि छत्तीसगढ़ पुलिस के कुछ अफसरों ने महाराष्ट्र के पदस्थ अपने साथी बैचमेट से मालूम किया कि एएसपी स्तर के अफसर ने नक्सल सदस्य के तौर पर खुद को दल में शामिल किया था। हालांकि यह भी सच है कि महाराष्ट्र पुलिस ने घटना को लेकर पड़ोसी राज्यों तो दूर, केंद्र की इंटेलिजेंस को भी घास नहीं ड़ाली। छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र , व तेलंगाना की खुफिया एजेंसियों ने कई बार वारदात से जुड़े मामलों पर सूचना देने की गुजारिश की। पड़ोसी राज्यों के डीजीपी व अन्य शीर्ष अफसरों को महाराष्ट्र के अधिकारियों ने समय नहीं होने का हवाला देकर भाव नहीं दिया।
राजनांदगांव के सीमा पर हुए इस घटना के तथ्यों को जानने के लिए पहुंचे छत्तीसगढ़ के मानपुर के एसडीओपी को तो मारे गए नक्सलियों की फोटो लेने और दस्तावेज को छूने से भी रोका गया। वैसे यह छत्तीसगढ़ पुलिस में दबे जुबां यह भी सुनाई देता है कि महाराष्ट्र पुलिस ने राजनांदगांव के परवीडीह में घुसकर सुस्ताते नक्सलियों पर अंधाधुंध फायरिंग की।
नहीं हुई नये जिलों की घोषणा
15 अगस्त, 26 जनवरी और राज्य स्थापना दिवस। ये खास ऐसे दिन होते हैं जब मुख्यमंत्री के उद्बोधन में लोग बड़ी घोषणाओं का इंतजार करते हैं। ऐसा इस बार भी हुआ, पर उन लोगों को बड़ी निराशा हुई जो नये जिलों की घोषणा होने की उम्मीद में थे। प्रदेश में अब 32 जिले बन चुके हैं। मुख्यमंत्री ने जीपीएम के बाद मनेंद्रगढ़, सारंगढ़-बिलाईगढ़ और मानपुर-मोहला को जिला बनाने की घोषणा कर चुके हैं। इसके बाद तो कई और जिलों की मांग उठने लगी। इनमें प्रतापपुर, वाड्रफनगर, पत्थलगांव, खैरागढ़, पंडरिया, सरायपाली, भानुप्रतापपुर, भाटापारा को अलग जिला बनाना, कटघोरा को कोरबा से अलग करना शामिल है। पर इस बार गणतंत्र दिवस के मौके पर इस पर कोई ऐलान नहीं हुआ। कटघोरा को जिला बनाने की मांग पर तभी से आंदोलन चल रहा है जब सीएम ने नये जिलों की घोषणा की थी। यहां लोग अधिवक्ता संघ के बैनर पर 160 दिन से धरना दे रहे हैं। इतना लंबा धरना प्रदर्शन कटघोरा में पहले कभी नहीं हुआ। इनका कहना है कि कटघोरा सबसे पुरानी तहसील है, उसे उसके गौरव के अनुरूप जिला बनाया जाना चाहिये। नये जिलों के बनने के बाद स्पीकर डॉ. चरणदास महंत ने भी हल्फे-फुल्के ही सही, कहा था कि प्रदेश में कम से कम चार और जिले बनने चाहिये। कटघोरा अभी कोरबा जिले में है, जहां की सभी विधानसभा सीटें इस बार कांग्रेस के पास है। कटघोरा विधानसभा सीट कभी भाजपा तो कभी कांग्रेस के खाते में आती रही है। इस लिहाज से भी कटघोरा के लोगों को नाराज नहीं रखा जा सकता। आने वाले दिनों में अपने हक में फैसला होने की उम्मीद यहां के लोग कर रहे हैं।
वैक्सीन कवच का दायरा बढ़ा
छत्तीसगढ़ में 70 प्रतिशत लोगों को दोनों डोज लग चुके हैं। मतलब 30 प्रतिशत लोगों को नहीं लगे हैं। कल ही स्वास्थ्य विभाग की एक ऑडिट रिपोर्ट आई जिसमें बताया गया था कि तीसरी लहर में 85 प्रतिशत मौतें ऐसे लोगों की हुई है जिन्होंने या तो वैक्सीन लगवाई नहीं, या फिर केवल एक डोज ही ली। जो 30 प्रतिशत लोग टीके से बचे रह गये हैं, उनमें केवल ग्रामीण और गरीब ही नहीं बल्कि ऐसे संपन्न परिवार के लोग भी हैं, जिन्हें सरकारी सेवाओं को लेने के लिये कतार में लगने से हिचक होती है। ऐसे लोगों को अब सुविधा मिल रही है। निजी अस्पताल अब कंपनी से सीधे वैक्सीन खरीद सकेंगे। लोग शुल्क देकर वैक्सीन लगवा सकेंगे। इन्हें कतार में नहीं लगना होगा और कोविड की सुरक्षा कवच भी मिल जायेगी। और अब तो रात में भी वैक्सीनेशन की सहूलियत दी जा रही है। दिनभर जो लोग काम की व्यवस्ता के चलते टीकाकरण कराने नहीं जा पाते, उन्हें सुविधा मिल गई है। उम्मीद करनी चाहिये कि वैक्सीनेशन से जो लोग बच गये हैं, उन्हें नई व्यवस्था रास आयेगी और प्रदेश में वैक्सीनेशन का प्रतिशत बढ़ेगा।
भाषण पढऩे की हड़बड़ी
हर बार टेलीप्रांप्टर ही धोखा नहीं देता, आप लिखे हुए पन्नों को भी पढ़ते समय गलती कर सकते हैं। बिलासपुर जैसे बड़े संभागीय मुख्यालय के गणतंत्र दिवस समारोह में ध्वजारोहण करने का मौका मिलने पर संसदीय सचिव विकास उपाध्याय बेहद उत्साहित थे। यह स्वाभाविक था, क्योंकि प्रभारी मंत्री जयसिंह अग्रवाल, कतार में लगे दो कांग्रेस विधायक शैलेष पांडे और रश्मि सिंह ठाकुर को नजरअंदाज कर उन्हें यह मौका दिया गया था। पर इस उत्साह में उपाध्याय गलती कर गये। मुख्यमंत्री के भाषण का पाठ पढ़ते समय वे कुछ पन्नों को पढऩा ही भूल गये। यह तब हुआ जब मुख्य अतिथि को मुख्यमंत्री का भाषण की बुकलेट एक दिन पहले दे दी जाती है, ताकि गलतियों से बचने के लिये एक बार पढक़र देख लें।
दर्शक दीर्घा में बैठे अधिकारियों, पत्रकारों के हाथ में इसकी प्रतियां वितरित की जा चुकी थी। उपाध्याय पन्ने और पैराग्रॉफ को छोड़ते हुए सरपट आगे बढ़ते गये। लोग चौंक गये। उन्हें कोई गलत बुकलेट तो नहीं दे दी गई? बाद में लोगों ने ध्यान दिलाया कि उन्होंने तो भाषण का एक पूरा हिस्सा छोड़ दिया। उपाध्याय को तब भी पता नहीं था कि उन्होंने ऐसा कुछ किया है। बाद में वे माने, हां चूक हुई।
एनटीपीसी का अलग मतलब
छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में जहां एनटीपीसी के बड़े उपक्रम कोरबा, लारा और सीपत में हों, इसका मतलब सीधे-सीधे नेशनल थर्मल पॉवर कार्पोरेशन ही समझ लिया जाता है। बिहार के बड़े हिस्से और यूपी के कुछ हिस्सों में जब एनटीपीसी-आरआरबी भर्ती को लेकर आंदोलन की बात सामने आई तो लोगों में सहज सवाल उठा कि क्या रेलवे रिक्रूटमेंट बोर्ड, एनटीपीसी के लिये भर्ती कर रहा है। रेलवे जोन मुख्यालय और एनटीपीसी में लोग फोन कर पूछने लगे कि क्या ऐसा छत्तीसगढ़ में भी होने वाला है? अधिकारियों ने समझाया कि यहां पर एनटीपीसी का मतलब वह नहीं जो छत्तीसगढ़ में समझा जा रहा है- यह नॉन टेक्निकल पॉपुलर कैटेगरी (एनटीपीसी) की रेलवे भर्ती है। फिलहाल, बिलासपुर रेलवे जोन मुख्यालय के आरआरबी में नई भर्तियां शुरू नहीं हुई हैं, इसलिये यहां आंदोलन की बात भी नहीं है। बिहार में एक मालगाड़ी को फूंक दिया गया, बेरोजगारों की भीड़ सडक़ों और ट्रैक पर उतरी हुई है। 2019 में निकाली गई वेकैंसी में अब तक चयन की प्रक्रिया ही पूरी नहीं हो पाई है।
साइकिल पर कुलपति
साधारण से दिखाई दे रहे ये शख्स टीवी कट्टीमनी हैं, जो केंद्रीय जनजाति विश्वविद्यालय आंध्रप्रदेश के कुलपति हैं। इनका कहना है कि पन्द्रह वर्षों से साइकिल मेरा स्थायी साथी है। मुझे पहाड़ी इलाकों में भी साइकिल चलाना पसंद है। अमरकंटक, मध्यप्रदेश का अनुभव रोमांचक रहा। वहां (ट्राइबल यूनिवर्सिटी में) छह साल साइकिल चलाने का आनंद लिया। साइकिलिंग एक ताकत बढ़ाने वाला, तनाव कम करने वाला साधन और पुनश्चर्या है। इससे छत्तीसगढ़ के उन कुलपतियों को सबक़ लेना चाहिए जो कारों पर कुलपति लिखी बड़ी सी तखती लगाकर चलते हैं।
पार्षदों के बगावती तेवर
मुंगेली के बाद पत्थलगांव में भी भाजपा के पार्षदों ने अपने आलाकमान की नहीं सुनी और अपनी पसंद से वोट डाला। पत्थलगांव में भाजपा का बहुमत है। भाजपा की अध्यक्ष सुचिता के खिलाफ कांग्रेस पार्षदों ने अविश्वास प्रस्ताव लाया, पर उन्हें भाजपा पार्षदों की भी मदद मिली। भाजपा के 9 में से सिर्फ 3 वोट अविश्वास प्रस्ताव के विरोध में पड़े, जिनमें एक वोट खुद अध्यक्ष का था। इस घटनाक्रम से विधायक रामपुकार सिंह का वजन बढ़ गया। जो बड़े नेता कई दिनों से भाजपा पार्षदों को बगावत नहीं करने के लिये मना रहे थे, उन्हें निराशा हाथ लगी। कुछ दिन पहले मुंगेली में भी यही हुआ था, जब कई भाजपा पार्षदों की क्रास वोटिंग के चलते वहां कांग्रेस के नगर पंचायत अध्यक्ष चुन लिये गये, जबकि बहुमत कांग्रेस का नहीं था। सांसद अरुण साव व कद्दावर भाजपा नेता विधायक व पूर्व मंत्री मोहले की बात अनसुनी कर दी गई। पत्थलगांव में भाजपा पार्षदों ने विकास ठप होने और भ्रष्टाचार को कारण बताया है। पर, अब अगला अध्यक्ष कौन होगा, क्या कांग्रेस से? पर उसका बहुमत अभी भी नहीं है। हो सकता है कि किसी नये नाम पर भाजपा के पार्षद राजी हो जायें। शायद, इसीलिये अभी इन पर अनुशासन की कार्रवाई पर विचार नहीं किया जा रहा है।
वैसे, पार्षदों की ऐसी बगावत का संकट सिर्फ भाजपा को ही नहीं झेलना पड़ रहा है। खरौद नगर पंचायत के मामले में क्या होता है देखना होगा। यहां नगर पंचायत अध्यक्ष कांग्रेस के हैं। कुल 15 पार्षद हैं, जिनमें से 14 ने कलेक्टर जांजगीर-चांपा को अविश्वास प्रस्ताव की बैठक रखने के लिये पत्र लिखा है।
कोरोना काल में इनकी काउंसलिंग क्यों नहीं?
कोरोना महामारी की चपेट में वे लोग भी आये हैं जिन्होंने अपने परिजनों को नहीं खोया या जो बीमार भी नहीं पड़े। बहुतों को अपनी नौकरी और रोजगार से हाथ धोना पड़ा। श्रमिक, बीपीएल को छोड़ दें तो, सरकार की ओर से छोटी-मोटी नौकरियों को गंवा चुके लोगों को सीधे तौर पर कोई आर्थिक सहायता नहीं मिली। जो इन विषम परिस्थितियों में धीरज खो चुके उन्हें सांत्वना देने के लिये भी लोग बहुत कम आये। धमतरी जिले का एक आंकड़ा आज ही एक अख़बार में है तीन साल में 8 सौ से अधिक लोगों ने आत्महत्या कर ली। बहुत सी मौतें महामारी से संबंधित हो सकती हैं। भिलाई-3 की खबर दहलाने वाली है। एक युवा दंपती ने एक ही फंदे पर लटककर जान देने का रास्ता चुन लिया। वजह, कोरोना काल में नौकरी छूट जाने से उपजी बेरोजगारी थी। इस मामले में खास बात यह है कि युवक के पिता रेलवे से रिटायर्ड हैं, जिन्हें पेंशन मिलती है और बड़ा भाई फौज में नौकरी करता है। सुसाइड नोट में इन दोनों का नाम भी लिख दिया गया है। गहराई में जाने पर पता चल सकता है कि ऐसा क्या हुआ कि इस दंपती के दुबारा खड़ा होने तक जीवन-यापन की न्यूनतम जरूरतें उनके परिवार वाले पूरी नहीं कर सके। यकीनन, बहुत से युवा, जो विवाहित भी हैं, नौकरी व व्यवसाय छूटने की वजह से चौराहे पर आ गये, पर उन्हें उनके अपनों ने संबल दिया। भिलाई-3 की घटना बताती है कि परिवार और समाज की कडिय़ां कितनी कमजोर होती जा रही हैं।
कानपुर में डीएम अपने कोरिया की
चुनाव आयोग आचार संहिता लागू होने के बाद उन अधिकारियों को इधर-उधर कर देता है जिनको लेकर थोड़ी सी भी शंका होती है कि वह सत्तारूढ़ दल के प्रभाव में आकर प्रक्रिया की निष्पक्षता को प्रभावित करेंगे। यूपी में, हाल ही में कानपुर के जिलाधिकारी विशाख जी. अय्यर को चुनाव आयोग ने हटा दिया। उनकी जगह पर जिम्मेदारी दी गई है 2010 बैच की आईएएस नेहा शर्मा को। नेहा बैकुंठपुर, छत्तीसगढ़ की रहने वाली हैं। वे शर्मा हॉस्पिटल के संचालक डॉक्टर दंपती की बेटी हैं। यकीनन, उनकी छवि एक निष्पक्ष और काबिल अफसर के रूप में होगी, तभी चुनाव आयोग ने किसी कलेक्टर को हटाने के बाद उन्हें मौका दिया।
वन अफसर के हवाले होगा पर्यावरण ?
औद्योगिक इकाइयों और कारखानों से निकलते जहरीले धुएं से छत्तीसगढ़ और देश के दूसरे शहरों की आबोहवा हाल ही के वर्षों में इंसान के फेफड़ों को रोगग्रस्त करने की बड़ी वजह बनी है। विकास के नाम पर जिस तरह से अंधाधुंध पेड़ों का नामोनिशान खत्म किया जा रहा है, उससे पर्यावरण विभाग की काबिलियत पर भी सवाल खड़ा हुआ है। पर्यावरण की शर्तों में निर्माण कार्यों के लिए कई बंदिशें भी हैं लेकिन उसके पालन में ईमानदारी से कोशिशें नहीं होतीं। सुनते है कि अब केंद्र सरकार पर्यावरण विभाग को और अधिकार संपन्न बनाने के लिए एक क्रांतिकारी निर्णय लेकर वन अफसरों को पूर्ण जवाबदारी देने पर गंभीरता से विचार कर रही है। बताते है कि केंद्र की नजर में जंगल महकमे और पर्यावरण में खास अंतर नहीं है। इसलिए सीधे जिलों में तैनात डीएफओ को जंगल की सुरक्षा के साथ पर्यावरण के जरिए शुद्ध वातावरण बनाने का जिम्मा भी सौंपने की तैयारी कर रही है। दरअसल पूरे देश में वन संपदा के दोहन के लिए सरकारें पर्यावरण की नियमों का पालन कराने में खास दिलचस्पी नहीं ली रही है। पर्यावरण विभाग के अफसरों की दिक्कत यह है कि उनके पास नियमों को लेकर लापरवाहों पर कार्रवाई करने का खास अधिकार नहीं है। केवल कागजों के जरिए नोटिस भेजना या चस्पा करने के बाद अफसर जवाबदेह लोगों के इंतजार में बैठे नजर आते है। अब केंद्र ने पर्यावरण से जुड़े जमीनी स्तर के निर्णय को डीएफओ या वन अफसरों को अधिकृत करने पर लगभग सैद्धांतिक सहमति बना ली है। यदि ऐसा हुआ तो वन और पर्यावरण के निर्धारित मापदंड से प्राकृतिक धरोहरों के लिए बेहतरी भरा निर्णय होगा। लेकिन इससे केंद्र और राज्य के बीच एक बड़े टकराव का मोर्चा भी खुल सकता है।
ये कैसी स्मार्ट पुलिसिंग?
छत्तीसगढ़ में रविवार को प्रदेश के करीब 941 केंद्रों में आंगनबाड़ी पर्यवेक्षक पदों के लिये करीब तीन लाख लोगों ने परीक्षा दी। शहरों के अलावा ग्रामीण इलाकों में भी परीक्षा केंद्र बनाये गये थे। यह प्रशासन को भी मालूम था और पुलिस को भी। पर शहरों में उमडऩे वाली भीड़ को पुलिस किस तरह नियंत्रित करेगी इसके लिये पहले से कोई तैयारी नहीं की गई। नतीजतन रायपुर, बिलासपुर सहित अन्य प्रमुख शहरों में सडक़ों पर घंटों जाम लग गया। ट्रैफिक पुलिस तब सक्रिय हुई जब उन तक जाम लगने की शिकायतें आईं।
क्या पुलिस को पहले से ही ध्यान नहीं देना था कि बड़ी संख्या में लोगों के शहर में प्रवेश से ट्रैफिक व्यवस्था किस तरह से संभाली जायेगी। वे शायद राजनैतिक रैलियों और वीआईपी मूवमेंट को लेकर ही पहले से अलर्ट होने के आदी हैं। बिलासपुर में 55 हजार से अधिक लोगों के लिये परीक्षा केंद्र बनाये गये थे। अफसोस, करीब 10 हजार परीक्षार्थी अपने केंद्रों में समय पर केवल जाम लगने की वजह से नहीं पहुंच पाये। उन्हें परीक्षा देने से वंचित होना पड़ा। प्रशासन ने क्या जरूरी नहीं समझा था कि वह ट्रैफिक पुलिस को इस जाम से निपटने के लिये पहले से तैयार रहने के लिये कहे? पुलिस को भी प्रशासन के किसी एडवाइज की क्या जरूरत थी, उसकी स्मार्टनेस का पता तो तभी चलता जब वह इस भीड़ के चलते होने वाली अव्यवस्था का अनुमान पहले से लगाकर सडक़ों पर तैनात हो जाती।
ठगी ठप पड़ी योजना के नाम पर?
भाजपा नेता जगदलपुर के एक कांग्रेस पार्षद के खिलाफ ऑडियो-वीडियो के ‘सबूतों’ के साथ धरना दे रहे हैं। वे एफआईआर दर्ज करने की मांग कर रहे हैं। पूर्व मंत्री केदार कश्यप, पूर्व सांसद दिनेश कश्यप और अन्य बड़े नेता, कार्यकर्ता इस धरने में शामिल हो रहे हैं। आरोप है कि पार्षद ने 47 लोगों से प्रधानमंत्री आवास दिलाने के नाम पर रुपये वसूल लिये। यदि भाजपा का आरोप सही है, तो फिर क्या कहने। प्रदेशभर में प्रधानमंत्री आवास योजना की नई मंजूरी रुकी पड़ी है। सैकड़ों लोग ऐसे हैं जिनके मकान अधूरे हैं, क्योंकि पहली, दूसरी किश्त के बाद आगे निर्माण पूरा करने के लिये रकम नहीं आई। अब ऐसी योजना के नाम पर क्या कोई ठगी कर सकता है? मुमकिन तो कुछ भी है।
बादशाह की दरियादिली..
पॉप सिंगर बादशाह ने सुदूर सुकमा के बालक सहदेव दिरदो की एक गुम हुई आवाज को देशभर में पहचान दिला दी और उसे ढेर सारे तोहफे भी दिये। एक सडक़ दुर्घटना में घायल होने के बाद वे फिर सहदेव की चिंता करते हुए दिखे। अब बादशाह का एक और मानवीय चेहरा टीवी प्रोग्राम ‘इंडिया गॉट टेलेंट’ में दिखा। एक राजस्थानी गायक इस्माइल खान से उन्होंने पूछा कि आपने पगड़ी नहीं पहनी, राजस्थान की तो यह परंपरा है। इस्माइल ने बताया कि वह कोरोना काल में अपने ग्रुप का पेट पालने और बेटी की शादी करने के बाद 12 लाख रुपये के कर्ज में डूबा है। जब यह ऋण सिर से उतरेगा, तब वे पगड़ी पहनेंगे। बादशाह ने भावुक होकर मंच से ही घोषणा कर दी कि वे उनका पूरा कर्ज चुका रहे हैं। और अपने हाथों से उन्होंने इस्माइल को पगड़ी पहना दी।
स्कूल का यह रास्ता...
धमतरी जिले के कट्टीगांव पंचायत के सिंगनपुरी गांव में थोड़ी सी बारिश के बाद सडक़ की क्या हालत हुई है, यह दिखाई दे रहा है। आने जाने वालों को परेशानी हो रही है, बच्चों को भी। पर, जुनून ऐसा है कि वे स्कूल जाने के लिये हंसते-मुस्कुराते हुए कीचड़ से लद-फद रास्ते को पार
कर रहे हैं।
तबादले से उपचुनाव की तैयारी की झलक
खैरागढ़ विधानसभा उपचुनाव की तारीख को लेकर चल रही अटकलों को हाल ही में राजनांदगांव के शीर्ष पुलिस अफसरों को कुछ माह के भीतर जिले से बाहर पदस्थ करने से, बल मिल रहा है कि जल्द ही खैरागढ़ की जनता को करीब पौने दो साल के लिए नए विधायक को चुनने मतदान केंद्रों का रूख करना पड़ेगा। एसपी डी. श्रवण के तबादले के दो दिन बाद 2008 बैच के एएसपी जयप्रकाश बढ़ई, प्रज्ञा मेश्राम और सुरेशा चौबे को सरकार ने हटा दिया। तीनों अफसरों के हटने के पखवाड़ेभर बाद गंडई एसडीओपी अनुराग झा को महज चार माह के कार्यकाल के बाद कांकेर भेज दिया गया। बेसमय हटाए गए अफसरो का तर्क है कि खैरागढ़ उपचुनाव के चलते उन्हें दीगर क्षेत्रों में पदस्थ किया गया है। बताते है कि जयप्रकाश और प्रज्ञा ने राजनांदगांव में ही स्कूल और कॉलेज स्तर की पढ़ाई की। महकमें में दोनो को राजनांदगांव जिलें का ही माना जाता है। वही अनुराग झा मूल रूप से खैरागढ़ के ही बांशिदें है, इसलिए उन्हें जिले से हटाया गया है। सुनते है कि राज्य निर्वाचन आयोग ने विभागो के कर्मियों की सूची भी मांगी है। विभागीय प्रमुख जानकारी को एक तरह से चुनाव की तैयारी का प्रांरभिक हिस्सा मान रहे है। वैसे तीनों एएसपी के तबादले में सबसे ज्यादा चर्चा प्रज्ञा मेश्राम की हो रही है। प्रज्ञा को नांदगांव में छह माह पहले ही सरकार ने भेजा था। उनके बालोद पोस्टिंग की चर्चा इस वजह से भी है, क्योंकि वह इसी जिले की रहने वाली है।
एफआईआर की पतली गली..
गोरखानगर कॉलोनी, सिविल लाइंस रायपुर की एक युवती का एफआईआर पुलिस रिकॉर्ड में कुछ इस तरह से दर्ज किया गया है- रात 9 बजे के आसपास घर के सामने टहल रही थी। बात करने के बाद अपना मोबाइल फोन पर्स में रख लिया। जिम के सामने से गुजरी, तीन चार अनजान लोग दिखे थे। थोड़ी देर में फिर से बात करने के लिये पर्स को टटोला तो मोबाइल फोन गायब था।
अब इस एफआईआर से कहीं से पता चलता है क्या कि युवती से मोबाइल फोन की स्नैचिंग हुई है? एफआईआर के मजनून ऐसा लगता है कि पर्स से मोबाइल फोन गिर गया होगा, किसी ने चुपचाप निकाल लिया और युवती को पता नहीं चला। मगर सीसीटीवी का फुटेज जो युवती ने हासिल किया, से पता चलता है कि युवती फोन से बात कर रही थी, इसी दौरान स्कूटर पर सवार दो युवकों ने फोन छीन लिया तेज गति से भाग गये। युवती दौडक़र पीछा करने की कोशिश भी कर रही है।
युवती ने सही-सही बयान दिया, लेकिन पुलिस ने लूट, झपटमारी की रिपोर्ट नहीं लिखी। शायद, उसके लिये यही सुविधाजनक था। लूट की घटना बड़ी हो जाती, बदमाशों की तलाश में तुरंत भाग दौड़ करनी पड़ती। प्राय: पुलिस अपने हर एफआईआर में यह लिखकर हस्ताक्षर लेती है कि जैसा प्रार्थी ने बताया है, वैसा लिखा गया है।
राजधानी में जब इस तरह की गैर-जिम्मेदाराना पुलिसिंग हो रही हो, तो आईपीएस अधिकारी नाहक प्रदेशभर में अपनी छवि सुधारने की कोशिश और पब्लिक फ्रैंडली होने के लिये मेहनत करते हैं।
हाथी का जन्मोत्सव
बीते सप्ताह इस स्तंभ में जिक्र हुआ था कि पसान वन क्षेत्र के हाथियों के साथ वहां रहने वाले ग्रामीण किस तरह तालमेल बिठाने की कोशिश कर रहे हैं। यहां 7-8 माह से हाथियों का दल रुका हुआ है और ग्रामीणों को कोई परेशानी नहीं है। कभी-कभी उनकी बाड़ी में आकर भी हाथी उदरपूर्ति करके चले जाते हैं, पर वे वन विभाग से न हाथियों को भगाने के लिये कहते, न ही फसल को हुई क्षत्ति का मुआवजा मांगते।
इसी कड़ी में एक घटना रायगढ़ जिले से जुड़ गई है। लैलूंगा तहसील के वन ग्राम मुकडेगा में नवजात हाथी शावक का जन्मोत्सव मनाया गया। जिस जगह पर शावक ने जन्म लिया, बड़ी संख्या में ग्रामीण एकत्र हुए। परंपरा के मुताबिक गांव के धोबी, नाई, राऊत, बैगा-पुजारी भी पहुंचे। विधिपूर्वक प्रकृति की पूजा की गई और वन भोज रखा गया।
इस इलाके में 40 से अधिक हाथियों ने काफी दिनों से डेरा डाल रखा है। ये आदिवासी इनसे भयभीत नहीं हैं। उन्हें छेडऩे, भगाने की कोशिश भी नहीं करते। वे मानते हैं कि प्रकृति की गोद में सबको मिल-जुलकर रहना चाहिए।
पसान और लैलूंगा के वन ग्रामों से जो संदेश निकलकर आ रहा है, वह हाथी प्रभावित अन्य इलाके के लोगों को ही नहीं सीखना- समझना चाहिये बल्कि शहर के लोगों को भी, जो प्रकृति को नष्ट कर अपने रहन-सहन को सुविधाजनक बनाना चाहते हैं।
पहुंच से दूर भी नहीं टेलिप्रॉम्टर
टेलीप्रॉम्पटर इतना दुर्लभ उपकरण भी नहीं है। कुछ कंप्यूटर मास्टर तो कहते हैं कि आपका अपना लैपटॉप या नोटपैड भी थोड़े बदलाव के बाद टेलिप्रॉम्टर की तरह काम कर सकता है। टेलिप्रॉम्टर उन लोगों के लिये वाकई मददगार है जो यू-ट्यूब के लिये वीडियो बनाते हैं, ब्लॉग पोस्ट करते हैं या किसी मंच, कार्यशाला में प्रेजेंटेशन देते हैं। गूगल पर जाने से पता चलता है कि यह बहुत महंगी भी नहीं। ऑनलाइन यह 8 हजार रुपये से शुरू हो रहा है। 12 हजार रुपये में अमेजान पर भी है। हालांकि एक बेहतरीन टेलीप्रॉम्पटर की कीमत 2.70 लाख से लेकर 17 लाख रुपये तक हो सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण के दौरान टेलीप्रॉम्पटर धोखा दे गया। सोशल मीडिया पर लोग टूट पड़े और उन पर तमाम तरह के जोक्स बनने लगे। यकीनन धोखा देने वाला टेलीप्रॉम्पर 12 हजार रुपये के रेंज का तो होगा नहीं, महंगा ही होगा। इसलिये देखा-देखी में खरीदी जरूरी नहीं। हां, कुछ कस्टमर यह जरूर बता रहे हैं कि टेलीप्रॉम्पटर की कीमत में मोदी के उस दिन के भाषण के बाद गिरावट आई है।
सरपंच चुनाव में मंत्री की साख?
हाल ही में निपटे त्रि-स्तरीय पंचायत चुनाव वैसे तो गैर दलीय आधार पर लड़े गये लेकिन सत्तारूढ़ कांग्रेस का दावा है कि ज्यादातर स्थानों पर उनके समर्थित उम्मीदवारों को जीत मिली। मगर सर्वाधिक मंत्रियों वाले दुर्ग जिले के ग्राम पंचायत खोपली में जो हुआ, उसे लेकर भाजपा अपनी पीठ थपथपा रही है। वहां चुनाव इसलिये कराया गया क्योंकि सरपंच फत्तेलाल को बर्खास्त कर दिया गया था। उन्होंने उप-चुनाव में फिर नामांकन दाखिल किया, लेकिन निरस्त कर दिया गया। पर नामांकन उनकी पत्नी मंजू वर्मा का भी दाखिल कराया गया था। उनका नामांकन ओके हो गया। मैदान में चार उम्मीदवार और थे। नतीजा मंजू वर्मा के पक्ष में आया। उन्होंने भारी अंतर से जीत हासिल कर ली। यानि फत्तेलाल दुबारा सरपंच न बन पाये हों, पर सरपंच पति तो हो ही गये। सरपंच पति मंडल भाजपा के अध्यक्ष भी हैं। भाजपा का कहना है कि गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू के इशारे पर ही उनको बर्खास्त किया गया था। इस नतीजे से मंत्री जी की किरकिरी हुई है।
बूट, बुलेट काफी नहीं...
एक तो खाकी वर्दी, फिर बूट और बुलेट। इतना रौब जताने के लिये क्या काफी नहीं था, जो नेम प्लेट के साथ ठाकुर लिखा लिया?
युवाओं पर डोरे डालने का वक्त आया..
चुनाव पास आते जायें तो युवाओं को पार्टी से जोडऩे के लिये उपाय करना दलों की न केवल जरूरत बन जाती है बल्कि मजबूरी भी। पहले स्कूल कॉलेजों में चुनाव होते थे। उनमें जीतने, कड़ी टक्कर देने वाले चेहरे अपने आप सामने आ जाते थे, और दलों को दिक्कत नहीं होती थी। पर अब अधिकांश स्कूल कॉलेजों में मेरिट लिस्ट के हिसाब से छात्र कल्याण समिति बनाई जाती है, जिनकी राजनीति में दिलचस्पी कम होती है। वे इसे करियर के रूप में नहीं देखते। वैसे कोरोना महामारी के चलते पिछले 2 साल से शैक्षणिक गतिविधियों के साथ-साथ छात्रों- युवाओं की गतिविधियां भी शालाओं, कॉलेजों में ठप पड़ी हुई है।
छत्तीसगढ़ सरकार ने बीते सितंबर महीने में युवा मितान क्लब बनाने की घोषणा की। पूरे प्रदेश के शहर और गांव में 13000 से अधिक ऐसे क्लब बनाए जा रहे हैं। इन क्लबों को सामाजिक व खेल संबंधी गतिविधियों के लिए अनुदान भी मिलेगा। इसके बाद प्रदेश भर में जो युवा महोत्सव रखे गए थे उसमें भी दायरा बढ़ा दिया गया था। इन समारोहों में स्कूल कॉलेज के छात्र छात्राओं के अलावा बाहर के युवाओं, संगठनों को भी मौका मिला। अभी दिसंबर में ही ‘खेलबो, जीतबो, गढ़बो नवा छत्तीसगढ़’ के नारे के साथ खेल एवं युवा कल्याण विभाग ने भी गतिविधियां शुरू की।
भले ही यह सब सरकारी आयोजन थे लेकिन जाहिर है इनमें जो युवा जोड़े जा रहे हैं उनका वैचारिक झुकाव कांग्रेस की ओर हो यह देखा जाएगा। क्लबों का नाम भी पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी पर है।
अब बीजेपी को भी इसका कोई तोड़ तो निकालना था। उसने हर लोकसभा क्षेत्र में खेलों का आयोजन करने की घोषणा की है। बस्तर और कोरबा में उनकी पार्टी के सांसद नहीं है जहां राज्यसभा के सदस्य रामविचार नेताम और सरोज पांडे जिम्मेदारी संभालेंगे। बाकी जगह मौजूदा संयोजक हैं। इन खेल आयोजन के लिए संसाधनों की भी जरूरत पड़ेगी जिसमें वैसे भी बीजेपी के पास दिक्कत नहीं रही है और फिर मौजूदा सांसद तो रहेंगे ही। बीजेपी साफ-साफ कह भी रही है कि वह युवाओं को इस बहाने अपनी पार्टी से जोड़ेंगे।
मकसद कांग्रेस और भाजपा दोनों का एक ही है कि युवाओं की टीम आने वाले चुनावों के लिये खड़ी की जा सके।
‘यशो लभस्व’ की जगह कुछ और..
रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) की स्थापना वैसे तो अंग्रेजों ने 1872 में ही कर दी थी, मगर इसका पुनर्गठन 1985 में किया गया। उसी समय इसने आदर्श वाक्य चुना था- यशो लभस्व। यह श्रीमद्भगवद्गीता के एक श्लोक का अंश है जिसका अर्थ है युद्ध के लिए खड़े हो जाओ और यश का लाभ लो। अब आर पी एफ ने अपने लिए एक नया आदर्श वाक्य ढूंढना शुरू किया है। रेल महानिदेशक ने इसके लिए लोगों से सुझाव मांगे हैं। उनका मानना है कि यह वाक्य सीधे तौर पर यात्रियों व रेल उपभोक्ताओं से जुड़ा हुआ नजर नहीं आता। उन्होंने 22 जनवरी तक आरपीएफ से ही जुड़े अधिकारियों और सुरक्षा कर्मियों से दो तीन शब्दों का नया टैगलाइन सुझाव में मांगा है। टैगलाइन ऐसा हो जिससे यह पता चले कि यह यात्रियों की सुरक्षा देने वाला संगठन है।
आरपीएफ की इस छोटी सी कोशिश से भला किसको एतराज हो सकता है? जब बड़े-बड़े रेलवे स्टेशनों के नाम बदल दिये गये तो किसी ने किया क्या?
आईपीएस बिरादरी में सन्नाटा
छत्तीसगढ़ के एडीजी जीपी सिंह की गिरफ्तारी से लेकर जेल दाखिले पर आईपीएस बिरादरी में सन्नाटा पसरा हुआ है। राज्य के ताकतवर पुलिस अफसर रहते जीपी सिंह के नाम से न सिर्फ उनके जूनियर बल्कि सीनियर भी थर्राते थे। भ्रष्टाचार के आरोप में घिरे जीपी को लेकर पीएचक्यू में खामोशी का माहौल है। आईपीएस बिरादरी की चुप्पी के पीछे दरअसल जीपी की नकारात्मक कार्यशैली एक असल कारण है। एसपी का प्रशासनिक कार्यकाल पूरा करने के बाद आईजी रहते जीपी का अपने रेंज के एसपी के कामकाज में सीधा दखल रहता था। उनके इस हस्तक्षेप से एसपी परेशानी में पड़ जाते थे। उनके बिलासपुर आईजी रहते हुए होनहार आईपीएस राहुल शर्मा की खुदकुशी सबको याद है जो कि आईजी की दखल और उनके किये जा रहे लगातार अपमान से परेशान थे, और आत्महत्या कर ली थी।
उनके दबदबे से जिले स्तर के तबादले में जीपी की पसंद का ख्याल रखा जाता था। कई बार एसपी अपने विवेक और अधिकार को नजरअंदाज कर उनकी पसंद के थानेदारों और आरक्षकों को इधर-उधर करने के लिए विवश रहते थे। बताते हैं कि जीपी में मामले में कोई भी अफसर न समर्थन में है और न ही विरोध में। राज्य सरकार के कड़े रूख को भांपकर आईपीएस टीका-टिप्पणी के लिए अभी के वक्त को सही नहीं मान रहे हैं। अफसरों से यह भी सुनाई देने लगा है कि सरकारी मशीनरी का हिस्सा रहते अपनी हदों को पार करने का नतीजा जीपी जैसा ही होगा। एक सीनियर आईपीएस ने कहा की जब जीपी सिंह की तूती बोलती थी, तब उसने सारे साथी अफ़सरों पर टांग उठाकर मूता हुआ है, इसलिए आज किसी की हमदर्दी उसके साथ नहीं है।
भाजपा में भी जीपी सिंह के काटे हुए लोग कम नहीं हैं. रमन सिंह कैबिनेट की बैठक में बृजमोहन अग्रवाल ने रायपुर आईजी का नाम लेकर कहा था कि सीएम को पता होगा कि आईजी की महीने की कमाई पांच करोड़ रुपये है. अब गिरफ़्तारी के बाद जीपी सिंह ने यह आड़ ली है कि मौजूदा सरकार उन पर रमन सिंह को फंसाने के लिए दबाव डाल रही थी. इस बयान को सुनकर रमन सिंह के एक मंत्री रहे भाजपा नेता को कैबिनेट में हुई चर्चा याद आई।
राष्ट्रगान तो ठीक है मगर 10:30?
बलौदा बाजार के कलेक्टर डोमन सिंह ने पदभार संभालने के बाद ऐसा आदेश सुना दिया है जिससे अधिकारी-कर्मचारी परेशानी में पड़ गए हैं। उन्होंने दफ्तरों में कामकाज की शुरुआत राष्ट्रगान से करने का फरमान निकाला है। 59 सेकंड का राष्ट्रगान सब बचपन से स्कूलों में गाते रहे हैं सबको आता है सब इसका सम्मान भी करते हैं, इसमें किसी को परहेज नहीं। दिक्कत बस इतनी है कि 10:30 बजे राष्ट्रगान शुरू होने के साथ गैरहाजिरी भी पकड़ में आ जाएगी। जो लोग 11-12 बजे तक नहीं पहुंचते उनके लिए मुसीबत खड़ी हो जाएगी। मुमकिन है कि यह शुरुआती जोश हो। कुछ समय बाद इस आदेश पर अमल होना भी बंद हो जाए, तो आश्चर्य नहीं।
अब कैसे उठाएं शराबबंदी का सवाल..
भाजपा शासित मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह सरकार ने शराब की दुकानें दोगुनी करने की नीति बना रही है। जिनके पास जगह है, वह अपने घर पर भी बार खोल सकेंगे। एयरपोर्ट, मॉल और सुपर बाजार में इसकी उपलब्धता बढ़ाई जाएगी। मकसद है, 10 हजार करोड़ रुपए अतिरिक्त कमाई का।
छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी ने बार-बार भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार पर हमला जारी रखा है कि गंगाजल की कसम खाने के बावजूद वह अपने शराबबंदी के वायदे पर अमल नहीं कर रही है। तीन साल हो गये, कांग्रेस का कहना है कि वह विभिन्न संगठनों से विचार विमर्श कर रही है। दूसरे राज्यों में शराबबंदी की विफलता की तरफ भी ध्यान दिया जा रहा है। अब कांग्रेस के पास एक और जवाबी औजार मध्यप्रदेश के फैसले के रूप में मिल गया है।
छत्तीसगढ़ सरकार के लिए यह जरूर परेशानी का कारण बन सकता है कि मध्यप्रदेश में शराब सस्ती भी की जा रही है। पहले से ही वहां से छत्तीसगढ़ में शराब की तस्करी हो रही है और अब जब सस्ती हो जाएगी तस्करी और बढऩे की आशंका है।
टीवी चैनलों की तगड़ी मोर्चेबंदी
ये कुछ स्क्रीन शॉट्स हैं, यूपी चुनाव पर टीवी चैनलों में चल रही बहस की। वाट्सएप, फेसबुक और इंटरनेट मीडिया के दूसरे माध्यमों के हजारों ग्रुप्स की तरह इन्होंने भी हर बार की तरह अपनी जिम्मेदारी संभाल रखी है। भले ही मुद्दा, विकास, महिला सुरक्षा, रोजगार का उभर रहा हो, पर मतदाताओं की समझ को मोडऩे में ये बहुत काम आ रहे हैं।
सांसद पुत्र की सक्रियता
वित्त विभाग फरवरी के पहले पखवाड़े में सरकारी विभागों में खरीदी पर रोक लगा सकता है। मगर इससे पहले सप्लाई ऑर्डर लेने के लिए विभागों में आपाधापी मची हुई है। स्वास्थ्य महकमे में सप्लायर कुछ ज्यादा ही सक्रिय हैं। वजह यह है कि कोरोना का दौर चल रहा है, और इससे निपटने के लिए राज्य के साथ-साथ केंद्र ने भी अस्पतालों में दवा-उपकरणों की खरीदी के लिए भरपूर राशि दी है।
सुनते हैं कि बीजापुर, नारायणपुर, महासमुंद, रायपुर, बलौदाबाजार, सूरजपुर के अलावा कुछ और अन्य जिलों में दवा-उपकरणों की खरीदी की तैयारी चल रही है। करीब 15 करोड़ के आसपास की खरीदी होनी है, और इस मद में करीब 5 करोड़ रुपए जारी हो गए हंै। जिलों में सीएमओ ने खरीदी प्रस्ताव तैयार किए हैं। सप्लाई ऑर्डर देने के लिए प्रभावशाली लोगों के रोजाना फोन आ रहे हैं।
चर्चा है कि एक सांसद पुत्र ने तो जिलों के सीएमओ के नाक में दम कर रखा है। जरूरत पडऩे पर पुत्र की मदद के लिए सांसद महोदया आगे आ जाती हैं। सांसद-पुत्र की अतिसक्रियता से स्वास्थ्य अफसर हलाकान हैं, और इसकी शिकायत दाऊजी तक भी पहुंची हैं। देखना है कि आगे क्या होता है।
जीपी तक रास्ता ऐसे निकला
आखिरकार जीपी सिंह पुलिस के हत्थे चढ़ गए। लेकिन उन्हें पकडऩा आसान नहीं था। पुलिस जब भी उनके ठिकानों पर छापेमारी करती, वो उससे पहले ही निकल जाते थे। इसके बाद पुलिस ने जीपी के मददगारों की तलाश की, और उन पर नजर रखनी शुरू कर दी।
सुनते हैं कि जीपी के दो करीबी पुलिस की रडार पर थे। इनमें से एक आरटीआई एक्टिविस्ट, और दूसरा कारोबारी बताया जा रहा है। जीपी इन दोनों के संपर्क में थे। फिर इन दोनों के सहारे पुलिस जीपी तक पहुंचने में सफल रही।
वकीलों पर फिर आर्थिक संकट का साया
यह अलग बात है कि कोविड-19 संक्रमण से बचाव के लिए बनाए गए नियमों का अनेक संस्थानों और सार्वजनिक स्थानों पर उल्लंघन हो रहा है लेकिन न्याय व्यवस्था की दिशा बताने वाली अदालत में इसके प्रति नरमी तो बरती नहीं जा सकती। इसीलिए हाईकोर्ट और निचली अदालतों में वर्चुअल सुनवाई चल रही है। हाईकोर्ट में तो वर्चुअल काम तो हो रहा है पर निचली अदालतों में लगभग रुका हुआ है। पक्षकारों को सीधे तीन-चार महीनों के बाद की तारीख मिल रही है। हाई कोर्ट और जिला बार एसोसिएशन ने तीसरी लहर के शुरू में मांग उठाई थी कि वर्चुअल के साथ-साथ फिजिकल सुनवाई की जाए। एक बार फिर 100 से अधिक वकीलों ने चीफ जस्टिस को पत्र लिखकर गुहार लगाई है कि वे कोरोना प्रोटोकॉल का पूरा पालन करने के लिए तैयार हैं लेकिन अदालतों में फिजिकल सुनवाई शुरू हो।
पिछली बार कोविड-19 की दूसरी लहर में वकीलों पर जबरदस्त आर्थिक संकट आया था। ज्यादा असर निचली अदालतों में प्रैक्टिस करने वाले और नये वकीलों पर ज्यादा हुआ। अदालतों पर निर्भर फोटोकॉपी, स्टेशनरी, स्टांप के व्यवसायी भी इसकी चपेट में थे। देखना यह है कि अब इन वकीलों की इस गुहार पर चीफ जस्टिस क्या फैसला लेते हैं।
सवाल करियर चौपट होने का
हुक्का बार पर विधानसभा में अधिनियम पारित हो जाने के बाद भी छत्तीसगढ़ के कई शहरों में चोरी छुपे कैफे की आड़ में यह संचालित किया जा रहा है। पकड़े जाने वाले युवा ऐसे भी हैं जो आसपास के कस्बों से आकर सीजीपीएससी की तैयारी कर रहे हैं। बिलासपुर में एक हुक्का बार पर पुलिस ने छापा मारा। पुलिस ने वहां से युवक-युवतियों को पकड़ा। उन्हें पेरेंट्स की गारंटी मिलने पर छोडऩे की बात कही। इनमें से दो युवतियों की आंखों से आंसू निकल गये। वे गिड़गिड़ाने लगीं। कहा- सर, प्लीज पेरेंट्स को मत बुलाइए। हम तो यहां प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी के लिए आए हुए हैं। बदनामी तो होगी ही, वे सीधे हमको घर वापस ले जाएंगे और करियर चौपट हो जाएगा। पुलिस ने बस इतनी नरमी बरती कि पेरेंट्स को तो बुलाकर समझाया लेकिन इन युवतियों को उनके सामने खड़ा नहीं किया।
पहले ओले और अब ओस
दिसंबर के दूसरे हफ्ते से तापमान में जो गिरावट आई है वह अब तक निरंतर है। महीने भर से धूप अपने पूरे ताप के साथ तो निकली ही नहीं। मैनपाट में टेंपरेचर 2.9 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था। इस वक्त भी लगभग 4 डिग्री सेल्सियस है। अंबिकापुर, पेंड्रा रोड जैसी जगहों पर तापमान 6 डिग्री के आसपास चल रहा है। बस्तर, रायपुर, कवर्धा सभी जगह पर ठंड है। दिसंबर में हुई बारिश के बाद ओले भी गिरे थे और अब लोग पहाड़ी इलाकों में बर्फ की ओस की परतों को देखकर आनंद उठा रहे हैं। लोग हल्के-फुल्के अंदाज में छत्तीसगढ़ के मौसम की चर्चा करते हुए कहते रहे हैं कि यहां पर 3 तरह के मौसम हैं- गर्मी, बहुत गर्मी और कम गर्मी। मगर इस बार ऐसा नहीं है।
मन में फूट रहे सियासी लड्डू
खैरागढ़ के दिवंगत विधायक देवव्रत सिंह की तलाकशुदा पत्नी पद्मादेवी सिंह का राजघराने में मौजूदा पत्नी विभा सिंह के साथ चल रहे संपत्ति विवाद में बच्चों के लिए ढाल की तरह डटे होना, उनके लिए नया सियासी रास्ता बन गया है। पूर्व पति के समर्थकों और राजपरिवार के सदस्यों ने उनके मन में नई राजनीतिक पारी खेलने की भावनाएं पैदा कर दी है। पदमा के मन में अब सियासी लड्डू का स्वाद चखने का मन बढ़ गया है। सुनते है कि जायदाद में हिस्सेदारी को लेकर चल रहे विवाद को लेकर कुछ दिन पहले बच्चों को लेकर पदमा की मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मुलाकात हुई थी। इस भेंट को संतानों की सुरक्षा से जोडक़र पेश किया गया, लेकिन बातचीत में पदमा ने मुख्यमंत्री से चुनाव लडऩे की ख्वाहिश को जाहिर किया। खैरागढ़ राजघराने के शुभचिंतक भी पदमा को चुनाव लडऩे के लिए मानसिक रूप से तैयार कर रहे हैं। बताते है कि देवव्रत की मिल्कियत को लेकर जिस तरह से आम लोग उनके बेटा-बेटी के समर्थन में सामने आए, उससे यह साफ हो गया कि देवव्रत सिंह के लिए क्षेत्र की जनता के मन में आदर भाव बना हुआ है। लोगों की इन भावनाओं के जरिए पदमा देवी सियासी वैतरणी पार करने का इरादा लेकर आपसी और शीर्ष नेताओं से संपर्क कर रही हैं। पदमा के कांग्रेस के राष्ट्रीय नेताओं से निजी और राजनीतिक संबंध जगजाहिर है। यदि सहानुभूति से सियासी फायदे को नजरअंदाज नहीं किया गया तो पदमा की चुनाव लडऩे की इच्छा पूरी हो सकती है। यदि ऐसा हुआ तो राजघराने के बाहर से चेहरा उतारने की संभावना क्षीण हो सकती है।
आईएएस अफसर मन मसोसकर बैठे
छत्तीसगढ़ के आईएएस अफसरों में मायूसी छाई हुई है। अच्छी पोस्टिंग या विभाग नहीं मिलना तो दुख का कारण है ही, लेकिन बड़ी तकलीफ इस बात से है कि उनका हक आईएफएस और आईपीएस मार रहे हैं। महत्वपूर्ण निगम-मंडल और आयोग में एमडी के पद पर कई आईएफएस तैनात हैं। मंत्रालय में भी उनकी पूछ-परख अच्छी है। दूसरी तरफ सीधी भर्ती के कई आईएएस को अभी तक कलेक्टरी नहीं मिल पाई है, जबकि कलेक्टरी में प्रमोशन से आईएएस बने अफसरों को लगातार महत्व मिल रहा है। ऐसे कई अफसर तो 5-6 जिलों की कलेक्टरी के बाद जिलों में पदस्थ हैं। ऐसे में आईएएस अफसर मन मसोसकर बैठे हुए हैं।
सच्ची-झूठी डायरी की आंच
शिक्षा विभाग की कथित डायरी मामले के खुलासे के बाद लोगों को राहत मिली है। खासतौर पर जिनके नाम डायरी के पन्नों पर थे, क्योंकि सफाई देना मुश्किल हो रहा था। हालांकि लोग डायरी के हिसाब-किताब को पूरी तरह से फर्जी नहीं मान रहे हैं। विभागीय लोगों का दावा है कि शिक्षा विभाग में ट्रांसफर-पोस्टिंग के नाम पर वसूली तो हुई है, तभी सत्ताधारी दल के विधायकों ने भी जमकर हल्ला मचाया था। इस मामले में पूर्व जिला शिक्षा अधिकारी चंद्राकर समेत तीन लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है। लिहाजा, कह सकते हैं कि मामले का पटाक्षेप हो गया है, लेकिन जो ऐसे लेनदेन को सिरे से खारिज नहीं कर रहे हैं, उनकी आशंका सही साबित हुई तो संभव है कि कुछ लोगों के लिए डायरी परेशानी बन सकती है।
दिक्कतों से दो चार हो रहे कॉलेजों के छात्र
पहले और तीसरे सेमेस्टर की परीक्षाओं को ऑनलाइन लेने के लिए उच्च शिक्षा विभाग का निर्देश अभी तक कॉलेजों में नहीं पहुंचा है। रविशंकर विश्वविद्यालय से जुड़े कई कॉलेजों की यह शिकायत है। कॉलेजों में अगले सप्ताह से सेमेस्टर की परीक्षाएं ऑफलाइन मोड पर निर्धारित की गई थी। पर कोविड-19 संक्रमण के बढ़ते मामलों के चलते इस पर रोक लगाई गई। अब कॉलेजों में सन्नाटा पसरा हुआ है। ऑनलाइन परीक्षा लेने के संबंध में निर्देश नहीं आने के कारण छात्रों में असमंजस की स्थिति बनी हुई है। दूसरी बात, एक बार फिर जो दूर-दराज में रहने वाले छात्र हैं, उन्हें नेटवर्क की समस्या से जूझना पड़ रहा है। ऑफलाइन कक्षाएं बंद की जा चुकी हैं और ऑनलाइन में भी वे जुड़ नहीं पा रहे हैं।
फिर खनिज विभाग क्या सो रहा?
ऐसा लगता है कि ज्यादातर जिलों में खनिज विभाग ने नियमों के खिलाफ जाकर नदियों से रेत निकालने की छूट दे रखी है और सत्तारूढ़ दल के नेता इन्हें शह दे रहे हैं। राजनांदगांव में शिवनाथ नदी से रेत निकालने के खिलाफ ग्रामीणों ने कई बार कलेक्टर और खनिज विभाग के अधिकारियों से शिकायत की। पुनेका बाकल एरिया में बकायदा नदी को बांधकर भारी मशीनों से बिना रायल्टी पर्ची रेत निकाली जा रही थी। 8 माह तक लगातार शिकायतों के बावजूद कार्रवाई नहीं होने पर ग्रामीणों ने खुद मोर्चा संभाल लिया और वहां धरने पर बैठ गए। फिलहाल यहां उनकी नाकेबंदी के चलते रेत की अवैध निकासी बंद हो गई है, पर यह प्रशासन के मुंह पर तमाचा है। लोगों को कानून अपने हाथ में लेना जो पड़ रहा है।
लूट के लिये पत्रकारिता..
पत्रकारिता का पेशा अपराधियों के लिए कवच बनता जा रहा है। पुलिस ने प्रेस लिखी ऐसी गाडिय़ों को कई बार जप्त किया है जिसमें गांजा शराब जैसे मादक पदार्थों की तस्करी होती रही है। वेब पोर्टल के जरिए खुद को पत्रकार बताने की तो होड़ मची हुई है ही, और इसकी आड़ में अपराधों को अंजाम देने की भी। भिलाई में दो बाइक पर सवार 4 लोगों ने इंदौर से सैनिटाइजर की डिलीवरी करने वाले पिकअप के ड्राइवर को वेब पोर्टल का पत्रकार बता कर धमकाया और 48 हजार रुपए लूटे। ये आरोपी सुपेला और भिलाई 3 के रहने वाले हैं। इनके पास से कॉर्डलेस, वॉकी टॉकी और अलग-अलग पोर्टल, अखबारों के आईडेंटिटी कार्ड, माइक आईडी आदि जप्त किए गए। यानि वे पत्रकारिता के पेशे का पूरे दस्तावेजों के साथ गलत इस्तेमाल करते थे। मीडिया की विश्वसनीयता ऐसी घटनाओं के कारण ही संकट में है।
घर सुधरेगा तब सब सुधरेंगे
यह विचार राजनांदगांव पुलिस के लिए एकदम सटीक माना जा सकता है, क्योंकि नए पुलिस कप्तान संतोष सिंह ने महकमे के प्रशासनिक ढांचे में सुधार के लिए अपने घर, यानी विभाग के अलग-अलग यूनिट के दफ्तरों को चुना है। अरसे बाद एसपी की अपने अधीन विभागीय कार्यालयों में दबिश से निचले अफसरों के आरामतलब रहने का मिजाज चुस्ती में स्वाभाविक रूप से बदलेगा। असल में एसपी हर मोर्चे पर पुलिस की मुस्तैदी के लिए कोशिश करते दिख रहे है। इसलिए उन्होंने सालों बाद यातायात, पुलिस कंट्रोल रूम और थानों का औचक निरीक्षण कर बुनियादी पुलिसिंग को देखा। यातायात में पहुंचे एसपी ने इनाम और सजा देकर सिपाहियों को उनकी जिम्मेदारी से अवगत कराया है। बताते है कि एसपी सिंह सट्टा-जुआ से महकमे के बढ़ते लगाव के घोर विरोधी भी हैं। हाल ही थानेदारों की मैराथन बैठक लेकर एसपी ने इस दो सामाजिक कुरीतियों, और जुर्म को गले लगाने वाले अफसरों को चेताया है। यह भी सच है कि जुआ-सट्टा के खिलाफ जिले में कार्रवाई के नाम पर खानापूर्ति होती रही है। थानेदार भी अपने कप्तान को नाराज करने का जोखिम नहीं उठाना चाहते हैं, ऐसे में जुआरियों और सटोरियों को दबोचने के पुलिस अभियान के नतीजे भी मिल रहे है। साफ है कि एसपी, घर सुधारेगा तब सब सुधरेंगे, की सोच लेकर बढ़ रहे हैं।
कैंसिल फ्लाइट में भी रिफंड नहीं?
हाईकोर्ट के दबाव और जन आंदोलन के चलते बिलासपुर से हवाई सेवा शुरू तो कर दी गई है, पर तमाम दिक्कतें हैं। जरा सा मौसम बिगड़ते ही विजिबिलिटी नहीं होने के कारण फ्लाइट कैंसिल कर दी जाती है। उड़ान भरने के बाद प्राय: फ्लाइट रायपुर में उतार दी जाती है और यात्री अपने खर्च पर बिलासपुर लौटते हैं। यह उस परिस्थिति में है जब यहां से उड़ान का किराया रायपुर के मुकाबले कभी कभी दो गुना पार कर जाता है। मगर अब यात्रियों को रिफंड की नई समस्या से जूझना पड़ रहा है। 14 जनवरी को दिल्ली के लिये फ्लाइट कैंसिल की गई। एक महिला यात्री जिसने ईज माई ट्रिप से बुकिंग कराई, उनकी शिकायत है कि फ्लाइट कैंसिल होने के बाद भी किराया रिफंड नहीं किया जा रहा है। उन्होंने सोशल मीडिया पर एयर इंडिया का वह पत्र भी साझा किया है जिसमें कहा गया है कि फ्लाइट कैंसिल होने पर यात्री का पूरा किराया रिफंड किया जायेगा।
कांग्रेस में अपनों की बगावत...
कांग्रेस में संगठन और सत्ता के बीच तालमेल कैसा है, इसे जानने के लिये जांजगीर जिले के खरौद नगर पंचायत में हो रही गतिविधि को देखना चाहिये। यहां कांग्रेस के ही अध्यक्ष हैं। उनके खिलाफ कांग्रेस पार्षदों ने ही मोर्चा खोल दिया है। भाजपा, शिव सेना और निर्दलीय पार्षदों का भी उन्हें साथ मिल रहा है। 15 में से 14 पार्षदों ने कलेक्टर को ज्ञापन देकर अविश्वास प्रस्ताव की वोटिंग कराने की मांग की है। पार्षदों ने अध्यक्ष पर भ्रष्टाचार और दुर्व्यवहार का आरोप लगाया है। दो साल पहले हुए चुनाव में किसी भी दल को पूरा बहुमत नहीं मिल पाया था। तब कांग्रेस ने अध्यक्ष पर निर्दलियों की मदद से कब्जा किया था। ऐसी स्थिति में अध्यक्ष को कम से कम अपने दल के पार्षदों को नाराज करने का जोखिम नहीं उठाना था। नाराज पार्षदों ने निश्चित ही संगठन के सामने पहले अपनी शिकायत की होगी, फिर कलेक्टर के पास गये होंगे। हाल के नगरीय निकाय चुनावों में कांग्रेस ने कई जगह पर निर्दलियों या भाजपाईयों से क्रास वोटिंग कराई और अपने अध्यक्षों को बिठाया, पर यहां तो मेहनत पर पानी फिर रहा है।
अब रुकेगा घोटाला सीजीएमसी में?
छत्तीसगढ़ मेडिकल कारपोरेशन में अब आईएएस अधिकारी की जगह पर जनप्रतिनिधियों का संचालक मंडल रहेगा। लुंड्रा के विधायक डॉ. प्रीतम राम इसके अध्यक्ष तथा डॉ विनय जायसवाल और डॉ. के के ध्रुव संचालक मंडल में सदस्य रखे गये हैं। सन् 2019 में मेडिकल कार्पोरेशन में 450 करोड़ रुपये का एक बड़ा घोटाला सामने आया था। इसे कांग्रेस के ही चिकित्सा प्रकोष्ठ ने उजागर किया था। घोटाला भाजापा शासनकाल के समय का था। कालातीत, अमानक दवाईयों की खरीदी और ब्लैक लिस्टेड कंपनियों को भुगतान करने का आरोप प्रमाणों के साथ लगा था। जो मेडिकल उपकरण 6-7 हजार रुपये में आते हैं, उनके लिये लाखों रुपये का भुगतान किया गया। तब, तत्कालीन प्रबंध संचालक व्ही रामाराव के खिलाफ स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने ईओडब्ल्यू को एफआईआर दर्ज कर पूरे मामले की जांच करने का निर्देश दिया था। रामाराव का निधन हो चुका है। जांच किस मुकाम पर है पता नहीं, पर यह तय है कि मेडिकल कार्पोरेशन भ्रष्टाचार के नाम पर हमेशा चर्चित रहा है। विभिन्न मेडिकल कॉलेजों व जिला अस्पतालों के प्रबंधक सीएमएचओ या डीन जिन दवाओं की मांग करते हैं वे पहुंचती नहीं और ऐसी दवायें भेज दी जाती हैं, जिनकी जरूरत ही नहीं होती। ये इतनी भारी मात्रा में भी भेजे जाते हैं कि एक्सपायरी डेट आ जाती है और खप नहीं पाती।
मेडिकल कार्पोरेशन के भीतर आईएएस क्या करते रहे हैं, यह कभी बाहर पता नहीं चलता था। वे मीडिया और जनप्रतिनिधियों को बताने से भी बचते थे। अब कम से कम जनप्रतिनिधियों के हाथ में कमान देने से 1500 करोड़ रुपये से ज्यादा के सालाना बजट वाले इस कार्पोरेशन के कामकाज में पारदर्शिता की उम्मीद कर सकते हैं।
मछली की पूंछ से बालों का श्रृंगार
आज भले ही दुनिया में फैशन के नए आयाम बन रहे हैं पर अबूझमाड़ की बात निराली है। रविवार को कुछ अबूझमाड़ की युवतियां फोटो स्टूडियो पहुंचीं। एक लडक़ी ने अपने जूड़े में एक पंख लगाया था। उसने बताया ये पक्षी नहीं बल्कि मछली की पूंछ है, जिसे सुखाकर बालों के श्रृंगार के लिए उपयोग किया जाता है। ये सब अबूझमाड़ में ही संभव है।
कलेक्टरी अब महीनों की
सरकार ने गणतंत्र दिवस से पहले आधा दर्जन जिला कलेक्टरों बदल दिया है। कुछ तो अपेक्षित थे, लेकिन एक-दो नाम ऐसे हैं जिसकी खूब चर्चा हो रही है। मसलन, डोमन सिंह को महासमुंद से बलौदाबाजार-भाटापारा कलेक्टर बनाकर भेजा गया है। आईएएस के वर्ष-2015 बैच के अफसर डोमन सिंह राज्य प्रशासनिक सेवा से प्रमोट होकर आईएएस बने हंै। वे मुंगेली कलेक्टर थे फिर कांकेर, कोरिया, जीपीएम, महासमुंद, और अब बलौदाबाजार-भाटापारा कलेक्टर बनाए गए हैं। चार साल में वो 6 जिलों की परिक्रमा कर चुके हंै।
ऐसा नहीं है कि डोमन सिंह का इतना जल्दी तबादला किसी शिकायत को लेकर हो रहा है, बल्कि कई बार उनका तबादला जरूरी हो गया था। वो कांकेर जिला कलेक्टर थे तब चुनाव का समय था। और कांकेर डोमन सिंह का गृह जिला है। ऐसे में उनका तबादला जरूरी हो गया था। फिर मुंगेली, और बाद में जीपीएम के कलेक्टर बने। जीपीएम नया जिला बना था और उसके लिए जमीनी, और अनुभवी अफसर की तलाश हो रही थी। सरकार की निगाहें डोमन सिंह पर टिक गई। उन्होंने उपचुनाव के समय अमित जोगी के जाति प्रमाण पत्र प्रकरण का कुशलतापूर्वक निराकरण किया।
डोमन सिंह के बाद जीपीएम का कलेक्टर बनी नम्रता गांधी को साल भर के भीतर दूसरा जिला गरियाबंद दिया गया है। कुछ इसी तरह नीलेश क्षीरसागर का भी है। वो सात महीना पहले गरियाबंद कलेक्टर बने थे, उन्हें महासमुंद भेजा गया है। पहले एक कलेक्टर तो एक जिले में तीन साल तक रह जाते थे। अजीत जोगी तो पांच साल इंदौर कलेक्टर रहे। अब कलेक्टर का पद छह महीने-साल भर का रह गया है।
एक लिस्ट और ?
आधा दर्जन कलेक्टरों को बदला जरूर गया है, लेकिन कुछ ऐसे भी हैं, जिन्हें बदले जाने की चर्चा हो रही थी, लेकिन उनकी कुर्सी सलामत रही। इनमें रायगढ़, बिलासपुर, कवर्धा और सरगुजा का नाम चर्चा में है। इनमें से एक के खिलाफ तो गंभीर शिकायतें हैं, लेकिन उन्हें कुछ नहीं हुआ। कोरोना कम होने के बाद एक लिस्ट और निकल जाए, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
बसपन का प्यार फेम का नया फेस
सहदेव दिरदो अब फिल्मों में अभिनय करेंगे। छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री स्व. अजीत जोगी पर बनने वाली फिल्म में वह उनके बचपन की भूमिका निभायेंगे। सहदेव दिरदो को इंटरनेट के वैश्विक साम्राज्य की बदौलत एक झटके में बड़ी पहचान मिली। पर यह ऐसा दौर है, जहां शोहरत को बनाये रखने के लिये लगातार खुद को साबित करना पड़ता है, वरना लोग जल्दी भूल जाते हैं। इधर सहदेव की हाल की जुड़ी बातें बताती है कि उसे शोहरत की ऐसी ललक का पीछा करने का कोई शौक नहीं। वह सहज बचपन और जीवन जीना चाहता है। बादशाह से मिलकर सहदेव अपने गांव में वापस लौट गया। वह खुले मैदान में फिर दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलने लगा। हाल ही में स्कूलों के बीच हुई राज्य स्तरीय क्रिकेट प्रतियोगिता में उसने भागीदारी की थी और अच्छा प्रदर्शन किया। सडक़ दुर्घटना तब हुई थी जब एक बाइक से वे तीन सवार गिर गये। ख्याति के बाद भी जीवन सहज तरीके से जी रहा है। अब उसे अजीत जोगी के बचपन का किरदार करना है, पर अभिनय उसने कभी किया नहीं। फिल्म निर्माता उन्हें अभिनय करना सिखायेंगे। सहदेव को मिले इस मौके के लिये बधाई तो बनती है, पर सहदेव की सहजता बनी रहनी चाहिये।
राजघराने की उपचुनाव की ख्वाहिश
खैरागढ़ में उपचुनाव की आहट दबे स्वर सुनाई देने के साथ ही भाजपा से टिकट की उम्मीद लिए दावेदार राष्ट्रीय और राज्य के शीर्ष नेताओं से गुपचुप मेल-मुलाकात बढ़ा रहे है। दिवंगत विधायक देव्रवत सिंह के निधन के बाद भाजपा के टिकट का मंसूबा पाले दावेदार अपने समर्थकों के जरिए माहौल बनाने की जुगत में है। उपचुनाव के कुछ दावेदारों में छुईखदान रियासत के गिरिराज सिंह भी इच्छुक बताए जा रहे है। गिरिराज छुईखदान नगर पंचायत में भाजपा शासनकाल में दो मर्तबा अध्यक्ष रहे। गिरिराज को लेकर भाजपा के अंदर चर्चा है कि वह टिकट के लिए अपने राजनीतिक और निजी संबंधों को माध्यम बनाकर आगे बढ़ गए है। गिरिराज की कुछ दिनों पहले पूर्व सीएम रमन सिंह से भी लंबी चर्चा हुई है। पूर्व सीएम के सामने गिरिराज ने खुलकर उपचुनाव में पार्टी प्रत्याशी बनाए जाने के लिए अपनी बात रखी है। कांग्रेस की तुलना में भाजपा से चुनाव लडऩे के लिए दावेदार अपनी खूबियों को गिना भी रहे हैं। वैसे टिकट की दौड़ में विक्रांत सिंह के बाद पूर्व संसदीय सचिव कोमल जंघेल का नाम सुनाई दे रहा है। गिरिराज का दावा ठोंकने से उपचुनाव में टिकट को लेकर भाजपा को काफी माथापच्ची करनी पड़ सकती है। मार्च-अप्रैल में उपचुनाव होने की प्रबल आसार के मद्देनजर खैरागढ़ विधानसभा में भाजपा अंदरूनी स्तर पर तैयारी कर रही है। गिरिराज के नाम को लेकर समर्थन और विरोध की बातें अभी सामने नहीं आई लेकिन यह तय है कि तारीख के ऐलान होने के बाद उम्मीदवारी हासिल करने के लिए आपस में ही खैरागढ़ के भाजपा नेताओं में टकराव भी बढऩा लाजिमी है।
सोशल डिस्टेंस के साथ खेल
स्कूल जायें तो सहपाठियों के साथ खेलने का मौका तो मिलना ही चाहिये। पर सोशल डिस्टेंस के बीच यह कैसे मुमकिन है। है, यह बता रहे हैं जशपुर जिले के मनोरा के हाईस्कूल में पढऩे वाले बच्चे। वे खेल भी रहे हैं पर दो गज की दूरी भी रखी है और मास्क भी पहने हुए हैं। मौका था, स्कूल में चलाये गये टीकाकरण अभियान का।
बहू और कलेक्टर का डबल रोल
2013 बैच की आईएएस नम्रता गांधी का गरियाबंद तबादला उनकी निजी वजहों से खास बन गया है। मूलत: मुंबई की रहने वाली नम्रता गांधी अब उस जिले की कलेक्टरी करेंगी जहां के राजिम के एक परिवार में वह ब्याही गई हैं। नम्रता गांधी अपनी नई पोस्टिंग के बाद बहू और कलेक्टर के रूप में दोहरी भूमिका में नजर आएंगी। भारतीय प्रशासनिक सेवा में आने के बाद नम्रता ने राजनांदगांव जिले से शुरूआत की थी। प्रशिक्षु आईएएस के तौर पर उन्होंने छह माह तक अच्छा काम किया। नम्रता का प्रशासनिक सफर में गरियाबंद दूसरा जिला है। वैसे राज्य में उनके बैच के ज्यादातर अफसर जिलों में कलेक्टरी कर रहे हैं। हालांकि इस बैच के जगदीश सोनकर अपनी पहली कलेक्टरी का लंबे समय से इंतजार कर रहे हैं। इस बैच में सात अफसर सीधे आईएएस और दो प्रमोशन से बने आईएएस है, जिनमें पीएस धु्रव और आनंद मसीह हैं। यह दोनों अफसर जिलों में जाने के लिए जोर लगा रहे हैं।
बस्तर की मुर्गा लड़ाई...
बस्तर के हर जिले में प्रशासन की तरफ से सख्त निर्देश है कि मुर्गा लड़ाई बंद की जाये। यह लड़ाई तब तक चलती है जब तक दो में किसी एक मुर्गे की मौत न हो जाये। दूसरी बात, इसमें दांव लगते हैं जो कुछ रुपये से लेकर हजारों रुपये तक के हो सकते हैं। क्रूरता और जुए का इस तरह से सार्वजनिक प्रदर्शन गलत मानकर इस पर पाबंदी लगाई गई है, पर रुकी नहीं। हाट-बाजारों का यह अहम् हिस्सा है।
हाथियों ने अपना एरिया रिजर्व कर लिया
हसदेव अरण्य के इलाके लेमरू को हाथी रिजर्व एरिया बनाने के लिए राज्य सरकार ने बीते साल अक्टूबर महीने में अधिसूचना जारी की थी। इसमें कोरबा, सरगुजा, धरमजयगढ़, और कटघोरा वन मंडल के क्षेत्र शामिल हैं जो करीब 1950 वर्ग किलोमीटर है। इनमें से 450 वर्ग किलोमीटर के लिए केंद्र की सहमति मिल चुकी है। शेष 1500 वर्ग किलोमीटर के लिए बाकी है।
यही इलाके उनके लिए भविष्य में रिजर्व होने वाले हैं, यह क्या हाथियों को पता है? ऐसा लगता तो है। प्रस्तावित एलीफेंट रिजर्व के पसान वन परिक्षेत्र में 50 से अधिक हाथियों के दल ने बीते 7-8 माह से डेरा डाल रखा है। इनमें कुछ हिस्सा केंदई जंगल का भी है। यहां के ग्रामीणों ने इनके साथ जीना भी सीख लिया है। हाथी कभी-कभी उनकी बाडिय़ों में आकर कटहल, पपीते खा कर चले जाते हैं। ग्रामीण इस नुकसान की भरपाई का दावा वन विभाग से नहीं करते। उनको पता है कि हाथी रिजर्व बनने के बाद उनको लाभ यह है कि वे यहां से बेदखल नहीं किये जायेंगे, और बाद में भी इन्हीं हाथियों के साथ ही उन्हें यहां रहना होगा, दोस्ती तो हो ही जायेगी, दुश्मनी क्यों करें? दरअसल एक व्यस्क हाथी को प्रत्येक दिन 100 लीटर पानी और 200 लीटर चारे की जरूरत पड़ती है और वे दोनों इस इलाके में मिल जाते हैं। घना जंगल तो है ही और हसदेव नदी में भरपूर पानी है। बस कोई अदानी का मजबूत पैरोकार ना आए, जो इन्हें खदानों के लिये यहां से खदेडऩे के लिए मजबूर कर दे।
रेलवे पर रिफंड का बोझ...
कोविड की इस नई लहर में नये संक्रमितों का रोजाना आंकड़ा दूसरी लहर से बिल्कुल कम नहीं है। अलग हटकर जो बात है वह यह कि मजदूरों का बड़े शहरों से गांवों की ओर वापसी नहीं हो रही है। रेलवे ने पिछली बार ऐसे प्रवासी मजदूरों को घर पहुंचाकर वाहवाही भी बटोरी और आलोचना भी झेली। इस बार देश के किसी भी शहर में लॉकडाउन नहीं किया जा रहा है। यह समझ बन चुकी है कि सतर्कता बरतते हुए बाजार, दफ्तर, फैक्ट्रियों में काम चलते रहने देने में ही सबका हित है। पर, अब रेलवे को बहाना फिर मिल गया है। वह फिर से अनावश्यक यात्रा रोकने के लिये पिछली बार की तरह प्लेटफॉर्म टिकट के दाम और यात्री भाड़े में बढ़ोतरी न कर दे। बंद किये गये स्टापेज को शुरू तो करने का सवाल ही नहीं, कुछ ट्रेनों को फिर से बंद किया जा सकता है। एक अधिकारी का कहना है कि इसके लिये एक मजबूत तर्क उनके पास है कि लोग बड़ी संख्या में टिकट कैंसिल करा रहे हैं। इसके अलावा स्टेशनों में इतनी बड़ी संख्या में लोग उमड़ रहे हैं कि कोविड टेस्ट करना मुश्किल होता जा रहा है। इधर रिफंड के क्लेम बढ़ रहे हैं, जिससे रेलवे को घाटा हो रहा है।
फ्लाइंग ऑफिसर की सीढ़ी तक पहुंचना...
ऐसा फील्ड जिसमें लडक़ों का बोलबाला हो, वहां भी हजारों में गिनती के लोगों का मौका मिलता हो, दुर्ग की निवेदिता शर्मा का एयरफोर्स में फ्लाइंग ऑफिसर बनना मायने रखता है। दुर्ग में एयरविंग की बटालियन नहीं होने के कारण वे सुबह 4.30 की लोकल ट्रेन से हर रोज रायपुर के लिये निकलकर एयर एनसीसी की क्लास अटैंड करती थीं। 15 जनवरी को वे हैदराबाद के एयरफोर्स अकेडमी में ज्वाइनिंग दे रही हैं। छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश से उनका अकेले ही चयन हुआ है। खास यह भी है कि निवेदिता की एक और बहन हैं। पिता अशोक शर्मा के मुताबिक छोटी बेटी भी राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में जाने की तैयारी कर रही हैं। छत्तीसगढ़ के युवाओं में राजस्थान, पंजाब, हरियाणा के मुकाबले फोर्स में जाने का जुनून कुछ कम है। एयरफोर्स में और भी कम। ऐसे में निवेदता की कामयाबी युवाओं, खासकर लड़कियों में नया जोश भर सकती है।
जेलों में भीड़ और कोविड
कोविड संक्रमित मामले छत्तीसगढ़ सहित पूरे देश में तेजी से बढ़ रहे हैं। 8-9 महीने दूसरी लहर के दौरान पहले एक-एक हफ्ते में मौतें हजार पार कर रही थीं। इस बार ऑक्सीजन की कमी, फेफड़ों के काम नहीं करने की शिकायत कम है। अभी लोग अस्पतालों का रुख कम कर रहे हैं। इसलिये पिछली बार की तरह हाहाकार नहीं मचा है। इसे तीसरी लहर का नाम दे या न दें लेकिन स्कूल, कॉलेज, जिम, स्वीमिंग पुल, सरकारी, निजी दफ्तरों में लगी पाबंदियां बता रही हैं कि आने वाले दिनों में खतरा हो सकता है। ऐसे में जेलों को लेकर सिर्फ एक दिशा-निर्देश है कि मुलाकातियों पर प्रतिबंध लगा दें। दूसरी लहर के दौरान सात साल से कम सजा वाले मामलों में बंदियों को जमानत या पैरोल पर छोड़े जाने का आदेश दिया गया था, ताकि अधिक संख्या में लोग एक जगह पर रहकर कोरोना न फैलायें। इस बार अभी तक कोई आदेश नहीं आया है। बंदियों का एक तबका जरूर मना रहा हो कि महामारी के बहाने उन्हें कुछ दिन के लिये फिर बाहर निकलने का मौका मिले।
फिर बदली और बारिश
एक दो दिन की धूप के बाद छत्तीसगढ़ के ज्यादातर हिस्सों में बारिश होने लगी है। ज्यादातर जिलों में इसका रकबा इस बार बढ़ा। इसके लिये कृषि अधिकारियों पर शासन का दबाव था तो किसानों को प्रोत्साहन भी। रबी में धान बोने पर पानी नहीं देने की चेतावनी भी। लेकिन दो दिन से जो मौसम में फिर बदलाव हुआ है उससे बहुतों की फसलें खराब हो गईं। इनमें तिल, सरसों, सूरजमुखी, अरंडी आदि हैं जो ओले गिरने के कारण लगभग बर्बाद हो चुके हैं। राजस्व विभाग की एक किताब है आरबी 6-4, जिसके तहत ऐसी बर्बाद हुई फसलों के लिये मुआवजा देने का प्रावधान है, पर यह फसल पर किये खर्च और उपज से होने वाली अनुमानित आमदनी का थोड़ा सा हिस्सा ही होता है। इसके लिये भी उनको महीनों भटकना पड़ता है। इधर दिसंबर माह में हुई बारिश से धान की मंडियों में ले जाने के लिये तैयार रखी गई फसल काफी बर्बाद हुई। समितियों में खरीदे गये धान की बर्बादी तो करोड़ों में है, जिसके लिये कलेक्टरों को नोटिस देने की बात भी खाद्य मंत्री ने कही है। इधर, किसान हफ्ते-दस का इंतजार करने के बाद भी धान बेच नहीं पा रहे हैं। अब सिर्फ 15 दिन बचे हैं। जैसा आंकड़ा है, अभी भी सात लाख किसान धान बेचने के लिये कतार में हैं। वे मुश्किल में हैं। कुल मिलाकर इस बार जाड़े की बारिश लंबी खिंची है और सरकार के साथ किसानों को भी भारी नुकसान दे गया।
चूक के कारण घिरे
छत्तीसगढ़ में रोजगार के आंकड़ों को लेकर कांग्रेस और बीजेपी की तरफ से जमकर सियासत हो रही है। सरकार का दावा है कि तीन साल में करीब 5 लाख लोगों को रोजगार मिला है, जबकि बीजेपी सरकार पर झूठे आंकड़े पेश करने का आरोप लगा रही है। दोनों के अपने-अपने दावे चल रहे हैं। दो-तीन दिन से दोनों तरफ प्रेस नोट और प्रेस कांफ्रेंस का दौर चल रहा है, लेकिन असल मुद्दा रमन सिंह की एक चूक के कारण गायब हो गया। सरकार के दावे पर कांग्रेस संगठन की ओर से एक ग्राफिक्स जारी किया गया, जिसमें सीएमआईई द्वारा जारी किए बेरोजगारी दर के आंकड़े और नौकरियां की जानकारी थी। यह बीजेपी के आरोपों पर कांग्रेस संगठन की तरफ से जवाब था। कांग्रेस के नेताओं ने इसे ट्वीटर और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी शेयर किया। गलती से कांग्रेस का ग्राफिक्स रमन सिंह के ट्वीटर हैंडल से शेयर हो गया। संभव है कि कांग्रेस के इस ग्राफिक्स में किए गए दावों पर टिप्पणी के साथ रमन सिंह इसे शेयर करना चाह रहे होंगे, लेकिन यह बिना टिप्पणी के शेयर हो गई। रमन सिंह या उनका ट्वीटर हैंडल करने वाले देख पाते, इससे पहले ही कांग्रेसियों ने उसका स्क्रीन शॉट लेकर वायरल कर दिया और जवाबी हमला भी। इस चूक के कारण कांग्रेसियों को मुद्दा मिल गया और सरकार को घेरने की कोशिश कर रही बीजेपी बचाव की मुद्रा में आ गई। इस चूक के बाद रमन सिंह दूसरे दिन सीएमआईई के आंकड़ों के साथ ट्वीटर पर सामने आए। उसमें भी कांग्रेसियों ने गलती पकड़ ली और रमन सिंह पर टूट पड़े। कुल मिलाकर अचूक निशाने के चक्कर में ऐसे फंसे कि खुद ही चूक गए।
विकास को मंत्री बनने की शुभकामना
रायपुर पश्चिम के विधायक विकास उपाध्याय तेजी से सियासत के शिखर पर पहुंच रहे हैं। एनएसयूआई, युवा कांग्रेस और कांग्रेस संगठन के अलग-अलग पदों से होते हुए सरकार में संसदीय सचिव हैं। स्वाभाविक है कि उनकी कोशिश मंत्री बनने की भी होगी। उनकी इस कोशिश कब फलीभूत होगी, यह तो नहीं पता, लेकिन सरकार के वरिष्ठ मंत्री रविन्द्र चौबे ने तो उन्हें मंत्री बनने की अग्रिम शुभकामना दे दी है और उन्होंने यह बात सार्वजनिक रूप से एक प्रेस कांफ्रेंस में कही। हुआ यूं कि प्रेस कांफ्रेंस की शुरूआत में संचार विभाग के अध्यक्ष सुशील आनंद स्वागत कर रहे थे। उन्होंने मंत्री रविन्द्र चौबे और शिव डहरिया के साथ विकास उपाध्याय का संसदीय मंत्री कहकर स्वागत किया हालांकि तुरंत उन्होंने इसे सुधार लिया, लेकिन चौबे ने बीच में टोकते हुए कहा कि मंत्री कहकर रहे हैं, तो कोई गलत नहीं है, विकास देर सबेर मंत्री जरूर बनेंगे। चौबे जी सरकार में वरिष्ठ मंत्री हैं और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की गुड बुक में है। ऐसे में उन्होंने यह बात मजाक में कही, या इसमें कोई गंभीरता है, इसको लेकर भी कांग्रेसियों के बीच तरह-तरह की चर्चा है। पिछले दिनों जब मंत्रिमंडल में फेरबदल के कयास लग रहे थे, तब भी विकास को मंत्री बनाए जाने की चर्चा थी।
पुनियाजी के बेटे मैदान में हैं, तो...
छत्तीसगढ़ कांग्रेस संगठन के प्रभारी पीएल पुनिया के बेटे तनुज एक बार फिर यूपी के जैदपुर विधानसभा से चुनाव लड़ रहे हैं। तनुज के नाम की घोषणा से यहां के धन्ना सेठ कांग्रेस के नेता थोड़े चिंतित हैं। तनुज पहले भी तीन चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन तीनों बार मुख्य मुकाबले में नहीं आ पाए। ऐसी स्थिति तब बनी जब छत्तीसगढ़ कांग्रेस के नेता न सिर्फ वहां प्रचार के लिए गए थे, बल्कि काफी साधन-संसाधन झोंका था।
वैसे तो यूपी में तो कांग्रेस संगठन बुरी स्थिति में है। तनुज चुनाव लड़ रहे थे तब यह कहा गया कि अभी संगठन को मजबूत बनाने, और मतदाताओं तक पहुंच बनाने के लिए लड़ रहे हैं ताकि आम चुनाव में जीत सुनिश्चित हो सके। अब जब विधानसभा के आम चुनाव में तनुज मैदान में हैं, तो यहां उनकी जीत-हार को लेकर अभी से चर्चा शुरू हो गई है। पुनिया के करीबी लोग इस बार तनुज को लेकर उम्मीद से हैं, लेकिन कई ऐसे भी हैं जिन्हें ज्यादा कुछ संभावना दिखती नहीं है। फिर भी पुनियाजी के बेटे मैदान में हैं, तो उनके लिए साधन-संसाधन का जुगाड़ तो करना ही पड़ेगा।
फिर नंबर नहीं लगा शैलेष पांडेय का...
स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस पर जिलों के मुख्य समारोह में ध्वजारोहण और परेड की सलामी का मौका मिलने से मंत्रियों, विधायकों का सम्मान बढ़ता है। ऐसा माना जाता है। पर, बिलासपुर से भाजपा को अरसे बाद परास्त करने वाले विधायक शैलेष पांडेय पर कृपा बरस ही नहीं रही है। पहली बार गणतंत्र दिवस पर शहर के विधायक होने के नाते शैलेष पांडे स्वाभाविक दावेदार थे लेकिन जिले की ही कांग्रेस विधायक रश्मि सिंह ठाकुर को झंडा फहराने का मौका मिला है। इस बारे में बाद में मीडिया के सवालों पर सीएम ने कहा कि अगली बार शैलेष भी फहरा लेंगे, इसमें बड़ी बात क्या है? पर बात आई गई हो गई। फिर तो रश्मि सिंह को भी दुबारा मौका नहीं मिला। इस बीच रवींद्र चौबे, ताम्रध्वज साहू, उमेश पटेल और जयसिंह अग्रवाल ने इन दोनों खास मौकों पर ध्वज फहराया। अब, इस बार भी शैलेष पांडेय का नंबर नहीं लगा। आगामी 26 जनवरी को संसदीय सचिव विकास उपाध्याय रायपुर से ध्वज फहराने के लिये पहुंचेंगे। जयसिंह अग्रवाल बिलासपुर के भी प्रभारी मंत्री हैं, पर उन्हें बिलासपुर से छोटे जीपीएम जिले में ध्वजारोहण करने कहा गया है।
ऑनलाइन पढ़ाई के दिन न लौटे
15 से 18 साल तक के किशोर-किशोरियों में कोविड टीकाकरण को लेकर उम्मीद से ज्यादा उत्साह देखने को मिल रहा है। छत्तीसगढ़ में इस उम्र के लिये रखे गये टारगेट का 50 प्रतिशत पूरा हो चुका है। यह केरल से भी अधिक है, जहां यह प्रतिशत 39 है। छत्तीसगढ़ में 16 लाख 39 हजार किशोरों को टीका लगना है, जिनमें से 8 लाख 14 हजार को लग चुके। 74 प्रतिशत के साथ इस उम्र के टीकाकरण में मुंगेली जिला सबसे आगे है। संख्या के हिसाब से रायपुर पहले नंबर पर है जहां 70 हजार से अधिक किशोरों को वैक्सीन लग चुकी।
वैक्सीनेशन की यह रफ्तार शायद इसलिये भी हो क्योंकि इनमें से ज्यादातर लोग स्कूली छात्र-छात्रायें हैं और शिक्षक-शिक्षिकाओं की आज्ञा का पालन कर रहे हों। पर लॉकडाउन के दौरान ऑनलाइन पढ़ाई से जो मनहूसियत पैदा हुई, दोस्तों और क्लास रूम से दूर रहना पड़ा उसका भी उऩ पर असर होगा।
अफवाहों के बीच जमाखोरी?
छत्तीसगढ़ सरकार ने कई बार स्पष्ट किया है कि कोविड संक्रमित लोगों के ज्यादा मिलने पर उस इलाके को कंटेनमेंट जोन बनाया जायेगा और ऐसा किया भी जा रहा है। साथ ही कहा है कि फिलहाल, लॉकडाउन नहीं लगेगा। इसके बावजूद बाजार में इसकी आशंका और अफवाह दिखाई दे रही है। पिछले लॉकडाउन के वक्त जो सोयाबीन तेल 2100 रुपये में मिल रहा था, इस समय वह रायपुर जैसे कई शहरों में 2250 तक जा चुका है। राइस ब्रान तेल का भी दाम 150 से 200 रुपये तक बढ़ा है। बाकी चीजों का भी यही हाल है। शायद, प्रशासन यह मानकर चल रहा है कि जब लॉकडाउन लगेगा, तभी उन्हें मुनाफाखोरी पर रोक लगानी है, उसके पहले नहीं।
डिंडौरी और मुंगेली, नक्सल नीति में फर्क
पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश के बालाघाट को नक्सली अपना नया ठिकाना बनाने के लिए हर पैतरा आजमां रहे हैं, जवाब में मध्यप्रदेश पुलिस भी भौगौलिक एवं प्रशासनिक बनावट में बदलाव कर नक्सलियों की धाक को कुंद करने दम लगा रही है। मप्र सरकार की नक्सल नीति पर कुछ फेरबदल में एक अहम फैसला डिंडौरी जिले को लेकर हुआ है। नक्सल गतिविधि के लिए मध्यप्रदेश में डिंडौरी लगभग तीसरे स्थान पर है, यह जिला अपने अस्तित्व में आने के बाद से शहडोल रेंज का हिस्सा रहा। अब मप्र के प्रशासनिक नक्शे में इस जिले को बालाघाट रेंंज से जोड़ दिया गया है। ऐसा इसलिए जरूरी माना गया है कि नक्सली अपनी ताकत बढ़ाने के लिए बालाघाट, मंडला के बाद डिंडौरी को सुरक्षित पनाहगाह मान रहे हैं। डिंडौरी पर चर्चा होने के दौरान छत्तीसगढ़ के मुंगेली का नाम जरूरी है, क्योंकि मुंगेली को लेकर नक्सल नीति ज्यादा असरदार नहीं दिख रही है। डिंडौरी और मुंगेली की सीमा पर बने खुडिया में पुलिस सहायता केंद्र को अब तक चौकी का दर्जा देने पर ठोस निर्णय नहीं हुआ है। खुडिया पठारी जंगलों से घिरे होने की वजह नक्सली बेखौफ आवाजाही करते रहे हैं ।
वही मप्र पुलिस ने डिंडौरी पुलिस की धमक तेज करने के लिए जिले को बालाघाट रेंज में शामिल कर दिया। डिंडौरी को लेकर मप्र के अफसरों ने अपनी गंभीरता को जाहिर किया है जबकि मुंगेली को लेकर छत्तीसगढ़ के अफसरों की रूचि कम ही दिखती है। बालाघाट के मौजूदा एडीजी आशुतोष राय नक्सल मामलों पर अच्छी समझ रखते हैं। वे अविभाजित मध्यप्रदेश में महासमुंद और कांकेर एसपी रहे हैं। कांकेर में रहते उन्होंने नक्सलियों की रणनीति को नजदीकी से जाना था।
कोरोना को न्योता देते नेता
आम लोगों को नसीहत दी जाती है, मास्क पहनें और सोशल डिस्टेंस रखें। भीड़ भी इक_ी नहीं करें। कोविड-19 की दूसरी लहर में भी दिखा था, अफसर और जन-प्रतिनिधि इस नियम का खुद ही पालन नहीं करते, जबकि उनके कार्य-व्यवहार का ही लोगों पर असर पड़ता है। भिलाई के नव-नियुक्त महापौर नीरज पाल और विधायक देवेंद्र यादव कोरोना संक्रमित हो गये हैं। कुछ दिन पहले भीड़भाड़ के बीच उन्होंने जीत का जश्न मनाया था। दुर्ग में पिछली बार कोरोना का प्रकोप बड़ी तेजी से फैला था। इस बार भी केस दो हजार से अधिक निकल चुके हैं। पर इन सबसे बेपरवाह जीत का जश्न भीड़ के बीच, बिना मास्क पहने मनाया गया। इस दौरान कुछ नेता और भी थे। जो जश्न में साथ थे, टेस्ट तो उनको भी करा लेना चाहिये।
फीस एक करोड़ 13 लाख रुपये!
सुप्रीम कोर्ट से हरी झंडी मिलने के बाद मेडिकल पोस्ट ग्रेजुएट के लिये काउंसलिंग की प्रक्रिया आज से शुरू हुई है। सरकारी मेडिकल कॉलेज में तो फीस पर कुछ नियंत्रण है भी, पर निजी कॉलेजों में यह आम लोगों की पहुंच से बाहर है। रायपुर व दुर्ग के निजी मेडिकल कॉलेजों में पीजी के कुल 99 सीटें हैं। तीन वर्ष के पाठ्यक्रम के लिये इन्होंने 1 करोड़ 13 लाख रुपये फीस तय की है। यानी, हर साल का करीब 38 लाख। दूसरे राज्यों के मुकाबले यह बहुत ज्यादा है। मध्यप्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना, पंजाब आदि में तीन साल की फीस 20 से 37 लाख के बीच है। दरअसल, मेडिकल कॉलेजों के फीस पर छत्तीसगढ़ में शासन स्तर पर कोई निगरानी नहीं है। इंजीनियरिंग कॉलेजों में ऐसा किया जा चुका है। बेहिसाब फीस चुकाकर निकलने वाले छात्र ये पैसे अपने अभिभावकों को किस तरह लौटायेंगे, यह समझा जा सकता है।
नोट पर लिखा गया नोट...
हिंदी गड़बड़ जरूर है, पर भावनायें सच्ची है। भाषा पर नहीं, अभिव्यक्ति पर जाईये। वैसे नोटों पर कुछ भी लिखना, उसे विकृत करना अपराध है। यह शायद नादान प्रेमी को मालूम नहीं होगा।
सरकारी वकीलों का नया पैनल
छत्तीसगढ़ सरकार ने केंद्र और राज्य में मुकदमों पैरवी के लिये जो नया पैनल घोषित किया है उसे देखकर कतार में लगे कई वकीलों की छाती पर सांप लोट रहे होंगे। सुप्रीम कोर्ट में सरकार का पक्ष रखने के लिये अतिरिक्त महाधिवक्ता की जिम्मेदारी अभिमन्यु भंडारी को मिली है, उनकी ट्विटर पर आखिरी पोस्ट प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तारीफ में है। एक पुराने ट्वीट में उन्होंने लिखा है कि डब्ल्यूएचओ जो गड़बड़ी कोरोना से बचाव के मामले में कर रहा है, उसे डोनाल्ड ट्रंप और नरेंद्र मोदी ही ठीक कर सकते हैं। अर्थव्यवस्था में सुधार के लिये वे निर्मला सीतारमण से गुजारिश भी कर रहे हैं। एक मौके पर वे केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की इस बात का समर्थन कर रहे हैं कि कोई डिफाल्टर हो जाये तो उसे सदैव अपराधी नहीं माना जा सकता। गडकरी, विजय माल्या के संदर्भ में बात कर रहे थे। हालांकि भंडारी ने कई मौकों पर सरकार से परे जाकर भी ट्वीट किये हैं। जस्टिस कूरियन और कुछ अन्य जजों की तारीफ में उन्होंने ट्वीट किये हैं। वे सीबीआई के दुरुपयोग पर भी चिंता जताते हैं और लोकपाल की जरूरत पर बल दे रहे हैं। दूसरे अतिरिक्त महाधिवक्ता संजय एबोट ने मेहुल चौकसी के लिये पैरवी की है। उप महाधिवक्ताओं की टीम में श्रद्धा देशमुख भी हैं जो सन् 2017 से तीन साल तक केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त अधिवक्ताओं के पैनल में रही हैं। जिन लोगों को हटाया गया है उनमें कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल व प्रशांत भूषण के जूनियर वकील शामिल हैं।
प्राय: सरकारें अपने पार्टी की विचारधारा से जुड़े लोगों को ऐसे समय में मौका देती है। नई सूची में भी कांग्रेस से जुड़े कई नाम हैं। इधर, भाजपा के दिनों में एक महाधिवक्ता का भारी विरोध हो गया था। कांग्रेस ने इस मामले में उदारता बरती है और स्वतंत्र राय रखने वाले वकीलों को उनकी काबिलियत साबित करने का मौका दिया है।
किसान रेल की कछुआ चाल
रेलवे माल परिवहन के लिये यात्री ट्रेनों को घंटों देर करने में नहीं झिझकती। मगर ऐसा सीमेंट, कोयला आदि की जरूरत वाले बड़े उद्योगों के लिये किया जाता है। किसानों के साथ भेदभाव हो रहा है। किसान रेल की घोषणा बजट में की गई थी तो लगा था कि यह नियमित चलेगी लेकिन यह कभी-कभी ही चलती है वह भी प्राय: घंटों देर से। छिंदवाड़ा से हावड़ा जाने वाली ट्रेन बिलासपुर स्टेशन पर कल 28 घंटे देर से आई। इसमें पहले से ही लोड सामान इतना अधिक था कि कई लोगों को अपना सामान भेजने की जगह नहीं मिली। साग-सब्जी, मछली जैसे अनेक सामान बहुत विलंब के चलते या तो प्लेटफॉर्म में या फिर ट्रेन में खराब हो जाते हैं। किसान रेल किसानों के लिये फायदेमंद है तो रेलवे के लिये भी। बस इसे समय पर और नियमित चलाने की जरूरत है।
पत्तों का बना आरामदायक चेमूर.....!
बस्तर की महिलायें बहुत मेहनत करती हैं। चाहे जंगलों से टोकरी मे वनोपज एकत्रित करना हो या आग जलाने के लिये लकडिय़ों का वजनदार ल_ा लाना हो।
इन सभी कामों में महिलाओं के सिर पर अधिक जोर पड़ता है, क्योंकि सारे वजनदार सामान वे सिर में ही ढोकर लाती हैं। सिर पर कम वजन लगे इसलिये वे पत्तों की गोलाकार गुदड़ी तैयार कर लेती है जिसे स्थानीय हल्बी बोली में चेमूर कहा जाता है।
ये चेमूर सिर पर ढोये वजन के लिये बैलेंस बनाने का काम भी करते हैं और विशेष तरीके से लकड़ी ढोने के कारण, चेमूर सिर पर ज्यादा वजन नहीं पडऩे देता है। जंगलों से लकड़ी या वनोपज लाने के समय सिर पर पत्तों का चेमूर रख लाया जाता है।
पानी लाने के लिये कपड़े की गुदड़ी तैयार की जाती है। (बस्तर भूषण)
घटेगी नया रायपुर की दूरी?
प्रोत्साहन के तमाम तरीके अपनाये जाने के बाद भी नया-रायपुर, रायपुरवासियों के लिये अलग शहर ही लगता है। मंत्रालयों में बाहर से आकर काम लेकर आने वालों के लिये तो यह और भी मुश्किल पहुंच है। सिटी बसें बहुत कम चलती हैं। आटो रिक्शा, टैक्सी का भाड़ा इतना अधिक कि आम लोगों की हैसियत जवाब दे जाती है। अब रायपुर विकास प्राधिकरण की एक योजना यह वीरानी दूर कर सकती है। वह करीब 1140 एकड़ जमीन सेरीछेड़ी के पास खरीदने जा रहा है। प्रस्ताव बन चुका है, शासन से मंजूरी मिलना बाकी है। यदि यह हो गया तो नया-रायपुर और रायपुर के बीच जो सूनी सडक़ नजर आती है, आबाद हो जायेगी। इस जमीन में रेसिडेंसियल, कमर्शियल प्लान है। चहल-पहल होगी तो आवागमन के साधन बढ़ेंगे। भाड़ा कम लगेगा। जो रायपुर से आना-जाना कर रहे हैं वे आसपास ही रहने की योजना बना सकते हैं। धरातल पर यह योजना कब तक आयेगी, यह अभी तय नहीं।
पुलिस जवानों को उकसाया जा रहा?
‘बस्तर एरिया का एसडीओपी रोकता है तो उसे गोली मार दो’ सुनने से लगता है जैसे कोई पेशेवर अपराधी आदेश दे रहा है, लेकिन ये बातें पुलिस परिवार आंदोलन से जुड़े एक नेता उज्ज्वलधर दीवान के मुंह से सुनी गई।
पुलिस परिवार इन दिनों अपनी समस्याओं को लेकर बस्तर में आंदोलन कर रहा है। जाहिर है, पर्दे के पीछे पुलिस के कुछ जवान ही आंदोलन शामिल हैं। अनुशासन में बंधे होने के कारण वे खुद सामने न आकर परिवार को सामने रखते हैं। आंदोलन की रणनीति बनाने के लिये इनके बीच वर्चुअल बैठक भी होती है। ऐसी ही एक बैठक में इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे एक निलंबित आरक्षक उज्ज्वलधर दीवान पर आरोप लगा है। सुकमा के एक आरक्षक ने कहा कि उन्हें अपनी मांगें रखने से बस्तर एरिया के एसडीओपी रोकते हैं तो दीवान की ओर छूटते ही जवाब आता है, एसडीओपी को गोली मार दो।
हो सकता है कि यह तैश में की गई बात हो पर यदि इसे आरक्षक आदेश मानकर अमल करने लगें तो?
वैसे जानकारी यह मिली है कि दीवान धमतरी जिले का आरक्षक रहा है। उस पर शासकीय सेवा में रहते हुए राजनीति करने की शिकायत मिली तो निलंबित कर दिया गया। बिलासपुर जिले के कद्दावर नेता रहे स्व. बद्रीधर दीवान से अपनी रिश्तेदारी भी वे बताते हैं।
एक दर्जन नेताओं पर क्या गुजरी होगी
भाजपा से जुड़े हुए छत्तीसगढ़ के एक प्रमुख व्यक्ति रमेश गांधी सोशल मीडिया पर पूरे समय भाजपा की विचारधारा को आगे बढ़ाते हैं। ऐसे में उन्होंने अभी कुछ देर पहले यह पोस्ट किया है- भावी मुख्यमंत्री को हिंदी दिवस पर बधाई, और इसके साथ उन्होंने रायपुर के कलेक्टर रहे ओ पी चौधरी को टैग किया है जो कि भाजपा की राजनीति में सक्रिय नौजवान नेता हैं और विधानसभा का चुनाव भी लड़ चुके हैं। अब उन्हें भावी मुख्यमंत्री बतलाने पर इस कतार में खड़े, ओपी चौधरी से वरिष्ठ एक दर्जन नेताओं पर क्या गुजरी होगी यह तो लोगों को अंदाजा खुद ही लगाना चाहिए।
सोने के अण्डे वाली मुर्गी
कुछ लोग अपने हाथ लग जाने वाले ग्राहकों को सोने का अंडा देने वाली मुर्गी की तरह इस्तेमाल करने लगते हैं। उनका पेट काटकर एक ही बार में सारे अंडे निकालने की कोशिश, उन्हीं का नुकसान करती है। अब बहुत से लेखक और प्रकाशक आपस में मिलकर चाहे जिस किस्म की कारोबारी साझेदारी करके किताबें छापें, वे इन किताबों को अंधाधुंध दाम रखकर बेचने की कोशिश करते हैं। ऐसे दामों पर सिर्फ सरकारी लाइब्रेरी में बिक्री हो पाती है आम पाठक तो सस्ती किताबें भी खरीदना, कम से कम हिंदी में, तकरीबन बंद कर चुके हैं, और इसलिए भारी महंगे दामों पर किताबों को छापने का एक ही मतलब निकलता है कि उनकी कुछ सौ कॉपियां छापकर मामला खत्म कर दिया जाए और गरीब पाठकों के लिए उन्हें निकाला ही न जाए। गिने-चुने लोग किताबें खरीद देते हैं, और बाकी लोग उसकी चर्चा करके संतुष्ट हो जाते हैं। खुद लेखक और प्रकाशक मामूली सरकारी खरीदी से ही सब-कुछ निचोड़ लेना चाहते हैं और नतीजा यह होता है कि हिंदी के पाठकों को जायज दामों पर किताबें मिलती नहीं, और धीरे-धीरे किताबें खरीदने का उनका मिजाज ही खत्म हो चुका रहता है। किताबें अगर बिना मोटी और महंगी जिल्द के, साधारण अखबारी कागज पर छपें, तो जिल्द वाली किताब के दसवें हिस्से में मिल सकती हैं। लेकिन आम पाठकों और खरीदारों को लेकर जरा सी मेहनत करने और जरा सा खतरा उठाने की हसरत भी किसी की नहीं रहती।
और यह बात सिर्फ किताबों पर लागू होती हो ऐसा भी नहीं है। इंटरनेट पर ऑनलाइन योग क्लास चलाने वाले छत्तीसगढ़ के कुछ लोग एक-एक से पांच हजार रुपये महीने तक ले रहे हैं। दूसरी तरफ आईआईटी से निकला हुआ एक नौजवान जो कि आर्ट ऑफ लिविंग का प्रशिक्षित योग प्रशिक्षक है, और भारत सरकार से प्रशिक्षित प्रामाणिक योग शिक्षक है, वह भी इंटरनेट पर ऑनलाइन क्लास चला रहा है जो कि बहुत ही लोकप्रिय भी हैं और जो करीब चार सौ रुपये महीने में हासिल है। अब चार सौ रुपये महीने की यह एक क्लास 700 लोगों को आकर्षित कर रही है। दूसरी तरफ पांच हजार रुपये महीने की क्लास में 10-20 लोग ही दिखाई पड़ रहे हैं। कम दाम रखकर अधिक लोगों को जोडऩा समझदारी की एक बात होती, लेकिन वह बहुत से लोग नहीं दिखा पा रहे हैं। न लेखक और न योग शिक्षक। किसी एक को कोसा जाये. आज जब कम दाम पर बहुत कुछ कामयाबी दिख रही है, तब भी लोग हाथ में लगी हुई मुर्गी का पेट काटने में लगे हुए हैं ताकि सोने के सारे अंडे एक बार में, एक ही मुर्गी से निकल जाएं। कम मार्जिन वाले अधिक ग्राहक दुनिया का सबसे कामयाब फार्मूला है, लेकिन लोग अब तक उससे अनजान चल रहे हैं।
मायका-ससुराल की दुविधा
छत्तीसगढ़ में ट्रांसफर-पोस्टिंग में भी स्थानीय का महत्व समझा जा सकता है। कई कलेक्टर-एसपी को इसका फायदा भी मिला है, लेकिन इससे दुविधा भी काफी होती है। जांजगीर-चांपा जिले को ही लीजिए। यहां के कलेक्टर उसी जिले के रहने वाले हैं और संयोग से उनका ससुराल भी उसी जिले में है। इसका नतीजा यह हो रहा है कि हर दूसरा-तीसरा व्यक्ति कलेक्टर भाई, चाचा-भतीजा बताता है, तो ससुराल वालों की तरफ से कोई जीजा-बहनोई या साढ़ू बताने वालों की भी कमी नहीं है। रिश्तेदारी के कारण अधिकारियों में कुछ दुविधा हो सकती है, लेकिन उम्मीद की जानी चाहिए कि कामकाज में साहब मायके और ससुराल दोनों पक्षों का बराबर ध्यान रख रहे होंगे।
वैक्सीन लगवाने का असर
कोविड-19 का संक्रमण बीते 24 घंटों में 13 प्रतिशत तक चला गया। यानि टेस्ट कराने वाले हर 100 लोगों में 13 संक्रमित मिल रहे हैं। जो हरारत लगने के बावजूद टेस्ट नहीं करा रहे हैं उनका हिसाब अलग है। यह पता भी नहीं चल रहा है। मगर दूसरी बात यह भी है कि ज्यादातर लोगों को अस्पताल में भर्ती नहीं होना पड़ रहा है। विशेषज्ञ कह रहे हैं इसकी वजह वैक्सीनेशन हो जाना है।
वैक्सीनेशन पर चाहे सरकार जो खर्च कर रही हो पर लोगों के लिए तो यह मुफ्त ही है। छत्तीसगढ़ में कुछ दिन पहले एक आंकड़ा आया था डेढ़ करोड़ टीके लग चुके हैं। मगर दोनों डोज लेने वाले केवल 30 प्रतिशत हैं। राजधानी रायपुर में कोविड-19 पर नियंत्रण का काम देख रहे डॉक्टरों का भी कहना है संक्रमित लोगों में 89 प्रतिशत ऐसे लोग हैं जिनको दोनों खुराक लगाई जा चुकी है। पर वे खुराक लेने की वजह से ही वह गंभीर स्थिति में नहीं पहुंच रहे हैं।
इस वक्त अस्पतालों में कोविड-19 बेड ऑक्सीजन और वेंटिलेटर की व्यवस्था दुरुस्त करने के लिए काम चल रहा है। क्या या ठीक नहीं होगा उतनी ही तत्परता से वैक्सीनेशन के लक्ष्य को पूरा करने के लिए चलाया जाए?
फिर एक छात्र की पिटाई
सूरजपुर के तत्कालीन कलेक्टर रणबीर शर्मा ने लॉकडाउन के दौरान एक बच्चे पर हाथ उठाया था और उसका मोबाइल फोन तोड़ दिया था। उन्हें कलेक्ट्री से हाथ धोना पड़ा। मिलती-जुलती घटना कोरबा में हो गई। दीपका के तहसीलदार वीरेंद्र श्रीवास्तव ने मास्क नहीं पहनने पर एक बच्चे पर हाथ उठा दिया। लोगों की भीड़ लग गई। उन्होंने तहसीलदार की गाड़ी को जाम कर दिया।
भीड़ तहसीलदार से मौके पर ही निपटने के लिए उतावली थी, मगर तहसीलदार ने हाथ जोडक़र माफी मांगी और किसी तरह से लोगों के गुस्से को ठंडा किया। सार्वजनिक जगहों पर मास्क पहनकर निकलना एक जिम्मेदारी है जिसे नहीं निभाने पर जुर्माना भी तय किया जा चुका है। पर, तहसीलदार ने अपने पद और हद से बाहर जाकर गुस्सा दिखाया। फिलहाल माफी मांगने के बावजूद उनके ऊपर कार्रवाई की तलवार तो लटक ही रही है क्योंकि पूरे मामले की जांच करने का निर्देश कलेक्टर ने दिया है।
बेजुबानों के लिए एंबुलेंस
छत्तीसगढ़ में शायद पहली बार किसी ने जानवरों के लिए एंबुलेंस की व्यवस्था की है। अंबिकापुर के अजय अग्रवाल ने अपनी 90 वर्षीय मां के मिले पैसों से बीमार और घायल जानवरों को अस्पताल तक पहुंचाने के लिए एंबुलेंस की व्यवस्था की है। अजय अग्रवाल कोरोना की दूसरी लहर के दौरान लोगों को मुफ्त में मास्क बांटने को लेकर भी चर्चा में आए थे।