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नई दिल्ली, 26 जुलाई । भारत की डिस्कस थ्रोअर सीमा अंतिल पुनिया ने चार बार ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व किया हैं, लेकिन उनके लिए यहां तक पहुंचने का सफर आसान नहीं रहा। वह लड़कियों के लिए एक रोल मॉडल रही हैं। 27 जुलाई 1983 को सोनीपत में जन्मीं सीमा पुनिया खिलाड़ियों के परिवार से आती हैं। उनके भाई आनंदपाल सिंह कुश्ती खिलाड़ी रहे, जबकि अमितपाल सिंह ने हॉकी में नाम कमाया। इस पारिवारिक बैकग्राउंड के बीच, सीमा महज 11 साल की उम्र में एथलेटिक्स की दुनिया में कदम रख चुकी थीं। यूं तो, सीमा को दौड़ने और कूदने का शौक था। उन्हें हर्डल्स और लॉन्ग जंप में रुचि थी, लेकिन कोच की सलाह पर सीमा अंतिल पुनिया ने 'डिस्कस थ्रो' में करियर बनाने का फैसला किया। महज 17 साल की उम्र में सीमा पुनिया ने वर्ल्ड जूनियर एथलेटिक्स चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीत लिया था, लेकिन डोपिंग विवाद में फंसने के बाद उनसे पदक छिन गया। तब सीमा पुनिया ने जो ड्रग ली थी, उसे जुकाम के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि, तब आईएएएफ के नियमों के अनुसार सीमा पुनिया को सिर्फ चेतावनी देकर छोड़ दिया गया। हालांकि, उन्होंने हार नहीं मानी। वह टूटी नहीं।
उन्होंने अपनी कोशिश जारी रखते हुए जमैका के किंग्स्टन में आयोजित 2002 विश्व जूनियर चैंपियनशिप में प्रतिस्पर्धा में कांस्य पदक जीत लिया। सीमा पुनिया ने 2006 कॉमनवेल्थ गेम्स में 60 मीटर का थ्रो करते हुए रजत पदक जीता। यह कॉमनवेल्थ गेम्स में उनका पहला पदक था। साल 2006 में सीमा पुनिया को हरियाणा सरकार ने 'भीम पुरस्कार' से सम्मानित किया था। सीमा पुनिया को 2004 एथेंस ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला था। सीमा अंतिल पुनिया घुटने की चोट की वजह से 2008 बीजिंग ओलंपिक में भाग नहीं ले सकी थीं, लेकिन उन्होंने 2010 कॉमनवेल्थ गेम्स में एक बार फिर पदक अपने नाम कर लिया। इसके बाद उन्होंने 2012 लंदन ओलंपिक, 2016 रियो ओलंपिक और 2020 टोक्यो ओलंपिक में भी भारत का प्रतिनिधित्व करने की उपलब्धि हासिल की। इस अवधि के दौरान सीमा 2014 और 2018 कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत को पदक दिला चुकी थी। इसके अलावा, सीमा पुनिया 2014 एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीतने के बाद 2018 और 2022 के एशियन गेम्स में ब्रॉन्ज मेडल चुकी हैं। -(आईएएनएस)